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________________ लघुविद्यानुवाद मन्त्र :-हु फटो ॐ रुद्राय स्वाहा । विधि :-रुद्राक्ष, गुगुल, भूत केशी, हिगु, बिल्ली की टट्टी (मल) (वीराल वृष्टि) मोर पख, गोशृगु, मुलोट्ठी, सरसो, बच, इन सब चीजो को एकत्र करे फिर ये मन्त्र पढता जाय और इन सब चीजो को धूप देवे तो प्रेत ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ लुच मुच स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से पानी को मन्त्रित करे २१ बार फिर रोगी को पिलावे तो (अरिशोपशम ) बवासीर रोग शान्त होता है। इस मन्त्र को जो पढता है सुनता है उसको बवासीर रोग नही होता। मन्त्र - ॐ इले नोले नीले हिमवंत निवासिने गलगंधे विसगंधे अनष्टे भगदरे न कोरसा वातारसा हता कृष्णा हेता श्वेता स्फटिक रसा मरिण मन्त्र ऊषधीनां वर्षशतं जीवेत् । जो इमां न प्रकाशयेत् चतुर्थब्रह्म घातक । मन्त्र :-ॐ कालि महाकालि अवतरि अवतरि स्वाहा लुचि मुंचि स्वाहा । विधि -जो इमा विद्या न प्रकाशयेत् तसु कुले हरिसा नाशयति । सवेरे दुरा मन्त्र को २१ बार द्वयपलिका प्रमाण जल को मन्त्रित कर ७ दिन तक पीवे तो उस व्यक्ति को हरस, (बवासीर) पीडा नही होती है । इस मन्त्र को प्रतिदिन भी स्मरण करना। मन्त्र :-अमीकऊ कु डु तहि न्हाइ देव्या हाथि लउडातुपरि जविउ तेलु छीनीवराही पीड करइ फाडइ फटइ जइ फुसइ ई पीड नही जान ही कइ खाजहि गउ भमरइ नवउ सोषउ प्रचड़ गाजइ चारिमास मसारिण जागइ फाडइ पूटइ धावि लागइ कालीपन्नाली काली चउदसि उपन्नी महादेव कइ मुहि पर्जति नीकली फाट फूटइ जइ फुसइ महादेवपज पायल इधू धुरी वुचइ वानरी काली वूचइ कूकरी जाफोडी वाउ वियालु होउ जउल गिखडी कादव इन छीपइ सन होडी छिन्नउ वाय होडि छिनउ हाडहोडी छिन्नउ गुप्तहोडी छिन्नउ पाठ उछौन उधर वर उ छी न उ ऊग मुछी नउ ग्रह चउरासी नव फोडि छिनि छिनि हणु मन्त कइ खाडई महादेव कइ त्रिशुलिहणु ब्रह्म राम सरू सघि वाय जिणीको जाय नव उचेडउ महादेव कउ काडुलय उग उविसु लल्ल कारइ सी गिय उवथरणागु आकु तेलु धतुर उइथु घरि निहथु घरि पिगलि माइदिट्ठउ दीट्टि पराय ऊटकारी गयछ पूक्कारी ब्रह्मपुतु काज ला विसुजारे का दवा पुक्कार हिटठ ठोवाइ प्राड दुछु हतुन जाणउ मनदा पूछिका मखदे लारू खाइ भारउ खाइ ब्रह्म खाइ महादेउ खाइ तेतीस कोडि देवता खाइ जा फोडि वाउ वियालु होइ जउ लगि खडीका ध्वइन छीपइ ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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