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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ वढ्ढ मारणाय सुर असुर तिलोय पूजिताय वेगे
महावेगे निवृवरे निरालंवणे विटि २ कुटि २ मुदरे पविसामि कुहि २ उदरेतेपे
विसिस्सामि अंतरिऊ भवामि मामेपावया ठः ठ ठः स्वाहा । विधि --पथियुद्ध वा स्मरणाद पराजितोऽथ चौराणाम् । व्याघ्रादीना भीतौ मुष्टेबंधे भवति
शाति । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ उसहस्स चरमवद्ध मारणस्स काल संदोवस्स, पहस, मणस्स,
विझां पुरीसस्स, सव्वपावारणं हिंसा, बंधंक रित्ता जे अछे सच्चे भूए भविस्से से अछे इह दीसउ स्वाहा सवेसु उ स्वाहा । कारो कायवो चउथेरण साहरण
कायव्वं सव्वासि पंचमंगल नमुक्कार करिता तऊ सव्वाउ विझाऊ । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ इमं विझां पउझामि । विधि -सामे विजाए सिष्यऊ वार ३ बार जाप्य ज जस्सतिथयरस्य जम्म नखत तमिचेवतम तव
कायव्व सव्वाऊ सठ्ठसय जापेण । विधि -ये चविशति विद्या है। इन विद्यापो का करने वाला गर्व से रहित होना चाहिए । शान्त
चित्त होना चाहिए। ये चौबीस तीर्थकर के मत्र तीर्थकर प्रभ के जो जम्म नक्षत्र हो उस रोज से उसी तीर्थकर के मन्त्र जाप करना चाहिये। कौनसा दिन किस तीर्थकर का जन्म
नक्षत्र है ये अन्यत्र देखकर कार्य करे। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री क्लीं ब्लूद्रां द्रों द्र द्रौ द्रः द्रावय २ हूँ फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से तेल को १०८ बार मन्त्रित करके देने से सुख से प्रसव होता है। मन्त्र :-ॐ ह्री नमः । विधि -विधिपूर्वक सवा लाख जाप करके एक माला नित्य फेरने से सर्व कार्य सिद्धि होती है। सर्व
रोग शात होते है। लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस मत्र को एकाक्षरी विद्या कहते है।
सात लक्ष जप करने से महान विद्यावान होता है। मन्त्र -ॐ अंषि (विख) महाविसेण विष्णु चक्क ना हूं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से चूर्ण २१ बार मत्रित करके (सखानिकयोष्टि विकके कर्त्तव्ये) तो अाँख का
रोग शॉत होता है। मन्त्र :-ॐ कालि २ महाकालि रोद्री पिगल लोचनी सुलेन रौद्रोपशाभ्यंते उँ ठः
स्वाहा।