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लघुविद्यानुवाद
भजन है।
-संकलन कर्ता-श्री शान्तिकुमार गगवाल कुथु सागर, गुरुवर हमारे, हमको दर्शन दे रहियो ।
मन मन्दिर में आजइयो । टेक ॥ . रेवा चन्द्र के राज दुलारे, माता के हो प्राण पियारे । हमको दर्शन दे रहियो, मन मन्दिर में प्राजइयो ॥१॥ बीस वर्ष में दीक्षा धारी, छोड़ी है धन-दौलत सारी। शरण हमें स्वामी ले रहियो, मन मन्दिर मे आजइयो ॥२॥ भेष दिगम्बर तुमने धारा, सकल भेद विज्ञान संवारा । . भेद ज्ञान दरशा जइयो, मन मन्दिर मे आजइयो ॥३॥ मंडल को है शरण तुम्हारी, पूरी करना प्राश हमारी। मोक्ष मार्ग बतला जइयो, मन मन्दिर में प्राजइयो ॥४॥
- ॥ आरती॥ संतोषी लाल की दुलारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥टेक॥ कामा नगरी में जन्म लियो है, जन्म लियो है माता जन्म लियो है । माता जी हो प्यारी-प्यारो, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥१॥ यह संसार दुःखमय जाना, दुःखमय जाना, माता दुःखमय जाना । भारत देश उजियारी, 'मैं औरती · उतारूं तुम्हारी ॥२॥ बालापन में दीक्षा धारी, दीक्षा धारी, माता दीक्षा धारी। मुक्ति दीजे भव पारि, मै आरती उतारूं तुम्हारी ॥३॥ आप विदुषि हो माता जी, जय माता जी, जय माता जी । ज्ञान का है भण्डार भारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥४॥ गरणनी विजयमती माता जी, जय माता जी, जय माता जी । मंडल है शरण तुम्हारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥५॥