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लघुविद्यानुवाद
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विधि -इस मन्त्र का मगलवार के दिन को कुमारी कन्या को भोजनादि वस्त्रालंकार से सन्तुष्ट
करे फिर इस मन्त्र का १ महिने मे ५०,००० जाप पूरा करे, किन्तु मगलवार को ही जाप्य शुरू करना चाहिये और याव जीव (जीवन पर्यन्त) प्रत्येक मगलवार को ब्रह्मचर्य
व्रत पाले और एकासन करे तो नि सन्देह सन्तान उत्पन्न होती है। मन्त्र :-ॐ हिमवंतस्योत्तरे पार्वे पर्वते गंध मादने तस्य पर्वतस्य प्राग्दिग्विभागे कुमारी
शुभ पुण्य लक्षणाए व चर्मवसना घोरासैः कृत के ऊरन्नुपुरा सर्प मंडित मेखला प्रासी विसचोंभलि का दृष्टि विष करर्णा व तंसिका खादंती विषपुष्पाणि पिवंती मारुतां लतां समाल वेति लावेति एह्य हि वत्से श्रु गोहि मे जांगुली नाम विद्याहं उत्तमा विषनाशिनी (यत्किचि मम नाम
नातत्सर्व नश्यते विषं)। मन्त्र :-ॐ इलवित्त तिलवित्त डुवे डुवालिए दुस्से दुस्सालिए जक्के जक्करणे मम्मे
मम्मरणे संजक्करणे अघे अनघे अखायंतीए अपायंतीए श्वेतं श्वेते तुडे अनानु रक्त ठः २ ॐ इल्ला विल्ला चक्का वक्का कोरडा कोरड़रत्ति घोरडा घोरड़ति मोरडा मोरड़ति अट्ट अट्टरुहे अदृट्टोंड रहे सप्पे सप्प रहे सप्प होंड रुहे नागे नागरुहे नाग ट्रोड रुहे अछे अछले विषत्त डि २ त्रिडि २ स्फुट २ स्फोटय २ इदाविषम विषं गछतु दातारं गछतु भोक्तारं
गछतु भूम्यां गछतु स्वाहा। विधि -इस मन्त्र विद्या को जो पढता है, सुनता है, उसको सात वर्ष तक साप दष्टि मे नही
दिखेगा याने उसको सात वर्ष तक सर्प के दर्शन नही होगे और काटेगा भी नही और
काटेगा भी तो शरीर मे जहर नही चढेगा। मन्त्र :-अपसर्प सर्प भ्रदंते दूरं गछ महाविषु जनमेजय य ज्ञाते आस्तिक्य वचनं
शृणु । आस्तिक्य वचनं श्रुत्वा यः सर्पनि निवर्तते । तस्यैव भिद्यते मुर्दा
सं सृ वृक्ष फलं यथा । मन्त्र :-ॐ गरुड जीमुत वाह. सर्प भयं निवर्त्तय २ आस्तिक की आज्ञा पर्यंत
पदं। विधि :-इस मन्त्र को हाथ की ताली बजाता जावे और पढता जावे तो साप चला जाता है. किन्त
मन्त्र तीन बार पढना चाहिये।