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लघुविद्यानुवाद
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इस परिया यन्त्र को रवि पुष्य, रवि मूल, रवि हस्त, गुरु पुप्य, दिवाली के दिन अपने चन्द्र स्वर के साथ सोने, चादी के पत्र व भोजपत्र पर लिखे । 'ॐ ह्री श्री ठ ठ ठ क्रौ
यत्र न०६८
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स्वाहा” साढे बारह हजार बार यत्र लिखना और मत्र भी इतना ही जपना। प्रतिदिन एक हजार जप करना । सफेद वस्त्र पहनना, लवण, खट्टा मीठा, नही खाना ब्रह्मचर्य पालना, जमीन पर सोना, एक बार भोजन करना, पान खाना ।।१८।। यत्र न. ६६ नवग्रह शान्ति पदरिया के साथ यत्र __यत्र न १०० विजय पताका यत्र
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बायव्य
पश्चिम
इस यत्र की विधि नही है ।।६।।
इस यत्र की विधि नहीं है ॥१०॥