________________
लघुविद्यानुवाद
दृष्टि रधोमुखी ५६ मडोयधारिणी ६० व्याघ्री ६१ भूतादित नाशिनी ६२ भैरवी, महामाया ६३ कपालिनी वृथाङ्गनी ६४ । यक्ष अथवा यक्षिणियों की पंचोपचारी पूजा का क्रम
प्रथम सकलीकरण करे, फिर अष्टद्रव्य सामग्री शुद्ध अपने हाथ से धोकर, यक्ष अथवा यक्षिणी की पचोपचारी पूजा भक्ति से श्रद्धानपूर्वक करे। ॐ आ को ह्री नमोऽस्तु भगवति अमुक यक्ष अथवा अमुक यक्षिणी एहि २ सवौषट् ।
इति आह्वान मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु, भगवती, अथवा, भगवते, अमुक यक्ष, अथवा अमुक यक्षिणी, तिष्ठ २ठ ठ ।
इतिस्थापन मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु भगवति, अथवा, भगवते, अमुक यक्ष, अथवा अमुक यक्षिणी, ममसन्निहिता भव २ वषट् ।
इति सन्निधीकरण मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु भगवति अथवा भगवते, अमुकयक्ष अथवा अमुक यक्षिणो, जलगध अक्षत् पुष्पादिकान् गृण्ह २ नम ।
उपरोक्त मत्र से प्रत्येक द्रव्य को चढ ते समय उपरोक्त मत्र का उच्चारण करे। प्रत्येक द्रव्य से पूजा हो जाने के बाद विसर्जन करे।
इति द्रव्य अर्पण मंत्र ॐ प्रा को ह्री नमोऽतु, भगवति अथवा भगवते, यक्ष, अथवा अमुक, यक्षिणी स्वस्थान गच्छ २ ज ज ज.।
इति विसर्जन मंत्र इस प्रकार यक्ष अथवा यक्षिणी की पूजा करनी चाहिए।
होम विधि पहले सकलीकरण के बाद होम शुरू करे । तद्यथा--ॐ ह्रीं क्ष्वी भु स्वाहा पुष्पाञ्जलिः ॥ ११ ॥
इस तरह के मन्त्र जाप के विधान को पूर्ण कर दशास अग्नि होम करे इसका विधान इस प्रकार है।