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________________ लघुविद्यानुवाद ४५६ विधि -पाटे पर अथवा भोजपत्र पर यन्त्र लिखकर केशर पुष्पादि से पूजा करे, जो सदा इस यन्त्र की आराधना करता है उसके तीनो लोक अवश्य ही वश मे रहते है । ____ मन्त्र :-ॐ ह्री क्ली जभे मोहे + + + अमुकं वश्यं कुरू २ । ॐ यं र र व र स हा ह्रां प्रां को क्षी क्लीं ब्लू (हां ह्रीं) द्रां द्रों पद्ममालिनी ज्वल (प्रज्वेल) हन २ दह २ पच २ इदं भूतं निर्दय (निर्घाटय) धूम धूम्रांध कारिणी ज्वलनशिखे हूं फट् २ यः ३ त्रिमात्रां समि हितार्थान् हितां ज्वालामालिनी प्राज्ञापयति स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर पास में रखने से, सिर दर्द मिटता है, कपडा मन्त्रीत कर प्रोढाने से भूत, ज्वर, ग्रह दोष, शाकिनी प्रभुती आदि का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवती पषुपतये नमो २ अधिपतये नमो-रुद्राय ध्यंस २ खड्ग रावण चलं २ विहर २ सर २ नृपे २ स्फोट्य २ श्मशान भस्मानां चित्त शरीराय घंटा कपाल मालाधराय व्यान चर्म परिधानाय शशांकित शेखराय कष्णं सर्प यज्ञोपविताय चल २ चलाचल २ अनिवृतिक पिपलिनी हन २ भूतं प्रतं त्रासय २ ह्रीं मंडलं मध्ये फट २ वश्यं कुरू २ अमुक नाम्न. (अस्य) प्रवेशय २ प्रावह प्रचंड धारासि देव (देवि) रुद्रो-यापेक्षय महाविद्यारुद्रो आज्ञा पयति ठः ३ स्वाहा । भूत मंत्रः ।। विधि :- इस मन्त्र से ताडन करने से भूतादिक दोष शात होते है। पहले के समान मन्त्र सिद्ध करके पानी मत्रित करके छाटने से भूत प्रेतादि शरीर मे पाकर इच्छित माग कर चले जायेगे, साधक इस मन्त्र से इच्छित कार्य सिद्धपण कर सकता है। यन्त्र नं० ४ वृहत चतुर्थ काव्यस्य, प्रौ, बीज पोडशाक्षरै मन्त्र । ॐ ह्री भ्रा ह्री पो षोडश भुजे प्री ह. + नमः अनेन मन्त्रेन पूर्वादिग् मुख, रक्तासन रक्तमाला १०८ शत जाप्य कृत्वा स्थान लाभ भवति ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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