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________________ लघुविद्यानुवाद १६६ विधि :- इस मन्त्र को तीन दिन तीन रात्रि प्रहनिश जपे एकान्त जगह मे, जहाँ स्त्री-पु - पुरुष का मुख भी नही दिखाई पडे ऐसी जगह जाकर जपे यहाँ तक कि भूख लगे चाहे प्यास लगे तो भी पता ही रहे । टट्टी लगे तो भी जपे और पैशाब लगे तो भो जपता रहे । एक मुरदे की खोपडी को सिन्दूर का लितक लगावे फिर दोप, धूप, नेवेद्य चढाय कर उस खोपडी के सामने जप करे निर्भय होकर चौथे दिन साक्षात भगवती सिद्ध होगी और वरदान देगी फिर नित्य ही ४० सुवर्ण मोहर का, फिर ४० सुवर्ण की मोहर नित्य मिलेगी । मन्त्र -- -ॐ ह्री रक्त चामुण्डे कुरु कुरु प्रमुकं मे वश्य मे वश्यमानय स्वाहा । विधि - लाल कनेर के फूल, लाल राइ, कडुवा तेल का होम करे, दस हजार जाप करे अवश्य ही वशीकरन होय । मन्त्र — ॐ नमो वश्य मुखीराजमुखी प्रमुकं मे वश्य मानय स्वाहा । विधि - सवेरे उठकर मुह धोते समय पानी को सात बार मन्त्रित करके मुह धोने से जिसके नाम से जपे वह वशी होता है । मन्त्र :- ॐ नमो कट विकट घोर रूपिणी प्रभुकं मे वश्य मानय स्वाहा । विधि - इस मन्त्र को भोजन करते समय एक २ ग्रास के साथ एक बार मन्त्र पढता जाय और खाता जाय तो पाँच सात ग्रास मे ही वशीकरण होता है । अमुक की जगह जिसको वश करना चाहे उसका नाम ले । मन्त्र — ॐ जल कंप जलधर कंपै सो पुत्र सौ चंडिका कंपै राजा रूठो कहा करे सिंघासन छाडि बैठे जब लगई चंदन सिर चडाउ' तब लग त्रोभुवन पांव पडाउ ह्री फट् स्वाहा । विधि : - चदन को १०८ बार मन्त्रित करके तिलक नगाने से राजा प्रजा सर्व ही वश मे होता है । मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं श्री करी धन करी धान्य करी मम सौभाग्य करी शत्रु क्षय करो स्वाहा ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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