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लघुविद्यानुवाद
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मन्त्र :-ॐ चिटि पिटि निक्षीज ३ । विधि :-अनया सप्त वारपरिजप्य दष्टस्यें परि निक्षिपेत्तक्षणा निर्विषो भवति । मन्त्र :-ॐ चलि चालिनी नीयतेज ३ ।
विधि .-इस मत्र को ७ बार जप कर हाथ को सर्प खाये हुये व्यक्ति के ऊपर (दापयेत् ) फिर
पानी को माथे पर डालने से निविष हो जाता है।
मन्त्र :--ॐ चंद्रिनी चंद्रमालिनीयते ज ३ । विधि :-इस मत्र से पानी को ५ बार मत्रित करके सर्पदृष्टा को स्नान कराने से १०० योजन चला
जाता है और निविष हो जाता है । मन्त्र :-उत्तरापथ पिप्पिलि सहि वसहिं ज (ग) पडरक्वसि विसऊ ढइ विमुप थरइ
विसु पाहारि करेइ जं जं. चक्खइ सयतु विसुतं सयलु निरु विसु होइ अरे
विस दी? उदिट्ठि बधउ गंट्ठि लयउ मुट्ठि ॐ ठः ठः । मीणा मन्त्र :-छ हार कारनेखार ठं ठं ठं ठं कार ठः ठः ठरे विष । विधि .--उर्द्ध स्वासेन सीत्कार कुर्वता नेन मन्त्रेण वार १०८ जल मभि मत्र्य भक्षित
गढतर विषोय पुरुषादि पानीय पाप्यते सिच्यतेऽवश्य विष वमति अस्य मन्त्रस्य पूर्व
साधना। विधि :-प्रतिवर्ष वार १/१ एव क्रियते निब काष्टे पट्टि काया नि व चन्दना क्षरै मन्त्रो लिख्यते
निव पुष्पै निव चन्दने न पूज्यते निव छविश्चो ड्राह्मते वार १०८ मन्त्री जप्यते प्रतिवर्ष वार १/१ अनेन विधिना पट्ठित सिद्धिस्यात। - अह घोरणसविज्जाए मंतैहि जवंति सत्तवाराउ पच्छपि बंति तोयं पटंति अह घोरणसा विज्जा १ मंतोयं ॐ नमो श्री घोण से हरे हरे वरे वरे तरे तरे वः वः वल वल लां लां रां रां री री रु रु रौ रौ रस रस क्ष क्ष ह्री २ ह. हां भगवती श्री घोरण से घः ५ सः ५ हः ५ वः ५ 8 ५ ठः ५ ग ५ वर विहंगम नुजे मां क्ष्मी क्ष्मूक्ष्मौ क्ष्मः मां री शोष य २ ठः ३
श्री घोण से स्वाहा । विधि :--यह पठित सिद्धमत्र है इस मत्र से सर्व कार्य की सिद्धि होती है। सर्व प्रकार के विप दर
होते है। सर्व प्रकार के रोग दूर होते है।