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________________ लघुविद्यानुवाद ४६५ श्लोक नं. १० षट्कोण चक्र के मध्य मे रहने वाली, नमस्कार करने वाले भक्तजनो को वरदान देने वाली, वाग्भव 'ऐ' कार तथा कामबीज 'क्ली' से विभूपित, मस्तक के ऊपर बिन्दु धारण करके हस पर विराजमान रहने वाली, विकसित कमल पुष्प की कणिका के अग्रभाग पर विराजमान, नित्या, क्लिन्ना, मद्रा, मद्दवा आदि देवियो से सहित दो हाथ मे पाश और अकुश को धारण करने वाली तुम्हारा ध्यान करने से तीनो लोको को जो क्षोभ को प्राप्त होते है, और वश भी होते है ऐसी हे पद्मावती देवि मेरी रक्षा करो ।।१०।। काव्य नं. १० यन्त्र रचना - षट्कोण यन्त्र कृत्वा ऐ बीज मध्ये स्थापयेत, तत्पश्चात् क्ली ऐ ह्री श्री नमः स्थापयेत तदुपरी षट्कोणे एकविशती क्ली कारेन वेष्टयेत् अष्टद्रव्येन पूजन कृत्वा एकाग्रचित्तेन साधयेत । काव्य यन्त्र मन्त्र प्रभावात तथा यन्त्र पार्श्व रक्षरिणयात् अस्य प्रभावेन लक्ष्मी लाभो भवति, राजा प्रसन्न भवती, देव आशीर्वाद ददाति प्रत्यक्ष भवति अस्य प्रभावात् । फल :-दशम काव्यस्य ऐ बीज वाग्भव शक्ति दशाक्षरै मत्र ॐ ह्री श्री क्ली ऐ ह्रा ही ह नमः अनेन मन्त्रेन प्राप्य कृत्वा बृहस्पति समान भवति द्वादश सहस्त्र श्वेत जाति पुष्पेन जाप्यं कृत्वा। बृहस्पती समबुद्धिर्भवति । एक त्रिशदिन मध्ये ब्रह्मचर्यात् जाप्य कुर्यु एकस्थाने स्थित्वा, एकासन कृत्वा द्वादश सहस्र जाप्य कृत्वा । इस यन्त्र को सुगधित द्रव्य से भोजपत्र पर लिखे अथवा सोना, चाँदी, ताँबा के पत्रे पर लिख कर अष्ट द्रव्य से यन्त्र की पूजा करे फिर मन्त्र का जाप ३१ दिन मे १२००० जाप एकासन करता हया दीप धूप विधान से ब्रह्मचर्य रखते हुये, जाति (जाई) पुष्प से करे तो वृहस्पती समान बुद्धि होती है। यन्त्र को पास मे रखने से अत्यन्त लक्ष्मी लाभ होता है। राजा प्रसन्न होता है। देव प्रत्यक्ष होकर वरदान देता है। स्तोत्र विधि न० ३ श्लोकार्थ नं. १० (१०) इस श्लोक का पाठ करते हुये, अष्टगध से दोपमालिका के दिन रात्रि को अष्टगध से लिखकर हाथ की भुजा मे बाधना और मस्तक के ऊपर धारण करना, सम्पूर्ण लोक वश होते है इसमे कोई सदेह नही है ।।१०॥
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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