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लघुविद्यानुवाद
विधि नं. १ 'अथ श्री पदमावती स्तोत्रम्
प्रथम श्लोकार्थ बडे बडे देवतानो के समुह के स्वच्छ मुकुटो की किनारियो के ऊपर लगे हुये दिव्य माणिक्यो से प्रकाशमान ज्वालामो से सहित चमकते हुये उन मुकुटो से किनारियो से घीसाये गये चर कमलो वाली, भयकर उल्काप्रो से निकलने वाली हजारो अग्नि शिखाओ से चमकता हुवा पाश, और अकुश, को धारण करने वाली और कलिकाल के मल दोष को नाश करने वाली आ, क्रो ह्री, इस मत्र स्वरूप वाली हे देवि पद्मावति मेरी रक्षा करो ॥१॥ साधना का मूल मत्र, ॐ या को ह्री पद्मावत्यै नम । इस मत्र का जाप्य पहले करके यत्र साधन करे। ,
प. स्त्रो. विधि नं १ यत्र नं १
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आक्रों
RAHA
सर्व सौभाग्यकारी यंत्र