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लघुविद्यानुवाद
श्वेतसरपखा की जड को कमर मे बाधने से और दक्षिण जघाप्रदेश में स्थापित करने से वीर्य का स्तम्भन होता है ।
श्वेतपुनर्नवा की जड को दूध के साथ घिस कर पिलाने से स्त्रियो को गर्भ रहता है । सावलि (साल्मली) (सेमर) काष्टपादुका. क्रियन्ते वज्रापरिवृते मुक्रवाणिमध्ये प्रक्षिप्य लेपोदिय अलग पादुकाभिः चक्रम्यते ।
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सफेद कनेर की जड को रविवार के दिन लाकर कुसुभ रंग के डोरे मे वामहस्त में बाधने से (मर्कटिका) रोग नष्ट होता है ।
कोलिका गृहद्रय मुत्याद्य सूक्ष्म वस्त्रेण वेष्टिरित्या तैलेन स्निग्ध कृत्वा कोरक शराबे ( कोरा मिट्टी का घडा पर ) कज्जल पात्यते तेनाक्षि श्रजयेत् एकान्तर, द्वयतर चातुर्थिक ज्वरानाशर्यत । गोघृतेन दीपक दातव्य तस्य दीपकस्य शिखाया सूचीकापोइ ( सुई पिरोना) अरीवादहनीय, गोसत्क माथुरीवा घर्षणीय जीरक मगध, पिपल, नमक सेधा, मध्ये घर्षणीय ताम्र भाजने घर्षण कर्तव्य अक्षिरोगो नश्यति ।
सरसो, हिगुल, नीम के पत्ते, वच, साप की काचली की धूप बनाकर खेने से शाकिनी का उच्चाटन होता है और सर्व प्रकार की ऊपर की बाधाये दूर होती है ।
मूल, हिंगुल, सु ंठ, इन सब चीजो को बराबर मात्रा मे लेकर पानी सुंघाने से शाकिन्यो नश्यति ।
बहेडाबोज, संधव, शखनाभि सम मात्रा चूर्णेन अक्षिभरण चक्षुफुल्लोपशम. ।
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साथ पीसकर
वंदा कल्फ
नंदिषेरणाचार्य कृत
aarकल्प प्रवक्ष्यामि नन्दिषेरण मुनि भापित, यस्यविज्ञान मात्रेरण, सर्वसिद्धि प्रजायते 1 अश्विनी नक्षत्रे पलास ( डाक ) वदा सगृह्यहस्ते वध्वा सर्पभय निवारयति । भरणी नक्षत्रे प्रायिली (इमली) वा आवल, वदा सगृह्य हस्ते वध्वा सग्रामे राजकुले अपराजितो भवति सर्वजन प्रियोभवति और इसी नक्षत्र को, कुश, वदा सगृह्यद्रव्य मध्येधान्य राशौवाधियते प्रक्षयो भवति ।