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लघुविद्यानुवाद
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"वैराटो देवो यक्षिणी"-हरे वर्ण वाली सर्प वाहिनी, चार भुजा वाली है। ऊपर के दोनो हाथो मे सर्प, नीचे के दाहिने हाथ मे बाण, बाएं हाथ मे धनुष को धारण करने वाली है। (चित्र न० २६) क्षेत्रपाल-6 विमल भक्ति, आराध्य रुचि, वैद्य रुचि, भावश्य वैद्य वाद्य रुचि ।
(१४) श्री अनन्तनाथजी (सेही का चिन्ह) "पाताल यक्ष"-लाल वर्ण तथा मगर की सवारी करने वाला और तीन मुख वाला, मस्तक पर सर्प को तीन फरिण को धारण करने वाला तथा छह भुजा वाला है दाहिने हाथ मे अंकुश, त्रिशूल और कमल तथा बाएं हाथ मे चाबुक, हल और फल धारण करने वाला है। (चित्र न० २७)
"अन्नतमति यक्षिणी"-स्वर्ण वर्ण वाली, हस वाहिनी, चार भुजा वाली है। हाथो मे धनुष, बिजोरा, फल, बाण और वरदान धारण करने वाली है। (चित्र न० ०८) क्षेत्रपाल-४ स्वभाव नामा, परभाव नामा, अनौपम्य, सहजानन्द ।
(१५) श्री धर्मनाथजी (वज्र का चिन्ह) "किन्नर यक्ष"--मू गे (प्रवाल) के वर्णमाला मछली की सवारी करने वाला, त्रिमुख और छह भुजा वाला है । बाएं हाथ मे फरसा, वज्र और अकुश तथा दाहिने हाथ मे मुग्दर माल और वरदान को धारण करने वाला है । (चित्र न० २६)
___ "मानसी यक्षिणी"--मू गे जैसी लाल कान्ति वाली व्याघ्र की सवारी करने वाली, छह भुजा वाली है। हाथो मे कमल, धनुष वरदान, अकुश बाण और कमल को धारण करने वाली है। (चित्र न. ३०) क्षत्रपाल--४ धर्मकर, धर्माकारी, शातकर्मा (सातृ कर्मक) विनय नाम ।
(१६) श्री शान्तिनाथजी (हरिन का चिन्ह) _ "गरूड़ यक्ष"--कृष्ण वर्ण वाला टेढा मुख वाला (सूअर का सा मुंह वाला) सूअर की सवारी करने वाला चार भुजा वाला है । नीचे के दोनो हाथो मे कमल और फल तथा ऊपर के दोनों हाथो मे वज्र और चक्र लिये हुये है। (चित्र न० ३१)
'महामानसी ( कदर्पा) यक्षिणी"-मयूर वाहिनी, चार भुजा वाली तथा स्वर्ण के समान वर्ण वाली है। हाथो मे चन्द्र, फल, वज्र और वरदान को धारण करने वाली है। (चित्र न० ३२)