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लघुविद्यानुवाद
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इसके बाद यजमान आचार्य बाये हाथ मे कलश लेकर दाहिने हाथ से पुण्याहवाचन को पढता भूमि का सिचन करे ।। २३ ।। और पुण्याह पुण्याह प्रीयन्ता प्रीयन्ता इत्यादि पुण्याहवाचन को पढता हुआ कलश को कुण्ड के दाहिने भाग मे स्थापन करे ।। २३ ।।
ततः ॐ ह्री स्वस्तये मङ्गलकुम्भ स्थापयामि स्वाहा वारे मङ्गलकलश स्थापनं तत्र स्थालि पाक प्रोक्षरण पात्र पूजाद्रव्य होम द्रव्य स्थापनम् ॥ २४ ॥
__इसके बाद "ॐ ह्री स्वस्तये" इत्यादि पढकर कुण्ड के बाये भाग मे कलश स्थापन करे और वही पर स्थालीपाक गन्ध पुष्प अक्षत फल इत्यादि से सुशोभित पाच पच पात्रो, प्रेक्षणपात्र, पूजाद्रव्य और होम द्रव्य को स्थापन करे ॥ २४ ॥
ॐ ह्रीं परमेष्ठिभ्यों नमो नमः इति परमात्म ध्यानम् ।। २५ ।। इसे पढकर परमात्मा का चिन्तवन करे ॥ २५ ।।
ॐ ह्री गमो अरिहंताणं ध्यात भिरभीप्सित फलदेभ्यः स्वाहा परम पुरूषस्यायं प्रदानम् ॥ २६ ॥
यह पढकर परमात्मा को अर्घ्य दे ॥ २६ ।।
तत इदं यन्त्रं कुण्ड मध्ये लिखेत् ॐ ह्रीं नीरज से नमः ॐ दर्पमथनाय नमः । इत्यादि । जलैर्दभै गंधाक्षतादिभि होम कुण्डार्चनम ॥ २७ ॥
___इसके बाद कुण्ड के बीच मे ॐ ह्री नीरज से नम ।। "दर्पमथनाय नम” इत्यादि जिसे पीछे पूर्ण लिख पाये है उस मन्त्र को लिख जल गन्ध अक्षत दर्भ आदि से होम कुण्ड की अर्चना करे ॥ २७ ॥
__ॐ ॐ ॐ ॐ र र र रं अग्नि स्थापयामि स्वाहा ।। अग्नि स्थापनम् ॥ २८ ॥
इसे पढकर कुण्ड मे अग्नि की स्थापना करे ।। २८ ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं दर्भ निक्षिप्य अग्निसन्धुक्षण करोमी स्वाहा ।। २६ ।।
यह पढकर कुण्ड मे दर्भ डालकर अग्नि जलावे ।। २६ ।।
ॐ ह्रीं क्ष्वी क्ष्वी वं मं हं सं त प द्रां द्रां हं स. स्वाहा ॥ प्रापचम नमः ।। ३० ॥