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________________ २५६ लघुविद्यानुवाद दिशा की तरफ मुख करके बैठना चाहिए। तमाम क्रिया करे तो शरीर शुद्धि कर स्वच्छ कपडे पहिन करके विधान पर पूरा ध्यान रखना ।।-॥ यन्त्र चमत्कार ||-यन्त्र का बहुमान कर उससे लाभ प्राप्त करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आती है। वार्षिक पर्व दिवाली के दिन दुकान के दरवाजे पर या अन्दर जहाँ देव स्थापना हो वहा पर पन्दरिया चोतीस पेसठिया यन्त्र लिखने की प्रथा है । जगह-जगह बहुत देखने में आती है। विशेष मे यह भी देखा है कि गर्भवती स्त्री कष्ट पा रही हो और छुटकारा न होता हो तो विधि सहित यन्त्र लिखकर उस स्त्री को दिखाने मात्र से ही छुटकारा हो जाता है। और किसी स्त्री को डाकिनी शाकिनी सताती हो तो यन्त्र को हाथो पर या गले मे बाधने मात्र से या सिर पर रखने से व दिखाने मात्र से आराम हो जाता है । प्राचीन काल मे ऐसी प्रथा थी कि किले या गढ की नीव लगाते समय अमुक प्रकार का यन्त्र लिख दीपक के साथ नीव के पास मे रखते समय भी बहुत से मनुष्य यन्त्र को हाथ मे बाधे रहते है, और जैन समाज मे तो पूजा करने के यन्त्र भी होते है जिनका नित्य प्रति प्रक्षाल कराया जाता है । और चदन से पूजा कर पुष्प चढाते है। इस तरह से यन्त्र का बहुमान प्राचीन काल से होता आया है जो अब तक चल रहा है ।। साथ ही श्रद्धावान लोग विशेष लाभ उठाते है। श्रद्धा रखने से आत्म विश्वास बढता है । साथ ही श्रद्धा भी फलती है । जिस मनुष्य को यन्त्र पर भरोसा होता है उसे फल भी मिलता है। एकनिष्ठ रहने की प्रकृति हो जाती है और इतना हो जाने से आत्म बल, आत्म गुण भी बढता है। परिणाम मजबूत होते हैं और प्रात्म शुद्धि होती है । इसलिए विश्वास रखना चाहिए। ___ यन्त्र लेखन कैसे करवाना ||-॥ जो मनुष्य मन्त्र शास्त्र यन्त्र शास्त्र के जानकार और अक गणित जानने वाले ब्रह्मचारी, शीलवान, उत्तम पुरुष हो, उनसे लिखवाना चाहिए और ऐसे सिद्ध पुरुष का योग न पा सके तो जिस प्रकार का विधान प्रति मन्त्र के साथ लिखा हो उसी तरह से तैयारी कर मन्त्र लेखन करे। और लिखते ही यन्त्र को जमीन पर नही रखना और जिसके लिए बनाया हो उसे सूर्य स्वर या चन्द्र स्वर मे देना चाहिए ।। लेने वाला बहुमान पूर्वक ग्रहण करते समय देव के निमित्त फल भेट करे तो अच्छा है। यन्त्र लेने के बाद सोने के चादी या ताबे के मादलिए मे यन्त्र को रख देना भी अच्छा है। यदि मादलिया न रखना हो तो वैसे ही पास मे रख सकते है। यन्त्र को ऐसे ढग से रखना उचित है कि वह अपवित्र न हो सके मृत्यु प्रसग मे लोकाचार मे जाना पड़े तो वापसी आने पर धूप खेने से पवित्रता प्रा जाती है ।।।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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