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लघुविद्यानुवाद
वज्रासन -वीरासन मुद्रा मे पीठ की तरफ से लेकर दाहिने पैर का अगूठा दाहिने हाथ से और बॉये पैर का अगूठा बॉये हाथ से पकडे तो वज्रासन होता है ।
पद्मासन -दायाँ पैर बॉयी जघा पर रखे और बायाँ पैर दाँयी जघा पर, एडियाँ परस्पर मिली हो, दोनो घुटने जमीन से स्पर्श न करे तो पद्मासन होता है।
भद्रासन -पुरुष चिह्न के आगे गॅव के दोनो तलुवे मिलाकर उनके ऊपर दोनो हाथ की अगुली परस्पर एक के साथ एक करने के बाद दोनो अगुलिया ठीक तरह से दीखती रहे इस प्रकार हाथ जोडकर बैठना भद्रासन है।
दण्डासन —जिस आसन मे बैठने से अगुलियाँ, गुल्फ व जघा भूमि से स्पर्श करे, इस प्रकार पॉवो को लम्बे कर बैठना दण्डासन कहा जाता है।
उत्किटिकासन -गुदा और ऐडी के सयोग से दृढता पूर्वक बेठे तो उत्किटिकासन कहा जाता है।
गो दोहिकासन :-गाय दुहने को बैठते है, उस तरह बैठना, ध्यान करना गोदोहिकासन है।
कायोत्सर्गासन :-खडे-खडे दोनो भुजारो को लम्बो कर घुटने की तरफ बढाना या बैठे-बैठे काया की अपेक्षा नही रख कर ध्यान करना कायोत्सर्गासन कहलाता है।
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मन्त्र शास्त्र में मुद्राओं की विधि (१) वाम हस्तस्योपरिदक्षिणकरं कृत्वा कनिष्ठिकागुष्ठाभ्या मणिबध वेष्ट्य शेषागुलिना
विस्फारित 'वज्रमुद्रा' । [ चित्र स० १] (२) पद्माकरो कृत्वा मध्ये अगुष्ठौ करिणकारो विन्यस्येदिति 'पद्ममुद्रा'। [ चित्र स० ५ ] ( ३ ) वामहस्ततले दक्षिण हस्तमूल निवेश्य करशाखा विरलीकृत्य प्रसारयेदिति 'चक्रमुद्रा'
[चित्र स०७] (४) उत्तानहस्तद्वयेन वेणीबध विधाया गुष्ठाभ्यां कनिष्ठ तर्जनीभ्या मध्ये सगृह्य अनामिके
समीकुर्यातामिति 'परमेष्ठीमुद्रा' । (५) यद्वा करागली अर्धीकृत्य मध्यमा मध्ये कुर्यादिति 'द्वितीया परमेष्ठीमुद्रा'।
चित्र स० २०] उत्तानो किचिता कुचित कर शाखौ पाणी विधाय धारयेदिति 'अञ्जुलि मुद्रा'। अथवा 'पल्लव मुद्रा'। [चित्र स० १]
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