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लघुविद्यानुवाद
जाते है । यन्त्र तैयार हो जायेगा तव धूप से खेव कर इक्कीस बार ऊपर कर पीडा वाले को बाँधने से ज्वर पीडा मिट जाय तब यन्त्र को कू ए के पानी मे डाल देना, विश्वास रखना और इष्ट देव को स्मरण करते रहना ।।७।।
सिद्धि दायक एक सौ पाठवां यंत्र ॥३८॥
इस यन्त्र को अष्ट गघ से भोज पत्र या कागज पर लिखना चाहिये। कलम चमेली की लेना चाहिए। सोने की निव हो तो और भी अच्छा है। यन्त्र तैयार कर बाजोट पर रखकर धूप,
यत्र न०३८
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दीप, पुष्प चढा कर पूजन वास क्षेप तप से पूजा कर सामने फल नैवेद्य चढा कर नमस्कार कर यत्र को समेट कर पास मे रखे। यन्त्र जिस कार्य के लिये बनाया हो उसका सकल्प यन्त्र की पूजा करने के बाद खयाल कर नमस्कार कर लेवे और जहाँ तक कार्य सिद्ध न हो तब तक प्रात काल मे नित्य प्रति धूप से या अगरबत्ती से खेव लिया करे । इष्ट देव का स्मरण कभी न भूले । कार्य सिद्ध होगा ॥३८॥
भूत प्रेत कष्ट निवारण एक सौ छत्तीस यत्र ॥३६॥
इस यन्त्र को मकान के बाहर भी लिखते है और पास मे भी रखने को बताया जाता है। वैसे तो लिखने का दिन दीवाली की रात्रि को बताया है। परन्तु आवश्यकता अनुसार जब चाहे लिखले और हो सके तो अमावस्या की रात्रि मे लिखना जिसमे यन्त्र लाभ दायक होगा।