________________
लघुविद्यानुवाद
* भजन *
___ संकलनकर्ता-शांति कुमार · महावीर कीत्ति गुरु स्वामी, दु.ख मेटो जी अन्तरयामी ।।टेर।। (१) रतनलाल के पुत्र कहाये, बून्दा देवी जी के जाये।
सबसे नेहा तोडा, जग से मुंह को मोडा, दीक्षा धारी-दुख"..... .. (२) वीर सागर से क्षुल्लक दीक्षा धारी,
आदी सागर से मुनि दीक्षा धारी। शेढवालमे पा, सबसे प्राग्रह पा,
पदवी आचार्य की पाई दुःख... 'मेटो जी अन्तरयामी (३) पाँचो रस का तो त्याग किया है,
__त्याग स्वारथ का भी कर दिया है। अठारह भाषा के ज्ञाता, सारे शास्त्रो के वेत्ता,
गुरु स्वामी-दु.ख...... मेटो जी अन्तरयामी (४) लाखो बार तुम्हे शीश नवाऊ,
मुनिराज दरश कब पाऊ। सेवक व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया,
लागे नाही-दुःख......मेटो जी अन्तरयामी
* भजन *
सारे जहाँ से न्यारे, मुनिराज है हमारे। झाको तो इनके अन्दर, तन-मन से ये दिगम्बर, वैभव के हर नजारे, इनको लुभा के हारे-सारे जहाँ से....... . इनको न मोह मठ से, रखते न पर से यारी, धरणी न ये रमाते, होते न जटाधारी। टीका तिलक से हटकर, इनके स्वरूप न्यारे-सारे जहाँ सेवक से न खुश हो, दुश्मन से न द्वष करते। कोई भी फिर सताये, ये क्षमा भाव धरते । हर क्षण क्षमा का दरिया, बहता है इनके द्वारे-सारे जहाँ से .