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________________ २३० लघुविद्यानुवाद वासिनि मणिमय सूक्ष्म घटनाद किचिद्रणित नूपुर युक्त पादार विन्दे वज्र वैडूर्य मुक्ताफल हरिन्मरिण मयूरवमाला मण्डित हेम किकिणि झणत्कार विराजित कनक ऋजुसूत्र भूषित नितम्बिनि वारद नीरद निर्मलायमान सूक्ष्म दुकूल परीत दिव्य तनुमध्ये सध्यापरागारूण मेघ समान कौसुम्भ वस्त्र धारिणि बालार्क रूक् सन्निभायमान तपनीय वसनाच्छादिते इन्द्र चन्द्रकादि मौक्तिकाहार विराजित स्तन मण्डले तारा समूह परित्तोत्तमागे यमराज लुलायमान महिषासुर मर्दन दक्षभूत महामहिष वाहिनि ताराधर तारे नीहार पटीर पयः पूर कर्पूर शुभ्रायमान विमल धवल गात्रे भयकाल रूद्र रौद्रावलोकित भाल नेत्रानल विस्फुलिंग समूह सन्निभ ज्वालावेष्टित दिव्य देहिनि कुल शैल निर्भेदिनि कृत सहस्र धारायुक्त महा प्रभा मण्डल मण्डित कृपाणि भ्राज दोर्दण्डे देवि ज्वालामालिनि अत्र एहि २ र पिण्ड रूपे एहि २ नव तत्त्व देहिनि महामहित मेखला कलित प्रतापे एहि २ ससार प्रमदिनि एहि २ महामहिषवाहने एहि २ कटक कटि सूत्र कुण्डलाभरण भूषिते एहि २ घनस्तनि किकिणि नूपुरनादे एहि २ महामहित मेखला सूत्रे एहि २ गरूड गधर्व देवासुर समिति पूजित पादपकजे एहि २ भव्यजन सरक्षिणि एहि २ महादुष्ट प्रमर्दिनि एहि २ मम ग्रहाकर्षिणि एहि २ ग्रहानुवन्धिनि एहि २ ग्रहानुच्छेदिनि एहि २ ग्रहकाल कालामुखि एहि २ ग्रहोच्चाटिनि एहि २ ग्रह मारिणि एहि २ मोहिनि एहि २ स्तम्भिनि एहि २ समुद्रधारिणि एहि २ धुनु २ कम्प २ कम्पावय २ मण्डल मध्ये प्रवेशय २ स्तम्भ २ ॐ ह्रा ह्री ह. ह्रौ ह्र आह्वानन गृह २ जल गृण्ह २ गध गृण्ह २ अक्षत गृण्ह २ पुष्प गृण्ह २ नरू गृह २ दीप गृह २ धूप गृण्ह २ फल गृह २ आवेश गृण्ह २ ॐ ह म्यं महादेवि ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री ह्रा ह्री ह्र ह्रो ह्र हा देव ग्रहान् आकर्षय २ ब्रह्मा विष्णु रूद्रन्द्रादित्य ग्रहान्नाकर्षय २ नाग ग्रहान्नाकर्षय २ यक्ष ग्रहान्नाकर्षय २ गधर्व ग्रहानाकर्षय २ ब्रह्मराक्षस ग्रहान्नाकर्षय २ भूत ग्रहान्नाकर्षय २ व्यन्तर ग्रहान्नाकर्पय २ सर्व दुष्ट ग्रहान्नाकर्षय २ शतकोटिदेवतानाकर्षय २ सहस्रकोटि पिशाच देवतानाकर्षय २ कालराक्षस ग्रहानाकर्षय २ प्रेतासिनी ग्रहानाकर्षय २ वैताली ग्रहानाकर्पय २ क्षेत्रवासी ग्रहानाकर्पय २ हन्तुकाम ग्रहानाकर्षय २ अपस्मार ग्रहानाकर्षय २ क्षेत्रपाल ग्रहानाकर्पय २ भैरव ग्रहानाकर्पय २ ग्रामादि देवतानाकर्षय २ गृहादि देवतानाकर्षय २ कुलादिदेवतानाकर्षय २ चण्डिकादि देवतानाकर्षय २ शाकिनि ग्रहान् आकर्षय २ डाकिनी ग्रहानाकर्षय २ सर्व योगिनी ग्रहानाकर्षय २ रणभूत ग्रहानाकर्षय २ रज्जूनिग्रहानाकर्षय २ जलग्रहानाकर्षय २ अग्गि ग्रहानाकर्षय २ मूक ग्रहानाकर्षय २ मूखेग्रहानाकर्षय २ छल ग्रहानाकर्षय २ चोरचिताग्रहानाकर्षय २ भूत ग्रहानाकर्षय २ शक्तिग्रहानाकर्षय २ चाडाली ग्रहानाकर्पय २ मातगग्रहानाकर्षय २ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रभव
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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