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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. २१०
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डॉहीलुलु
स्वाहा स्वा देवदत्त
ल
इस यन्त्र को बालक के गले मे बाधने से रोना दूर होता है ॥२१०।।
यन्त्र न २११
एक च धन लाभ च । द्वितीय च धन क्षय ।। त्रितिय मित्र सयुक्त । चतुर्थ च कलह प्रिय ।।१।। पच मे सुख लाभाय । षष्टमे कार्य नाशन । सप्तमे धन धान्य च । अष्टमे मरण ध्रुव ।।२।। नव मे राज सन्मान । कथित जिन भाषित । केवली समाप्त ।।२१।।