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लघुविद्यानुवाद
त-थ-द-कालुष्यनाशक, मङ्गलवर्धक, सुखकारक मङ्गल व ..... 'द्रवणबीजम् । य .... रक्षाबीजम् । म .. ... ... मङ्गलबीजम् ।
... . • शक्तिबीजम् । स -- . . ... शोधनबीजम् ।
मन्त्र सिद्धि के लिये जैन शास्त्रो मे ४ प्रकार के आसन कहे गये हैं
(१) श्मशानपीठ। (२) शवपीठ (३) अरण्यपीठ। (४) श्यामापीठ।
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णमोकार मन्त्र मे से ही बीजाक्षरो की उत्पत्ति हुई है। जैसे(ॐ) समस्त णमोकार मन्त्र से (ह्री) की उत्पत्ति णमोकार मन्त्र के प्रथम चरण से
श्री ,, , , , द्वितीय चरण से क्षी क्ष्वी , ., , , प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण से
प्रथम पाद मे से प्रतिपादित द्रा द्री,
, , चतुर्थ और पचम चरण से
, , प्रथम चरण से है , , , , बाज हत
, बीज हे तीर्थकरो के यक्षिणी द्वारा अत्यन्त
शक्तिशालो और सकल मन्त्रो में व्याप्त है। -ह्रॉ ह्री-ह-हो-ह्रः ॥ ॥ प्रथम धरणी से उत्पन्न हुए है। . क्षा क्षी क्षु क्षे झै क्षो क्षौ क्ष. , ,, प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण से उत्पन्न
हुये है।
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