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लघुविद्यानुवाद
करिंणका मे आ, द्वितीय मे हु, तीसरे मे क्षु, चौथे मे ह्री, पचम मे च, छठे मे को लिखे, फिर पट्कोण के बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लिखे । षट्कोण के ऊपर ६ वलय खीचे । प्रथम वलय कार मे १४ हा लिखे । द्वितीय वलय मे २२ ही लिखे । तीसरे वलय मे २३ हौ लिखे । चौथे वलय मे २७ र कार लिखे । पचम मे ३४ र कार लिखे । छठे मे ३२ र कार लिखे । फिर वलया कार पर त्रिकोण रेखा खिचे । त्रिकोण के अन्दर १२ र कार खीचे । इस प्रकार यन्त्र बनावे |
सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर यन्त्र लिखे, चादी अथवा तावे के ऊपर खुदवाकर यन्त्र सामने रखकर मन्त्र का विधिपूर्वक जप करे, साढे बारह हजार तो तीनो लोक मे क्षोभ होता है । ये यन्त्र मन्त्र त्रैलोक्य क्षोभन है ।
तुष्ट कर्म रगार्थ सप्तम काव्यम्
क्षु हु क्षु विचित्रे त्रिनयन नयने नाद विन्दूग्र नेत्रे । च च च वज्र धारा ल ल ल ल ललिते नील के शालि केशे । च च च चक्र धारा चल चल चलिते नू पुरै लेलि लीले । ह्राह्री सुकीर्ति सुर वर नमिते त्राहि मा देवि चक्रे ॥७॥
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टोका .—हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे सुक्षु हु क्षु विचित्रे पुन कथ भूते त्रि नयने स्त्रिभि लोचने र्नयन वस्तु प्रापण यस्या सापुन कथ भूते नाद विन्दू नेत्रे अर्द्ध चन्द्राकार विन्दुभि: रूग्र नेत्रं च च च वज्रधारी ल ल ल ल ललिते (भ्र) नूपुर विराजमाने
पुन कथ भूतै हेलिकेशे, भ्रमर केसे, त्व नीलकेशासि पुनः कथ भूते, नूपुरै च च च चक्र
धारया चल चल चलिते पुन. कथ भूते लोल च चला लीला यस्या सा पुनः कथ भूते श्री
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त्र ह्रा ह्री सुकीर्ति रसि पुन कथ भूते सुर वर नमिते त्व रक्षत्ये त्यर्थ. ।
यन्त्रोद्वार
षट्कोण चक्रमध्ये पूर्ववत मूर्ति विलिख्य ऊपरि त्र क्षु हु क्षु लिखत दक्षिणे च च च च
ल ल ल ल इति उत्तरे च च च च चल चल । इति अधएव श्री त्र हा ही इति विलिखते पश्चात् नूपुर विलिख्य वज्रोपरि ल ल ल ल इति लिखेत् ।
मूल मन्त्रोद्धार :- उ त्र क्षु हु क्षु श्री त्र हा ही नम स्वाहा ।
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विधि :- अस्य तुष्टि कर्मरगोवोध्य. फल यशो लाभोऽभ्युदयश्चेति बोधव्य ।