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________________ लघुविद्यानुवाद 86 ज्वरान् सर्व भूतान् सर्व लूतान सर्व वातान् सर्वोपद्रवान् समस्त वैडाकिन्यो हन हन त्राशय त्राशय क्षोभय क्षोभय विज्ञापय विज्ञापय श्री पार्श्वनाथो प्राज्ञापयति / विधि -अनेन बार 7/7 गुण्या ग्रन्थि दीयन्ते अय मन्त्र खटिकया प्रथम नव सरावे लेख्य. द्वितीय शरावे चान विछिन्न खटिकया एव विध ठ कारत्रय लिखित्वात्र शराव अधोमुख उपरि निवेश्य कुमारी सूत्रेण द्वयमपि वेष्टि यित्वा सु विधानेन मचकाधो धरणीय धूपादिना पूजनीय नैवेद्य च दातव्य सर्वरोग निवृति / मन्त्र -ॐ की ह्रीं रक्त रक्त स्वरा इदं कटोरकं भ्रामय भ्रामय स्वाहा / विधि .-श्रावक गृहानीत भस्मना वार 7 परिमार्जयित्वा मडले स्थाप्यत्ते पूजादिक विधियते / मन्त्र :-ॐ नमो भगवतेन कृताय व्याघ्र चर्म परिवत्तित शरीराय यो यो वा जपेयो भवति सोऽस्मिन्पाने प्रवेशय प्रवेशय सर सर प्रसर प्रसर चल चल चालय चालय भ्रम भ्रम भ्रामय भ्रामय यत्र स्थाने द्रव्य स्थापितं तत्र तत्र गच्छ गच्छ स्वाहा / विधि - इस मत्र की विधि नही है / मन्त्र :--रागाइरिउ जई णं जए जिणाणं नमो महं होउ एवं ऊहि जिरगाणं परमोहीणं पितपित्तहा एव मणं तोहीरणं तारणं तोहि ज्जयजिरणारणं नमो सामन्न केवलिणं भवा भव थारराते सित्तहा सित्तहा उग्रतव चरण वारीण मेवमितो नमो मंह होउ चउ दस दस पुव्वीरणं नमो तहिक्कार संगंमि / विधि -सव्वेसि ए ए सि एव किच्चा अह नमुक्कार जपिय विज्ज पउ जेसामे विद्यापसि ज्जिज्जा। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ बाहुबलि स्सेहपगह सवरिणस्सं ॐ वन वन निवन मनगयस्स सया सोमेविय सोमरण सेम हम हुरे जिन वरे नमं सामि इरिकालि पिरिकाली सिरिकाली तह महाकाली किरियाए हिरियाएय संग एतिविह कलियंविरए सुहमाहप्पे सव्वे सांहते साहुरगो वंदे ॐ किरि किरि कालि पिरि 2 कालि चसिरि 2 सकालि हिरि हिरि कालिपयं पिय सरिद्य सरे पायरिय
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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