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लघुविद्यानुवाद
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घिसके रुई लगाइये, बत्ती घरे बनाये । फिर भिगोवे तेल में, दीपक देय जलाय ।। १२ ॥ करे अच भों सब नमें, घर श्मशान दरसाय। सात महल के बीच सू, लावे पलंग उठाय ।। १३ ।।
जो घृत मे घिस के करे, लेप मूत्र नर ताय । सर्व शक्ति बाढ़े अमित, मन अति मोद उठाय ।। १४ ।। अजा मूत्र में रगड़कर, बेंदा दे जो हाथ । करे दूर की बात वो, रहे यक्षरणी साथ ।। १५ ।। गोरोचन के साथ घिस, लिखिये जाको नाम । होय बाकी तुरंत, नही देर को काम ।। १६ ।। लिग पत्र के अर्क सु, घिसिये केवल नाम । भूत प्रेत व डाकिनी, देखत नसे तमाम ।। १७ ।। स्याउ संग वा रगड़ के, तलुवे तले लगाय । प्रॉख मीच के पलक में, सहस कोस उड़ जाय ।। १८ ।। जो घिस प्रांजे पीस के, बंदी छोड़ कहाय । बन्दी पड़े छुटे सभी, बिना किये उपाय ॥ १६ ॥ जो गुलाब संग याहि घिस, नाड़ी लेप कराय। घड़ी चार कू जी पड़े, मुरदा सहज सुभाय ।। २० ।। फेर अंकोल के तेल में, घिस के प्रांजे कोय । धन दीखे पाताल को, दिव्य दृष्टि जो होय ॥ २१ ॥ जो बाघिन के दूध में, घिस चौपड़े सब अंग । सर्व शस्त्र लागे नहीं, बढ़ कर जीते जंग ।। २२ ।। घिस कर तिल के तेल में, मर्दन करे शरीर । दिखे सब संसार कू, महावीर रणधीर ॥ २३ ॥