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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २१६
यन्त्र न २१७
जःजःजः जःजः
बदत्तस्य
बर नाशप/
देवदत्तस्य ज्वरं
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नाशय२
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ये यन्त्र शीत ज्वर चढने के पूर्व अग्नि मे तपावै । जब तक वक्त टल जाय पानी के कटोरे मे डाल देवे सिरहाने राखे ज्वर य ।।२१६, २१७।।
यत्र न० २१८
यन्त्र जजोरे का सिन्दूर से लिखे । दिखावै जलावै भूत वकारे सही ॥२१८॥