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________________ २७२ लघुविद्यानुवाद के पतडे पर तैयार कर प्रतिष्ठित करा लेवे और हो सके तो मत्र एक लाख जाप यन्त्र के सामने धूप, दीप, रख कर लेवे । यदि इतना जाप नही हो सके तो साढे बारह हजार जाप तो अवश्य कर लेना चाहिये । जाप करते मत्र बोला जाय उसमे एक गुरु कम है वह यह है कि मत्र के अन्त मे स्वाहा. पल्लव से जाप करता जाय अर्थात कुरु कुरु स्वाहा करना चाहिये जिसमे मत्र शक्ति बढेगी और यत्रमत्र नव पल्लवति जैसा होकर लाभ पहुँचायगा। 'जाप करते समय एक यत्र भोज पत्र पर तैयार कर जाप करते समय ताबे के पतडे वाले यत्र के पास ही रखे । जब जाप सम्पूर्ण हो जाये तब भोजपत्र वाले यन्त्र को नित्य अपने पास मे रखे और ताबे के यत्र को दुकान मे या मकान ने स्थापित कर नित्य दीप, पूजा किया करे । इतना कर लेने के बाद हो सके तो मत्र की एक माला नित्य फेर लवे । और नही हो सके तो कम से कम २१ जाप तो अवश्य करना चाहिये। श्रद्धा रख कर इष्ट देव का स्मरण करता रहे। नीति से चले और दान पुण्य करता रहे तो लाभ होगा ॥ २३ ॥ प्रभाव प्रशंसा वर्धक चौतीसा यंत्र ॥२४॥ चौतीसा यन्त्र बहुत प्रसिद्ध है। और व्यापारी वर्ग तो इस यत्र का बहुमान विशेष प्रकार से करते है। मेदा पाट मरु भूमि और मालव प्रात मे व्यापारी लोग अपनी दुकान पर यन्त्र न० २४ दीवाली के दिन लिखते हैं प्राचीन काल मे ऐसी प्रथा चलती है कि शुभ समय मे सिन्दुर स गणपति के पास लिखते हैं । दरवाजे पर, मकान की दीवार पर लिखना हो तो हडमची स लिखना चाहिए। इस यन्त्र को लिखने के बाद धूप, पूजा कर नमस्कार करने से व्यापार चलता रहता है। और व्यापारियो मे इज्जत बढती है प्रशसा होती है और ऐसे यत्र भोज पत्र पर लिख
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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