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________________ ४९८ लघुविद्यानुवाद ह्री कारेन वेष्टयेत् वायुतत्व मध्ये, यन्त्र साधयेत रक्त पुष्प अष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा यत्र मत्र साधनात चितित कार्यस्य सिद्धिर्भवती, शत्रु क्षययाति लक्ष्मो लाभो भवति, सद्गति प्राप्तिर्भवति । फल :-एकादशम काव्यस्य प बीज द्रो शक्ति षोडशाक्षरै मन्त्र ॐ ह्री श्री या झो ह्री क्ली झो ह्री ऐ पद्मावति नम. अनेन मत्रेन पूर्व दिशा मुख कृत्वा द्वादश सहस्र जाप्य १२००० रक्त पुष्पेन कृत्वा, मन्त्र सिद्धिर्भवति मन्त्र प्रभावत् सर्वजनप्रियो भवति, अस्य, प्रभावात् चक्रवर्ति समान भवति, सर्वजन वशी भवति । भाग्योदय भवति । इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगधित द्रव्य से लिखे, अथवा सोना, चादी, ताँबा के पत्रे पर अष्ट द्रव्य से खुदवाकर और लाल पुष्प से यन्त्र की पूजा करे तो चितित कार्य की सिद्धि होती है। शत्रु नाश को प्राप्त होता है। लक्ष्मी का लाभ होता है। सद्गति की प्राप्ति होती है। ॐ ह्री श्री आ को ह्री क्ली को ह्री ऐ पद्मावति नम , इस मन्त्र को पूर्व दिशा मे, मुख करके बारह हजार लाल पुष्प से जाप करे तो मन्त्र सिद्ध होता है। मन्त्र के प्रभाव से समस्त पृथ्वी के लोक चरणो मे पाकर पडे, चक्रवर्ती के समान भाग्योदय करता है। यन्त्र नं० ११ ऑ क्रॉ ही पंचवर्णलिखित षट् दलेक्रमध्ये हसकी । | हाँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं । हाँ हाँ त्रैलोक्यंचालयतिसपदिजनहितरक्षमा दविपद्ये।। हाँ हाँ | | हाँ . हाँ क्रॉ क्रॉपत्रांतरासस्वर परिकलितेवायुनावेष्टिलागी। हाँ पदा SALENDAR B hagr मनोवांछितदायक यन्त्र
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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