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लघुविद्यानुवाद
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मन्त्रोद्धार, ॐ स्त्रां ॐ स्त्री ॐ स्त्रूॐ स्त्रः । विधि :- इस मन्त्र को सायकाल लगातार छह महीने तक स्मरण करके सिद्ध करे, फिर विष पुष्पो
को २१ बार मत्रीत कर शत्रु की शय्या पर डाले तो शत्रु के शरीर मे प्राघात पहुचे, इसमे कोई सदेह नही है। किन्तु धर्मात्मानो को इन क्रियाओ को नही करना चाहिये । पाप लगता है। विस्तीर्णे पद्मपीठे कमलदल निवासो चिते काम गुप्ते लां ता ग्री श्री समेते प्रहसित वदने दिव्य हस्ते ! प्रसन्ने ! रक्ते रक्तोत्पलागि प्रतिवहसि सदा वाग्भवं कामराज हंसारुढे ! त्रिनेत्रे ! भगवति ! वरदे ! रक्ष मां देवि ! पद्म ॥६॥
श्लोक नं. १ विस्तार वाले कमलो के पत्र के ऊपर बैठी हुई, भक्तो की गुप्त बातो को जानने वाली, ला __ता श्री श्री, ये चार मत्राक्षरो से विभूषित, जिनका मुख कमल मद हास्य से सयुक्त है, दिव्य
हस्त कमलो से सहित, प्रसन्न मुख मुद्रा वाली लाल रंग से सहित लाल कमल के समान जिनका शरीर है, हस पर आरूढ है, तीन नेत्रो से सयुक्त है, हे भगवती नुम निरतर वाग्भव मत्र 'ऐ' और कामराज मत्र 'क्ली' को धारण करने वाली हो, भक्त जनो को आशीर्वाद से इच्छित कार्य को सिद्धि करने वाली हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ।।६।।
काव्य नं. ६ यन्त्र रचना :
विशति दल कमल कृत्वा तन्मध्ये प्ली बीज स्थाप्य दल मध्ये ॐ ह्री श्री धरणेद्र पद्मावती बल पराक्रमाय नम एतत्मत्र लिखेत । तदुपरि ॐ ह्री श्री पद्मावती ला ता ग्री श्री की द्रौ र रौ झौ झी ही ह्रा ह्रो वाग्भवे नम. एतत् अक्षरेन यन्त्र वेष्टयेत् यन्त्रस्य प्रष्ट द्रव्येन
पूजन कृत्वा । काव्य यन्त्र मत्र प्रभावात् सर्व क्षेम कुशल भवती। फल -नवम काव्यस्य प्लौ बीज विसत्यक्षर मंत्र । ॐ ह्री श्री धरणेद्र पद्मावती बल पराक्रमाय
नम अनेन मत्रेण पूर्वाभिमुख पीत वस्त्र, पीतासने सहस्र द्वय जाप्य कृत्वा एक विंशति दिने मत्र सिद्धिर्भवती, राज्य स्थान लाभ भवती।
इस यन्त्र के मन्त्र को पूर्व मे मुख करके पीला वस्त्र पहिनकर पीली माला से दो हजार ___ जाप पीले आसन पर बैठ कर २१ दिन तक करे तो मत्र सिद्ध हो जाता है। फिर यन्त्र पास मे रखे ।