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________________ २१८ लघुविद्यानुवाद मन्त्र - ॐ इटि मिटि भस्मं करि स्वाहा । विधि :-अनेन बार १०८ जलमभिमन्त्र्य पाय्यते उदर व्यघोपशाम्यति । मन्त्र - ॐ ह्री सर्वे ग्रहाः सूर्यागारक बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनिश्चर, राहु, केतु, सहिता सानुग्रहा मे भवन्तु । ॐ ह्री अ सि पा उ सा स्वाहा । विधि -अस्या स्मृताया प्रतिकूला अपि गृहा अनुकूला भवन्ति । मन्त्र -ॐ रक्त रक्तावते हुं फट् स्वाहा । विधि -कुमारी सूत्रेण कटक कृत्वा रक्त कण वीर पुष्प १०८ जाप्य दत्वा कटौवधयेत् रक्त प्रवाह नाशयति। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री धनधान्य करि महाविद्य अवतर २ मम गृहे धन धान्यं कुरू २ ___ स्वाहा । विधि -वार ५०० अक्षताभिमत्र्य ऋयारणके क्षिप्यते क्रयो विक्रयो लाभश्च भवति । मन्त्र :-ॐ शुक्ले महाशुक्ले ह्री श्री क्षी अवतर २ स्वाहा । विधि व फल :-१००८ नाम पूर्व १०८ गुणिते स्वप्ने शुभाशुभ कथयति । मन्त्र :-ॐ नमोर्हते भगवते बहरूपिणी जम्भे मोहिनी स्तंभे स्तंभिनो .. उरग वाहिनी मुकुट कुण्डल केयूर हारा भरण भूषिते . यक्षी लक्ष्मी पद्मावती त्रिनेत्रपाशांवश फलाभय वरद हस्ते मम प्रभ सिद्धि कुरु २ मम चितित कार्य कुरु २ ममोषध सिद्धि कुरु २ व स्वाहा। विधि -इस मन्त्र का त्रियोग शुद्ध कर श्रद्धापूर्वक जपने से सर्वकार्य सिद्ध होते है। औषधियो की सिद्धि होती है। इस मन्त्र की सिद्धि पज्यपादाचार्य को थी, अरि इसक प्रभाव से देवी जी श्री पद्मावती माताजी ने पज्य पादाचार्य के पाव के तलवो म ६ औषधियो का लेप कर दिया था, उन औषधियो के प्रभाव से विदेह क्षत्र मे उन । का आकाश मार्ग से गमन हया था।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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