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________________ लघुविद्यानुवाद २६१ जयपताका यंत्र ॥४७॥ यह जयपताका यत्र है जिस व्यक्ति को महात्माओ की कृपा प्राप्त हो जाती है उसी को इस यत्र की आमनाय मिलती है । सामान्य से इस यत्र के लिये कहा है कि इस यत्र को पच गध अथवा अष्ट गध से लिखे और किसी खास काम पर विजय पाने के लिये बनाना हो तो यक्ष कर्दम से लिखे । लिखते समय इक्यासी कोठे मे पाच का अक बनाकर चढते अक से लिखने को शुरू करे जैसे प्रथम पक्ति के पाचवा कोठे मे एक का अक लिये। सातवी लाइन के आठवे कोठे मे दो का अक लिखे । चौथी लाइन के पाचवे कोठो मे पाच का अक लिखे। प्रथम लाइन के आठवे कोठे मे ६ का अक लिखे । चोथी लाइन के आठवे कोठे मे सात का अक लिखे। प्रथम लाइन के दूसरे कोठे मे आठ का अक लिखे । सातवी लाइन के पाचव कोठे मे नौ का अक लिखे और तीसरी लाइन के छठे कोठे मे दस का अक लिखे । इस तरह से सम्पूर्ण अक को चढते अक से लिखकर पूर्ण करे और तैयार हो जाने पर जिस मनुष्य के लिये बनाया हो उसका नाम व कार्य का सक्षेप नाम यत्र के नीचे लिखे । इस तरह से तैयार कर लेने के बाद यत्र को एक बाजोट पर स्थापन कर अष्ट द्रव्य से पूजा कर यथा शक्ति भेट भी रखे और बहुत मान से यत्र को लेकर पास मे रखे तो लाभदायी होता है। नीति न्याय को नही छोडे । चरित्र शुद्ध रखे । जिससे सफलता मिलेगी ॥४७।। विजयपता का यंत्र ।।४।। इस यत्र के लिखने का विधान जयपताका की तरह समझना चाहिये । विशेष इस यत्र मे यह विशेषता है कि प्रत्येक पक्ति के पाचवे खाने मे अताक्षर एक है चौथे मे अनुस्वार है और छठी पक्ति के प्रत्येक खाने मे अताक्षर दो का है पाठवे कोठ मे अताक्षर तीन का है कही ६ का, कही पाठ का अक अधिक बार आया है । इस यत्र को विधि से लिख कर पास में रखने से विजय मिलती है। वाद विवाद करते समय मुकदमे की बहस करते समय और सग्राम मे अथवा इसी तरह के दूसरे कामो मे प्रयास प्रमाण या प्रवेश किया जाय तब इस यत्र को पास रखने से सहायता मिलती है इस यत्र का लेखन अष्ट गध या पच गध अथवा यक्ष कर्दम से हो सकता है बाकी विधान जयपताका यत्र की तरह समझ लेना चाहिये श्रद्धा से कार्य सिद्ध होता है विजय पाते है हिम्मत रखने से आशा फलती है ।।४८।।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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