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लघुविद्यानुवाद
बीज फल मोहन हो मूल बीज माया मायाफलं क्नो काम बीज क्लि क्लिन्ना बीज फल वय द्रावणोचेति व भयकर: 'प्र' काल रात्रिम महाकाल त्रि सयोगी कां फल उच्चाटन फल फ. प्रलयाग्निः प्राकाल रात्रिर्म पूर्व सज्ञा फल मारण फल ही हकार शून्य रकार. दहन ईकार धूम्र. भैरवी तत्सयोगात् फलं 'तदेव' पूर्ववत्ग फल इत्यस्य मध्येघ इत्यस्य उग्र शूल सज्ञान इत्यस्य चड सज्ञा धग इत्यनेनापि दह्नत्व फल वोध्य हु विद्वेषऽपि फट् वश्यात्म के जय शत्रु क्षय करोsपिचेति बोध्य इत्येव बीज निष्पत्ति बोद्धिव्या वीज कोशत परत स्वेन कि प्रोच्य तदेकान्वय युक्तित ।
य. स्तोत्र रूप पठति निज मनो भक्ति पूर्व शृणोति त्रैलोक्य तस्य वश्य भवति बुध
जने वाक्य पटुत्व च दिव्य । सोभाग्य स्त्रिषु मध्ये खगपति गमन गौरवत्वत् प्रशादात् । डाकिन्यो गुह्य कावा विदद्यति न भय चक्र देव्या स्तवेन ।
यन्त्र न० ८
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इस यन्त्र को प्रथम पट् राखीचे, पोको मृत उप पर हो फट् लिखे । पट्कोण की रक्षा हो लिये। प केहा ही तील लिये दक्षिण में वह
स्प्रे निये