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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-गग वहंती को धरइ कोतहि मत्तउहथि मइ वइ संदरू थांभिय उमहु परमेसह
हथि ता ती सीयली ठः ठः । विधि -इस मन्त्र से अग्नि स्तभन (भवति) होती है। मन्त्र -कुतिकरो पांच पुत्र पचहि चडहि केदारी तिण्हु तँडतह महिपडई लोहिहि
पडइ ऊ सारु तातीसीयली ठः ठः । विधि -इस मन्त्र से दिव्य अग्नि भी शात होती है । मन्त्र :-लइ मदिया वामह (थ) छम्मि कहिया जाहि दव दतिए मदीय क द सएरण
भारिणय भार सहस्सेण बंधोहि वसपविस पडिय मचडिय ॐ ठः ठः
स्वाहा। विधि - अनेन वार २१ कुसरणी अभिमत्र्यते । भत्र :-हिमवतस्योत्तरे पारे रोहिणी नाम राक्षसी तस्यानाम ग्रहणेन वलिरोगं
छिदामि पणरोगं छिदामि । विधि –गल रोहिणी मन्त्र । मन्त्र :-ॐ कंद मूले वारण गुरग वारणधणुह चडावणु ह चडावणु निक्कवाय सर
___ जावन छिप्पइराव। विधि -यह सरवायु मन्त्र । (इस मन्त्र से धनुर्वात ठीक होता है)। मन्त्र :- ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लौ कलिकुड दंड स्वामिन् सिद्धि जगद्वशं प्रानय
आनय स्वाहा। विधि -इस मन्त्र को प्रात अवश्यमेव २१ या १०८ बार स्मरण करके भोजन करे तो इस मन्त्र के
प्रभाव से सौभाग्य की प्राप्ति आपदा का नाश राजा से पजित लक्ष्मी का लाभ, दीर्घायु शाकिनी रक्षा सुगति की प्राप्ति । यदि जाप करते हुए छूट जाय तो उसका प्रायश्चित, एक उपवास करना चाहिए। अगर उपवास करने की शक्ति न हो तो जैसी शक्ति हो उस मताबिक प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए और फिर जपना प्रारम्भ करे। जीवन भर इस मन्त्र का स्मरण करे और गोप्य रक्खे किसी को बतावे 'नहीं' तो देव गुरु के प्रसाद से
सर्व कार्य स्वय सफल हो जायेगे । और सुगति की प्राप्ति होगी। मन्त्र :-ॐ रक्त विरक्त स्वाहाः । विधि -(छेति उतारण मन्त्र)