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लघुविद्यानुवाद
कार तदा कर्पण हू मोहनात्मक विदारी युक्त व्योमास्य रूद्र डाकिन्य लकृत नाद बिन्दु समायुक्त है ह बीजद्वय भवेत् । चतु शून्य हकारः स्यात्फलं क्रोधाग्नि वारुणा विपाना स्तभ करण विजेय विजकोशत द्र द्र, कामरतीख्याते ह्रा ह्री ह्र क्षः उक्तफला ह हो ह रूद्र डाकिनी भीमाक्षी चण्डिका सयोगात् त्रिलोक वशीकरणात्मका: झा झा ह स झो वाल मुख प्रा कालरात्री: तत्फल वल भय हरण झो वालमुख. र क्षतजः आ काल रात्री फल रोग हरण ह्र. फलमाकर्पण स धूम ध्वज स विसर्गस्तत्फल परदेश गमन फल इति ।
___ इस यन्त्र को तांबे के पत्रे पर या चॉदी सोने के पत्र पर खुदवाकर पूजन करे पश्चात् ऊपर लिखित दोनो मन्त्रो का पृथक २ जप करे, जिसका कार्य के लिये जपना है। वशीकरण विधि मे भी सर्व प्रकार की विधि जानना चाहिये । इन दोनो मन्त्रो को अलग २ जप साढे बारह हजार करने से द्रावरण, आकर्षण, मोहन, वशीकरण आदि होता है। जप विधि पूर्वक करना चाहिए।
शोभनार्थ षष्टम काव्यम या को ह्री क्षयुताँगे प्रलय दिन करास्तस्य कोटि प्रकाशे। अष्टौ चक्राणि धृत्वा विमलः निज भुजैः पद्यमेक फल च ।। द्वाभ्या 'चक्र' करालं निशित चल शिख तार्क्ष्य रूढा प्रचण्डा ।
ह्रा ही ह्रौ क्षोभ कारी र र र र रमणे त्राहि मा देवि चक्रे ॥६॥
हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष' कथ भूते पा को ही क्षु युतान्य गानि यस्य प्रा को ह्री क्षु युताँगे आनाभ्यु परि को ललाटे ह्री 'हार्द' क्षु कर्ण द्वय पुन कथभूते प्रलया चल सवध्यऽस्ताचलस्य कोटि दिन कर प्रकाशे पुनः कथ भूते विमल निज भुजैरष्ट भि अष्टौ चक्राणि धृत्वा पद्मक नवम् भुजे दशम भुजे प्येर्क फल द्वाभ्या एकादश द्वादश भुजाभ्या 'कराल' विकराल निशिता तीक्ष्णा 'चला' चचला शिखायस्य तत ईद्दश चक्र धृत्वा प्रचण्डाऽसि पुन कथ भूता ताक्ष्य रूढा गरुढा गरूढा पुन कथ भूते चक्र हा ह्री ह्रौ क्षोभकारी र र र रमणो हे 'चक्र' देवित्व मा रक्ष रक्ष रक्ष इत्यर्थ।
अथ यन्त्रोद्धार द्वादश भुजा चक्रेश्वरी लिखित्वा गरुढारूढा उक्त स्थानेषु बीजानि सलेख्य ह्रा ही हो इति त्रिभि /जै वेष्टयेत् पश्चात् र र र र बीज त्रय वेष्टितेऽग्नि पुटेस्थाप्य ध्यातव्येत्युद्धार. । अथ मन्त्र :-ॐ आ को ह्री क्षुह्रा ह्री ह्रौ स्वाहा । इति मन्त्र ।