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लघुविद्यानुवाद
यह मन्त्र पढकर आचमन करे ।। ३० ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः असि प्रा उ सा अहं प्राणायाम करोमि स्वाहा ।। त्रिरुच्चार्य प्राणायाम् ।। ३१ ॥
इस मन्त्र का तीन बार उन्चारण कर प्राणायाम करे ।। ३१ ।।
ॐ नमोऽहते भगवते सत्यवचनसन्दर्भाय केवल ज्ञान दर्शनप्रज्वलनाय पूर्वीतराग्नं दर्भ परिस्तऽरणमुदुम्बर समित्रस्तरण च करोमि स्वाहा ॥ होम कुण्डस्य चर्तु भुजेषू पञ्च पञ्च दर्भ वेष्टितेन परिधि बन्धनम् ॥ ३२ ॥
__"ॐ नमोऽहते" इत्यादि पढकर कुण्ड के चारो कोनो पर पाच पाच दर्भ को एक साथ बाधकर परिबन्धन करे, दक्षिण और उत्तर के कोने पर रक्खे हुये दर्भो की नौके पूर्व दिशा की ओर करे और पूर्व पश्चिम के कोने पर रक्खे दर्भो की नोके उत्तर की ओर करे ।। ३२ ।।
ॐ ॐ ॐ ॐ र र र र अग्निकुमार देव आगच्छागच्छ इत्यादि ।
इत्यादिदेव माहूय प्रसाद्य तन्मौल्युद्भवस्याग्नेरस्य गार्हपत्येनामधेयमन्त्र संकल्प्य अर्हदिव्यमूर्तिभावनया श्रद्धानरूपदिव्य शक्ति समन्वित सम्यग्दर्शन भावनया समभ्यर्चनम ।। ३३ ।।
"ॐ ॐ ॐ ॐ" इत्यादि मन्त्र पढकर अग्नि देव (अग्निकुमार) का आह्वान करे उसे प्रसन्न करे, अर्थात् अग्नि जलावे, 'ग्राहपत्य' इस नाम की कल्पना करे और अर्हन्त भगवान की दिव्य मूर्ति को तथा श्रद्धान रूप दिव्य शक्ति युक्त सम्यग्दर्शन की भावना कर पूजा करे ॥ ३३॥
___ॐ ह्रीं नौं प्रशस्त वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन वधूचिन्ह सपरिवाराः पञ्चदश तिथिदेवताः आगच्छत श्रागच्छत इत्यादि कुण्डस्य प्रथममेखलायाम तिथि देवताचंनम ।। ३४ ॥
"ह्री कौ" इत्यादि मन्त्र को बोलकर कुण्ड को प्रथम मेखला पर पन्द्रह तिथि देवताओ की पूजा करे ॥ ३४ ॥
___ "ॐ ह्रीं क्रौ" प्रशस्तवर्णसर्व लक्षरणसम्पूर्णस्वायुध वाहन वधु चिन्हस परिवारा नवग्रह देवता आगच्छत प्रागच्छतत्यादि । उर्ध्वमेखलायां द्वात्रिशदि दिन्द्रार्चनम ॥ ३५॥
यह मन्त्र पढकर तीतरी मेखला पर बत्तीस इन्द्रो की पूजा करे ॥ ३५॥