Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Catalog link: https://jainqq.org/explore/001723/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पं. श्री कल्याणविजयगणिविरचिता स्वीपज़ गुजराती भाषा टीका सहित Blasorram श्री कल्याण-कलिका (द्वितीय - तृतीय-खण्डात्मक द्वितीयभाग) श्रीनन्दीश्वर द्वीप तीर्थकार्यालय,स्टेशन रोड,-जालोर (राजस्थान). www.jsinelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प.पू. आ. श्री विजय सिद्धिसूरीश्वरजी (बापजी) महाराज प.पू. श्री कल्याणविजयजी म.सा. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजिनाय नमः पं.श्री कल्याणविजयगणिविरचिता स्वोपज्ञ गुजराती भाषा टीका सहित श्री कल्याण-कलिका (द्वितीय-तृतीय-खण्डात्मक द्वितीयभाग) संपादकः मुनिप्रवर श्री भद्रंकरविजयजी महाराज (प्रथम संस्करण) (पू.आ.भ. श्री भद्रंकरसूरिजी महाराज) संपादकः मुनिप्रवर श्री भाग्येशविजयजी महाराज (द्वितीय संस्करण) प्रकाशकः व्यवस्थापक - श्री क०वि०शास्त्रसंग्रहसमिति-जालोर-मारवाड (राजस्थान) श्री नन्दीश्वरद्वीप तीर्थ कार्यालय, स्टेशन रोड, जालोर (राजस्थान) वीर सं०२५२५ । विक्रम संवत् २०५६ । शकाब्दा ई.सन १९९९ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य सहयोग नकल प्राप्तिस्थान : श्री नन्दीश्वर द्वीप तीर्थ कार्यालय ५०० श्री चारथुई श्राविका संघ - जालोर. स्टेशन रोड १०० मुथा मोहनलाल, चम्पालाल, दीपचन्द, वलभचन्द, जालोर (राजस्थान) खीमचन्द, मदनलाल बेटापोता रुघनाथमलजी सोनवडिया फोन नं.S.T.D. 02973 -32334 परिवार - मांडवला. १०० शा. ओटमलजी कपूरचन्दजी छाजेड केशवना. द्वितीयसंस्करण : प्रति १००० १०० शा. समरथमलजी सोनाजी रांका उमेदाबाद (राज.) सर्वहक्क प्रकाशकने स्वाधीन (फर्म : शा हरकचन्द समरथमलजी, चैन्नई.) घोडा मांगीलाल मनोहरमल लखमीचन्द बेटापोता मिश्रीमलजी मुद्रक : श्री पार्श्व कोम्प्युटर्स मांडवाला (राज.) ५८, पटेल सोसायटी, जवाहर चोक, मणीनगर, ५. शा. मेघराज एन्ड सन्स. चैन्नई. (आहोर-राज.) | अमदाबाद-३८००००८. फोन : ५४७०५७८ ५० शा. रीखवचन्दजी रूपचन्दजी दांतेवाडीया - मांडवला. ५० शा. हरकचन्दजी मिश्रीमलजी (चैन्नई) एलाणा (राज.) For Private & Personal use only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । प्रस्तावना ॥ ॥३॥ कल्याण कलिकानी प्रस्तावना नामप्रदान लगभग २५ वर्षथी शिल्प, ज्योतिष अने प्रतिष्ठाविधिनुं मार्गदर्शक पुस्तक लखबानी मित्रो तथा भाविकोनी प्रेरणा हती, पण अन्यान्य कार्योने लीधे ए विषयोमां बहु लक्ष जतुं न हतुं. चालु कार्योनो भार ओछो थतां थोडा वर्षो उपर ध्यान खेंचीने थोडं थोडं लखवा मांडयुं, ज्योतिष तथा शिल्पना केटलांक प्रकरणो हिन्दीमां लख्यां पण खरां, परन्तु ए बंने विषयो एटला विस्तृत अने साहित्यसंपन्न छे के तेमां शुं लेबु अने शुं छोडलु ए एक समस्या थइ पडी, शारीरिक प्रकृति प्राय अस्वस्थ, आंखोमां मोतीयानी शरुआत अने अन्यान्य प्रवृत्तिओना कारणे अवकाशनी अल्पता, वली निजस्वभावनी विस्ताररुचिता इत्यादि बातोनो विचार करतां शिल्प अने ज्योतिषना स्वतन्त्र ग्रन्थोना निर्माणनी भावना कुंठित थइ गइ, छतां ए विषयोमा अत्यावश्यक विषयो उपर मुद्दासर लखबानो निर्णय अफर रह्यो.ए विषयमा टांचणो करवान चालु कर्यु अने प्रथम शिल्पना केटलांक आवश्यकीय प्रकरणो लखी नाख्यां अने शिल्पसंहिताओमां ज्योतिषनो विषय पण अवश्य होय ज छे एटले शिल्पना ज अनुसंधान रूपे धारणागति अने मुहुर्तलक्षण नामना बे परिच्छेदो लखीने ते साथे जोडी दीधा. हवे मुद्रा विषयक एक ज एवो परिच्छेद रह्यो हतो के जेनो उपयोग विधिविधानोमां थतो होवा छतां विधिरूपे तेनुं विधिखंडमां स्थान न हतुं,तेथी मुद्रा परिच्छेदने ज्योतिषना अंतमां आपिने एकंदर १७ परिच्छेदोनो प्रथम भाग पूरो कर्यो, पण आ संदर्भy नाम शुं आपQ एनो कोइ मार्ग जड्यो नहि. शिल्प विषयक नाम करण करवामां आवे तो ज्योतिषनो विषय अलक्षित रही जाय जे विस्तारमा शिल्पनी 1 ॥ ३ ॥ स Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। प्रस्ताबना ॥ ॥ ४ ॥ - अपेक्षाए कंइक ज उतरतो छ, बने विषयनो स्पर्शतुं नाम आपवामां पण कंइक ग्राम्यता जेवू लाग्यु एटले आ ग्रन्थने निर्नामक ज राखीने || कल्याण- विधिविषयक ग्रन्थने पूर्ण करवानो निर्णय कर्यो अने ए भाग पण बनते प्रयासे पूरो करी दीयो. कलिका. बीजो भाग बीजा भागना एक परिच्छेद जेबो ज छे पण अधिक विस्तृत भिन्न भिन्न विषयात्मक होवाथी पांच परिच्छेदमा बहेंची खं०२॥ एनो एक स्वतंत्र खंड बनान्यो छे. बीजा त्रीजा खंडनी योजना अने काचो खरडो तैयार थइ गया पछी पाछी एना नामनी विचारणा इभी थइ, बीजा भागना नामने अंगे तो बहु विचारचातुं न हतुं, प्रतिष्ठाकल्प अथवा एने मलतुं बीजु कोइ माम आपबाथी समस्या पती जाय तेम हतुं, पण खास मुंजवण प्रथम खंडने अंगे हती, अमारे आ पहेलो भाग स्वतंत्र ग्रन्थरूपे नहि पण कोइ ग्रन्थना एक विभाग रूपे गोठववो हतो, जो विधिखंडनी प्रधानता गणी तेने अनुसरतुं कोइ नाम आपीयो ते प्रथम खंड तद्दन ज अनिर्दिष्ट रही जाय तेम हतुं एटले अमुक विषय सूचक नामने as पडतुं मूकी फलसूचक नामनी तरफ लक्ष्य दोर्यु अने तरत ज "कल्याण कलिका" नाम उपस्थित थयुं अने एज नाम करण नियत थयुं. साइजने अंगे-आखो ग्रन्थ एकलो छपाववानो निश्चय हतो पण साइजनी बाबतमां विचार करतां जणायु के कोइ पण एक साइजमां छपावतां बधाने अनुकूल नहिं पडे, बुक साइजमा होय ते विधि करावनारने अगवडता जनक थाय अने पोथी साइजमां होय ते शिल्प तथा ज्योतिषना अभ्यासीओने अनुकूल पडे नहि, ए कारणे प्रथम खंड बुक अने बीजो खंड भेगा पोथी रूपे छपाववानुं निश्चित करायु. मुद्रण कामनी व्यवस्था मुद्रण कार्य जल्दी थइने पुस्तक वहेलुं बहार पडे एवी अमारी इच्छा होय ए तो स्वाभाविक गणाय, पण द्रव्य सहायकोनी उतावल ANS अमारा करताये अधिक हती, पण आटलुं दलदार पुस्तक भावनगर के अमदावाद प्रेसमां छपाय अने अमे मारवाडमां प्रुफ मंगावीने सुधारीये बाला ate ने थाला थान Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५ ।। ते पुस्तक क्यारे छपाइने बहार पडे ? लेखक अने आर्थिक सहायको केटली धीरज राखे ? अने एकला प्रेसवाला अने प्रुफरीडर पंडितने भरोसे पण काम केम छोडाय ? भावनगर वा अमदावादमां एवा कोइ विद्वान साधुनुं चोमासुं होय के जो आ काम करवामां योग्य अने करवानी भावनावाला होय तो पुस्तक अमदावाद छपाववुं ए विचारणा चालती हती एटलामां तपस्वी पं० श्रीकान्तिविजयजी गणिनो पत्र मल्यो, तेमणे जणाव्युं के "अमारुं चोमासुं बीजे नक्की थइ गयुं हतुं पण शारीरिक कारणे डाक्टरनी सलाहथी अमदावाद आव्या छीये." अमने प्रसन्नता थइ अने पूछयुं के " जो शारीरिक अडचण न होय अने कलिकानुं मुद्रण कार्य संभाली शकाय तेम होय तो ए कार्य हुं तमने सोंपवा इच्छं छु” अमारा आ पत्रनो उत्तर पं० कान्तिविजयजीए स्वीकृतिना रूपमा आप्यो एटले प्रथम खंडना केटलाक परिच्छेदो तेमने मोकली आप्या अने आर्थिक सहायकोने सूचना पहोचतां खर्च माटे रकम पण अमदावाद श्रीविद्याशालानी पेढीमां पहोंची इ. कार्य चालु थयुं अने गत वर्षनो कार्तिक उतरतां १० फर्मा छपाया, पण एटलामां पं० श्रीकांतिविजयजीने विहार करवाने प्रसंग आव्यो एटले अमारी सूचना प्रमाणे संपादननु कार्य तपस्वीप्रवर मुनि श्रीभद्रंकरविजयजीने सोंपायुं अने ते पछी आनुं बधुं ज संपादकीय कार्य उक्त मुनिराजे ज कर्तुं छे. आ बने विद्वान मुनिवरोए कलिका प्रति श्रद्धा अने सेवाभाव बताव्यो छे तेथी अमने पूर्ण संतोष छे. अग्रसहायको - 'कलिका' नुं कार्य पूरुं नहोतुं थयुं ते पहेलांथी लोको एना मुद्रणमां सहायक थवा माटे अमुक नकलोनी लागत किम्मत आपी ग्राहक रूपे पोतानां नामो लखाबवा मांगता हता, परन्तु ए काम ग्रन्थनुं मेटर पूरुं थया पहेला थइ शके तेम न हतुं. ज्यारे बने भागोनी प्रेसकोपी थवा मांडी प्रेसथी मुद्रण विषयमां पूछपरछ करी लीधी, ते पछी अनुमानथी जणायुं के प्रथम तथा द्वितीय भागनी पांच पांचसो कोपीओ कढावतां अनुक्रमे रु.५) तथा रु.१०) नी लागत किम्मत आवशे, प्रथम भागनो पूरो खर्च श्रीगोदण (मारवाड) ना जैन संघ ॥ प्रस्ता बना || ॥ ५ ॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्ताबना ॥ आपवानी इच्छा व्यक्त करेल होबाथी आ भागमां बीजा कोइनी सहायता स्वीकारी नथी, ज्यारे बीजा भाग माटे दशथी ओछी नकलोनी सहायता स्वीकारवामां आवी नथी, मात्र पांच पांचसो कोपीथी लोक मांगणीने पहोंचाशे नहि एम जणातां प्रकाशक समितिए वधारानी पांच पांचसो नकलो कढावी छे, जे अधिकारिओने लागत किम्मते ज अपाशे एवो निर्धार करेल छे. जेटली नकलोनी किम्मत संघो तथा सद्गृहस्थो तरफथी मळेली छे तेटली नकलो एना अधिकारिओने बिना मूल्ये आपवानो निर्णय थयो छे पण अधिकारी-अनधिकारीनो निर्णय ए माटे नियुक्त थयेल समिति द्वारा थशे अने ए निर्णय प्रकाशक समिति उपर जतां पुस्तको मार्गखर्च लइने तेमने मोकलाशे. पुस्तकना संपादनमा उपर्युक्त विद्वान मुनिवरोए यथाशक्य परिश्रम कर्यो छे, छतां शरतचूक, दृष्टिदोष के प्रेसकर्मचारिओनी बेदरकारीथी जे कोइ अशुद्धिओ रही जवा पामी छे तेनुं शुद्धिपत्रक आपेल छे, जे जोइने वाचकगण रहेल अशुद्धिओने सुधारी लेशे. ॥६॥ २-बीजा खंडनो उपोद्घात. प्रतिष्ठाकल्पो अने विधिविधानो उपर दृष्टिपात'प्रतिष्ठाकल्प' ए विधिशास्त्रनो एक महत्वपूर्ण विभाग छे. 'व्रतविधि' 'तपविधि' के 'मंत्रविधि' आदि 'विधि'ओ प्रायः व्यक्ति विशेषनी साथे संबद्ध होय छे, ज्यारे 'प्रतिष्ठाविधि'नो संबन्ध घणे भागे संघ साथे होय छे, भले प्रतिष्ठाकारक व्यक्ति विशेष होय छतां प्रतिष्ठा वस्तु ज एवी छे के एनो प्रभाव संघ, गाम अने कदाचिद् देश उपर पण पडी जाय छे, आधी 'प्रतिष्ठाशास्त्र' केटलुं महत्त्वपूर्ण छे ए समजाववानी भाग्ये ज आवश्यकता होइ शके. ॥ ६ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्ताबना ॥ प्रतिष्ठानो शब्दार्थजे वस्तुना निरूपणमां आटला बधा ग्रन्थो रचाया छे, अनो जेना विधानमा हजारो अने लाखो रुपिया जैन संघ खर्च करे छे ते 'प्रतिष्ठा' नो अर्थ आपणे समजी लेवो जोइये. 'निर्वाणकलिका' नामक प्रतिष्ठापद्धतिना कर्ता श्रीपादलिप्तसूरिजी निर्वाणकलिकामा प्रतिष्ठा शब्दनो अर्थ नीचे प्रमाणे लखे छे"तत्र स्थाप्यस्य जिनबिम्बादेर्भद्रपीठादौ विधिना न्यसनं प्रतिष्ठा ।" अर्थात 'स्थापनीय जिनप्रतिमा आदिनुं योग्य आसने विधिपूर्वक स्थापन कर, ते 'प्रतिष्ठा' छे. आचार दिनकरना कर्ता श्रीवर्धमानसूरि प्रतिष्ठानुं लक्षण जुदा प्रकारे आपे छे, जे नीचे प्रमाणे छे. "प्रतिष्ठा नाम देहिनां वस्तुनश्च प्राधान्य-मान्य(ता) हेतुकं कर्म ।" अर्थात् 'शरीरधारी तथा अन्य वस्तुने प्रधानता तथा मान्यता आपवाना हेतुथी कराता अनुष्ठाननाम 'प्रतिष्ठा' छे. अमे पोते प्रतिष्ठानुं लक्षण नीचे प्रमाणे बांधीये छीये:"सजीवे निर्जीवे वा विशिष्टवस्तुनि अनुष्ठानविशेषेण कलोत्पादन प्रतिष्ठा" अर्थात् सजीव के निर्जीव एवा पदार्थ विशेषमा योग्य क्रियानुष्ठान द्वारा 'प्रभाव' उत्पन्न करवो ते 'प्रतिष्ठा' तरीके आलेखे छे अने दिनकरकारना लक्षणवाली प्रतिष्ठानो आजे सर्वसाधारण 'अंजनशलाका' ए नामथी व्यवहार करे छे. २ प्राचीन अने अर्वाचिन प्रतिष्ठाओनी तुलनाकोइ पण विधिविधान प्राथमिक अवस्थामा जेटलुं सीधुं अने सरल होय छे तेटलुंज ते लांबा काले जटिल अने दुर्बोध बनी जाय Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. ॥ प्रस्तावना ।। था i ॥ ८ ॥ G याल छे, आ एक स्वाभाविक नियम छे. प्रतिष्ठाकल्पो अने प्रतिष्ठाविधिओ पण आ अचल नियमथी बची शकी नथी, प्रतिष्ठाकल्पोनी उत्पत्तिनो | इतिहास आपना माटेगें आ योग्य स्थल नथी, अहियां प्रतिष्ठाकल्पो अने प्रतिष्ठाविधिओमां थयेल क्रमिक परिवर्तनोनो ज टुंको परिचय | करावीने वाचकगणनु-खास करीने ए विषयमा रस लेता 'प्रतिष्ठाविधिकार' गण- लक्ष्य खेंचवा मांगीये छीये. बीजी रूढ प्रवृत्तिओने अंगे बने छे तेम ए विषयमां पण विधिकारो पोते पोतानी परम्परागत रूढिओने वलगी रही खरी वस्तुस्थितिने | नही स्वीकारे ए अमे सारी रीते जाणीये छीये, छतां पण समजायेलुं सत्य सर्वने समजाव, ए अमारुं कर्तव्य मानीये छीये. ___प्राचीन प्रतिष्ठाओ घणी ज सादी सुगम अने अल्पव्यय साध्य हती, आजना जेवडी लांबी सामग्री-सूचिओ पूर्वे होती बनती, | आ वस्तुने समजाववा माटे अमो प्राचीन अने अपेक्षाकृत अर्वाचीन प्रतिष्ठाकल्पोमा लखेल सामग्रीओमां कालक्रमे केवी रीते वृद्धि थइ | अने सामग्रीसंभार आजनी स्थितिए पहोंच्यो ते विषयमा केटलांक उदाहरणो आपीशुं. विधिमां उमेरायेली वस्तुओः (१) पाटलाओ निर्वाणकलिकाना रचना समयमा आपणी प्रतिष्ठामा मात्र 'नन्दावर्त' पूजन माटे एक ज पाटलो आवश्यक गणातो हतो, दिक्पालोनो आलेख पंचवर्णना चूर्णथी वेदिका उपर करवामां आवतो हतो. श्रीचन्द्रसूरिनी प्रतिष्ठापद्धतिमां दिक्पालोने माटे पण एक पाटलो जुदो अस्तित्वमा आब्यो, ते पछी गुणरत्नसूरि सुधीना प्रतिष्ठाकल्पोमां | नन्दावर्त अने दिक्पालोनी पूजा माटे बे पाटलाओ ज प्रतिष्ठाना उपकरणोमां गणाता हता. வறு otha न ॥ ८ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं०२॥ । ॥ प्रस्ता वना ।। श्रीविशालराज शिष्यना प्रतिष्ठाकल्पमा उपर्युक्त बे पाटलाओ उपरान्त त्रीजा ग्रहना पाटलाए देखाव दीधो छे, ए पहेला कोइ आचार्य | नंदावर्तना छेल्ला बलयमा पूजन करावता अने कोइ प्रथम वलयमा ज जिनबिंबना चरणो पासे ग्रहोर्नु पूजन करावी लेता. पाटला- जुदं अस्तित्व कोइ मानतुं न हतुं. आ रीते सोलमा सैकाना प्रारंभथी ग्रहोनो पाटलो अस्तित्वमा आवतां ३ पाटलाओ प्रतिष्ठाविधिमा दाखल थया. सं०१८२४ नी पहेलांना अमारा जोएला विधिग्रन्थोमा अष्टमंगलना पाटलानी आवश्यकता मनाती न हती, यद्यपि आचार दिनकरमा अष्टमंगलनी पाटलीनो उल्लेख जरूर मले छे, छतां ते वखते अष्टमंगल माटे पाटलानी आवश्यकता न होती गणाती, पाटली विना पण शुद्धभूमि उपर अष्टमंगलोर्नु अक्षतो बड़े आलेखन करातुं हतुं. सं० १८८७ मां अथवा ए पछीना समयमा लखायेल शांतिस्नात्रनी लिधिओमां पहेल वहेलो अष्टमंगलनो पाटलो उपकरणरूपे दृष्टिगोचर थाय छे. अमारी पासेनी सं० १६३९ तथा १६८७ मां लखायेली अष्टोत्तरी स्नातनी विधिओ छे, तेमां अष्टमंगलना पाटलानु नाम निशान नथी, आथी सिद्ध थाय छे के अष्टमंगलनो पाटलो सं० १६८७ पछी अने १८८७ पहेला कोइ काले विधिमां प्रविष्ट थयो छे, एनी प्राचीनता बसो वर्षथी वधारे नथी. (२) वस्त्रो पाटला वध्या एटले तत्संबन्धी पूजन सामग्री वधे ए स्वाभाविक छे. जे वखते मात्र एक ज नंदावर्तनो पाटला हतो ते वखते तेने ढांकवाने एक ज आलुं सफेद वस्त्र आवश्यक गणातुं हतुं, अने ते उपरान्त बिंबनी अधिवासना तथा प्रतिष्ठाना अवसरे आखां बे बस्त्रो | अने मातृशाटिका एटली ते वखते वस्त्रसामग्री हती. For Private & Personal use only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. ॥ प्रस्ताबना ॥ खं०२॥ ॥ १०॥ दिक्पालोनी स्थापना माटे स्वतंत्र पाटलो उपयोगमा लेवावा मांडयो ते समयमा पाटला उपर दिशापालोनी स्थापना दिशापरत्वे चंदननी टीलिओ देइने कराती हती अने सुगंधीद्रव्योथी-पुष्पोथी पूजन करातुं हतुं, वस्त्रपूजानी के वस्त्राच्छादननी कंइ पण चर्चा न हती. नन्यावर्तनुं वस्त्र जे पूर्वे २४ हाधनुं अखंड गणातुं हतुं तेनुं प्रमाण एकदम वधारीने २९१ हाथ- पहेल बहेलां श्रीवर्धमानसूरिजीए जणाव्युं, एमना बृहन्नन्यावर्तमां सर्व मलीने २९१ अधिकारी देव देवी गण होइ प्रत्येक माटे एक एक हस्त वस्त्र गणी लीधुं, एटले ए पछी धीरे धीरे वस्त्र सामग्रीमा वृद्धि थवा मांडी, जो के बीजा प्रतिष्ठाकल्पकारोए एमना उक्त सिद्धान्तने तद्रूपे तो मान्य न कर्यो, छतां वस्त्रना संबन्धमां ते पछी आचार्योए कंइक शरुआत जरूर करी, दिशापालोना पाटला उपर पहेला वस्त्राच्छादननो रिवाज न हतो ते एक वस्त्र ढांकवानी हिमायत करीने चालू कों, ग्रहोनो पाटलो अस्तित्वमा आब्यो एटलं ज नहि, ते उपर प्रत्येक ग्रहना वर्ण प्रमाणेवस्त्र चढाववानो प्रचार पण थयो. वेहि (माटीना वर्तनोनी वेदि) यो के जे माटे पूर्वे वस्त्रनी बात ज न हती, ते पंदरमा सोलमा सैकाथी प्रत्येक १२।१२ हाथ वस्त्रनो अधिकार मेलबी चुकी हती. जलयात्राना कुंभो नन्यावर्त अने जिनप्रतिमा पासे स्थापन कराता, कुंभो उपर पूर्वे जवारनां पात्रो मुकाता हतां पण पाछलथी जवारापात्रोनुं स्थान नालियेर अने रंगीन वस्त्रे ग्रहण कयु जे आज पर्यन्त चाल्युं आवे छे. आम धीमे धीमे प्रतिष्ठाविधिओमां वस्त्रसामग्रीए एक महत्व- स्थान प्राप्त करी लीधुं छे. आजे ग्रहो तथा दिशापालोना पूजन माटे नियत रंगनां रेशमी वस्त्रो ज जोइये, एम आजे नियत रंगना अनेक वस्त्रो खरीदाइने आवे त्यारे ज प्रतिष्ठा के शान्तिस्नात्र जेबी धार्मिक क्रियाओ थइ शके छे. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ।। प्रस्तावना ॥ ११ ॥ (३) क्रयाणको निर्वाणकलिकानी सामग्री-सूचीमा 'क्रयाणक' नो उल्लेख नथी, पण तेमा उल्लिखित 'अष्टोत्तरशत मातृपुटिका' जो क्रयाणक पुटिका होय तो नवाई नथी,अने जो एम ज होय ते ए कहे, जोइये के पादलिप्तसूरिना समय सुधीमा ३६० क्रयाणको नहिं पण १०८ क्रयाणको ज महत्वनां गणातां हशे अने तेनीज प्रतिष्ठामां उपयोगिता स्वीकाराई हशे, पछी धीमे धीमे १०८ नुं स्थान ३६० क्रयाणकोए ग्रहण कर्यु हशे अने १०८ ने बदले ३६० क्रयाणकोनी पुडिओ आगल धरावा मांडी हशे. श्रीचन्द्रसूरिजीना समय पर्यन्त प्रत्येक क्रयाणकनी जुदी जुदी पुडिओ बन्धाती हती. जिनप्रभना समयमां बधां क्रयाणकोनो एक पुडो बांधवानी प्रवृत्ति चालू थइ हती छतां जिनप्रभसूरि पोते ३६० पुडिओ बांधीने धरवी जोइये ए मतना हता, पण ते पछी बधां क्रयाणको भेगां बांधी एक पुडो करीने प्रतिमानी आगे मूकवानो सार्वत्रिक प्रचार थइ गयो हतो जे आज पर्यन्त तेज प्रमाणे कराय छे. (४) मुद्रा अर्थात् रूपैया पैसा पूर्वकालीन प्रतिष्ठाओमां अथवा ते स्नात्रोमां रूपैया पैसाने सामग्री रूपे उपयोग न हतो, इनाम के दानमा नाणांने अवकाश हतो, बाकी पूजापामां तो वास, गंध, पुष्प, धूप आदिने ज स्थान मल्युं हतुं, पण धीमे धीमे ए विधानोमा नाणांए पण प्रवेश कर्यो. प्रथम दोकडे (त्रांबाना अडधियाए) विधिमां पोतानुं स्थान जमाव्यु अने एनी पाछल रूपैयो पण अंदर घुस्यो, प्रथम एकेक पूजाना पाटला उपर एक एक रूपैयो चढवा लाग्यो. धीरे धीरे पद प्रति रूपानाणुं जोइये आवो आग्रह थवा मांड्यो अने रूपैयो नहि तो आठ आना, पावली के छेवटे रूपानी बे आनी तो जोइये ज एम कहीने विधिकारोए ते मूकाववा मांडी. आजे शांन्तिस्नात्र होय के अष्टोत्तरी वृद्धस्नात्र होय पण अभिषेक जेटला रुपैया आगल पाट उपर मुकायतो ज पूजा सारी भणावी कहेवाय, भले ते मूकायेल रूपैयानुं गमे ॥ ११ ॥ ॥ For Private & Personal use only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। १२ ।। A ते थाय, पूजारी (गोठी) ले, उपदेशक साधु अथवा यति ले के पछी ते भंडारमा जाय, विधिकारोए तो पोतानी रूढि चालू ज राखवी! | (५) मेवो अथवा सूकां फलो ।। प्रस्तानिर्वाणकलिकामा प्रतिष्टानी सामग्रीमा मेवा अथवा सूकां फलोनुं विधान नथी, नालियेरने फल रूपे अने सोपारीने तंबोलना अंग बना ।। तरीके गणी लेवामां आवे तो तेमां मेवानी कोइ पण चीज लीधी दृष्टिगोचर थती नथी. ज्यारे ते पछीना दरेक प्रतिष्ठाकल्पमां मेवो अथवा सूकां फलो प्रतिष्ठाविधिना एक अंगरूपे रूढ थइ गयां छे. (६) नैवेद्य___ बीजी अनेक सामग्रीओनी जेम निर्वाणकलिका पछीना कल्पोमा नैवेद्य सामग्रीनी पण क्रमे करीने घणी ज वद्धि थइ छ, नि०कलिकामां पक्वान्न तरीके १ पायस दूधपाक. २ गुडपिंड (गोलना पुडला) ३ कुसरा (खीचडी) ४ दध्योदन (दहिनो करंबो) ५ सुकुमारिका (सोहालीसाफली) ६ शाल्योदन (शालना तांदला) ७ सिद्धपिण्डक (घीमां तलेली पिंडली-मुंठियां) आ सात नामो आवे छे अने ए नैवेद्य पण नन्यावर्तना पाटला आगल मूकवानां छे, जिन प्रतिमा आगल नैवेद्य चढाववानो तेमां क्यांइ उल्लेख नथी, परन्तु ए पछीना प्रत्येक पतिष्ठाकल्पमा उक्त नंद्यावर्तना नैवेद्य उपरान्त प्रतिमा आगल मूकवाना २५ काकरिया (लाडवा, जेनुं बीजुं प्राचीन नाम 'मोरिंडा' पण हतुं), खाजां, घेबर, साटा, ठोर, मरकी, पेंडा आदि अनेक पक्कानो विधिमा अनिवार्य थइ पड्यां छे. ए सिवाय ग्रह दिशापालोना पूजनमां वपरातां नैवेद्य तो जुदां ज, चूरमाना लाडवा, तलना लाडवा, अडदना लाडवा, उपरांत मगनी दालना, धाणीना, फुलीना, मोतीया, घेसीदलना लाडवा अने बीजां केटलाये आवां पक्वान्नो तैयार थाय त्यारे ज ग्रहो अने दिक्पालोनुं पूजन थइ शके. अष्टमंगलनो पाटलो जे अक्षतथी मांगलिक ८ आकारो आलेखवा माटे प्रारंभमां उपयोगमा लेवातो हतो ते उपर पण आजे अक्षतो उपरान्त फल, फूल, नाणां अने वस्त्र Jawal जना शनि Sala Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ || प्रस्तावना ।। W दे ना चा चढे छे, अने ए बधुं विधिकारो एवी अदाथी करावे छे के जाणे एम कर्या सिवाय विधि अपूर्ण ज रही जती होय !. (७) अंजन पादलिप्तसूरिजीए तथा ते पछीना 'आचारविधि' आदिना कर्ताओए 'अंजन' तरीके केवल 'मधुघृत' नो ज उपयोग करवा जणाव्यु छे, पण ते पछीना प्रतिष्ठाकारोए नेत्रोन्मीलन माटे अनेक पदार्थोनो उपयोग करवा मांडयो, कोइए कालो सरमो, साकर अने घी, कोइए रातो सरमो साकर अने घी, कोइए आमां बरास वधार्यो तो कोइए सरमो, साकर, बरास, कस्तूरी, मोती, प्रवालां, सोनुं अने चांदी आदिनो वधारो करी नेत्रांजन तैयार करवानुं विधान करीने “रूप्यकचोलकस्थेन,शुद्धेन मधुसर्पिषा । नयनोन्मीलने कुर्यात्, सूरिः स्वर्णशलाकया ॥१॥" आ विधानमां आमूल-चूल परिवर्तन करी नाख्युं छे !. (८) प्रकीर्णक उपर अमोए जे केटलांक उदाहरणो आप्यां छे ते विशेष महत्त्वनां छे, बाकी साधारण परिवर्तनो तो एटलां बधां छे के जेनी गणना करवी पण कठिन छे. प्राचीन प्रतिष्ठाओमां शुं न हतुं अने पाछलथी विधिमां शुं दाखल थयु ए जणाववाने उपर केटलांक उदाहरणो आप्यां छे, एथी विपरीत पूर्वे शुं हतुं अने आजे विधिमां शुं नथी आ विषयना केटलांक दाखला आगेना प्रकरणमा जोवाशे. विधानमांथी निकली गयेली वस्तुओजेम विधानमा घणी वस्तुओ नवी दाखल थइ. छे, तेम थोडीक वस्तुओ जे प्राचीन विधानोमा हती पण नव्यप्रतिष्ठाविधिमांथी - अदृष्य पण धइ छे, ए विषयना केटलांक उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे: नामा ॥ १३ ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ || प्रस्तावना ॥ का | श ला (१) निर्वाणकलिकामां बलिनी साथे कंदमूलना ग्रहणनो बे त्रण वार उल्लेख थयेल छे. (२) निर्वाणकलिकानी फलसूचीमां 'बोर' तथा 'वृन्ताक' नी प्रशस्त फल तरीके गणना थयेली छे. (३) निर्वाणकलिकामा 'ऊर्णासूत्र' तथा 'लोहमुद्रिका' नो उपकरण तरीके स्वीकार थयेल थे, परन्तु ए पछीना कोइ पण प्रतिष्ठाकल्पमा सामग्रीमां उपर्युक्त पदार्थोनी परिगणना थइ नथी. (४) निर्वाणकलिकामा एक स्थपतिनो अभिषेक मानेलो छ, स्थपति (शिल्पी) प्रथम एक कलश वडे प्रतिमानो अभिषेक करी लेतो ते पछी बीजा ४ स्नात्रकारो अभिषेक करता, आ विधिनो श्रीजिनप्रभसूरिजीए स्वीकार पण कर्यो छे, छतां बीजा कोइ पण कल्पकारे ए विधिनुं समर्थन कर्यु जणातुं नथी. (५) निर्वाणकलिकामा नन्द्यावर्त ७ वृत्तोथी बनावी तेना प्रथम वलयना मध्य भागे अरिहंत, पूर्व सिद्ध, दक्षिणे आचार्य, पश्चिमे उपाध्याय, उत्तरे सर्व साधुपदनुं अने आग्नेयादि ४ कोणोमां अनुक्रमे ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने सूची विद्यानुं आलेखन अने पूजन करवानुं विधान छे, पण बीजा प्रतिष्ठाकल्पकारोए प्रथम वलयमा नन्द्यावर्त अने एने फरता आठ दिशा भागोमां अनुक्रमे १ अरिहन्त २ सिद्ध ३ आचार्य ४ उपाध्याय ५ सर्वसाधु ६ दर्शन ७ ज्ञान ८ चारित्र ए आठ- स्थापन पूजन करवानो आदेश कर्यो छे, शुचि विद्याने छोडी दीधी छे. (६) पूर्वे स्थिर प्रतिष्ठामा प्रतिमा नीचे पंचधातुक स्थापन करातुं हतुं जेमां लोहधातुनो पण समावेश थतो हतो, पण पाछलना प्रतिष्ठाकल्पकारोए पंचधातुकर्नु स्थापन पंचरत्नने आप्यु के जेमा सोनुं रू' त्रांबुं प्रवाल अने मोती होय छे. लोह होतुं नथी. (७) पूर्वे चौदमा सैका सुधी चर प्रतिष्ठामा नन्द्यावर्त पूजीने ते उपरर प्रतिष्ठाप्य जिनप्रतिमा स्थापन कराती हती, पछीना थोडाक Ca ॥ १४ ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. । प्रस्तावना ।। समय सुधी कोइ प्रतिमा स्थापन करता अने कोइ तेनुं चिन्तन मात्र करीने स्थापना मानी लेता हता, धीमे धीमे ते प्रवृत्ति पण बंध पडी. आज काल नन्द्यावर्तना पाटला उपर प्रतिमा स्थापन के चिन्तन कंइ पण थतुं नथी. मात्र ते उपर नन्द्यावर्तनो चित्रित पट मुकीने तेनुं पूजन करी नन्द्यावर्त पूज्यु मानी लेवामां आवे छे. (८) पूर्व प्रतिष्ठाचार्य, इन्द्र अथवा मुख्य स्नात्रकार अने खास प्रतिष्ठामां भाग लेनाराओ, प्रतिष्ठाने दिवसे उपवास करता हता, पण आजे कोइ पण उपवास करतुं होय एवं जाणवामां नथी. (९) पूर्वे प्रतिष्ठित बिम्ब- कंकण त्रीजे पांचमे के सातमे शुभ दिवसे छोडातुं हतुं अने ते पण विधिपूर्वक ज, बृहत्स्नात्र अथवा अष्टोत्तर शत अभिषेक ते दिवसे कंकण-मोचन पहेलां करता हता अने छोडतां पहेलां जिनबलि अने भूतबलिपूर्वक चैत्यवंदन करी कायोत्सर्ग करता हता, जेमा छेल्लो कायोत्सर्ग प्रतिष्ठादेवता विसर्जनार्थ करातो हतो, ते पछी सौभाग्यमंत्रन्यासपूर्वक कंकण छोडी सौभाग्यवती स्त्रीना हाथमा अथवा पोताना प्रियजनना हाथमा अपातुं हतुं, जरूरी कारणे आ विधान प्रतिष्ठाना दिवसे पण करी लेवा हतुं. पण आजे तो आ विधि तरफ विधिकारो जोता पण नथी ! शान्तिस्नात्र के अष्टोत्तरीस्नात्र करीने विधिकारो पोताने ठेकाणे पहोचवानी ज तैयारीमा लागे छे, जाणे के कंकणमोचनने विधिमां स्थान ज नथी ! __ ३ वर्तमान समयमा उपलब्ध थता प्रतिष्ठाकल्पोआजे आपणामां प्रतिष्ठाकल्पो केटला विद्यमान हशे ए निश्चित रूपे कहे, शक्य नथी, घणाक प्रतिष्ठाकल्पो-सामाचारी ग्रन्थोमां, उपदेशग्रंथोमा अने कथाग्रन्थोमां ते ते ग्रन्थना एक प्रकरण तरीके लखायेला उपलब्ध थाय छे, त्यारे केटलाक पोताना नामथी पण स्वतंत्र अस्तित्व धरावे छे, आ वखते अमारी सामे ८ प्रतिष्ठाकल्पो रहेला छे, जेमांना ३ सामाचारीना एक भागरूपे अने ५ स्वतंत्र ॥१ For Private & Personal use only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ प्रस्तावना ।। |यन स ॥ १६ ॥ ग्रंथरूपे गणी शकाय. आ बधा कल्पोने अमो कालानुसार नंबर आपीने अनुक्रमे परिचय करावीशुं. (१) आजे आपणा श्वेताम्बर संप्रदायमां सर्वथी प्राचीन प्रतिष्ठा पद्धति श्रीपादलिप्तसूरिजीकृत 'निर्वाणकलिका' छ, यद्यपि आमां उद्धृत प्राकृत गाथाबद्ध पद्धति के जेनो ग्रंथकारे 'आगम' कहीने पोतानी पद्धतिमा समावेश कर्यो छे, निर्वाण कलिका करतां ये घणी जुनी छे, छतां अमो एने निर्वाणकलिकाना मूल तरीके ज गणी लइये छीये, कारण के ए प्राकृतपद्धतिना प्रारंभ के समाप्तिनो एमां उल्लेख नथी, तेमज ए उपरना मंत्रभागनो पण पत्तो नथी.. निर्वाण कलिका' ना निर्माण समयने अंगे निश्चितरूपे कहेवू शक्य नथी, छतां ए कहेवामां बांधो पण नथी के ए ग्रन्थनी रचना चैत्यवासनी प्रवृत्ति थया पछीनी छे, एटले विक्रमना पांचमां सैकानी आसपासना समयमा ए पद्धतिनी रचना थइ हशे, एना अंतरंग निरूपणथी पण एज समयनुं अनुमान थइ शके छे. (२) अमारी पासेना प्रतिष्ठाकल्पोमां निर्वाणकलिका पछीनो नंबर श्रीचन्द्रसूरिकृत प्रतिष्ठापद्धतिने फाले जाय छे. आ प्रतिष्ठाविधि सुबोधा सामाचारीना अंतमा छपायेल छ, प्रक्षिप्त छतां ये आपणी बीजी पद्धतिओ करतां आ मौलिक अने प्राचीन छे, आनु निर्माण विक्रमना बारमा सैकामां थयुं निश्चितपणे कही शकाय. (३) आचार्य जिनप्रभसूरिकृत 'विधिमार्ग प्रपा' नामक 'सामाचारी' मां आपेल 'प्रतिष्ठाविधि' नामक 'प्रतिष्ठापद्धति' श्रीचन्द्रसूरिनी प्रतिष्ठापद्धतिने अनुसरनारी छे, छतां कोई कोई विषयमा ए जुदी पडे छे, आनो रचना संवत् १३६३ मा वर्षमा थयेली छे. (४) ए पछीनी पद्धति श्रीवर्धमानसूरिकृत आचारदिनकरान्तर्गत 'प्रतिष्ठाविधि' छ, आनी रचना समय विक्रमनो पंदरमो सैको छ, | wal आपणी प्रतिष्ठा विधिओमां सौथी अधिक विस्तृत अने चैत्यवासियो अने भट्टारकोनी भरपूर असरवाली ए पद्धति छे. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ESI ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ | ।। प्रस्तावना ॥ ॥ १७ ॥ athi का (५) तपाश्रीगुणरत्नसूरि संदर्भित 'प्रतिष्ठाकल्प' पण पंदरमा सैकाना उत्तरार्धनी कृति छे, ए घणी ज शुद्ध अने सरल संस्कृतमा लखायेली अमारी पासेनी सर्व प्रतिष्ठाविधिओमां सारी अने सुगम छे. (६) विशालराजशिष्यकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' के जेनुं निर्माण पण पंदरमा सैकाना अन्तमा अथवा तो सोलमां सैकाना प्ररंभमां थयेलं छे, आनी प्राचीन प्रति अमारी पासे छे, ए कल्प पण शुद्ध प्राय छे. (७) कर्ताना नाम वगरनो छतां श्रीजिनप्रभसूरिजीने अनुसरनारो आ प्रतिष्ठाकल्प कोइ खरतरगच्छीय विद्वानना हाथे पडिमात्रावाली लिपिमा लखायोलो छ, रचना के लेखनसंबन्धी संवत् मिति एमां नथी छतां भाषा अने लिपि उपरथी ए सोलमा सैकाना अन्त भागमां अथवा सत्तरमा सैकाना प्रारंभनां बनेलो लागे छे. (८) उपाध्याय सकलचंद्रजी गणिकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' के जे आजकालना विधिकारोमा अधिक प्रसिद्ध अने प्रचलित छे, एटलं ज नहि पण आचार दिनकरनी प्रतिष्ठा विधिने बाद करतां बीजी बधी विधिओ करतां ए अधिक विस्तृत छ, आ कल्पनो रचनाकाल सत्तरमा सैकानो मध्यभाग छ, अमारी पासेना ८ प्रतिष्ठाकल्पो पैकी सौथी शुद्ध ५ मो अने अशुद्ध आ आठमो प्रतिष्ठाकल्प छे, १ थी ५ सुधीना प्रतिष्ठाकल्पो शुद्ध संस्कृत भाषामां रचायेल छे, ज्यारे ६७८ आ त्रण प्रतिष्ठाकल्पो संस्कृत तेम ज प्राचीन लोकभाषामां लखायेल छे. दरेकनो मंत्र भाग संस्कृत अने कचित् प्राकृतमां छे, अने हकीकत प्रायः भाषामां लखेली छे, कल्प ६ट्ठा नी हकीकत पण क्वचित् संस्कृतमा जणावेली छे. आटलो कल्पोनो परिचय कराव्या पछी हवे आ ग्रन्थोना आधारभूत ग्रन्थोने अंगे विचार करीये. क Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १८ ।। ४ - प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्पोनो मूलाधार - उपर्युक्त ८ कल्पो पैकी कयो कल्प कया मूलग्रन्थ अथवा कल्पग्रन्थने आधारे बन्यो छे अथवा कया कल्पने अनुसरे छे. ए विषे विचार करवो आवश्यक छे. + अमारी पासेना कल्पोमां पांच प्रकारनी प्रतिष्ठाविषयक विधि परम्परा तरी आवे छे, नंबर २।३।७ नी विधि एक बीजाना विध अनुसरण करे छे. नंबर ५/६ आ वे कल्पो घणे भागे एक बीजाने अनुसरे छे, ज्यारे ११४१८ आ त्रण कल्पोनी विधि कोइ पण बीजा प्रतिष्ठा कल्पनी विधिथी संर्वाशे मलती आवती नथी. नं. १ नो कल्प प्राचीन होड़ बीजा कल्पोथी घणी वातोमां जुदो पडे छे, जलयात्रानी विधि तेम ज अभिषेकनी विधि आमां आपी नथी, यद्यपि अभिषेकनी सर्वसामग्री एमां लखी दीधी छे. आ कल्पमां प्रतिष्ठाना क्रियांगोमां विशेष महत्त्वनी वस्तु 'नन्द्यावर्त' नुं पूजन छे, नन्द्यावर्तना पूजन पछी आमां सीधुं ज प्रतिष्ठा विधान छे, दिक्पालो तेमज ग्रहोनुं पूजन के स्थापन आमां स्वतंत्र रीते आवश्यक गण्णुं नथी, नन्द्यावर्तमां ज ए बधांनो समावेश करीने प्रतिष्ठाविधि अल्प व्यय अने अल्प कष्टसाध्य करी दीधी छे. निर्वाणकलिकानी प्रतिष्ठाविधि केटलेक अंशे दिगम्बरीय प्रतिष्ठापद्धतियोने मलती आवे छे, कदाचित् दिगम्बरीचार्योना प्रतिष्ठाकल्पोनुं उद्गम स्थान पण आ प्रतिष्ठापद्धति ज होय ते आश्चर्य जेतुं नथी, दिगम्बरोना अनेक ग्रन्थो श्वेताम्बर संप्रदाय मान्य सिद्धान्तोना आधारे बन्या छे, ते प्रमाणे आमां पण बनवुं विशेष संभवित छे. आ प्रतिष्ठापद्धतिनो मूलाधार कोइ अतिप्राचीन प्राकृत प्रतिष्ठाकल्प छे, के जेनुं आ पद्धतिना लेखके 'आगम' कहीने बहुमान क ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। १८ ।। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्तावना ॥ छे अने स्थाने स्थाने तेनी गाथाओनां अवतरणो आपीने पोतानी आ पद्धतिने समृद्ध अने प्रामाणिक बनावी छे. नं. २ नो प्रतिष्ठाकल्प पण संभवित रीते कोइ प्राचीन प्राकृत प्रतिष्ठाकल्पने ज आधारे बन्यो छे, छतां आमां कोइ पण गाथाओ प्रमाण तरीके आपी नथी, वली एमणे मंत्रभाग पण घणो ज संक्षिप्त रूपे आप्यो छे. एम लागे छे के निर्वाणकलिकाने सीधो नहि पण तेना आधारे बनेली कोइ प्राचीन पद्धतिनो आधार लइने श्रीचन्द्रसूरिजीए पोतानी आ प्रतिष्ठा पद्धति बनावी हशे. नं. ३ नो प्रतिष्ठा-कल्प नं० २ वाला प्रतिष्ठा-कल्पने आधारे ज बन्यो छे, बनेनी प्रतिष्ठा विषयक मान्यता समान छे, मात्र कचित् नजीवो फेरफार छे के जेनुं कारण मात्र समयभिन्नता अने कर्तृभिन्नता ज होइ शके. ४ था प्रतिष्ठाकल्पनो आधार शो छे ते एना कर्ता ज नीचेना शब्दोमां लखी दे छे"प्रतिष्ठाविधिरादिष्टः, पूर्वं श्रीचन्द्रसूरिभिः । संक्षिप्तो विस्तरेणाय -मागमार्थाद्वितन्यते ॥१॥" "प्रतिष्ठाकारयितुर्गुहे प्रथमं शान्तिकं पौष्टिकं कुर्यात् । अतश्च श्रीचन्द्रसूरिखणीता प्रतिष्ठायुक्तिर्महाप्रतिष्ठाकल्पापेक्षया लधुतरेति ज्ञायते। ततः आर्यनन्दिक्षपक-चन्द्रनन्दि-इन्द्रनन्दि-श्रीवज्रस्वामिप्रोक्तप्रतिष्ठाकल्प-दर्शनात् सविस्तरा लिख्यते " । अर्थ- 'पूर्वे श्रीचन्द्रसूरिजाए संक्षिप्त प्रतिष्ठाविधि कही छे, ज्यारे आ आगमानुसारे सविस्तर रचाय छे. कारण के प्रतिष्ठाकारक गृहस्थना घरे प्रतिष्ठा करतां पहेलां शांतिक अने पौष्टिक करवू जोइये, पण श्रीचन्द्रसूरिरचित प्रतिष्ठापद्धति 'महाप्रतिष्ठाकल्पो' नी अपेक्षाए घणी ज नानी छे, तेथी आर्यनन्दिक्षपक, चन्द्रनन्दी इन्द्रनन्दि अने श्रीवज्रस्वामिकथित प्रतिष्ठाकल्पो देखीने आ सविस्तर (प्रतिष्ठापद्धति) लखाय छे.' उपरना वाक्योमा श्रीवर्धमानसूरिजीए जेमनो नामनिर्देश कर्यो छे ते आर्यनन्दिक्षपक अने चन्द्रनन्दीनां नामो आपणी परंपराने मलतां या ब Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ || प्रस्तावना ।। NHA नथी, पण दिगम्बर भट्टारकोनां नाम होय तेम लागे छे. 'इन्द्रनन्दी' दिगम्बर तथा श्वेताम्बर-बने परम्पराओमां थया छे, परन्तु श्वेताम्बर | इन्द्रनन्दी श्रीवर्धमानसूरिजीथी परवर्ती होइ आ प्रतिष्ठाकल्पकार दिगम्बर इन्द्रनन्दी ज होबानो विशेष संभव छे. गमे तेम होय पण श्रीवर्धमानसूरिजीनी पासे श्वेताम्बर तथा दिगम्बर बंने संप्रदायोनी विस्तृत प्रतिष्ठापद्धतिओ हती के जेओनुं तेमणे अनुकरण ज नहि, खूब उपजीवन पण कर्यु छे, आचार-दिनकरमा एमणे आपेली प्रतिष्ठापद्धतिमां-खास करीने 'नन्यावर्तपूजा' अने | महापूजा' ना प्रकरणोमा जे गंभीर अने विद्वत्तापूर्ण कान्योनी छटा दृष्टिगोचर थाय छे ते वस्तु श्रीवर्धमानसूरिजीनी पोतानी नहि पण तेमना पुरोगामी प्रतिष्ठाकल्पकारोनी छे. वर्धमानसूरिए श्वेताम्बर प्रतिष्ठाकल्पो उपरान्त दिगम्बरीय प्रतिष्ठाकल्पोनो पण पोतानी विधिमा उपयोग को हतो ए वातमा एमणे | वापरेला 'जैनविप्र' 'क्षुल्लक' आदि शब्दो साक्षी रूपे गणी शकाय, छतां ए पण खरुं छे के जे वस्तु श्वेताम्बरीय प्रतिष्ठा कल्पोमा मुद्दल ज न हती ते वस्तु एमणे दिगम्बरो पासेथी लीधी नथी, नन्द्यावर्तना पूजनने प्राचीन श्वेताम्बराचार्योए प्रतिष्ठानुं प्रधान अंग गणीने तेनुं | विस्तृत विधान कर्यु छे, आथी वर्धमानसूरिजीए पण एना पूजन- सविस्तर वर्णन आप्युं छे. पण कल्याणक विधिना प्रसंगो के जेनुं पहेलाना कोइ पण श्वेताम्बर संप्रदायना प्रतिष्ठा कल्पमा वर्णन के विधान न हतुं ते एमणे पण आ दिगम्बर संप्रदायनी परम्परागत वस्तुने पोतानी प्रतिष्ठाविधिमां स्थान आप्यु नथी. नंबर ५।६ ना प्रतिष्ठाकल्पनो आधार ग्रन्थ तो श्रीचन्द्रसूरिनी प्रतिष्ठापद्धतिर्नु परिमार्जन थयेलुं छे, ए पहेलांनी पद्धतियोमा प्रतिष्ठाकारक आचार्यने सुवर्णमुद्रिका अने सुवर्णकंकण धारण करवानुं विधान छे, पण आ प्रतिष्ठाकल्पकारोए ए वस्तु उडाडी दीधी छे, ए सिवाय | बीजी पण केटलीक सावद्य प्रवृत्तिओ जे पूर्व प्रतिष्ठाचार्यना हाथे थती हती ते एमणे श्रावकना हाथे करवानुं विधान कर्यु छे. परिणाम ॥२० ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ प्रस्ताबना ॥ स्वरूप आ कल्पोमां गुरु अने श्रावके करवानां कार्यो बहेंचाइ गयां छे. आ बे कल्पो तपागच्छनी निरवद्य सामाचारीने अनुरूप बनावी देवामां आव्या छे. छतां विधिविधानोमा महत्वनो भेद पाड्यो नथी ए खुशी थवा जेबुं छे. नंबर ७ ना प्रतिष्ठाकल्पनो आधार ग्रन्थ श्री जिनप्रभसूरिजीनी प्रतिष्ठापद्धति छे, एम छतांये आ कल्पकारे केटलीक बातो खुलासापूर्वक लखी छे के जे प्रमाणे एना आधारग्रंथमा नथी,ए कल्पना लेखके पण केटलीक सावद्य प्रवृत्तिओ प्रतिष्ठाचार्यने बदले स्नात्रकार श्रावकना हाथे करवानुं विधान कयुं छे, छतां आमांना केटलाक विधानो नं० ५।६ नां विधानोथी भिन्न छे. नंबर ८ नो प्रतिष्ठाकल्प जे उपाध्याय श्री सकलचंद्रजीनी कृति गणाय छे, एनो आधार एना कर्ताए ग्रन्थनी समाप्तिमां नीचे प्रमाणे सूचव्यो छे. "इति श्रीभद्रबाहुस्वामिना विद्याप्रवादपूर्वात् प्रतिष्ठाकल्पोद्धृतः । तन्मध्याजगञ्चन्द्रसूरीश्वरेण यत्प्रतिष्ठाकल्पोद्धृतः तत एप प्रतिष्ठाकल्पः सुविहितवाचक श्री सकलचन्द्रगणिना भट्टारक श्री हरिभद्रसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्प-हेमाचार्यकृतप्रतिष्ठाकल्प-श्यामाचार्यकृतप्रतिष्ठाकल्प -श्री गुणरत्नाकरसूरिकृतप्रतिष्ठाल्प एभिः प्रतिष्ठाकल्पैः सह संयोजितः संशोधितश्च भ । श्रीविजयदानसूरीश्वराने ।” ___उक्त समाप्तिलेखनो तात्पर्यार्थ ए छे के 'श्रीभद्रबाहुस्वामीए विद्याप्रवादपूर्वमाथी प्रतिष्ठाकल्प उद्धर्यो, तेमांथी श्रीजगच्चनद्रसूरीश्वरजीए प्रतिष्ठाकल्पनो उद्धार को अने तेमाथी आ प्रतिष्ठाकल्प सुविहित उपाध्याय श्री सकलचन्द्रजी गणिए बनावीने पूज्य श्रीहरिभद्रसूरि-हेमाचार्यश्यामाचार्य-गुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्पोनी साथे मेलवीने श्रीविजयदानसूरिजीनी सामे सुधार्यो छे.' __ प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्प उपाध्याय श्रीसकलचन्द्रजीनी ज कृति छे अथवा तो कोइए एमना नामे चढावी दीधेली होइ अर्वाचीन कूट कृति छे ए शंका खरेखर समाधान मांगे छे. । ॥ २१ ॥ For Private Personal use only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ प्रस्ताबना ॥ उपर आपेल समाप्तिलेखनी अशुद्धिओ अने प्रशस्तिनो अभाव जोतां ए ग्रन्थ सकलचन्द्रजीनी कृति होवा विषे ज अमने ते शंका छे. छतां प्रचलित प्रणालिकाने अनुसरीने एने श्रीसकलचंद्रजीनी कृति मानी लइये तोये आ वर्तमानरूपमां ते उपाध्याय श्रीसकलचन्द्रजीनी कृति न ज होइ शके. कारण के आमां केटलीक अक्षम्य भूलो नजरे पडे छे अने एना केटलाक विषयो अस्तव्यस्त थइ गयेला जणाय छे, उदाहरणो- .. (१) बधा प्रतिष्ठाकल्पोमां पांचभु स्नात्र (अभिषेक) पंचगव्यनु आवे छे ज्यारे आमां पंचगव्यने नवमा नम्बरे मूक्युं छे, अने तेनां | उपादानोमां पण परिवर्तन करी नाख्युं छे, बधा कल्पकारो गायनुं छाण, मूत्र, दूध, दहि अने घृत आ पांचने 'पंचगव्य' तरीके जणावे छे त्यारे आ कल्पमा दूध, दहि, माखण, घृत अने छाश ए पांचनुं समुदित नाम 'पंचगव्य' आप्यु छे, जे वास्तविक नथी, माखण ने घी तेमज दहि अने छास ए वस्तुओ कंइ भिन्न भिन्न नथी पण एक ज चीजना अवस्थापरक बे भिन्न नामो छे, अने आ रीते खरं जोतां 'पंचगव्य' ना नामथी 'त्रिगव्य' ज बने छे अने 'त्रिगव्य' नो ज अभिषेक थाय छे, ज्यारे प्रत्येक प्रतिष्ठाकल्पकारे 'पंचगव्य'नो अभिषेक करवानुं विधान कर्यु छे. (२) पंचगन्यने आगेने माटे राखी आ कल्पमां पांचमा स्नात्र तरीके 'सदौषधि'नो अभिषेक राख्यो छे अने छठ्ठो 'मुलिका' ना स्नात्रने सदंतर ज काढी नाखी तेना स्थाने 'प्रथमाष्टकवर्ग' नुं स्नात्र गोठव्युं छे, छतां नवाइ तो ए छे के मूलिकास्नात्र वखते बोलातुं पद्य ज आ स्नात्रना पाठरूपे पहेला आप्यु छे अने पछी न, पद्य आप्यु छे, बीजा पद्यमां पण 'प्रथमाष्टकवर्ग' मा आवता 'वीरणिमूल' ने स्थाने 'हीरवणीमूल' शब्द लखीने खरे ज अर्थनो अनर्थ कर्यो छे !. (३) आठमो अभिषेक सर्व प्रतिष्ठाकल्पोमा 'प्रथमाष्टकवर्ग' नो छे ज्यारे एमां ते 'सौषधि' नो लखेल छे, अने एना पाठमां AP ॥ २२ ।। For Private & Personal use only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। प्रस्ता . बना ॥ बीजा 'अष्टवर्ग'नो श्लोक लइ लीधो छ जे अप्रासंगिक छे. (४) आ कल्पमा नवमो अभिषेक 'पंचगव्य'नो अने दशमो 'सुगंधौषधि' नो राख्यो छे, पण बीजा सर्वमा नवमो अने दशमो | अभिषेक अनुक्रमे 'द्वितीयाष्टकवर्ग' अने 'सौषधि' नो छे. बीजा कल्पो करतां आमां सौषधिनां द्रव्यो पण घणां अने केटलाये जुदी जातनां लीधा छे. बीजा प्रतिष्ठाकल्पोना 'सर्वोषधि स्नात्रनो पाठ आमां 'सुगंधौषधि' नामनो एक नवो अभिषेक कल्पीने तेमा आप्यो छे अने एक श्लोक नवो लख्यो छे. दश पछीना आना अभिषेको वीजा कल्पोना अभिषेकोनी साथे मलता थइ जाय छे, छतां एक बे स्थले थोडोक फरक तो छे ॥ २३ ॥ GS 21 रा (५) बीजा घणा खरा प्रतिष्ठाकल्पोमा अढार अभिषेकने अन्ते शुद्ध जलना त०८ कलशोथी अभिषेक करवानुं विधान छे, नं०५ ना प्रतिष्ठाकल्पोमा दूध, दहि, घी, सेलडीरस (खांड) अने सर्वोषधि- स्नात्र अभिषेकने अन्ते करीने पछी १०८ जलकलशो वडे अभिषेक करवानो आदेश छे, पण आ कल्पमा तो अभिषेक प्रकरणमा १०८ अभिषेकनो उल्लेख ज नथी अने निर्वाणकल्याणकना अन्ते ए १०८ जलकलशो वडे अभिषेक करवानुं विधान कयु छे के ज्यां एनो कोइ प्रसंग ज नथी! (६) बीजा धणाक प्रतिष्ठाकल्पोमां 'कंकणमोचनविधि'ना प्रसंगे पण 'अष्टोत्तर शत अभिषेक' करवानुं विधान छे, निर्वाण कल्याणक पछी आ कंकणमोचन जेवो प्रसंग उपस्थित करीने ए १०८ अभिषेक त्यां बताव्या होत त्यारे ते सार्थक पण गणी शकात, पण एवो कोइ पण प्रसंग नथी अने अभिषेक लख्या छे ! देश CAN शा Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ प्रस्ताबना ॥ di ॥ २४ ॥ a वा ला (७) बीजा बधा कल्पोनी साथे एनो महत्वपूर्ण मतभेद कल्याणकोनी उजवणीनो छे, १ थी ७ सुधीना कोइ पण कल्पमां कल्याणकोनी 18 उजवणी के १० दिवसनो कार्यक्रमनो उल्लेख सुधां नथी, ४ था प्रतिष्ठाकल्पमा नन्द्यावर्तपूजन अने महापूजा विगेरे प्रकरणमा अनावश्यक | कही शकाय एटलो बधा विस्तार कर्यो छे, छतां ए कल्याणकोनी उजवणी के ते संबन्धी मंत्रो जेबु कई ज नथी. आना समाप्तिलेखमा सूचव्याप्रमाणे जो आ प्रतिष्ठाकल्प श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना प्रतिष्ठाकल्प उपरथी बन्यो होय अने कल्याणकोनी उजवणीनो प्रसंग तेमांधी लीधो होय तो पछी जगच्चन्द्रसूरिजीना पृष्टवर्ती नं० ३।४।५।६।७ ना प्रतिष्ठाकल्पकारोए पोताना कल्पोमां ए वस्तुनो स्वीकार केम न कर्यो ? सर्वजण नहिं तो नं०५।६ ना कल्पकर्ताओ के जे श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीनी ज पट्टपरंपराना आचार्यो हता अने सकलचन्द्रजी करतां तेमना निकटवर्ती हता, जगञ्चन्द्रसूरिजीना प्रतिष्ठा कल्पनी पद्धतिने न अपनावे ए बात मानी शकाय तेवी नथी, छतां एवं कशुं थयु नथी आथी समजाय छे के आ कल्पमा लखेल कल्याणक विधि-जगच्चन्द्रसूरि अथवा बीजा कोइ पण प्रामाणिक श्वेताम्बर सम्प्रदायना आचार्यकृत प्रतिष्ठा-कल्प उपरथी नहि पण कोइ दिगम्बरमान्य प्रतिष्ठा कल्प उपरथी उतारी लीधी छे, दिगम्बरोनी प्रतिष्ठामां कल्याणकोनी विधि- विधान घणा जुना समयथी चाल्युं आवे छे, आश्चर्य नथी के श्रीसकलचन्द्रजी उपाध्याय पोते अथवा ते एमना परवर्ती कोई बीजा विद्वाने कल्याणकोना प्रसंगोने श्वेताम्बर संप्रदायने अनुरुप गोठवीने आ आठ नंबरना प्रतिष्ठा कल्पनी योजना करी दीधी होय ? अने प्रचार निमित्ते सकलचंद्रजीना नामे ए संदर्भ चढावी दीधो होय ? गमे तेम होय पण आ प्रतिष्ठा कल्पनो मूलाधार जगच्चन्द्रसूरिनो कल्प तो नथी ज. श्यामाचार्य-हरिभद्रसूरि-हेमाचार्य-गुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठा कल्पो पण आ कल्पना समर्थक होय ए वात मानी शकाय तेवी नथी. श्यामाचार्यादिना प्रतिष्ठाकल्पोना अस्तित्व विषे आ कल्पना कथन सिवाय बीजु कोइ प्रमाण नथी, प्राकृत गाथामय प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पने ॥ २४ ॥ For Private & Personal use only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्तावना ।। G भा श श्यामाचार्यकृत मानी लेवामां आवे तो अमने बांधो नथी पण तेमांय कल्याणकविधिनुं ते नाम निशान पण नथी, 'प्रतिष्ठाविधि पंचाशक' | ने जो श्रीहरिभद्रसूरिनो कल्प मानी लीधो होय तो तेमां पण कल्याणकोनुं विधान नथी, हेमाचार्यनो प्रतिष्ठाकल्प हमणां क्यांये मलतो नथी अने पूर्वे हतो एमां प्रमाण नथी गुणरत्नाकर नामे कोइ पण आचार्य श्वेताम्बरसंप्रदायना थया होय एबुं अमारी जाणवामां नथी., का रत्नाकरसूरि अने गुणरत्नाकर नामे कोइ पण आचार्य आपणामां जरुर थया छे, अने गुणरत्नसूरिजीनो तो प्रतिष्ठाकल्प पण विद्यमान छे. पण तेमां कल्याणक विधि के बीजी एवी कोई वस्तु नथी के आ प्रकृत प्रतिष्ठाकल्पनी समर्थक थइ शके ? (८) उपरनां कारणो उपरान्त आ कृतिनी नवीनता साबित करनार मुख्य प्रमाण ए छे के आमां प्रौढता गंभीरता के वचनचमत्कृति | नथी, पूर्वोक्त महाविद्वान् आचार्योनी कृतिनो आधार लइने बनावेली कृति आटली बधी नीरस अने निस्सत्व होय ए मानी शकाय तेम नथी. (९) ए सिवाय आ प्रतिष्ठाकल्पमा एक बीजी ध्यान खेंचनारी वात ए छे के एना पुरोगामी सर्व प्रतिष्ठाकल्पकारो ३६० क्रयाणकोनी पुडीओ अथवा सर्वनो एक पुडो बांधीने, अधिवासना कर्या पछी प्रतिमानी आगल मूकवानुं विधान करे छे, त्यारे आ कल्पकार अंजनविधान धया पछी प्रतिमाना हाथमां क्रयाणकोनो पुडो मूकवानुं लखे छे, आ वस्तु पण निर्णय मांगे छे, धान्यक्षेप, धान्यस्नान आदि प्रसंगा अधिवासनाना अवसरे ज आवे छे, अंजनविधान पछी तो गंध, पुष्प, चन्दनादिथी पूजा अने लाडवा आदि विविध पक्वान्नो मुकवानु ज सर्व कल्पोमां विधान करायेलु छ, प्रतिष्ठा पछी ३६० क्रयाणकोनो पुडो प्रतिमाना हाथमां आपवानुं विधान आ सिवाय बीजा कोइ कल्पमा नथी, एटले ए विषय विचारणीय छे. (१०) आ कल्पमां अंजन विधान पछी निर्वाण कल्याणकनी विधि लखी छे अने ते पछीना देवन्दनमा प्रतिष्ठा देवता 'विसर्जनार्थ' ब थान - | CR बल The न ब For Private & Personal use only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ता ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ वना॥ कायोत्सर्ग करवा जणाब्युं छे जे देखीतीज भूल छे, कंकणमोचन विधि तो दूर रही पण हजी मंगल गाथा पाठ बोली अक्षतांजलिये नथी नाखी ते पहेला प्रतिष्ठा देवतानुं विसर्जन करवानो काउस्सग्ग! केवी प्रत्यक्ष भूल!, बीजा एके एक प्रतिष्ठाकल्पकारे कंकण छोटणविधि कर्या पछी नन्द्यावर्त अने प्रतिष्ठा देवताने विसर्जन करवानुं विधान कर्यु छे, मात्र एक विशालराज शिष्यना प्रतिष्ठाकल्पमां अंजन विधि पछीना चैत्यवन्दनमा 'प्रतिष्ठादेवता- विसर्जनार्थं' एवा शब्दो भूलथी लखाई गया छे, जेनुं अनुसरण आ कल्पमां पण थयु छे. पण वि.शि.कल्पमां ते आगे जतां आ भूलनो स्फोट थइ गयो छे, तेमा आगल उपर आपेल कंकण मोचन विधिमां प्रतिष्ठा देवतार्नु विसर्जन करवामां आव्युं छे, एथी ज खुल्लु जणाइ आवे छे के पूर्व कायोत्सर्ग प्रसंगे जे 'विसर्जनार्थ' शब्द आब्यो छे ते प्रामादिक छे अने ए प्रमाद 'कल्पकार' नो नहि पण प्रतिलेखकनो ज होई शके, प्रतिष्ठाकल्पकारे पोते कंकण मोचन प्रसंगे ज नन्दावर्त अने प्रतिष्ठा देवता विसर्जनार्थ काउस्सग्ग करवानु लख्युं छे, पण आठमा आधुनिक प्रतिष्ठाकल्प लेखकने आ भूल प्रतिलेखकनी छे आ वात समजवामां न आवी तेथी ते भूल पोताना प्रतिष्ठाकल्पमा विधिरुपे मानी लीधी, ए ज कारण छे के एमणे कंकणमोचन विधि ज लखी नथी, मात्र नन्द्यावर्त अने प्रतिष्ठा देवतामा विसर्जन मंत्रोद्वारा तेमनुं विसर्जन करी दीधुं छे अने अंते कंकणमाचननो आदेश मात्र को छे, विधि के मंत्रादि कंइ लख्युं नथी, ज्यारे बीजा प्रतिष्ठाकल्पोमा प्रथम विधि पूर्वक कंकणमोचन कर्या पछी नंद्यावर्त-प्रतिष्ठादेवतार्नु विसर्जन करवानुं विधान छे अने छेवटे अष्टोत्तरशत जलकलशोथी प्रतिमानो अभिषेक करवानुं विधान पण घणा प्रतिष्ठाकल्पोमा मळे उपर जणावेल भूल साधारण नथी पण महत्त्वनी छे अने ए जल्दी सुधारची जोइये. (११) आ प्रतिष्ठाकल्पमां पंचकल्याणको विधान उमेरतां केवल विधिनां दिवसोमां ज नहिं पण प्रतिष्ठानी सामग्रीमां पण अनेकगणो ॥ Jan Education International For Private & Personal use only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ | प्रस्तावना ।। ।। २७ ॥ स वधारो थयो छे अने आजनी अंजनशलाका-प्रतिष्ठाओ घणीज खर्चाल थइ गइ छे. दाखलातरीके-बीजा कल्पोनी विधि प्रमाणे अंजनशलाकावाली | प्रतिष्ठामा १ काच, १ चांदीनी वाटका, १ सोनानी शली, १ दीपक, १ चमरनी जोड इत्यादि बहुज परिमित सामग्रीथी काम लेवानुं | विधान छे. त्यारे आ कल्याणक विधिवाला कल्पना विधान प्रमाणे ९ काच, २ चांदीनी वाटकी, १ सोनानी सली, १ दीपक ४ दीवी ३ चमरनी जोडो, १ सोनानी वाटकी, १ सोनानी रकेबी, १ सोनानो थाल इत्यादि अनेक उपकरणोमां अने उपकरण संख्यामा वृद्धि थइ छे, खर्च वध्यो छे अने प्रतिष्ठाना प्रसंगो घट्या छ, ५ प्रतिष्ठाना मुख्यतन्त्रवाहकोप्रतिष्ठाकल्पकारोए पोतपोताना कल्पोमा प्रतिष्ठाना मुख्य तंत्रवाहकानुं वर्णन कर्यु छे, जेमां सर्वथी प्राचीन “निर्वाणकलिका" नामनी पोतानी प्रतिष्ठाविधि पद्धतिमा श्रीपादलिप्ताचार्यजी महाराजे १ शिल्पी, २ इन्द्र अने ३ आचार्य नामथी प्रतिष्ठाना मुख्य अधिकारीओ त्रण गणाव्या छे. बीजा प्रतिष्ठाकल्पकारोए मात्र ४ स्नात्रकारो अने ४ औषधि वाटनारी स्त्रिओ- निरुपण कयुं छे. प्रतिष्ठाचार्य तो छे ज पण शिल्पीने अंगे कंइ पण जणाब्यु नथी. निर्वाणकलिकानुं शिल्पी आदिनु वर्णन नीचे प्रमाणे छे(१) शिल्पी___ "तत्राद्यः सर्वावयवरमणीयः क्षान्तिमार्दवार्जवसत्यशौचसम्पन्नः मद्यमांसादिभोगरहितः, कृतज्ञो विनीतः शिल्पी सिद्धान्तवान् विचक्षणः, धृतिमान् विमलात्मा शिल्पीनां प्रधानो जितारिषड्वर्गः कृतकर्मानिराकुल इति ।१।" अर्थ-'ते त्रणमा पहेलो शिल्पी (सूत्रधार-मिस्त्री) सर्वांगसुन्दर, क्षमाशील, नम्र, सरल, सत्यभाषी, शौचसंपन्न, मदिरामांसादि अभक्ष्य ॥ २७॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- अग्रस, नाका " GS ॥ प्रस्तावना ॥ BAR कलिका. खं० २ ॥ ale ना ॥ २८ ॥ खानपाननो त्यागी, कदरदान, विनयी, शिल्पनी क्रियाओमां प्रवीण, शिल्पशास्त्रनो ज्ञाता, चतुर, धीरजवान, निर्मलात्मा, शिल्पी समाजमा अग्रेसर, मोहादि आन्तर छ शत्रुओने जीतनार, स्थापत्यना कामोमा सिद्धहस्त, अने स्थिरबुद्धिवालो होवो जोइये; उपरना लखाणमा शिल्पीने अंगे लखायोला “मद्यमांसादिभोगरहितः" ए शब्दो प्रतिष्ठित मंदिरोना कामोमा मद्यमांस भक्षक शिलावटोने राखनार गृहस्थो अने तेमना सलाहकारक साधुओए लक्षमा राखवा जेवा छे !. (२) इन्द्र इन्द्रनी योग्यता विषे श्रीपादलिप्तसूरिजीए नीचेनुं वर्णन आप्यु छे: “इन्द्रोपि विशिष्टजातिकुलान्वितो युवा कान्तशरीरः, कृतज्ञो रुपलावण्यादिगुणाधारः सकलजननयनानन्दकारी सर्वलक्षणोपेतो देवतागुरुभक्तः सम्यग्रत्नालंकृतः व्यसना संगपरांमुखः, शीलवान् पञ्च अणुव्रतादिगुणयुतो गंभीरः सितदुकूलपरिधानः, कृतचन्दनांगरागो मालतीरचितशेखरः, तारहारविभूषितवक्षस्थलः स्थपतिगुणान्वितश्चेति ।२।" ___अर्थ- 'इन्द पण उत्तम जाति अने कुलवालो, युवावस्थावालो, मनोहर शरीरधारी, कदरदान, रूपलावण्यादि गुणोनो आधार सर्वलोकप्रिय, सर्पशुभलक्षणसंपन्न, देवगुरुभक्त, धर्मश्रद्धाळु, सर्वप्रकारना व्यसनोथी मुक्त, सदाचारी, पंचअणुव्रतादि गुणधारक गंभीर प्रकृतिनो, श्वेतवस्त्रधारी, अंगे चंदनादिना विलेपनवालो, मस्तके मालतीना पुष्पोनी रचनावालो, सुवर्णमयकंकणादि वडे भूषित, हृदयस्थलमा सुन्दरहारे करी शोभित अने स्थापत्यकलानो जाणनार होवो जोईये.' (३) आचार्य प्रतिष्ठाकारक आचार्यनी योग्यतानुं श्री पादलिप्तसूरिजी नीचेना शब्दोमां वर्णन करे छे था || २८ ॥ COMEN Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ वना ॥ का "सूरिश्चार्यदेशसमुत्पन्नः, क्षीणप्रायकर्ममलो, ब्रह्मचर्यादिगुणगणालंकृतः, पञ्चविधाचारयुते राजादीनामद्रोहकारी, श्रुताध्ययनसंपन्नः, I तत्त्वज्ञो, भूमि-गृहवास्तुलक्षणानां ज्ञाता, दीक्षाकर्मणि प्रविणो, निपुणः सूत्रपातादिविज्ञाने, स्रष्टा सर्वतोभद्रादिमण्डलानाम्, असमः प्रभावे, आलस्यवर्जितः, प्रियंवदो, दीनानाथवत्सलः, सरलस्वभावो वा सर्वगुणान्वितश्चेति ।३।" अर्थ- 'अने प्रतिष्ठाचार्य आर्यदेशमा जन्मेल, हलुकर्मा, ब्रह्मचर्यादि गुणगणे करी शोभित, पंचाचारपालक, राजादिकनो अद्रोही, आगमाभ्यासी, तत्त्वज्ञानी, भूमि तथा गृहवास्तुनां लक्षणो जाणनार, दीक्षाविधिमां हुंशियार, सूत्रपातनादिना ज्ञानमां पारंगत, सर्वतोभद्र आदि मंडलोनी रचना करनार, अतुलप्रभावी, अप्रमादी, प्रियभाषी, दीनदुःखीनी दयाकरनार, सरलस्वभावी अने सर्वगुणसंपन्न होवो जोइये.' शिल्पी ईन्द्र अंने आचार्य- वर्णन नि कलिकामां सर्वप्रतिष्ठाकल्पो करतां वधु आप्यु छे, जे उपरथी समझाय छे के पादलिप्तसूरिना | मनमां ए 'वस्तु' चोक्कसपणे बेठेली हती के 'प्रतिष्ठा' मां जो कोइ पण प्रभाव-उत्पन्न करनार होय तो उक्त शिल्पी आदिनी त्रिपुटी ज | छे, ए त्रिपुटी जेटले अंशे गुणाधिक हशे तेटले अंशे 'प्रतिष्ठित' बिम्बमां अधिक प्रभाव-कला उत्पन्न थशे. इन्द्रना विशेषणो उपरथी जणाय छे के तेवो 'इन्द्र' हजारोमांथी कोइ एक खोली कढातो हशे, आजनी जेम खर्च करनारने ते समये इन्द्रपद मलबुं दुर्लभ ज हशे. प्रतिष्ठाचार्यने अंगे पादलिप्ताचार्ये करेल वर्णन अने खास करीने "भूमि-गृहवास्तुलक्षणानां ज्ञाता, निपुण, सूत्रपातादिविज्ञाने, स्रष्टा सर्वतोभद्रादिमण्डलानाम्।" आ विशेषणो आपणुं विशेष ध्यान खेंचनारां छे. अने ते एम जणावे छे के प्रतिष्ठा करनार आचार्य ते सर्व साधारण 'आचार्य' नामधारी व्यक्ति नहिं पण उक्त विशेषणविशिष्ट होय ते ज 'प्रतिष्ठाचार्य' थवाने योग्य बने छ, पछी भलेने ते आचार्यपदस्थ | होय के उपाध्याय अथवा सामान्य साधु होय पण उक्त विशेषणविशिष्ट होय तो ते 'प्रतिष्ठाचार्य' ज छे, प्रतिष्ठाचार्यमां 'पद' करतां ON था dip श S CN था भ था ॥ २९ ॥ For Private & Personal use only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ता ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ बना ॥ योग्यतानुं महत्त्व छ, ए ज कारणे केटलाक प्रतिष्ठाकल्पकारोए आचार्यने 'प्रतिष्ठाचार्य' अथवा 'प्रतिष्ठागुरु' ए नामथी ज कल्पोमां संबोध्या छे. श्री वर्धमानसूरिए तो पोताना प्रतिष्ठाकल्पमा ए वातनुं स्पष्टीकरण ज करी दीधुं छे, कहुं छे. "आचार्यैः पाठकैश्चैव, साधुभिनिसक्रियैः । जैनविप्रैः क्षुल्लकैश्च, प्रतिष्ठा क्रियतेऽर्हतः ॥१॥ अर्थात् 'आचार्यो, उपाध्यायो, ज्ञानक्रियावान् साधुओ, जैनब्राह्मणो अने क्षुल्लको द्वारा आर्हती प्रतिष्ठा कराय छे.' पन्यासो, गणिओने हाथे प्रतिष्ठित थयेली सेंकडो प्राचीन प्रतिमाओ आजे पण उपलब्ध थाय छे, आधी पण निर्विवादपणे सिद्ध थाय छे के 'आचार्य ज अंजनशलाका प्रतिष्ठा करावी शके' आवा प्रकारनी मान्यता पूर्वकालमा न हती, आजे पण गीतार्थो तो आवी मान्यता धरावता नथी अने अगीतार्थो के अजाण माणसोना कथननु कंइ पण प्रामाण्य होतुं नथी. निर्वाणकलिकाना समय सुधी प्रतिष्ठाकार्यमां शिल्पी, इन्द्र अने आचार्यनी ज प्रधानता हती, पण ते पछीना समयमां शिल्पीयूँ | महत्त्व कंडक घटी गयुं छे, प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाना प्रथमाभिषेकनो अधिकार पूर्वे शिल्पीनो गणातो हतो ते कालान्तरे उडी गयो, पूर्वे शिल्पीने प्रथम सत्कारीने पछी प्रतिष्ठा कराती हती ते वस्तु पण बदलीने प्रतिष्ठा पछी शिल्पीनो सत्कार करवानु राख्यु, अने इन्द्रनो अधिकार ते जाणे कदी हतो ज नहि, एम भूलाइ गयो अने तेना स्थाने ४ स्नात्रकारोनियुक्त थया, नं० २ थी ७ मा सुधीना कोइपण प्रतिष्ठाकल्पमा | इन्द्रनो उल्लेख नथी, ज्यां ज्यां स्नात्रकारो ज दृष्टिगोचर थाय छे, अने तेओ ज प्रतिष्ठाना सर्वकामोमा आगल पडतो भाग ले छे. छेक ८ नंबरना कल्पमां पाछो इन्द्र हाजर थाय छे, पण आ वखते इन्द्रना हाथमां ते सत्ता रही नथी के जे पूर्वे हती, आ बखतनो इन्द्र | मर्यादित सत्तावालो अने स्नात्रकारोनो सहकार साधीने काम करनारो कह्यो छे. E ॥३०॥ Jan Education Intematon For Private & Personal use only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-1 कलिका. खं० २॥ आम प्रतिष्ठाविधिकार्य माटे प्रथम ३, मध्यकालमा ५ अने छेल्ले सत्तरमा सैकाथी ६ कार्याधिकारियो नियुक्त थता नजरे पड़े छे. IN (४) स्नात्रकारो(४) ।। प्रस्ताम निर्वाण-कलिकाना निर्माण समयमा स्नात्रकारोनुं बहु महत्त्व न हतुं, ते वखते प्रतिष्ठाचार्य घणां खरां कार्यो पोते जाते करी लेता | वना॥ अने गृहस्थोचित विधानो इन्द्र पासे करावी लेता, ज्यां एकथी अधिक गृहस्थोनी आवश्यकता पडती त्यारे ज स्नात्रकारो याद कराता हता, ए ज कारण छे के श्री पादलिप्तसूरिजीए ‘इन्द्र'नुं आटलं विस्तृतवर्णन आप्युं छे, छतां स्नात्रकारोने अंगे कंइ ज लख्युं नथी. श्री चन्द्रसूरिजीए पोतानी प्रतिष्ठापद्धतिमा स्नात्रकारोनां लक्षणो नीचे प्रमाणे बतान्यां छ 'स्नपनकाराश्च समुद्राः सकंकणा अक्षतांगा दक्षा अक्षतेन्द्रियाः कृतकवचरक्षा अखण्डितोज्ज्वलवेषा उपोषिता धर्मबहुमानिनः कुलजाश्चत्वारः करणीयाः।" अर्थ- 'स्नपनकारो मुद्रिका कंकण सहित, अक्षतशरीर, प्रवीण, अखण्डेन्द्रिय, मंत्रकवचथीरक्षित, अखण्ड अने उज्ज्वल वेषधारी, | उपवासी, धर्मनुं बहुमान करनारा, कुलवान एवा ४ करवा.' आचार्य जिनप्रभसूरिए पण पोतानी प्रतिष्ठा विधिमां स्नात्रकारोनी योग्यताना विषयमा अक्षरशः उपरनुं ज वर्णन आप्यु छे एटले | अहीं पनुरूक्ति करनानी आवश्यकता नथी. श्रीवर्धमानसूरिए पोताना कल्पमा स्नात्रकारोनी योग्यताविषयक वर्णन नीचेना शब्दोमा आप्यु छ “चतुर्णां स्नपनकाराणामुभयकुलविशुद्धानामखण्डितांगनां, नीरोगाणां, सौम्यानां, दक्षाणामधीतस्नपन विधीनां, कृतापवासानां प्रगुणीकरणम् ।" ॥३१ Jain Education inte For Private Personal use only anaw.jainelibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ता || कल्याणकलिका. खं. २॥ बना॥ ॥ ३२ ॥ का अर्थ- 'जेमनां बने कुलो (मातानुं अने पितानु) शुद्ध होय एवा तथा अखंडित अने नीरोगीशरीरवाला, सौम्यस्वभावी, विचक्षण, I स्नात्रविधिना अभ्यासी अने उपवासी एवा ४ स्नात्रकारो तैयार करवा.' गुणरत्नसूरीजी स्नात्रकारोनी योग्यता नीचे प्रमाणे लखे छे. "सरत्नमुद्रिकाकंकणसहिता अक्षतांगा अक्षतेन्द्रिया दक्षा अखण्डोल्बण वेषा धर्मवन्त उपोषितास्तदिन ब्रह्मचारिणः कुलीनाः चत्वारोऽधिका वा स्नात्रकाराः कर्तव्याः।" गुणरत्नसूरिजीना उक्त लखाणमा एमना पहेलाना कल्पकारोना लेखोथी बहुभिन्नता नथी, मात्र त्रण बातोमां थोडोक फरक छ, एमणे 'मुद्रिका'ने 'सरत्न' ए विशेषण लगाडयुं छे, वेषने 'उज्ज्वल' ने बदले 'उल्बण' ए विशेषण जोडयुं छे अने स्नात्रकारोने 'तद्दिनबह्मचारिणः' एटले 'ते दिवसे ब्रह्मचर्य पालनार' ए विशेषण वधारानु लगाडयुं छे, बीजो कंइ भेद नथी. विशालराजशिष्ये पण स्नात्रकारोनुं लक्षण पूर्वोक्त प्रकारे ज बांध्यु छे, मात्र 'जघन्यतोऽपि ८ दिन ब्रह्मचारिणः" अने "दयावन्तः" अर्थात् "ओछामां ओछु ८ दिवस सुधी ब्रह्मचर्य राखनार" अने 'दयावान्' ए बे विशेषणो वधार्यां छे. नं. ७ वाला प्रतिष्ठा कल्पलेखके स्नात्रकारोना वर्णनमां श्रीचन्द्र अने जिनप्रभसूरिना शब्दे शब्दनो अनुवाद आप्यो छे. नं. ८ वाला प्रतिष्ठाकल्पमा एना लेखके स्नात्रकारोनी योग्यताने अंगे कंइ पण लख्यु नथी, श्रीपादलिप्ताचार्ये जेम एक इन्द्रनी योग्यता बतावी छे, तेम आमां 'प्रतिष्ठाकारक' श्रावकनी योग्यतानो एक श्लोकमा उल्लेख कर्यो छे, जे नीचे प्रमाणे छे “विनीतो बुद्धिमान् प्रीतो, न्यायोपात्तधनो महान् । शीलादिगुणसंपन्नः, श्राद्धोऽत्र संप्रशस्यते ॥२॥" अर्थात् 'विनयवान्, बुद्धिशाली, लोकप्रिय, न्यायोपार्जित धनसंपन्न, शीलादिगुणयुक्त एवो श्रावक प्रतिष्ठाधिकारमा प्रशंसनीय छे.' | ॥ ३२ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । (५) औषधि बांटनारी अने पुंखणां करनारी स्त्रियो ___ अभिषेकोनी औषधियो बांटवा अने पुंखणा करवा माटे पण प्रतिष्ठा माटे पण प्रतिष्ठा कल्पकारोए विशेष योग्यतावाली स्त्रियोर्नु ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ विधान कयु छे. ॥ प्रस्तावना॥ ॥ ३३ ॥ GA निर्वाणकलिकामां आचार्य श्रीपादलिप्तसूरिजीए ए विषयमां नीचे प्रमाणे उल्लेख कर्यो छे.. "तदनुरूपयौवनलावण्यवत्यो रुचिरोदारवेषा अविधवाः सुकुमारिका- गुडपिण्डपिहितमुखान् चतुरः कुम्भान् कोणेषु संस्थाप्य कांस्यापात्रिविनिहितदूर्वादध्यक्षततर्कुकाधुपकरणसमन्विताः सुवर्णादिदान पुरस्सरमष्टौ चतस्रो वा नार्यो रक्तसूत्रेण स्पृशेयुः । " । ___ अर्थ- ते पछी रूप यौवन लावण्ये करी युक्त सुन्दर शणगार सजेली एवी ८ अथवा ४ सधवा स्त्रियो सुहाली अने गुडपिंड जेमना मुख उपर राखेल छे एवा ४ कलशो खुणाओमां थापीने कांसीना पात्रमा ध्रो, दहि, अक्षत, त्राक आदि उपकरणो लइने सुवर्णदानपूर्वक रक्तसूत्रथी स्पर्श करे ! पादलिप्तसूरिना उक्त वर्णनथी ए फलित थाय छे के भगवानने पुखणां करनारी स्त्रीयो कुरूपा, वृद्धा, निस्तेज अने घृणित वेष | पहेरेली न होवी जोइये, पण प्रभावोत्पादक होवी जोइये. औषधिवर्तन सियोना हाथे करावq के केम ? ए विषयमा पादलिप्तसूरिजीए कंड पण सूचव्यु नथी. श्रीचन्द्रसूरिजी पोतानी प्रतिष्ठाविधिमा आ स्त्रियोना विषयमां नीचेना शब्दोमा वर्णन करे छे. "तत्रैव मङ्गलाचारपूर्वकमविधवाभिश्चतुःप्रभृतिभिः प्रधानोज्ज्वलनेपथ्या- भरणाभिर्विशुद्धशीलाभिः सकंकणहस्ताभिर्नारीभिः पञ्चरत्नकषाय- मांगल्यमृत्तिकाऽष्टवर्गसर्वोषध्यादीनां वर्तनं कारणीय क्रमेण "। | For Private & Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. । प्रस्ताबना॥ खं० २॥ अर्थ- 'ते ज वखते (स्नात्रकारोने तैयार करती वखते) मंगलाचार पूर्वक श्रेष्ठ वस्त्राभरणोथी शोभती शुद्धशीलवन्ती हाथे कंकण पहेरेली ४ आदि संख्यावाली सोहागण स्त्रियोना हाथे पञ्चरत्न, कषायछाल, मंगलमाटी अष्टवर्ग सर्वौषधि आदि अनुक्रमे वटावबां १ जिनप्रभसूरिजी पोतानी प्रतिष्ठा विधिमा औषधि बाटनारी स्त्रियोने अंगे "जीवत्पितृमातृ-श्वशुरादिभिः" अर्थात्-जेमना माता पिता | सासु ससरो जीवन्त होय" ए विशेषण वधार्यु छे, बाकी श्रीचन्द्रसूरिजीना ज शब्दो उतार्या छे. ___ वर्धमानसूरिजी पोताना प्रतिष्ठाकल्पमा औषधि बांटनारी स्त्रियोना संबन्धमां नीचेनां विशेषणो वापरे छे. "चतसृणां चौषधिपेषणकारिणीनामुभयकुलविशुद्धानां सपुत्रभर्तृकाणां सतीनामखण्डितांगीनां दक्षाणां शुचीनां सचेतनानां प्रगुणीकरणम् ।” ___अर्थ- 'जेमनां बंने कुलो शुद्ध होय, जेमने पति तथा पुत्र विद्यमान होय, जेओ पतिव्रता, अखंडित शरीरवाली, चतुर, पवित्र अने सावधान होय एवी ४ स्त्रियो औषधि पीसवा माटे तैयार करवी.' गुणरत्नसूरिजी औषधिवाटनारी स्त्रियोने अंगे आम लखे छ “अथ जीवत् श्वश्रूश्वशुरकमातृपितृपतिकाश्चतस्रः कुलीनाः प्रधानवेषाभरणाः सुशीलाः पवित्राश्च समाकार्याः सर्वाणि स्नात्रौषधानि वर्तनीयानि तासां च प्रत्येकं कर्पट-नालिकेर-सुखभक्षिकार्पणाद्युपचारः कार्यः, कुंकुम-कुसुम-तांबूलपूर्वकं, ताभिश्च यथाशक्तिदेवाय परिधापनिकादिभक्तिः कार्या ।" ____ अर्थ- 'जेमनां सासू ससरा माता पिता जीवित होय एवी ४ कुलवन्ती सुन्दरवेषभूषावाली सुशील अने पवित्र स्त्रियोने बोलावबी, स्नात्रनां सर्व औषधो तेमना हाथे वंटाववां अने ते प्रत्येकनो कापड, नालियेर, सुखडी आदिथी सत्कार करचो. कुंकुम, पुष्प, तंबोल ॥ ३४ ।। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ता ।। कल्याणकलिका, खं. २ ॥ वना ॥ आपवां. अने तेओए पण शक्ति मुजब पहेरामणी आदि आपीने भक्ति करवी.' विशालराजशिष्ये पोताना कल्पमां नं० ३१४ कल्पोना वर्णननो उतारो कर्यो छे. कल्प नं. ७ मां स्त्रियोने अंगे कल्प नं. २ नो शब्दार्थ लख्यो छे. नं. ८ ना कल्पमा पुखणाना प्रसंगोमां स्त्रियोने उल्लेख आप्या कर्यो छे पण तेमनी योग्यताने अंगे कंइ पण लखायुं नथी. । स्नात्रकारो तेमज पुंखनारी स्त्रियोने अंगे जे योग्यताना वर्णनो कल्पकारोए कयाँ छे तेमां आवतां 'अक्षतांग, अक्षतेन्द्रिय, कुलीन, धर्मबहुमानी, उपवासी' आदि विशेषणो आजना प्रतिष्ठा तंत्रवाहकोए ध्यानमा राखवा जेवां छे, ए विशेषणोने अंगे घणा प्रतिष्ठाकल्पकारो 'एकमत' छे. ६ आधुनिक प्रतिष्ठाविधानोना आधारग्रन्थोप्रतिष्ठाओ पूर्वे थती हता अने वर्तमान कालमां पण थाय छे, प्रतिष्ठासंबन्धी क्रियाविधानो पूर्वकालमां थतां हतां अने आजे थाय | छे, पण आ कार्यो करवा माटे कोइ पण प्रामाणिक ग्रन्थनो आधार ते होवो ज जोइये, पण आजे कोइ खास ग्रन्थने ज आधारे क्रिया विधानो थतां नथी. जलयात्राविधिनो आधार एक छे, तो कुंभस्थापन विधिनो आधार बीजो, ग्रह दिक्पालोनुं पूजन कोइ ग्रन्थना आधारे कराय छे तो प्रतिष्ठाविधि कोइ त्रीजा ज ग्रन्थना आधारे कराय छे. आ बधी अव्यवस्थानु खरं कारण एक एवा प्रामाणिक अने सर्वांग संपन्न ए विषयना ग्रन्थनो अभाव गणी शकाय. आजकालनी अंजनप्रतिष्ठाओ, बिंबप्रवेशविधिओ अने अष्टोत्तरी आदि महापूजाओना आधार ग्रन्थो ४ छे. (१) उपाध्याय सकलचंद्रजीनो "प्रतिष्ठाकल्प" (२) श्रीरत्नशेखरसूरि विरचित गणाती "जलयात्रादि विधि" (३) यति कान्तिसागर ॥ ३५ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। प्रस्तावना ।। SA काल ।। ३६ ।। a 5 म संकलित “बिम्ब प्रवेशविधि" अने (४) अष्टोत्तर स्नात्रपूजा विधि उपर्युक्त चार ग्रन्थो पैकीनो एक पण ग्रन्थ सर्वांगपूर्ण अने प्रामाणिक मानीने ते प्रमाणे विधिविधान करवानो निर्णय कराय एवं नथी. (१) सकलचंद्रजी कृत 'प्रतिष्ठाकल्प' केटलो बधो अव्यवस्थित छे ए संबन्धमां उपर बहु कहेवाइ गयुं छे (२) 'जलयात्रादिविधि' आ ग्रन्थना मुद्रित पुस्तक उपर रचनार तरीके श्रीरत्नशेखरसूरिजीनुं नाम छपायेल छे. परन्तु आ ग्रंथ श्रीरत्नशेखरसूरि- रचित होवामा कंइ ज प्रमाण नथी, एथी विपरीत आ ग्रन्थने अर्वाचीन सिद्ध करनारां केटलांक कारणो आ ग्रन्थनी अंदरथी जमली आवे छे. जे नीचे प्रमाणे छे. (१) आ ग्रन्थोक्त 'जलयात्राविधिमां "क्षीरोदधे स्वयंभूश्चा" इत्यादि श्लोको दृष्टिगोचर थाय छे जे श्रीरत्नशेखरसूरिना समयमां तो शुं पण सं०१६८० सुधीमां लखायेल कोइ 'जलयात्राविधि' मा नथी. (२) आ ग्रन्थमांनी कुंभस्थापन विधि अने बिंबप्रवेशविधिओ अढारमा सैका पहेलांनी नथी. (३) यक्षकर्दमथी ग्रहो दिक्पालो अने अष्टमंगलोना पाटलाओगें आलेखनविधान आमां सूचव्युं छे ते श्रीसकलचंद्रजीना समय पहेलानु नथी. (४) ग्रहादिना पाटलाओ उपरांत ३० नाना पाटला तैयार करवानुं विधान कर्यु छे ते अढारमा सैका पहेलांनी कोइ पण अष्टोत्तरी स्नात्र विधिमा जोवामां आवतुं नथी. (५) जलयात्रामां जल काढती वखते अंकुश, मत्स्य, कच्छप मुद्राओ देखाडवानुं आनुं विधान सकलचंद्रजीनी पहेलांनुं नथी. च | ॥ ३६ ॥ सभ यो Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३७ ।। (६) धूप तरीके आमां अगरबत्तीनो उल्लेख मले छे जे आ विधिग्रन्थनी अर्वाचीनता साबित करे छे. (७) मंडप पूजनमा 'घंटाकरण' ना पाठथी सुखडी मंत्रीने बहेंचवानुं विधान पण आ ग्रन्थनी अर्वाचीनता प्रमाणित करे छे. (८) "परमेष्ठिनमस्कारं” इत्यादि स्तोत्रवडे 'सकलीकरण' ना विधानथी पण ए ग्रन्थ नवीन सिद्ध थाय छे, कारण के रत्नशेखरसूरिनो समय पंदरमा सैकानो उत्तरार्ध तथा सोलमा सैकानो प्रथम चरण छे ज्यारे आ स्तोत्रनुं निर्माण सत्तरमा सैकामां थयेलुं छे. (९) आमां थयेलो ‘“श्राद्धविधि" नो नामोल्लेख पण ए ग्रन्थना श्रीरत्नशेखरसूरिकृत नथी ए मान्यतानी ज पुष्टि करे छे, केमके श्राद्धविधि रत्नशेखरसूरिनी ज कृति छे जो प्रकृत पुस्तक पण श्राद्धविधिकारनी ज कृति होय तो तेमां प्रमाण रूपे उल्लेख थाय नहि, आ ग्रन्थमांनु जलयात्राविधि, ग्रह- दिक्पालपूजनविधि, बिंबप्रवेशविधि, आदि विधिओ “बिंबप्रवेशविधि ” संदर्भनो ज उतारो छे एटले बिंबप्रवेशविधिथी पण अर्वाचीन संग्रह छे. (३) ‘“बिंम्बप्रवेशविधि’” आ ग्रन्थ सं० १८१४ नी सालमां पूर्णिमा पक्षना श्रीपूज्य श्रीपुण्यसागरसूरिना आज्ञावर्ति पन्यास यतिश्री सुज्ञानसागरना शिष्य यति श्रीकान्तिसागरे लखेलो छे अने हमणां थोडाक वर्षो उपर अमदावादना एक मास्तरे छपावेल पण छे. नाम प्रमाणे आमां मुख्य वस्तु देहरामां प्रतिमा स्थापन विधि छे, अने जलयात्रा, कुंभ स्थापन आदिनी विधिओ मूलविधि विधिनां ज अंगभूत प्रकरणो छे, आमांनुं अभिषेक प्रकरण, आचार दिनकरमांथी उमेर्यु छे. जे अनावश्यक छे. आ ग्रन्थना संदर्भक यति कांतिसागर सारा विद्वान् के ए विषयना अनुभवी होय एम आ ग्रन्थ उपरथी जणातुं नथी. मंगलाचरण तथा प्रशस्तिना लोकोमा छन्दोभंग अने व्याकरण संबन्धी अशुद्धिओ जोतां एमनामां संस्कृत ज्ञाननी खामी जणाइ आवे छे अने प्रतिष्ठाविधिने विषे पण मनुं जाणपणुं तद्दन काचुं ज हतुं एम एमना आ संदर्भ उपरथी जणाइ आवे छे. ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ३७ । Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्ताबना॥ ॥ ३८ ॥ बिम्बप्रवेश विधिमा एमणे जे अनावश्यक उमेरो कर्यो छे तेमां केटलुक तो केवल यतिपणाना आडंबरनु ज प्रदर्शन कयु छे. अमारी पासे १५मा सैकाथी मांडीने १८मा सैका सुधीमां लखायेली ७ बिंबप्रवेश विधिओ छे पण ते पैकीना कोइ विधिमा १६ अने ४ पात्रो मूकबानो के प्रतिष्ठाने पहेले दिवसे अगासीमा जइ धूप उखेबवान के नोकारवाली गणबा- कांइ सूचन मात्र पण नथी परन्तु प्रस्तुत विधिमां ए बधो आडंबर एना लखनारे वधार्यो एटले आडंबरप्रिविधिकारोए आ संदर्भने वधावी लीधो, बधा प्रतिष्ठाचार्यो अने स्नात्रकारो आ विधान उपर राची गया एटले प्राचीन समचना ए विषयनां संक्षिप्त अने मौलिक विधानो ज्ञानभंडारोमा ज पडी रह्यां तेमनां विधानो व्यवहारमाथी उठी गयां, जेम उ० सकल- चंद्रना प्रतिष्ठाकल्पे लोकमनोरंजनद्वारा पोतानो प्रचार वधार्यो अने सारा सारा प्रतिष्ठाकल्पोने प्रचारमाथी बातल कर्या अने पोतानो अड्डो जमान्यो तेज रीते कान्तिसागरना यतिशाही आडंबरे बीजी बिंब प्रवेशविधिओने पाछल धकेली पोतानो पगदंडो जमावी लीधो आजना बधा प्रतिष्ठाचार्यों अने विधिकारो ए विधिने ज ओलखे एटले प्राचीन बिंबप्रवेशविधिओनो कंड पण उपयोग थशे नहिं एम जाणी अमोए पण आ विस्तृत बिंबप्रवेशविधिनु अनुसरण कयु छ, कलिकामां जे नानी ३ बिंब प्रवेश विधिओ आपी छे ते घणी जुनी छे. ए प्रमाणे बिंब प्रवेशविधि करावाय तो घणा ज ओछा खर्चे काम थइ शके तेम छे. बिंबप्रवेश विधिमां एक बीजी भूलप्रचलितबिंबप्रवेशविधि छपाया पछी थोडाक समयमा अमारी पासे आवेल, अमोए तेना प्रकरणोनां शीर्षको जोयां तो एक शीर्षक, "नवीनप्रासादे नवीनप्रतिमास्थापन" ए, जोयुं, अमारा माटे ए वस्तु नवी हती, तरत ते प्रकरण बांच्युं तो आश्चर्यसाथे दुःख थयु के आ लेखकनी एक अज्ञान जनित भूल हती, वास्तवमां आ प्रकरण नव्यप्रासादना निर्माणमां करातुं 'कूर्मस्थापन' प्रकरण हतुं, गुणरत्नसूरि, विशालराजशिष्य आदिना प्रतिष्ठाकल्पोमां आ वस्तु स्पष्टरूपे लखेली छे छतां तेने न समजीने कांतिसागरे आ छेबर्डी वाल्यो छे एमां ॥ ३८ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ॥ ३९ ॥ कशो संदेह नथी. ‘बिंबप्रवेशविधि' कारनी आवी भूल जाण्या पछी अमारी श्रद्धा ए पुस्तक उपरथी उठी गइ अने निर्णय कर्यो के आवा अनधिकारीने हाथे रचायेल आ संदर्भ करतां ते नवी विधि तैयार करवी वधु उपयोगी थइ पडशे अने विधिकारोने आवी भूलोखी बचावशे. (४) अष्टोत्तरी - स्नात्रविधि बिंबप्रवेशविधि उपरांत श्री कांतिसागरे अष्टोत्तरी स्नात्रविधि उपर पण पोतानी कृति तरीकेनी महोर छाप मारी छे जे तेना निम्नोक्त मंगलाचरणना श्लोक उपरथी जाणी शकाय छे " प्रणम्य पार्श्वपादाब्जं, ज्ञानकान्तिप्रदायिनम् । वक्ष्ये शताष्टभेदेन विधिना स्नात्रमुत्तमम् ||१|| " अष्टोत्तरीना उपर्युक्त श्लोकमां श्री कान्तिसागर एवा ढंगधी बोले छे के जाणे पोते कोइ नवी कृतिनी रचना करता होय, वास्तवमां श्रीकातिसागरे प्राचीन अष्टोत्तरी स्नात्रविधिमा अनावश्यक वस्तुओनो बधारो अने निरुपयोगी प्रकरणोने उमेरो करवा उपरांत नवुं कंड नथी आ हकीकत आगल उपर स्पष्ट थशे अष्टोत्तरीनी प्रशस्तिमां श्रीकांतिसागर रचनासमय, पोताना गुरु तथा गच्छपति श्रीपूज्य आचार्यनो आ प्रमाणे परिचय आपे छे “संवद् युगेन्दुनागेन्दु (१८१४) प्रमिते माधवोज्ज्वले । पक्षे हि कविपञ्चम्यां दर्भावत्यां पुरि स्थितः ||१|| पुण्यानुबन्धिपुण्याढ्य-पुण्यादिसिन्धुसूरीणाम् । राज्ये प्राज्ञसुज्ञानादि सागराणां हि शिष्यकः ||२|| तेनेदं (नायं) मन्दमतिना, समुच्चितोऽष्टोत्तरीस्नात्रविधिमार्गः । ज्ञात्वा गुरुतोऽत्र ययदशुद्धं शोध्यं हि बुद्धिवरैः ।।३।। बिंबप्रवेशविधिमां पण एज त्रण पद्यो प्रशस्तिरूपे लखेल छे, मात्र तृतीय पद्यना तृतीयचरणमां "समुच्चितो जिनप्रवेश विधिमार्गः। " ए पाठान्तर करेल छे, बने निबंन्धोना मंगलाचरणमां निबंधकारे " ज्ञान - कान्ति” शब्दोनो उल्लेख करी गुरु तथा पोताना नाम . ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ३९ ।। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। प्रस्ताबना ॥ शनि सूचन कयुं छे, प्रशस्तिमा ए बंने प्रबन्धो सं- १८१४ ना वैशाख शुदि ५ शुक्रवारे डभोइमा रहेल सुज्ञानसागरना शिष्ये (कान्तिसागरे) | ॥ कल्याण- बिम्बप्रवेशविधिनो मार्ग अने अष्टोत्तरी स्नात्रविधिनो मार्ग समुच्चित कर्यो एम जणाव्युं छे पण मार्ग- प्रदर्शन थाय नहिं के 'समुच्चय'. कलिका. छतां श्रीकान्तिसागर मार्गनो समुच्चय करे छे ए पण नवी हकीकत छे. श्री कांतिसागरे आ अष्टोत्तरीस्नात्रविधिमा समानविषयक केटला बधो निरर्थक वधारो कर्यो छे तेनो खरो ख्याल तो प्राचीन अष्टोत्तरीनुं | स्वरूप अने तेना सामाननु लिस्ट जोवाथी ज आवी शके, एटला वास्ते अमोए कलिकामा प्राचीन अने कान्तिसागरे तैयार करेल अर्वाचीन अष्टोत्तरी दिग्दर्शन करावी जुनी नवी बंने अष्टोत्तरीनी सामान सूचीओ आपी छे के जे उपरथी वाचक गण तुलना करी शके, अष्टोत्तरीनी प्राचीनविधिमा अष्टाह्निकोत्सव, जलयात्रा, कुंभस्थापन, अष्टमंगलस्थापन, स्मरणपाठ आदिनी जरूरत नथी, ग्रहदिक्पालोनुं संक्षिप्त पूजन छे, पण ग्रहोनी मालाओ नथी, १०८ नालनो कलश नथी, चोखंडा २ रूपैया तथा १९ त्रांबाना अधेलाओ सिवाय नाणुं जोइतुं नथी, २ अखंड वस्त्रो अने १०) गज रंगीन वस्त्रना १०) खंडे सूत्राउ सिवाय वखनी आवश्यकता होती नथी. बीजां उपकरणो पण घणां ज ओछां अने अल्पमूल्य छे. सत्तरमा सैकाना पूर्वार्धमां लखायेल आ अष्टोत्तरीनी प्रति अमारी पासे छे, पण एथी जुनी प्रति क्याइ अमोए जोइ नथी. आचारदिनकरान्तर्गत प्रतिष्ठाविधिमां महापूजा मले छे. ए ज प्रमाणे पञ्चामृतमहास्नात्रना नामथी ओळखाती पूजाओ अन्यत्र पण जोवाय छे. पण अष्टोत्तरी स्नात्रनामथी ओलखाती आ पूजानी साथे ते महापूजाओनो कशो ज संबन्ध नथी. उपलब्ध प्रतिष्ठाकल्पोमां आवी अष्टोत्तरी स्नात्रपूजा क्यांइ मलती नथी, आथी जणाय छे के 'अष्टोत्तरी' पूजा बहु प्राचीन नथी, of विक्रमना पंदरमा अथवा सोलमा शतकमा आनुं निर्माण थयु हशे एवं अमारु अनुमान छे, अने एथी ज सोलमा सैका सुधी आमां योल For Private & Personal use only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका, सं० २ ।। 11 82 11 मौलिकता जळवाइ रही छे. आ विधि घणी ज सुगम सुखसाध्य अने अल्पव्यय साध्य छे एज एनी मौलिकतामां प्रमाण छे, ते समये आने भणावनार अने प्रचारक साधुओ त्यागी होवाना कारणे आनी सामग्रीमां स्वार्थने लइने अनुचित वृद्धि कराई नथी, पण कालान्तरे आमां ते विकृति पेसी गइ जे आजे छे. १६३९ अने १८८७ नी बच्चेना २४८ वर्षोमां सामग्रीमां के गतपदार्थोंना परिमाणमां बहु वधारो थयो नथी, अष्टमंगलनी पाटली, १२ पाटला, केलांक वस्त्रो अने केटलांक बीजां सामान्य उपकरणोमां वृद्धि थइ छे अने विधिमा पण केटलोक वधारो थयो छे, प्राचीन विधिने अनुसारे पूर्वे अष्टोत्तर स्नात्र थया पछी प्रतिमाओने शुद्ध जले पखाली अंगलूंछी पूजीने नैवेयादिक धरी आठ थोये देवचंदन करातुं अने ते पछी लघुस्नात्र भणावीने आरती कराती हती, ओगणीशमा सैकानी लखेली स्नात्र विधिओमां स्नात्रना अभिषेको थया पछी प्रतिमाओ साफ करी पूजीने चैत्यवन्दन कर्या पछी स्नात्र भणावी नैवेद्य ढोकवानुं अने बीजीवार देववन्दन करवानुं विधान दाखल थयुं, ए उपरांत बीजो पण साधारण विधिगत फेरफार थयो, छतांये खर्चनी दृष्टिए आमां बहु परिवर्तन थयुं नथी. सं० १८८७ पछी आज सुधीना १२५ वर्षोमां आ पूजामां केटलांये परिवर्तनो थइ गयां, अष्टमंगलनी पाटलीनो पाटलो थयो, वस्त्रोमां यथेच्छ वृद्धि थइ, रूपैया नामथी पूर्वे मात्र बे चोखंडा रूपीया हता तेने बदले आजे रोकडा रूपैया वधीने १५० सुधीनी हदे पहोंच्या प्रति अभिषेके १ रोकडो रूपैयो मूकाय तो ज स्नात्र पूजा सारी थइ गणाय. ग्रह- दिक्पाल - अष्टमंगलना पाटलाओ उपर रूपानाणुं मूकवानुं चालु थयुं, वा थवा लाग्युं, अट्ठाहि उत्सव स्नात्रने अंगे अनिवार्य थयो. ॥ प्रस्ता वना ॥ ॥। ४१ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ॥ प्रस्तावना ।। चा अट्ठाहि महोत्सव, जलयात्रा, कुंभ स्थापना, स्मरणपाठ, अखंडदीप धूप आदि ए बधी वस्तुओए छेल्लां १०० वर्षोमां अष्टोत्तरीनी विधिमा प्रवेशीने आ स्नात्रपूजाने के जे पूर्व सुख साध्य हती ते दुःखसाध्य बनावी दीधी, जे स्नात्रपूजा पूर्वे थोडा खर्चे थोडा समयमां कलिका. | बाला भणावी शकाती हती ते आजे घणा खर्चे घणा श्रमे भणावी शकाय तेवी बनी गइ छे. खं० २॥ ए विषयमा प्रश्न थवो स्वाभाविक छे के लगभग २५० वर्षोमा जे परिवर्तन न थयुं ते छेल्लां १०० वर्षोमां केम थयु ? अने ते पण सामग्रीने ज अंगे ?, इतिहासना जाणनाराओ माटे आनो उत्तर आपवो मुश्केल नथी. ओगणीशमा सैकानुं अन्तिम चरण अने ॥ ४२ ॥ वीसमी शताब्दीनो पूर्वार्ध ए ७५ वर्षनो गालो परिग्रहधारी अने शिथिलाचारनी अन्तिम हदे पहोंचेला श्रीपूज्यो अने यतियोना प्राबल्यनो हतो, आ समय दर्मियान प्रतिष्ठाओ, पूजाओ, उद्यापनो अने बीजां जे काइ महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्यो थतां तेमां विधिकार तरीकेनी मुख्यता श्रीपूज्योनी अथवा तेमना आज्ञाकारी यतिओनी रहेती, सामग्रीनी सूचिओ तेमना हाथे लखाती अने ते सामग्रीनो उपयोग तेमनी इच्छानुसार थतो, घणो खरो औषधोपयोगी सामान तेमना उपाश्रयोमा पहोंची जतो अने पैसा टकाने अंगे पण घणा गोटाला थता छतां तेमने ए विषयमा कोइ पण कंइ कही शकतुं नहि. आवा गोलमालना समयमा विधिओमां सामग्रीगत फेरफारो घणा थइ गया, सामाननी यादिओ लखनाराओए वस्त्रो, सुगंधिओ, मेवाओ, फलो, मिठाइयो अने रोकड द्रव्य विषयक संख्यामां यथेच्छ वधारो कर्यो, सामाननी ते यादिओ पाछलथी विधि पुस्तकोमा दाखल थइ अने ते लिखित पुस्तको उपरथी तेमज ते उपरथी पुस्तक प्रकाशको द्वारा छपायेल पुस्तको उपरथी विधान करावतां शिखेल विधिकार गृहस्थोए ते विधिओ तेम ज तेमां लखेल सामग्री प्रमाणे विधिविधान कराववानी प्रवृत्ति पाडी, वीसमी सदीथी आजे एकवीसमा शताब्दीमा चालतां विकृतविधि-पुस्तकोमा जणावेल सामग्री मेलवीने बधा विधिकारो प्रतिष्ठाओ अने महापूजाओनां विधि-विधानो करावे बाबा Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ताबना ।। |छे, पण आ आधुनिक विधियो केवा विधिकारोने हाथे केवी रीते विकृत थइ छ ए वस्तु जो समजी लेवाय तो उक्त पुस्तकोक्त सामग्रीविषयक । कल्याण- | पोतानो आग्रह अवश्य छोडे ज एमां शंका नथी. कलिका. | अष्टोत्तरी स्नात्रनी समाप्तिमा श्री कांतिसागर लखे छे 'इति श्री अष्टोत्तरी स्नात्रविधिः । अत्र सामाचारी विशेषे कोइ क्रियान्तर घणा छे ते देखी व्यामोह न करवो इहां श्राद्धविधि, प्रतिष्ठाकल्प, जिरण स्नात्र, कल्पसामाचारी प्रमुख ग्रन्थावलोकन करी युक्ति विधि लख्यो छे, कोइ अरिहंत साध्ये क्रियान्तर होय ते साध्य शुभ माटे सफल छे. गणधर सामाचारीमांहि पणि घणा फेर छे पणि साध्य एक माटे सर्व सफल छे. इम सर्वे धर्मकृत्य मांहि जाणवू इहां वली विशेष बीज पल्लव गुरुपरंपराधी जाणवां । " उपरना उल्लेखथी स्पष्ट थाय छे के तत्कालीन प्रचलित अष्टोत्तरीमा करेल विकृतिने अंगे कांतिसागरे पोतानो बचाव कर्यो छे पण | पूर्वाचार्य कृत चार ग्रन्थोमां के जेनो एमणे आधाररूपे निर्देश कर्यो छे ते कोइमां पण अष्टोत्तरी, बीज नथी एटले आ ग्रन्थोनो नामोल्लेख निरर्थक छे अने गणधरोनी सामाचारीमा घणो फेर बतःवीने तो श्री कान्तिसागरे सिद्धान्त विषयक पोताना अज्ञाननो ज परिचय आप्यो | छे, बली आ स्थले बीज पल्लवोनो निर्देश करीने लेखके पोतानु यतिपणुं साबित कर्यु छे, नहिं तो आ प्रसंगे ए उल्लेखनी कंइ ज आवश्यकता . हती नहि, बिंबप्रवेश अने अष्टोत्तरी स्नात्रनी विधिओ के जेना आधारे विधिकारो आजकाल प्रतिष्ठाओ अने अष्टोत्तरी स्नात्र पूजाओ करावे छे ते केवा समयमां केवा पुरुषद्वारा संकलित थइ छे ए वात आजना प्रतिष्ठाचार्यो तथा विधिकारो समजे एवा आशयथी अमारे ए अंगे थोडंक विवेचन करवू पड्युं छे. ७-पूर्वकालीनप्रतिष्ठाओ अने प्रतिष्ठाना फल विषे लोकमानस पूर्वकालीन प्रतिष्ठाओ घणी सादी अने सुख साध्य हती, जिनभवन- कार्य समाप्त थवा आवतुं एटले शुभ समय जोइ प्रतिमा तैयार बा ल ala न का Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केला ॥ कल्याण || प्रस्तावना ॥ कलिका. खं० २ ॥ बहन ॥ ४४ ॥ Saa करावाती अने जिनबिंब तैयार थतुं के दश दिवसनी अंदर ज तेनी प्रतिष्ठा थइने जिनचैत्य साधिष्ठान थइ जतुं, समवाय के गृहस्थ व्यक्ति कोइ एक शासनपति तीर्थंकर विशेषनी प्रतिष्ठा करावतो त्यारे आसपासना गामोमां पण भाग्ये ज तेनी खबर पहोंचती, पण ते क्षेत्रना | उत्सर्पिण्यादि भावी चोवीसे तीर्थंकरोनी प्रतिष्ठा थती त्यारे कंइक विशेष आकर्षक थती अने संधसमुदाय एकत्र थतो अने ज्यारे भरतादि पंदर क्षेत्रना सर्वतीर्थंकरोनी अर्थात् १७० जिननी प्रतिष्ठा थती त्यारे सर्वोत्कृष्ट आकर्षण अने सर्वाधिक संघ समवाय एकत्र थतो हतो आ विषयमा बहुश्रुत आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि कहे छे "निष्पन्नस्यैव खलु, जिनबिंबस्योदिता प्रतिष्ठाशु । दशदिवसाभ्यानतरतः, सा च त्रिविधा समासेन व्यक्त्याख्या खल्वेका, क्षेत्राख्या चापरा महाख्या च । यस्तीर्थकृद्यदा किल, तस्य तदाद्येति समयविदः ॥ ऋषभाद्यानां तु तथा, सर्वेषामेव मध्यमा ज्ञेया । सप्तत्यधिकशतस्य तु, चरमेह महाप्रतिष्ठेति ॥" । आ पद्योनो भावार्थ प्रथमना विवेचनमां कहेवाइ गयो छे. आ त्रणेय प्रकारनी प्रतिष्ठाओ अनुक्रमे १ व्यक्ति प्रतिष्ठा २ क्षेत्रप्रतिष्ठा अने ३ महाप्रतिष्ठा आ नामोथी ओलखाती हती, १ व्यक्ति प्रतिष्ठ कनिष्ठा २ क्षेत्र प्रतिष्ठा मध्यमा अने ३ महाप्रतिष्ठा उत्कृष्टा कहेवाती | a हती, आ कनिष्ठादि संज्ञाओ विधिआश्रित नहिं पण प्रतिमाओनी संख्याने अनुसारे गणाती हती, वर्तमान कालीन प्रतिष्ठाओमां प्रतिमाओने लइने नहिं पण उत्सवनी, जनसंख्यानी तथा उपजनी दृष्टिए प्रतिष्टाओ कनिष्ठ उत्कृष्ट मनाय छे जे यथार्थ नथी. प्रतिष्ठाओने अंगे लोककल्पनाओवर्तमान कालीन मानस एवं बनी गयुं छे के प्रतिष्ठा थया पछी प्रतिष्ठाकारक व्यक्ति अथवा संघनी वा गामनी उन्नती के अवनति जणाय तो ए प्रतिष्ठाना फलरूपे ज गणाय छे पण ए मान्यता यथार्थ नथी, खरी वात तो ए छे के प्रतिष्ठा कार्यना प्रारंभमां थता | Sia 08 sel॥४४॥ For Private & Personal use only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ४५ ।। शुभाशुभ निमित्तो ध्यानमा राखवां अने जो उपराउपरी प्रतिष्ठा कार्यनी प्रवृत्तिमां अशुभ निमित्तो थतां होय तो ते अवसरे प्रतिष्ठा बंध राखी जोइये जेथी अशुभ परिणामनी जबाबदारी प्रतिष्ठा उपर आवे नहिं. १- निमित्त जोवानो मुख्य प्रकार ए छे प्रतिष्ठानुं मुहूर्त जोवराव होय त्यारे स्थानिक ज्योतिषी श्रद्धापात्र होय तो तेने घरे जइने अने गाममां तेवो ज्योतिषी न होय तो बहारगाम कोइ जोषी अथवा श्रद्धापात्र आचार्य साधु वगेरे जाणकार होय तेनी पासे मुहूर्त जोवरावबा जर्बु. गामथी प्रयाण करती बेलाए शकुनो जोवां, जो अप्रार्थित शुभ शकुन थइ जाय तो समजवुं के प्रतिष्ठा धारेला समयमा थइ जशे. २- पण आ शकुनो भविष्यनी उन्नति अवनतिने निश्चितपणे जणावी शकतां नथी, आने माटे मुहूर्त जोनारे तात्कालिक लग्न कुंडली काढीने जोवी, जो कुंडलीमा लग्न, धन, पुत्र, स्त्री, लाभस्थानो बगड्यां न होय अने आठमा स्थानमां कोइ पण वर्जित ग्रह न होय तो जोषीए मुहूर्त आपकुं, जो तात्कालिक पश्नमां लग्ननी व्यवस्था खराब होय तो कही देवूं के 'कोइ बीजा प्रसंगे पूछवा आवजो,' जो पुछनार ज्योतिषीनी सलाह मानीने ते टांणे प्रतिष्ठा बंध राखशे ते तेओ प्रतिष्ठाने दोषनुं निमित्त बनतां बचावशे अने अशुभ उदय मटी गया पछी शुभ निमित्त लब्ध लग्नमां प्रतिष्ठा करावीने अभ्युदयना भागी थशे. ३- प्रतिष्ठाचार्यनुं आत्मबल - जेम शुभाशुभ निमित्तो अभ्युदयानभ्युदयने सूचवे छे तेम प्रतिष्ठाचार्यनुं आत्मबल पण एमां सहकार आपे छे, जेना आचरण शुद्ध होय, जेनुं मन दृढ संकल्प होय अने जनो आत्मा शुभ परिणामी होय तेवा प्रतिष्ठाचार्यना हाथे थयेली प्रतिष्ठा प्रायः शुभ परिणाम लावे छे, एथी विपरीत जे प्रतिष्ठाचार्य आत्म विशुद्धिहीन होय, भग्नहृदयी होय, रोगादिकारणी बडे शारीरिक अने विशेषे करीने मानसिक शक्तिओ खोइ बेठेल होय तेवाना हाथे थयेल प्रतिष्ठा परिणामे अभ्युदयजनक निवडती नथी. ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ४५ ।। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ प्रस्तावना ।। खं० २॥ ॥ ४६ ॥ ४- प्रतिष्ठा थया पछी तरत ज एटले तेज दिवसे कोइ कारणे गाममा अकस्मात् लडाइ झगडो के मारामारी जेवा क्लेशकारी दुनिमित्तो बनी जाय तो ते प्रतिष्ठा अवश्य अवनतिकारिणि बने छे, माटे प्रतिष्ठा करावनार संघे के व्यक्तिए आवा दुर्निमित्तो न बने एनी तकेदारी राखवी जोइये. ५. "श्रेयासि बहु विघ्नानि" ए कथनानुसार प्रतिष्ठा जेवा कल्याणकारी कामोमां विघ्ननाखनाराओ पण होय छे, मंडपमा फोसफरस नाखीने अथवा बीजी रीते मंडप आदिमां आग लगाडीने रंगमां भंग करनाराओ होय छे, माटे प्रतिष्ठाचार्यादि अधिकारी वर्ग आबी घटनाओ बनवा न पामे एवो बंदोबस्त अवश्य राखवो जोइये. प्रतिष्ठाचार्य अने स्नात्रकारोनो मुख्य गुण___आजे घणाक स्नात्रकारोमा अने केटलाक प्रतिष्ठाचार्योमां पण प्रतिष्ठाने अंगे कंइक चमत्कार देखाडीने 'प्रतिष्ठा सारी थइ' एवी लोकोना मन उपर छाप पाडवानी वृत्तिओ होय छे, श्रीपूज्यो तखा यतिओनी अध्यक्षतामां थती प्रतिष्ठाओमा-शान्तिस्नात्रोमा बलि क्षेपना प्रसंगे आखं नालिएर आकाशमां उछालीने तेनुं खाली खोखं नीचे पडतुं देखाडी लोकोने आश्चर्य चकित करलाथी-लोको मानता 'जो नालिएरमांनो गोलो देताओए लेइ लीधो अने काचलांनुं खोखूनीचे नाखी दी' खरी बात तो ए हती के बलीक्षेप करनार यतियो अने भोजको खानगीमा चोटी सहित नालिएर फोडीने तेमांथी गोलो काढी लेता अने काचलां ठीक करी उपर गेवासूत्र वींटी नालिएर बलिबाकलाना उपर मूकता अने बलिक्षेप करतां नालिएर पण उछालता अने नीचे पडतां खोलूँ जोइ लोको चमत्कार मानता, पण वर्तमान समयमां आ प्रकार- पाखंड तो बंध पडी गयुं छे, आजकालना विधान करनारा स्नात्रकारो पैकीना केटलाको प्रतिष्ठा प्रसंगे अमृत झराववानो चमत्कार देखाडीने वाह वाह करावे छे पण तेवा विधिकारो अने तेवी प्रवृत्तिमा लाभ मानता प्रतिष्ठाचार्योए आवी प्रवृत्तिओ बंध करवी Jan Education International For Private & Personal use only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। प्रस्तावना ।। चल ॥ ४७ ॥ कराववी जोइये. विधिकार डाभनी पींछीथी पाणी छांटे अने स्थापना पछी ते जोइने लोके अमृत झर्यानु कहे एनो मौनपणे स्वीकार | करबो एमां कंइ ज लाभ नथी लोको तमारा छांटेला मंत्रित जलनां बिंदुओ जोइने अमृत झर्यानुं कहे तो तमारे खरी वस्तुस्थिति प्रकट करवी जोइये. प्रतिष्ठा प्रसंगे आवी सरलता अने निखालसता राखवी एज क्रियाकारकनो मुख्य गुण छे.. ८- विधिकारोनी शंका अने समाधान-आधुनिक विधिकारोमा परिभाषाओ, विधिविधानो, प्रतिष्ठाचार्यो, स्नात्रकारो अने सामग्री | विषयक भिन्न भिन्न शंकाओ चाली रही छे, छतां नथी एक बीजाने कोइ पूछतुं अने नथी बीजाने पूछवाथी सीधो उत्तर मलतो, जेओ साथे विधानना कामे जाय छे ते पैकीनी कोइ पण व्यक्ति भले एक बीजाने मन खोलीनो ए संबन्धमा वात करे, बाकी भिन्न मंडलीमां जनार कोइ विधिकार पोते-विशेष जाणकार बीजा विधिकारने पूछीने कंइ नवु मेळवी शकतो नथी एम अमने जणायुं छे, जाणे के विधिकारोना जुदा जुदा संप्रदायो बंधाइ गया छे. दरेक मंडलीना अनुयायी विधिकारो पोताना क्रियाविधानोने श्रेष्ठ गणे छे अने बीजाना विधानने उदासीन भावे जुए छे, ज्यारे केटलाको ते एक बीजाना विधानोनी टीकाओ सूधां करी बेसे छे, आ परिस्थितिने सुधारवी घटे छे. शंकाविषयक प्रश्नोत्तरो१. प्र. विधिमा जे अधिवासना विधि आवे छे एनो शो अर्थ शाय छे ? उ० अधिवासनानो अर्थ 'मंत्र' ए थाय छे, केसर पुष्पादि द्रव्योने मंत्रवडे मंत्रीने तैयार करवां ते अधिवासना, तेमज प्रतिमा विगेरेने तेना मंत्रवडे मंत्र ते अधिवासना कहेवाय छे. अने मंत्रेली वस्तु 'अधिवासित' कहेवाय छे. २- प्र० आसननो अर्थ शो ? कोइ आसन एटले बेस, एवो अर्थ करे छे ज्यारे कोइ आसनने बेसवानुं स्थान कहे छे. आ बेमां खरो अर्थ कयो? ॥ ४७ ।। Jain Education Interation For Private & Personal use only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २ ॥ ॥ प्रस्तावना ।। का ॥ ४८ ।। उ० आसननो अर्थ बेसवानुं 'स्थान' एज खरो छे, शिल्पमां देवताने जे बेसवानुं स्थान होय तेने माटे 'आसन' शब्द नो प्रयोग थाय छ, प्रतिमा बेठी होय के उभी पण एने बेसाडवानुं अथवा उभी स्थापवानुं जे स्थान होय छे ते आसन-सिंहासन आदि नामोथी ओलखाय छे. 'आसन' नो 'बेसबुं' ए अर्थ करवामां आवे तो 'उभी' प्रतिमाने माटे वांधो आवे छे कारण के उभी प्रतिमा माटे कंड बीजुं विधान नथी. ३- प्र० अर्वाचीन प्रतिष्ठा-पूजा विधिओमां 'सेवंतरां' नाम पुष्पाने माटे ठेक ठेकाणे आवे छे तो सेवंतरां पुष्पो केवां थतां हशे ? आजे सेवंतरा पुष्पो होय छे खरां ? ____उ. आजकालनां गुलाबनां पुष्पो एज विधिकारोनां 'सेवंतरा' छे, 'गुलाब' नाम उर्दुभाषानुं छे एनो संस्कृतमा अर्थ 'जलीय पुष्प' थाय छ, 'सेवंतरा' ए 'शतपत्र' शब्दनो अपभ्रंश छे, संस्कृत शब्दकोशोमां 'जलकमलने' 'सहस्रपत्र' अने स्थलकमलने 'शतपत्र' नामथी उल्लेख्यो छे (सहस्रपत्रं कमलं, शतपत्रं कुशेयम् ।) 'कण्टका पद्मनाले' इत्यादि वाक्योमा कमलने कांटा बतावेल छे ते आ, शतपत्रगुलाबने आसरीने ज समजवाना छे, जलकमलने अंगे नहि... ४. प्र. प्राणप्रतिष्ठा एटले शुं ? केटलाक प्रतिष्ठकरावनाराओ अंजनशलाकाने 'प्राणप्रतिष्ठा' कहे छे ए बराबर छ ? उ० नहिं, अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा कहेवाती नथी पण प्रतिमामां प्राणापानादि वायुदशकनो न्यास करवो ए प्राणप्रतिष्ठा छे, आजकालनी अंजनशलाकाओमा 'प्राणप्रतिष्ठा' च्यवनकल्याणकनी विधिमां अंतर्गत कराय छे. अंजनशलाकाने प्राणप्रतिष्ठा कहेनारा अजाण 35 A ५. प्र. खंडितप्रतिमाने विसर्जन करवानी क्रिया सत्त्व खेंचवा माटे कराय छे. तो अहियां 'सत्त्व शब्दथी शुं समजवू ? कोइ || ४८ ।। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २as । प्रस्तावना ।। Adh GP2 एने अंजन खेंचवानी क्रिया पण कहे छे ते बराबर छ ? उ. नहिं, अंजन खेंचवा माटे ए क्रिया नथी, तेम प्रतिष्ठा संबन्धी मंत्र-सत्त्व खेंचनारी पण ए क्रिया नथी, केमके प्रतिमा खंडित थता प्रतिष्ठान सांनिध्य तो स्वयं मटी जाय छे, जीर्णोद्वारनी क्रियामा जे सत्त्व खेचाय छे ते व्यन्तरादि देवरूप सत्त्व खेचाय छे, कोइ लाक्षणिक सुन्दर देवप्रतिमा खंडित थया पछी तेमांथी प्रतिष्ठानुं सांनिध्य मटी जाय छे अने भूत प्रेतादि जातिना हलका देवसत्त्व- तेमा अधिष्ठान थइ जवानो संभव रहे छे, तेवी प्रतिमामा जो कोई- अधिष्ठान थयेल होय ने ते प्रतिमा आमनी आम भंडारी देवाय तो नुकसान थवानो भय रहे छे ते कारणे ते अधिष्ठातृ सत्त्वने बहार काढवानी क्रिया करवी पड़े छे. ६- प्र. माइसाडी अथवा मातृशाटिकानो शो अर्थ छे ? उ० लग्नप्रसंगे कन्या मातृघरमा (माहेरमा) जे साडी ओढे छे ते मातृशाटि कहेवाय छे. तेज प्रकारना कुसुंभी रंगना वस्त्रने प्रतिष्ठा विधिकारो 'माइसाडी' कहे छे. आ विषयमां श्रीचन्द्रसूरिजी कहे छे. "अव्यङ्गां यमलिं दत्त्वा, कारयेदधिवासनाम् । द्वितीया भक्तितो दत्त्वा, प्रतिष्ठां च विधापयेत् ॥" आम श्रीचन्द्रसूरिजी अने एमनी पद्धतिना अनुयायीयो अधिवासना अने प्रतिष्ठामा बे माइसाडीओनुं विधान करे छे त्यारे पादलिप्तप्रतिष्ठापद्धतिना मार्गे चालनारा कल्पकारो अधिवासना समये ज माइसाडी आरोपवानो आदेश करे छे. अने प्रतिष्ठाप्रसंगे श्वेतवस्त्रनु विधान करे छे. ७- प्र. राद्धबलि अने कोरकबलि नो अर्थ शो छ ? उ० राद्धबलि एटले रांधेल नैवेद्य, भले सात धान्यनो खीचड़ो ज होय पण जे अग्नि उपर सीझेल होय ते सर्व राद्धबलि गणाय न d || ४९ ।। का Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५० ।। छे ज्यारे मात्र भीजवीने जे बाकला बलि रूपे नंखाय छे ते कोरकबलि कहेवाय छे, पूर्वे बाकला पण रांधीने ज तेमा घृत, खांड, मेवो विगेरे नांखीने उछालता हता पण यति कांतिसागरे आ राद्धबली नाखवानी रीतिने मात्र प्रवाह छे एम कहीने कोरा बाक- लानी हिमायत कर्या पछी एमनी विधिओनो प्रचार थतां विधिकारो कोरी बलि नाखवाने चीले चढी गया छे. ८- प्र० प्रवेशमां कलश-चक्र न मलतुं होय ते प्रतिमाने गभारामा लेइ जइने अंजनशलाका करी शकाय ? उ० नहिं, कोइ प्रतिमानुं अंजन विधान अधिवासना मंडपमां करवानुं होय छे, जेओ कलशचक्रना अभावे प्रतिमानुं अंजन विधान गभारामां करे छे तेओ कल्पविरुद्ध करे छे. ९ प्र० प्रवेशमां कलशचक्र होबुं जोइये ए नियम खरो ? उ० आधुनिक ज्योतिषिओ तथा क्रियाकारकोए नियम मानी लीधो छे, बाकी प्राचीन ज्योतिषशास्त्रमां के प्रतिष्ठाकल्पोमां कलशचक्रनी चर्चा नथी, बसो त्रणसो वर्षोथी ज्योतिषिओ ए स्वरशास्त्रोक्त केटलांक चक्रो अपनावी लीधां छे, वास्तवमां ए वस्तु ज्योतिषिओना घरनी नथी: १० प्र० बिंबप्रवेशमां चंद्र डाबो जमणो ज होवो जाइये संमुखनो अगर पाछलनो नहिं, आम आजकाल केटलाक ज्योतिषाओ कहे छे ते यथार्थ छे ? उ० नहिं, प्रवेशमां चंद्रनुं गोचर बल ज जोवानुं छे, दिशा जोवानी नथी, चंद्र संमुख पृष्ठनो वर्जित कर्यो छे ते प्रसंग गृहारंभनो छे, नहि के प्रवेशनो, ओछी बुद्धीना ज्योतिषीओए आ गृह निर्माण ना विधानने गृहप्रवेशमां जोडीने अज्ञाननुं ज प्रदर्शन कर्तुं छे, चन्द्र काल, पाश, योगिनी आदिनुं जे दिशापरक विधान छे तेनो संबन्ध यात्रा प्रकरणनी साथे छे नहिं के प्रवेशनी साथे . ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ५० ।। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ॥ ५१ ॥ ११ प्र० प्रतिष्ठा, पूजामां कराता कुंभस्थापनमां कलशचक्र होतुं ज जोइये ए खरुं ? उ० ना, कुंभस्थापनमां कलशचक्र होय ते सारं एवी मान्यता पं० कांतिसागरनी बिंब प्रवेशविधि प्रचलित थया पछीनी छे, पूर्वकालीन कोइ पण विधिमां आ विषेनो उल्लेख मलतो नथी. १२ प्र० प्रतिष्ठादिकार्योमां जवारा क्यारे वाबवा १ उ० जबारा उत्सवना आरंभ पूर्वे ववाय ते वधारे सारं, केमके शीत ऋतुमां मोडा उगता होवाथी बहेला बवाय तो ज देखवा जेवा थाय, पण ए वातनुं ध्यान राखतुं जोइये के वाववानो दिवस जे कार्य निमित्ते ते ववाय छे तेना लग्नथी पहेलांनो बीजो छट्टो के नवमो न होवो जोइये, कारण के आ दिवसोमां शुभ कार्यनिमित्ते यववारक वपन, तथा मंडप अने वेदी आदिनो आरंभ करवानुं वर्जित छे. १३- प्र० प्रतिष्ठा - अंजनशलाका निमित्ते मंडपमां कराता कुंभस्थापननी जोडे क्षेत्रपालनी स्थापना करी तेल सिंदूर चढावे छे ए वस्तु बराबर छे ? उ० नहिं, प्रतिष्ठामंडपमां क्षेत्रपालनी स्थापनानुं विधान नथी, मात्र भगवाननी जमणी दिशामां तेनो मंत्र बोलीने पुष्पाक्षतो बडे पूजवानो उल्लेख छे, सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्पमां तेना वर्णननुं एक काव्य छे जेमां अफीण, तेल, गोल, चंदन, पुष्प, धूपोनो भोग स्वीकारवानी प्रार्थना छे, 'सिंदूर' शब्द नथी, वली क्षेत्रपालनो आह्वान अने पूजन मंत्र छे पण स्थापनमंत्र नथी तेम नालिएर अगर पत्थर उपर तेल सिंदूर चढावी क्षेत्रपालनी स्थापना करवानो उल्लेख सुधां अमारी उक्त प्रतिष्ठाकल्पनी कोइ प्रतिमां नथी, वली प्रतिष्ठामंडप जेवा पवित्रस्थानमां तेल सिन्दूरनुं प्रदर्शन के जे वास्तवमां 'रुधिर' नुं प्रतीक छे, आ खरेखर बीभत्स वस्तु छे. १४- प्र० यक्ष यक्षिणीनी प्रतिष्ठा निमित्ते जिनप्रतिष्ठामां पण केटलाक विधिकारो होम करावे छे ए योग्य छे ? ॥ प्रस्ता वना ॥ ॥ ५१ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्तावना ।। ॥ ५२ ।। उ. जिनप्रतिष्ठामां तो शुं स्वतंत्रपणे यक्ष यक्षिणीनी प्रतिष्ठा होय तो ये होम करवानी आवश्यकता नथी, यक्षयक्षिणी जिनचैत्यमां | ॥ कल्याण- जिनसेवक रूपे प्रतिष्ठित थाय छे नहिं के विशिष्ट देवरूपे, जिन- भक्तो जिन सामीप्यमां अग्निमुखथी भोग्यवस्तुनी स्वप्नमां पण इच्छा | कलिका. न राखे, आचारदिनकरमा जे होमनो निर्देश छे ते तान्त्रिक मतनी छाया छे, बीजा कोइ पण प्रतिष्ठाकल्पकारे ए वस्तुनो स्वीकार को खं०२॥ नथी, पादलिप्तसूरिजी जे तांत्रिक युगना समर्थ विद्वान हता पण तेमणे पोतानी पद्धतिमा हवन- नाम पण निर्देश्यु नथी, आधी समजबुं जोइये के होम ए जैनोनी क्रिया नथी. १५-प्र० अंजन शलाका थया पछी जिनबिंबना हाथथी कंकण क्यारे छोडवू ? उ० जरूरी कारणे अंजनशलाका थया पछी प्रतिमा ज्यारे गादीए बेसी जाय त्यारपछी सौभाग्यमंत्रन्यासपूर्वक पहेले दिवसे कंकण a] छोडवां, अने उतावल न होय तो चंद्रबल पहोचतुं होय ते त्रीजे पांचमे सातमे आदि विषम दिवसे कंकण छोडवानी क्रिया करीने कंकण छोडवां, स्नात्रकारो नवकार गणीने पण पोतानां कंकण छोडी शके छे. ___१६-प्र० आजकालना केटलाक विधिकारो. दीक्षा कल्याणकनी उजवणी प्रसंगे बधी प्रतिमाओनां कंकण छोडी नाखे छे ए केवु ? उ० प्रतिष्ठा थया पूर्वेज कंकण छोडी देवां ए भूल छे, जे कार्य निमित्ते कंकण बंधाय छे ते कार्य पूर्ण थया पछी ज कंकण छोडवू पहेला नहिं. १७-प्र० घर दहेरासरमा मल्लिनाथ, नेमिनाथ अने महावीर आ त्रण तीर्थंकरोनी प्रतिमा न पूजवी आम कहेवाय छे ए शास्त्रोक्त उ. शास्त्रोक्त तो नथी, पण सर्वप्रथम खरतरगच्छना कोइ आचार्ये लख्यु अने चाली पड्यु, पाछलथी उपाध्याय सकलचंद्रजीए पोताना | ५२ ।। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । प्रस्तावना ॥ प्रतिष्ठाकल्पमां ते लोकोनी गाथार्नु उद्धरण आप्यु एटले आपणामां पण ते वस्तु मनाइ गइ, वास्तवमा ए प्रतिमाओ घरमां पूजवानो वहेम | राखवो ए अनुचित छे. १८-प्र० आजकाल केटलेक ठेकाणे प्रतिष्ठा मंडपमा अथवा तेनी पासे जुदा भागमा केटलांक घटनाचित्रो देखाडाय छे जेमा केटलांक भयंकर उपसर्ग संबन्धी होय छे. तो आवां चित्रो प्रतिष्ठा प्रसंगे लोकोने देखाडवामां बाध खरो के नहिं ? उ. ज्यां केवल मानसिक उत्साह अने मंगलमय वातावरण होवू जोइये ए शुभ प्रसंगे आवां चित्रो न देखाडवां जोइये के जे जोता दर्शकना मनमा खेद अने दुःखनी लागणी जागृत करे अने एकधारी मानसिक प्रसन्नता अने लागणीने अल्पमात्र पण क्षति पहोंचाडे. १९-प्र० प्रतिमा- अंजन करती वखते प्रतिष्ठाचार्यने सुवर्णमुद्रिका तथा सुवर्णकंकण धारण करवा संबन्धी प्रतिष्ठकल्पोमां लेख छ खरो ? उ० हां, निर्वाणकलिका, श्रीचन्द्रप्रतिष्ठापद्धति,जिनप्रभप्रतिष्ठापद्धति, आचारदिनकरीय प्रतिष्ठापद्धति वगेरेमा उक्त मुद्रिकादि प्रतिष्ठाचार्ये धारण करवां एवं विधान छे, पण गुणरत्न, विशालराजशिष्य, सकलचन्द्र आदिना प्रतिष्ठाकल्पोमा आचार्य माटे उक्त वस्तुओ विहित नथी. २०-प्र० प्रतिष्ठाकल्पोमा ए विषयमा मतभेद होवानुं कंइ कारण हशे खरु ? उ. हा, आजे जेटला पण प्रतिष्ठाकल्पो छे ते बधा उपर चैत्यवासियोना विधाननी आबाद असर छे, निर्वाणकलिकानुं निर्माण चैत्यवासकालमां थयेलुं छे अने श्रीचंद्रादिनी पद्धतिओ तत्पश्चाद् भावि होइ तेनुं अनुसरण कर्ये छे. २१-प्र० गुणरत्नसूरिप्रमुखे पूर्वप्रतिष्ठाकल्पोनुं अनुसरण केम न कर्यु ? । स का ॥ ५३॥ For Private & Personal use only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. । प्रस्तावना ॥ उ. तेरमा सैकामां चैत्यवासनां उतरतां पाणी हता, जगचन्द्रसूरिए क्रियोद्धार कर्या पछी तेमणे आचारविषयक रूढ परम्पराओ | के जे सुविहित आचारमार्गथी प्रतिकूल हती ते बन्ध करी दीधी हती ते पैकीनी मुद्रादि धारण-परम्परा पण एक हती. क जमा २२-प्र. आजे पण कोइक प्रतिष्ठाचार्य अंजन करतां सोनानां कडां पहेरे छे. त्यारे कोइ केसर बडे कंकण-मुद्रिकाना आकार पोताना जमणा हाथे करावे छे तो एमां कंइ बाध खरो ? उ० सुविहित होवानो फांको राखे तेने माटे तो आभूषण पहेरवामां तेमज तेनो शरीर उपर आकार पण चित्रवामां बांधो छ ज, २३-प्र. अंजनशलाका प्रतिष्ठादिना विधान माटे केटला कूप आदिनुं जल लावq जोइये ? उ. प्राचीन विधिओमा उल्लेख छ के गंगादिनां तीर्थजलोनो संग्रह करवो, केटला तीर्थोनुं ? तेनी संख्या लखी नथी, लगभग पांचसो वर्षोथी १०८ कूप नदी आदिनुं जल एकत्र करवाना उल्लेख मले छे. २४-प्र. जलयात्रानी विधि करीने केटला कुवाओनुं जल लाव, जोइये? उ० पूरी विधि करीने एक स्थानथी जल लाव्या पछी बधे ते विधि करवानी जरूरत नथी, बीजा जलाशयोने कांठे जइ अक्षत फलथी जलदेवीने वधावी तेनी आज्ञा मांगी थोडु थोडं जल सींचीने भेगुं कर, जोइये. २५-प्र. वर्तमान कालीन गुजराती विधिकारो नदीनी आर्द्र भूमिमां १०८ नाना खाडा करे छे अने ते खाडाओने १०८ कूआ मानी तेमनुं पूजन करीने जल भरे छे ते विधि-विहित खळं के नहिं ? उ. आ विधि नहिं पण बालक्रीडा छ, आवी क्रीडा-जेवी विधिथी जल लावां करतां न लाव, सारुं छे घणा स्थानोनुं के १०८ कूवा वावडीओथी पाणी लाववानुं मूल कारण तो ए छे के घणा स्थानोमां कोई स्थान देवताधिष्ठित पण होय अने तेवा स्थानथी अनुज्ञा पूर्वक जल आवेल होय तो प्रकृत कार्यमा विशेष सिद्धिकारी निवडे, प्राचीन कालमा घणां तीर्थोनुं जल मंगावातुं हतुं तेनु कारण | Ishe G For Private & Personal use only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ abi ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ । प्रस्तावना ।। बान Atha का शाल एज हतुं के तीर्थो प्राय देवताधिष्ठित होइ त्यांनु जल सिद्धिकारी होय छे. नदीने कांठे हाथे करेल खाडाओ देवताधिष्ठित होता नथी | माटे तेवा खाडाओर्नु पूजन करवू निरर्थक छे. २६-प्र० प्रतिष्ठा अंजनशलाकादिना विधानमा केटलां पाटलाओगें पूजन करवू जोइये ? उ० अंजनशलाकामां नन्द्यावर्त सहित ४ अने प्रतिष्ठा पूजामां आजनी विधि प्रमाणे ३ पाटलाओनुं स्थापन कराय छे. २७-प्र. वर्तमानमा केटलाक विधिकारो बेवडा पाटला पूजावे छे ए बराबर छ ? उ० बेवडा पाटला पूजवा माटे कोइ शास्त्राधार नथी, विधिकारोनी कल्पना मात्रथी एम करे छे, कुंभ-दीपक आदि बे ठेकाणे स्थपाय एनुं कारण तो ए वस्तुओ स्थावर होवानुं छे, गृहदिक्पालोनी स्थापन स्थिर स्थावर नथी, भगवान मंडपमां थी देहरामां गया पछी पाटला पण त्यां लइ जइ शकाय छे. २८-प्र. अंजनशलाका कोण करावी शके ? ए संबन्धमा आचारदिनकर सिवाय बीजा कोइ ग्रन्थमा लेख छ के ? उ० घणा खरा प्रतिष्ठाकल्पोमां लखे छे के आचार्यनो प्रतिष्ठामंत्र सूरिमंत्र छे अने सामान्य साधु माटे 'वीरे वीरे' इत्यादि वर्धमान विद्या, जो सामान्य साधुने अंजन प्रतिष्ठानो अधिकार न होत तो तेने आश्रित प्रतिष्ठामंत्र न लखत. २९-प्र. जिनमंदिरमा लोहधातु न वपराय आम केटलाक आचार्यो कहे छे ते बराबर छ ? उ० देहरासर जे वर्तमान काले प्रायः पत्थरथी बंधाय छे तेनी लगभग हजार वर्षनी स्थिति होय छे, आवा चिर स्थायी कामोमां लोहना पाटडा, पाउ वगेरे न नाखवायूँ कहेवाय ते यौक्तिक छे, पत्थरनी अपेक्षाए लोहना पाटडानी स्थिति अत्यल्प होय छे, वली लोहना | पाउ कालान्तरे काटथी फूलाइ जइने पाटडा अथवा दासाओना छेडा फाडी नाखे छे तेथी ना पडाय छे, बाकी लोहने नीच धातु समजी ॥ ५५ For Private & Personal use only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्ताबना ॥ ना पडाती नथी. पूर्वकालमां तो लोहनी पंचरत्नमां गणना थती हती अने कृष्ण लोहनी मुद्रिकानो प्रतिष्ठामां उपयोग थतो हतो. ३०-प्र० केटलाक विधिकारो विधिमा न होय तो य अमुक मांत्रिक शब्दो वधारीने बोले छे ए योग्य छे ? उ० विधिगत मंत्रोमा जे जे शब्दो परापूर्वथी बोलाता होय ते ज बोलवा जोइये पोताना तरफथी कंइ पण नवु उमेर जोइये | नहिं, जो आम दरेक विधिकार थोडं थोडं वधारतो जाय तो विधिमां अव्यवस्था वधी जाय माटे कोइये पण पोतानी कल्पनाथी विधिमां न्यूनाधिक्य करवू नहि. ९-आजना विधिकारो अने तेमनां विधि-विधानोउपर आपणे जोयु के प्रतिष्ठाना विधिकार्यमा घणापूर्वकालमां शिल्पी, स्नात्रकारगृहस्थ अने प्रतिष्ठाचार्य आ त्रण मुख्य अधिकारिओ हता, पण पाछळथी आ पद्धतिमा घणुं ज परिवर्तन थइ गयुं छे. आजे 'शिल्पी' एक पगारदार नोकरथी अधिक गणातो नथी, प्रतिष्ठाचार्य पण आ कार्यमा जे सर्वेसर्वा गणातो ते आजे केवल नेत्राञ्जन अने वासक्षेप करवानो अधिकारी रही गयो छे, तेमनी आ स्थिति थवानुं कारण प्रतिष्ठाविधिविषयक अज्ञान छे, अज्ञानप्रतिष्ठाचार्यनी प्रमुखवाली प्रतिष्ठामा विधि जाणनारा स्नात्रकारो ज प्रतिष्ठाना प्रमुख अने सत्ताधारी कार्यकरो बनीने अजाण प्रतिष्ठाचार्य उपर पोतानुं वर्चस्व जमावे ए स्वाभाविक छे, आजे घणी खरी प्रतिष्ठाओमां आम ज बने छे, ज्यां प्रतिष्ठाचार्य कंइ पण जाणकार के जागृत होय त्यां तो थोडीघणी तेमनी पूछपरछ पण थाय, नहिं तो विधिकारो बधां कामो कर्ये जाय ने खास प्रसंगोमां 'साहेब! अमुक करो, साहेब! तमुक करो' आम प्रतिष्ठाचार्य साहेब उपर पोताना जाणपणानी छाप पाड्ये जाय छे. प्रतिष्ठाकल्पोना सर्वसंमत विधान प्रमाणे नीचे जणावेल कार्यो प्रतिष्ठाचार्ये पोते ज अग्रेसर बनीने करवां जोइए"थुईदाणमंतनासो, आहवणं तह जिणाण दिसिबंधो । नेत्तुम्मीलण-देसण, गुरुअहिगारा इहं कप्पे ॥" Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. स्वं ० २ ।। ।। ५७ ।। अर्थ- 'चैत्यवन्दन करवुं ने स्तुतिओ बोलवी १, सौभाग्यादि मुद्राओ पूर्वक, मंत्रन्यास करवो २, जिनोनुं आह्वान करवुं ३, दिग्बन्ध करबो ४, नेत्रोन्मीलन करवुं ५ अने देशना आपवी ६ आ छ कार्यो करवानो अधिकार आ कल्पमां गुरुनो मान्यो छे.' आजना घणाक प्रतिष्ठागुरुओमां उक्त कार्यो करवानी आवडत न होवाना कारणे आमांना केटलांक कामो विधिकार गृहस्थी करीनो कार्य चलावे छे, आवां कारणोथी आजना विधिकारो प्रतिष्ठामां पोताने प्रधान कार्यवाहक मानी ले छे. एटलुं ज नहि पण प्रतिष्ठानी सामग्री तरीके शीशी वस्तुओ केटकेटला प्रमाणमां जोइशे, तेनी सूचीओ पण विधिकारो ज लखी आपे अथवा तेमनी सलाहथी लखाय त्यारे ज काम चाले अन्यथा चालता कामे प्रतिष्ठा करावनारने बजारमां दोडवुं पडे. आपणे जोइ आव्या छीये के पूर्वकालमा दिक्पालोना पाटला उपर वस्त्राच्छादन न हतुं अने ग्रहोनो तो पाटलो ज न हतो, ए बधुं धीरे धीरे अस्तित्वमां आव्युं छे, छतां आजे प्रत्येक दिक्पाल अने ग्रहने माटे वर्णानुसारे रंगवालां वस्त्रो होय तो ज विधिमा काम आवे अने विधि थइ शके छे नहि तो गाडुं अटकी पडे छे. हुं इच्छं छं के आवी चालती प्रवृत्तिओने ज विधिनुं सर्वस्व मानी बेठेला विधिकारो पूर्वकालीन अने आधुनिक विधिविधानोमां पडी गयेला आकाश अने पाताल जेवडा अंतरनो विचार करशे तो जरूर तेओ पोतानी दृष्टिने विकसावी शकशे. आजथी लगभग ४ दायका उपर ग्रहो दिक्पालोनुं पूजन घणी ज सादी रीते करातुं हतुं, पण श्रीरत्नशेखरसूरिजीने नामे चढेल “जलयात्रादि विधि” पुस्तक छपाइने बहार पड्या पछी धीरे धीरे तेमां छापेल विधि अनुष्ठाननी प्रवृत्ति थवा मांडी, विशेषे करीने बिंबप्रवेश विधिमां ग्रह- दिक्पालोनुं पूजन ए ग्रन्थना आधारे थवा मांड्यं एमां आपेल क्रम प्रमाणे शांतिस्नात्र के अष्टोत्तरीमां 'वरकणयसंखविदुम' आ गाथाने प्रथम राखवानी केटलाक विधिकारोए प्रवृत्ति पाडी, विस्तृतपणे ग्रह - दिक्- पालोनुं पूजन पण चालु कर्यु, पाछलथी बहार ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ५७ ।। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रस्तावना ॥ IM पाडेल “बिम्बप्रवेश- विधि' नामक पुस्तकमां पण ए ज विस्तृत पूजन विधि छपायेल अने आजे घणा विधिकारो ए ज प्रमाणे पूजन | ।। कल्याण करोवे छ', पहेला जेओ प्रतिष्ठा कल्पने अनुसारे उक्त पूजन करावता हता तेओ पण हवे आ विस्तृत संदर्भने अनुसरीने पूजन करावे कलिका. छे पण ए विधान ते वखते समजदारनी दृष्टिमां केटलुं बधुं अनुचित अने खटकनारूं लागे छे ? जे वस्तुनुं रुपियामां एक आनीभर पण खं०२॥ महत्त्व न हतुं तेने आने वधारीने रुपियाभर बनावी देवामां आव्युं छे, अने खूबी ए छे के ए बधुं करवामां विधिकारो पोतानी विद्वत्ता माने छे, ते वखते तेमने एटलो पण विचार आवतो नथी के तेओ ए काम प्रतिष्ठा अथवा महापूजाना एक साधारण अंग रूपे करी रह्या छे, नहिं के मूल वस्तुने पण टपी जाय ए, कोइ स्वतंत्र अनुष्ठान के जेनी पाछल ३।४ कलाक जेटलो समय लगाववो योग्य गणी शकाय, प्रतिष्ठान मूल अंग नन्द्यावर्तन आलेखन-पूजन छे, ए कार्य प्रतिष्ठाचार्यनुं छे, पण आजे प्रतिष्ठाचार्य ते ते जाणे एनी साथे कंड सबन्ध ज नथी, अने विधिकारोने पण ग्रह दिक्पालोना पूजन माटे चच्चार कलाक बेसी रहेबानो समय मली जाय, पण नन्द्यावर्तना आलेखन-पूजन माटे समय के शक्ति नथी एटले चिताराना हाथे पक्का रंग-रोगान बडे चितरायेल नन्द्यावर्तना वस्त्रपटने पाटला उपर मूकीने तेना पूजनद्वारा श्रीपर्णीना पाटला उपर नन्द्यावर्तन पूजन कर्यु मानी ले छे ! केवी विचित्रता ? १-जेमणे आ विस्तृत पूजन लख्युं छे तेमनो आशय ए न हतो के स्नात्र के प्रतिष्ठामा ग्रह पूजन आ प्रमाणे ज थाय, लेखके जे प्रथम संक्षिप्त पूजन लख्यु छे ते ज प्रतिष्ठा-पूजा प्रसंगे करवानुं छे, आ विस्तृत पूजन शा माटे लख्यु छे एर्नु कारण लेखके स्पष्ट कही दीधुं छे, 'इति ग्रह-दिक्पाल संक्षेप पूजन विधि" तथा "हवइ प्रतिकूल ग्रहनइ प्रसन्न करवा प्रसंगे विस्तारे पूजन लिखिई छई" जे व्यक्तिए आ विस्तारे पूजन लख्युं छे ते पोते स्पष्ट जणावे छे को आ पूजन प्रतिकूल ग्रहने प्रसन्न करवा माटे छे नहिं के प्रतिष्ठादि विधानोमां करवा माटे, परन्तु आधुनिक विधिकारोए 'हबइ' इत्यादि कारण ज्ञापक पाठ ज पुस्तकमाथी काढी नाख्यो छे अने आ विस्तृत कारणिक पूजनने सामान्य बनावी दीधुं छे. दिपालो प्रतिकूल ज नथी होता छतां तेमनुं पण एज प्रकारे पूजन कराय छे. ए केवु अज्ञान छ ? For Private & Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ | प्रस्ताबना ॥ ___ज्यां सुधी अमने स्मरण छे त्यां सुधी छाणी वडोदरा अमदावादना वीसमां सैकाना वृद्धविधिकारो आ प्रमाणे अयोग्य आडंबर करनारा न हता, धणे भागे तेओ श्रीसकलचंदजीना प्रतिष्ठाकल्पना विधि प्रमाणे ग्रह- दिक्पालोनुं पूजन करावता हता अने पट्टनुं नहि | पण नन्द्यावर्त पाटला उपर आलेखीने तेनुं पूजन करता हता, आजे पण केटलाक परिश्रमी अने श्रद्धालु विधिकारो ए प्रमाणे करावता हशे ए संभवित छे. छतां घणो भाग ते उपर जणावेल विपरीत मार्गे ज चाले छे ए निश्चित छे. आजना विधिकारोमां केटलाक सारा अने सेवाभावी पण छे ए वातनो अमो स्वीकार करीये छीये, अने तेमनी धर्मश्रद्धा अने देवभक्तिनी मुक्त मनधी अनुमोदना करीये छीये. छतां प्रत्येक विधिकार निष्काम भक्तिभावथी आ लाभना कार्यमा प्रवृत्ति करतो रहे अने पोतानी प्रामाणिकताने डाग लागवा न दे एटला माटे आ स्थले एक सूचना करवानुं जरूरी समजीये छीये. ___आजकाल विधिकारोमा एक नवी प्रथा चालू थइ छे, अने ते पोतानी मंडली साथे एक भोजकने लइ जवानी. ज्यां सुधी अमने अनुभव थयो छे; आ प्रथा विधिकारोनी कीर्तिमा उणप अने प्रामाणिकतामां संदेह उत्पन्न करनारी छे, कोइ भोजक जाणकार होइ कार्यमां सहायक बने एवो होय तो तेने मंडलीना सभ्य तरीके अथवा तो रोजनी मजूरी ठरावीने नोकर तरीके साथे लेवामां विशेष बांधो नथी, पण एक 'याचक' तरीके तो तेने साथे न ज लेबो घटे, कारण के याचक तरीके साथे लेतां तेने डगले ने पगले दान आप, पडे छे अने ते पण प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थद्वारा नहि पण 'विधिकार' ना हाथे, तेमां 'मोसाल ने मा पीरसनारी' ए कहेबत प्रमाणे बने छे, 'सो पच्चास के पच्चीस जे कंइ मंगाव, होय ते मंगावीने विधिकार पोते लइ ले छे अने आपवाना प्रसंगे जे कंइ आपे तेनुं अडधुं लगभग भोजकने हाथे लागे अने थोडंक बीजा बधाने भागे जाय, बली तेमांगें कंइक बचावीने ते पोताना मुकामे लइ जाय,' आ रीति सारा | विधिकारोना माननी क्षति करनारी छे, एक सारी प्रतिष्ठा दर्मियान विधिकार आवी रीते ५।६ सो रुपियानी पोताना हाथे मनस्वीपणे | ॥ ५९ ।। For Private & Personal use only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छाला ॥ प्रस्ता ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ का बना ॥ बा ।। ६०॥ व्यवस्था करे के जेनो खर्च करनार गृहस्थने हिसाब सुधां अपातो नथी ए केटलुं बधुं शरमजनक छ? बोलावनारने तो ते वखते विधिकारथी | काम लेवानुं होय एटले ते भले हजार नुकसान करी नांखे तो ये ते न झलके, पण आ प्रकारनी गेरवाजवी लूट करनारी विधिकारनी रीतभातथी तेनो अन्तरात्मा अतिशय नाराज थाय छे अने परिणामे विधिकार उपरथी तेनो विश्वास उछी जाय छे, भोजकने रोजना पांच दश रुपिया ठरावीने लवाय तो पाछलथी दक्षिणा पेटे कंइ पण न आप, जोइये, अथला मंडलीना मेम्बर तरीके लान्या पछी निछरावल के वचगालानां दानो आपवां जोइये नहि, पण जती वखते प्रतिष्ठा करावनारने सूचनामात्र करी देवी जोइए के 'अमुक भोजक छे एटले तमारी इच्छा होय ते एमने आपी शको छो' आटली सूचना मात्रथी पण भोजकने तेनी सेवानो बदलो मली जशे अने विधिकार पोतानी मर्यादा अने प्रतिष्ठा जालवी शकशे. १०-विधिविधानमां मतभेद न जोइयेआपणां गच्छमां बने त्यां सुधी प्रतिष्ठा, शान्तिस्नात्र के अंजनशलाका- क्रियाविधान एक ज पद्धति प्रमाणे थर्बु जोइये 'अमुक | भाइ आम करे छे अने अमुक तेम !' प्रतिष्ठा जेवा महात्सवोमां विधि विधानने अंगे आवा मतभेदोनी वातो भद्रिक परिणामी जीवोना हृदयमा अव्यवस्था तथा अश्रद्धाजनक निवडे छे जे सारी नथी. बीजुं आजे सामान्य जणाता आवा भेदो लांबाकाले मोटुं रूप धारण करी पोतपोतानी परम्पराओ स्थापित करशे, जेनुं परिणाम कुसंपना रूपमा आवशे. अमारी तो सलाह छे के सर्वविधिकारी तथा ए विषयमा रस धरावनारा सद्गृहस्थो निवृत्तिनो समय जोइ कोइ योग्य स्थाने पोतानुं संमेलन करे के ज्यां एमने योग्य सलाह-सम्मति आपी शके एवा आ विषयना जाणकार गीतार्थनो योग मली शके, प्रत्येक विधिकार पोतपोताना विधि संबन्धी पुस्तको लइने संमेलनमां उपस्थित थाय अने शांतिपूर्वक परस्परना विचारोनी आप ले करे अने जे जे पोतानी विधिविषयक प्रवृत्ति निराधार जणाय ते सुधारे Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्ता || कल्याण कलिका. खं० २॥ का वना ।। अने जे जे वस्तुओ शास्त्रीय छतां पोताना जाणवामां नथी अथवा ते मतभेद समजीने तेणे ते ग्रहण करी नथी ते सर्वसंमत होय तो 18 ग्रहण करे, आवी व्यवस्थाथी केटलाये मतभेदो विधिमाथी निकली जशे, केटलीये भूलो नाबूद थशे अने आपणुं प्रतिष्ठा विषयक साहित्य व्यवस्थित थइने सर्वभोग्य बनशे. आपणा प्रतिष्ठाकल्पो, एना आधारे कराती प्रतिष्ठा विधिओ, प्राकालीन तथा पश्चात्कालीन तथा विधानोमां थयेल महत्वपूर्ण परिवर्तनो, वर्तमानमां थतां विधिविधानोमां अवश्य कर्तव्य संशोधनो अने विधिविषयक एक पद्धति इत्यादिने अंगे हजी कहेवा जेवू घणुं छे, उपोद्घातमां आथी अधिक भाग्ये ज लखी शकाय. ११-प्रकृतखण्डानुषंगी१-६ परिच्छेद - बीजा खंडमां तमाम विधिओनो संग्रह छे आना २१ परिच्छेदोमां प्रारंभना ६ परिच्छेदोनो संबन्ध चैत्यनिर्माणमा थती विधिओनी साथे छे, १-२ परिच्छेद शिल्पशास्त्रानुसारी छे, ३ जो परिच्छेद प्रतिष्ठाकल्यानुसारी छे, ४ था परिच्छेदमां शिलान्यास विधिओ शिल्पशास्त्रोक्त छे पण अन्तमा एक प्रतिष्ठाकल्पोक्त शिलान्यास विधिनो पण आमा समावेश करेलो छे. परिच्छेद ५-६ नी विधिओ निर्वाण- कलिकाने आधारे लखायेली छे. ७-१२ परिच्छेद - ७ माथी १२ मा सुधीमा प्रतिष्ठाविधिओ छे ७ मो परिच्छेद निर्वाणकलिकोक्तविधि प्रतिष्ठाविधिनुं निरूपण करे छे अने मूलविधिना शब्देशब्दनो गुजराती अनुवाद छ, ८ मो परिच्छेद सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्पोक्त दशाह्निक विधिनुं निरूपण करे छे, आ परिच्छेदमां सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्प तथा गुणरत्नसूरीय प्रतिष्ठाकल्प आ बनेनो समावेश थइ जाय छे, ९ थी ११ सुधीना परिच्छेदो क्रमशः चैत्यप्रतिष्ठा, कलशप्रतिष्ठा अने ध्वजदंड प्रतिष्ठानुं विधान बतावे छे, आ त्रणेय परिच्छेदो प्राचीन हस्तलिखित विधिओने आधारे N व आपा ॥६१ ॥ For Private & Personal use only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । प्रस्तावना ।। ।। ६२ ।। तैयार करायेला छे. १२ मो परिच्छेद जिनबिंब प्रवेशविधिओ बतावे छे, प्रचलित सविस्तर बिंब प्रवेशविधि उपरांत आमां संक्षिप्त बिंबप्रवेश विधिओ छे जेमा १ बिंब गृहप्रवेशविधि छे अने २ जिनबिंब चैत्य प्रवेशविधिओ छे जो आ संक्षिप्त प्रवेश विधिओनो प्रचार थाय तो ए निमित्ते थतो धनव्यय अने समयव्यय घणो बचावी शकाय तेम छे. १३-१७ परिच्छेद - १३ थी १७ सुधीना ५ परिच्छेदोमां पूजा विधिओ तथा शांतिकविधिओ छे, ते पैकीनी अर्हदभिषेकविधि | वादिवेतालशान्तिसूरिजीनी संस्कृत कृति छ, आ अभिषेक विधि अप्रसिद्ध छे छतां महत्त्वपूर्ण छे. आ अभिषेक विधिनां ९९ संस्कृत पद्यो छे जे घणां ज विद्वत्ता पूर्ण छे. अमे आ विधिने भाषान्तरित करीने ज नहिं पण भणावी शकाय ए रीते प्रक्रियाबद्ध विधिनी साथे आपी छे. । आ अभिषेक विधिनो रचनाकाल कई शताब्दी छे ए निश्चितपणे कहे, मुश्केल छे छतां एटलुं तो निर्विवादपणे कही शकाय के आ कृति नवमां सैका पहेलांनी छे, केमके शीलाचार्यापर नामधारी तत्त्वादित्यनी एना उपर संस्कृत पंजिका मले छे, पंजिकाना प्रारंभमां कर्ता कहे छे. "अर्पितमनर्पितं वस्तु-तत्त्वमुदितं नयद्वयादेकम् । यैस्ते सद्भूतगिरः कृताभिषेका जयन्ति जिनाः ॥ अभिषेकविधिमुदारं, यं पर्वभिराह वादिवेतालः । तत्पञ्जिकामनुगुणां, कतिपयपदभञ्जिकां वक्ष्ये ॥ पंजिकान्ते-इति श्रीशान्तिवादिवेतालीये भगवदर्हभिषेकविधौ तत्त्वादित्यकृतायां पञ्जिकायां पंचमपर्व ॥९९॥" पंजिकाकारनी लेखन शैलि ज कही आपे छे के एओ ८-९ मा (आठमा नवमा) सैका पछीना नथी, पञ्जिकाना समाप्ति लेख उपरथी जणाय छे के अर्हदभिषेक विधिना रचयिता श्रीशान्तिसूरि 'वादिवेताल' ना नामथी अधिक प्रसिद्ध हता, प्रत्येक पर्वनी समाप्ति A का . For Private & Personal use only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |"इति शान्तिवादिवेतालिये" आ शब्दोनी साथे करवानो एज मतलब छे. ॥ कल्याण विक्रमना छठाथी पंदरमा सैका सुधीनां हजार वर्षमा दशेक शांतिसूरिनां नामो उपलब्ध थयां छे तेमां अमारी मान्यतानुसार आ ॥ प्रस्ताकलिका. वादिवेताल शान्तिसूरि सर्व प्रथम होइ शके, माथुरी तथा वालभी वाचनाओना समन्वय निमित्ते वलभीमा मलेली बन्ने वाचनानुयायी वना ॥ खं० २ ॥ श्रमणसंघोनी सभामां एक गंधर्व वादिवेताल शांतिसूरि उपस्थित हता जेमणे वालभ्य संघना प्रमुख श्री कालकाचार्यनी संघ कार्यमां सहायता करी हती अने बंने वाचनानुगत आगमोनो समन्वय करायो हतो, अमारी मान्यता प्रमाणे ते गंधर्व वादिवेताल अने अभिषेक विधिकारवादिवेताल शांतिसूरि अभिन्न होवा जोइये, केटलाक विद्वानो उत्तराध्ययननी पाइयटीकाकार शांतिसूरिने 'वादिवेताल' माने छे जे बराबर नथी. पाइयटीकाकार शांतिसूरि थारापद्रगच्छीय हता अने ते अग्यारमा सैकाना विद्वान हता अने वादिवेताल शांतिसूरिधी अर्वाचीन हता. जिनस्नात्रविधि अने अर्हदभिषेक विधिनी समकालीनताश्रीजैन साहित्य विकासमंडल तरफथी जेना प्रकाशननी जाहेरात थइ हती ते 'जिनस्नात्रविधि' नी वादिवेतालीय अभिषेक विधिनी साथे तुलना करी जोतां जणायु के उक्त बंने विधिओ एक बीजीनी असरथी मुक्त छ, वादिवेताले 'स्नात्रविधि' के स्नात्रविधिकार आचार्यश्री जीवदेवे 'अभिषेकविधि' जोइ होत तो तेनी थोडी पण असर एक बीजानी कृतिमां आव्या विना रहेत नहिं आधी जणाय छे के उक्त बंने कृतिओ लगभग समकालीन होवी जोइये. अभिषेकविधिना मूलनी कोपा तथा अभिषेकविधिनी पंजिकानुं पुस्तक विद्वान मुनिवर्य श्रीपुण्यविजयजीना सौजन्यथी मलतां अमे कलिकामा ए विधि आपवा समर्थ थया छीये ए वातनो अमारे स्वीकार करवो जोइये. १४-चौदमा परिच्छेदमां बे अष्टोत्तरी पूजाओ छे, बास्तवमा बे अष्टोत्तरीओ जुदी नथी, पण सामानना न्यूनाधिक्यना कारणे बे | जुदी बतावी छे, ओगणीसमा सैकानी अष्टोत्तरीमा सत्तरमा सैकानी अष्टोत्तरी करतां केटली सामान वृद्धि थइ छे ए जाणवा अने थोडा || ॥६३॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रस्ताबना ॥ 0 4 | खर्चे कोइ अष्टोत्तरी पूजा भणाववा इच्छे तो सत्तरमा सैकानी विधि प्रमाणे भणाची शकाय ए माटे बे जुदी जुदी आपी छे. ।। कल्याण १५- पंदरमो परिच्छेद शान्तिस्नात्रे रोकेलो छे. शान्तिस्नात्रना कर्ता तपगच्छना उपाध्याय श्रीसकलचंद्रगणि छे. मारवाडमां शांतिस्नात्र कलिका. भणाववानी रीति वधारे छे. वली त्यां भणाववावाला थोडा एटले पुस्तकना आधारे हरेक भणावी शके एटला माटे आमां प्रत्येक अभिषेकमां बोलाती गाथाओ वारंवार छापवाथी पुनरुक्ति थवाथी केटलुक मेटर वध्यु छे छतां मारवाडना विधिकारो माटे आ पुनरुक्ति उपयोगी थशे एम अमाझं मानवु छे. अष्टोत्तरीनी विधिओ जेम उपलब्ध थई तेम शांतिस्नात्रनी प्राचीन लिखित विधि मेलववामां सफलता न मली. me सो वर्ष पूर्व लखायेली एक पण शान्तिस्नात्र विधि न मलवाथी जे हती ते प्रतिओ उपरथी ज ए विधि तैयार करवी पडी छे. १६- सोलमा परिच्छेदमा तीर्थयात्रा शांतिक छे, संघसमुदायनी साथे संघपति बनीने तीर्थयात्राए निकलता संघपतिना घरे प्रथम ए शांतिक करी पछी प्रयाण कर, जोइये एवी मर्यादा छे, आ शान्तिक अमोए प्राचीन पानाओ उपरथी तैयार करेल छे. १७- सत्तरमा परिच्छेदमां बे ग्रह शांतिको छे, पहेलु सामान्य ग्रहशान्तिक छे ज्यारे बीजं शांतिक गोचरग्रहपीडानी शान्तिकरवा as माटेर्नु छ, आ बंने शांतिको अमोए प्राचीन हस्तलिखित प्रतो उपरथी लीधेल छे. १८- अढारमा परिच्छेदमा जीर्णोद्धार विधि छे, जीर्णोद्धारनो अर्थ अहिंयां भग्नजिन प्रासाद के खंडित जिनप्रतिमा आदिनुं विसर्जन करवानो छे. आ विधि अमे निर्वाणकलिका तथा शिल्पशास्त्रना आधारे तैयार करेल छे. १९- ओगणीशमा परिच्छेदमां देवी प्रतिष्ठाविधि अमे एक हस्तलिखित प्रति उपरथी तैयार करेल छे, ते प्रतिमां पण एनुं नाम 'देवी प्रतिष्ठा विधि' ज हतुं पण तपास करतां जणायु के ए विधिनो आधार ग्रन्थ 'आचारदिनकर' छे. आ विधि यक्षिणी आदि परिकर oral रूपे गणाता देवदेवीओनी प्रतिष्ठामा करवानी नथी पण तेमा जणावेल देवीओ पैकीनी कोइ देवीनी स्वतंत्र रूपे कोइ जुदा ते निमित्ते CRY Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका, खं०२॥ ॥ प्रस्तावना ॥ बनेला दहेरामा प्रतिष्ठा करवी होय तो त्यां करवानी छे. २० - वीसमा परिच्छेदमा विविध उपकरणोने अधिवासित करवानी विधि छे, आ परिच्छेद आचारदिनकरानुसारी छे. २१- एकवीशमो परिच्छेद प्रकीर्णक प्रतिष्ठाविधिओनो छे अने ए विधिओ पण अधिकांश आचारदिनकरना आधारे ज लखायेली छे. उपर्युक्त विधिखंडना संकलन माटे अमारी पासेना प्रतिष्ठाकल्पो उपरांत प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पो मेलववा माटे प्रयत्न करेल, खास करीने उ० सकलचंद्रजीए पोताना प्रतिष्ठाकल्पनी समाप्तिमां निर्दिष्ट नामना श्यामाचार्य हरिभद्रसूरि-हेमचंद्राचार्य जगच्चन्द्रसूरिना नामे चढेला प्रतिष्ठाकल्पो पैकीनो कोई अस्तित्वमा होय ते तपास करवा जेसलमेर पाटण आदिना भंडार व्यवस्थापकोने पूछाव्यं पण बघेथी एकज प्रकारनो उत्तर मल्यो के अत्रेना भंडारमा आपे जणावेल कोइ प्रतिष्ठाकल्प नथी. अमने लाग्युं के उ०सकलचंद्रजीए जादूना बले आ कल्पोनु सर्जन करीने श्रीविजयदानसूरिने देखाड्या होय तो वात जुदी छे अन्यथा आटला अल्पसमयमां बधा उक्त कल्पो नाम शेष थइ जाय ए संभवित नथी, ज्यारे बहारथी विशेष उपयोगी सामग्री न मली त्यारे उपलब्ध सामग्रीना आधारे ज कार्य चालुं कर्यु जेना अवलोकन अने मनन पछी प्रकृत खंडनी संकलना थइ ते सामग्री नीचे प्रमाणे हती १. निर्वाणकलिका-मुद्रित छतां ताडपत्रना पुस्तकने आधारे सुधारेली । २. श्रीचन्द्रसूरि प्रतिष्ठापद्धति कंइक अशुद्ध, मुद्रित । ३. 'विधिधर्मप्रपा' सामाचारीगत जिनप्रभीय प्रतिष्ठापद्धति सं० १७८३ मां लखेल प्रति उपरथी सं० १९४२ मां लखायेली शुद्धप्राय । ४. श्री वर्धमानसूरिकृत प्रतिष्ठापद्धति मुद्रित अशुद्धिबहुल ५- गुणरत्नसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्प पुस्तक २, (१) १८ पत्रात्मक “इति प्रतिष्ठादि समग्रविधिः । सं० १५४२ वर्षे आसो वदि पंचमीदिने Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रस्तावना॥ लिखितः संखारीग्रामे ॥" इति लेखपुष्पिकायुक्तशुद्ध । (२) दशपत्रात्मक संवत् १७५३ वर्षे मागसर वदि ५ दिने लिखित प्रति उपरथी लखावेल अने शुद्धप्राय "इति बिंब १ ध्वजा २ कलश ३ प्रतिष्ठाकल्पः श्रीतपाचार्य श्री श्रीगुणरत्नसूरि विरचितः।। इति श्री जिनप्रतिष्ठाकल्पः॥" ए समाप्ति-लेखयुक्त । ६- विशालराजशिष्यकृतप्रतिष्ठाकल्प पुस्तक ४-(१) १८ पत्रात्मक शुद्धप्राय, "संवत् १६१९ वर्षे आषाढ मासे शुक्ल पक्षे ११ दिने।" ए लेखकना समाप्तिलेखवालुं । (२) १७ पत्रात्मक शुद्ध प्राय । "इति बिंबस्थापना विधिः । श्लो ५५० । प्रतिष्ठाप्रदीपग्रंथतोद्धृतः श्रीविजयसेनसूरिभिः । श्रावक मेघाग्रहेण कृतोऽयम् ' इति समाप्तिलेख सहित छे। (३) (१८) पत्रात्मक शुद्धा पडीमात्रायुक्त लेखन संवत् रहित, अनुमानथी सोलमा सैकामां लखायेल छे। (४) २० पत्रात्मक, शुद्धप्राय, प्राचीन प्रति उपरथी १९८४ मां लखावेल छे. ७- १२ पत्रात्मक शुद्ध । जीर्णभाषात्मक पडिमात्राओमां लखायेल, विधिप्रपानुसारि, कचित् संशोधित. ८- उपाध्याय सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्प पुस्तक ३ (१) आसरे आगणीशमा सैकामा लखायेल ३७ पत्रात्मक अशुद्ध । (२) ३९ पत्रात्मक, अशुद्धिबहुल सं० १९५६ मा लखायेल छे अने (३) मुद्रित, ए पण अशुद्धि प्रचुर अने कचित खंडित पण छे. कलिकानो द्वितीय खंड संकलित करवामां मुख्य आधार ग्रन्थो उपर्युक्त ८ छे, पण ए उपरांत पण केटलीय हस्तलिखित विधिओनो केटलाक परिच्छेदो लखवामां उपयोग कर्यो छे जे पैकीनी केटलीकना नामो आ प्रमाणे छे (१) प्रतिष्ठाविधि पा. (२) प्रतिष्ठाविधि पा.३ (३)संक्षिप्तप्रतिष्ठा- दण्डध्वजारोपण विधि पा.३ (४) प्रतिष्ठाविधि पा.६ (५) कलश- प्रतिष्ठाविधि पा.३ (६) ध्वजारोपविधि पा.१ (७) कंकणमोचनविधि पा.१ । आ बधी य प्रतो अतिप्राचीन अने झीणा अक्षरोमां लखायेली छे. की का Katha Get बाल Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - काल ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । प्रस्तावना ।। त्रीजो खंडकलिकानो बीजो खंड प्रतिष्ठोपयुक्त चैत्यवन्दनो, स्तुतिओ, स्तवो, स्मरणो अने सामग्रीसूचिओनो बनेलो छे एटले ए विषयमा | बहु कहेवा जेवू नथी, मात्र स्मरणो, मंत्रो तथा सामग्री सूचिओने अंगे बे शब्दो लखी ए विषयने पूरो करीशु. ____ आजकाल आपणा गच्छमां प्रतिष्ठादि विधानोमां कुंभस्थापन थया पछी उवसग्गहर १ संतिकर २ तिजयपहुत्त ३ नमिऊण ४ अजितशान्ति ५ भक्तामर ६ अने बृहच्छान्ति ७ आ सात स्मरण-स्तोत्रोनो त्रिकाल पाठ करवानी परम्परा चाले छे जे बहु जुनी नथी, बसो वर्षथी चालती होय तो भले, ते पहेलानी विधिओमां उभयकाल स्तोत्रपाठ करवाना लेखो मले छे, पण एय घणा जुना नहिं, चोरसो पांचसो वर्ष पहेलानी विधिओ अने प्रतिष्ठाकल्पोमां मात्र जिन बिंब गादीए बेसाड्या पछी लघुशांति १ बृहच्छांति २ अजितशांति ३ तिजयपहुत्त ४ नमिऊण ५ उवसग्गहर ६ समवसरण स्तव ७ आ सात स्मरणो गणवानो आदेश छे, पण आजे कुंभ स्थाप्या पछी रोज त्रिकाल गणवानी पद्धति छे एथी अमे पण त्रिकाल गणावीये छीये अने क्रम पण आजना क्रमने मलतो ज छे मात्र भक्तामर बाद करी तेना बदलामा लघुशांति दाखल करी छे अने क्रम जे क्रमे स्तोत्र-स्मरणो छपायां छे तेज क्रमे गणवानां छे समवसरण स्तव नित्य गणवानुं नथी पण भगवान प्रतिष्ठित थया पछी गणाता स्मरणोने अंते एक वार ज ए गणवानुं छे. आ परिच्छेदमां आपेल प्रतिष्ठोपयोगी मंत्रो विधिकारोना अभ्यासार्थे छे, तिजयपहुत्तना कल्पो आप्या छे ते मात्र आकस्मिक उपद्रवादिनी घटना प्रसंगे उपयोगमा लेवा माटे छे आ अम्नायो अमे स्पष्ट नथी कर्यां, कारण के आवी वस्तु अस्पष्ट रहेवामां ज गुण छे, जे एना अनुभवी हशे ते स्वयं उपयोग करी शकशे. प्रतिष्ठादिनी सामान सूचिओ अमोए अमारी पद्धतिने अनुसरीने आपेली छे, द्रव्य क्षेत्रादिने जोड़ विधिकारो शक्य न्यूनाधिक्य करी Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ शके छे, पण प्राचीन कल्पोना विधानने लक्ष्यमा राखतां आमां आधिक्यनी अपेक्षाए न्यूनताने ज अधिक अवकाश छे एम जणाया विना रहेशे नहिं "अधिकस्याधिकं फलं" आ मान्यता विधिकारोए हवे बदलवी जोइये, घणाधी घणो भावोल्लास थवानी मान्यता बराबर नथी, प्रतिष्ठाकारकगृहस्थनी भावना कोइ पण रीते कुंठित न थाय ए वातनो प्रतिष्ठाचार्योए तथा विधिकारोए प्रतिक्षण विचार राखवानी आवश्यकता ॥ प्रस्तावना ।। ॥ ६८A का प्रसिद्ध श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रनी निम्नोक्त बे आर्याओ प्रतिष्ठाचार्योए अने विशेषे करीने विधिकारोए पोताना हृदयमां कोतरी राखवी जोइये "इज्यादेनं च तस्या, उपकारः कश्चिदत्र मुख्य इति । तदतत्त्वकल्पनैषा, बालक्रीडा समा भवति ॥" अर्थ- मुक्तिप्राप्त जिनदेवतानी पूजा सत्कार-आभूषणादिथी तेनो कंइ पण मुख्यपणे उपकार थतो नथी तेथी एमनी 'पूजा' आदि ए अतात्त्विक कल्पना छे अने ते बालक्रीडा समान होय छे. "लवमात्रमयं नियमा-दुचितोचितभाववृद्धिकरणेन । क्षान्त्यादियुतैमॆत्र्यादि-संगतैबृंहणीय इति ॥" __ अर्थ - प्रतिष्ठा करावनारना प्रतिष्ठागतभावने ते लेशमात्र होय तोये उचित-उचित रीतिथी तेनी वृद्धि करवी अने क्षमादिगुणोए | युक्त मैत्र्यादि भावनाओ साथे जोडीने तेने पुष्ट करवो. उपसंहार उपोद्घातमां कहेवानी केटलीक वातो रही गइ हशे त्यारे केटलीक वधारे पडती पण कहेवाइ हशे, पण अमारा मनथी अमने जे उचित लाग्युं ते लखायुं छे, वांचनारने जे ग्रह्य जणाय ते ग्रहण करे अने बीजं अमारे माटे छोड़ी दे, एज प्रार्थना । कल्याणविजय माधवपुरा-अहमदाबाद, ७-३-५६ ॥ ६८A | Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ ६८ ॥ श्री नन्दीश्वरद्वीपतीर्थमंडन श्री ऋषभदेवाय नमः श्री सिद्धि-कल्याण-सौभाग्य-ॐकार गुरुभ्यो नमः (पुनर्मुद्रण प्रसंगे...) पूज्यपाद इतिहासवेत्ता पंन्यास श्री कल्याणविजयजीम.सा. श्रुतधर महापुरुष हता. तेओश्रीए जैनवाङ्मय साथे अन्य अन्य दर्शनोनो अभ्यास सूक्ष्मताथी को हतो. ज्यारे ज्यारे तेओश्रीना दर्शन थाय त्यारे प्रतो अने पुस्तकोना ढेरनी वच्चे काइक वांचता, काइक लखतां जोवा मले । वांचन, चिंतन, मनन, लेखन ने प्रकाशन ए तेओश्रीना जीवनना पर्यायो हता - अंगभूत हता. प्रस्तुत प्रकाशन विधिविधान संबंधी छे. आ विषयमां पण तेमनी विद्वत्ता तथा निपुणता अने आगवी सूक्ष्मसूझ जोवा मले छे. । घणा बदा मुद्रित ग्रंथो तथा घणी हस्तलिखित प्रतिओ परथी संशोधन करी आ ग्रंथ लखायो छे. मतमतांतरो विधिना विषयमा घणा छे. विविध कार्य माटे भिन्न भिन्न विधिओ पण मले छे. बधानो संग्रह करी क्यां केटलुं योग्य छे ते विषे पण प्रकाश पार्यो छे. आ ग्रंथमां प्राचीन विधिओनो पण समावेश छे. पुनः प्रकाशन प्रसंगे.... श्री कल्याणकालिका भाग-२ नाम धरावतो आ ग्रंथ लगभग अप्राप्य हतो. पू.आ.श्री मुनिचन्द्रसूरिजी म.सा., पू. मित्रविजयजी म. आदि साथेना अमारा वि.सं. २०५४ना जालोर चातुर्मासमां आना पुनर्मुद्रण माटे प्रस्ताव आव्यो । श्री नंदीरत्नविजय महाराजे बेंग्लोरथी एक प्रकाशन आ ग्रंथ- कराव्युं छे, पण तेमां जरूरी विधिविधानोनो ज समावेश करेल छे. बाकीनी जे प्राचीन ग्रंथाधारित | विवेचना के विधिविधानो मूल ग्रंथमा छे तेनो समावेश नथी करायो । नवा प्रकाशननी भावना एटले थई के पू. कल्याणवि.म. जे | SA ॥ ६८ ॥ For Private & Personal use only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ६९ ॥ मूळ ग्रंथ विविधता सभर अन्वेषणात्मक लख्यो छे, ते ए ज रीते सचवाई रहेवो जोईए, ने ते माटे श्री नन्दीश्वरद्वीप तीर्थ ट्रस्ट द्वारा || आनुं प्रकाशन करवानो निर्णय थयो । पुनः प्रकाशननी वेळाए मूल ग्रंथमा जे थोडो फेरफार करायो छे ते विधिकारोनी अनुकुलता माटे करायो छ । जे भागविधि विधानमा उपयुक्त छे तेने अग्रताक्रम आप्यो छे अने जे विषय मात्र आ विषयनी विशद जाणकारी माटे छे तेने पाछल मूकेल छ । तेथी परिच्छेदना क्रममा ज मात्र फेरफार कर्यो छे, पण कोई परिच्छेदने दूर करवामां आवेल नथी। पूज्यपाद गुरुभगवंतोनी प्रेरणाथी थयेल पुनःप्रकाशनना संपादनमा घणुं जाणवा मळ्युं छे ते बदल पूज्योनो हुँ ऋणी छु. ___ श्री नन्दीश्वरद्वीप तीर्थ जालोर - ट्रस्ट तरफथी प्रकाशित थता आ ग्रंथमा जेने जेने आर्थिक सहयोग आप्यो छे ते सहुनी श्रुतभक्ति एवं गुरुभक्तिनी अनुमोदना । ग्रंथ संपादनमा विधिना क्रममा परिवर्तनना कार्यमा विधिकारक श्री चंपालालजी (मांडवाला वाला) एवं विधिकारक श्री दिनेशभाई (जालोरवाला)नो सुंदर सहयोग प्राप्त थयो छे. बन्ने महानुभावोने आभार साथे याद करु छु. तथा ग्रंथमुद्रण करनार श्री पार्श्व कोम्प्युटरना अजयभाई तथा विमलभाईना सहकार बदल आभार. प्रान्ते पूज्य पंन्यासजी म.ना आशय विरुद्ध काइपण थयु होय तो त्रिविधे त्रिविधे मिच्छामि दुकडम्. वाब. (बनासकांठा) गोडीजी पार्श्व २५वीं (रजत जयंति) पूज्य आचार्यदेवश्री ॐकारसूरिजी म.ना शिष्य सालगिरा महोत्सब प्रसंगे पू. तपस्वी मुनिराजश्री चंद्रयशविजयजी म.ना शिष्य मुनि भाग्येशविजय ॥६९ ॥ Jan Education international For Private Personal use only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. ॥ विषयानुक्रम ॥ खं० २॥ ........... ० ......... विषयानुक्रम | प्रस्तावना.. ............ १ थी ६ | ४ __ शिलान्यासमां वास्तुमर्मो टाळवा....... बीजा खंडनो उपाद्घात...... ............. ६ थी ६८ शिलाओनो ढाळ कइ तरफ .................... पुनर्मुद्रण प्रसंगे.......... ............६९ थी ७० शिलाभिषेक .......... शिलान्यास अने रत्नादिन्यासनां मंत्रो........... परिच्छेद विषयाः ............. चतुःशिला प्रतिष्ठा ...... परिच्छेद सूचि .......... पंचशिलाप्रतिष्ठा ........................... भूमिग्रहणविधि .......... नवशिलाप्रतिष्ठा ............. ........ खातविधि ............... शिलान्यास पछीनां शुभाशुभ निमित्तो ...... संक्षिप्तवास्तुपूजाविधि शिलान्यासविधि प्रतिष्ठा कल्पोक्त कूर्मप्रतिष्ठा विधि. __ चैत्यद्वाणतिष्ठा. शिलान्यासविधि. ......... हृदयप्रतिष्ठाविधि .. शिलान्यासनो क्रम..... जिनबिंबप्रवेशविधि-१........ शिलान्यासनां वास्तुस्थानो थानो............... नवग्रहदशदिकपालस्थापनाविधि....... शिलान्यास केटलो नीचो करवो स्थापनीय बिंबलेवा जावानी विधि........... " ....... Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ विषया| नुक्रम ॥ ................... GMNa ० ।। ७१ ॥ ................... ० भूतबलिमंत्र............ जिनबिम्बप्रवेशविधि (२) ...... जिनबिम्बप्रवेशविधि (३)..... जिनबिम्बप्रवेशविधि (४)..... आसनयंत्र-१..... ....... आसनयंत्र-२.... आसनयंत्र-३ .............................. नव्यप्रतिष्ठाविधि - पूर्व क्रिया .................. मुहूर्त निर्णय राजपृच्छा-भूमिशोधन.......... मंडप निर्माण........... वेदीनी रचना......... संघभक्तिना आदेशादि. ...... उपकरण-पदार्थसूची ... ...... ....... उत्सवक्रिया-प्रथमाह्निकबीजम् . (१) प्रथमाह्निककृत्यविधि-मंडपप्रवेश ........... जलयात्रा विधि ........... कुंभस्थापना विधि ............ अखंडदीपकस्थापन विधि .. कुंभस्थापननी प्राचीन विधि. नवांग वेदी रचना अने यववारक वपन ......... (२) द्वितीयाह्निकम् .. ........... द्वितायह्निक कृत्यविधि .. नन्द्यावर्त आलेखन विधि . ................. नन्यावर्त पूजनविधि (३) तृतीयाह्निकम् दिक्पालपूजनविधि दिशाबलिक्षेप ग्रहपूजाविधि ........ ग्रहशान्तिस्तोत्र अष्टमंगल स्थापना ... Cool ...... ० Gana G या ....... ० का चा यात्र ॥ ७१ ।। 'या For Private & Personal use only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ |॥ विषया नुक्रम । ॥ ७२ ॥ (४) चतुर्थाह्निकम् ............ ............. सिद्धचक्रपूजन कृत्यविधि .... सिद्धचक्रपूजन ............ ......... (५) पंचमाह्निकम् ......... वीशस्थानकपूजनविधि वज्रपञ्जरस्तोत्र वीशपदपूजन. (६) षष्ठाह्निकम् ..... .............. कृत्यविधि-इन्द्र-इन्द्राणी कल्पना .. च्यवनकल्याणकविधि (७) सप्तमाह्निकम् ........... जन्मकल्याणक कृत्यविधि ............ दिक्कुमारीकृतोत्सवविधि.... इन्द्र इन्द्राणीकृत जन्माभिषेकोत्सव ............... १५८ (८) अष्टमाह्निकम् अष्टादश अभिषेकादि ........ १६१ कृत्याविधि-उपकरणम् .......... जलादिमंत्रणविधि . अधिषेककाव्यादि.. जिनाह्वानादि आन्तरविधि .......... दिक्पालादि आह्वाव.................. मंत्रन्यासादि अवान्तर विधि................. पंचामृतनो अभिषेक.. ..................... (९) (९) नवमाह्निकम् ..... दीक्षाकल्याणकोत्सवादि. कृत्यविधि-अधिवासना विधि ....... (१०) दशमाह्निकम् -अञ्जनशलाकाविधि...... अञ्जनशलाका-कृत्यविधि शान्तिमंत्र.. नयनमां अंजन .......... मंगलगाथा ............ 2 . &&&&MMMMwar ० ० ० ० .. ०G GM ० Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ ० ० ॥ कल्याण | | विषयानुक्रम ॥ कलिका. खं० २॥ ।। ७३ ।। m ० प्रतिष्ठाफलदेशना ......... कंकणमोचन विधि ............ पश्चामृतना १०८ अभिषेक .. कंकणमोचनविधि (प्रकारान्तरेण)............... यक्ष-यक्षिणी प्रतिष्ठा.... प्रभुप्रतिष्ठाविधि ... अष्टोतरि स्नात्र विधि ...... श्री शांतिस्नात्र विधि विसर्जनम् .. तीर्थयात्रा शांतिकम् ग्रहशांतिकम् ... ............. गोचरग्रहपीडा शांतिकविधि .................... जीर्णोद्धारविधि ................. देवीप्रतिष्ठा विधिवस्त्वधिवासना .... श्री पादलिप्तसूरिखणीत प्रतिष्ठा विधि .. वेदीरचना प्रतिष्ठोपयोगी सामग्री ..... उत्सवक्रिया. ................. देववंदन ..................................... शुचिविद्या अने सकलीकरण . भूतबलिमंत्र.............. प्रतिमामा वर्णन्यास ...................... दिग्बन्ध मंत्र अने स्नानविधि.. नन्द्यावर्त्त मंडलनी आलेखन विधि, नन्यायवर्तनी पूजनविधि .. नन्द्यावर्त्त पूजनमंत्रो.. अधिवासना-अधिवासना मंत्रों.... प्रतिमामां पृथ्यादि तत्वोनो न्यास ........ इन्द्रियादि न्यास ... r ० awr ० mr ० ० ....... . m G6 m Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ७४ ।। नाडीदशक विन्यास सहजगुणस्थापन प्रतिष्ठाविधि द्रव्यो स्थापवानी समजण नामस्थापन मंगलगाथा पाठ. प्रतिष्ठागुणगर्भित देशना शांतिबलि मंत्र संक्षिप्त प्रतिष्ठाविधि लेपमयप्रतिष्ठावधि सरस्वत्यादि प्रतिमा प्रतिष्ठा पादलिप्त प्रतिष्ठा कल्पमूलम् मध्यकालीन अंजन शलाका विधि नन्द्यावर्त्त आलेखन विधि नन्द्यावर्त्त पूजन विधि ३१८ ३१९ ३२१ ३२२ ३२४ ३२६ ३२७ ३२८ ३२९ ३३० १५ ३३१ ३३२ ३३८ जलयात्रा विधि दिक्पाल स्थापना प्रतिष्ठा प्रारंभ मंगल .. अधिवासनानो उपक्रम अढार अभिषेक अधिवासना मंत्रो प्रतिष्ठाविधि लवणजलाऽऽरात्रिकविधि प्रतिष्ठाविधि बीजकानि श्रीचन्द्रप्रतिष्ठापद्धतिबीज काव्यानि परंपरागताः प्रतिष्ठाबीजकगाथाः ध्वजदंडारोपविधि बीजकम् जिनप्रमसूरि प्रतिष्ठाबीजकम् .. स्थापनाचार्यप्रतिष्ठाविधि. चैत्यप्रतिष्ठा विधि ३४० ३४३ १६ ३४५ ३४७ ३४८ ३५० ३५१ ३५७ ३६० ३६३ ३६५ ३६५ ३६६ ३६८ ३६९ ३७१ ३७१ ॥ विषया नुक्रम ॥ || 08 || Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 . १७ ॥ कल्याण 0 कलिका. ama| विषया नुक्रम ॥ चा 0 .......... खं० २॥ 0 १८ 0 0 कलशप्रतिष्ठाविधि ........... .............. कलश ९ अभिषेको अधिवासना............. कलशप्रतिष्ठा .. ध्वजदंडप्रतिष्ठा ........ अधिवासना-१३ अभिषेकादि. .............. ध्वजदंडप्रतिष्ठाविधि .. शिखरेकुसुमांजली प्रक्षेप . ध्वजागतिनुं शुभाशुभफल ..... ............. श्रीशांतिवादिवेतालीय अर्हदअभिषेकविधि ........ उपकरण ........... अभिषेक प्रारंभ प्रथम पर्व ............. द्वितीयपर्व - दिक्पालाह्वान तृतीयपर्व - घृतादि २० अभिषेको ..... चतुर्थपर्व - सौगन्धिक-अभिषेक पंचमपर्व - बलिढौकन.... दिशापालोने बलिक्षेप विसर्जनविधि ................... ........... ग्रहपीडोपशांतिमां विशेष ................... अष्टोत्तर शत स्नात्र विधिः (१९मा सैकानी)... नवग्रहपूजाविधि................. .............. दिक्पालपूजाविधि-अष्टमंगल स्था............... दिक्पालोने बलिक्षेप.. पूजा प्रारंभ ............ .............. अष्टोत्तरशतस्नात्रविधि (१७मा सैकानी)........ प्रकीर्णक प्रतिष्ठा .. १ गृहप्रतिष्ठाविधि.. २ जिनपरिकरप्रतिष्ठाविधि ३ चतुर्निकायदेवमूर्ति प्रतिष्ठाविधि ............ ४ ग्रप्रतिष्ठा विधि .. ५ सिध्धमूर्ति प्रतिष्ठा विधि R 4 x ८ GWANWWWam ८ र c ० ० mmy Nom c c ................ .......... C Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ७६ ।। १ २ ६ मंत्र - पट्टप्रतिष्ठा विधि.. साधुमूर्ति प्रतिष्ठा विधि ८ पितृमूर्ति प्रतिष्ठा विधि ९ तोरणप्रतिष्ठा विधि १० जलाशय प्रतिष्ठाविधि 67 तृतीयखंडनी विषयानुक्रमणिका चैत्यवंदन संदोह चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः प्रथम चौबीशी श्री धर्मघोषसूरिया द्वितीय चौवीशी... स्तुति स्तवन- मंत्राः प्रतिष्ठोपयोगी मंत्राः . ४६२ ४ ४६२ ५ ४६३ ४६४ -४६५ ४६७ ४७६ ४८१ ४८५ ५०० स्मरण स्तोत्राणि प्रतिष्ठोपस्कर..... अंजनशलाका सामाननी सूची. पादलिप्तप्रतिष्ठा पद्धतिनो कारक जात गुणरत्नसूरि प्रतिष्ठाकल्पोक्त सामग्री. गुणरत्नीयाभिषेकोपकरण सूची बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरण सूची शान्तिस्नात्रना सामाननी सूची. पूर्वतनप्रतिष्ठाकल्पोक्त सामग्री.. स्नात्रभेदाः क्रयाणकसूची मुद्राचित्र ५०५ ५२४ ५२५ ५२९ ५३१ ५३२ ५३५ ५३८ ५४१ ५५८ ५६१ ५७१ ॥ विषया नुक्रम ॥ ।। ७६ ।। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प. पू. पन्यास कल्याणविजयजी म. लिखित तथा प्रकाशित ग्रंथावली| ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ७७ ॥ निंबधनिचय प्रबन्ध पारिजात पट्टावली प्रतिक्रमण विधि संग्रह श्री श्रमण भगवान महावीर सर्वोदय शास्त्र श्री जिनपूजा पद्धति श्री जैनविवाह विधि श्री मंत्रकल्प संग्रह श्री तीर्थमाला पंडित माघ मानवभोज्यमिमांसा १३. श्री गोल नगरीय प्रतिष्ठा विधि जैन ज्ञानगुण संग्रह पर्व तिथि चर्चा संग्रह १६. श्री जिनगुण कुसुमांजलि श्री कल्याण कलिका भाग-१ श्री कल्याण कलिका भाग-२ १९. त्रिस्तुतिकमलमीमांसा रत्नाकर तित्थोगालिय पयन्ना २२. चालु चर्चामां सारांश केटलो २३. वीरनिर्वाण संवत और कालगणना २४. नागरिक प्रचारिणी पत्रिका For Private Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. ग्रहण ॥ पं. श्री कल्याणविजयगणिविरचितायां कल्याण-कलिकायां द्वितीय-खण्ड: परिच्छेद-सूचि भूमिग्रहविधिस्तद्वद्, वास्तुपूजाविधिस्तथा । कूर्मन्यासप्रतिष्ठा च, शिलान्यासविधिस्तथा ॥शा द्वारप्रतिष्ठा हृदय-प्रतिष्ठा जिनवेश्मनाम् । जिनबिम्बप्रतिष्ठा श्री-पादलिप्तप्ररूपिता अद्यतनो जिनार्चानां, प्रतिष्ठाविधिविस्तरः । चैत्यप्रतिष्ठा कलश-प्रतिष्ठा दण्डरोपणम् ॥३॥ जिनबिंबप्रवेशश्च, त्रिविधः परिकीर्तितः । अभिषेकविधिस्तद्वदष्टोत्तरशतार्चनम् ॥४॥ शान्तिस्नात्रविधिस्तीर्थयात्राणां शान्तिकं तथा । ग्रहशान्तिद्वयं जीर्णोद्धारस्य विधिरेव च देवीप्रतिष्ठा विविध-वस्त्वधिवासनाविधिः । प्रकीर्णकप्रतिष्ठाश्च, परिच्छेदाः प्रकीर्तिताः ॥६॥ भूमिग्रहण विधि १, वास्तुपूजा विधि २, कूर्मन्यास-प्रतिष्ठा ३, शिलान्यास विधि ४, द्वारप्रतिष्ठा विधि ५, हृदयप्रतिष्ठा विधि | |॥२॥ जा ॥ १ ॥ For Private & Personal use only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ भूमिग्रहण ॥ चा ६, पादलिप्तसूरि निरूपित जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि ७, वर्तमान समयमा प्रचलित जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि ८, चैत्यप्रतिष्ठा विधि ९, कलशप्रतिष्ठा | विधि १०, ध्वजदण्ड प्रतिष्ठा विधि ११, त्रण प्रकारे जिनबिंब प्रवेश विधि १२, अभिषेक विधि १३, अष्टोत्तरीस्नात्रपूजा विधि १४, | शान्तिस्नात्रपूजा विधि १५, तीर्थयात्रा शान्तिक १६, बे प्रकारे ग्रहशान्तिक १७, जीर्णोद्धार विधि १८, देवी प्रतिष्ठा विधि १९, विविधवस्त्वधिवासना विधि २० अने प्रकीर्णक प्रतिष्ठा विधि २१, ओ बीजा खंडना परिच्छेदो कह्या. हवे प्रत्येक' परिच्छेदनुं नीरुपण कराय छे. परिच्छेद १. भूमिग्रहण विधि : परीक्षितापि चैत्यारे, भूमिाह्या विधानतः । येन तत्र कृतं वेश्म, निर्विघ्नं शान्तिदं भवेत् ॥७॥ चैत्यने योग्य परीक्षित भूमिनो पण स्वीकार विधि पूर्वक करवो जोइये के जेथी तेमां निर्विघ्नपणे जिनघर बनी शके अने ते शांतिदायक थाय. पूर्वोक्त प्रकारे वर्ण, गन्ध, रसादिके करी परीक्षा करी पछी ते भूमि विधि पूर्वक पोताना अधिकारमा लेवी. प्रासाद भूमि उपर अधिकार सारा मुहूर्ते अने शुभ लग्नमां करवो, अने तेज मुहूर्ते तेमां खात मुहूर्त करीने भूमि शुद्धि करवी जोइये. प्रासाद करावनार गृहस्थ, अथवा सूत्रधार प्रथम स्नान करी, शुद्ध वस्त्र धारण करी, अक्षतमिश्रितवास पुष्पादि पूजोपस्कर लेइ, ते परीक्षित भूमिमां जइ, वास्तु भूमिना मध्य भागे पंचरत्नादियुक्त कुंभ स्थापित करे, पछी पूर्वादि दिशा सामे उभा रही - १ ॐ इन्द्राय आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । २ ॐ अग्नये आगच्छ २ अर्धं प्रतीच्छ २ स्वाहा । १. उपरना द्वारोना क्रममा बीजा संस्करणमा फेरफार कर्यो छे. अनुक्रमणिका जोवी । क For Private & Personal use only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | भूमि ग्रहण ॥ | ३ ॐ यमाय आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । ४ ॐ निर्ऋतये आगच्छ २ अर्धं प्रतीच्छ २ स्वाहा । ।। कल्याण५ ॐ वरुणाय आगच्छ २ अर्घं प्रतीच्छ २ स्वाहा । ६ ॐ वायवे आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । | कलिका. खं०२॥ ७ ॐ कुबेराय आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । ८ ॐ ईशानाय आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । ९ ॐ नागाय आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । १० ॐ ब्रह्मणे आगच्छ २ अर्घ प्रतीच्छ २ स्वाहा । आ प्रमाणे प्रत्येक लोकपालने अर्घ निवेदन करी पछी पीला सर्षव हाथमां लइने मंत्र बोली भूमिनो स्वीकार करवो. अपक्रामन्तु भूतानि, देवदानवराक्षसाः । वासान्तरं व्रजन्त्वस्मात्, कुर्यां भूमिपरिग्रहम् ॥१॥ यदत्र संस्थितं भूतं, स्थानमाश्रित्य सर्वदा । स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्वं, यत्रस्थं तत्र गच्छतु ॥२॥ अपक्रामन्तु भूतानि, पिशाचाः सर्वतो दिशम् । सर्वेषामविरोधेन, चैत्यकर्म समारभे ॥३॥ आ श्लोको बोलीने पूर्वादि चारे दिशामां सरसव फेंकी भूतादिसत्त्वने दूर करवू, पछी त्यां पंच गव्य अने सुर्वणजल छांटवू. ते पछी घरधणीए पूर्ण कलश खांधे लइ गीत वादिबोना नाद पूर्वक प्रथम पूर्वदिशामां ते भूमिनी सीमापर्यन्त ज. त्यां क्षणभर रोकाइ आग्नेय कोणमा, त्यांथी दक्षिण सीमामां थइ नैर्ऋत्य कोणमा, त्यांची पश्चिम सीमा उपर थई वायव्य कोणमा अने त्यांथी उत्तर सीमामां थइ ईशान कोण पर्यन्त ते भूमिमां फरी, भूमिनी चतुर्दिक् सीमा नियत करवी, सूत्रधार त्यां शंकु (खीलीओ) अने दोरी लइने हाजर रहे, प्रासाद वास्तुनी सीमा निश्चित करवा माटे आग्नेय कोणथी सृष्टि क्रमथी ४ कोणोमा ८ खीलियों रोपी, बेबे खीलियो वच्चे एक दोरी || N/ खेंचीने बांधे. आ प्रमाणे भूमिनी चार सीमा निश्चित करी सोना रूपा मोती दही अक्षतादि मांगलिक पदार्थो वडे तेनी प्रदक्षिणा कराववी Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण ॥ भूमि कलिका. | ग्रहण खं० २॥ अने संक्रान्त्यनुसारे जे कोणमा खातस्थान आवतुं होय त्यां लग्न समय आवतां विधिपूर्वक खात मुहूर्त करवू. खातविधि - वास्तु भूमिना मध्यभाग उपर कुंभ स्थापन करी तेनी सामे पाटलो ढालीने ते उपर प्रथम वास्तु पुरुष- आह्वान पूर्वक स्थापन करवू. ते आ प्रमाणे - ॐ वास्तोष्पतये ब्रह्मणे नमः । ॐ वास्तोष्पते इहागच्छ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पते इह तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पते पूजां प्रतीच्छ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पतये नमः । मुद्रापूर्वक आह्वान-स्थापना करी नीचेना मंत्रोच्चारण पूर्वक द्रव्यो चढावबां, ते आ प्रमाणे १ॐ वास्तोष्पतये धूपं समर्पयामि स्वाहा । २ ॐ वास्तोष्पतये चन्दनादिकं समर्पयामि स्वाहा । ३ ॐ वास्तोष्पतये पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा । ४ ॐ वास्तोष्पतये वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । ५ ॐ वास्तोष्पतये फलं समर्पयामि स्वाहा । ६ ॐ वास्तोष्पतये दीपं समर्पयामि स्वाहा । ७ ॐ वास्तोष्पतये नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । ८ ॐ वास्तोष्पतये अक्षतादिकं समर्पयामि स्वाहा । प्रत्येक मंत्रमा जणावेल द्रव्यो चढाव्या बाद हाथ-जोडीने नीचेनो श्लोक बोलबो - वास्तुपुरुष ! नमस्तेऽस्तु, भूमिशय्यारत प्रभो ! । मद्गृहं धनधान्यादि-समृद्धं कुरु सर्वदा ॥४॥ आम प्रार्थना करी शुद्ध जल अंजलिमा लईने - "ॐ वास्तोष्पतये ब्रह्मणे विसर विसर पुनरागमनाय स्वाहा" आ मंत्र Jawal For Private & Personal use only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २॥ ग्रहण ॥ वडे विसर्जन मुद्राये विसर्जन करवू. ते पछी खातस्थाने जइ गंध पुष्प फलाक्षतादिनुं पात्र हाथमां लइने नीचेना मंत्र श्लोको बोली पृथ्वीने | अर्घ्य आप. आगच्छ सर्व कल्याणि !, वसुधे ! लोकधारिणि ! । पृथिवि ! हेमगर्भाऽसि, काश्यपेनाऽभिवन्दिता ॥५॥ चैत्यं तु कारयाम्यद्य, तदूधै शुभलक्षणम् । गृहाणायं मया दत्तं, प्रसन्ना शुभदा भव ॥६॥ आ पछी नीचेनो श्लोक बोलीने पृथ्वीनी क्षमा प्रार्थना करवी. क्षमे ! क्षमस्व माघ, मेदिनि ! मनुजाम्बिके । चैत्यकर्म समारंभे, करिष्ये तव घट्टनम् ॥७॥ आम प्रार्थना कर्या पछी कोदाली आदि खातोपकरणो उपर सुवर्ण जल छांटी, केसर चंदनादि सुगंध पदार्थो छांटवा, अने लग्न समय आवतां वादित्र नादो अने जयघोषो पूर्वक खातमुहूर्त करवू. ओछामां ओछो एक हाथ उंडो चोरस खाडो मुहूर्त समयमां करवाथी ज खात मुहूर्त कर्यु गणाय. ॥ ५ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ ६ ॥ परिच्छेद २. संक्षिप्त वास्तु पूजा विधिः || संक्षिप्त चैत्यकर्मसमारम्भे, प्रवेशसमयेऽपि च । वास्तुपूजा यथाशक्ति, विधेया शान्तिमिच्छता ॥८॥ वास्तुपूजा। "चैत्यना कामनो आरंभ करतां अने तेमा प्रवेश करवाना (प्रतिष्ठाना) समयमा शान्तिना इच्छुके शक्त्यनुसार 'वास्तु पूजा करवी." वास्तुभूमिर्नु पूर्वोक्त प्रकारे संशोधन करी, प्रासाद अथवा गृहना परिमाणानुसार तेने पथ्थरो अने माटी वडे उंची लेइ, दिशाओ निश्चित करीने शिलान्यास करती वखते प्रथम त्यां वास्तु मण्डल आलेखी वास्तु पूजा करवी. मंडलना कया पदमां कया देवनो वास छे. ते कोष्ठकोमा | आपेल नामो उपरथी निर्णय कर्या पछी पूजानो प्रारंभ करचो. पूजानो प्रारंभ कया पदथी करवो मे विषयमा शिल्पशास्त्रो अकमत नथी. घणा ग्रन्थकारो ब्रह्मा, तेनी परिधिना मरीचि आदि ४, अने आप, आपवत्सादि ८, आ १२ देवो अने अन्तमां ईशादि ३२ प्राकारगत | देवो; आ क्रमथी पूजा विधान लखे छे. ज्यारे केटलाक ग्रन्थकारो अथी विपरीत ईश आदि ३२ देवो, अने ब्रह्मा; आ क्रमथी पूजा | प्रारंभ करवानुं लखे छे. 'चरकी' आदि पदबाह्यस्थित देवीओनी पूजा सर्वना मते पाछळथी करवानी छे. पूजा बलि द्रव्यो, प्रत्येक पदस्थित तेमज पदबाह्य देवोने माटे भिन्न भिन्न विहित छे, छतां सर्व द्रव्योनी प्राप्ति न थतां पुष्प, अक्षत, सुगन्ध, धूप, दीप अने शुद्ध पक्काननी बलिनुं पण पूजामां विधान कर्यु छे. निवार्णकलिकाकारे "दुर्वादध्यक्षतादि", आ पाठमां आदि शब्द वापर्यो छे. अटले पुष्प, धूप, | दीप, फल, मेवो, विगेरे यथोपलब्ध द्रव्योनो पूजामा उपयोग करवो, एक पदमां वे देवो होय तो प्रत्येकनो नाम मंत्र बोली, तेनां उपहार Tale द्रव्यो चढाववां, अकथी अधिक पदोमां अक देव होय तो प्रत्येक पदमां ते देवनो नाम मंत्र बोलीने पूजापो चढाववो, पूजानो प्रारंभ | ईशान कोणथी करीने प्रथम 'ईश' आदि ८ पूर्व दिशामां, पावकादि ८ दक्षिण दिशामां, पित्रादि ८ पश्चिम दिशामा अने वायु आदि | ८ उत्तरमां; आम बाह्य पदगत ३२ देवोनी पूजा करवी, ते पछी आप, आपवत्सादि ईशानादि अभ्यन्तर कोणगत ८, मरीचि-विवस्वान् | ॥ ६ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ संक्षिप्त वास्तुपूजा। म का - आदि पूर्वादि दिग्गत ४ अने ब्रह्मा १ मध्यमां; आ क्रमथी वास्तु मंडलगत ४५ देवोने पूजवा. अन्ते 'चरकी' आदि अनुचरी देविओनुं | पूजन करवू, नीचे प्रमाणे नाम मंत्रोच्चारण पूर्वक ते ते दिशामां ते ते देवोनी पूजा करवी. 'ईशानथी अग्निकोण सुधीमां पूर्वगत देवोनी पूजा' ॐ ईशानाय नमः । ॐ पर्जन्याय नमः २ । ॐ जयाय नमः ३ । ॐ माहेन्द्राय नमः ४ । ॐ रवये नमः ५ । ॐ सत्याय नमः ६ । ॐ भृशाय नमः ७ । ॐ व्योम्ने नमः ८ । _ 'अग्निकोणथी नैर्ऋत्यकोण सुधी दक्षिणगत देवोनी पूजा' ॐ पावकाय नमः ९ । ॐ पूष्णे नमः १० । ॐ वितथाय नमः ११ । ॐ गृहक्षताय नमः १२ । ॐ यमाय नमः १३ । ॐ गन्धर्वाय नमः १४ । ॐ शृंगाय नमः १५ । ॐ मृगाय नमः १६ । ____ 'नैर्ऋत्यकोणथी वायव्यकोण सुधीना पश्चिम दिशागत देवोनी पूजा' ॐ पितृभ्यो नमः १७ । ॐ दौवारिकाय नमः १८ । ॐ सुग्रीवाय नमः १९ । ॐ पुष्पदन्ताय नमः २० । ॐ वरुणाय नमः २१ । ॐ असुराय नमः २२ । ॐ शोषाय नमः २३ । ॐ रोगाय नमः २४ । 'वायव्यकोणथी ईशान सुधीना उत्तर दिशाना देवोनी पूजा' ॐ वायवे नमः २५ । ॐ नागाय नमः २६ । ॐ मुख्याय नमः २७ । ॐ भल्लाटाय नमः २८ । ॐ सोमाय नमः २९ । ॐ शेषाय नमः ३० । ॐ अदितये नमः ३१ । ॐ दितये नमः ३२ । 'अभ्यन्तर कोणगत ८ देवोनी पूजा' - ईशान कोणे - ॐ अद्भ्यो नमः ३३ । ॐ आपवत्साय नमः ३४ । आग्नेय Jan Education international Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं०२॥ | ॥ संक्षिप्त वास्तुपूजा। ॥ ८ ॥ कोणे- ॐ सवित्रे नमः ३५ । ॐ सावित्राय नमः ३६ । नैर्ऋत्यकोणे - ॐ इन्द्राय नमः ३७ । ॐ इन्द्रजयाय नमः ३८। वायव्यकोणे - ॐ रुद्राय नमः ३९ । ॐ रुद्रदासाय नमः ४० । पूर्वमां - ॐ मरीचये नमः ४१ । दक्षिणमा - ॐ विवस्तवे नमः ४२। पश्चिममां - ॐ मित्राय नमः ४३ । उत्तरमां - ॐ धराधराय नमः ४४ । मध्यमां - ॐ ब्रह्मणे नमः ४५ ।। ___'मण्डल बाह्ये ईशाने - ॐ चरक्यै नमः १ । पूर्वमां - ॐ स्कन्दायै नमः २ । अग्निकोणे - ॐ विदायै नमः ३। | दक्षिणमा - ॐ अर्यमायै नमः ४ । नैर्ऋत्ये - ॐ ललनायै नमः ५ । पश्चिमे - ॐ जंभायै नमः ६ । वायव्य कोणे - ॐ पूतना पापराक्षस्य नमः ७ । उत्तरे - ॐ पिलिपिच्छायै नमः ८ ॥ बृहत्संहितादिक ग्रन्थोमां चरकी, विदारी, पूतना, पापराक्षसी आ ४ विदिस्थित देविओनो उल्लेख छे. पण दाक्षिणात्य पद्धतिना शिल्प ग्रन्थोमा उक्त ४ उपरान्त पूर्वादि दिशाओमां शर्वस्कन्द, अर्यमा, जंभक, अने पिलिपिच्छक; ए नामक ४ पुरुष देवोनी पण मंडलनी बहार पूजा करवानुं विधान कर्यु छ, कलिकामा दिशा देवोने पण स्त्री लिङ्गमां ज लख्या छे. तेथी अमोओ तेना अनुसारे अत्र पूजनमा नामो लख्यां छे, उक्त वास्तु पूजाने केटलाक प्रतिष्ठाकल्पकारो 'स्थंडिल वास्तु' नाम आपे छे, ज्यारे वास्तु भूमिमां खाडो खोदीने तेमां कराता वास्तुपूजनने 'पातालवास्तु' कहेल छे. पादलिप्तसूरिए उक्त अकज प्रकारचें वास्तु मान्यु छे अने तेनुं विधान शिलान्यासना समयमां जणाव्युं छे. A ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ कूर्म प्रतिष्ठा ।। ॥ ९ ॥ परिच्छेद ३. कूर्म प्रतिष्ठा विधि : ( प्रतिष्ठा कल्पोक्त) चैत्यकर्म विधावत्र, कूर्मो भूमौ निधीयते । यत्पीठनिहितं चैत्यं, चीरस्थायि भवेद् ध्रुवम् ॥९॥ चैत्य कार्यना निर्माणमां नीचे भूमिमां कूर्म स्थापित करी तेनी पीठ उपर चैत्य बनाववाथी ते स्थिर अने चीरस्थायी बने छे. सामग्री - सोनानो काचबो १ । पंचरत्ननी पोटली ५ । माटीना कलशिया ५ । कलशियानां ढांकणां ५ । उपशिलाशिलओनां संपुट ५ । सात धान्य कोरां मुट्टि ५ । सातधान्यना बाकला थाली १ । स्नात्रपूजानो सामान । पंचामृतनो कलशियो १ । पुष्प सर्व जातनां । फल सूकां-लीलां । डाभनी शली ५ । जलनो कलश १ । कूर्मने ओढावबानुं वस्त्र-हाथ १ । सिंहासन १ । पंचतीर्थीप्रतिमा १। आरीसो १ । दीवो फानसमां १ । आरती भरेली १ । दीवासलीनी पेटी १ । मंगलदीवो भरेलो १ । नाना कलशिया ४ । गेवासूत्र कोयो १ । स्नात्रकार ४ । धोति उत्तरासण (खेस) ४, ४ । प्रक्षालनी कुंडी १ । अंग लूंछणां ३ । बाळा कुंची १। पाट मोटो १ शिलाओना अभिषेक माटे ॥ विधि - कूर्म प्रतिष्ठाविधि प्रतिष्ठा कल्पोमां नीचे प्रमाणे मले छे, जे स्थानमा कूर्म स्थापवो होय त्यां मुहूर्तना दिवसे प्रथम पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमा सिंहासन उपर पधरावी स्नात्र पूजा भणावची, आरती उतारवी, मंगल दीवो करवो, अने पछी त्यां चैत्यवंदन करवू. जे जिनना नामथी कूर्म प्रतिष्ठानु मुहूर्त होय ते जिन- चैत्यवंदन बोलवू. कदापि ते तीर्थंकरर्नु चैत्यवंदन याद न होय तो - 'ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिन्तामणीयते ।' इत्यादि चैत्यवंदन कहीने “नमुत्थुणं' कही उभा थई ३ स्तुतिओ कह्या पछी 'श्रीशान्तिनाथ आराधनर्थ काउसग्ग करुं ? इच्छं, श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउसग्गं, बंदण बत्तियाए.' इत्यादि पूरो पाठ बोली १ नवकारनो काउ० पारी नमोऽर्हत्. कही - ॥ ९ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ कूर्म प्रतिष्ठा ॥ खं० २॥ S 12 श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्याऽमराधीश-मुकुटाभ्यर्चितांहूये ॥१॥ ओ स्तुति कहेवी, पछी सुअदेवया करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० पारी नमोऽर्हत्० स्तुति . यस्याः प्रसादमतुलं, संप्राप्य भवन्ति भव्यजननिवहाः । अनुयोगवेदिनस्तां, प्रयतः श्रुतदेवतां वन्दे ॥२॥ ओ स्तुति कही, पछी श्रीशान्तिदेवयाए करेमि काउसगं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति . उन्मृष्टरिष्ट-दुष्ट-ग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि । संपादिहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥३॥ कही, श्रीशासनदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति . या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयात् शासनदेवता ॥४॥ कही, अम्बादेवीए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति . अम्बा बालांकिताङ्कासौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥५॥ कही, खित्तदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥६॥ कही, अधिवासना देवीए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ लोगस्स सागर वरगंभीरा सुधीनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति - पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्रावतस्तु जैने, कूर्मे ह्यधिवासना देवी ॥७॥ स itha GB ॥ १० ॥ Jain Education international Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ॥। ११ ॥ कही, समस्तवेयावच्चगराणं सम्मद्दिट्ठिसमाहिगराणं करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० नमोऽर्हत् स्तुति सर्वे यक्षम्बिकाद्या ये, वैयावृत्यकराः सुराः । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ||८|| कही पछी उभां उभां १ नवकार पूरो गणी बेसीने 'नमुत्थुणं' कहेवो. 'जावंति चेइआई० जावंतकेविसाहू ० नमोऽर्हत् स्तवन स्थाने 'शान्तिं शान्ति निशान्तं' इत्यादि लघुशान्ति स्तव कहीने 'जयवीयराय' पूरा कहेवा. ते पछी स्नात्रनुं अभिषेकजल ते वास्तु भूमिमां बधे छांटवुं, दश दिक्पालोनुं आह्वान करी बलिक्षेप करवो, अने ते पछी स्थापनीय शिलासंपुटो तैयार करवा, जो प्रासाद पाषाणनो बनाववो होय तो शिलाओ पापाणनी अने इंटोनो बनाववो होय तो शिलाओ पण इंटोनी तैयार करवी अने वास्तुभूमिना ४ खूणाओमां ४ अने मध्यमां १, आम ५ खाडा शिलाओ करतां कईक मोटा खणावीने राख्य होय ते प्रत्येक मोटा खाडानी नीचे मध्यमां एक एक नानो खाडो खोदाववो. आ नाना खाडाओमां १-१ माटीनो नानो कलशियो (कुलडु) सात धान्य अने पंचरत्न सहित मूकवो, कलशिआ उपर माटीनुं ढांकणुं देवुं अने ते उपर लग्न समय आवतां शिला संपुटो थापवा, शिलासंपुटो जे उपर-नीचे वे वे शिलाओ राखीने करेला होय तेओने प्रथम स्नात्र जल वडे पखालीने पछी नाल वाला कलेशोथी शुद्ध जले अभिषेक करी केसर चंदननुं विलेपन करवुं अने जे शिलासंपुट जे खाडामां स्थापवानो होय ते त्यां लइ जवो, जो संपुटो बधारे भारे होय अने मुहूर्तना समयमां बराबर जमावीने स्थिर करतां लग्न समय निकळी जवानो भय होय तो नीचे डाभनी १-१ शली मूकीने संपूटो पोतपोताना खाडामां बराबर जमावी देवा अ ज्यारे स्थापवानो समय आवी पहोचे त्यारे नीचेथी डाभनी शलिओ काढी लेवी. शिलासंपुटो से वास्तवमा ५ शिलाओ छे, अने आ शिलाओनां नाम अनुक्रमे १ नन्दा, २ भद्रा, ३ जया, ४ विजया अने ५ पूर्णा छे अने आनी स्थापना अनुक्रमे १ आग्नेयी', २ नैर्ऋती, ३ वायवी, ४ ऐशानी, ओ दिशाओना खूणाओमां अने मध्यमां करवी. मध्यमां प्रतिष्ठाप्य पूर्णा शिला उपर निम्न मुख बालो कूर्म (काचवो ) - ॥ कूर्म प्रतिष्ठा ॥ ॥ ११ ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याण | खं० २ ॥ कलिका. प्रतिष्ठा ॥ अने त्रण रेखा वाली श्रेष्ठ कोडी, आ बे वस्तुओ स्थापन करवी. कूर्म बनतां सुधी सोनानो बनावबो, के जेथी वास्तु भूमिमा शल्य दोष होय तो ते टली जाय, कूर्मने पंचामृत वडे अभिषेक करीने पछी शिला उपर स्थापवो, लग्ननो समय आवे त्यारे उपर्युक्त क्रम प्रमाणे ज बधी शिलाओ प्रतिष्ठित करवी अने उपर वासक्षेप नाखीने शिलाओनी प्रतिष्ठा करवी. मध्यशिला पर कूर्म स्थापन करतां - "ॐ हाँ श्रीँ कूर्म तिष्ठ तिष्ठ देवगृहं धारय धारय स्वाहा" आ मंत्र बोली उपर वासक्षेप नाखवो, कूर्म प्रतिष्ठा-देवगृह, प्रासाद, रथशाला, गृह आदि दरेक वास्तुना निर्माणमां थवी जोइये, जेमां कूर्म प्रतिष्ठा करवी होय ते वास्तुनुं नाम मंत्र मध्ये बोलवू, कूर्म प्रतिष्ठित करी वासक्षेप कर्या पछी सौभाग्य १, सुरभि २, प्रवचन ३, कृतांजलि ४ अने गरुड ५, आ पांच मुद्राओ देखाडवी, पछी इरियावही पडिक्कमवा पूर्वक पूर्वोक्त विधि प्रमाणे संपूर्ण चैत्यवंदन करवू. आ चैत्य वंदनमा छट्ठी स्तुस्ति कह्या पछी श्री प्रतिष्ठा देवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० इत्यादि कहीने १ लोगस्स सागरवरगंभिरा सुधीनो काउस्सग्ग करी पारीने नमोऽर्हत् कही . "यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनं कूर्म सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥" आ स्तुति कहेवी. शेष विधि प्रथम प्रमाणे करवी. चैत्यवंदन विधि कर्या बाद अक्षतांजलि भरीने - जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोकचूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥१॥ जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोयस्स मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥२॥ विष्णु संहितामां आग्नेयी दिशानो अर्थ गृहदारनो जमणो भाग, आवो कयों छे, जेम के . "पुनः कुष्टेष्टकाधानं, कुर्याद् द्वारे तु कल्पिते । द्वारस्य दक्षिणे भागे, कर्तव्या प्रथमेष्टिका ॥" ॥ १२ ॥ For Private & Personal use only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याण-I कलिका. खं० २॥ | प्रतिष्ठा ।। जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥३॥ जह जंबुस्स पइट्ठा, जंबुद्दीवस्स मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥५॥ आ मंगल गाथाओ भणी अक्षताञ्जलि कूर्म उपर नांखबी, स्नात्रकारोए अक्षतांजलि उपरांत पुष्पांजलि पण नांखवी, ते पछी कूर्म उपर वस्खाछादन करी चारे बाजुमां इंटो चणीने उपर शिला अथवा पत्थर- पाटियु ढांकी देवराबबु के जेथी कूर्म उपर शिला आदिनु दबाण न आवे. ॥ १३ ॥ ॥१३॥ For Private Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १४ ।। परिच्छेद ४. शिलान्यास विधिः वास्तूनां पादरूपिण्यः, शिला न्यस्ता विधानतः । चिरायुष्कत्वकारिण्यो, वेश्मनां भर्तुरप्यथ ॥१०॥ शिलाओ वास्तु (घर, मंदिर आदि ) ना पाया रूप गणाय छे, तेथी शिलाओ विधि पूर्वक स्थापन करवाथी घर तथा घरस्वामीनुं दीर्घायुष्य करनारी थाय छे. सामग्री शिला ४-५ अथवा ९, उपशिला ४-५ अथवा ९, निधिकलश ४-५ वा ९, पंचरत्न पोटली ४-५ वा ९, बस्त्रो ४५ वा ९ हाथ हाथनां, तेमां (४ शिलापक्षे- रातुं, श्याम, नीलुं अने श्वेत, ५ शिलापक्षे-रातुं, श्याम, नीलुं अने २ श्वेत अने ९ शिला पक्षे - रातुं, श्याम, नीलुं, कालु, आस्मानी, पीलुं अने ३ श्वेत), गेवासूत्र कोयो १, सातधानना बलिबाकला थाली १, शुद्ध जले भरेला घडा २, अभिषेक योग्य कलशिया ४, कांसानी थाली १, वेलण १, मोटो पाट १ ( वेदीना बदलामां), सर्वौषधि चूर्ण पडिकुं १, शिलालूंछणां वस्त्र ३, रुई ( दीवेट माटे) १, घसेला केसरनी वाटकी २, दीवो १, धूपधाणुं १, गंगाजल, तीर्थजल, अक्षत, सोनारूपा वा तांबानो कूर्म १, घृत ( दीवा तथा निधिकलशने योग्य), दूध, दहि, साकर, दशांग धूप पडिकुं १, अगरबत्ती पडिकुं१, सुगंधि पूजायोग्य; वासक्षेप पडिकुं १, गृहपति १, शिल्पी १, स्नात्रकार १ अने रत्न धातु आदिनी ९ पोटलीओ. शिलान्यासनो क्रम - शिलान्यासमां दिशाक्रमने अंगे पण ग्रंथकारोमां मतभेद छे. चार शिलाना घणा पक्षकारो शिलान्यास आग्नेय कोथी प्रारंभ करी ईशान कोणमां समाप्त करे छे, ज्यारे वैखानसतंत्र आदिमां ईशान कोणथी शिलान्यास करवानुं पण विधान करे छे, पंचशिलावादि ग्रन्थकारो देवालयना वास्तुमां आग्नेय कोणथी प्रारंभ करी मध्यमां छेल्ली शिला प्रतिष्ठित करवानुं विधान करे छे, आग्नेय पुराणमा शिलान्यासनो क्रम मध्यथी आरंभी ईशानमां समाप्त करवानो जणाव्यो छे, दाक्षिणात्य पद्धतिमां पांच शिलाओनो स्थापना क्रम ॥ शिला न्यास | 11 28 11 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ शिलान्यास ॥ ची A पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, अने मध्य आ प्रमाणे जणाव्यो छे, नवशिलावादिओ- आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, | ईशान, पूर्व अने मध्य; आ दिशाक्रमथी नन्दादि ९ शिलाओ अनुक्रमे स्थापित करवी अg विधान करे छे, दाक्षिणात्य पद्धतिमा नवशिलाओनी स्थापना पूर्वथी आरंभ करीने मध्यमां समाप्त करवानुं विधान छे. अर्थात् प्रथम पूर्वमा पछी आग्नेय कोणमां; इत्यादि सृष्टि क्रमे आठमी ईशानमा अने नवमी शिला मध्यमां आवे छे. ___अष्ट शिलापक्षमा शिलान्यास क्रम जुदोज छ, वास्तुभूमिमा प्रथम खूणाओमां चार चोरस कोष्ठको (खातो) करवां, आग्नेय तथा वायव्य कोणनां कोष्ठको पूर्वाग्र अने नैर्ऋत्य तथा ईशान कोणनां कोष्टको उत्तराग्र करवां, प्रत्येक कोष्ठकमां बे बे शिलाओ कोष्ठको प्रमाणे स्थापित करवी, प्रथम आग्नेय तथा वायव्य कोष्ठकोमा पूर्वाग्र अने नैर्ऋत्य तथा ईशान गत कोष्ठकोमा उतराग्र बेबे शिलाओनां युगलो स्थापित करवां. अष्ट शिला पक्षमा एक बीजो पण स्थापना क्रम दाक्षिणात्य ग्रंथोमा आपेलो छे, ते क्रम पूर्वथी प्रारंभीने सृष्टिक्रमे ईशानमां | छेल्ली शिला स्थापवानो छ, आम दाक्षिणात्य पद्धतिना आ अष्टशिला अने नवशिलाना पक्षमा मात्र एक शिलानीज न्यूनता रहे छे, बीजो फेरफार नथी. शिलान्यासनां वास्तुस्थानो - माल भरवानां गोदामो, राज्याभिषेक आदिना मंडपो, साधुओने रहेवानो मठो, उपाश्रयो, रसोडाओ, सर्व जातिना लोकोने रहेवानां घरो, नाटकशालाओ, देवमंदिरो, सभामंडपो, किल्लाओ, नगरनां द्वारो अने पारिवारिक गृहोना निर्माण समये शुभ मुहूर्तमा प्रथम शिलान्यासनी विधि करवी जोइये. शिलान्यास केटलो नीचे करवो ? - शिलान्यास वास्तुभूमिना उपरितन तलथी केटलो नीचाणमां करवो जोइये जे वस्तु शिल्पीगणेसारी रीते समजी लेवा जेवी छे, अपराजितपछा ग्रन्थना निर्माण समय सुधीमां देवालय संबन्धी वास्तुमां जलान्त अथवा पाषाणान्त | म ॥ १५ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । शिलान्यास ॥ AD a था खात करीने कूर्म. तेमज दिशा-विदिशामां स्थापनीय शिलाओनो विन्यास करवानी परिपाटी प्रचलित थई चुकी हती जे आज पर्यन्त ते प्रमाणे चाले छे. पण गृहवास्तुना शिलान्यासमां अटलुं बधुं खोदवानु के अटला उंडाणमां शिलान्यास करवानी आवश्यकता नथी, गृहबास्तुनी भूमिशुद्धि पुरुष प्रमाण भूमि खोदीने करवानुं विधान छे अने अटला नीचाणमा ज शिलान्यास करवो जोइये, कदाच भूमिमां अधिक नीचे सुधी शल्य होइ तेना उद्धार निमित्ते खात वधु उडु थइ गयु होय तो ते शुद्ध माटी के पथथर आदिथी पूरीने चतुर्थांश जेटलं भरवानू बाकी रहे त्यारे शिलान्यास करवो अबुं विधान पण दृष्टिगोचर थाय छे.+ शिलान्यासमां वास्तुना मर्मो टाळवा - देवालयना वास्तुना मानमां तेनी भीत सामेल गणाय छे, आथी देवगृहना शिलान्यासमा मर्मनी विशेष चिन्ता करवा जेवू रहे छे, ज्यारे गृह वास्तुनुं माप भींतोनी अन्दरना भूमि भागनुं कराय छे, छतां शिलान्यासमां गृहवास्तुने अंगे पण अनो विचार तो करवो ज जोइये. वास्तुभूमिना ६४ अथवा ८१ समान भागो करी रज्जुओ, वंशो अने महावंशोना संपातस्थानो निश्चित करीने शिलान्यास करवो के जेथी मर्म, उपमर्मादिनो शिला बडे वेध न थाय, आ प्रथम विषयनी विशेष चर्चा प्रकरणान्तरमा करेली होइ त्यांथी अ विषय समजी लेवो जोइये. शिलाओनो ढाळ कइ तरफ ? - शिलान्यासमा शिलाओ कइ दिशामां ढळती (सहेज नीची) राखवी ते पण शिल्पीओ प्रथमथी ज निश्चित करीने पछी न्यास करबो, केमके अकवार विधिपूर्वक स्थापित कर्या पछी शिलाने चलायमान करवी ते अशुभफलदायक छे. शिलानो झुकाव (ढाळ) पूर्व अथवा उत्तर दिशा तरफ राखवो शुभ गणाय छ, वास्तुनुं द्वार पूर्व तरफ होय तो शिलानो ढाल पूर्वमा अने उत्तरमां होय तो उत्तरमा राखबो. वास्तुनुं द्वार पश्चिममां होय तो शिलानो ढाल उत्तरमा अने दक्षिणमां होय तो पूर्वमा राखवो + पुरुषांजलिमात्रे तत्, खाते वाऽखिलधामसु । पादावशिष्टे खाते वा, विन्यसेत्प्रधमेष्टिकाम् ॥१॥ ॥ १६ ॥ For Private & Personal use only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S || शिलान्यास ॥ ॥ १७॥ जोइये, कारण के पश्चिम अथवा दक्षिण तरफना डाळवाली शिलाओ अशुभ गणाय छे. ॥ कल्याण- शिलाभिषेक - शिलाओनो प्रथम अभिषेक करी पछी ते यथास्थान प्रतिष्ठित करवी जोइये, ज्यां शिलान्यास करवानो होय ते शिलामा कलिका. वास्तुभूमिना ईशान अथवा नैर्ऋत कोणमा अक चोरस वेदी बनाववी, वास्तुमाने जेवडी शिलाओ होय तेने अनुसार अभिषेकवेदी बनावबी, खं०२॥ | शिलाओ ४-५-८-९ पैकी केटली छे, अने तेओर्नु दैर्ध्य-विस्तार केटलो छ, अ बधो विचार करीने शिलाओ सारी रीते रही शके तेवा प्रमाणमां वेदी बनावीने ते उपर शिलाओ- उपशिलाओ अने कळशोनो अभिषेक करवो. अभिषेक सोनाना, रूपाना, त्रांबाना अथवा माटीना ५ कळशो वडे करवो, ओछामा ओछा १ कलशथी पण अभिषेक करी शकाय छे. गंगा, जमना, नर्मदा, सरस्वती, आदि महानदियो तथा शुभ तीर्थोनां शुद्ध जलो यथालाभ प्राप्त करी अभिषेकना जलमां मेळववां, जलमां सौ षधि चूर्ण, सुवर्ण रज, सुगंधि द्रव्यो अने सुगंधि पुष्पो नाखीने ते जलना भरेला मोटा घडा उपर वस्त्राछादन करी उपर हाथ देइ बृहच्छान्तिनो अखंड पाठ बोलवो अने ते पछी ते जल बडे अभिषेकना कळशो भरवा. शिलाओ, उपशिलाओ अने निधिकलशो वेदी उपर प्रथम यथास्थान गोढवी देवा, वेदीना अभावे लाकडानो मोटो पाट गोठवीने ते उपर त्रांबा पीतळनी कथरोटो गोठवी तेमा शिलाओ राखीने पण अभिषेकनुं कार्य करवू. बधी तैयारी | थइ गया पछी स्नातविलिप्त स्थपति अथवा गृहपति हाथमां जलकलश लेइने - "ॐ हिरण्यगर्भाः पाविन्यः, शुचयो दुरितच्छिदः । पुनन्तु शान्ताः श्रीमत्य, आपो युष्मान् मधुच्युतः ॥१॥" + आ मंत्रश्लोक बोली नन्दा शिलानो अभिषेक करे, अ ज प्रकारे प्रत्येक वार कलश भरी उपरनो मंत्र बोली अनुक्रमे 'भद्रा' आदि बधी शिलाओनो अभिषेक करे. शिलानी साथेज तेनी उपशिला तथा निधि कलशनो पण अभिषेक करी लेबो, बधी शिलाओना अभिषेक थइ गया पछी शुद्ध जले पखाली अने शुद्ध वस्त्रे लूंछीने शिलाओ कोरी करी उपर घसेला केसर चंदनना छांटा नाखवा, धूप उखेववो, |॥ १७॥ र उखववा, Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GS ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ || शिलान्यास ॥ ॥ १८ ॥ पुष्पो चढावबां अने दिशापालोना वर्णानुसारि वर्णनां बस्त्रो ओढाडवां, ते पछी प्रत्येक उपशिला 'शिलायुगलो तथा निधि कलशो पोतपोताना | स्थापना स्थाने पहोंचाडवां, एम प्रतिष्ठा करवा माटे तैयार राखवां. शिलान्यास करतां पहेलां नीचेना श्लोको बोलीने खाडाओमां त्यां रत्न-धात्वादिनो न्यास करवो. रत्नो, धातुओना ककडाओ, औषधिओ तथा धान्योनी वानीओ लाल वा पीला शुद्ध वस्त्रखंडोमां बांधीने राखवी, ८ पोटलीओमां दरेकमां १-१ रत्न, धातु खंड, औषधी, धान्यबानी मूकवी अने ९मी पोटली आ बधी चीजोनी बांधवी अने मुहूर्तनो समय आवे ते पहेलांज अक अक मंत्रश्लोक बोली आ पोटलीओ मूकवी. शिलान्यास अने रत्नादिन्यासना मंत्रोः १ ॐ इन्द्रस्तु महतां दीप्तः, सर्वदेवाधिपो महान् । वज्रहस्तो गजारूढ-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥२॥ २ ॐ अग्निस्तु महतां दीप्तः, सर्वतेजोधिपो महान् । मेषारूढः शक्तिहस्त-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥३॥ ३ ॐ यमस्तु महतां दीप्तः, सर्वप्रेताधिपो महान् । महिषस्थो दण्डहस्त-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥४॥ ४ ॐ निर्ऋतिस्तु महादीप्तः, सर्वक्षेत्राधिपो महान् । खड्गहस्तः शिवारूढ-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥५॥ ५ ॐ वरुणस्तु महादीप्तः, सर्ववार्यधिपो महान् । नक्रारूढः पाशहस्त-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥६॥ ६ ॐ वायुस्तु महतां दीप्तः, सर्वमण्डलपो महान् । ध्वजाहस्तो मृगारूढ-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥७॥ ७ ॐ कुबेरस्तु महादीप्तः, सर्वयक्षाधिपो महान् । निधिहस्तो गजारूढ-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥८॥ ॥ १८ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ शिलान्यास ॥ ॥ १९ ॥ ८ ॐ ईशानस्तु महादीप्तः, सर्वयोगाधिपो महान् । शूलहस्तो वृषारूढ-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥९॥ ९ ॐ धरणस्तु महादीप्तः, सर्वसाधिपो महान् । पद्मारूढो नागहस्त-स्तस्मै नित्यं नमो नमः ॥१०॥ उपरना अकथी आठ सुधीनो अक अक मंत्रश्लोक बोलीने नीचे लखेल धातुओ औषधिओ, रत्नो अने धान्योने पूर्वादि ८ दिशाना Lama खाडाओमा अनुक्रमे मूकवा, अने छेल्लो श्लोक बोलीने मध्यना खाडामा बधा पदार्थो मूकवा. न्यसनीय रत्न-धातु औषधि-धान्यो नीचे प्रमाणे छे - अनेन क्रमयोगेन, रत्नन्यासं तथोत्तमम् । पूर्वादिक्रमयोगेन, रत्नधात्वौषधानि च ॥१२॥ वज्र-वैडूर्य-मुक्ताश्च, इन्द्रनीलं सुनीलकम् । पुष्परांग च गोमेदं, प्रवालं पूर्वतः क्रमात् ॥१२॥ हैमं रौप्यं ताम्रकांस्ये, रीतिकां नाग-वङ्गको । पूर्वादिक्रमतश्चैत, आयसं चैवमन्ततः ॥१३॥ वचा वह्निः सहदेवी, विष्णुकान्ता च वारुणी। संजीवनी ज्योतिष्मती, ईश्वरी पूर्वतः क्रमात् ॥१४॥ यवो व्रीहिस्तथा कंगु-घूर्णाद्याश्च तिलैर्युताः । शाली मुद्गाः समाख्याता, गोधृमाश्च क्रमेण तु ॥१५॥ पूर्व दिशाथी मांडीने सृष्टिक्रमे रत्न-धातु-औषधि-बीजोनो आ क्रमथी न्यास करवो जोइये, रत्नोमां-१ हीरो, २ वैडूर्य (अकीक), ३ मोती, ४ इन्द्रनील, ५ महानील, ६ पुष्पराग (पुखराज), ७ गोमेद, अने ८ प्रवाल से पूर्वादि दिशाना खाडाओमां क्रमे स्थापवां. धातुओ- १ सोनुं, २ रू', ३ त्रांबु, ४ कांसु, ५ पीतल, ६ सीसु, ७ कथीर, अने ८ लोहडं पूर्वादिमां अनुक्रमे स्थापन करवी. औषधिओमां१ बचा (घोडावज), २ चित्रक, ३ सहदेवी, ४ विष्णुक्रान्ता, ५ वारुणी, ६ संजीवनी, ७ ज्योतिष्मती (मालकांगणी) अने ८ ईश्वरी ॐ शल Ci | ॥ १९ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. सं० २ ।। ।। २० ।। (शिवलिंगी); आ औषधिओ पूर्वादिक्रमे स्थापवी. धान्योमां १ जव, २ व्रीहि, ३ कांग, ४ जूर्णा (जुवार), ५ तल, ६ शालि, ७ अने ८ गेहुं अ धान्यो पूर्वादिमां अनुक्रमे स्थापवा. अने मध्य खातमां सर्वरत्नो, धातुओ, औषधिओ अने धान्यो स्थापवां, ते पछी त्यां शिला प्रतिष्ठित करवी. आ रत्नादिन्यास जेटली शिलाओ स्थापवी होय तेटला खातोमां करवो. मग, चतुः शिला प्रतिष्ठा : - १. नन्दानी स्थापनामां - (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" आ प्रमाणे कहीने आग्नेयकोणना खातमां उपल स्थापन करी, (२) ‘“ॐ पद्म ! इहाssगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ पद्मनिधयेनमः" एम कही तेमां 'पद्म' निधिकलश स्थापवी, ते पछी (३) “ॐ नन्दे ! इहाssगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ नन्दायै नमः " ए मंत्र भणी उपर नन्दाशिलानो न्यास करवो अने उपर वासक्षेप करवो, सुगंध द्रव्यो छांटवां, अने नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी. ‘“वीर्येणादिवराहस्य, वैदार्यैस्त्वाभिमंत्रिताम् । वसिष्ठनन्दिनीं नन्दां प्राक् प्रतिष्ठापयाम्यहम् ||१६|| " " सुमुहूर्ते सुदिवसे, सा त्वं नन्दे ! निवेशिता । आयुः कारयितुर्दीर्घं, श्रियां चाग्ग्रामिहाऽऽनय ||१७|| ” २. भद्रानी स्थापनामा - (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।” (२) “ॐ महापद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ महापद्मनिधये नमः” (३) “ॐ भद्रे ! इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ भद्रायै नमः ।" आ मंत्रो वडे नैर्ऋत कोणमा उपशिला निधिकलश अने भद्राशिलाने नन्दानी जेम स्थापी वासक्षेपादि करीने नीचेनो प्रार्थना श्लोक कहेवो. ॥शिलान्यास || ।। २० ।। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ॥ शिलान्यास ।। कलिका. खं० २॥ கம் थान शाल ॐ "भद्राऽसि सर्वतोभद्रा, भद्रे ! भद्रं विधीयताम् । कश्यपस्य प्रियसुते !, श्रीरस्तु गृहमेधिनः ॥१८॥" ३. जयानी स्थापनामां - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ शंख ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ शंखनिधये नमः" (३) “ॐ जये ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ जयायै नमः" आ मंत्रो वडे -जयाने वायव्य कोणमा सुप्रतिष्ठित करीने प्रार्थना करवी. "जये ! विजयतां स्वामी, गृहस्याऽस्य माहात्म्यतः । आचन्द्रार्कं यशश्वास्य, भूम्यामिह विरोहतु ॥१९॥" ४. पूर्णानी स्थापनामां - (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ सुभद्र ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ सुभद्रनिधये नमः ।" (३) "ॐ पूर्णे ! इहाऽऽगच्छ, इहतिष्ठ, ॐ पूर्णायै नमः ।" आ मंत्रोथी पूर्णाने ईशान कोणमां प्रतिष्ठित करी प्रार्थना करे. "त्वयि संपूर्णचन्द्राभे !, न्यस्तायां वास्तुनस्तले । भवत्वेष गृहस्वामी, पूर्णे ! पूर्णमनोरथः ॥२०॥" पंचशिला प्रतिष्ठा : १. नन्दा - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ पद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, पद्मनिधये नमः।" (३) "ॐ नन्दे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ नन्दायै नमः ।" आ मंत्रो बडे नन्दाने आग्नेय कोणमा स्थापन करीने नीचेना श्लोकोथी प्रार्थना करवी. "नन्दे ! त्वं नन्दिनी पुसां, त्वामत्र स्थापयाम्यहम् । वेश्मनि त्विह संतिष्ठ, यावच्चन्द्रार्कतारकाः ॥२१॥" ste dh थान dhe MA ॥ २१ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AKA | कल्याण-I कलिका. खं० २॥ ।। शिलान्यास ।। “आयुः कामं श्रियं देहि, देववासिनि ! नन्दिनि ! । अस्मिन् रक्षा त्वया कार्या, सदा वेश्मनि यत्नतः ॥२२॥" | २. भद्रा - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ महापद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ महापद्मनिधये नमः ।" (३) “ॐ भद्रे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ भद्रायै नमः ॥" आ मंत्रो द्वारा नैर्ऋत कोणमां भद्रानी प्रतिष्ठा करी आ षट्पदी बड़े प्रार्थना करवी. "भद्रे ! त्वं सर्वदा भद्रं, लोकानां कुरु काश्यपि ! । आयुदा कामदा देवि !, सुखदा च सदा भव ॥२३॥" त्वामत्र स्थापयाम्यद्य, गृहेऽस्मिन् भद्रदायिनि !! ३. जया - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ शंख ! इहाऽऽगच्छ, इह तष्ठि, ॐ शंखनिधये नमः ।" (३) "ॐ जये ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ जयायै नमः ॥" आ मंत्रो द्वारा वायव्य कोणमां जयाशिलाने प्रतिष्ठित करी आ षट्पदी वडे प्रार्थना करवी. __“गर्गगोत्रसमुद्भतां, त्रिनेत्रां च चतुर्भुजाम् । गृहेऽस्मिन् स्थापयाम्यद्य, जयां चारुविलोचनाम् । नित्यं जयाय भूत्यै च, स्वामिनो भव भार्गवि ! ॥२४॥" ४. रिक्ता - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ मकर ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ मकरनिधेय नमः।" (३) "ॐ रिक्ते ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ रिक्तायै नमः ।" आ मंत्रो द्वारा ईशान कोणमा रिक्ताशिलाने स्थापीने आ श्लोकथी प्रार्थना करवी. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाल ।। शिलान्यास ॥ G शाला GS G. GS G "रिक्ते ! त्वं रिक्तदोषघ्ने !, सिद्धिमुक्तिप्रदे ! शुभे । सर्वदा सर्वदोपनि ! तिष्ठाऽस्मिन् तत्रनंदिनि ॥२५॥" | ।। कल्याण- ५. पूर्णा - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ सुभद्र ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ सुभद्रनिधये | कलिका. नमः ।" (३) “ॐ पूर्णे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ पूर्णायै नमः ।" आ मंत्रो वडे वास्तुना मध्य भागमां आधारशिला, | खं० २॥ निधिकलश अने पूर्णाशिला प्रतिष्ठित करी पासे दीपक मूकीने आ श्लोको बोलीने प्रार्थना करवी. ।। २३ ।।। "पूर्णे ! त्वं सर्वदा पूर्णान्, लोकान् संकुरु काश्यपि ! आयुर्दा कामदा देवि !, धनदा सुतदा भव ॥२६॥" ___"गृहाधारा वास्तुमयी, वास्तुदीपेन संयुता । त्वामृते नास्ति जगता-माधारश्च जगत्प्रिये ॥२७॥" नवशिला प्रतिष्ठा : १. नन्दा - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ पद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ पद्मनिधये नमः।" (३) "ॐ अग्नये नमः, ॐ शक्तये नमः ।" (४) "ॐ नन्दे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ नन्दायै नमः।" आ मंत्रो बडे आग्नेय कोणमां नन्दाने प्रतिष्ठित करी आ श्लोक बडे प्रार्थना करवी. "नन्दे ! त्वं नन्दिनी पुंसां, त्वामत्र स्थापयाम्यहम् । प्रासादे त्विह संतिष्ठ, यावच्चन्द्रार्कतारकाः ॥२८॥" २. भद्रा - (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ महापद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ महापद्मनिधये नमः।" (३) "ॐ यमाय नमः, ॐ दण्डाय नमः।" (४) "ॐ भद्रे ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ भद्रायै नमः ।" आ Lave] मंत्रो द्वारा दक्षिणमा भद्रशिलाने स्थापन करी आ श्लोक बोली प्रार्थना करवी. 220 For Private & Personal use only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ || शिलान्यास । sibe ।। २४ ।। छोण था “भद्रे ! त्वं सर्वदा भद्रं, लोकानां कुरु काश्यपि ! । त्वामत्र स्थापयाम्पद्य, प्रासादे भद्रदायिनि ! ॥२९॥" ३. जया- (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ शंखे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ शंखनिधये नमः।" (३) “ॐ निर्ऋतये नमः, ॐ खड्गाय नमः।" (४) "ॐ जये ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ जयायै नमः।" आ मंत्रोथी नैर्ऋत कोणमां जयानी प्रतिष्ठा करी आ श्लोक वडे प्रार्थना करवी, "गर्गगौत्रसमुद्भूतां, त्रिनेत्रां च चतुर्भुजाम् । प्रासादे स्थापयाम्यद्य, जयां चारुविलोचनाम् ॥३०॥" ४. रिक्ता- (१) “ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) “ॐ मकर ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ मकर निधये नमः।" (३) “ॐ वरुणाय नमः, ॐ पाशाय नमः ।" (४) "ॐ रिक्ते ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ रिक्तायै नमः।" आ मंत्रो द्वारा रिक्तानी पश्चिम दिशामां प्रतिष्ठा करी “रिक्ते ! त्वं रिक्तदोषघ्ने !, ऋद्धिवृद्धिप्रदे ! शुभे ! । सर्वदा सर्वदोषघ्ने ! तिष्ठाऽस्मिन् तत्रनंदिनी ॥३१॥" आ श्लोकथी प्रार्थना करवी. - ५. अजिता - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ कुन्द ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ कुन्दनिधये नमः ।" (३) "ॐ वायवे नमः, ॐ अंकुशाय नमः ।" (४) "ॐ अजिते ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ अजितायै नमः ।" आ मंत्रो द्वारा वायव्य कोणमा अजिताने प्रतिष्ठित करी - N ॥ २४ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ शिलान्यास ।। "अजिते ! सर्वदा त्वं मां, कामानामजितं कुरु । प्रासादे तिष्ठ संहृष्ठा, यावच्चन्द्रार्कतारकाः ॥३२॥ आ श्लोक बडे | प्रार्थना करवी. ६. अपराजिता - (१) "ॐ आधारशिले! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ नील ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, ॐ नीलनिधये नमः।" (३) "ॐ कुबेराय नमः, ॐ गदायै नमः।" (४) "ॐ अपराजिते ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ अपराजितायै नमः ।" आ मंत्रो बोली उत्तरदिशाभागमां अपराजिताने स्थापी - "स्थिराऽपराजिते भूत्वा, कुरु मामपराजितम् । आयुर्दा धनदा चात्र, पुत्रपौत्रप्रदा भव ॥३३॥" आ श्लोके करीने प्रार्थना करवी. ७. शुक्ला - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव !" (२) "ॐ कच्छप ! इहाऽऽच्छ, इह तिष्ठ, ॐ कच्छपनिधये नमः।" (३) "ॐ ईशानाय नमः, ॐ त्रिशूलाय नमः।" (४) ॐ शुक्ले ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ शुक्लायै नमः।" आ मंत्रोथी ईशान कोणमा शुक्लाने प्रतिष्ठित करी - “शुक्ले ! त्वं देहि मे स्थैर्य, स्थिरा भूत्वाऽत्र सर्वदा । आयुः कामं श्रियं चापि, प्रासादेऽत्र ममाऽनधे ! ॥३४॥" आ श्लोके वडे प्रार्थना करवी.. ८. सौभागिनी - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) “ॐ मुकुन्द ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ | मुकुन्दनिधये नमः ।" (३) "ॐ इन्द्राय नमः, ॐ वज्राय नमः ॥" (४) "ॐ सौभागिनि ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, da छोल Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ शिलान्यास ॥ || ॐ सौभागिन्यै नमः ।" आ मंत्रोथी सौभागिनीने पूर्वमा प्रतिष्ठित करी . ॥ कल्याण __“प्रासादेऽत्रस्थिरा भूत्वा, सौभागिनि ! शुभं कुरु । धनधान्यसमृद्धिं च, सर्वदा कुरु नन्दिनि ! ॥३५॥" आ श्लोकथी | कलिका. प्रार्थना करवी. खं०२॥ ९. धरणी - (१) "ॐ आधारशिले ! सुप्रतिष्ठिता भव ।" (२) "ॐ खर्व ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ खर्वनिधये नमः।" (३) "ॐ नागाय नमः, ॐ उत्तराय नमः ।" (४) "ॐ धरणि ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ धरण्यै नमः।" आ मंत्रो वडे वास्तुना मध्य भागमां धरणीशिलाने स्थापीने - "धरणि ! लोकधरणी, त्वामत्र स्थापयाम्पहम् । निर्विघ्नं धारय त्वं मे, प्रासादं सर्वदा शुभे ! ॥३६॥" आ श्लोक भणी प्रार्थना करवी. _ पछी अभिषेक करीने तैयार राखेलो सुवर्ण, रूप्य, वा ताम्रमय कूर्म हाथमा लेइने “ॐ कूर्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ कूर्माय नमः ।" अ मंत्र बडे मध्यशिला ऊपर कूर्मनी प्रतिष्ठा करी वासक्षेप पूर्वक केसर चंदनादिके पूजा करवी, धूप उखेववो, अंते - "सर्वलक्षणसंपन्न !, कूर्म ! भूधरणक्षम ! । चैत्यं कर्तुं महीपृष्ठे, ममाज्ञां दातुमर्हसि ॥३७॥" ___आ श्लोक बडे प्रार्थना करी कूर्म ऊपर पुष्पांजलि नांखवी. पछी वाजिंत्रो वगडाववां, दिग्पालोने बलिदान आप, गृहस्वामीले यथाशक्ति याचकोने दान देवू, साधर्मिकभक्ति प्रभावनादिक करवू, शिल्पीनो सत्कार करवो. For Private Personal Use Only न Goo GAN Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ शिला GOS शिलान्यास पछीनां शुभाऽशुभ निमित्तोः - ॥ कल्याण "विन्यस्य चैवं पुनरिष्टकां च, गंधोदकैः संपरिपूर्य गर्तम् । कलिका. कृत्वा प्रसूनानि परीक्षयेच्च, निक्षिप्य चावर्तमथाक्षतानि ॥३८॥" खं० २॥ "तद्दक्षिणावर्तमतीव शस्तं, वामं तु नियं खलु दुःखदत्वात् । ।। २७ ।। शाल्यादिभिः क्षेत्रजमृत्तिकाभिस्तन्मध्यगतँ परिपूर्य रक्षेत् ॥३९॥" उक्त विधिधी शिलान्यास करीने ते खाडाओने शुद्ध सुगंधि जल वडे भरी उपर पुष्पो तथा अक्षतो नाखीने आवर्तोनी परीक्षा करवी. जो ते खातोना जलमां दक्षिणावर्त उत्पन्न थाय, एटले के पुष्प अक्षतादि सृष्टिक्रमे फरतां देखाय तो निमित्त घणांज उत्तम जाणवां, Na] जलमा एथी विपरीत वामावर्त उत्पन्न थाय तो निमित्त अशुभ समजवां, परिणाम सारं नथी अम जाणी लेवू. दक्षिणावर्त के वामावर्तमांथी कई पण निमित्त न देखाय तो निमित्त मध्यम प्रकारना जाणवां, जो असुभ निमित्त दृष्टिगोचर थयां होय तो शिलान्यास फरिथी शुभ - मुहूर्ते करवो जोइये. शिला प्रतिष्ठा थया पछी शिल्पीए प्रत्येक शिला उपर चार चार थरो चणी लेवा, मध्यशिलाने फरती शिलाओ अथवा इंटो चणीने चोरस कुंडीनो आकार करी उपरथी शिला ढांकवी के जेथी कूर्म उपर भार न आवतां ते वचला पोलाणमा रही शके N शिला प्रतिष्ठित कर्या पछी चलित न करवी - शुभ मुहूर्ते प्रतिष्ठित कर्या पछी शिला चलायमान न करवी जोइये, जो चलित | करे तो गृहस्वामी अने सूत्रधार-शिल्पी बनेने माटे अशुभ फलदायक थाय छे. आ संबन्धमां शास्त्र कहे छे के - 17 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थान ॥ कल्याण ॥ शिलान्यास ।। कलिका. खं० २ ॥ "प्रतिष्ठितास्ताः प्रथम, भूतले सुस्थिताः समाः । न चालयेच्चालने तु स्याद्, गृहभर्तुर्महद्भयम् ॥४०॥" "कंपने च भयं विद्या-देतासां स्थिरता पुनः । स्थपतेर्गृहभर्तुश्च, मङ्गलं परमं विदुः ॥४१॥" "प्रारदक्षिणायाश्चलने, गृहभर्तुर्महद् भयम् । भार्याविनाशो नैर्ऋत्यां, शून्यं भीतिमरुद्दिशि ॥४२॥" "गुरौश्च भयमैशान्यां, मध्यचारेऽपि तद् भवेत् । प्रथमं स्थापितानेवं, स्तंभानपि न चालयेत् ॥४३॥" "नोद्धरेत प्रणुद्याच्च, विधिस्तुल्यो यतोऽनयोः । विन्यासं प्रथमं तस्मात्, कुर्यात्सम्यग्समाहितः । शिलानां स्थपतिस्तद्वत्, स्तंभानामपि सर्वथा ॥४४॥" "भूमितलमा प्रथम सारी रीते प्रतिष्ठित करेली सम अने सुस्थित शिलाओने पाछलथी चलित न करवी जोइये, अम करवू ओ | गृहस्वामीने माटे भयकारक छे, अटलं ज नहिं पण शिलाओने कंपायमान करवाथी पण गृहकारकने भय उत्पन्न करे छे. अथी विपरीत | शिलाओने स्थिरता शिल्पी तेम गृहपति बनेने परम मंगल कारक थाय छे. ___ अग्निकोणमां प्रतिष्ठित शिलाने चलायमान करवाथी गृहस्वामीने भय. नैर्ऋत्य कोणस्थ शिलाने चलाववाथी तेनी स्त्रीनु मृत्यु, वायव्य कोणनी शिलाने चलित करवाथी शून्यता तथा भय ऐशानी दिशा अने मध्यस्थित शिलाने कंपित करवाथी गुरुने भय उपजावे छे. अज प्रकारे प्रथम विधि पूर्वक प्रतिष्टित करेला स्तंभोने पण पोताना स्थानथी विचलित करवाथी अशुभ फल थाय छे, केमके | शिलान्यास अने स्तंभ न्यासनी विधि समान छे. सुत्रधार-शिल्पी प्रथमथीज मनने स्थिर करीने शिलान्यास अने स्तंभारोप सेवी खूबीथी करवो के पाछलथी तेने हलाववा-चलाववानी आवश्यकता ज न पडे. इति शिल्पशास्त्रोक्तः शिलान्यासविधिः ।। ॥ २८ ॥ For Private & Personal use only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ न्यास ॥ २९ ॥ शिलान्यासविधि प्रतिष्ठाकल्पोक्तः जे वास्तुभूमिमां शिलान्यास करवो होय तेमां प्रथम खात मुहूर्त पूर्वक भूमिर्नु संशोधन करी पत्थर, ईंट, वालुका, आदिथी खाडो | भरवो, अने ज्यांथी चणवानुं काम चालू करवू होय त्यां सुधी आवी अग्निकोण आदि ४ विदिशाओ अने १ मध्यभाग; आ पांच स्थलोमां शिलान्यास माटे १-१ हाथ समचोरस अने १-१ हाथ उंडा खाडा राखी तेमां न्यास विधि करवी. मध्यभागना खाडामां सर्व प्रथम काचबाना आलेखवालु रूपानुं पतरु थाप, उपर रूपानाणुं मूकवू, ते उपर माटी- शरावलु थापी अन्दर माटी न्हानुं कूल्हडु मूक. कुल्हडामा पंचरत्ननी पोटली, धृत अने सात धान्य मूकवां. अ पछी कुल्हडा उपर बीजुं शरावलुं ऊर्ध्वमुख मूक. एज प्रमाणे चार कोणना खाडाओमां शरावलां, कुल्हडां अने उपर बीजां शरावलां मूकवां अने बधा खाडाओ उपरनां शरावलांना मथारा सुधी पत्थरो, ईंटोना ककडा अने चूना बडे भरी देवा, ते पछी शिला संपुट तैयार करवा, मकान ईंटोनुं बनाव, होय तो वे बे ईंटोना संपुट करवा अने पत्थरन कराव_ होय तो शिला संपुटो पण पत्थरना बनाववा, ईंट या शिलाना, जेना संपुट बनाववा होय तेने प्रथम शुद्ध जलथी पखाली तेओ उपर कुंकुमना हाथा 'थापा' देइ बेबे ईंटोना अथवा शिलओना संपुट करी गेवासूत्र वींटवू. ज्यारे मुहूर्तनो शुभ समय आवे त्यारे प्रत्येक संपुट ओक अक खाडामां स्थापवो, प्रथम मध्यमां "ॐ कूर्म निज पृष्टे प्रासादं धारय धारय स्वाहा" आ मंत्र बोलतां कूर्मशिला स्थापीने मुहूर्त साचवबुं, मुहूर्त करतां गीत बादित्रो वगाडवां, प्रथम शिला मध्यमां, बीजी अग्नि कोणमा, त्रीजी नैर्ऋत्य कोणमा, चोथी वायव्य कोणमां अने पांचमी शिला ईशान कोणमा स्थापन करवी, ४ सधवा स्त्रियो कुंकुंम अने अक्षतो वडे स्थापित शिलाओने वधावे, विधिकार तेओनी उपर वासनिक्षेप करे, ओ पछी दशदिक्पालोने बलि क्षेप करवो, देवगृह बनावनार सूत्रधार शिल्पीनो सत्कार अने संघनी यथाशक्ति भक्ति करवी. प्रतिष्ठागुरु जिनप्रासाद निर्माण विषयक फलना कथन पूर्वक उपदेश करवो. ॥ इति प्रतिष्ठाकल्पोक्तः शिलान्यास विधिः ।। CS काल का IA For Private & Personal use only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चैत्यद्वार ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ प्रतिष्ठा ॥ परिच्छेद ५. चैत्यद्वार प्रतिष्ठा विधिः चैत्यद्वारसमारोपो, विधेयो विधिपूर्वकम् । यस्माद् द्वारमुखं चैत्यं, शस्तद्वारं शुभावहम् ॥११॥ चैत्यनो द्वारारोप विधिपूर्वक करवो जोइये, कारण के द्वार चैत्य, मुख छ; शुभद्वारवाळु चैत्य ज शुभ फलदायक थाय छे. प्रासाद- द्वार उभं करतां पहेलां तेना अंगोनो अभिषेक करी अधिवासना करवा साथे तेना देवताओनो न्यास करबो, अनुं नाम द्वार प्रतिष्ठा छे. द्वार प्रतिष्ठान मुहूर्त नक्की करी प्रतिष्ठोपयोगी अभिषेकनी औषधिओ विगेरे द्रव्यो प्रथम तैयार करी राखवां, मुहूर्तना दिवसे प्रथम प्रासादना द्वारपालोनुं नाममंत्रोच्चारपूर्वक सुगन्ध द्रव्यो वडे पूजन करवू, प्रत्येक दिशाना प्रासादना द्वारपालो भिन्न भिन्न होय छे, माटे जे दिशानो प्रासाद होय ते दिशाना द्वारपालोनी पूजा करवी. पूर्वादि दिशामुख जैनप्रासादोना द्वारपालो अनुक्रमे १ इन्द्र २ इन्द्रजय, १ माहेन्द्र २ विजय. १ धरणेन्द्र २ पद्म, १ सुनाभ २ सुर दुंदभि, अ नामना बे बे होय छे. माटे जे दिशामुख द्वारनी प्रतिष्ठा होय ते दिशामुख द्वारना द्वारपालयुगलनी नीचे प्रमाणे नाममंत्र वडे वासक्षेपे पूजा करवी. (१) पूर्वमुखद्वारे - ॐ इन्द्राय नमः ॐ इन्द्रजयाय नमः । (२) दक्षिणमुखद्वारे - ॐ माहेन्द्राय नमः ॐ विजयाय नमः । (३) पश्चिममुखद्वारे - ॐ धरणेन्द्राय नमः ॐ पद्माय नमः । (४) उत्तरमुखद्वारे - ॐ सुनाभाय नमः ॐ सुरदन्दुभये नमः । ___ प्रथम नाममंत्रथी पोताना जमणा हाथ तरफनी बारसाखना स्थाने अने बीजा नाममंत्रथी डावा हाथ तरफनी वारसाखना स्थाने वासक्षेप करी द्वारपालोनुं पूजन करवू, ओ पछी द्वारनां अंगो-बे शाखाओ, उंबरो, अने उत्तरंगने द्वार निकट मंगावी, यथास्थान गोठवी, G Jan Education international For Private & Personal use only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चैत्यद्वार ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ प्रतिष्ठा ॥ १ सप्तधान्य, २ पंचरत्न, ३ मंगल माटी, ४ कषायछाल, ५ मूलिक चूर्ण, ६ अष्टवर्ग, ७ पंचगव्य, ८ सुवर्णरज अने ९ तीर्थजल; आ नव द्रव्यो अनुक्रमे जलमां नाखीने ते जल वडे तेमना अभिषेक करवा, अन्तमा अबोट स्वच्छ जले करी द्वारांगोने धोई लूछीने ते रक्त वस्खोथी ढांकवां. अभिषेक कर्या पछी द्वारांगोने प्रतिष्ठा मंडपमा लाबबां, जो प्रतिष्ठा मंडप बनाव्यो न होय तो द्वारनी बहार उपर चन्द्रवो बांधी त्यां तेमनी अधिवासना करवी, अधिवासनामां . “ॐ नमो खीरासबलद्धीणं, ॐ नमो महुआसवलद्धीणं, ॐ नमो संभिन्नसोइणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विज्जं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ, ॐ कः क्षः स्वाहा ।" आ विद्या त्रणवार भणी द्वारांगो उपर बासक्षेप करवो, चन्दनादि सुगन्ध द्रव्यो छांटवां, पुष्पाक्षतो चढाववा, जे पछी उंबरा नीचे वास्तु पूजन करवू, उंबरा नीचे मध्यभागे न्हानो खाडो करीने तेमां पंचरत्ननो न्यास करवो, उपर "ॐ" लखीने "ॐ वास्तुपुरुषाय नमः" आ मंत्र भणी वास्तु पुरुषर्नु पूजन करवू, वासाक्षत नाखवां, चंदनना छांटा नाखवा. ते पछी लग्ननो समय आवतां प्रतिष्ठाचार्ये सूरिमंत्र बडे अथवा प्रतिष्ठा मंत्र बडे द्वारनी प्रतिष्ठा करवी अने प्रथम उंबरो, पछी जमणा हाथ तरफनी शाखा, डाबा हाथ तरफनी शाखा अने उत्तरंग, आ क्रमथी द्वारांगो उभा कराववां. श्वेतसर्षप, विष्णुक्रान्ता, ऋद्धिबृद्धि, कमल, कुष्ट, तिल, लक्ष्मणा, गोरोचन, सहदेवी अने दूर्वा; अ सर्व औषधिओ अथवा यथोपलब्ध औषधियोनी रंगीन वस्त्रे बांधेली पोटली उत्तरंगे बांधवी, अने ते पछी द्वारांगो उपर नीचे प्रमाणे ६ देवताओनो न्यास करवो . "ॐ यक्षेशाय नमः" उत्तरंग उपर, "ॐ श्रियै नमः" उम्बरा उपर, (१) ॐ कालाय नमः (२) ॐ गंगायै नमः | ॥ ३१ ॥ Jan Education International For Private Personal use only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ पोताना जमणा हाथनी शाखा उपर अने (१) ॐ महाकालय नमः (२) ॐ यमुनायै नमः ओ डाबा हाथनी शाखा उपर. प्रत्येक देवतानो नाममंत्र भणी ते ते अंगो उपर त्रण २ वार वासक्षेप करी देवताओने त्यां स्थापी संनिरोधन कर, अने दूर्वा वासाक्षत वडे तेमनुं पूजन करवू. आ छी शान्तिमंत्रे बलि मंत्रीने दिक्पालोना नाममंत्रो बोलवा पूर्वक पूर्वादि दिशाओमां बलिक्षेप करवो, भगवन्तनी पूजा करवी, अने संघनी भक्ति करवी. ॥ इति द्वारप्रतिष्ठा विधिः ॥ प्रतिष्ठा विधिः ॥ ॥ ३२ ॥ परिच्छेद ६. हृदय प्रतिष्ठा विधिः (शिखरे प्रासादपुरुष स्थापनाविधि) प्रासादहृदयस्थाने, प्रासादपुरुषाह्वयः । नरः स्वर्णमयः स्थाप्यो, हृत्प्रतिष्ठा हि सा मता ॥१२॥ प्रासादना हृदय स्थानमां (आंबल सारामां) सुवर्णमय पुरुष स्थापबो तेनुं नाम हृदयप्रतिष्ठा छे.. प्रासादपुरुष - देवमंदिरना शिखरे आंबलसारामां त्रांबानो कलश स्थापन करी, तेना उपर सुवर्णनी बनावेली पुरुषना आकारनी अक मूर्ति धातुना अथवा चन्दनना पलंग उपर सुवाडवामां आवे छे तेने 'प्रासादपुरुष' नाम आपेलुं छे. प्रासादपुरुषर्नु स्वरूप अक ध्वजाधारी पुरुषना जेवू होय छे, तेना जमणा हाथमां कमलनुं फूल बताव, अने डाबा हाथमा त्रण पताका वालो ध्वज देवो. डाबो हाथ छातीना भागमां अडकेलो अने तेनो ध्वज खांधे अडकेलो करवो. ॥ ३२ ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ हृदय थान प्रतिष्ठा | विधिः ॥ प्रासादपुरुषनी उंचाइनु परिमाण प्रासादना मान प्रमाणे करवू. प्रासादमानना १ हाथ पाछल पुरुष- उदयमान अर्थो आंगल राखg. | ॥ कल्याण- प्रासादना मानमां अर्ध-पाव हाथनी हानि-वृद्धि होय तो पुरुषना मानमां पण तदनुसारे हानि-वृद्धि करवी. उदाहरणरूपे प्रासाद ३ हाथ कलिका. NI ११ आंगलनो होय तो पुरुष उंचाईमां बे आंगलमां बे जब ओछो करवो. खं०२॥ १ थी ५० हाथ सुधीना प्रासादना प्रासादपुरुषनुं प्रमाण प्रतिहस्त अर्ध आंगलना हिसावे ज राखवानुं विधान छे. प्रासादना मानानुसार सुवर्णमय प्रासादपुरुष बनावरावी प्रथम तेनी विधिपूर्वक प्राणप्रतिष्ठा करवी अने ते पछी तेनी स्थापना करवी. प्रतिष्ठा : प्रासादपुरुषनी प्राणप्रतिष्ठा आ विधिथी करवी. प्रतिष्ठा मण्डपमां अने तेना अभावमा प्रासादना मंडपमा उत्तरवेदी करीने अथवा तो शुद्ध पाट ऊपर सुवर्णमय प्रासादपुरुषने स्थालमा स्थापना करीने तेने सुवर्णजले अने औषधिमय जल बडे स्नान करावईं, लूंछीने वस्त्रे ढांकी मुख्य वेदी अथवा भद्रपीठ 'सिंहासन' उपर स्थापन करी "ॐ हाँ आत्मन् त्वया अत्र शरीरे संस्थातव्यम्" आ मंत्रद्वारा रेचन करीने पोताना प्राणनो पुरुषना शरीरमा प्रवेश कराववो, ते पछी कलाविद्यादि तत्वोनो नीचे प्रमाणे तेना शरीरमा न्यास करवो - ___ "ॐ हाँ कलायै नमः । ॐ हाँ कलाधिपतये नमः । ॐ कलाधिपाऽस्य कर्तृत्वव्यक्तिं कुरु कुरु ।" ॥१॥ “ॐ हाँ विद्यायै नमः । ॐ हाँ विद्याधिपाय नमः । ॐ विद्याधिपाऽस्य ज्ञानाऽभिव्यक्तिं कुरु कुरु ।" ॥२॥ "ॐ ह्रां रागाय नमः । ॐ ह्रां रागाधिपतये नमः । ॐ रागाधिपाऽस्य विषयेषु रागं कुरु कुरु ।" ॥३॥ ॥ ३३ ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMI A प्रतिष्ठा विधिः ॥ "ॐ बुद्धयै नमः । ॐ हाँ बुद्धयधिपतये नमः । ॐ बुद्धयाधिपाऽस्य बोधं कुरु कुरु ।" ॥४॥ ॥ कल्याण- "ॐ हाँ अहंकाराय नमः । ॐ हाँ अहंकाराधिपतये नमः । ॐ अहंकाराधिपाऽस्य अभिमानं कुरु कुरु ।" ॥५॥ कलिका. "ॐ हाँ मनसे नमः । ॐ ह्रां मनोधिपतये चन्द्राय नमः । ॐ मनोधिपाऽस्य संकल्पविकल्पं कुरु कुरु ।" ॥६॥ खं० २॥ “ॐ हाँ श्रोत्राभ्यां नमः । ॐ हाँ श्रोत्राधिपतये आदित्याय नमः । ॐ श्रोत्राधिपास्य शब्दग्राहकत्वं कुरु कुरु।" ॥७॥ ॥ ३४॥ "ॐ ह्रां चक्षुषे नमः । ॐ ह्रां चक्षुरधिपतये रक्ताय नमः । ॐ चक्षुरधिपास्य रूपग्राहकत्वं कुरु कुरु ।" ॥८॥ “ॐ हाँ घ्राणाय नमः। ॐ हाँ घ्राणाधिपतये अश्विनीभ्यां नमः । ॐ घ्राणाधिपास्य गंधग्राहकत्वं कुरु कुरु ।" ।।९।। “ॐ हाँ वाचे नमः । ॐ हाँ वाचाधिपतये अग्नये नमः । ॐ वाचाधिपास्य वाचं कुरु कुरु ।" ॥१०॥ "ॐ हाँ त्वचे नमः । ॐ हाँ त्वगधिपतये वायवे नमः । ॐ त्वगधिपास्य स्पर्शग्राहकत्वं कुरु कुरु ।" ॥११॥ "ॐ हाँ पाणिभ्यां नमः । ॐ ह्रां पाण्यधिपतये इन्द्राय नमः । ॐ पाण्याधिपास्य पदार्थग्राहकत्वं कुरु कुरु ।" ॥१२॥ “ॐ हाँ पादाभ्यां नमः । ॐ हाँ पादाधिपतये विष्णवे नमः । ॐ पादाधिपास्य गमनोत्साहं कुरु कुरु ।" ॥१३॥ "ॐ हाँ पायवे नमः । ॐ हाँ पाय्वधिपतये मित्राय नमः । ॐ पाय्वधिपास्य वायूत्सर्गं कुरु कुरु ।" ॥१४|| "ॐ हाँ उपस्थाय नमः । ॐ हाँ उपस्थाधिपतये ब्रह्मणे नमः । ॐ उपस्थाधिपास्यानन्दं कुरु कुरु ।" ॥१५॥ "ॐ हाँ शब्दाय नमः ।" ॥१६॥ “ॐ हाँ रुपाय नमः।" ॥१७॥ “ॐ हाँ गन्धाय नमः ।" ॥१८॥" "ॐ || हाँ रसाय नमः ।" ॥१९॥ “ॐ हा स्पर्शाय नमः ।" ॥२०॥ "ॐ हाँ आकाशाय नमः ।" ॥२१॥ "ॐ हाँ वायवे | ल शाला कल छाति ॥ ३४ ॥ For Private & Personal use only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ हृदय प्रतिष्ठा विधिः ।। ॥ ३५ ॥ नमः ।" ॥२२॥ “ॐ हाँ तेजसे नमः ।" ॥२३॥ "ॐ हाँ अभ्यो नमः ।" ॥२४॥ "ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः ।" | ॥२५॥ नाडिदशकनो न्यास - उपरना २५ तत्त्वोनो पुरुषमा न्यास करी नीचे प्रमाणे १० नाडिओनो न्यास करवो. ॐ हाँ इडायै नमः । ॐ हाँ पिङ्गलायै नमः । ॐ हाँ सुषुम्णायै नमः । ॐ हाँ सावित्र्यै नमः । ॐ ह्रां शंखिन्य नमः । ॐ ह्रां कूष्माण्डिन्यै नमः । ॐ ह्रां यशोवत्यै नमः । ॐ ह्रां हस्तिजिह्वायै नमः । ॐ हाँ पूषायै नमः । ॐ हाँ अलम्बुषायै नमः । वायुदशकनो विन्यास-ॐ हाँ प्राणाय नमः । ॐ हाँ अपानाय नमः । ॐ हाँ समानाय नमः । ॐ हाँ उदानाय नमः । ॐ हाँ व्यानाय नमः । ॐ हाँ नागाय नमः । ॐ हाँ कूर्माय नमः । ॐ हाँ कृकलासाय नमः । ॐ हाँ देवदत्ताय नमः । ॐ ह्रीँ धनंजनयाय नमः । ए प्रमाणे प्रासादपुरुषमा २५ तत्त्वो, १० नाडी, अने १० पवनोनो न्यास करी विधिकारे गन्ध, पुष्प, अक्षतादिथी तेनी पूजा करी ५ मुद्राओ देखाडवी. निवेशन - प्रासाद पुरुषमा प्राणवेश कराव्या पछी प्राचीन विधि प्रमाणे आंबलसारामा पलंग ढाली, ते उपर सोनानो रूपानो अथवा छेबटे त्रांबानो कुंभ स्थापन करखो, तेने मधु अने घृत वडे भरी तेमां पंचरत्न नांखी तेज जातिनी धातुना ढांकणाथी ढांकी, तेने चन्दनादि सुगन्ध पदार्थोनुं विलेपन करवू. पछी श्वेत वस्त्रयुगल पहेरावी, प्रासादपुरुषनी ते उपर स्थापना करवी, एबु निर्माणकलिका Jan Education international For Private & Personal use only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ प्रतिष्ठा विधिः ॥ प्रतिष्ठा पद्धतिमा विधान छे. पण आ विधि आजकाल प्रचलित नथी. ____ अपराजितपृच्छामां प्रासाद पुरुषने घृतपूर्ण पात्र उपर त्रांबाना पलंगमां सुवाडवानुं अने पलंगना ४ पायाओ पासे ४ निधि कलशो स्थापवानुं विधान कर्यु छे. ते प्रमाणे पण आजे शिल्पिओ करता जणाता नथी. आजकालनी प्रचलित पद्धति प्रमाणे प्रथम त्रांबाना कलशियामां घृत भरीने घणा खरा कारीगरो तेना उपर त्रांबार्नु ढांकणुं देइने - पेक करी दे छे. ज्यारे केटलाको एम ज ढांकी दे छे. पछी ते घृतकलश सारा मुहूर्ते आंबलसाराना गर्भमां मूकीने तेने उपरथी ढांकी दे छे अने पाछलथी ते उपर चन्दनना पलंगमां प्रासाद पुरुषने पोढाडे छे. पलंग सोनानो, रूपानो, त्रांबानो अथवा चंदननो बनाववो, पलंगनुं परिमाण पुरुषना मापथी दोढुं लांबु, अने लंबाइथी अर्ध पहोरों करवू, पलंग रेशमनी दोरीथी वणी उपर रेशमी गादी तकिया बीछावीने शुभ समयमां "अहंदाज्ञया प्रासाद स्थितिपर्यन्तं त्वयाऽत्र | स्थातव्यम्" आ मंत्र बोली प्रासाद पुरुषने पलंग उपर पोढाडवो. अने 'संनिधापनी' मुद्रा देखाडी संनिधापन करवू. प्रासादपुरुष- मस्तक प्रासादने पछवाडे अने पग आगल द्वारनी दिशामां आवे एवी रीते शयन कराव, उपर वासक्षेप करवो, चन्दनादि सुगन्ध पदार्थो छांटवा, उपर श्वेत वस्त्र ओढाडवू, पासे धूपदीप मूकवा, अने पछी ते गर्भने उपरना थर वडे ढांकी देवो. आ प्रसंगे पण मंगलगीत बाजिंत्रादिना स्वरोथी उत्सव- दृश्य दीपावg, धूमधाम करवो, विधि करनारनो सत्कार करवो. || ३६ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३७ ।। परिच्छेद ७ जिनबिम्ब प्रवेशविधि ( १ ) जिनबिम्बप्रवेशो हि, जिनगेहेषु सोत्सवः । सविधानः प्रकर्तव्यः, कल्याणकारको भवेत् ।। १७२ ।। जिनघरोमां जिनबिंबोनो प्रवेश उत्सवपूर्वक विधि साथे कराववाथी ज कल्याणकारी थाय छे. पूर्वोक्त शुभ दिवसे शुभग्रहबलयुक्त स्थिर लग्नबल ठरावीने लग्न वधावी लग्नदायक ज्योतिषीनो श्रीफल द्रव्यादिकथी यथाशक्ति सत्कार करवो. लग्नना दिवस थकी १०/७१५ अथवा ३ दिन पहेलां प्रतिष्ठा स्थानके घरे अथवा जिनचैत्ये १०० हाथ सुधी चारे तरफ भूमि शुद्ध कराववी, मंडपभूमि के ज्यां स्थापनीय बिम्ब राखवाना होय ते पण एज रीते शुद्ध कराववी, कलेवर, हाडकुं, आदि दूर करावनुं, अने सुन्दर चंद्रवा - चांदणी प्रमुख बंधावी बने स्थानके मण्डपनी रचना कराववी, बने ठेकाणे सांझे प्रभाते सांझी देवराववी, अने प्रभातिया गवराववां. संघमा तथा घरमा दक्ष अने निर्दोष शरीरधारी भेक व्यक्ति १० दिवस सुधी एकाशणां करे, ब्रह्मचर्य पाले, सचित्तनो त्याग करे, भूमिसंथारो करे अने आरंभमय प्रवृत्तिनो त्याग करी प्रसन्न चित्त रहे. जे देवालयमां प्रभु स्थापवा होय तेमां क्रियाकारक ३ टंक शुद्ध वस्त्रो पहेरी ७ स्मरणोनो शुद्धतापूर्वक पाठ करे, पोतपोतानी गच्छपरम्परा प्रमाणे स्मरणगणे, धूप दीप पासे राखे. पाठने अन्ते १ कटोरी (कचोलुं अथवा कलशियो) रूपानी अथवा त्रांबानी होय तेमां अबोट जल भरी सोनावाणी करीने ७ नोकार गणी - ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ।। ३७ ।। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ।। S कास ।। ३८ ।।। GE SWA ste "ॐ श्री जीराउला पार्श्वनाथ ! रक्षां कुरु कुरु स्वाहा" आ मंत्रे ७ वार मंत्रीने ते जिनालयमा तथा मंडपमा छांटवू, घरमां पण छांटवू, अने धूप उखेववो. बिम्ब प्रवेशोत्सवना प्रथम दिवसे अथवा मुहूर्तना दिवसथी १५ दिवस पहेलां शुभ दिवस अने कुंभ चक्र जोई कुंभ स्थापना करवी. जिनालयमा ज्यां बिम्बस्थापना थवानी छे त्यां बिम्बनी जमणी दिशामा प्रथम ब्रह्मचारी अथवा ब्राह्मणना हाथे ४ कोरां सरावलाओमां जवारा ववराववा अने सधवा स्त्री पासे त्यां । सेर व्रीहि (भात) नो स्वस्तिक करावी जवारानां ४ सरावला स्वस्तिकना ४ खुणाओ तरफ मूकाववां. माटीनो १ कुंभ नानो डाघ विनानो अने सारा घाटवालो लेई धोइ धूपी तेने कांठे गेवासूत्र मीढल तथा मरोडाफलीवालुं बांधq. घडानी अंदर चन्दननो साथियो करी तेमां रूपानाणुं तथा माणिक १ मोती २ प्रवाला ३ सोनुं ४ त्रांबु ५, आ पांच रत्नोनी पोटली मूकवी, पछी उत्तम सधवा स्त्री पासे अबोट जलनी अखंड धारा वडे भराववो, पीला अथवा नीला बस्ने कुंभ ढांकवो, कंठमां फूलमाला पहेराववी, मुख उपर श्रीफल स्थापवू, अने "ॐ ह्रीँ ठः ठः ठः स्वाहा" ए मंत्र सात ७ बार बोलीने स्थिर श्वासे कुंभने स्वस्तिक उपर स्थापवो. कुंभ १ स्थापनीय बिम्ब ज्यां होय त्यां मण्डपमां पण एज विधिथी स्थापवो. कुंभस्थापनाना स्थले अखण्ड दीवो राखबो, त्रिकाल धूप करवो. जवाराना स्थानके बिलाडी आदि हिंसक जीव जवा देवा नहिं, रजस्वला प्रमुख मलिन स्वीनी दृष्टि पड़वा देवी नहिं, कुंभनी आगल ANTO म श्री बान athe athe ॥ ३८ ॥ क For Private & Personal use only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २ ॥ || जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ सधवा स्त्री पासे गहूली कराववी, उभय टंक धवल मंगल गीत गबराबवां, गीत गानारिओने प्रभावना आपवी. ___उत्सव दरमियान मण्डपमां के मंदिरमा नरकादि दुःख गर्भित आलोचनानां स्तबनो, सज्झायो, राजीमती आदिनां विलापमय गीतो, जिन तथा मुनिओनां उपसर्ग गर्भित स्तवन-सज्झायो, अशरण अनित्य भावनानां गीतो तथा पदो गावबां नहि. स्थापनीय बिम्ब ज्यां होय ते स्थले १० दिवस पर्यन्त स्नात्रपूजा भणाववी, स्नात्रिया ४ पुरुष सर्वक्रिया मंत्रशुद्ध करीने स्नात्र भणावे, ते मंत्रो नीचे प्रमाणे छे. १-स्नानजलाभिमन्त्रण मंत्र . "ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा" ७/ २-दातण-अभिमंत्रण मंत्र -“ॐ ह्रीं यक्षसेनाधिपतये नमः" । ३-मुखप्रक्षालन मंत्र - "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामदेवाधिपते मम ऽभीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा" ७ ४-स्नान मंत्र. "ॐ ह्रीं अमले विमले विमलोद्भवे सर्वतीर्थजलोपमे पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्भवामि" । ५-वस्त्राभिमंत्रण मंत्र- 'ॐ ह्रीँ आँ क्रौं अर्हते नमः" । ६-तिलक मंत्र- 'ॐ आँ ह्रीं क्लौँ अर्हते नमः" । ७-रक्षासूवाभिमंत्रण मंत्र . "ॐ ह्री अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा” ७ ८-भूमिशोधन मंत्र . "ॐ ह्रीं अहँ भूर्भुवः स्वधाय स्वाहा' । ९-स्नपनीय जलाभिमंत्रण मंत्र For Private & Personal use only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण ॥ जिन कलिका. बिम्ब खं० २ ॥ प्रवेश विधिः ॥ ४० ॥ क्षीरोदधे स्वयंभूश्च, सरः पद्ममहाह्रद ! शीते ! शीतोदके ! कुण्ड ! जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥१॥ गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति । कावेरि नर्मदे सिन्धो, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥ "ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं म्रावय स्रावय स्वाहा' ७ १ मंत्रे न्हावानुं जल मंत्र, २ मंत्रे दातण मंत्रबु, ३ मंत्रे मुख धोबुं, ४ मंत्रे स्नान करवू, ५ मंत्रे वस्त्र मंत्रीने पहे, ६ मंत्रे स्नात्रकारोए ललाटे तिलक करवू, ७ मंत्रे गेवासूत्र मीढल मूरोडाफली मंत्रीने बांधवी, ८ मंत्रे पुष्पवास भूमि उपर आछोटी भूमिशोधन करवू, अने ९ मंत्रे स्नात्रजल मंत्रीने वापरबु, दरेक मंत्र ७-७ बार बोलीने ते ते कार्य करवू. स्नात्र पछी अष्टप्रकारी पूजा करवी, तेमां पण नीचेनो मंत्र बोलीने प्रत्येक द्रव्य चढावबुं :"ॐ ह्रीँ श्रीपरम परमात्मने अनन्ताऽनन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा" | आ मंत्र बोलीने जलकलशोए अभिषेक करवो, ए ज मंत्रे चन्दनं, पुष्पाणि, अक्षतान्, दीपं, धूपं, नैवेद्यं, फलं, ए शब्दो 'जलं' ना स्थाने जोडीने 'यजामहे स्वाहा' आ प्रमाणे संपूर्ण मंत्र बोली बोलीने ते द्रव्यो चढावबां, १० दिवस सुधी उपरनी विधिए स्नात्र करवा पूर्वक पूजा करवी. दश दिवस क्रोध न करवो, कोई साथे झगडबुं नहिं, अपशब्द बोलवो नहिं, बारणे आवेल याचक, भिक्षुक आदिने यथाशक्ति संतोषवा, पण निराश करवा नहि. मुहूर्तने ३ दिन रहे त्यारे विशेष धूप करवो, रात्रि जागरण करवू. रात्रि १ पहोर जातां जिनालयना रंगमंडपमा नैवेद्य मूकवां, प्रभु बेठा पछी पण ३ दिवस सुधी ते ज प्रमाणे नैवेद्य मूकवां, तेनी विधि नीचे प्रमाणे छे :- प्रथम धान सोबरावी झटकावीने राख्यां ॥ For Private & Personal use only www.iainelibrary.org Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ॥ ४१ ॥ होय तेमाथी चार मावितरवाली स्त्री स्नान करी शुद्ध वस्त्र पहेरीने रांधे, कोरा सरावलाओमां भरीने मूके, प्रतिदिन सरावलां नवां लेवां, प्रतिष्ठा पहेला २, पछी ३ दिवस एवं ५ दिवस नैवेद्य मूकबुं. लापसी १ पुडला २ भात ३ करंबो ४ दहि ५ खीर ६ खांड ७ वडा ८ कंकु ९ हलदर १० पानना बीडां ११ सोपारी १२ चवलाना (चोला) बाकला १३ मुंगना बाकला १४ चणाना बाकला १५ आ १५ चीजो तैयार करावीने एक एक चीज एक एक कोरा माटीना पात्रमा राखवी, १ कोरा पात्रमा अबोट जल भरवू, आटाना कोडियां करी १.१ पात्रमा १-१ कोडीयु मूकबुं. प्रत्येक कोडीयामां ४४ दीवेट मूकीने घी पूरी दीवा करवा, पछी एक एक पात्रमा हाथमां लेईने - “ॐ ग्रहाश्चन्द्र सूर्यांगारक बुध बृहस्पति शुक्र शनैश्वरराहुकेतुसहिताः सलोकपालाः सोम यम वरुण कुबेर वासवादित्यस्कन्दविनायकोपेताः, ये चान्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्रदेवतादयस्ते सर्वे प्रीयंतां प्रीयंतां स्वाहा" । ए मंत्र बोलीने पात्र मूकबुं, जमीन उपर जल छांटीने जलपात्र मूकवू, अने धूप उखेववो, कंकु तथा हलदरनुं पाणी करी सोहागण स्त्री पासे अन्दर तथा बहार छंटाचवू, चारे तरफ फूल विखेरवां. पंचवर्णा गेवासूत्रना २१ तार देवालये वींटवा, उपरथी श्वेत तार वींटवो, द्वारने टोडे अथवा मध्य थांभले वींटवो. जो ३ दिन पहेलांथी नैवेद्य मूकबार्नु न बने तो १ दिन पहेलां अने एक दिन पछी मूकबुं, मुहूर्तने पहेले दिवसे लापसी १ बाकला २ करंबो ३ पाणी ४ ए चार वस्तु पवित्रपणे करी कोरां ४ सरावलामां भरी वासक्षेप करी धूपी संध्यासमये घरमां अथवा देहराने आगले पडाले मूकवां, क्रियाकारक पुरुष दरेक पात्र हाथमां लेईने-- “ॐ भवणवइ वाणमंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे के वि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ।" For Private & Personal use only ॥ ४१ ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ए गाथा ३ वार कहीने पात्र उपर अगासीमां मूके, अने धूप उखेबीने नीचे उतरे. जेने घरे अथवा जे स्थाने स्थापनीय बिम्ब होय त्यां रात्रिजागरण करवू. ते ज रात्रिए पहोर १ रात गया पछी देवगृहमध्ये उभो रही अगर उखेववा पूर्वक उपसर्गहरनी अक्षर शुद्ध १ माला गणे. मध्यरात्रे निर्धूम अंगारे १ पात्र भरी उपर अगासीमां मूकबुं, तेमां दशांग धूप करी घडी १ सुधी-- "सर्वक्षेत्रदेवता मुजने सानुकूल होजो" आ प्रमाणे कहीने नीचे उतरे. ॥ नवग्रह स्थापनविधि ॥ बिम्ब प्रवेशने दिवसे प्रभाते एक सेवनना पाटला उपर यक्षकर्दमे करी नवग्रह मंडल आलेखी रक्त बस्ने ढांक_, प्रतिखंडे मंडल उपर पान चढाववां, उपर चोखानी ढगली करीने ते उपर नव खण्डे त्रांबानाणुं मूकवू, धूप उखेवबो, उपर १ श्रीफल ढोवू, नैवेद्य चढाव, मोदक १ खाजु २, इत्यादि नैवेद्य मूक, रक्त वस्त्र ओढाडवू. ए पछी फूल वास चोखा पाणीनी अंजलि भरीने - “ॐ आदित्य-सोम-मंगल-बुधगुरुशुक्राः शनैश्वरो राहुः । केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा ॥" ए मंत्र ३ बार भणी फूल प्रमुखे करी ग्रहमंडलने वधाव, अने पाटलो जिनपीठथी जमणी बाजुमा स्थापन करवो. ATION ॥ ४२ ॥ श For Private Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। जिन । कल्याणकलिका. खं० २ ॥ बिम्ब प्रवेश विधिः ।। ॥ ४३ । ॥ दशदिक्पाल स्थापनविधि ।। बीजा सेवनना पाटला उपर यक्षकर्दमना रसे अघाडानी लेखण बड़े दशदिक्पालोनां नाम मंत्र आलेखवा, उपर पीत वस्त्र ढांक, १० मण्डले पान मूकी चोखानी ढगली करी उजली सोपारी अने त्रांबानाणुं चढावी धूप करवो, ए पछी फूल, वास, चोखा पाणीनी पसली भरीने - “ॐ इन्द्राग्नियम-नैर्ऋतवरुणाः समीरणकुबेराः । ईशानब्रह्मनागा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा ॥" __ आ पाठ ३ वार बोली दिशापालोने फूलवासादिकथी वधाववा अने ए पाटलो पीठथी डाबी तरफ स्थापन करवो, पछी ग्रह दिक्पालोनी मध्यमां उभा रही हाथ जोडीने - "ॐ इन्द्रादयो दिक्पाला आदित्यादयो ग्रहाश्च स्वस्व दिशि स्थिता विघ्नप्रशान्तिकरा भवन्तु स्वाहा ।" आ प्रमाणे प्रार्थना करवी - प्रवेशने दिवसे उपर प्रमाणे प्रथम ग्रह दिक्पालोनी स्थापनी करी पछी स्थापनीय जिनबिम्बने लेवा जळू. ॥स्थापनीय बिम्ब लेवा जवानी विधि । मुहूर्तना दिवसे प्रभात समये चतुर्विध संघ साथे नीचे मुजब तैयारी करी मंडपमा बिम्ब लेवा जg. उत्तम ब्रह्मचारी पुरुष मंत्र पूर्वक स्नान करी, नवां वस्त्राभूषण पहेरी, श्रीजिनचैत्यथी अंग अवयवे अखंडित पंचतीर्थी प्रतिमा आणीने १ थालमां केसर चन्दननो साथियो करी पाली १ सेर २, अखंडित अक्षतनो साथियो करी उपर ७ सोपारी मकी उपर रूपानाणं मकी | " www.iainelibrary.org Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / SMS त थालमां पंचतीर्थी पधराववी, बीजा १ थालमा अखियाणु (प्राभृत-भेटणुं) ५ सेर अक्षत अने रूपानाणुं मूकी, ते थाली लई एक | || कल्याण व्यक्ति जिनबिम्ब आगल उभी रहे, त्रीजा थालमा ४ हांसनो अने ४ वाटनो माणेकदीवो घीए भरी अंदर रूपानाणु मूकीने प्रकटावी am|| जिनकलिका. राखवो, ते थाल जिनबिम्ब आगल जमणी तरफ एक व्यक्ति लइ उभी रहे, चोथा थालमा अक्षत-चोखा बडे अष्टमंगलिक आलेखी वास बिम्ब पुष्पे पूजी ते थाल लइ एक व्यक्ति जिनबिम्ब संमुख उभी रहे, पांचमां थालमा २ वस्त्रो केसरनो नन्द्यावर्त करीने मूकवां, अने ते थाल प्रवेश लेइ एक व्यक्ति जिनबिम्बनी आगल उभी रहे. विधिः ॥ ।। ४४ ॥ नाना २ घडा पवित्र लेई तेमां अखंड चोखा सेर १॥ तथा सोपारी ७ मूकी उपर नीलो तथा पीलो तास्तो अथवा कसूंबीवस्त्र ढांकg, कांठे गेवासूत्र बांधवू, फूलमाला पहेराववी, उपर श्रीफल मूंकवं. पछी ते घडा सोहागण पुत्रवती बे स्त्रियो सोल शणगारे शोभती माथे उपाडीने श्रीजिनबिम्बनी डाबी-जमणी तरफ उभी रहे, ते वखते श्रीसंघने तंबोल आपे, अर्थात् श्रीफल मीठाईना पडा प्रमुखनी प्रभावना यथाशक्ति आपे. पछी पंचशब्द वाजिंत्र नगारानोबत बाजते गाजते आगल चतुर्विध संघ खेला प्रमुख नाचते अनेक हाथी, घोडा, सांबेला चालते, याचक बिरुदावली बोलते, पाछल सुहासण स्त्रियोनो समुदाय अनेक धवलगीत गावते ऋद्धि विस्तार सहित याचक जनने दान देतां घेरथी निकली मार्गमा अपशब्द क्रूर शब्द के दुर्वचन न बोलता मंगल शब्दो बोलतां श्री जिनशासननी उन्नति बधारतां ज्यां स्थापनीय बिम्ब - होय ते घरना अथवा मंडपना द्वारे आवे. त्यां घरधणी सोहासण स्त्री पासे श्रीफल तथा अखिआणा ढोबरावे, सोना रूपाना पुष्पोए मोतीए अने अक्षते वधावरावे, जिन aal बिम्बने लूंछणा करी याचकने दान आपे, जिनबिम्बने नमस्कार करे, पछी संघसहित घरमां या मांडवामां आवे, स्थापनीय बिम्बवाला | ॥ ४४ ॥ For Private & Personal use only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जिन 1 ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ स्थानना द्वारे कुंकुना हाथा दीये, स्थापनीय विम्बने आगे सेर पांच चोखानो साथियो करी उपर सोपारी तथा रूपीयो मूके. पछी सकलसंघ त्रण खमासमणां देइ प्रभुने वांदे अने त्यां स्नात्र भणावे, बिम्ब लेबा आवनार गृहस्थ स्थापनीयबिम्बना धणीने सपरिवार पहेरामणी करे. बिंब धणी पण बिम्ब लेवा आवनार गृहस्थने पाछी | विशेष अथवा यथाशक्ति पहेरामणी आपे. परस्पर रंगरेली करे, सकल संघने तंबोल आपे. ए पछी पूर्वे स्थापेल मंगल कुंभने रेशमी वस्त्र ढांके, उपर सुवर्ण पत्रे जडित श्रीफल मूकी सोहासण स्त्री माथे उपाडी आगल चाले. घरधणी श्वास कुंभक भरी बे हाथे थाल धरी उभो रहे, त्यारे प्रतिमानो धणी प्रतिमाजी उपाडीने थालमां पधरावे, जे प्रतिमा लेईने आव्या हता तेने जोडे राखे, प्रतिमा आफ्नार - "मनोरथ सिद्धफल थजो" आ प्रमाणे आशिप आपे, प्रतिमा ग्राहक - "ॐ ह्रीं श्रीं जीराउलि पार्श्वनाथाय नमः" ___एम वार ७ कही सात नवकार गणे, अने चन्द्रस्वरमा डाबा पगनां ४ अने सूर्यस्वरमां जमणा पगनां ३ पगला भरीने चालवा मांडे. प्रतिमा घरनी आगल अष्टमंगलिक प्रमुख ४ थालवाला, तेमनी आगे मंगल कलश उपाडनार, तेनी आगल माणिक्य दीप अने धूपधाणुं, तेमनी आगे आरिसो, घंट, झालर, जलपात्र, पुष्पचंगेरी अने कोरा बलिनु पात्र धरनारा, ए बधानी आगल संघ, तेनी आगल महेन्द्रध्वज अने तेनी आगल पंचशब्द वाजिंत्र निशानडंको प्रमुख, सर्व ऋद्धिविस्तार चाले, पाछल सोहागण स्त्रियो अनेक धवल मंगल १. कोई विधिमा स्नात्रने स्थाने ८ स्तुतिओ बडे देववंदन करवा विधान छे. Jain Education Internationa For Private Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जिन ॥ कल्याणकलिका. का बिम्ब प्रवेश विधिः ।। गीत गावतां सर्व हर्ष उल्लाससहित घरधणी चाले, मार्गमा - "ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्ताम्" ए शब्द उच्चरतां अने कोरा बलि बाकुला उछालतां जइये, बलि उछालतां दश दिक्पालोने बोलावता जइये, ते आ प्रमाणे - "ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" एज प्रमाणे - ॐ अग्नये, ॐ यमाय, ॐ निर्ऋतये, ॐ वरुणाय, ॐ वायवे, ॐ कुबेराय, ॐ ईशानाय, ॐ नागाय, के ॐ ब्रह्मणे, आ बधाने बोलाववा, अने बाकला नाखवा, छेल्ले "ॐ समस्तक्षेत्रदेवीदेवेभ्यः सायुधेभ्यः सवाहनेभ्यः सपरिकरेभ्यः श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवविधौ आगच्छन्तु २ स्वाहा।" आम बोलीने कोरो बलि उछालवो, कोरा बलिमां घउं १ चणा २ जुवार ३ मग ४ चवला (चोला) ५ जब ६ अने अडद अथवा सरसव ७ लेवा, तेमां द्राक्ष, अखरोट, टोपरानां नाना खंड नाखी उछालवां, पाणीना छांटा देतां जवू, वच्चे बच्चे जिनबिम्ब उपर लूछणुं करी याचकने आपवां, एम महामहोत्सव पूर्वक घर नजीक आवे, त्यारे बे अथवा चार सधवा स्त्रियो अथवा कुमारिकाओ पूर्ण कलश भरी सामे आवे, त्यारे प्रधान पुरुष आगलथी आवीने कंकुना छांटा नाखे अने द्वारे तोरण बांधे, पछी घरनो स्वामी श्रीफल तथा आखियाणां थालमा लेइ प्रतिमा संमुख आवी आखियाणां धरी प्रतिमाने नमस्कार करे, अने मार्गमां आशातना थइ होय ते निमित्ते “मिच्छामि दुकडं'' देइ शेष रहेला बलि बाकुल सर्व उछाले. पछी घरधणी "स्वामी पधारो" एम कहीने जलनो आभूखो दे, अर्थात् मार्गनी जमीन उपर जलनी धार दे, त्यारे प्रतिमाधर तोरण नजीक आवे, ते वखते सधवा स्त्री घाटडी (चुंदडी) ओढीने हर्षभेर रुपानां पुंखणां बडे पोखे, बाजोटी १ सरीओ २ ईडीपीडी ३ करवडो ४ घुसरी ५ त्राक ६ कंकुनी बाटकी ७ मुसल ८ रवाइओ ९ ए सर्व नवां कराववां जोइये. न होय तो नकरो मूकाववो, | d Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ Res - पान फूल प्रमुख पुंखणानो सामान लेइने पोंखे, पोखवानो चढावो करी देवद्रव्यनी वृद्धि करवी, पण पोंखनार स्त्री निर्दोष होवी जोइये, I पोखवानी रीति थया पछी प्रतिमाधर पग नीचे संपुट चांपीने घरमा आवे. जो मुहूर्तने वार होय तो बिम्बने बाजोठ उपर बेसारे, अने मुहूर्तनो समय नजीक आवतां प्रतिमा लेई मंडपमा उभो रहे त्यां बीलब चन्दनना छाटां देवा, जे पीठ स्थानके प्रभु स्थापना होय ते स्थानके फरता चक्रनी माटी, वृषभशृंगथी उखडेल माटी, गजदन्तथी उखडेल माटी, समूलो डाभ, श्वेत सर्षप, दूर्वा, जब, अखंड चोखा, तथा व्रीहि ए ८ आठ वानां मूकवा, ते बच्चे चोखंडो रुपियो मूकी उपर त्रांबानो पतरो मूकबो, पतरा उपर चन्दन, केसर, कस्तुरी बरास, अंबर, अगर, मिरच, कंकोल, सुवर्णरज, आ पदार्थोथी बनेल यक्षकर्दम सोनाना | अथवा तो रुपाना कचोलामां घाली ते वडे दक्षिणावर्त्त स्वस्तिक करवो, अने तेनी ४ पांखडीये कूर्ममंत्र लखवो, मंत्र कुंभक श्वास करीने लखबो. ते पछी गुरु उभा उभा - "ॐ ह्रीं क्ष्वी सर्वोपद्रवाद्विम्बं रक्ष रक्ष स्वाहा ।" आ मंत्र बोली कपूरादि मिश्रित सुगंधी केसर चंदनना छांटा प्रत्येक दिशामां नाखीने दिग्बन्ध करे, मुहूर्तनो समय नीकट आवतां स्वरोदय साधी - "ॐ ह्रीँ जीराउलि पार्श्वनाथाय नमः" आ मंत्र वार ७ अने नमस्कार मंत्र वार ७ गणवो, पछी - "ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां" ए शब्दो मुखे उच्चरीने नीचेनो मंत्र भणवो, - "ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा" उक्त कूर्ममंत्र बोली श्वास कुंभक करीने श्रीजिनबिंबने मूल स्थाने स्थापे, साथे लावेल मंगलकुंभ प्रभुने जमणे पासे स्थापबो. १०८ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जिन ।। कल्याणकलिका. बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ॥४८॥ तांतणांनी दीवट करा दापपात्र संपूर्ण गोघृते भरीने तेमां चोखंडो रुपियो मूकी ते दीपक माणेक दीवावडे प्रगटाववो, अने मंगलकुंभनी | पासे जिनबिम्बने आगे मूकबो. ए दीवो २४ पहोर सुधी अखण्ड राखवो जोइये, सचित्र बार घडा बिम्बनी आगे मूकवा, प्रतिमा आगल अखंड एक लाख चोखानो स्वस्तिक करवो. __ पछी खमासमण देइ प्रणाम करी देहरासरना बनावनार कडिया, शिलावट, सुथार प्रमुखने रीझदान देइ संतुष्ट करवा. उत्तम खिये पवित्रपणे तैयार करेल खीर १. लापसी २. मालपडा ३. मोलापडला ४. वडां ५. भात ६. करंबो ७ अने बाकला चणा मग चोला उडद (अडद) घउं जुवार जवना सर्व थइने २१ सेर तैयार करावी, एक मोटी कथरोटमा लेइ तेने आखलिया (मांची) उपर थापे, सर्व एकत्र करी तेमां सवासेर गोघृत रेडबु, सवासेर बुरो खांडनो नांखवो, श्वेत तथा लाल कणेरनां तथा बीजा पंचवर्णा पुष्पो तेमां नांखी वासनी मुट्ठि भरी ३ वार भूत बलि मंत्रे मंत्रीने वासनिक्षेप करवो. ॥ भूतबलि मंत्र नीचे प्रमाणे छे ।। “ॐ नमो अरिहन्ताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्वसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किंनरकिंपुरिसमहोरगगरुलसिद्धगंधव्वजक्खरक्खपिसायभूयपेयसाइणीडाइणीपभिइओ जिणघरनिवासिणो नियनियनिलयट्ठिया पवियारिणो, संनिहिआ असंनिहिआ य ते सब्वे इमं विलेवणधूपपुष्फफलपईवसणाहं बलिं पडिच्छन्ता तुट्ठिकरा भवन्तु, पुट्टिकरा भवंतु, सिवंकरा भवंतु, संतिकरा भवंतु, सुत्थं जणं | कुणंतु, सव्वजिणाण सन्निहाणप्पभावओ पसन्नभावत्तणेणं सब्वत्थ रक्खं कुणंतु, सब्वत्थ दुरियाणि नासेंतु, सव्वासिवमुवसमेंतु, ॥ ४८ ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- तब || जिन न बिम्ब कलिका. खं० २ ॥ प्रवेश विधिः ॥ ।। ४९ ॥ CHS संति तुट्ठि पुट्ठि सिवसुत्थयण कारिणो भवंतु स्वाहा" ते बलि बाकुलमांथी अर्धा बीजा भाजनमां लेइ मांची उपर मूकी ढांकी राखवा. अर्ध बलि लेइने ते घर अथवा चैत्यने आगले भागे जिन पीठथी उच्च स्थानके स्नात्रिया १२ दाग रहित लांछन रहित होय ते | पैकी वेणिवन्त श्रावक मुक्तकेश करीने बलिबाकुलनी पसली भरी पूर्वदिशा संमुख उभो रहे. बीजो केसर, त्रीजो फूल, चोथो थाली वेलण, | पांचमो धूप, छट्ठो दीपक, सातमो आठमो बे चामर, नवमो घंट, दशमो जल कलशियो अने अग्यारमो आरीसो लेइने उभो रहे, बलि भाजनथी आरीसा पर्यन्त सर्व चीजो लेइने प्रत्येक उभा रहे त्यां बलिबाकुलवालो प्रत्येक दिशासंमुख उभो रही ते ते दिशापालन आह्वान करे, बीजा तेनी पाछल बोले. प्रथम पूर्वदिशामा इन्द्रनुं आह्वान करे. “ॐ नम इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" आह्वान मंत्र बोली बलिबाकुलानी पसली ते दिशामां उछाले, आह्वाननो पाठ बोलती वेला वाजिंत्रो बंध कराव्या होय ते बलि नाखती वखते वगाडवां, पछी अग्नि खूणा संमुख - "ॐ नमोऽग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ आगच्छ स्वाहा" दक्षिण दिशा सामे - "ॐ नमो यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" न Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जिन ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ARI क नैर्ऋतकोण सन्मुख - "ॐ नमो निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" पश्चिम संमुख - "ॐ नमो वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" वायुकोण सामे - "ॐ नमो वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" ___ उत्तर दिशामां - "ॐ नमो धनदाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" ईशानकोण संमुख - "ॐ नम ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" उर्ध्व दिशामां मुख करी - “ॐ नमो ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" पातालदिशा तरफ दृष्टि करी - “ॐ नमो नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा" Mel Gol शोल For Private Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ आ प्रमाणे प्रत्येक दिशामा बलि बाकुला नांखवां, जल छांटवू, पुष्प नाखवां, चन्दनना छांटा नाखवां, धूप उखेवबो, घंट वगाडवो, थाली वगाडवी. कोइ विधिमां दिक्पालोने बलि दीधा पछी प्रभु पधरावबानुं विधान करेल छे. पछी मुहपत्ती लेइ ८ थोये देव बांदे, विध्यन्तरमा संघसहित गुरु देववंदन करे आबु विधान छे. पछी आचार्य उपाध्याय अथवा सुविहित गीतार्थ वर्धमान विद्यावडे सकलीकरण करी वासनिक्षेप करे. जो तेवो जोग न मले तो नवकार ३ गणी ब्रह्मचारी श्रावक वासक्षेप करे, पछी सुखडी सेर ५ प्रभुनी आगल ढोबी, ए पछी गुरु उभा थइ “सन्तिकरं" तथा "बृहच्छान्ति" स्तोत्र बोले, पछी - "ॐ बिम्बस्थापकाय गृहाधिपतये सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा" आ मन्त्रे कंकु मंत्रीने तेना बधे छांटा नाखे. बिम्बस्थापक गृहस्थ “संतिकरं" नी माला गणे, जो तेटलो समय न होय तो सांजे गणे, अथवा सवारे बहेली गणी होय तो | पण चाले. पछी मुहूर्त पहेला शुभ दिवसे जलयात्रा विधिपूर्वक लावेल १०८ कुवानां पाणीयुक्त करी पंचामृत मेलवी गंगाजलादि तीर्थजल मेलवीने ते वडे स्नात्र करे. विधियुक्त आरति मंगलदीप करीने नैवेद्य मूकवू, तेमां ५ जातनी सुखडी तथा लापसी, सोपारी १०८, श्रीफल नव ९, उत्तम जातिनां फल संख्याए २४ ढोवां, सिद्धचक्रनी पूजा करवी, श्रीगुरुनी नवे अंगनी पूजा करवी, यथाशक्ति संघने पहेरामणी आपबी, ते न बनी शके तो जघन्यपणे ४ जणने वस्त्रधी पंचांग पसाय अने आभरणमुद्रिका (वींटी) प्रमुख आपीने भक्ति साचवे. पछी गुरु उच्चस्वरे ‘अजित शान्तिस्तव' भणे, ते पछी घणा श्रावक श्राविका न्हाही धोई शुद्ध वस्त्र पहेरी जिन पूजे, प्रभु मुख . Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ कल्याणकलिका. खं.२॥ | जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ जोई द्रव्य भेट करे, अहींयां विधि साचवतां घणी वेला धई जवाने कारणे मुहूर्त वेलाएज स्थापना पछी मुख जोवणां करे छे. पछी गुरु संघसहित खमासमण देइ इरियावही पडिक्कमीने ८ थोये देववंदन करे, थोय जे भगवान मूलनायक नवा स्थाप्या होय तेमनी कहेवी, बेसीने नमुत्थणंथी जयवीयराय पर्यन्त कहे, स्तवनने स्थाने मोटी शान्ति कहेवी. ते पछी गुरु उभा थइ श्रीक्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्य उससिएणं०, लोगस्स १ नो० सागरवरगंभीरा सुधीनो काउसग्ग करवो, पारीने नमोऽर्ह. कही, “यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ आ स्तुति कही उपर आखो नोकार कहेवो. पछी भवनदेवयाए करेमि काउसग्गं अन्नत्थ०, लोगस्स १ नो काउसग्ग सागरवरगंभीरा सुधीनो पारीने नमोऽहं कही, स्तुतिःज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥ उपर प्रकट नवकार आखो कहेवो. खमासणम देइ इच्छाकारेण संदिसह क्षुद्रोपद्रव शमावणी काउसग्गं करूं इच्छं क्षुद्रोपद्रव शमावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ० काउसग्ग १ नवकारनो-विध्यन्तरमा काउसग्गमां उवसग्गहर चिंतववो-पारी नमोऽहत् कही स्तुतिः - सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्त्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥३॥ कहेवी, उपर प्रकट नवकार कहेवो, ए पछी - ॥५२॥ For Private & Personal use only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण खं०२॥ ।। जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ त्र "उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥४॥ सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥५॥ कलिका. | इम कही नवकार १, उवसग्गहर १, लोगस्स १, फूल गुंथणीए वार ७ कहीने बेसी जवू, गुरुए बिम्ब स्थापनानो महिमा तेमज चैत्य करावनार श्रावक बारमा देवलोके जाय, इत्यादि उपदेश करवो, अने छेवटे राखेल अर्ध बलिबाकुल वडे देवताओनुं विसर्जन कर, | ते नीचे प्रमाणे - (१) ॐ नम इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलि गृहाण गृहाण, स्वस्थानं | गच्छ गच्छ स्वाहा । ____(२) ॐ नमोऽग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । म (३) ॐ नमो यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिंबप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (४) ॐ नमो निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (५) ॐ नमो वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण | G स dhe का For Private & Personal use only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JBI ॥ कल्याण कलिका. याला । जिन| बिम्ब 5 प्रवेश विधिः ॥ खं०२॥ श स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (६) ॐ नमो वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । ___ (७) ॐ नमो धनदाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (८) ॐ नम ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (९) ॐ नमो ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (१०) ॐ नमो नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अमुकनगरे श्रीजिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे बलिं गृहाण गृहाण स्वस्थान गच्छ गच्छ स्वाहा । उपर प्रमाणे प्रत्येक दिक्पालने नाम पूर्वक बलि आपी विसर्जनी मुद्राए विसर्जन कर, अने अन्तमां हाथ जोडीने - एम कहीने नमस्कार करवो । देवा देवार्चनार्थं ये, पुराऽऽहूताश्चतुर्विधाः । ते विधायार्हतां पूजां, यान्तु सर्वे यथागतम् ॥१॥ For Private & Personal use only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ५५ ।। पछी प्रभावना करे, संघसहित गुरुने पोताने घरे तेडीने अन्न वस्त्र पडिलाभे साधर्मिक वात्सल्य करे, केसरना छांटणां करे, अने संघने श्रीफल तंबोल देइने विदाय करे. बिम्ब प्रवेशकारक गृहस्थ संध्या समये अथवा रात्रि समयमां मूलनायकना नामनी नवकारवाली गुणे, दिवस १० पर्यन्त नित्य सांजे सवारे गीत गान कराववुं, गानारिओने तंबोल देवुं, १० दिवस रात्रि जागरण करयुं, तेम न बने तो ३-५ ९ में दिवसे तो अवश्य करवुं. १० दिवस सुधी १ आंबेल एकाशन प्रमुख तप करे, पोतानाथी न बने तो घरमा कोई बीजा पासे करावे, नवमे दिवसे साथै सर्वने आंबेल करावे, दशमे दिवसे शक्ति होय अने अष्टोत्तरी स्नान करावे तो घणुं सारुं, दश दिवस सुधी नवकार १०८ तथा उवसग्गहर १०८ बार फूल गुंथणीए गणीये. दशमे दिवसे संध्या समये अखंड चोखा पाली १ एटले सेर २१, बुरु खांड सेर १, गोघृत शेर १, बधां उत्तम पात्रमा भेलां करीने गुरुनो जोग मले तो गुरु आवे त्यारे, गुरुनो योग न होय तो ब्रह्मचर्यधारक दक्ष श्रावक मंडपमां उभा रहीने पात्रमाथी घी खांडनी पूरी पसली भरी- “थुणिमो केवलिवत्थं" इत्यादि समवसरणस्तव, “संतिकरं संति जिणं" इत्यादि संतिकर स्तव तथा “भो भो भव्याः” इत्यादि बृहच्छान्ति, आ ३ नो पाठ कहीने मंडपमां वरसावे, आम त्रण वार थड़ने सर्व वृष्टि करवी. पछी हाथ जोडीने या पाति शासनं जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतार्थसिद्ध्यर्थं भूयाच्छासनदेवता ॥ | १ || आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजाच नैव जानामि, त्वं गतिः परमेश्वर ! ||२|| आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं क्षम्यतां देव !, प्रसीद परमेश्वर ! ||३|| एम कहीने दीवामां घी पूरीने पाछे पगे नमस्कार करतो मुख मंडपथी बहार आवीने जिनगृहनुं द्वार बंध करीने तालु साचवे, ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ।। ५५ ।। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५६ ।। ते द्वार प्रभात लगे कोइए उघाडवुं नहिं, आखी रात जागरण करवुं, प्रभाते घरधणी रुपियो अने श्रीफल लेइ देवगृहे जाने उघाडे; श्रीफल तथा रुपैयो प्रभुने आगे भेट धरे, वृष्टि करेल चोखा जयणा पूर्वक लेइ उलंघाय नहिं तेवे स्थानके परठे, घरे आवी अष्ट प्रकारी पूजा करे अने पोतना कुटुम्बने हर्ष जमण आपी बोलावे. बीजे वर्षे पाछो ए दिवस आवे त्यारे विशेष पूजा, रात्रि जागरण आदि करे, साधर्मिक भक्ति साचवे .. ॥ इति श्रीगृहचैत्ये तथा देवगृहे बिम्ब प्रवेशविधिः संपूर्णः ।। १. आ ‘गृहचैत्ये तथा देवगृहे बिंबप्रवेश विधि' यति सुज्ञानसागरजीना 'शिष्य' यति कान्तिसागरजीए वि.सं. १८१४ नी सालमा डभोइमां व्यवस्थित करेल 'जिन बिंबप्रवेश विधि' नी सं. १९५०मां लखेल प्रत उपरथी मात्र भाषामां परिवर्तन करीने, अमोए लखी छे. वर्तमानमां आ विधिनो विशेष प्रचार छे. मास्तर पोपटलाले छपावेल 'बिंबप्रवेशविधि' यति कांतिसागरनो ज संदर्भ छे. ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ ।। ५६ ।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | जिन ।। कल्याण-I कलिका. खं०२॥ बिम्ब ॥ जिन बिम्बप्रवेश विधि ॥ (२) (१६ मी शताब्दीमां प्रचलित) शुक्र, वत्स, योगिनी, काल, पाश प्रमुख टाली चन्द्रादिबल जोई शुभ मुहूर्ते बिम्ब स्थापना करवी. मुहूर्त पहेलां दिन ३ पबासण उपर कंकुनो साथिओ करवो, चन्दन केसरना छांटा नाखवा, अने उपर चोरवानो साथिओ करी | ५ सोपारी १ नालियेर मुकवू, अने सात स्मरण गणवां, बीजे बीजे दिवसे साथियो सोपारी बदलवां, पण नालियेर ते ज राख. मुहूर्त पहेला ३ दिवस चन्दन-केसर-कपूर प्रमुख कचोले पाणीमा नांखी सोनवाणी करी नवकार तथा उवसग्गहर वडे ७-७ वार प्रवेश विधिः ॥ भ मंत्रीने - श्री जीराउला पार्श्वनाथ ! रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । ए मंत्र बोलतां गभारामां तथा बहार सर्वत्र छांटा नाखवा, अने त्रिकाल धूप उखेववो. आ बधी क्रिया स्नान पूर्वक शुद्ध वस्त्र पहेरीने करवी, शुद्ध धोतिआं पहेरी जे स्थानके स्थाप्य बिंब होय ते स्थानके संघ साथे ज, साथे १ थालीमा अखियाणुं नालियेर लेबु. अने २ बीजी केसर-चन्दननो साथिओ करेली थाली बिंब पधराववा सारूं लेवी, बे पूर्ण कलशो साथे लेवा, ते पैकीना एक कलशमां चोखा, सोपारी, अने बोकडतो रुपियो मुकवो, अने बीजामा लोहनी रक्षा-खीलो प्रमुख मूकवां, कलशोना गलामां गेवासूत्र बांधवू, अने पुष्पमाला पहेराववी, कलशो उपर एक एक नालियेर मूक, आ प्रमाणे तैयारी करी मंगलगीत अने वाजिंत्रोना शब्दपूर्वक बिंब लेवा जर्बु, आगल केसर चन्दननो साथियो करवो, उपर चोखानो साथियो करी नालियेर सोपारी मूकवी, अने ते पछी त्यां संघ सहित देववन्दन कर. जेना घरे बिम्ब होय तेने श्रीफल आपी भगवानने लइ जवानी आज्ञा मागवी, कि था । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिका. का खं०२॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ (२) ।। ५८ ॥ बिम्बना हकदारनी अथवा बिम्ब जेना ताबामां होय तेनी आज्ञा मलतां बिम्बने थालीमा पधरावी शुभ स्वरोदय जोइ जिनालय तरफ प्रस्थान | करवू. बिम्ब उपर वस्त्रनो पडदो राखवो, आगे वाजिंत्र वागते धवल मंगलगीत गवाते श्री संघ सहित बिम्ब लइ जिनभवन तरफ चालवू, | मार्गमा बलि बाकुल उछाली दश दिक्पालोने बोलाववा. ॐ नम इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१॥ ॐ नमोऽग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥२॥ ॐ नमो यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥३॥ ॐ नमो निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥४॥ ॐ नमो वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥५॥ ॐ नमो वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥६॥ ॐ नमः कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।।७।। ॐ नम ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥८॥ ॐ नमो नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥९॥ ॐ नमो ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१०॥ ॐ नमः सर्वदेवदेवीभ्यः सायुधेभ्यः सवाहनेभ्यः सपरिकरेभ्यः श्रीजिनबिम्बप्रवेशविधौ आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा | G del |॥ ५८ ॥ For Private & Personal use only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५९ ।। आ प्रमाणे आह्वान करी ते ते दिशामां बाकला उछालतां ज्यां बिंबनो प्रवेश कराववो छे, ते जिनभवननी तरफ चालबुं. बिंब लेइने संघ लगभग अर्ध मार्गे आवे त्यारे ४ सधवा स्त्रियोए जवारा पात्रयुक्त ४ कलशो उपाडीने सामे आववुं, एक त्रिए बधाववानो सामान थालीमां लइने साथै आववु, मार्गमां भगवानने वधाववा, ते पछी बिम्ब लई जिनभवनना द्वारे आववु, त्यां पुंखवानी विधि कराववी, फलादिक आगल धरवां, बलि बाकुला उछालवां, अने ते पछी प्रतिमा सहित द्वारमा प्रवेश करवो. जे स्थानमां बिम्ब स्थापन करवाना होय त्यां जइ मुहूर्तनी वेला आवे त्यां सुधी उभा उभा “ॐ पुण्याहं पुण्याहं’” बोलतां प्रबाल, १ मोती, २ सोनुं, ३ रुपुं, ४ त्रांबु, ५ समूहदर्भ, ६ सोपारी, ७ चोरखा, ८ चक्रनी माटी, ९ ए सर्वनी पोटली बांधी पा उपर खाडामां मूकीने "झीँ" ए मंत्राक्षरे अभिमंत्रित करवां, उपर रूपानो कूर्म स्थापीने चन्दन, केसर, अगर, कर्पूर - सुवर्णरज आ पदार्थोंना रसे करीने - ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा । ए मंत्र लखवो, अने ते उपर प्रतिष्ठागुरुए वासक्षेप करवो, गुरुना अभावमा तेमणे आपेल वासक्षेप विधिकारे नाखवो. मुहूर्तना समयमा ७ नवकार गणीने प्रतिमा गादी उपर स्थापित करवी, अने “ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा " ए मंत्रनो ७ वार प्रतिमा उपर न्यास करवो - प्रतिमा स्थापन कर्या पछी पूर्ण कलश आगल मूकवो, लाख चोखानो ढगलो करीने उपर श्रीफल मूकवुं, अने ते पछी श्री संघे त्यां देववंदन करवुं, ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ (२) ।। ५९ ।। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ६० ।। ए पछी प्रतिष्ठा करावनार संधे अथवा गृहस्थे यथाशक्ति तम्बोल आपीने श्रीसंघनी भक्ति करवी. ' इति ॥ श्रीजिनबिम्बगृहप्रवेश- विधि ||३|| प्रथम श्रेष्ठ मुहूर्त जोवरावनुं, वत्स-शुक्र- योगिनी घरना द्वारने संमुख टालीने मुहूर्त लेबुं. जे आलामां, ओरडामा के तैयार करावेल घरमंदिरमां प्रतिमा पधराववी, होय त्यां अखंड कचोलामां सोनवाणी करी "ॐ श्रीजीराउलापार्श्वनाथ रक्षा कुरु कुरु स्वाहा " आ मंत्रे ७ वार मंत्री मुहूर्तथी ३ दिवस पहेलांथी छांट, धूप उखेववो, अने धवलमंगलगीत गवराववां. मुहूर्तना दिवसे अनेक वाजिंत्रोना शब्दो साथै मोटा आडम्बर अने उत्सवपूर्वक जिनबिम्ब घरे लावी ४ पुंखणिआओथी पुंखावी घरना द्वारमा प्रवेश कराववो, धूप दीवो साथे राखवो, बिम्ब ज्यां विराजमान करवानुं होय ते स्थाने प्रथम चाकनी माटी तथा समूल डाभ मेला करी लींपवा, उपर केसर चन्दननो स्वस्तिक करी, गुरुए आपेल वासक्षेप करवो, अने मुहूर्तना समयमा ७ नवकार गणीने जिनबिंब पधरावj. बिंब पधराव्या पछी दूध, १ दहि, २ घी, ३ साकर, ४ अने सर्वौषधि, ५ आ पांच द्रव्योनुं “पंचामृत' करी स्नात्र करवुं, आगे विशेष नैवेद्यादि ढोवुं, अने आरति मगंलदीवो करवो. शक्तिने अनुसारे संघपूजा साधर्मिक वात्सल्यादि करवां, प्रतिष्ठा पछी १० दिन सुधी सवारे सांजे कपूर कस्तूरी अगर आदिनो सुगन्धी धूप विशेष प्रकारे करवो, केसर चन्दन पुष्पादि बडे विशेष पूजा करवी, अने १० दिवस पर्यन्त नित्य स्नात्र पूजा भणाववी. १. आ जिनबिंबप्रवेश विधि १६ मा सैकामां लखेल प्राचीन पानाओं उपरथी भाषा बदलीने लखी छे. - ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ (३) ।। ६० ।। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ मुहूर्त पहेलाना १० दिवसथी पचीना १० दिवस पर्यन्त घरधणीए ब्रह्मचर्य पालवू, भूमिशयन करवू, एकाशन करवू, अने १० दिवस || कल्याण पर्यन्त घरमा एक एक जणे आयंबिल कर, १० दिवस सुधी सवारे सांजे १०८ नवकार अने १०८ उवसर्गहर घरधणीए गणवा, अथवा कलिका. तो नवकार अने भयहर 'नमिऊण' स्तोत्रनी फूल गुंथणीए माला गणवी, अने जे भगवान पधराव्या होय तेमना नामनो पण १०८ खं० २॥ वार जाप करवो. इति बिंब गृहप्रवेशविधि. __श्री जिनबिम्ब गृहप्रवेशविधि (४) पूर्वोक्त बिम्ब प्रवेशविधि बिंबना देवालय प्रवेशनी छे. पण बिम्बनो गृहप्रवेशविधि एथी बहु भिन्न नथी. गृहप्रवेशने अंगे ए विधिमां | Ne! जे नाम मात्रनो फरक छे, ते नीचे आपीये छीये. विधिकारोए ए भेदने लक्ष्यमा राखीने विधि कराववी. १ जे घरमा जे वर्षे वरप्रवेश थयो होय ते घरमां ते वर्षे बिम्बप्रवेश थई शकतो नथी, ए ध्यानमा राखीने प्रवेश मुहूर्त लेवू. २. देवालयना बिम्बप्रवेशमा प्रतिमाने सामैयुं करवा, वधावबा, पुंखवा, स्थापना आदिनां कार्यों चढावो बोलीने संघनो आदेश लेनाराओना हाथे कराय छे. ज्यारे गृहबिम्बप्रवेशमा ए बधी क्रियाओ घरधणी अथवा तेना परिवारना हाथे करवानी होय छे. ३- देवालयना बिम्ब प्रवेशमा जे आसन उपर प्रतिमा प्रतिष्ठित करवानी होय छे, ज्यां पंचरत्न आदि स्थापन करी उपर कूर्मस्थापवानुं विधान कराय छे. ज्यारे घरमां प्रतिमा स्थापवानी विधिमां पीठy (पबासण-) पूजन नीचे प्रमाणे करवानुं छे.. मुहूर्तनी वेला आवे त्यां सुधी उभा उभा "ॐ पुण्याहं पुण्याहं' इत्यादि बोलतां पबासण उपर कंकुनो साथियो करी ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा । १. सं. १५४२ वर्षे लिखित गुणरत्नसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्प अने श्री विशालराजशिष्यकृत प्रतिष्ठाकल्पना आधारे आ (श्री बिंबगृहप्रवेशविधि) उद्धृत करी छे, ANT GES ॥६१ ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sel ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ आ मंत्र ७ वार बोलीने आसनना स्थानने अभिमंत्रित करवू, ए पछी समूल डाभ साथे मेळवेली कुंभकार चक्रनी माटी आसन | उपर लिंपवी, ते उपर गुरुदत्त वासक्षेप करवो, अने मुहूर्तनी वेलाए ७ नवकार गणीने ते स्थाने प्रतिमा पधराववी, अने "ॐ जये श्री ही सुभद्रे नमः" ए मंत्रनो प्रतिमा उपर ७ बार न्यास करवो. ४-जिनालय होय के घर देहरासर होय पण प्रतिष्ठा करावनार कोई एक व्यक्ति होय तो तेणे १० दिवस सुधी शीलवत पालवू, आयंबिल अथवा तो एकाशन करवू, नवकार-उवस्सग्गहरनी फूल गुंथणीए १ नोकारवाली नित्य गुणवी, अने भूमि शयन कर. । आसनयंत्र आसनयंत्रनुं विधान पंडित आशाधरना प्रतिष्ठासारोद्धारमा अने आचार्य जिनप्रभसूरिना ‘विधिमार्गप्रपा' ग्रन्थना प्रतिष्ठाऽधिकारमा दृष्टिगोचर थाय छे. पं० आशाधरनुं अने आचार्यजिनप्रभy आ यंत्र-विधान थोडाक शाब्दिक फेरफार सिवाय एक ज छे, छतां विधिप्रपामा ए विषयना - तिर्यगूर्वाष्टरेखाभिर्वज्राग्राभिः समालिखेत् । मण्डलं व्येकपञ्चाशत्कोष्ठकं श्लक्ष्णरेखकम् ॥३॥ अकारादिहकारान्तं, कोष्टेष्वेकैकमक्षरम् । बाह्यकोणस्थितात्कोष्ठात्, प्रादक्षिण्येन संलिखेत् ।।४।। मध्यमे कोष्ठके तत्र, हंकारं सोर्ध्वरेफकम् । जयादिदेवताधिष्ठ-पत्रपद्मस्य मध्यगम् ॥५॥ १. आ गृहबिम्बप्रवेदाविधि लगभग १६ मा सैकाना उत्तरार्द्धमा लखेल एक प्राचीन पत्रना आधारे लखी छे. ANA स dh द A A यी ||६२॥ For Private & Personal use only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ६३ ।। वज्राग्रे प्रणवं दद्यात्, कामबीजं तदन्तरे । त्रिर्मायामात्रयावेष्ट्य, निरुन्ध्यादंकुशेन तु || ६ || आ ४ श्लोको या तो रही गया छे अथवा तो जाणीने छोडी देवामां आव्या छे, गमे तमे होय पण एटलुं तो निश्चित छे के विधिप्रपागतविधान खंडित अवश्य छे. विधिप्रपानी अमारी हस्तलिखित प्रतिमां आपेल २ यंत्रको पैकीनुं १ लुं यंत्र आशाधरनी निर्माण विधिथी बनावेल छे, ज्यारे २ जुं यंत्र स्वतंत्र छे, आनी रचना साथे आशाधरना तेम ज जिनप्रभसूरिना श्लोकोनो कशो मेल मलतो नथी. बीजा यंत्रना संबन्धमा जिनप्रभसूरिए थोडाक शब्दोमां विवेचन कर्तुं छे, जेनो उल्लेख योग्य स्थाने करवामां आवशे. प्रथम अमो उक्त बने ग्रन्थकारोए आपेल श्लोको उपरथी १ ला यंत्रना निर्माणनुं विवेचन करीशुं. आसनयंत्र १ निश्चल स्थाने स्थापेल संपूर्ण लाक्षणिक पीठ उपर प्रतिष्ठित करवा माटे प्रतिमाने तेनी पासे लावीने राखी मूको. पीठे स्थापवा माटे सोनानुं, रूपानुं, त्रांबानुं, अथवा पाषाणनुं एक चोरस पत्रु बनावो, पत्रु सुन्दर जाडुं अने चीकणुं बनावी तेमां आडी उभी ८-८ रेखाओ (लीटीओ) खेंचाववी, रेखाओ अग्रभागे वज्राकारे करवी, आम ८-८ रेखाओना संयोगथी पत्रामा ४९ कोष्टकनुं मंडल बनशे. (४ थी ५ मी रेखाओ बच्चेनुं अंतर अपेक्षाकृत वधारे राखनुं के जेथी मध्यकोष्ठक मोटुं बने अने तेमां अष्टदल कमल बनावी शकाय ) आ मंडलना बाह्यकोण (ईशानकोण) ना कोष्ठकथी आरंभ करी सृष्टिक्रमे ११ कोष्टकमा १-१ अक्षर लखी छेले मध्यकोष्ठकमां अष्टपत्रकमल बनावनुं, अने तेनी कर्णिकामां रेफ सहित 'हं' कार अर्थात् 'हैं' लखवो, आने फरता पूर्वादि दिशागत कमलपत्रोमां जया ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ (४) ।। ६३ ।। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाल ॥ कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ । जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ।। १ जंभा २ विजया ३ जंभिनी ४ अजिता ५ मोहा ६ अपराजिता ७ मोहिनी ८ ए आठ देवीओनो आलेख करवो वा नामो लखवां. रेखाओना वज्रो आगे 'ॐ' अने बे 'ॐ' वच्चे कामबीज (क्ली) लखवू, मंडलना मध्यभागे उपर 'ह्रीं' कार लखी तेनी मात्रा (ई) वडे यंत्रने ३ वार वींटवू, अने मात्रा पूरी थाय त्यां 'क्रौं' लखीने यंत्रने संपूर्ण कर. उक्त रीतिए यंत्र पत्रा उपर लखीने दूध तथा जल बड़े पखालवू, सुगन्धि द्रव्योए मिश्रित चंदन वडे विलेपन करवू, उत्तमपुष्प, अक्षत, नैवेद्य, दीप, धूप, फलोधी तेने पूजवू, अने मातृका वर्णात्मक निम्नोक्त मालामंत्रनो १०८ पुष्पो उपर जाप करीने पुष्पो यंत्र उपर चढाववां, मातृकावर्णमंत्र आ प्रमाणे छे “ॐ नमोऽहं अआ इई उऊ ऋऋ लूल एऐ ओऔ अंअः कखगघङ चछजझञ टठडढण तथदधन पफबभम यरलव शषसह ह्रीं क्लीं क्रौँ स्वाहा ।" पत्राना मध्यकोष्ठकमां कमल छे, तेवो ज कमल पीठ उपर पण सुगंधि द्रव्योना रसथी लखवो, उपर कपूर केर वगेरे छांटवां, पारो तथा पंचरत्न ते उपर स्थापीने पूर्वोक्त पत्रु त्यां स्थापवू, ते पछी शुभ लग्न नवमांशकमां ते आसन उपर प्रतिमा प्रतिष्ठित करवी, अने Ma तेमां पृथ्वी तत्त्वनुं चिन्तन करवू, एवो आम्नाय छे. ॥ ६४ ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० ० २ ।। ।। ६५ ।। ल अ आ इ ज झ ञ छ भ म ヨー 25 g ६३ प 359 " 2 h ስ ስ ስ आसनयंत्र १ क्ली そ प मोहिनी मोहा अपराजिता है विजया 这 B जंमिनी 平平 फ उ ऊ ऋ ठे उ ऋ Exi 61 68 + PEAR 6 65 24 jee the ሐ ሐ ሐ ሐ ॐ ईशानाय स्वाहा ॐ रोहिणि प्रज्ञामि ॐ कुबेराय स्वाहा वैरुट्या अच्छुप्ता मानसी महामानसी ल आसनयंत्र २ ॐ इन्द्राय स्वाहा ॐ ब्रह्मणे स्वाहा ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथाय (मूलनायक नाम) स्वाहा मूं ॐ अग्नये स्वाहा वज्रशृंखला वज्रांकुशी अप्रतिचक्रापुरुषदत्ता काली महाकाली यमाय स्वाहा ॐ धरणेन्द्राय स्वाहा । ॐ पद्मावत्यै स्वाहा मानवी सर्वाखामहाज्वालागांधारी गौरी ॐ वायवे स्वाहा । ॐ वरुणाय स्वाहा । ॐ नैऋत्ये स्वाहा || ॥ जिन बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ (४) ।। ६५ ।। Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण || जिन कलिका. बिम्ब प्रवेश विधिः ॥ बा G आसनयंत्र २ बीजं आसनयंत्र जिनप्रभीय प्रतिष्ठाविधिमां छे. आ यंत्रनी निर्माणरीतिना संबन्धमा आचार्य कंइ वर्णन के व्यवस्थानो उल्लेख कर्यो | नथी, पण एनी स्थापनाना संबन्धमां नीचेना शब्दोमा व्यवस्था आपी छे - "इदं यंत्रं ताम्रपत्रे उत्कीर्य देवगृहे मूलनायकबिम्बस्याधो निधापयेत् । बिम्बस्य सकलीकरणं शान्ति पुष्टिं च करोति । यस्याधस्तनविभागे मूलनायकस्य क्षिप्यते तस्य नाम मध्ये दीयते, मूलनायकस्य यक्ष-यक्षिण्यौ च लिख्यते । अत्र तु श्रीपार्श्वनाथतद्यक्षयक्षिणीनां नामन्यासो | निदर्शनमात्रमिति ।" अर्थात्-‘आ यंत्र त्रांबाना पत्रामां खोदावीने देवालयमा मूलनायक प्रतिमाना आसन नीचे राखg, आ यंत्र बिम्बमा | कला (अतिशय, प्रभाव) उत्पन्न करे छे, अने शान्ति तथा पुष्टि करे छे. जे मूलनायक नीचे यंत्र राख, तेनुं तेना मध्यभागमा नाम लखवू, अने मूलनायकना यक्ष-यक्षिणीनो पण तेमां आलेख करवो अथवा तेमनां नाम लखवां. आ यंत्रमा पार्श्वनाथ धरणेन्द्र पद्मावतीनां नामो दृष्टान्तरूप समजवानां छे. आचार्य जिनप्रभसूरि कहे छे. "ॐ ह्रीं आं श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा ।" आ मंत्रे प्रथम उपवास पूर्वक १०००० जाइनां पुष्पो जपीने यंत्र उपर चढावबां, पछी यंत्र पीठ उपर स्थापन करवू. यंत्रमा जेम मूलनायकनुं नाम लखवानुं छे, ते ज प्रमाणे जापमां पण मूलनायकनु ज नाम बोलवान छे, ए वस्तु अर्थतः सिद्ध छे, अहीयां जप्यमंत्रमा लखेल 'पार्श्वनाथ' ए नाम दृष्टान्त मात्र समजबुं. ॥ ६६ ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ जिनबिम्ब धारयर स्याहा प्रवेश आसनयंत्र ३ उपर्युक्त बे आसनयंत्रो उपरान्त एक त्रीजुं आसनयंत्र पण छे के जे 'कूर्मयंत्र' ना नामथी ओलखाय छे. आज काल प्रायः घणा खरा प्रतिष्ठाकारको पीठ उपर राखेल खाडामां पंचरत्नादिक मांगलिक पदार्थो स्थाप्या पछी ते उपर आ 'कूर्मयंत्र'ने स्थापे छे. कूर्मयंत्र एक सादामा सादं यंत्र छ, लगभग ३ इंच समचोरस त्रांबार्नु पर्छ करावी ते उपर कूर्मनो आकार कोतरावे छे, अने ते उपर सुगन्धी द्रव्यो बड़े 'स्वस्तिक' आलेखी तेना ४ पांखडीयोनी नीचे “ॐ कूर्म-निजपृष्ठे जिनबिम्ब-धारय २ स्वाहा ।" आम चारे दिशाओमां मंत्रखंडो लखीने ए यंत्र पीठ (पवासण गादी) उपर कूर्मनु मुख द्वार तरफ आवे एवी रीते स्थापे छे अने ते उपर शुभ समय आवे त्यारे मूलनायक प्रतिमाने प्रतिष्ठित करे छे. विधिः ॥ ६७ ॥ (२) जिनबिंबं । | निजपृष्ठे ॥ ६७॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाल ॥ कल्याण ॥ नव्य कलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा पद्धतिः ।। ॥ ६८ ॥ Kha ल ८ अथ नव्यप्रतिष्ठापद्धतिः । (१) पूर्व क्रिया गुणरत्नमुनीन्द्रोक्तं, सकलेन्दुविदर्भितम् । प्रतिष्ठाकल्पमाश्रित्य, प्रतिष्ठाविधिरुच्यते ॥२०॥ तपा० गुणरत्नसूरि संदर्भित प्रतिष्ठाकल्प अने उपाध्याय सकलचंद्र योजित प्रतिष्ठाकल्पनुं अनुसरण करीने आ प्रतिष्ठाविधि कहेवाय छे. मूहूर्तनिर्णयो १ राज-पृच्छा २ भूमेविंशोधनम् ३ । मण्डपस्य विनिर्माणं ४, वेदिकारचना ५ तथा ॥२१॥ संघभक्तिसमादेशाः ६, संघामंत्रणपत्रिका ८ । प्रतिष्ठौषधिवर्तिन्य-श्वतम्रः शुभलक्षणाः ८ ॥२२।। अन्वेष्याः स्नात्रकाराश्च शुभलक्षणलक्षिताः ९ । अमारिघोषणं कार्य, राज्ञा संघेन वा स्वतः १० ॥२३॥ प्रतिष्ठोपस्करा नाना-विधा मेल्या यतस्ततः ११ । व्यवस्थायां नियोक्तव्या, धीमन्तः श्रमसेविनः १२ ॥२४॥ अनागतविधेयानि, विधेयानि विचक्षणैः । कार्याणि क्षणकार्याणि, यानीमानि निबोधत ॥२५॥ मुहूर्तनिर्णय १, राजपृच्छा २, भूमिशुद्धि ३, मंडपनिर्माण ४, वेदिकारचना ५, संघभक्तिआदेश ६, संघामंत्रणपत्रिकालेखन ७, | प्रतिष्ठौषधीवाटनारी ४ स्त्रियोनी नियुक्ति ८, निर्दोष स्नात्रकारोनुं अन्वेषण ९, अमारिघोषणा राजाद्वारा कराववी अथवा संघे पोते करवी १०, प्रतिष्ठोपयोगी सामग्री ज्यां त्यांथी मेलववी ११, अने प्रतिष्ठाना कार्योनी व्यवस्था करवा बुद्धिमान अने परिश्रमी पुरुषोनी समितिओ निमवी १२; आ बधां कार्यो बुद्धिमानोए प्रतिष्ठोत्सवनी तैयारीरूपे प्रथम करवां जोइये उत्सव दर्मियान करवानां कार्यो छे ते आ प्रमाणे जाणवा. (१) मुहूर्तनिर्णय प्रतिष्ठा कराववानो निश्चय थतां ज सर्व प्रथम मुहूर्तनो निर्णय कराववो, मूलनायिकजिन, संघ, गाम, गामधणीना नामथी चन्द्रबलादि | SAT I || ६७॥ AS Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोइने निर्दोष मुहूर्त आपनार सारा अभ्यासी ज्योतिषशास्त्रना विद्वान्नी पासे प्रतिष्ठामुहूर्तनो निर्णय करावबो. घणां अल्पज्ञोने पूछवा | करतां एक विशेषज्ञने पूछवाथी ए विषयनो जल्दी निर्धान्त निर्णय थइ शके छे. ए वस्तुने ध्यानमा राखीने ए विषयमा प्रवृत्ति करवी ॥ नव्य ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ जोइये. प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ AMA (२) राजपृच्छा ___ मुहूर्त श्रेष्ठ मली जाय अने प्रतिष्ठा कराववानुं निश्चित होय तो ते राजस्थान होय तो प्रतिष्ठाना विषयमा राजानी संमति लेबी, तथा योग्य सहायतानी मांगणी करवी, प्रतिष्ठानुं स्थान राजधानी न होइ गाम के नगर होय तो त्यांनो अधिकार जे अधिकारीना हाथमां होय तेने मलीने तेनी सहानुभूति प्राप्त करवी, अने प्रतिष्ठा कोइ गामधणीना गाममा होय तो ते धणीने पूछीने काममां तेनी सहायता प्राप्त करीने कार्यारंभ करवो. (३) भूमिशोधन मंडपने माटे भूमि एवी पसंद करवी जोइये के जे स्वाभाविक रीते ज शुद्ध होय, ज्या हाडकां बगेरे शल्य न होय अने गंदकीनुं स्थान अथवा सडेल गलेल खातरवाली के मांसाहारियोना निवासवाली न होय, वली मंडप उपरान्त खुल्ली भूमि केटली रहेशे ए पण प्रथमधी ज जोइने मंडपनी भूमि पसंद करवी, केमके प्रतिष्ठामंडप, स्नानमंडप अने सभामंडप ए बधाने माटे पर्याप्त होय ते भूमिज मंडपने माटे योग्य गणी शकाय. बनी शके त्यां सुधी प्रतिष्ठामंडपनी भूमि देहरानी सामे राखवी. कदापि सामे पर्याप्त भूमि न होय तो जमणे पडखे राखवी पण देहरानी पूठमां तो मंडपभूमि न ज होगी जोइये अने एवा स्थानमा मंडप न ज बनाववो जोईये. भूमि उपरथी कचरो अने मृतक धूल दूर कराव्या पछी ज ते उपर मण्डपर्नु निर्माण- कार्य चालु कराव_. मण्डपना जे भूमि भागे ॥ ६९ ।। Jan Education international Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नव्य ॥ कल्याणकलिका. प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ॥ ७० ॥ वेदिका बनाववी होय तेने एक हाथ खोदाबीने त्यांनी धूल बहार नंखाववी अने ते स्थल जंगलनी शुद्ध माटी पीली अथवा नदीनी शुद्ध |" रेतीथी भरावीने त्यां वेदी कराबवी. जघन्यथी पण प्रतिष्ठामण्डपना मध्य भागथी १०० हाथ सुधीमा क्षेत्रशुद्धि करवी, सुगंधजल छांटवू, पुष्पो वेरखां अने धूप उखेववो, आ प्रकारे मण्डप भूमिनो सत्कार करचो. (४) मंडप-निर्माण प्रतिष्ठामा प्रतिष्ठा-मंडप पण एक आवश्यक अंग छे, पूर्वकालमा प्रतिष्ठा मंडपो अने वेदिकाओ प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाना मानने अनुसारे नानां मोटां बनतां पण पाछलां सेंकडो वर्षोथी आ सैद्धान्तिक वस्तु लुप्त प्रायः थइ छे. आजना प्रतिष्ठा-मंडपोमां लोकाकर्षण माटे भपको अथवा नाटकीय सिनेरी भले होय पण आय, व्यय, नक्षत्रादि जेवं कांइ ज जोबातुं नथी, खरी रीते चैत्यने अंगे जोबाती बधी बातो नहि तो पण आय १ व्यय २ नक्षत्र ३ आ त्रण अंग मेलवीने मंडप कराय तो घणो सुलाक्षणिक बने. शुद्ध करेल चोरस अथवा लंबचोरस भूमिना तलने जमीननी सपाटीथी लगभग दोढ फूट उंचु लेइ तेमां प्रतिष्ठा-मंडपर्नु निर्माण | कर कल्याणकारी होय छे, ए मंडपनो उपयोग मात्र विधि विधानने माटे ज करवो, सभामंडप तेनी आगे जुदो बनाववो जोइये. मंडपभूमिनी लंबाई अने पहोलाई बंने विषम (एकी) हस्तपरिमित लेवाथी मंडपनो आय शुभ आवे छे, ए वात ध्यानमा राखी मंडपर्नु तल निश्चित करवू अने व्यय आय करतां ओछो होय ते लेवो. जो मंडपर्नु द्वार एक ज दिशामा राखवानुं होय तो मंडपर्नु नक्षत्र तहिग्द्वारिक लेबु, आ वस्तु मंडप बनावनार न समझतो होय तो तेने तमारा शिल्पी (मंदिर बनाबनार) द्वारा समझावबो. ॥ ७० ॥ For Private & Personal use only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नव्य ।। कल्याण-| कलिका. खं० २॥ | प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ।। ७१ ।। बाला मंडपनी सजावट सारामां सारी करची, पण तेमां भयजनक, दुःखजनक के उपद्रवसूचक दृश्यो न बनाववां, शोकसूचक रंगो अथवा तेवां वस्त्रो पण विशेष प्रमाणमां न वापरवां. तीर्थोनां दृश्यो, जिन-कल्याणकोना प्रसंगो, बोधदायक घटना चित्रो अने धार्मिक इतिहासने ताजो करनारा धार्मिक प्रसंगोना पडदाओ अने सिनेरीओथी मंडप विशेष आकर्षक बने छे, पाणीना फुवाराओ, जलझरणाओ, नदीओ अने तीर्थस्वरूप पर्वतोनी रचनाओथी तो मंडप खरेखर तीर्थरूप बनी जाय छे, मंडपना मध्य भागमां वेदी बनाववी. (५) वेदीनी रचना मंडपनी जेम वेदीओ पण घणा समय पूर्वे मंडपने अनुसारे बनती पण आ पद्धति आजे प्रचलित नथी, छेल्ली प्रतिष्ठा पद्धतिओमां वेदी ३ हाथ समचोरस अने १॥ हाथ उंची बनाववानुं विधान छे, पण आजे ए विधान चालतुं नथी, जो मंडप चोरस होय तो वेदी पण चोरस बनावाय छे, पण मंडप वाम दक्षिण दीर्घ होतां वेदी पण वाम दक्षिण लंबी बनावाय छे, गमे तेम होय पण वेदीनी लंबाई, - पहोलाई अने ऊंचाई बनेमा शुभ आय तो होवो ज जोईये. | प्रतिमाओ घणी होय अने मण्डपर्नु मध्यपद विशाल होय तो वेदी तेने अनुसारे मोटी बनाववी, अने वेदीनो मध्य भाग वधारे उंचो बनावी तेनी चारे दिशाओमा त्रण पांच आदि मेखलाओ बनाववी, के जेथी घणी प्रतिमाओ रही शके अने सरखी रीते तेओना | दर्शन थइ शके. वेदीनी उंचाई तेना अंगने अनुरूप करवी पण ३५ इंचथी ओछी तो न ज करवी. वेदीना मध्य भागमा खाडो करी तेमां पंचरत्ननी पोटली आदि मांगलिक पदार्थो मूकवां. Get 22 ॥ ७१ ।। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याण कलिका. खं०२॥ || नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ॥ ७२ ॥ वेदी जो चोरस होय तो तेना चारे खूणाओमां बांसनी अथवा बीजा शुभ वृक्षनी थांभलीओ रोपी वेदी उपर वंश मंडप बनावबो, चारे दिशामा १-१ अथवा ३-३ द्वारो बनावबां, द्वारोनी उंचाई पहोलाईथी पोणावमणी बनाववी, वंशमंडप जो ४ द्वारनो होय तो चार दिशामां १-१ अने मध्यमा १ आम ५, अथवा मोटी १ घुमटी बनाववी अने ३-३ द्वारनो मंडप होय तो मध्य द्वारोना भागे ४, खूणाओना भागे ४ अने मध्यभागे १, आम ९ घुमटीओ बनाववी. मंडप अने वेदी तैयार थइ जाय त्यारे मंडपभूमिने गोबर अने धोली माटीनी गारथी लींपवी जोइये, गारमा सुगन्धी जल तथा Na यक्षकर्दमनो घोल नांखी सुगन्धी बनाववी. वेदीने पण खडी अथवा चूनाना घोलथी पोतावबी, घोलमां यक्षकर्दम, पंचरत्ननु चूर्ण तथा सुवर्णनी रज नाखी एक रस करवो, वेदीने पोतानी तेनी चारे बाजुओ संमुख मांगलिक चित्रो कढावबां. .. (६) संघभक्तिना आदेश प्रतिष्ठाप्रसंगे भक्तिवात्सल्यनो बन्दोबस्त करीने ज प्रतिष्ठा करावनारे देश परदेशना संघने आमंत्रित करवो जोइये. प्रतिष्ठा करावनार एक व्यक्ति होय तो तेणे पोतानी व्ययशक्तिनो विचार करीने साधर्मिकवात्सल्य अथवा नोकारसीनी व्यवस्था करवी. अने ते मुजब ज संघसमुदाय एकत्र करवो. प्रतिष्ठान महत्त्व खावापीवानी धमालमां नहिं पण तेना क्रियाविधाननी शुद्धतामां अने मानसिक उल्लासमा छे. प्रथमथी ज शक्तिना अनुमानथी खर्चना द्वार उघाडवां के पाछलथी अधिकव्ययनिमित्तक मनोभंग न थाय, अथवा तो कृपणता जनित लोकापवाद सांभलवानो समय न आवे. प्रतिष्ठा करावनार स्थानीय संघ अथवा सकलसंघ होय अने संघभक्ति निमित्ते साधर्मिक वात्सल्य अथवा नोकारसिओ करनारा ।। ७२ ।। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ।। ॥ ७३ ।। गृहस्थो घणा होय तो शुभ मुहूर्ते चढावा बोलीने आदेश आपवा. मारवाडमां नोकारसी निमित्ते बोलाता चढावाओमा पूर्वे नोकारसीनो खर्च आदेश लेनार उपर रहेतो हतो पण आज केटलाक समयथी त्यां पण बीजा प्रदेशोनी जेम नोकारसीनो खर्च बोलाएल रकममाथी ज करवानी पद्धति पडी गइ छे, आ दशामां जो चढावानी रकम भोजनखर्च पूरती पण आवबानो संभव न होय तो रकमनो एक सारो आंक बांधीने त्यांधीज चढावो बोलवानी शरुआत करवी के जेथी | थोडामा नोकारसीनुं नाम करीने साधारण खातामां घाटो घालनारा फावी शके नहिं अने नोकारसीओना आधिक्यथी प्रतिष्ठा करावनारने अधिक खर्चमा उतरवू पडे नहिं. ___साधार्मिक वात्सल्यो नोकारसीओ अथवा बीजा गमे ते नाम नीचे संघ तरफथी संघभक्तिनो आदेश थया पछी संघने बोलाववा माटेनी आमंत्रण पत्रिकाओ तैयार करवी. (७) संघ-आमंत्रण पत्रिका ___ संघने बोलाववा निमित्ते लखाती आमंत्रण पत्रिका पूर्वे घणी ज सादी अने मुद्दासरनी होती. पण लगभग ४० वर्षथी आ पत्रिकाए पोतानुं स्वरूप बदलवा मांड्युं अने थोडं थोडं करतां कलेवर घणुं ज वधी गयुं छे. आजे जे प्रतिष्ठानी आमंत्रण पत्रिका दोढ हाथ लांबी - अने एक हाथ पहोली न होय ते प्रतिष्ठा ज सामान्य हशे आम सामान्य जनसमाज मानी ले छे, बली आजनी प्रतिष्ठा-पत्रिकामा त्रण रंगो न पूराय त्यां सुधी ते उपर घणीनी पसंदगी ज उतरती नथी. पत्रिका संबन्धी आ परिवर्तनोनी अमो अनुमोदना करी शकता नथी, पत्रिकानुं कलेबर वधारवाथी के तेमा घणा रंगो पूरबाथी तेनुं महत्त्व वधतुं नथी, लखनारनी समज चतुराई अने विद्वत्तापूर्ण लेखन शैलीना समागमथी ज तेनी किम्मत बधे छे. असद्भूत विशेषणोनी Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ॥ ७४ ॥ 29 - हारमाला गोठवी नाखवाथी पत्रिकानी वास्तविकता चाली जाय छे अने समजु माणसोनी दृष्टिए ते केवल अर्थवाद-प्रशस्तिनुं रूप धारण | करे छे. पत्रिकामा लखनार तरीके सही करवानो पण रीवाज छे. कोइ स्थले नगरशेठ, तो कोइ स्थले संघनो आगेवान सही करे छे. पण मोटी प्रतिष्ठाओनी आमंत्रण पत्रिकाओमां सही करवाना पण चढावा बोलाय छे अने हजारो रुपियानी उपज थाय छे. घणा गामोमां प्रतिष्ठाना दिवसनी नोकारसीनो चढावो लेनार गृहस्थ आमंत्रण पत्रिकामा लखनाररूपे हस्ताक्षर करे छे, भले हस्ताक्षर गमे ते करे पण ते दश बार वर्षनो निशालियो तो न ज होवो जोइये. पत्रिका नीचे हस्ताक्षर करनार माणस प्रसिद्ध अने चढावो लेनारना घरनो अग्रेसर व्यक्ति होवो जोइये. लगभग चार दायका पूर्व पत्रिकाओ परिमित संख्यामां लखाती हती. पोताना गोलनां २५-५० गामोमां अने बहु तो ते उपरान्त आसपासनां २-४ गोलोना गामो सुधी पत्रिकाओ लखाती के जे १००-१५० थी भाग्ये ज अधिक होती. आजे ए मर्यादा रही नथी. घणां स्थले १००० अथवा तो २००० नी संख्यामा पत्रिकाओ छपाय अने मोकलाय छे. आ अतिप्रवृत्ति उपयोगी नथी, दूर दूर मोकलाती पत्रिकाओनो अर्थ एक विज्ञापनथी अधिक थतो होय एम अमो मानता नथी. (८) औषधि बांटनारी स्त्रियो । प्रतिष्ठामां औषधिओ बांटवा अने पुंखवा आदिनां कामो करवा माटे ४ अथवा ८ स्त्रियोनी प्रथमथी ज सगवड करी राखबी जोइये. निर्वाणकलिका पण ८ अथवा ४ स्त्रियोद्वारा पुंखवानुं विधान करे छे के . "सुवर्णादिदानपुरःसरमष्टौ चतस्रो वा नार्यो रक्तसूत्रेण स्पृशेयुः, शेषाश्च मंगलानि दधुः ।" अर्थात् सुवर्ण आदिनुं दान आपती ८ अथवा ४ स्त्रियो रक्तसूत्रनो स्पर्श करवा पूर्वक पुंखणा | A ल ॥ ७४ ।। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री GS ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ करे अने बीजी स्त्रियो मंगल गावे. आ स्त्रियोना वर्णनमां कलिका लखे छे के . "रूपयौवनलावण्यवत्यो रचितोदारवेषा अविधवाः" अर्थात् । ते स्त्रियो रूपलावण्यवती युवती अने सुन्दर वेषवाली 'अविधवा' होवी जोइये. पादलिप्ताचार्यना 'अविधवा' शब्दप्रयोगथी समजी शकाय छे के ते स्त्रियो 'विधवा' न होवी जोइये. 'सधवा' अथवा 'कुमारिका' होय तेनी हरकत नथी. श्रीचन्द्रसूरिजी ए विषयमां नीचे प्रमाणे वर्णन आपे छे. "तत्रैव मंगलाचारपूर्वकमविधवाभिश्चतुःप्रभृतिभिः प्रधानोज्वलनेपथ्याभरणाभिविशुद्धशीलाभिः सकंकणहस्ताभिर्नारीभिः पञ्चरत्न-कषाय-मांगल्यमृत्तिका-मूलिकाऽष्टवर्गसर्वोषध्यादीनां वर्तनं कारणीयं क्रमेण ।" "त्यां मंगलाचार पूर्वक श्रेष्ठ उज्वल वेषभूषावाली शुद्धशीलवंती अने हाथे कंकणवाली ४ आदि ‘अविधवा' स्त्रियोना हाथे पंचरत्न, कषायछाल, मंगलमाटी, मूलिका, अष्टवर्ग सर्वांषधि आदि अनुक्रमे वटावबां. ए सबन्धमां जिनप्रभसूरिजीए 'जीवित मातापिता सासूससरावाळी' ए विशेषण वधायुं छे. ज्यारे वर्धमानसूरिजीए 'सपुत्रा' ए विशेषण अधिक मूक्युं चे, पण बीजा प्रतिष्ठा कल्पकारोए श्रीचन्द्रसूरिनु ज अनुसरण कर्यु छे. आजकाल आ विषयमां लक्ष्य ओछु अपाय छे. बिंबप्रवेशना समयमा कराती पुंखवानी क्रिया प्राये चढावो बोलीने आदेश लेनार गृहस्थना घरनी एक ज स्त्री करे छे. बीजा प्रसंगे पण करातां पुखणां घणे भागे एक ज स्त्री द्वारा थाय छे जे योग्य नथी. पुंखणा ४ स्त्रियोए ज करवा जोइये, जीवित मातापिता सासूससरावाली होय अथवा नहिं पण पंचेन्द्रिय पूर्ण अने अखंडित अंगवाली सधवा अथवा कुमारिका तो होवी ज जोइये. Sale । ।। ७५ ॥ www.iainelibrary.org Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : || कल्याण कलिका. खं०२॥ ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ प्रतिष्ठानिमित्तक औषधि वाटवानु, पुंखणां करवानु, अंजन तैयार करवा, नैवेद्य रांधवानु, इत्यादि कार्यो आ स्त्रियो पासे कराववां | अने प्रतिष्ठा करावनारे कांचली, कापडं, प्रभावना आदि आपीने आ स्त्रियोनो सत्कार करवो. (९) स्नात्रकारो प्रतिष्ठाकल्पकारोए 'स्नात्रकारो' अथवा प्रतिष्ठाकार्यना सूत्रधारोनुं पोताना ग्रंथोमा वर्णन कर्यु छे. जेनो सार नीचे प्रमाणे छ : आचार्य पादलिप्तसूरिजीए १ शिल्पी, २ इन्द्र अने ३ आचार्य ए त्रणेने प्रतिष्ठाना सूत्रधार तरीके मानीने एमना लक्षणो जणान्यां छे. (१) शिल्पी - शिल्पीना वर्णनमा पादलिप्तसूरि कहे छे - 'ते त्रणमा पहेलो शिल्पी सर्वाङ्गसुन्दर, क्षमाशील, नम्र, सरल, सत्यभाषी, शौचसंपन्न, मदिरामांसादि अभक्ष्य खान पाननो त्यागी, कृतज्ञ, विनयी, शिल्पनी क्रियाओमां प्रवीण, शिल्पशास्त्रनो ज्ञाता, चतुर, धैर्यवान, निर्मलात्मा, शिल्पिसमाजमां अग्रेसर, मोहादि आन्तर ६ शत्रुओने जीतनार, स्थापत्यना कार्योमा सिद्धहस्त अने स्थितप्रज्ञ होवो जोइये. (२) इन्द्र - इन्द्रनी योग्यतानुं वर्णन पादलिप्तसूरिजीए कयुं छे के - “इन्द्र पण उत्तम जातिकुलवालो, युवावस्थावालो मनोहर शरीरधारी, कृतज्ञ, रुपलावण्यादिगुणोनो आधार, सर्वलोकप्रिय, सर्वशुभलक्षणसंपन्न, देवगुरुभक्त, धर्मश्रद्धालु, सर्वप्रकारे व्यसनमुक्त, सदाचारी, पंचअणुव्रतादि गुणधारक, गंभीरप्रकृतिनो श्वेतवस्त्रधारी, अंगे चन्दनादिना विलेपनवालो, मस्तके मालतीना पुष्पोनी रचनावालो, सुवर्णमय कंकणादिके भूषित, उरःस्थलमा सुन्दर हारे करी शोभित अने स्थापत्यकलानो ज्ञाता होवो जोइये." न Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादलिप्तसूरिजी कहे छ की शोभित, पंचाचारपालक I ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ YO || नव्य | प्रतिष्ठा सर्वतोभद्र अ पद्धतिः ॥ ।। ७७ ॥ सत्रा का शल (३) आचार्य - | प्रतिष्ठाकर्ता आचार्यना संबन्धमां पादलिप्तसूरिजी कहे छ के - 'प्रतिष्ठाचार्य आर्यदेशमा जन्मेल, हलुकर्मी, ब्रह्मचर्यादि गुणगणे करी शोभित, पंचाचारपालक, राजादिकनो अद्रोही, आगमाभ्यासी, | तत्त्वज्ञानी, भूमि तथा गृहवास्तुना लक्षणोनो ज्ञाता, दीक्षाविधिमां कुशल, सूत्रपातनादिना ज्ञानमां पारंगत, सर्वतोभद्र आदि मण्डलोनी रचना करनार, अतुलप्रभावी, अप्रमादी, प्रियभाषी, दीनदुःखीनी दया करनार, सरलस्वभावी अने सर्वगुणसंपन्न होवो जोईये.' उपरना निरूपणथी जणाय छे के पादलिप्ताचार्यना समय सुधी प्रतिष्ठाकार्यमां शिल्पी, इन्द्र अने आचार्यनी ज प्रधानता हती, पण ते पछीना समयमां शिल्पीनुं महत्त्व घटी गयुं अने इन्द्रनो अधिकार पण लगभग भूलाई गयो अने तेना स्थाने ४ स्नात्रकारो आगळ आव्या. श्रीचन्द्रसूरिजीए स्नात्रकारोना लक्षणो जणान्यां छे - "स्नपनकाराश्च समुद्राः, सकंकणाः, अक्षताङ्गाः, दक्षाः, अक्षतेन्द्रियाः, कृतकवचरक्षाः, अखंडितोज्ज्वलवेषाः, उपोषिताः, धर्मबहुमानिनः, कुलीनाश्चत्वारः करणीयाः" स्नपनकारो मुद्रिकाकंकणसहित, अक्षतशरीर, प्रवीण, अखण्डेन्द्रिय, मंत्रकवचथी रक्षित, अखण्ड अने उज्ज्वलवेषधारी, उपवासी, धर्मनुं बहुमान करनारा अने कुलवान एवा ४ करवा. वर्धमानसूरिजीए स्नात्रकारो माटे - "नीरोग, सौम्य, स्नात्रविधिना जाणकार," ए विशेषणो लख्यां छे. ___ गुणरत्नसूरि अने विशालराजशिष्य आ स्नात्रकारोने अंगे बीजी वातोमां तो एकमत छे, पण ब्रह्मचर्यनी बाबतमां जुदा पडे छे. स याला ।। ७७॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ।। ७८ ।। गुणरत्नसूरि स्नात्रकारोने "तदिनब्रह्मचारिणः" एटले 'ते दिवसे ब्रह्मचर्यपालनार' विशेषण आपे छे. ज्यारे विशालराजशिष्य "जघन्यतोऽपि ८ दिनब्रह्मचचारिणः" अर्थात् 'ओछामा ओछु आठ दिवस सुधी ब्रह्मचर्य राखनार' जणावे छे. ___गमे तेओनो गमे ते मत होय पण एटलुं तो निश्चित छे के प्रतिष्ठानी विधिमां काम करनारा स्नात्रकारो सदाचारी, सुशील, निर्लोभी, धर्मप्रेमी, पंचेन्द्रियपूर्ण, अक्षत-अंगोपांगवाला, अने उत्सवना समय दर्मियान तो ब्रह्मचर्य पालनारा होवा ज जोइये. स्नात्रकारोए पोतानी प्रामाणिकतामां संदेह उत्पन्न थाय एवी कोई पण प्रवृत्ति न करवी जोइये. नकरो निछरावल जे कंइ कोइने अपावq होय ते प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थना हाथे परभारु अपाववं, पण पोते आवी प्रवृत्तिओमां न पडg. (१०) अमारी घोषणा प्रतिष्ठा उत्सवना समय दर्मियान अमारी घोषणा अर्थात् 'हिंसानिषेध'नी उद्घोषणा कराववी जोइये. जो राजा जैन धर्मनो अनुयायी होय तो तेनी मारफत आखा देशमा 'अमारी' जाहेर कराववी. जो तेम न बनी शके तो त्या प्रतिष्ठा थवानी होय ते गाम वा नगरमां | ज तेम करावयु, कदापि उत्सवना सर्व दिवसोमां हिंसा न रोकी शकाय तो छेवटे प्रतिष्ठाना खास दिवसे तो राजा, राज्याधिकारी के | गामधणीने प्रार्थना करीने अमारीनी घोषणा कराववी ज जोइये. कोई पण उपाये देश, मंडल के नगरमा एक दिवसने माटे पण 'अमारी' नी घोषणा न करावी शकाय तो छेवटे स्थानिक जनसंघे तो आठ या दश दिवस उत्सव चाले त्यां सुधीने माटे पोताना समाजमां 'आरंभनिषेध' नी घोषणा कराववी ज जोइये कमठा कारवार बन्ध कराववाथी घणा मनुष्यो उत्सवना कार्योमां भाग लेशे अने साथे ज सांसारिक कार्यनिमित्तक हिंसाआरंभो ओछा थशे. ॥ ७८ ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ७९ ।। (११) प्रतिष्ठोपस्कर - संभार प्रतिष्ठाने अंगे आवश्यक सामग्रीसंभारना विषयमा प्रतिष्ठा पद्धतिओ एकमत नथी. निर्वाणकलिकानी प्रतिष्ठासामग्री घणी परिमित छे. पण ते पछीनी पद्धतिओमां क्रमे क्रमे सामग्रीमा वधारो थतो गयो छे अने ज्यारथी प्रतिष्ठाविधिमा कल्याणकोनी उजवणीनो प्रवेश थयो छे त्यारथी तो तेमां अनेकगुणी वृद्धि थइ गइ छे. आवी स्थितिमां सामग्रीनी सूचिमां शुं लेवं अने शुं छोडनुं ? ए एक विकट समस्या थड़ पड़ी छे. एथी आ पद्धतिमां अमोए जे विधानो स्वीकार्यां छे अने तेमां जे उपकरणोनो उपयोग जणाव्यो छे, ते उपकरणो अने पदार्थोंनी सूचि आपीने संतोष मानीशुं. उपकरण-पदार्थसूची वेह ४ नवअंगी । पाणी भरवाना मोटा माटलां २ पाणी भरवाना घडा ८। पुंखवा योग्य नाना गाडवा ८। नन्द्यावर्त्त योग्य गाडवा ४। धातुना स्नात्र योग्य कलशिया ८। १०८ नालनो कलश १। पखालनी कुंडी धातुनी २। कांसीनी थाली ४ झालर १ || जवारानां सरावलां ८। बीजां सरावलां ५०| कुंडां ८ | कुंडिओ ४ | माटीना कलशिया १०८ । आरती १। मंगलदीवो १ | अखण्ड दीपक योग्य फणस २| तांबापीतलनां मोटां कोडियां २ । जर्मनशिल्वर नानी वाटकियो १५ । कांसीना वाटका २। रूपानी वाटकी १ । रूपानी रकाबी ‘तासक' १। सोनानी सलाई १। सोनानी मुद्रिका 'वींटी' स्नात्रकार योग्य ४ | सोनानां कांकण स्नात्रकार योग्य ४ । सुवर्णपुष्प १०८ । रूप्य पुष्प १०८ । घंट १ घंटडी १। धूपधाणा २। छत्र १ । चामर २। केसर तोला ८। कपूर तोला ८। कस्तूरी वाल ३। गोरोचन बाल २। बरास तोला ५ | अगर तोला ५ | नगर तोला ५। कंकोल तोला ५। चंदनना मूठा २| लाल चन्दननो मूठो १ वालाकूची २ वासक्षेप धोलो तोला ५। वासक्षेप पीलो सेर १ || ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ।। ७९ ।। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ श ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ।। ॥ ८० ॥ व सोनानां वरख थोकडी २। रूपानां वरख थोकडी ४। रूपानां पुंखणां ३-धूसर मूसल रवाइयो । पंचरत्न पोटली ४० (मोती सोनुं रुपुं ताम्र प्रवाल)। आरीसो मोटो । कालो सुरमो तोला २ 'डली' । प्रियंगु तोला ५। श्वेत सर्षप पोटलियो बिंब प्रति ११ अरिठानी | मालाओ बिंब प्रति । जवनी मालाओ बिम्ब दीठ । समूलो डाम ४ मूलियां । मीढल कांकण । मरोडाफली । गेवासूत्र ‘पांच त्राक उपर वीटेलं' । नालियेर १५१ । खजूर सेर २। द्राख-किसमिस सेर २। बदाम गोला सेर १२ दशांग धूप सेर १॥ अगरबत्ती सेर १ किंदूप धूप सेर ८॥ कुंकुंम सेर । । तीर्थजल शीशी । गंगाजल शीशी ११ १०८ कूप-नदीजल धडो । गंगा नदीनी वेलू पडीकुं । ३६० क्रियाणानो पुडो १॥ सर्वोषधिचूर्ण पडीकुं । यक्षकर्दम तोला २। अष्टगंध तोला २पुष्पो 'जाइ, जुही, चमेली, मोगरो गुलाबआदिनां'। ग्रहदिक्पाल पूजन योग्य पुष्पो (लालकेणर, जाइ, कुमुद, जासूल, चंपो, सेवंती, जाइमोगरो, मालती, दमणो, मचकुन्द, बहुवर्ण,)।। बदाम शेर २। राती सोपारी गोटा १२५। काली सोपारी १५। नागरवेलनां पान २००। कषाय छाल पडीकुं १॥ मंगल मृत्तिका पडीकुं । सदौषधि चूर्ण पडीकुं । मूलिका चूर्ण पडीकुं । प्रथमाष्टवर्ग पडीकुं १॥ द्वितीयाष्टवर्ग पडीकुं । वस्त्रो-नीलुं हाथ १ रातुं हाथ ७ 'छोटो पन्नो' । रातुं हाथ ५ 'वारनो पन्नो' । धोलु हाथ ७। कालुं हाथ २। आस्मानी हाथ २। सोसनी हाथ १। उदारंगी हाथ १ फलो-दाडिम, केला, आंबा, नारंगी आदि । ग्रह दिग्पालपूजन-योग्य फलो- (सेलडी २, नारंगी २, जंबीरी २, बीजोरा ३, दाडिम ३। घृत मण ॥) दीपक, नैवेद्य आदि योग्य । मधु तोला २ अंजन योग्य । साकर शेर २। जवारिया वांस ४ सात छाबवाला । सूत्रधार योग्य वेष १-धोतियुं १, उत्तरासण १ । प्रतिष्ठा गुरु योग्य वेष ११ दशियावड कोरं वस्त्र १ हाथ १२ प्रतिमा योग्य । दशियावाड कोरं वस्त्र नंद्यावर्त योग्य हाथ १२ । दशियावड कोरं वस्त्र नंद्यावर्त लेखक योग्य । माइ साडी १ 'कुसुंभी वस्त्र हाथ १०। वस्त्र पीलुं हाथ | ७) अडद शेर ४॥ शणबीज शेर २। चणा शेर ४। मसूर शेर २। चौला शेर ४॥ वाल शेर २। जवार शेर ३॥ कुलथ शेर २। जव शेर | ॥८०॥ For Private & Personal use only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ॥ ८१ ॥ ५। गहुं शेर ५। मुंग शेर ४॥ मलमल मोटो पनो हाथ १० । जगन्नाथी हाथ १० हाथनो पनो । धोतियां ८ । उत्तरासण ८ । नंद्यावर्त योग्य पाटलो १ सेवननो। दिग्पालयोग्य पाटलो । नवग्रहयोग्य पाटलो १॥ अष्टमंगलयोग्य पाटलो ११ अखंड चोखा शेर १॥ 'अर्थो मण भात' । 'फोतरावाला चोखा सेर ४॥ तल सेर २। धोलीया पीला सरसव सेर ०॥) । चोखानी फूली सेर १। नैवेद्य 'घारी, लाडू, ठोर, घेवर, मोहनथालआदि' । नैवेद्य सराव ७ 'वाट, खीर, करंबो, खीचडी, कूर, सीधवडी (पींडली)' । सनालिकेर पांच सेरनो लाडु । पञ्चव्य-घी-दूध-दहि-गायनु गोबर-मूत्र-डाभ-पाणी । माला ५ जातनी ग्रहयोग्य-प्रवालनी, स्फटिकनी, केरवानी । अकलबेरनी, गोमेद, अथवा सिंदूरियास्फटिकनी'। १२ व्यवस्थापक मण्डल प्रतिष्ठाना कार्यों व्यवस्थितरूपे थया करे एटला माटे संघना बुद्धिशाली अने परिश्रमी पुरुषोनुं सत्ताप्राप्त व्यवस्थापक मंडल स्थापवू के जेना निरीक्षण नीचे सर्व कार्यो भिन्न भिन्न समितियो द्वारा थया करे. ___आ मण्डल, जुदा जुदा कामो माटे योग्य माणसोनी पसंदगी करीने तेमनी समितिओ योजी, कार्यो तेमने सुप्रत करी पोतानो - भार ओछो करे. कया काम माटे केटला माणसोनी समिति होवी जोइये एनी अमे एक आनुमानिक तालिका नीचे आपीये छीये, देश-काल अने कार्यनो विचार करीने मंडल आ संख्यामां वधारो घटाडो करी शके छे. १ भोजन प्रबन्ध ८ २ जलप्रबन्ध २ ३ नगर सफाई २ ४ छाया प्रबन्ध २ ५ वरघोडा व्यवस्था ४ ६ पूजा स्नात्रकार प्रबन्ध ४ ॥ ८१ ।। For Private & Personal use only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ७ मंगलधर प्रबन्ध २ ८ सामग्री प्रबन्ध ४ ९ संघ स्वागत ५ १० मोदीखा- २ ११ घासचारो २ १२ प्रतिष्ठामण्डप २ १३ नगर शणगार २ १४ यान-वाहन २ १५ चोकी पहेरो २ १६ दान, त्याग-इनाम, ५ वा ८ प्रतिष्ठा प्रसंगे करवानां उपर्युक्त कार्योनी व्यवस्था माटे जणावेल संख्याना माणसोनी समितिओ नीमीने भिन्न भिन्न कार्यो भिन्न | भिन्न समितिओनी जवाबदारी तले मूकवाथी कार्यो घणीज सरलताथी थशे, अने कोइने विशेष श्रम न पडतां प्रतिष्ठामहोत्सव बहुज यशस्वीपणे पार पडशे. ॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ॥ ८२ ॥ |॥८२ ॥ " Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । प्रथमाह्निक कृत्यविधि ॥ ॥ ८३ ।। २ उत्सवक्रिया प्रथमाहूनिकम् । मंडपप्रतिष्ठा-जलयात्रा-कुंभस्थापन विधिओ आह्निक-बीजकम् - प्रविश्य मण्डपं मन्त्र-भूमिशोधनपूर्वकम् । पीठपूजनमाधाया-ऽभिमन्त्र्याऽथ सुखादिकाम् ॥२७॥ बालकेभ्यो वितीर्यादौ, ततो भूतबलिं क्षिपेत् । सिंहासने जिनं प्रत्नं, पीठे नव्यजिनावलिम् ॥२८॥ न्यस्य कुर्याजिनस्नात्रं, चैत्यानां वन्दनं तथा । जलयात्रार्थमृत्कृम्भ-चतुष्कस्याधिवासनम् ॥२९॥ घटोत्पाटनकारिण्यः, सधवा वा कुमारिकाः । रक्षासूत्रेण संरक्ष्य, ततो वाद्यपुरस्सरम् ॥३०॥ जलाशयतटे गत्वा, पूर्वं दिक्षु बलिं क्षिपेत् । क्षेत्रस्य देवतां शान्ति-देवतां जलदेवताम् ॥३१॥ अनुकूलयितुं कुर्यात्, कायोत्सर्गाश्च तत्स्तुतीः । ततो जलाशयात् पूत-घटेषु जलमाहरेत् ॥३२॥ तथैव समहं तूर्य-नादै तदिगन्तरम् । आगत्य जिनगेहान्तर्जलकुम्भान्निवेशयेत् ॥३३॥ कोणेषु मण्डपस्याऽथ, चतम्रो वरवेदिकाः । साच्छादना विषमाझ्यो, न्यस्तव्या विधिवेदिना ॥३४॥ प्रतिवेदि चतुर्दिक्षु, घटकानां चतुष्ट्यम् । न्यस्य तदुपरि स्थाप्या, यववारशरावकाः ॥३५॥ अथवा - विध्यानीतेन नीरेण, घटमापूर्य मन्त्रवित् । स्थापयेजिनदक्षाङ्गे, दीपं तत्पार्श्वतो न्यसेत् ॥३६॥ शरावकेषु वंशानां, पात्रेषु च यवारकाः । वाप्या विधानतः कार्य-मित्यादि प्रथमेऽहनि ॥३७॥ ।। ८३ ।। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ८४ ।। मंत्रो द्वारा भूमिशुद्धि करवा पूर्वक मंडपमा प्रवेश करी पीठपूजन करीने सुखडी अभिमंत्रित करी बालकोने वहेंचवी, ते पछी भूतबलिक्षेप करवो, ते पछी मंडपमां सिंहासन उपर विधि माटे प्राचीन जिनप्रतिमा स्थापन करवी अने पीठ उपर प्रतिष्ठाप्य जिनबिम्बो स्थापवां, ते पछी स्नात्र करीने त्यां चैत्यवंदन करवुं, अने जलयात्रा माटे तैयार राखेल ४ माटीना मजबूत कलशोनुं प्रतिष्ठाचार्ये वासादि बडे अधिवासन करवुं. कलश उपाडनारी सधवा स्त्रियो अथवा कुमारिकाओना हाथे गेवासूत्ररूप रक्षासूत्र बंधावीने वाजिंत्रनाद पूर्वक कूप - नद्यादि जलाशय पासे जनुं, त्यां प्रथम दिक्पालोने बलिक्षेप करवो, ते पछी क्षेत्रदेवता, शांतिदेवता अने जलदेवताओने अनुकूल करवा निमित्ते तेमना कायोत्सर्ग करवा अने स्तुतिओ कहेवी. ते पछी जलाशयमांथी पवित्र कलशोमां छाणीने जल भरवु अने पाछा ते ज रीते धामधूमथी वाजिंत्रोना नादे दिशाओने गजवता नगरमा आवी जिनचैत्यने प्रदक्षिणा करी जलकलशो जिनचैत्यमां निरुपद्रव स्थाने स्थापवा. पछी प्रतिष्ठामण्डपना ४ खुणाओमां ४ उत्तम वेदिकाओ स्थापवी. वेदिकाओ ७ अथवा ९ एम विषम अंकनी करवी अने विधिज्ञाताए तेओ उपर वस्त्राच्छादन करवुं. प्रत्येक वेदिनी चारे दिशाओमां चार चार न्हाना घडाओ स्थापवा अने घडाओ उपर जवाराना पात्रो मूकवां. अथवा तो ( वर्तमान समयमा प्रचलित रीति प्रमाणे ) विधिथी लावेल जलथी घडो भरीने मंत्र जाणनार विधिकार जिनप्रतिमाना जमणा अंगनी दिशामां विधिपूर्वक कुंभस्थापना करे अने तेनी पासे दीवो स्थापे. माटीना शरावोमां अने वंश पात्रोमां विधिथी व्रीहि यवना जवारा बाववा; इत्यादि उत्सवना प्रथम दिवसे कार्यों करवां. प्रथमाह्निक कृत्यविधि - मंडपप्रवेश – प्रतिष्ठोत्सवना प्रथम दिवसे प्रतिष्ठाचार्ये स्नात्रकारो साथे मंडपना मुख्यद्वारथी मंडपमां प्रवेश करवो. स्नात्रकारे रूप्य ॥ प्रथमाहिक कृत्य विधि ॥ ॥। ८४ । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ ॥ मंडप प्रवेश ॥ ।। ८५ ॥ कलशमां सुवर्णजल लेइ "ॐ जीरावली पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा" आ मंत्र वडे ७ वार मंत्री मंडपमां नीचे उपर बाजुमां बधे छांटवू, अने प्रतिष्ठा गुरुए - ॐ भूरसि भूतधात्रि ! सर्वभूतहिते देवि ! भूमिशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ! आ मंत्र बोलता मंडपमा बधे वासक्षेप करी भूमिशुद्धि करवी, स्नात्रकारोए चंदनादि छांटवू, पुष्पो वेरवां, धूप उखेववो. देववन्दनादि निमित्ते ज्यां पूर्व प्रतिष्ठित पंचतीर्थी आदि स्थापवी होय त्यां सिंहासनादिके स्थापन करी ते उपर "ॐ चतुर्मुखदिव्यसिंहासनाय नमः" ए मंत्रथी गुरुए वासक्षेप करवो. । पछी ज्यां नवीन प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाओ स्थापवानी छे ते वेदी पासे जइ मुख्य प्रतिमाओना आसनस्थानो उपर सुगन्धी पदार्थो बडे स्वस्तिको अथवा समवसरणना त्रण गढो आलेखवा अने “ॐ अर्हत्पीठाय नमः' मंत्र वडे प्रतिष्ठागुरुए वासक्षेप करवो. वेदीपूजन थया पछी शुद्धपणे तैयार करावेल अने घंटाकर्णना मंत्रथी २१ अथवा ७ वार अभिमंत्रित करेली गोलनी ५ सेर सुखडी बालकोने बहेंचवी. पूर्वोक्त सर्व विधि थया पछी शुभ समयमा नवीन प्रतिमाओ मंडपमा लाववी अने वेदी उपर प्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख अने पछी बधी दिशाओमां पधराववी. प्रतिमाओ नीचे डावा भागे समूलो डाम अने थोडी थोडी नदीनी शुद्ध वालुका मूकवी, जे प्रतिमा कोइ स्थले स्थापीने पछी अंजनादि विधान करवू होय तेनी नीचे पंचरत्न अक्षतादि मूकवा. , पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमा तेनी आगल स्थापेल सिंहासन उपर विराजमान करवी.... प्रतिमा मंडपमा स्थापन कर्या पछी स्नात्र भणावी अने मंगलार्थ चैत्यवंदन अने शान्त्यर्थ देवताना कायोत्सर्गो करवा. चैत्यवन्दना-विधि - इर्यावही पडिकमी क्षमाश्रमणपूर्वक इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं ? कही - 1 १. ॐ ह्रीं श्रीं घंटाकर्ण नमोस्तु ते ठः ठः ठः स्वाहा । ॥८५ ।। For Private & Personal use only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ ॥ मंडप प्रवेश ॥ बाल ।। ८६ ॥ ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्व चिन्तामणीयते० इत्यादि, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइआणं०, अन्नत्थ०, १ नवकारनो का०, I पारी “नमोऽर्हत्" कही - अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियः-श्रियं य० । ए स्तुति कहेवी, पछी - लोगस्स०, सब्बलोए०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नवकार, पारी- ओमिति मन्ता यच्छासनस्य०, पुक्खरवरदीवड्ढे०, सुअस्स०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नवकार, पारी - नवतत्त्व युता त्रिपदी०, सिद्धाणंबुद्धाणं०, श्री शान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि का० बंदणवत्तियाए, लोगस्स १ सागरवरगंभीरा पर्यन्त, पारी-नमोऽर्हत् - श्रीशान्तिः श्रुतशान्ति०, सुअदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, नमोऽर्हत्०, वद वदति वाग्वादिनि०, संति देवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नवकार, नमोऽर्हत्०, श्री चतुर्विध संघस्य० इत्यादि, शासनदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्०, उपसर्गवलयविलयन० इत्यादि. श्रीभवनदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्., ज्ञानादिगुणयुतानां० इत्यादि. खित्तदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्०, यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य० इत्यादि. अंबादेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽहत्०, अम्बा बालाङ्किताङ्कासौ० इत्यादि. अच्छुत्तादेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्., चतुर्भुजा तडिद्वर्णा० इत्यादि. समस्तवेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मदिट्ठिसमाहिगराणं करेमि का०, १ नव०, नमोऽर्हत्०, संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे० इत्यादि. १ नव० गणी, बेसी, नमुत्थुणं, जावंति०, खमा०, जावंत केवि०, नमोऽर्हत्., ओमिति नमो भगवओ०, जयवीयराय. कही विधि करतां अविधि आशातना हुई० मिच्छामि दुक्कडं । पछी जलयात्रा काढवी. ॥ ८६ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. सं० २ ॥ ।। ८७ ।। (१) जलयात्राविधि जलयात्रायोग्य उपकरण पंचतीर्थी प्रतिमा १। सिद्धचक्र मंडल १। बाजोठ वा सिंहासन १| पाटलो १ स्नानयोग्य कलशिया ४। वालाकुंची १। अंगलूंछणा २। हाथलूंछणुं १ | केसर चंदननी वाटकी २ धोतियां - अबोटियां ४ । उत्तरासणियां ४ | कपूर डली १। फूल छाल वा पुडो १। अगरबत्ती पुडी १ । धुपपूडी १ । गेवासूत्र वा रक्तसूत्र कोयो १ | नालिएर १ ४। फल ५ । नैवेद्य सेर १। चोखा सेर १। रकेबी २। थाली २। काचनुं फाणस १| धूपधाणु १| दर्पण १। पंखो - वींजणो १| आरती १ | मंगलदीवो १ | घंटडी १| जवारा बहेडा ४ अथवा मुख उपर नालिएर मूकी लाल पीलां बस्त्रोवडे ढांकेल ४ गागर वा 'बेडिया (घडा)' । कलश उपाडनारी ४ स्त्रियो । फूलमाला ४। बलिबाकलानी थाली १। थाली वेलण १-१ मींडल - भरडासींगींयुक्त गेवासूत्रना दोरा ४ | ग्रहनो पाटलो १। घीलोटी १। रु पुंभो १। चन्द्रवो थुठियुं तोरण १ - १ । स्नात्रयोग्य पंचामृतकलश १। जलकलश १ प्रक्षालकुंडी १। स्नात्रिता ४। वासक्षेप पुडी १ | बदाम २१। पान २१। सोपारी २१ । पैसा छूटा २५ । वखना लाल बटका २ दोढ २ वतनां । नीला बटका २ - दोढ २ वतना । बटको १, हाथ १। । पीलो बटको १, हाथ १। । गलणुं ११ दोरी लोटो वा सूत्रनुं सिंचणियुं १ । दिक्पालनो पाटलो १ । छत्र मोघडंबर १। चामर २| कंकुनी वाटकी १| पंचशब्द वाजिंत्र । ध्वजा वावटा । रथ वा पालखी । जाजम वा शेतरंजी । आवश्यक सामग्रीनी तैयारी करी अनेक वाजिंत्रोना शब्दोथी दिशाओने गजवतो, छत्र चामर निशानडंका आदिथी शोभतो वरघोडो लइने चतुर्विध संघ सहित पवित्र जलाशय उपर जनुं, त्यां पूर्वप्रतिष्ठित श्रीशांतिनाथनी अथवा श्रीपार्श्वनाथनी अने तना अभावे ग पंचतीर्थी प्रतिमा अने सिद्धचक्रमंडलने जलाशयने कांठे शुद्धभूमिकामां बाजोठ ढाली ते उपर अथवा तो सिंहासन उपर स्थापन करी जन्माभिषेक १. कलशो उपर मूकवाने जवारानो सरावलो तैयार न होय तो नालिएर ८ लेवा । ॥ जलयात्रा विधि ॥ ।। ८७ ।। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण || जलयात्रा कलिका. - विधि ॥ खं० २॥ ॥ ८८ ॥ कलश भणवापूर्वक स्नात्रपूजा भणाववी. स्नात्र करतां बनी शके तो इन्द्रमाला आदिनो चढावो करी चढावो लेनारना हाथे वास-पुष्पधूप-नैवेद्य वडे जिनपूजा कराववी, ते पछी प्रतिमा आगल ग्रहनो पाटलो मूकीने - ॐ नमः सूर्याय स्वाहा, ॐ नमः सोमाय स्वाहा, ॐ नमो मंगलाय स्वाहा, ॐ नमो बुधाय स्वाहा, ॐ नमो बृहस्पतये स्वाहा, ॐ नमः शुक्राय स्वाहा, ॐ नमः शनैश्वराय स्वाहा, ॐ नमो राहवे स्वाहा, ॐ नमः केतवे स्वाहा, ___ आ प्रमाणे प्रत्येक ग्रहनो नाम-मंत्र बोली ते ते ग्रहना स्थाने चन्दन-पुष्पादि द्रव्यो चढाववां. एज रीते दिक्पालोना पाटला उपर - ॐ नम इन्द्राय स्वाहा, ॐ नमोऽग्नये स्वाहा, ॐ नमो यमाय स्वाहा, ॐ नमो निर्ऋतये स्वाहा, ॐ नमो वरुणाय स्वाहा, ॐ नमो वायवे स्वाहा, ॐ नमः कुबेराय स्वाहा, ॐ नमः ईशानाय स्वाहा, ॐ नमो नागाय स्वाहा, ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा. आ प्रमाणे दिक्पालोना नाम-मंत्रो बोली, ते ते पदविभाग उपर द्रव्यो चढावबां अने पाटलाओ उपर अनुक्रमे लाल अने पीत वस्त्र ओढाडवां. ग्रहो दिक्पालोने पूजीने सिद्धचक्रना मंडल उपर - ॐ ज्ञानाय नमः, ॐ दर्शनाय नमः, ॐ चारित्राय नमः । आम बोली ते ते पदोनुं केसर चन्दन वडे पूजन करवू, पछी पूर्वादि दिशाओमां दिशापालोना आह्वान पूर्वक बलिबाकुल उछालीने आरती मार्गलिक दीपक उतारवां. पछी चैत्यवंदन करी, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइयाणं, बंद०, अन्नत्थ०, १ नवकारनो का०, पारी नमोऽर्हत्, स्तुतिः - * | Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ 10 ॥ जलयात्रा विधि ॥ ॥ ८९ ।। अहँस्तनोतु स श्रेयः श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसोच्यते ॥१॥ लोगस्स०, अरिहंत चे०, बंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नव० का०, स्तुतिः - ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंहिश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवरदी०, सुअस्स०, बंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नव०, का०, स्तुतिः - नवतत्त्वयुता त्रिपदीश्रिता, रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धा०, श्रीशान्तिनाथआराधनार्थं करेमि काउसग्गं०, वंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ लोगस्स सागरवर गंभीरा सुधीनो काउसग्ग, नमोऽर्हत्०, स्तुतिः - श्रीशान्तिः श्रुतशान्ति-प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥४॥ श्री द्वादशांगी आराधना०, बंदण व०, अन्नत्थ०, नमोऽर्हत्०, स्तुतिः - सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपांगा सदा स्फुरदुपांगा । भवतादनुपहतमहा-तमोपहा द्वादशांगी वः ॥५॥ संतिदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ०, १नवकार०, नमोऽहत्०, स्तुतिः - श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयात्, श्रीमती शान्तिदेवता ॥६॥ सासणदेवयाए करेमि काउसग्गं । अन्नत्थ०, १ नव० का०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः - या पाती शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयाच्चासनदेवता ॥७॥ खित्तदेवयाए करेमि काउसग्गं । अन्नत्थ०, नव०, का०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः - ॥८९ ॥ Jan Education Internations For Private & Pers Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ९० ।। यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्र देवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ||८|| अच्छुत्ताए करेमि काउसग्गं । अन्नत्थ०, १ नव०, का०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्याच्छुप्ता तुरगवाहना ॥९॥ समस्तवेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मद्दिठ्ठिसमाहिगराणं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ०, १ नवकारनो का०, नमोऽर्हत्०, स्तुति:संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया - वृत्यादि कृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ||१०|| जलदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ०, नव० १, नमोऽर्हत्, स्तुतिः मकरासनमासीनः, कुलिशांकुशचक्रपाशपाणिचयः । आश्यामाशापालो, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः || ११|| ए पछी - - करोतु शान्तिं जलदेवताऽसौ मम प्रतिष्ठाविधिमाचरिष्यतः । आदास्यतो वा मम वारि तत्कृते प्रसन्नचित्ता प्रदिशंत्वनुज्ञा ||१२|| प्रकट १ नवकार कही, बेसी, नमुत्थुणं, जावंति चे०, खमासमण, जावंत केवि साहू, नमोऽर्हत्, स्तवन नीचेनुं ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ- धम्मतित्थप्प सप्पणवं नमो तह भगवईइ, सुयदेवयाइ सुहयाए । सिवसंति देवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ ||१|| - ॥ जलयात्रा विधि ॥ ।। ९० ।। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ९१ ।। AHA 9 इंदाऽगणिजमनेरइय-वरूणवाउकुबेरईसाणा । बंभो नागुत्ति दस-हमवि य सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोमयमवरूण वेसमण-वासवाणं तहेब पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छऊ, जिणाइ नवकारओ धणियं ॥५॥ स्थापन जयवीयराय पूरा कहेबा, पछी विधिकार कलशोना कंठे गेवासूत्र बांधे, गुरु कलशो उपर वासक्षेप करे, केसर चन्दनना छांटा नांखे, विधि ॥ प्रतिष्ठाविधिकार श्रावको ते कलशोने जल पासे स्थापन करी पुष्प नालियेर, फल ४, जलमां नाखे, पछी - क्षीरोदधे ! स्वयंभूश्च, सरः पद्ममहाह्रद ! । शीते ! शीतोदके ! कुण्ड !, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥१॥ गंगे ! च यमुने चैव, गोदावरि ! सरस्वति !। कावेरि ! नर्मदे ! सिन्धो !, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥ आ बे श्लोको बोलीने वस्त्रे गली ते जलबडे ४ कलशो संपूर्ण भरवा, जल पासे लाडवा आदि नैवेद्य मूकी धवल मंगल देवरावां, वाजिंत्रोना नादपूर्वक पवित्र शरीर तथा वस्त्रबाली ४ कुलीन स्त्रियोने ते कलशो उपडावी, वस्त्र तंबोल आदिथी संघनी भक्ति करे, महोत्सवपूर्वक देहरासरे आवी देहराने ३ प्रदक्षिणा देइ जलकलशो तथा जिनबिंब गभारा आदि पवित्र स्थाने सुरक्षित स्थापन करे, धवलमंगल गीत गवरावे, तथा वाजिंत्रो वगडावे. इति जलयात्रा विधिः ॥ (१) अथ कुंभस्थापना विधि ॥ आवश्यक सामग्री - कुंभ स्थापना माटे नीचे लखेल सामग्री प्रथम तैयार करवी, सुन्दर कोरो धोलेल कुंभ १, कुंभमा जल रेडवा माटे जराक म्होटो बीजो कोरो कुंभ १, अबोट जलनो हांडो अथवा घडो, जलयात्राविधिधी लावेल जल, गंगाजल, कंकुनी वाटकी | १, केसर चंदननी बाटकी १, अघाडानी अथवा सरियानी लेखण १ कोरी, जब अने भात, अथवा जब अने जुवार सेर ११, पंचरतननी || Jan Education International For Private Personal use only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. || खं०२॥ ।। कुंभस्थापन विधि ॥ पोटली, रूपानाणु १, पंचपल्लव पैकीनां अथवा नागरखेलनां पान ४, नालियेर १, नीलुं वस्त्र चोरस हाथ ११, मींडल-मरोडाफली बांधेल गेवासूत्रनु कंकण १, रुपेरी वर्क पाना ३, फूलमाला १, वासक्षेप पुडी १, अक्षत रकेबी १, फल १, नैवेद्य सेर ११), आरती दीवो | तैयार करेल १-११ उपर्युक्त सामान १ कुंभ स्थापनानो छे. जो वे स्थानके २ कुंभ स्थापवाना होय तो सामान आथी वमणो तैयार करवो जोईए. 2 विधि - उत्सवना प्रथम दिवसे वा ५-७ दिवस पूर्वे अने छेवटे मुहूर्तना दिवसे पण कुंभचक्र अने चन्द्रबलवालो शुभ दिवस जोईने कुंभस्थापना करवी. प्रतिष्ठामां कुंभस्थापना बे स्थले करवानी होय छे. १-ज्यां बिंबनी स्थापना करवानी होय त्यां बिंबना जमणा हाथनी तरफ, अने | २-जे स्थानके मंडल आदिमा स्थापनीय बिम्ब उत्सव दरमियान स्थापित होय त्यां बिंबना जमणा हाथनी तरफना भूमि भागमा. ___स्थापनीय कुंभ काला दाग विनानो, सुन्दर आकारबालो पाको होवो जोइए. बने त्यां सुधी तेने धोलीने उपर अष्टमंगल आदि मांगलिक चित्रो चीतरावां, जे स्थानके कुंभ स्थापवो होय त्यां सधवा स्त्रीना हाथे प्रथम कंकुनो स्वस्तिक करावी ते उपर जब अने छालिनो अथवा जब अने जुवार सेर ११ नो स्वस्तिक कराववो, प्रथम कुंभने धोइ धूपीने तेमां केसरचंदननो स्वस्तिक करवो अने फरतो चारे तरफ -"ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा." आ मंत्र केसर-चन्दन बडे आघाडानी लेखणथी लखवो. पछी पंचरत्ननी पोटली कुंभमां मूकवी, रूपानाणुं पण ए ज वखते कुंभमां नाखी देवू. ए पछी जलयात्रा विधिथी लावेल जल अने गंगाजल मेलवेल अबोट जलनी अखंड धाराए करी सधवा स्त्रीना हाथे ते कुंभ भराववो, अथवा तो कुंभ सधवाना हाथमां आपीने अखंड जलधाराथी भरवो. कुंभ भराया पछी तेना मुखे चारे दिशाओमा १-१ पान ऊंची शिखाए ॥ ९२ ॥ Jain Education Internalla Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अखण्ड दीपक स्थापना ॥ मूकबु, बच्चे श्रीफल मूकीने उपर सोभाग्य मंत्रे अभिमंत्रित मीढल-मरोडा फलीयुक्त कंकण बांधवू, कण्ठे फूलमाला पहेराबवी, वस्त्र उपर | ॥ कल्याण केसर-चन्दन लगाडी रूपेरी वर्कना पानां छापी माथा उपर ईंटोणी मूकावी ते कुंभ ते सधवा स्त्रीने उपडाववो, अने भगवानने त्रण प्रदशिणा कलिका. | अपावी ते कुंभ पूर्वे करेल स्वस्तिक उपर “ॐ ह्रीं ठः ठः स्वाहा" ए मंत्र ७ वार गणीने श्वासकुंभक 'स्थिर' करी स्थापन करावबो, खं० २ ॥ कुंभ स्थाप्या पछी गुरुनो योग होय तो गुरुना हाथे ते उपर वासक्षेप करावबो, गुरुना अभावे विधिकार श्रावके बासक्षेप करवो, पछी कुंभनी आगल पाटलो ढाली सधवा स्त्रीना हाथे अक्षतनी गहुँली करावबी, उपर फल मूकाव, अने नैवेद्य ढोबराबवू, जवारा वावेल seal होय तो तेमांथी ४ सरावला कुंभनी चारे बाजु मूकावबां, जवारा बाबेल न होय तो पाछलथी ववरावीने पासे मूकावबा. कुंभनी आगल सधवा स्त्रीना हाथे प्रतिदिन गहुंली करावबी, धवलमंगल गीत गवरावबां, कुंभनी पासे हिंसक जीव-मार्जार आदिने जवा देवा नहिं, रजस्वलास्त्रीनी अथवा कोइ पण अपवित्र मनुष्यनी दृष्टि पड़वा देवी नहि. अखण्ड दीपकस्थापना - उपकरणो - फाणस म्होटु १, कोडियुं म्होटुं १, सत्तावीस तारनी दीवेट १, पंचरत्ननी पोटली १, रूपानाणुं १, त्रांबानाj १, मीढल मरोडाफलीबालू कंकण १, गाय, घृत सेर १, दीवासलीनी पेटी ॥ विधि - कुंभस्थापननो सामान तैयार करती वखते ज उपरनो सामान पण तैयार करीने साथे राखबो, अने कुंभस्थापन पछी तरत ज फाणसने मंत्रित कंकण बांधी कोडियामां पंचरत्ननी पोटली, रूपानाणुं अने त्रांबानाणुं मूकवां. ते पछी सधवा सीना हाथे ते | कोडियामां दीवेट मूकावी गायतुं घी पूराव, अने दीपक चेतावबो. दीपक चेतावती बखते - ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनदृष्टिसंपर्कात् । तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः ।।१।। ॥ १३ ॥ Jan Education Intematon For Private Personal use only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ॥ नवांग ॥ कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ वेदीरचना अने यवदारक वपन ॥ श आ श्लोक ३ बार बोलबो-ते पछी दीपक सहित सधवा स्त्री जिनप्रतिमाने त्रण प्रदक्षिणा दइने कुंभनी जोडे पूर्व करेल कंकु अथवा चंदन-केसरना स्वस्तिक उपर फाणसनी अन्दर दीपक स्थापन करे अने ते पछी कुंभ अने दीपकनी आगळ आरती मंगल दीवो करे. (२) कुंभ स्थापनविधि प्राचीनआजकाल आपणामां प्रतिष्ठा पूजा आदिना प्रसंगोमां विधिकारोमां कुंभस्थापननी जे विधि प्रचलित छे, ते घणी अर्वाचीन छे. एटलं ज नहिं पण घणा मतभेदो पण तेमा जोवामां आवे छे, अमो आ स्थले 'शान्तिपर्वविधि' मां लखेल एक जुनामा जुनी विधि भ आलेखीए छीए. आशा छे के प्राचीन वस्तुना श्रद्धालु क्रियाकारको आनो उपयोग करशे. चन्द्रबलादियुक्त शुभवेलामां जेनां माता-पिता, सासू-ससरो अने भर्तार जीवित होय एवी निःशल्य निर्दोष साधर्मिक स्त्रीने पोताना घरे तेडी तेनो तांबूल आदिथी यथाशक्ति उपचार करीने शुभ अने साव नवो पाका माटीनो घडो लइ चावल आदिना चूर्णवडे धोली शुभ स्थानथी लावेल जलथी भरवो. अंदर सोपारी अने सुवर्ण नाखी कंठे सुगंधी पुष्पमाला पहेरावी, मुखे ४ नागरवेलानां पान चारे दिशामां स्थापी, कलशनुं मुख ढांकी ते स्त्रीने उपडाववो, कलश उपर 'चन्द्रवो, रखावबो, पछी पंचशब्द वाजिंत्रो वागतां साथे शुभ स्त्रिओ द्वारा गीत गवडावतां बच्चे बच्चे शंख, मृदंग, ढोल, आदि वगाडनाराओने दान आपती सुन्दर वेशे शोभती ते कलश उपाडनारी स्त्री धामधूम पूर्वक देवालयना बाह्य द्वार पासे आवे, त्यां द्वारनी भीते चन्दन केसरना हाथा दइने विधि पूर्वक देवालयमा प्रवेश करे अने गहुली उपर माची आदि राखीने ते उपर कलशनी स्थापना करे. कलशनी स्थापना थई एटले मुहूर्त सधायु एम समजवू.' नवांग वेदीरचना अने यववारक वपन । 1 १. आ कुंभस्थापन विधि श्रीजिनप्रभसूरिजीए "शान्तिपर्वविधि' मां लखेल छे. 000000 । ॥ १४ ॥ For Private & Personal use only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ९९ ।। तोला ५। धूपधाणुं १ | दीपक फाणस १। घृतवाडी १ जलपात्र १। कलशियो । सदशवस्त्र १, आच्छादन योग्य सफेद । श्रीफल १ । नंद्यावर्त आलेखन विधि – सेवन अथवा बीजा शुभ काष्टना १ गज समचोरस पाटला ने कर्पूर - मिश्रित चंदनरसनो ओक पछी अक ७ बार लेप करी सुकाई गया पछी तेना मध्यभागथी सूत्र भमावीने अथवा तो त्रांबाना परकार वडे ८ वृत्तो ( वलयो) पाडवां. मध्यगत प्रथम वलयमां - मध्यभागमां कर्पूर- कस्तुरी - गोरोचन मिश्रित केसरना रस वडे सोनानी पिंछी या सोनानी लेखणथी अथवा तो जाईनी लेखणथी ९, खूणावालो प्रदक्षिणावर्त नंद्यावर्त आलेखवो, तेना मध्यमां प्रतिष्ठाप्य जिनप्रतिमा चिन्तववी, जिननी जमणी तरफ शक्रेन्द्र तथा श्रुतदेवता अने डाबी तरफ ईशानेन्द्र तथा शान्तिदेवतानी स्थापना करवी अने मध्यभागमां “ॐ नमोऽर्हद्भ्यः " लखबुं. १२ - बीजा वलयमां पूर्वादि दिशाओमां ८ कोष्ठको पाडी तेओमां अनुक्रमे १ ॐ नमः सिद्धेभ्यः । २ ॐ नमः आचार्येभ्यः । ३ ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः । ४ ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः । ५ ॐ नमो ज्ञानेभ्यः । ६ ॐ नमो दर्शनेभ्यः । ७ ॐ नमश्चारित्रेभ्यः । ८ ॐ नमः शुचिविद्यायै । ए आठ पदो पैकी सिद्धादि ४ दिशाओमां अने ज्ञानादि ४ विदिशाओमां लखवां. - - ३ - त्रीजा वलयमां – पूर्वादि आठ दिशाओ पैकीनी प्रत्येक दिशामा ३-३ कोष्ठको पाडी एकन्दर २४ घरो करी प्रत्येक घरमा जिनमातानुं चतुर्थ्यन्त स्वाहान्त नाम प्राकृत भाषामा लखबुं. १ ॐ मरुदेवीए स्वाहा, २ ॐ विजयाए स्वाहा, ३ ॐ सेणाए स्वाहा, ४ ॐ सिद्धत्थाए स्वाहा, ५ ॐ मंगलाए स्वाहा, ६ ॐ सुसीमाए स्वाहा, ७ ॐ पुहवीए स्वाहा, ८ ॐ लक्खणाए स्वाहा, ९ ॐ रामाए स्वाहा, १० ॐ नंदाए ॥ द्वितीया ह्निके नंद्यावर्तादिपूजनविधि ॥ ।। ९९ ।। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ॥ द्वितीया ॥ कल्याण-1 कलिका. खं० २॥ हिके नंद्यावर्तादिपूजन विधि ॥ १० ॥ स्वाहा, ११ ॐ विण्हूए स्वाहा, १२ ॐ जयाए स्वाहा, १३ ॐ सामाए स्वाहा, १४ ॐ सुजसाए स्वाहा, १५ ॐ सुव्वयाए स्वाहा, १६ ॐ अचिराए स्वाहा, १७ ॐ सिरीए स्वाहा, १८ ॐ देवीए स्वाहा, १९ ॐ पभावईए स्वाहा, २० ॐ पउमावईए स्वाहा, २१ ॐ वप्पाए स्वाहा, २२ ॐ सिवाए स्वाहा, २३ ॐ वामाए स्वाहा, २४ ॐ तिसलाए स्वाहा । ४ – जिनमातृवलय उपरना चोथा वलयमां - पूर्वादि आठ दिशाओमां बे बे कोष्ठ करवां, एटले आखा वलयमा १६ थशे, आ कोष्ठकोमां नीचे प्रमाणे १६ विद्यादेवीओ लखवी. | ॐ रोहिणीए स्वाँ त्माँ स्वाहा । ॐ पन्नत्तीए ही क्षीं स्वाहा । ॐ वज्जसिंखलाए ली स्वाहा । ॐ बज्जंकुसीए ल्मां वाँ स्वाहा । ॐ अपडिचक्काए झाँ स्वाहा । ॐ पुरिसदत्ताए ल्माँ स्वाहा । ॐ कालिए साँ हैं स्वाहा । ॐ महाकालीए Ma ॐ माँ स्वाहा । ॐ गोरीए यूँ यूं स्वाहा । ॐ गंधारीए र क्षाँ स्वाहा । ॐ सव्वत्थमहाजालाए लूँ हाँ स्वाहा । ॐ माणवीए यूँ माँ स्वाहा । ॐ वइरुट्टाए सू माँ स्वाहा । ॐ अच्छुत्ताए यूँ माँ स्वाहा । ॐ माणसीए ग्लँ माँ स्वाहा । ॐ महामाणसीए डं तूं स्वाहा । ५ - विद्यादेवीओ उपरना पांचमां वलयमां - पूर्वादि दिशाओमा ३-३ कोठा पाडवा. आ कोठाओमां लोकान्तिक देवोनां नामो लखवां, ते नीचे प्रमाणे - १ ॐ सारस्वतेभ्यः स्वाहा । २ ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा । ३ ॐ वह्निभ्यः स्वाहा । ४ ॐ वरुणेभ्यः स्वाहा । ५ ॐ गर्दतोयेभ्यः स्वाहा । ६ ॐ तुषितेभ्यः स्वाहा । ७ ॐ अव्याबाधेभ्यः स्वाहा । ८ ॐ रिष्टेभ्यः स्वाहा । ९ ॐ अग्न्याभेभ्यः ॥ ॥ १०० ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ द्वितीया ह्रिके नंद्यावर्तादिपूजा ॥ १०१ ॥ स्वाहा । १० ॐ सूर्याभेभ्यः स्वाहा । ११ ॐ चन्द्राभेभ्यः स्वाहा । १२ ॐ सत्याभेभ्यः स्वाहा । १३ ॐ श्रेयस्करेभ्यः | स्वाहा । १४ ॐ क्षेमंकरेभ्यः स्वाहा । १५ ॐ वृषभेभ्यः स्वाहा । १६ ॐ कामचारेभ्यः स्वाहा । १७ ॐ निर्माणेभ्यः स्वाहा। १८ ॐ दिशान्तरक्षितेभ्यः स्वाहा । १९ ॐ आत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा । २० ॐ सर्वरक्षितेभ्यः स्वाहा । २१ ॐ मरुतेभ्यः a स्वाहा । २२ ॐ वसुभ्यः स्वाहा । २३ ॐ अश्वेभ्यः स्वाहा । २४ ॐ विश्वेभ्यः स्वाहा । ६ - छट्ठा बलयमां - आठ दिशाओमा ८ खानां पाडी पूर्वादि दिशाओमां - १ ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । २ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ३ ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ४ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ५ ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ६ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ७ ॐ किन्नरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ८ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ७ - सातमा वलयमां - आठ कोठाओ करी तेमां पूर्वादि क्रमथी नीचे प्रमाणे आठ दिशापालोने लखवा -१ ॐ इन्द्राय स्वाहा । २ ॐ अग्नये स्वाहा । ३ ॐ यमाय स्वाहा । ४ ॐ निर्ऋतये स्वाहा । ५ ॐ वरुणाय स्वाहा । ६ ॐ वायवे स्वाहा । ७ ॐ कुबेराय स्वाहा । ८ ॐ ईशानाय स्वाहा । ८-आठमा वलयमां - पण आठ कोठा करवा अने पूर्वादि दिशाओमां - ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा । ॐ सोमेभ्यः स्वाहा। ॐ मंगलेभ्यः स्वाहा । ॐ बुधेभ्यः स्वाहा । ॐ बृहस्पतिभ्यः स्वाहा । ॐ शुक्रेभ्यः स्वाहा । ॐ शनैश्चरेभ्यः स्वाहा । ॐ | राहु-केतुभ्यः स्वाहा । आठ वलयोनी बहार चार चार द्वारयुक्त त्रण प्राकारो (गढो) बनाववा. प्राकारोना पूर्वादि द्वारो शान्ति १, भूति २, बल ३, आरोग्य ४, नामना तोरणो बडे शोभावता, अने ते द्वारो उपर धर्म १, मान २, गज ३, अने सिंह ४ नामक ध्वजो आलेखवा. | | १०१ ॥ For Private Personal use only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. कान ॥ द्वितीया ह्निके नंद्यावर्तादिपूजनविधि प्रथम प्राकारना पूर्वादि द्वारो उपर सोम १, यम २, वरुण ३, अने कुबेर ४, नामना चार प्रतिहारो आलेखबा, प्रतिहारोना हाथमां | अनुक्रमे धनुष्य १, दण्ड २, पाश ३ अने गदा ४, ए आयुधो आपबां. बीजा मध्यम प्राकारना पूर्वादि द्वारो उपर अनुक्रमे जया १, विजया २, अजिता ३, अने अपराजिता ४, ए नामक द्वारपालिकाओनो विन्यास करवो. त्रीजा बाह्य प्राकारना चारे द्वारोए यष्टिआयुधवाला तुंबरुनो आलेख करवो. प्रथम प्राकारनां आग्नेयादि ४ विदिशाओमा १२ सभाओ आलेखवी, ते आ प्रमाणे - आग्नेयी विदिशामां साधुओ १, वैमानिक देवीओ २, अने साध्वीओ ३ एम त्रण सभाओ आलेखबी. नैत्रतेयी विदिशामां भवनपतिदेवीओ १, व्यन्तरदेवीओ २, अने ज्योतिष्कदेवीओ ३, एम त्रण सभाओ आलेखबी. वायवी विदिशामां भवनपतिदेवो १, व्यन्तरदेवो २, अने ज्योतिष्कदेवो ३, एम त्रण सभाओ आलेखवी. ऐशानी विदिशामां वैमानिकदेवो १, मनुष्यपुरुषो २, अने मनुष्यस्त्रियो ३, ए त्रण सभाओ आलेखवी. बीजा प्राकारनी अंदर तिर्यश्चो आलेखवां, अने त्रीजा प्राकारनी अंदर देव मनुष्योना यानो अने वाहनो आलेखवां. त्रीजा प्राकारनी बहार मनुष्यो, देवो, आदिना आलेखो करवा. प्रत्येक द्वारनी बंने तरफ कमलिनीवनशोभित बावडीओ आलेखबी. ते पछी बज्रलांछित इन्द्रपुर देइ दिशाओमा “परविद्या क्षः फट्" लखवू अने कोण विभागोमा “परमन्त्राः क्षः फट्" लखg, छेल्ले चारे खूणाओमां ४ पूर्णकलशो लखवा अने तेनी बहार वायुभवन आप_. नई For Private & Personal use only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ह्रिके कलिका. खं०२॥ नंद्यावर्त पूजन विधि - नंद्यावर्तनुं पूजन करतां प्रत्येक पदस्थित देवना नामनी आदिमां "ॐ" अने अन्तमां चतुर्थी विभक्ति || लगाडी पूजार्थक 'नमः' शब्दनो प्रयोग करवो." ana| द्वितीयानंद्यावर्तन पूजन वासक्षेप तथा कर्पूरना चूर्ण बडे प्रतिष्ठाचार्यना हाथे करवानुं विधान छे, जो प्रतिष्ठाचार्य अकथी अधिक होय | म तो पूजन मुख्याचार्ये कर. नंद्यावर्तादि१ - पूजाना आरंभमा प्रथम वलयना मध्य भागे परमेष्ठिमुद्रा - पूजनविधि "ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय, चतुर्मुखपरमेष्ठिने, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, I त्रैलोक्यमहिताय, आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" आम आह्वान करी "ॐ जिनाय नम;" आ मंत्रथी वास कर्पूर बडे नंद्यावर्त स्थित जिन- पूजन कबुं, पछी जिननी जमणी बाजुमां "ॐ शक्रेन्द्राय नमः" ॐ श्रृतदेवतायै नमः । अने डाबी बाजूमां ॐ इशानेन्द्राय नमः ॐ शान्तिदेवतायै नमः । आ नाममंत्रो बोलीने शक्रेन्द्र, श्रुतदेवता, ईशानेन्द्र अने शान्तिदेवतानी वासचूर्णे पूजा करवी. २ - बीजा वलयना पूर्वादि कोष्ठकोमा सृष्टिक्रमे - ॐ नमः सिद्धेभ्यः १, ॐ नमः आचार्येभ्यः २, ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः ३, ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः ४, ॐ नमो ज्ञानेभ्यः ५, ॐ नमो दर्शनेभ्यः ६, ॐ नमश्चारित्रेभ्यः ७, ॐ नमः शुचिविद्यायै ८, आ प्रमाणे नाम मंत्रोच्चारण पूर्वक आलेखक्रमे वास-चूर्णवडे पूजा करवी. ३ - जीजा वलयमां - २४ जिनमाताओनी नीचे प्रमाणे नाममंत्रो वडे वासचूर्णे पूजा करवी. ।। १०३ ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ १०४ ।। ॐ मरुदेवीए नमः १, ॐ विजयाए नमः २, ॐ सेणाए नमः ३, ॐ सिद्धत्थाए नमः ४, ॐ मंगलाए नमः ५, I ॐ सुसीमाए नमः ६, ॐ पुहवीए नमः ७, ॐ लक्खणाए नमः ८, ॐ रामाए नमः ९, ॐ नन्दाए नमः १०, ॐ ॥ द्वितीयाविण्हए नमः ११, ॐ जयाए नमः १२, ॐ सामाए नमः १३, ॐ सुजसाए नमः १४, ॐ सुब्बयाए नमः १५, | हिके अचिराए नमः १६, ॐ सिरीए नमः १७, ॐ देवीए नमः १८, ॐ पभावईए नमः १९, ॐ पउमावईए नमः २०, निंद्यावर्तादि पूजन विधि वप्पाए नमः २१, ॐ सिवाए नमः २२, ॐ वामाए नमः २३, ॐ तिसलाए नमः २४. अहीं बधे 'नमः' शब्द पूजाना अर्थमां छे, प्रणाम अर्थमां नथी, एज प्रमाणे आगळ पण जाणवं. ४ . चोथा बलयमां - पूर्वादि प्रत्येक दिशाना २-२ कोष्ठकोमा - ॐ रोहिणीए नमः १, ॐ पन्नत्तीए नमः २, ॐ वज्जसिंखलाए नमः ३, ॐ वज्जंकुसीए नमः ४, ॐ अपडिचक्काए नमः ५, ॐ पुरिसदत्ताए नमः ६, ॐ कालीए नमः ७, ॐ महाकालीए नमः ८, ॐ गोरीए नमः ९, ॐ गन्धारीए नमः १०, ॐ सब्वत्थ-महाजालाए नमः ११, ॐ माणवीए नमः १२, ॐ बइरुट्टाए नमः १३, ॐ अच्छुत्ताए नमः १४, ॐ माणसीए नमः १५, ॐ महामाणसीए नमः १६. | ५ - पांचमां बलयना २४ कोष्ठकोमां नीचे प्रमाणे नाममंत्रोच्चारण पूर्वक लोकान्तिक देवोनी वासचूर्ण बडे पूजा करवी ॐ सारस्वतेभ्यो नमः १, ॐ आदित्येभ्यो नमः २, ॐ वह्निभ्यो नमः ३, ॐ वरुणेभ्यो नमः ४, ॐ गर्दतोयेभ्यो | नमः ५, ॐ तुपितेभ्यो नमः ६, ॐ अव्यावाधेभ्यो नमः ७, ॐ अग्न्याभेभ्यो नमः ८, ॐ रिष्टेभ्यो नमः ९, ॐ सूर्याभेभ्यो | " For Private & Personal use only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ द्वितीया हिके नंद्यावर्तादि पूजनविधि || नमः १०, ॐ चन्द्राभेभ्यो नमः ११, ॐ सत्याभेभ्यो नमः १२, ॐ श्रेयस्करेभ्यो नमः १३, ॐ क्षेमकरेभ्यो नमः १४, | ।। कल्याण- ॐ वृषभेभ्यो नमः १५, ॐ कामचारेभ्यो नमः १६, ॐ निर्माणेभ्यो नमः १७, ॐ दिशान्तरक्षितेभ्यो नमः १८, ॐ कलिका. आत्मरक्षितेभ्यो नमः १९, ॐ सर्वरक्षितेभ्यो नमः २०, ॐ मरुतेभ्यो नमः २१, ॐ वसुभ्यो नमः २२, ॐ अश्वेभ्यो नमः खं० २ ॥ २३, ॐ विश्वेभ्यो नमः २४. ६ - छट्ठा वलयमां - आठ कोष्ठकोमां नीचे प्रमाणे चार निकायना इन्द्रादि देवो तथा तेमनी देवीओ- पूजन करवू - ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यो नमः १, ॐ तद्देवीभ्यो नमः २, ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यो नमः ३, ॐ तद्देवीभ्यो नमः ४, ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यो नमः ५, ॐ तद्देवीभ्यो नमः ६, ॐ किन्नरादीन्द्रादिभ्यो नमः ७, ॐ तद्देवीभ्यो नमः ८. ७ - सातमां वलयमां - नीचे प्रमाणेनां आठ कोष्ठकोमा आठ दिशापालोनी पूजा करवी - ॐ इन्द्राय नमः १, ॐ अग्नये नमः २, ॐ यमाय नमः ३, ॐ निर्ऋतये नमः ४, ॐ वरुणाय नमः ५, ॐ वायवे नमः ६, ॐ कुबेराय नमः ७, ॐ ईशानाय नमः ८. ८ - आठमा वलयमां - आठ कोष्ठकोमां नीचे प्रमाणे ग्रहोनी पूजा करवी - ॐ आदितेभ्यो नमः १, ॐ सोमेभ्यो नमः २, ॐ मंगलेभ्यो नमः ३, ॐ बुधेभ्यो नमः ४, ॐ बृहस्पतिभ्यो नमः ५, ॐ शुक्रेभ्यो नमः ६, ॐ शनैश्चरेभ्यो नमः ७, ॐ राह-केतुभ्यो नमः ८. __आठ वलयो पछीना प्रथम प्राकारनी आग्नेय कोणमां-ॐ गणधरादिपरिषत्रिकाय नमः ॥१-३॥ ||॥ १०५ ॥ Jain Education Intern For Private & Personal use only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ ॥ द्वितीयाहिके नैर्ऋत्य कोणमां-ॐ भवनपत्यादिदेवीपरिषत्रिकाय नमः ।४-६। वायव्य कोणमां-ॐ भवनपत्यादिदेवपरिषत्रिकाय नमः ।७-९। ईशान कोणमां-ॐ वैमानिकदेवादिपरिषत्रिकाय नमः ॥१०-१२। आ मंत्रपदो बोलीने वासचूर्ण बडे परिषत् त्रिकोनी पूजा करवी.. ॐ नंद्यावर्तादिद्वितीय प्राकारमा तिर्यञ्चो अने तृतीयमां यान-वाहनो उपर वासक्षेप करवो, प्रथम प्राकारना पूर्वादि द्वारपालोनी नीचे प्रमाणे पूजा || पूजनविधि करवी - ॐ सोमाय नमः १, ॐ यमाय नमः २, ॐ वरुणाय नमः ३, ॐ कुबेराय नमः ४. द्वितीय प्राकारनी द्वारपालिकाओनी नीचेना मंत्रो द्वारा वासपूजा करवी - ॐ जयायै नमः १, ॐ विजयायै नमः २, ॐ अजितायै नमः ३, ॐ अपराजितायै नमः ४. तृतीय प्राकारना द्वारपाल तुंबरुनी नीचे प्रमाणे पूजा करवी. ॐ तुम्बरवे नमः १, ॐ तुम्बरवे नमः २, ॐ तुम्बरवे नमः ३, ॐ तुम्बरवे नमः ४. त्रणे प्राकारोनां पूर्वादि द्वारोना तोरणोनी पूजा नीचे प्रमाणे करवी - ॐ शान्तितोरणेभ्यो नमः १॥ ॐ भूतितोरणेभ्यो नमः २, ॐ बलतोरणेभ्यो नमः ३॥ ॐ आरोग्यतोरणेभ्यो नमः ४॥ पूर्वादि द्वारोनां ध्वजोनुं पूजन नीचे प्रमाणे करवं. ॐ धर्मध्वजाय नमः । ॐ मानध्वजाय नमः । ॐ गजध्वजाय नमः । ॐ सिंहध्वजाय नमः ।। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ द्वितीया ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ह्निके पूर्वादि दिशाओमां – “परविद्याः क्षः फट्" अने विदिशाओमां -''परमंत्राः क्षः फट्" आ प्रमाणे आलेखेल मंत्रो उपर | तेना उच्चारणपूर्वक वासक्षेप करवो. इन्द्रपुर उपर -"ॐ पृथिवीमंडलाय नमः" आ मंत्रोच्चारण पूर्वक वासक्षेप करवो.. पूर्ण कलशो उपर - "ॐ पूर्णकलशाय नमः" आ मंत्रोच्चारण करतां कलशो उपर वासक्षेप करवो. वायुभवन उपर -"ॐ वायु-मंडलाय नमः" आ नाम मंत्रथी वासक्षेप करवो. पछी पाटला उपर श्वेत वस्त्र ढांकबू, गेवासूत्र वींटो उपर श्रीफल मूकबुं, चल प्रतिष्ठा जणाववा माटे मध्यभागमा प्रतिष्ठाप्य बिंबनी स्थापना कल्पवी, आसपास सात धान्य वेर, फल-मेवो वस्त्र उपर चढाववो, आगल पक्वान्नादि नैवेद्य ढोकवू, अने पछी नमस्कार पूर्वक संपूर्ण चैत्यवंदना करवी. नद्यावादिपूजनविधि ॥ १०७ ॥ ||१०७॥ Jain Education Intern था Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ तृतीया ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ हिके दिक्पालादिपूजनविधि । ॥ १०८ ॥ ३ तृतीयाह्निकम् । दिक्पाल-ग्रह-अष्टमंगल-स्थापनपूजनविधि-आह्निकबीजकम् । पूर्वे १ दक्षिणपूर्वे २ च, दक्षिणे ३ ऽपरदक्षिणे ४ । अपरे ५ ऽथाऽपरोत्तर ६, उत्तरोत्तरपूर्वयोः ७-८ ॥४९॥ पाताले ९ ब्रह्मलोके १० च, दिशामीशानिमान्न्यसेत् । इन्द्रमग्निं यमं चैव, निर्ऋतिं वरुणं तथा ॥५०॥ वायुं कुबेरमीशानं, नागं ब्रह्माणमेव च । स्ववर्णरसप्रायोग्य-र्वस्त्रैः फलैस्ततोऽर्चयेत् ॥५१॥ पीत १ रक्ता २ऽसित ३ श्याम ४-खाभ ५ नीलद्युतः ६ क्रमात् । श्वेताः शेषाश्च ७-८-९-१० चत्वारो, दिक्पाला वर्णतो मताः ॥५२॥ दिशांपालान् समभ्यर्च्य, शुभैर्द्रव्यैः सुपट्टके । दिक्षु बलिपरिक्षेपः, कार्यो नाम्ना दिगीशितुः ॥५३॥ अन्यस्मिन् पट्टके नन्द-कोष्ठके खेचरान् यजेत् । सूर्यं चन्द्रमसं भौम, बुध देवगुरुं भृगुम् ॥५४॥ मन्दं राहुं च केतुं च, ग्रहान्न्यसेदिमान् क्रमात् । स्वस्वदिग्मण्डलोपेतान्, स्वस्ववर्णविभूषितान् ॥५५॥ मध्ये' दक्षिणपूर्वे च, दक्षिणोत्तरपूर्वयोः' । 'उत्तरे पूर्वेऽपाच्यां च, "रक्षो वायव्यगा ग्रहाः ॥५६॥ वर्तुलं चतुरस्रं च, त्रिकोणं बाणसंनिभम् । चतुरनं च षट्कोणं, चापाभं शूर्पकाकृति ॥५७।। ध्वजाभं मण्डलान्याहुः, सूर्यादीनामनुक्रमात् । मण्डलानि समालिख्या-ऽऽरब्धव्यं खेटपूजनम् ॥५८॥ रक्तः श्वेतो लोहिताभो, हरितः पीतवर्णभाग् । श्वेतः कृष्णौ च धूमाभः, खेटवर्णाः क्रमादिमे ॥१९॥ ॥ १०८ ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं.२॥ ह्रिके दिपूजन न वर्णसदृशवाण, प्रियरसफलेन च । नैवेद्येन विचित्रेण, पूजितः शुभदो ग्रहः ॥६॥ पूजान्ते ग्रहशान्त्याह्व-स्तोत्रपाठं विधाय च । पट्टको द्वौ क्रमात् स्थाप्यौ, जिनाद् वामे च दक्षिणे ॥६१।। ॥ तृतीयापूर्वा १, आग्नेयी २, दक्षिणा ३, नैर्ऋति ४, पश्चिमा ५, वायवी ६, उत्तरा ७, ऐशानी ८, अधोदिशा ९, अने ऊर्ध्व दिशा १०, आ १० दिशाओमां अनुक्रमे इन्द्र १, अग्नि २, यम ३, निक्रति ४, वरुण ५, वायु ६, कुबेर ७, ईशान ८, नाग ९, अने ब्रह्मा १०, | दिक्पालाआ दश दिशापालोने स्थापवा अने पछी पोतपोताना वर्णानुसारि वर्ण-रसे करी युक्त वस्त्रो अने फलो वडे पूजवा. दश दिशापालोना वर्णो अनुक्रमे पीलो १, रातो २, कालो ३, श्याम ४, आश्मानी ५, नीलो ६, श्वेत ७, श्वेत ८, श्वेत ९, विधि ॥ श्वेत १० आ प्रमाणे मानेला छे. दिक्पालोने शुभ पाटला उपर शुद्ध द्रव्यो बड़े पूजीने अन्ते ते ते दिक्पालनी दिशामा दिक्पालना नाम मन्त्रपूर्वक बलिक्षेप करवो. न दिक्पालो पछी बीजा ९ खानावाला शुद्ध पाटला उपर नवग्रहोनी पूजा करवी, सूर्य १, चन्द्र २, मंगल ३, बुध ४, गुरु ५, शुक्र ६, शनि ७, राहु ८, अने कतु ९, ए नव ग्रहोने पोतपोताना दिग्विभागमा पोतपोताना मंडलो सहित वर्णानुसारे आलेखवा. - सूर्यादि ग्रहोनी स्वदिशाओ अनुक्रमे मध्या १, आग्नेयी २, दक्षिणा ३, ऐशानी ४, उत्तरा ५, पूर्वा ६, पश्चिमा ७, नैर्ऋति ८, अने वायवी ९ जाणवी. सूर्यादि ग्रहोना मंडलो अनुक्रमे गोल १, चोरस २, त्रिकोण ३, बाणसमान ४, चोरस ५, षट्कोण ६, धनुष्याकृति ७, शूर्पसदृश | ८, अने ध्वजाकार ९, होय छे. ग्रहोना पूजन पूर्वे, पाटला उपर स्वस्वदिशा विभागमां मंडलो आलेखीने पछी पूजानो प्रारंभ करवो. सूर्यादि ग्रहोनो वर्ण अनुक्रमे रक्त १, श्वेत २, लाल ३, नीलो ४, पीलो ५, धोलो ६, कालो ७, श्याम ८, अने धूमवर्ण ९ | जाणवो. ग्रहोना वर्ण जेवा वर्णनां वस्रो, तेमना प्रिय रसवाला फलो अने विचित्र नैवेद्यो बडे पूजायेला ग्रहो शुभ फलदायक थाय छे. || | १०२ ।। For Private & Personal use only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ पूजा पूरी थया पछी "ग्रहशान्ति स्तोत्र'नो पाठ करी दिक्पालोनो पाटलो जिनप्रतिमाना डाबा अंगनी दिशामां अने ग्रहोनो पाटलो | जमणा अंगनी दिशामां मूकबो. दिक्पालपूजाविधि २. दिपाल पूजा कोष्टक - १० दिक्पाल | | इन्द्र | अग्नि | यम | निरीति | वरुण | वायु | कुबेर । ईशान | नाग | ब्रह्मा आलेखन द्रव्य | गोरोचन रक्त चन्दन| अगर कस्तूरी अगर कस्तूरी| अगर कस्तुरी चन्दन केसर| चन्दन बरास चंदन | चंदन | चंदन कर्पूर | ॥ तृतीया ह्रिके दिकृपालादिपूजनविधि ॥ ॥ ११० ॥ देत पूजन द्रव्य | केसरवास | केसर | केसर | अगर चन्दन अगर-चन्दन | वास-चूर्ण | चन्दन बरास ___ चंदन | चंदन | चन्दन सोवनं चंपो जासूल दमणो मरुओ मालती मरुओ दमणो मरुओ चंपक दमणो| कुमुद बा मोगरो-चंपो | सेवंत्रोजाइ जंबीरी | राती- काली | दाडिम | दाडिम | नारंगी । बिजोरु | जाइ | बादाम | विजोरूं सोपारी | सोपारी | श्याम-उदो शेलडी | उजली पीलुं । रातुं । कालुं रंग | आस्मानी | ३नीखें नालु । मात्माना। श्वेत । इबेत | श्वेत मोतियो | चूरमानो | अडदनो | तिलनो | तिलनो लाडु मगनो लाडु | घीसीदल घीसीदल पेंडा लाडु | लाडु । लाहु लाडु मगदनो अक्षतपा-| अक्षत | अक्षत | अक्षत- अक्षत-पानादि अक्षत | अक्षत-पानादि | अक्षत- अक्षत | अक्षतपान नादि | पानादि | पानादि | पानादि पानादि पानादि | पानादि टीप्पणी : १. ग्रन्थातरे नील २. ग्रन्थान्तरे पीत ३. ग्रन्थान्तरे रक्त द्रव्यादि ॥११० ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ दशदिक्पालनी स्थापना कोष्टक || कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ॐ ईशानाय नमः ॐ ईन्द्राय नमः ॐ अग्नेय नमः ॥ तृतीया हिके दिक्पालादिपूजनविधि ।। ॐ ब्रह्मणे नमः ।। १११ ।। ॐ कुबेराय नमः ॐ यमाय नमः ॐ नागाय नमः ॐ वायवे नमः ॐ वरुणाय नमः | ॐ नैऋतये नमः उपकरणो - पाटला २, दिक्पाल, नवग्रह, योग्य सेवनना । वस्त्र १९, 'पीलां २, रातां ३, कालां २, श्याम उदारंगी १, आस्मानी २, श्यामसोसनी १, नीलां २, धवलां ६॥ पाटलाओ उपर ढांकवा सारु-पीलुं अने रातुं वन २, हाथ ११-१२ प्रमाण । बीजा वस्त्रखंडो हाथनी अंदर होय तो बांधो नथी. वस्त्रो मले तो रेशमी लेबां. जो न मले अथवा खर्च ओछो करवो होय तो सूत्राउ लेवां' नागरवेलना पान २९ । त्रांबाना पैसा २९ । सोपारी २७१ चोखा ॥ शेर आसरे । पतासा अथवा साकरना कटका २७, नैवेद्य नंग १९, मोतिया मोतीचूरना लाडु २, गोलना चूरमाना लाडू २, घेसीदलना (मगदना) ४, मगनी दालना २, गोलधाणीनो १, अडदनी दालना ३, तलना ३, घेबर १, अने पेंडो १॥ "फल मेवो" (सेलडी कटका २, नारंगी २, जंबीरी, खाटां लींबू २, बिजोरां ३, दाडिम ३, नालियेर १, द्राक्षा १, राती सोपारी २, काली सोपारी १, बदाम १, धोली खारेक १॥ "पुष्पो" - (लाल कनेर १, मोगरो जाइ-जुही, अथवा कुमुद | अलि ॥ १११ ।। se For Private & Personal use only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ ॥ ११२ ॥ भा ४, जासूल, २ दमणो-मरुओ, ५ पीली चमेली या पीतपुष्प, १ पीलो चंपो, मालती-चमेली १, जाइ पंचवर्ण पुष्प, १ मुचकुंद, १ पीतकणेर। |al आलेखन, पूजनना द्रव्यो घसी तैयार करेलां । श्वेत चन्दन १, सूखड ८ लाल चन्दन २। केसर ५। गोरोचन २। वासचूर्णं वासक्षेप | ॥ तृतीया३। कंकु ३। यक्षकर्दम । अगर कस्तूरी ५। चन्दन बरास ३॥ चन्दन कपूर । चन्दन केसर कस्तुरी २। अगर चन्दन २। अगर वास हिके १। ग्रहपूजनमां गणवानी मालाओ-(परवालानी, श्वेत स्फटिकनी, कहेरवांनी, अकलबेरनी अने गोमेद अथवा सिन्दुरिया स्फटिकनी, ए | | दिक्पालामाला, ग्रह पूजनमां गणाय छे. श्वेत स्फटिकने बदले रूपानी अने कहेरवानी बदले सोनानी माला पण चाली शके छे. दिपूजनसूचना - पूजापो तैयार कर्या पछी प्रथम पाटलाने शुद्ध जल बडे धोइ धूपीने शुभ चोघडियामां पूजन चालू करवू. कोष्टकमां आपेल विधि ॥ अनुक्रम प्रमाणे प्रथम आलेखन करी, सुगंधि पदार्थो बड़े पूजन करवू. पूजन विधि - प्रथम नीचे लखेल मंत्र बडे क्षेत्रपाल- आह्वान कर. - ॐ क्लौँ ब्लौँ स्वाँ लाँ ह्रीँ भुवनपालाय माणिभद्राय क्षेत्रदेवताय यक्षाधिपतये गजवाहनाय खड्गहस्ताय पाशायुधाय सपरिच्छदाय, अत्र श्रीजम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकगृहे जिनबिम्बप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, पूजां गृहाण गृहाण, पूजायामवतिष्ठतु स्वाहा । ए पछी पुष्पाक्षतनी अंजलि भरीने भोः क्षेत्रपाल ! जिनपप्रतिमाङ्कभाल !, दुष्टान्तकाल ! जिनशासनरक्खपाल ! पुष्पाक्षतप्रवरचन्दनवास धूप-भोगं प्रतीच्छ जिनवराऽभिषेककाले ॥१।। ॐ क्षा क्षों यूँ क्षौँ क्षः क्षेत्रपालं पूजयामि । ॥ ११२ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || तृतीया हिके दिक्पालादिपूजनविधि ॥ ॥ ११३ ॥ आ मंत्र बोलीने क्षेत्रपालने वधाववा अने पुष्पांजलि दक्षिण दिशाणां नाखवी, पछी हाथ जोडीने - "तीक्ष्णदंष्ट्र ! महाकाय ! कल्पान्तदहनोपम !। भैरवाऽस्तु नमस्तुभ्य-मनुज्ञां दातुमर्हसि ॥१॥" आ श्लोक बोली आज्ञा मागवी अने हाथमां वासक्षेप लइ - ॐ ह्रीं आधारशक्त्ये नमः । कमलासनाथाय नमः । आ मंत्र वडे नीचे आसन स्थाने वासक्षेप नाखवो. ए पछी श्रावके प्रथम त्यां सेवननो पाटलो स्थापीने उपर दश दिक्पालोनुं स्थापन-पूजन करवू. एज रीते बीजे पाटले नव ग्रहोर्नु स्थापन पूजन करीने ग्रहशान्तिनो पाठ करवो. पूजन - पूजन शरू करतां हाथमां पुष्पांजलि लइने - "दिक्पालाः सकला अपि प्रतिदिशं स्वं स्वं बलं वाहनं, शस्त्रं हस्तगतं विधाय भगवत्स्नात्रे जगदुर्लभे ॥ आनन्दोल्वणमानसा बहुगुणं पूजोपचारोच्चयम् । संघाय प्रगुणं भवन्तु पुरतो देवस्य लब्धासनाः ॥११॥ आ काव्य बोली पुष्पांजलि दिशापालोना पाटला उपर नाखी दिक्पालोने वधाववा, ते पछी प्रत्येक दिपालने ते पाटला उपर स्थापी अष्ट द्रव्यो वडे - इन्द्रमग्निं यमं चैव, नितिं वरुणं तथा । वायु कुबेरमीशानं, नागान् ब्रह्माणमेव च ॥१॥ आ श्लोकोक्त क्रमानुसार १ इन्द्र, २ अग्नि, ३ यम, ४ निर्ऋति, ५ वरुण, ६ वायु, ७ कुबेर, ८ ईशान, ९ नाग अने १० ब्रह्मानी पूजा करवी. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ११४ ।। " प्राग्दिग्वधूवर ! शचीहृदयाधिवास !, भास्वत्किरीट ! विबुधाधिप ! वज्रपाणे ! ॥ एकावतारसमनन्तरसिद्धिशर्मन् !, शक्र ! स्मरन् स्थितिमुपेहि जिनाभिषेके || १|| " ॐ वषट् नभः श्री इन्द्राय वज्रहस्ताय ऐरावणवाहनाय पूर्वदिगधीशाय सपरिच्छदाय, श्री इन्द्र ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण, गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमिहितं देहि देहि स्वाहा || १ || २. अग्नि - “त्रयीक्रान्ताऽत्यन्तक्षततमोराशिविशदं, जगज्जातालोकं जनयसि जगन्नेत्र ! हुतभुक् ! | प्रसीदत्येतेन त्वयि मम मनो वाक् च सफला । भवत्येवाऽभ्यर्णीभवति भवति स्नात्रसमये || २ ||" ॐ नमः श्री अग्नये प्रभूततेजोमयाय आग्नेयदिगधीश्वराय शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिच्छदाय । श्री अग्ने ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे, आगच्छ आगच्छ, जलं गन्धं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ||२|| ३. यम - "प्रत्युह समूहापोह - शक्तिरर्हत्प्रभावसिद्धैव । समवर्तिन्निह रक्षा कर्मणि विनियोग एव तव || ३ || " ॐ घं घं नमो यमाय दक्षिणदिगधीशाय, कृष्णवर्णाय दण्डहस्ताय महिषवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीयम ! सायुधः सवाहनः ॥ तृतीया ह्निके दिक्पाला दिपूजन विधि ॥ ।। ११४ ।। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *का Late/ तृतीया ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ह्निके ॥ ११५ ॥ a Gies - सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं |al नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥३॥ ४. निति - "मा मंस्थाः संस्थातो, युष्मदधिष्ठितदिगेव बीतापा । निर्ऋते ! निर्वृतिकारी, जगतोऽपि जिनाभिषेकोऽयं ॥४॥" दिपालाॐ हसकल ही नमः ह्रीं श्रीं निर्ऋतये नैर्ऋतदिगधीशाय धुम्रवर्णाय खड्गहस्ताय शिववाहनाय सपरिच्छदाय श्रीनिर्ऋते ! दिपूजन विधि ॥ सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गन्धं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्य सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥४॥ ५. वरुण - उदाररसनागुणक्वणितकिंकिणीजालक-प्रबुद्धजघनस्थलस्थिरनिविष्टचेतोभुवः ॥ ससंभ्रमसमागता धनदराजहंसैः समानयन्तु मणिनूपुरान् वरुण ! वारनार्यस्तव ॥५॥" ॐ वं नमः श्रीवरुणाय पश्चिमदिगधीशाय मेघवर्णाय पाशहस्ताय मकरवाहनाय सपरिच्छदाय श्री वरुण ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह अमुकनगरे अमुकस्थाने जिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गन्धं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण, गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥५॥ ना क न लि कल न नि Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारा ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ | तृतीया हिके दिक्पालादिपूजनविधि ॥ ॥ ११६ ।। ६. वायु - "जाते जिनाभिषेके, विसृजन्तो विविधविटपिकुसुमानि । विकिरन्तु वायवो वो, मिथ्यात्वतमोवितानानि ॥६॥" | ॐ यं नमः श्रीवायवे वायव्यदिगधीशाय धूसरांगाय ध्वजप्रहरणाय हरिणवाहनाय श्रीवायो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं | सर्वोपचारान् गृहाण् गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥६॥ ७. कुबेर - “अहो विविधविस्मयाऽभ्युदयभूतिसद्भाजनं, भवन्ति भवभेदिनो भगवतोऽभिषेकोत्सवाः । यतस्त्वमपि गुह्यकेश्वर ! समेत्य तत्कारिणः, करोषि परमेश्वरान् प्रकटकीकटत्वानपि ॥७॥" ॐ यं यं यं नमः कुबेराय उत्तरदिगधीशाय सर्वयक्षेश्वराय श्वेतवस्त्राय गदायुधाय नरवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीकुबेर ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ, आगच्छ जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥७॥ G ८. ईशान - "पतत्पदपरिक्रमक्रमविघूर्णितक्ष्माधरं, कटाक्षकपिलीभवद्भुवनभागमीशान ! ते । Me For Private & Personal use only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ | तृतीया| ह्रिके दिक्पालादिपूजनविधि ॥ ॥ ११७ ॥ समस्तु करवर्तनाविवलितग्रहौं क्षमानिधेरिह महोत्सवे सकलभावभाक् ताण्डवम् ॥८॥" ॐ नमः श्रीईशानाय ईशानदिगधीशाय त्रिशूलहस्ताय वृषभवाहनाय सपरिच्छदाय श्रीईशान ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद | इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फालनि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारन् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥८॥ ९. नाग "नागाः फणामणिमयूखशिखावबद्ध-शक्रायुधप्रकरविच्छुरितान्तरिक्षम् । सद्यः कुरुध्वमविशषेकदिनं समन्ताद्, भूत्वा भवोद्भवभिदो भवने प्रदीपाः ॥९॥" ॐ ह्रीं नमः श्रीनागराजाय पातालस्वामिने सायुधाय सवाहनाय सपरिच्छदाय श्रीनागराज ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥९॥ १०. ब्रह्मा - अद्याभिषेकसमये स्मरसूदनस्य, भक्त्या नता विकटपश्चमकल्पतल्पाः । शोभा वहन्तु वरतूर्यपयोदनादै-रुत्कम्पिता नलिनयोनिविमानहंसाः ॥१०॥" ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्ध्वलोकाधीश्वराय चतुर्मुखाय श्वेतवस्त्राय पुस्तककमलहस्ताय हंसवाहनाय, श्री ब्रह्मन् ! सायुधः ॥ ११७ ।। ' Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शा ।। कल्याणकलिका. || खं० २॥ | सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्री जिन प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गन्धं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ॥१०॥ || तृतीया___उपर लखेल प्रत्येक काव्य अने तेनी साथे लखेल मंत्र बोलीने ते ते दिशापालने जल, गंध, पुष्प, फल, नैवेद्य आदि जे जेने योग्य | हिके होय ते तेने चढावबां, सर्वनी पूजा पछी पाटला उपर पीलुं वस्त्र ओढाडी, पाटलो गेवासूत्रे वींटवो अने जिनप्रतिमाना डावा पडखा तरफ दिक्पालास्थापवो, पछी - दिपूजन विधि ॥ "इति दिगधिपकीर्तनाभिरक्षा-क्षपितसमस्तविपक्षपीतविघ्नः । कुरु सकलसमृद्धिसंनिधानात्, विजितजगत्यभिषेकमंगलानि ॥१॥" आ काव्य बोलीने ते उपर विधिकारे पुष्पांजलि चढाववी, अने प्रतिष्टागुरुए वासक्षेप करवो, पछी दिशाबलिक्षेप करवो. दिशा-बलिक्षेपः - दिक्पालोन पूजन - स्थापन कर्या पछी खुल्ला स्थानमा जई पूर्वादि दिशासंमुख उभा रही, ते ते दिशाना पतिनो मंत्र श्लोक बोली ते ते दिशामां बलिक्षेप करवो, जल छांटवू, चन्दनादि सुगन्ध पदार्थना छांटा नाखवा, धूप उखेवबो अने वाजिंत्रो वगाडवां. मंत्र श्लोको - १ इन्द्र-“ऐरावतसमारूढः, शक्रः पूर्वदिशि स्थितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१॥" se|| ११८ ।। २ अग्नि-"सदा वह्रिदिशो नेता, पावको मेषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥२॥" श Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ ३ यम-"दक्षिणस्या दिशः स्वामी, यमो महिषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥३॥" ४ निर्ऋति- “याम्यापरान्तरालेशो, निर्ऋतिः शिववाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥४॥" ५ वरुण-"यः प्रतीचीदिशो नाथो, वरुणो मकरस्थितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥५॥" ६ वायु-"हरिणो वाहनं यस्य, वायव्याधिपतिर्मरुत् । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥६॥" ७ कुबेर-“निधाननवकारूढ, उत्तरस्या दिशः प्रभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥७॥" ८ ईशान-“सिते वृषेऽधिरूढो य, ईशानो विदिशो विभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥८॥" | ९ नाग-“पातालाधिपतिर्योऽस्ति, सर्वदा पद्मवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥९॥" १० ब्रह्मा- "ब्रह्मलोकविभुर्योऽस्ति, राजहंससमाश्रितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१०॥" दिक्पालोने प्रक्षेप्य बलि-क्षेप करी पाछा मंडपमा आव, अने ते पछी बीजे पाटले ग्रह पूजन कर. इति दिक्पाल पूजा विधि ॥ ॥ तृतीया| हिके | दिक्पालादिपूजनविधि ।। ॥ ११९ ।। Jain Education in Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ ग्रहपूजा विधि ॥ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ ॐ बुधाय नमः बुध-४ ॐ शुक्राय नमः शुक्र-६ ॐ चंद्राय नमः सोम-२ ॥ नव ग्रहपूजा विधिः ॥ ।। १२० ॥ ग्रह स्थापना - ॐ गुरवे नमः गुरु-५ ॐ सूर्याय नमः सूर्य-१ ॐ भौमाय नमः मंगल-३ . ॐ केतवे नमः ॐ शनैश्चराय नमः शनैश्चर-७ ॐ राहवे नमः राहु-८ aai MS || १२० ॥ C Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। नव ग्रहपूजा विधिः ।। ॥ १२१ ॥ चंपो ग्रह पूजा- कोष्टक - ९ ग्रह | सूर्य चंद्र | मंगल बुध । बृहस्पति शुक्र | शनैश्वर | राहु आलेखन | रक्त चन्दन । चदन केसर चन्दन-केशर गोरोचन ____ चन्दन | कस्तुरी अगर अगर कस्तूरी| यक्ष-कर्दम कस्तूरी कंकु ___ कंकु पूजन केसर चन्दन-बरास | केसर बास-चूर्ण | चन्दन-वासचूर्ण | चंदन | मालती- | मचकुंद | बहुवर्ण पुष्पो लाल कणेर | जाइ-मोगरो | जासूल | सेवंत्रां | जाइ मोगरो दमणो | द्राक्षा | शेलडी | राती सोपारी| नारंगी जंबीर | बिजोरु | खारेक | नालिएर | दाडिम रक्त-लाल | श्वेत | लाल-कीरमजी| नीलुं पीलु । श्वेत | आस्मानी | कालुं श्याम-सोसनी चूरमानो लाडु | पैसीदलनो | गोल धाणीनो | मगनी दालनो | मोतियो लाडु | घेसीदल नो अडदनी | अदनी | तिलबटनो लाडु लाडू । लाडु ___ लाडु | दालनो लाडु | दालनो लाडु लाडु द्रव्यादि अक्षतपान, | अक्षतपान, चोखा पान, | चोखा पान, | चोखा पान, चोखा पान, चोखापान, चोखा पान, चोखा पान, त्रांबाना| त्रांबाना| त्रांबा नाणुं | त्रांबा नाणुं त्रांबानागुं त्रांबानाणुं | त्रांबानाणुं त्रांबा नाणुं| त्रांबानाj माला प्रवालनी । स्फटिकनी प्रवालनी । केरवानी केरवा बा | स्फटिक वा| अकलबेरनी| अकलबेरनी गोमेद वा । सोनानी रूपानी सिंदरीया स्फटिकनी फल G थाल नैवेद्य G ज ग्रह पूजन - ग्रहोर्नु पूजन पण ग्रहचित्रेला सेवनना पाटला उपर करवू. जो पाटलो आलेखेलो न होय तो तत्काल ज तेमां ९ कोठा करी एक For Private & Personal use only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याणकलिका. 15 || नव ग्रहपूजा विधिः ॥ ॥ १२२ ।। शान 40 एक कोठामा एक एक ग्रहनुं विहितद्रव्य बड़े मंडल आलेख, अने साथे ज तेनुं ग्रहयोग्य गंध, पुष्प, फल, नैवेद्य, बस, धूप, दीप, आदि बडे पूजन करवू. ते दरमियान एक जण जे ग्रहनु पूजन थतुं होय ते ग्रहना नाममंत्रथी माला गणे. "ॐ सूर्याय नमः । ॐ सोमाय नमः । ॐ भौमाय नमः । ॐ बुधाय नमः । ॐ गुरवे नमः । ॐ शुक्राय नमः । ॐ शनैश्चराय नमः । ॐ राहवे नमः । ॐ केतवे नमः ।" ए ग्रहोना नाममंत्रो छे. एमनी मालाओ अनुक्रमे-प्रवालनी, स्फटिकनी, प्रवालानी, केरवानी, सुवर्णनी अथवा केरवानी, स्फटिकनी वा रूपानी, अकलबेरनी, अकलबेरनी, अने गोमेद अथवा सिंदरिया स्फटिकनी होय छे. पूजन प्रारंभ करतां हाथमां पुष्पांजलि लइने - __"सर्वे ग्रहा दिनकरप्रमुखाः स्वकर्म-पूर्वोपनीतफलदानकरा जनानाम् । पूजोपचारनिकरं स्वकरेषु लात्वा, सन्त्वागताः सपदि तीर्थकरार्चनेऽत्र ॥१॥" आ काव्य बोली पुष्पांजलि पाटला उपर नाखी ग्रहोने वधाववा, पछी एक एक काव्य मंत्रसहित बोली पोतपोतानी दिशामां स्थापेल प्रत्येक ग्रहनु पूजन करवू. १. सूर्यः - "विकसितकमलावलीविनिर्यत्-परिमललालितपूतपादवृन्दः । दशशतकिरणः करोतु नित्यं, भुवनगुरोः परमार्चने शुभोधम् ॥१॥" "ॐ घृणि घृणि नमः सूर्याय सहस्रकिरणाय रक्तवस्त्राय कमलहस्ताय सप्ताश्वरथवाहनाय सपरिच्छदाय श्री सूर्य ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि थान adhe 35 sath GS ab न ॥ १२२ ॥ For Private & Personal use only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १२३ ।। Jain Education Intern धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ॥१॥" २. चन्द्रः - ‘‘प्रोद्यत्पीयूषपूरप्रसृमरजगतीपोषनिर्दोषकृत्य - व्यावृत्तो ध्वान्तकान्ताकुलकलितमहामानदत्तापमानः । उन्माद्यत्कण्टकालीदलकलितसरोजालिनिद्राविनिद्र-चन्द्रचन्द्रावदातं गुणनिवहमभिव्यातनोत्वात्मभाजाम् ।।२।।’” “ॐ चं चं चं नमश्चन्द्राय अमृताय अमृतमयाय श्वेतवस्त्राय अक्षतसूत्रकमण्डलुपाणये हरिणवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीचन्द्र ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंध पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ||२||" ३. मंगल: “ऋणाभिहन्ता सुकृताधिगन्ता, सदैव वक्रः क्रतुभोजिमान्यः । प्रमाथकृत् विघ्नसमुच्चयानां, श्रीमंगलो मंगलमातनोतु || ३ || " ‘“ॐ हूँ हुँ हंसः नमः श्रीमंगलाय विद्रुमवर्णाय रक्तांबराय, रक्ताक्षसूत्रकुण्डिकापाणये गजवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीमंगल ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्टामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ जलं गन्धं - ॥ नव ग्रहपूजा विधिः ॥ ।। १२३ ।। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. ॥ नव ग्रहपूजा विधिः ।। खं० २ ॥ पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु सर्वसमीहितानि | देहि देहि स्वाहा ॥३॥" ४. बुधः - "प्रियंगुप्रख्यांगो गलदमलपीयूषनिकष-स्फुरद्वाणीत्राणीकृतसकलशास्त्रोपचयधीः । समस्तप्राप्तीनामनुपमविधानं शशिसुतः, प्रभूतारातीनामुपनयतु भंग स भगवान् ॥४॥" __ॐ ऐं नमः श्रीबुधाय हरितवस्त्राय अक्षसूत्रकमण्डलुपाणये केसरिवाहनाय सपरिच्छदाय श्रीबुध ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं - नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ॥४॥" ५. गुरुः - 'शास्त्रप्रस्तारसारप्रततमतिवितानाभिमानातिमान-प्रागल्भ्यः शम्भुजं भक्षयकरदिनकृद्विष्णुभिः पूज्यमानः । निःशेषाऽस्वप्नजातिव्यतिकर परमाधीतिहेतुहत्याः, कान्तः कान्तादिवृद्धिं भव भयहरणं सर्वसंघस्य कुर्यात् ।।५॥" "ॐ जीव जीव नमः श्रीगुरवे बृहतीपतये सर्वदेवाचार्याय पीतवस्त्राय पुस्तकहस्ताय श्रीहंसवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीगुरो! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि य ॥ १२४ ।। For Private & Personal use only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १२५ ।। देहि देहि स्वाहा ||५|| " ६. शुक्रः - " दयितसंवृतदानपराजितः, प्रवरदेहि शरण्य ! हिरण्यद ! दनुजपूज्य ! जयोशन ! सर्वदा - दयितसंवृतदानपराजितः || ६ || " “ॐ सुं नमः श्रीशुक्राय दैत्याचार्याय स्फटिकोज्वलाय श्वेतवस्त्राय कुंभहस्ताय तुरगवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीशुक्र ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ||६||" ७. शनैश्वरः " मा भूत् विपत्समुदयः खलु देहभाजां द्रागित्युदीरितलघिष्टगतिर्नितान्तम् । कादम्बिनीकलितकान्तिरनन्तलक्ष्मी, सूर्यात्मजो वितनुतात् विनयोपगूढः ||७|| " - ‘“ॐ शः नमः शनैश्वराय नीलाम्बराय परशुहस्ताय कमठवाहनाय सपरिच्छदाय श्रीशनैश्वर ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ||७|| ” ।। नव ग्रहपूजा विधिः ॥ ।। १२५ ।। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ ८. राहुः - “सिंहिकासुत ! सुधाकरसूर्यो-न्मादसादन ! विषादविघातिन् !। उद्यतं झटिति शत्रुसमूह, श्राद्धदेवभुवनानि नयस्व ॥८॥" “ॐ क्षः नमः श्रीराहवे कज्जलश्यामलाय श्यामवस्त्राय परशुहस्ताय सिंहवाहनाय सपरिच्छदाय श्रीराहो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ॥८॥" ॥ नव ग्रहपूजा विधिः ॥ G ब "सुखोत्पातहेतो ! विपद्वार्धिसेतो !, निषद्यासभेतोत्तरीयार्धकेतो !। ____ अभद्रानुपेतोपमाछायुकेतो !, जयाशंसनाहर्निशं तार्क्ष्यकेतो ! ॥९॥" "ॐ नमः श्रीकेतवे राहुप्रतिच्छन्दाय श्यामाङ्गाय श्यामवस्त्राय पन्नगहस्ताय पन्नगवाहनाय सपरिच्छदाय, श्रीकेतो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह अमुकनगरे अमुकस्थाने श्रीजिनप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, जलं गंधं पुष्पमक्षतान् फलानि धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु, सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा ॥९॥" पाटलाना नवे य कोष्ठको उपर सर्वद्रव्यो चढी गया पछी तेने रक्तवस्खे ढांकवो; उपर गेवासूत्र बांधी जिनप्रतिमाना जमणे पडखे स्थापन करवो. ते पछी विधिकारे हाथमां पुष्पांजलि लई - ॥ १२६ ॥ For Private Personal use only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ नव ग्रहपूजा विधिः ॥ ॥ १२७ ॥ "जिनेन्द्रभक्त्या जिन भक्ति भाजां, जुषन्तु पूजाबलिपुष्पधूपान् । ग्रहा गता ये प्रतिकूलभावं, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥१॥" आ काव्य बोली पाटला उपर चढावबी, प्रतिष्ठागुरुए तेना उपर वासक्षेप करवो. ग्रहस्थापना करी, तेनी आगल नीचे लखेल ग्रहशान्तिस्त्रोत्रनो पाठ करवो. "ग्रहशान्तिस्तोत्रम्" जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् । ग्रहशान्ति प्रवक्ष्यामि, भव्यानां सुखहेतवे ॥१॥ जन्मलग्ने च राशौ च, यदा पीडन्ति खेचराः । तदा संपूजयेद् धीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् ॥२॥ पुष्पैर्गन्धैधूपदीपैः, फलनैवेद्यसंयुतैः । वर्णसदृशदानैश्च, वस्त्रैश्च दक्षिणान्वितैः ॥३॥ पद्मप्रभस्य मार्तण्ड-श्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च । वासुपूज्यो भूसुतश्च, बुधोऽप्यष्ट जिनेश्वराः ॥४॥ विमलानन्तधर्माराः, शान्तिः कुन्थु मिस्तथा । वर्धमानो जिनेन्द्राणां, पादपद्मे बुधं न्यसेत् ॥५॥ ऋषभाजितसुपार्था-श्वाभिनन्दनशीतलौ । सुमतिः संभवस्वामी, श्रेयांसश्च बृहस्पतिः ॥६॥ सुविधेः कथितः शुक्रः सुव्रतस्य शनैश्वरः । नेमिनाथस्य राहुः स्यात्, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ॥७॥ जिनानामग्रतः कृत्वा, ग्रहाणां शान्तिहेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोत्तरं शतम् ॥८॥ भद्रबाहुरुवाचैवं, पञ्चमः श्रुतकेवली । विद्याप्रवादतः पूर्वाद्, ग्रहशान्तिविधिं शुभम् ॥९॥ ॥ १२७ ।। For Private & Personal use only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || अष्ट मंगल स्थापना ॥ १२८ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं ग्रहाश्चन्द्रसूर्याङ्गारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहुकेतुसहिताः खेटा जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु, मम धनधान्यजयविजयसुखसौभाग्यधृतिकीर्तिकान्तिशान्तितुष्टिपुष्टिवृद्धिलक्ष्मीधर्मार्थकामदाः स्युः स्वाहा ॥ इति ग्रहशान्तिः । अष्टमंगल स्थापना ।। १ दर्पण २ भद्रासन ३ वर्धमान ४ श्रीवत्स ५ मत्स्ययुगल ६ पूर्णकलश ७ स्वस्तिक ८ नन्द्यावर्त अष्टमंगल स्थापनविधि - जिनबिम्ब आगल सेवननो अथवा बीजा उत्तम काष्ठनो पाटलो मांडीने हाथमा पुष्पांजलि लई - मंगलं श्रीमदर्हन्तो, मंगलं जिनशासनम् । मंगलं सकलः संघो, मंगलं पूजका अमी ॥१॥ आ पद्य बोली पुष्पाञ्जलि पाटला उपर चढावबी, ते पछी - १. दर्पण' आत्मालोकविधौ जनोऽपि सकलस्तीनं तपो दुश्चरं, दानं ब्रह्म परोपकारकरणं कुर्वन् परिस्फूर्जति । सोऽयं यत्र सुखेन राजति स वै तीर्थाधिपस्याऽग्रतो, निर्मायःपरमार्थवृत्तिविरैः संज्ञानिभिर्दर्पणः ॥शा २. भद्रासन - "जिनेन्द्रपादैः परिपूज्यप्रष्टै-रतिप्रभावैरपि संनिकृष्टम् । भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्र-पुरोलिखेन्मंगलसत्प्रयोगं ॥२॥" १-१ स्वस्तिक, २ श्रीवत्स, ३ नन्द्यावर्त, ४ वर्धमानक, ५ भद्रासन, ६ कलश, ७ मत्स्य, ८ दर्पण, (भगवती सूत्रोक्ताष्टमंगलक्रम) || १२८ ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्ट ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ मंगल को स्थापना ॥ ॥ १२९ ।। ३. वर्धमान संपुट - पुण्यं यशः समुदयः प्रभुता महत्त्वं, सौभाग्यधीविनयशर्ममनोरथाश्च । वर्धन्त एव जिननायक ते प्रसादात्, तद्वर्धमानयुगसंपुटमादधामः ॥३॥ ४. श्रीवत्स - “अन्तः परमज्ञानं, यद् भाति जिनाधिनाथहृदयस्य । तच्छ्रीवत्सव्याजात्, प्रकटीभूतं बहिर्वन्दे ॥४॥" ५. मत्स्ययुगल - "त्वद्वध्यपंचशरकेतन भावक्लृप्तं, कर्तु मुधा भुवननाथ ! निजापराधम् । सेवां तनोति पुरतस्तव मीनयुग्मं, श्राद्धैः पुरो विलिखितोरुनिजाङ्गयुक्त्या ॥५॥" ६. पूर्णकलश - "विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो, व्याख्यायते श्रीकलशायमानः । अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा, जिनार्चनाकर्म कृतार्थयामः ॥६॥" ७. स्वस्तिक - "स्वस्ति भूगगननागविष्टपे-पूदितं जिनवरोदयेक्षणात् । स्वस्तिकं तदनुमानतो जिन-स्याग्रतोबुधजनैर्विलिख्यते ॥७॥" ॥ १२९ ॥ For Private Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ १३०॥ ८. नन्द्यावर्त - "त्वत्सेवकानां जिननाथ ! दिक्षु, सर्वासु सर्वानिधयः स्फुरन्ति । ॥ चतुर्थाअतश्चतुर्धा नवकोणनन्द्या-वर्तः सतां वर्तयतां सुखानि ॥८॥" ह्निके उपरनुं एक एक पद्य बोलीने जिनबिम्ब आगल पाटला उपर चन्दनना द्रवथी सोना-रूपाना जवो बडे अथवा तो चावलो वडे ते सिद्धचक्रते मंगलचिन्होनो आकार चित्रवो, उपर अक्षत पान सोपारी मूकी पाटला उपर श्वेत वस्खनुं आच्छादन करी गेवासूत्र वींटीने पाटलो जिननी मिपूजनम् ॥ आगल मूकवो. पछी पुष्पमाला हाथमा लई - "दर्पणभद्रासनवर्द्धमानपूर्णघटमत्स्ययुग्मैश्च । नन्द्यावर्तश्रीवत्स-विस्फुटस्वस्तिकैर्जिनार्चाऽस्तु ॥१॥" आ पद्य कहीने पुष्पमाला जिन प्रतिमाने चढावबी. ॥ इति तृतीयाह्निकं कृत्यं ।। (४) चतुर्थाह्निकम् । "सिद्धचक्रपूजन-आह्निकबीजकम्" "क्षेत्रपालं दिशां पालान्, स्मृत्वा खेटानपि पुनः । जैनदेवीः सुरेन्द्राँश्च, समाहूय प्रपूजयेत् ॥६२॥" "ततो भूतबलिं क्षिप्त्वा, देहे पाणौ मंत्रान्न्यसेत् । अर्हदादिपदैः सिद्धं, सिद्धचक्रं प्रपूजयेत् ॥६३॥" क्षेत्रपाल, दिक्पालो तथा ग्रहोर्नु स्मरण करी शासनदेवीओ तेमज इन्द्रोने आह्वान करीने पूजवा, पछी दिशाओमां भूत-बलिक्षेप करवो अने अंगमां तथा हाथोमां मंत्रन्यास करवो. ए पछी अर्हत् आदि नवपडो बडे बनेला सिद्धचक्रनुं पूजन करवू । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १३१ ।। कृत्यविधि-हाथमां पुष्पांजलि लईने ॐ क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष अर्हं जिनशासनवासिने क्षेत्रपालाय नमः । ए मंत्र भणीने दक्षिणदिशामां उछालवी. “ॐ ह्रीँ दिकपालेभ्यो नमः" "ॐ ह्रीँ ग्रहेभ्यो नमः " आ मंत्रो बडे अनुक्रमे दिक्पालो अने ग्रहोनी पूजा करवी. “ॐ ऐं क्लीं हँसौ भगवत्यः श्रीजिनशासनैश्वर्यश्वतुर्विंशतिशासनदेव्यश्चक्रेश्वरी-अम्बिका - पद्मावती सिद्धायिकाद्या देव्यः सिंहपद्मवाहनाः खड्गहस्ताः सायुधाः सवाहनाः सपरिच्छदा इह अमुकनगरे अमुकगृहे श्री जिनेन्द्रप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छत आगच्छत, पूजां गृह्णीत गृह्णीत, पूजायामवतिष्ठन्तु स्वाहा । " आ मंत्र भणीने प्रतिमाने आगे डाबी तरफ पुष्पांजलि क्षेप करी शासनदेवीओनुं पूजन करवुं. “ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीं ह्रः अर्ह धुँ हुँ इन्द्राः श्रीसौधर्मादिचतुःषष्टिः सायुधाः सवाहनाः सपरिच्छदा इह अमुकनगरे श्री जिनेन्द्रप्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छत आगच्छत, पूजां गृण्हत गृण्हत, पूजायामवतिष्ठन्तु स्वाहा । " आ मंत्र भणीने जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप वगेरेथी प्रतिमानी जमणी तरफ सामे इन्द्रोनुं पूजन करवुं. “भो भो इन्द्रा विघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञया सावधाना भवन्तु स्वाहा " आ मंत्र भणी इन्द्रोने सावधान करवा, पछी “ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किन्नर किंपुरिस महोरग गरुल सिद्ध गंधव्व - पिसाय भूय साइणि डाइणि पभिइओ जिणघर निवासिणीओ निअनिलयठिआ पवियारिणो संनिहिया असंनिहिया य ते सव्वे इमं विलेवणधूव-पुप्फ-फल-पइवसणाहं बलिं पडिच्छन्ता तुट्ठिकरा भवंतु, सव्वत्थ रक्खं कुणंतु, सव्वत्थ दुरियाणि नासेंतु, सव्वासिवमुवसमंतु, & Personal Use ॥ चतुर्था ह्निके सिद्धचक्रपूजनम् ॥ ।। १३१ ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ | ह्रिके को ॥ १३२ ।। Athe GO या थान othe GUSI SA संतितुट्ठिपुट्ठिसुत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा ।" ___आ मंत्र वडे भूत-बलि मंत्रीने दशे दिशाओमां धूप दीप चंदन पुष्प जल वास लापसी पुडला वडां सहित बलिबाकुला जिनगृहनी ||॥ चतुर्थाबहार उछालवा, पछी नीचे प्रमाणे अंगन्यास करवो - "ॐ नमः सिद्धं" मस्तके, ॐ आँ ह्रीं क्रौं वद वद वाग्वादिनि अर्हन्मुखकमलवासिनि नमः" मुखे, “ॐ ह्रां ह्रीं | सिद्धचक्रहः अर्हन् नमः" हृदये, “ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नमः" नाभौ, “ॐ ह्रीं धर्माय नमः" शरीरे । पूजनम् ॥ उपर प्रमाणे अंगन्यास कर्या पछी नीचेना मंत्रोद्वारा करन्यास करवो - ॐ नमो अरिहंताणं-अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ नमो सिद्धाणं-तर्जनीभ्यां नमः । ॐ नमो आयरियाणं-मध्यमाभ्यां नमः । ॐ नमो उवज्झायाणं-अनामिकाभ्यां नमः । ॐ नमो लोए सब्बसाहूणं-कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ नमो आगासगामीणं-करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । उपर प्रमाणे अंगन्यास तथा करन्यास करीने पुष्पाक्षत फल पत्र दीप धूप वडे सिद्धचक्र मंडलनी-निचेना क्रमथी पूजा करवी. सिद्धचक्र पूजन - "अर्हन्तः सिद्धसूरीन्द्रो-पाध्यायाः सर्वसाधवः । ज्ञानादर्शनचारित्र-तपांसि सिद्धयेऽङ्गिनाम् ॥१॥" आ श्लोक बोलीने सिद्धचक्रना अष्टदलकमलाकारमंडलने प्रथम पुष्पाक्षतोए बधावq. पछी प्रत्येक पद विषे नीचे प्रमाणे श्लोको अने मंत्रो बोलीने अरिहंत आदिनी जल, चन्दन, पुष्प, अक्षत फल पत्र धूप दीप आदिथी | पूजा करवी, प्रत्येकपदनी पूजा शरु करतां पहेला - "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।" आ नमस्कार वाक्य बोल्या क. STA शान सटि Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चतुर्था || कल्याणकलिका. खं० २॥ का ह्रिके सिद्धचक्रपूजनम् ॥ १. “अथाष्टदलमध्याब्ज-कर्णिकायां जिनेश्वरान् । आविर्भूतोल्लसद्वोधा-नादृतः स्थापयाम्यहम् ॥शा" “निःशेषदोषेन्धनधूमकेतूनपारसंसारसमुद्रसेतून् । यजे समस्तातिशयैकहेतुन्, श्रीमज्जिनानम्बुजकर्णिकायां ॥२॥" "ॐ नमोऽर्हते जिनाय रजोहननायाऽघोरस्वभावाय निरतिशयपूजार्हाय अरुहाय भगवते हाँ अर्हत्परमेष्ठिने स्वाहा ॥१॥" आ श्लोको अने मंत्र बोली मध्यकर्णिकामां अरिहंतनी पूजा करवी ॥११॥ २. "तस्य पूर्वदले सिद्धान्, सम्यक्त्वादिगुणात्मकान् । निःश्रेयसां पदं प्राप्तान्, निदधे भक्तिनिर्भरः ॥३॥" "तत्पूर्वपत्रे परितः प्रनष्ट-दुष्टाष्टकर्मामधिगम्य शुद्धिम् । प्राप्तानरान् सिद्धिमनन्तबोधान्, सिद्धान् भजे शान्तिकरान्नराणाम् ॥४॥" ॐ नमः स्वयंभुवेऽजराय मृत्युंजयाय निरामयाय अनिधनाय भगवते निरञ्जनाय ही सिद्धपरमेष्ठिने स्वाहा ॥२॥ आ श्लोक सहित मंत्र बोलीने पूर्वपत्रस्थित सिद्धनी पूजा करवी ॥२॥ ३. “स्थापयामि ततः सूरीन्, दक्षिणेऽस्मिन् दलेऽमले । चरतः पंचधाचारं, षट्त्रिंशत्सद्गुणैर्युतान् ॥५॥" "सूरीन् सदाचारविचारसारा-नाचारयन्तः स्वपरान् यथेष्टम् । उग्रोपसर्गकनिवारणार्थ-मभ्यर्चयाम्यक्षतगंधधूपैः ॥६॥" ॐ नमः पंचविधाचारवेदिने तदाचरणशीलाय तत्प्रवर्तकाय हूँ आचार्यपरमेष्ठिने स्वाहा ॥३॥ ॥ १३३ ।। Jain Education Inter! Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चतुर्था ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ सिद्धचक्रपूजनम् ॥ के ॥ १३४॥ उपरनो मंत्र बोली दक्षिणपत्र उपर आचार्यनी पूजा करवी ॥३॥ ४. "द्वादशाङ्गश्रुताधारान्, शास्त्राध्यापनतत्परान् । निवेशयाम्युपाध्यायान्, पवित्रे पश्चिमे दले ॥७॥" "श्रीधर्मशास्त्राण्यनिशं प्रशान्त्यै, पठन्ति येऽन्यानपि पाठ्यन्ति । अध्यापकाँस्तान पराब्जपत्रे, स्थितान् पवित्रान् परिपूजयामि ॥८॥" ॐ नमो द्वादशाङ्गपरमस्वाध्यायसमृद्धाय तत्प्रदानोद्यताय ह्रौं उपाध्यायब्रह्मणे स्वाहा ॥४॥ आ पाठ बोलीने पश्चिमदिशागतपत्रमा उपाध्यायनी पूजा करवी ॥४॥ ५. "व्याख्यादिकर्म कुर्वाणान् शुभध्यानैकमानसान् । उदपत्रगतान् सर्वान्, साधून_मि सुव्रतान् ॥९॥" "वैराग्यमन्तर्वचसि प्रसिद्धं, सत्यं तपो द्वादशधा शरीरे । येषामुदपत्रगतान् पवित्रान्, साधून् सदा तान् परिपूजयामि ॥१०॥" ॐ नमः स्वर्गापवर्गसाधकाय हुः साधुमहात्मने स्वाहा ॥५॥ आ मंत्र पाठ बोलीने उत्तरदिशास्थितपत्रमा साधुपदनी पूजा करची ॥५॥ ६. "जिनेन्द्रोक्तमतश्रद्धा-लक्षणं दर्शनं यजे । मिथ्यात्वमथनं शुद्धं, न्यस्तमीशानसदले ॥११॥" "ॐ नमः परमाऽभ्युदयनिःश्रेयसहेतवे दर्शनाय स्वाहा ॥६॥" आ मंत्र बोली ईशानस्थित दर्शननी पूजा करवी ॥६।। श्रीन ॥ १३४।। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. सं०२॥ ॥ चतुर्था___हिके सिद्धचक्रपूजनम् ॥ ॥ १३५ ७. "अशेषद्रव्यपर्याय-रूपमेवावभासकम् । ज्ञानमाग्नेयपत्रस्थं, पूजयामि हितावहम् ॥१२॥" “ॐ नमः सम्यग्ज्ञानाय स्वाहा ।।७।।' आ मंत्रपाठ बोली आग्नेयकोणना पत्रमा ज्ञाननी पूजा करवी ॥७॥ ८. “सामायिकादिभिर्भेदै-चारित्रं चारु पंचधा । संस्थापयामि पूजार्थं, पत्रे हि नैर्ऋते क्रमात् ॥१३॥" "ॐ नमः परमाभ्युदयनिःश्रेयसहेतवे चारित्राय स्वाहा ॥८॥" आ पाठ बोली नैर्ऋत कोणना पत्रमा चारित्रनी पूजा करवी ॥८॥ ९. "द्विधा द्वादशधा भिन्नं, पूते पत्रे तपः स्वयम् । निधापयामि भक्त्याऽत्र, वायव्यां दिशि शर्मदम् ॥१४॥" "ॐ नमः परमाभ्युदयनिःश्रेयसहेतवे तपसे स्वाहा ॥९॥" आ मंत्र बोली वायव्यकोणमा तपपदनी पूजा करवी ॥९॥ पछी अर्धपात्र हाथमा लई - "निःस्वेदत्वादिदिव्यातिशयमयतनून् श्रीजिनेन्द्रान् सुसिद्धान्, सम्यक्त्वादिप्रकृष्टाष्टगुणभृतइहाचारसारांश्च सूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरक्षाप्रवचनरचनासुन्दराण्यादिशन्तः, तत्सिद्धयै पाठकाञ् श्रीयतिपतिसहितानर्चयाम्यर्घदानैः ॥१॥" “ॐ हाँ हाँ हूँ ह्रौं हुः पञ्चभ्यः परमेष्ठिभ्यः सम्यज्ज्ञानादिचतुष्टयान्वितेभ्यः स्वाहा ॥" श्लोकसहित उपरनो मंत्र बोली मण्डल आगे अर्धपात्र मूक, अने उपर चन्दन पुष्प फल नैवेद्य-चढावबां, धूप उखेवबो. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका | खं० २॥ ॥ १३६ ॥ सिद्धचक्रनुं पूजन कर्या पछी प्रतिमा आगल स्नात्र पूजा भणावबी, अने आरती उतारी मंगलदीपक करवो. ॥ इति सिद्धचक्र पूजा Jamel विधि ॥ ।। पंचमा॥ समाप्तं चतुर्थाहिक कृत्यं ॥ ह्रिके विंशति(५) पंचमाह्निकम् । स्थानक। विंशतिस्थानकपूजन-आह्निकबीजकम् । पूजनम् ॥ क्षेत्रपालं नमस्कृत्य, दिगीशान् खेचरानपि । विद्यादेवीजैनदेवी-राहय प्रणिपत्य च ॥६॥ 'रोगशोकादिभिः" श्लोकै-विधाय शान्तिघोषणाम् । 'चत्तारि मंगलं' प्रोच्य, वज्रपञ्जरमाचरेत् ॥६५॥ ततश्च विंशतिस्थान-पदान्येवं प्रपूजयेत् । स्नात्रपूजां विधायान्ते, चैत्यवंदनमाचरेत् ॥६६।। क्षेत्रपाल दिशापालो अने ग्रहोने नमस्कार करी विद्यादेवीओ तथा शासनदेवीओ- आह्वान अने नमस्कार करी रोगशोकादिभिर्दोषैरजिताय' इत्यादि श्लोको बड़े शान्ति घोषणा करवी, पछी 'चत्तारिमंगलं' इत्यादि शरण सूत्रनो पाठ बोलवो अने 'वज्रपञ्जर' स्तोत्र वडे अंगरक्षा करीने विंशति स्थानकना पदोनुं अनुक्रमे पूजन करवू, स्नात्र भणावg अने छेवटे चैत्यवंदन कर. पांचमा दिवसे आटलां कृत्यो करवां. वीशस्थानक पूजा - ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः । ॐ ह्रीं दिक्पालेभ्यो नमः । ॐ ह्रीँ ग्रहेभ्यो नमः । ॐ ह्रीं षोडश विद्यादेवीभ्यो नमः । ॐ ह्रीं जिनशासनदेवीभ्यो नमः । ॥ १३६ ।। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ se ।। पंचमा || कल्याण कलिका. खं० २॥ ह्निके विंशतिस्थानकपूजनम् ।। ॥ १३७ ।। उपरना मंत्रो भणी पछी नीचे प्रमाणे शान्तिघोषणा करवीरोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तये तस्मैः, विहितानन्तशान्तये ॥१॥ श्रीशान्तिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसम्पदम् । श्रीशान्तिदेवता देया-दशान्तिमपनीयताम् ॥२॥ अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्ध-बुद्धसमन्विता । सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम् ॥३॥ धराधिपतिपत्नी वा, देवी पद्मावती सदा । क्षुद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावली ॥४॥ चञ्चचक्रधरा चारु-प्रवालदलदीधितिः । चिरं चक्रेश्वरी देवी, नन्दतादवताच्च माम् ॥५॥ खगखेटककोदण्ड-बाणपाणिस्तडिद्युतिः । तुरङ्गगमनाऽच्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे ॥६॥ मथुरायां सपार्श्वश्री-सुपार्श्वस्तूपरक्षिका । श्रीकुबेरा नरारूढा, सुताङ्काऽवतु वो भयात् ॥७॥ ब्रह्मशान्तिः स मां पाया-दपायाद्वीरसेवकः । श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा ॥८॥ श्रीशक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंस्थिताः । देवा देव्यस्तदन्येऽपि, संघं रक्षन्त्वपायतः ॥९॥ श्रीमद्विमानमारुढा, यक्षमातङ्गसंगता । सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषुधारिणी ॥१०॥ उपरना श्लोको बडे शान्ति उद्घोषणा कर्या पछी संपूर्ण नवकार गणी - चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपन्नतो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुतम्मो । || १३७ ।। For Private & Personal use only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ॥ १३८ ॥ चत्तारि सरणं पवज्जामि-अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साह सरणं पवज्जामि, केवलिपन्नत्तं धम्म || सरणं पवज्जामि । ॥ पंचमाआ चार शरणानो पाठ भणवो अने अंते वज्रपञ्जर स्तोत्र बडे अंगन्यास करवो. ह्रिके विंशतिवज्र पञ्जर स्तोत्रम् - स्थानकपरमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकं । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराभ्यहम् ॥१॥ पूजनम् ।। ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ।।२।। ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ ॐ नमो लोए सब्बसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सब्वपावप्पणासणो, वप्रो बज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्वापि कदाचन ॥८॥ ॥ १३८ ॥ Jan Education International For Private Personal use only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्रपञ्जर भण्या पछी श्रावकोए घसेला चन्दन केसर वडे-बीजा पाटला उपर नीचे प्रमाणे २० कोष्ठको करवां - ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॐही नमो अरिहंताणं| ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं | ॐ ही नमो पवयणस्स ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं ॥ पंचमा ह्निके विंशतिस्थानकपूजनम् ॥ ॐ ह्रीं नमो थेराणं ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं ॐ ह्रीँ नमो नाणोवउत्ताणं ॐ ह्रीँ नमो ___ सम्मदंसणधराणं ॐ ह्रीँ नमो विणयधारीणं १२ १३ १८ ॐ ह्रीं नमो ॐ ह्रीँ नमो | ॐ ह्रीं नमो चारित्तधराणं सीलब्बयधारीणं ॐ ह्रीं नमो तवस्सीणं ॐ ह्रीं नमो गोयमस्स खणलवझाणीणं ॐ ह्रीँ नमो ॐ ह्रीँ नमो ॐ ह्रीं नमो ॐ ह्रीं नमो ॐ ह्रीं नमो बेयावच्चरयाणं समाहिगराणं । अपुबनाणधराणं | सुअभत्ताणं तित्थप्पभावगाणं पछी स्नात्रकारे हाथमां पुष्पांजलि लई - अर्हत्सिद्धप्रवचन-गुरुस्थविरबहुश्रुतास्तपस्वी च । ज्ञानोपयोग-सम्यग्दर्शनविनयाः सचारित्राः ।६७।। शीलव्रतक्षणलव-ध्यानतपस्त्यागसेवनव्रतानि । समाध्यपूर्वज्ञान-श्रुतसेवाः प्रभावना तीर्थे ॥६॥ ॥ १३९ ॥ viww.jainelibrary.org Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २ ॥ ॥ पंचमा| हिके विंशतिस्थानकपूजनम् ॥ ॥ १४ ॥ विंशतिपदान्यमूनि, सकलसुखोत्कर्षबीजभूतानि । जगदानन्दकराणि, जयन्ति जगदेकशरणानि ॥६९।। आ पद्यो बोलीने पुष्पांजलि वीसस्थानकना पाटला उपर नाखवी, ते पछी लखेल प्रत्येक पदनु स्तुति-काव्य अने, तेनो नाम मंत्र भणीने प्रत्येकपद- चंदन-पुष्प-फल-अक्षतो बडे पूजन करवू. १-यन्नाम मन्त्रजपलब्धभवाब्धिकूला, मूलानि जन्मजरयोर्मरणस्य भित्त्वा । भव्या ब्रजन्ति पदमक्षयमस्तदोषं, सोऽर्हन् ददातु विरुजं पदमर्चकेभ्यः ॥७॥ ___ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ॥१॥" उपरनुं काव्य तथा नाममंत्र बोली अरिहंतपदनी पूजा करवी. एवी ज रीते प्रत्येक पदनुं काव्य अने नाममंत्र बोली बोलीने पूजा करवी, प्रथम पदनुं काव्य बोलतां पहेलां अने वीसमा पदनुं काव्य बोलतां पहेला पण "नमोऽर्हत्' कहेवू. २-गाङ्गेयधातुरिव कर्मरजोविदिग्ध-मात्मस्वरूपमधिरुह्य गुणक्रमालिम् । ध्यानानलेन विमलं विदधे निजं यैस्ते सिद्धये मम भवन्तु समस्तसिद्धाः ॥७॥ "ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं ॥२॥" ३-तैर्थङ्कराद् वदनपङ्कजतः प्रसूतं, वाक्यं परागसदृशं भविना हिताय । अस्योपयोगसहितोऽथ मुनिप्रधानः, संघः सदा प्रवचनं भवताद् विभूत्यै ॥७२॥ “ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स ॥३॥" ४-धर्मोपदेशकवरा गुरवो गणीन्द्रा, आचार्यमुख्यविबुधाः प्रवरप्रतापाः । हा For Private & Personal use only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ पंचमा ह्रिके विंशतिस्थानकपूजनम् ॥ ॥ १४१ । आचारमार्गहृदयाः सदयाः सदाया, देयासुरस्तवृजिना जिनतत्त्वमार्गम् ॥७३॥ "ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं ॥४॥" ५-जात्या श्रुतेन मुनिमार्गगताब्दराशेवृद्धा विलीनवृजिनाः सुजिनागमज्ञाः । . शिष्याः पठन्ति समुपेत्य यदीयपार्श्वे, ते मङ्गलं ददतु पाठकपूज्यपादाः ॥७४॥ “ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं ॥५॥" ६-जैनागमाब्धिपरिमज्जननिर्मलाङ्गा-स्तीर्थान्तरीयनयनिर्झरधौतपादाः । सर्वज्ञमार्गरतिका रतिकान्तरीणान्, मार्ग बहुश्रुतवरा मुनयो दिशन्तु ॥७५।। "ॐ ह्रीं नमो थेराणं ॥६॥" ७-बाह्यान्तरङ्गरिपुनिर्दलनैकहेतौ, केतौ शिवस्य सरणेस्तपसि प्रवृत्ताः । क्षान्त्यादिधर्मनिरता विरतास्तपस्वि-वर्या दिशन्तु विविधोत्सवमङ्गलानि ॥७६।। “ॐ ह्रीं नमो लोए सब्बसाहूणं ॥७॥" ८-ज्ञानोपयोगकरणाच्चरणादिवृद्धि-र्ज्ञानोपयोगकरणाच्छिवशर्मसिद्धिः । ज्ञानोपयोगनिरता विरताः स्वदोषाज्, ज्ञानं ततः सदुपयोगमयं नमामि ॥७७॥ "ॐ ह्रीं नमो नाणोवउत्ताणं ॥८॥" ॥ १४१ ।। www.iainelibrary.org Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १४२ ।। ९-सद्दर्शनं सकलदुर्गुणदोषहारि, सद्दर्शनं सकलसद्गुणपोषकारि । सद्दर्शनेन चरणादिगुणाः फलन्ति, सद्दर्शनेन मनुजाः शिवमाप्नुवन्ति ॥७८॥ "ॐ ह्रीं नमो सम्मदंसणधराणं ॥ ९ ॥ १०- सर्वागमेषु विनय गुणमूलभूतः, संवर्णितः सकलकार्यकरो नराणाम् । एकेन येन हरिविक्रमभूपमुख्याः, पात्रं बभूवुरजरामरसौख्यलक्ष्भ्याः ||७९ || "ॐ ह्रीँ नमो विणयधराणं ॥ १० ॥ " ११-आवश्यके चरणशुद्धिनिमित्तभूते, पूतेन्द्रियात्मनिजरूपविभूतिदूते । सर्वादरेण निरतान् विरतानवद्यात्, भक्त्या नमामि चरणाश्रयसाधुवर्यान् ॥८०॥ "ॐ ह्रीं नमो चारित्तधराणं ॥ ११ ॥ " १२- मूलोत्तरे गुणगणे व्रतशीलसंज्ञे, सद्ब्रह्मगुप्तिगुपिलोर्जितवीरचर्ये । स्थैर्याप्तमेरुसमताः सुमताङ्गिवर्गे, शं साधवो ददतु शीलरथाङ्गधुर्याः ॥८१॥ "ॐ ह्रीँ नमो सीलव्वयधारीणं ||१२|| " १३- ध्याने स्थिताः प्रतिलवं च प्रतिक्षणं च संरुध्य चित्तममलं परमात्मतत्त्वे । ध्यायन्ति धीरसदृशं समतासमेता - स्ते सिद्धये मम भवन्तु सुयोगिवर्याः ||८२|| ॥ पंचमाह्निके विंशति स्थानक पूजनम् ॥ ।। १४२ ।। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. सं० २ ।। ॥ १४३ "ॐ ह्रीँ नमो खणलवझाणीणं ॥ १३ ॥ " १४-विघ्नौघघाति सुनिकाचितकर्मपाति, जातिस्मृतिप्रभृतिदं हृतमन्मथार्ति । चेतोविशुद्धिकरमस्तसमस्तरोषं, पोषं ददातु चरणस्य तपो ऽस्तदोषम् ॥८३॥ "ॐ ह्रीँ नमो तवस्सीणं || १४ || " १५-त्यागस्त्रिलोकमहितो रहितो मदेन, त्यागं वदन्ति मुनयो भववार्धिपोतम् । त्यागेन तोषसहितेन जयन्ति मृत्युं, त्यागान्विताय गुणिने गणिने नमोऽस्तु ||८४|| “ॐ ह्रीँ नमो गोयमस्स || १५ || " १६-व्यावृत्तभावनिरतं जिन - सूरि पाठा - चार्येषु साधु - शिशु-वृद्ध-रुगन्वितेषु । तीव्रं तपश्चरति चैत्यवरे ससंघे, भक्त्या नमामि जिननामनिकाचनार्हम् ||८५ ॥ "ॐ ह्रीं नमो वेयावच्चरयाणं ||१६|| " १७-चारित्रधर्मनिरतेन रतेन मार्गे, सद्रव्यभावविषयः स शुभान्वितेन । कार्यः समाधिरनिशं गुरुमुख्यपूज्य - पादेषु कृत्यकरणेन मनोनुकूलम् ||८६ ॥ "ॐ ह्रीँ नमो समाहिगराणं ॥ १७ ॥ | " १८- गत्वा कुहापि गुणहीनमपि प्रणम्य, ग्राह्यं श्रुतं श्रुतवतामुपकारकारि । तस्मादपूर्वगुणकृत् पठतामपूर्व - ज्ञानं नमामि जिनशासनमार्गगामि || ८७ || ॥ पंचमाह्निके विंशति स्थानक पूजनम् ॥ ।। १४३ ।। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥ ॥ पंचमाह्रिके म विंशति ॥ १४४ ॥ "ॐ ह्रीं नमो अपुवनाणधराणं ॥१८॥" १९-सम्यच्छ्रुतं श्रुतधरश्च जिनेन्द्रधर्म-तत्त्वस्य मूलमनिरुद्धमहाप्रभावम् । यस्माद्विनीतविनयाः सुजिनागमज्ञास्तापं विधूय विरुजं पदमाश्रयन्ते ॥८८।। "ॐ ह्रीं नमो सुअभत्ताणं ॥१९॥" २०-वादेन धर्मकथनेन निमित्तवाण्या, सिद्धाञ्जनादिगुणतो निजयात्मशक्त्या । जिनेश्वरप्रवचनस्य विकाशकारी, तीर्थंकरैरभिहितः स भवाब्धितारी ॥८९॥ "ॐ ह्रीं नमो तित्थप्पभावगाणं ॥२०॥" ए पछी गंध, धूप, अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, फल अने जल, ए अष्ट द्रव्यो वडे जिनपूजा करी पूर्वप्रतिष्ठित जिनबिंबनी आगल | आदिनाथनो कलश भणया पूर्वक स्नात्र करवू. ते पछी चैत्यवंदन करी ८ स्तुतिओथी देववन्दन करवू अने प्रत्येक स्थानकनो पूर्वोक्त नाममंत्र बोली १-१ नवकार गणवो अन्ते वीसस्थानकना पाटला आगल नैवेद्य ढोवई. इति वीसस्थानक पूजा विधि । स्थानकपूजनम् ॥ . ॥ समाप्तं पञ्चमाह्निकम् ॥ |॥ १४४ ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १४५ ।। ॥(६) षष्ठाह्निकम् ।। च्यवन कल्याणकोत्सवविधि-आह्निकबीजकम् षष्ठे च दिवसे क्षेत्र- पालादीनां नमस्कृतिम् । विधाय विदुषा कार्य - मिन्द्रेन्द्राण्योः प्रकल्पनम् ॥९०॥ तथा च्युतिर्जिनेन्द्रस्य, कल्पनीया भवान्तरात् । मातृकुक्ष्यवतारश्च तत्र प्राणप्रवेशनम् ॥९१॥ सकलीकरणं हस्तन्यासो मन्त्रपदैः सह । मातृकावर्णविन्यासो, बिम्बाङ्गेषु विधीयते ॥९२॥ एवं जिनस्य च्यवन - कल्याणक महोत्सवम् । विधाय स्नात्रमन्ते च विधेयं देववन्दनम् ॥९३॥ छडे दिवसे क्षेत्रपालादिकने नमस्कार करीने विद्वान् विधिकारे इन्द्र अने इन्द्राणीनी कल्पना करवी, अने ते बाद जिनना जीवनुं स्वर्गादि भवान्तरथी च्यववुं मातानी कूखे अवतरखुं अने मानवीयप्राणप्रतिष्ठा विधि करवी, प्रतिष्ठाप्य जिनबिंबना अंगोमां मंत्रपदो बडे सकलीकरण अने करन्यास करी मातृका वर्णन्यास करवो. आ प्रमाणे जिननो च्यवन कल्याणक महोत्सव करीने स्नात्र कर्खु अने अन्तमां देववन्दन करकुं. कृत्य विधि - ॐ क्लीँ ब्लौँ स्वाँ लाँ क्षाँ क्षेत्रपालाय नमः । ॐ ह्रीँ दिक्पालेभ्यो नमः । ॐ ह्रीँ ग्रहेभ्यो नमः । ॐ ह्रीँ षोडश महादेवीभ्यो नमः । ॐ ह्रीँ जिनशासन देवीदेवेभ्यो नमः । क्रियाकारके उपर प्रमाणे मंत्रोच्चारण पूर्वक पुष्पांजलिओ नाखवी, आ पछी प्रतिष्ठाकारक गृहस्थने विषे नीचेना मंत्रोद्वारा इन्द्रनी ॥ षष्ठा ह्निके च्यवनकल्याणकविधि ॥ ।। १४५ ।। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ षष्ठाह्निके च्यवनकल्याणकविधि ॥ या कल्पना करी आभूषणो पहेरावबां - सद्दष्टेः प्रविकल्पिताऽतिविशदप्रागभारभाभासुर-ज्ञानस्यापि विकल्पजालजयिनश्चारित्रतत्त्वस्य च । यत् पूर्वैः परिकल्पितं जिनमहे रत्नत्रयाराधकं, चिह्न तद् निदधे महेशकलितं यज्ञोपवीतं परम् ॥११॥ आ काव्य भणीने प्रतिष्ठा करावनारे जनोई रूपे सोनानी सांकली पहेरवी. रत्नप्ररोहैरुचिरैर्यदुत्थै-राकाशमङ्गीकृतभं विभाति । तच्छेखरं शेषविधेयविज्ञो, मौलौ मयूखाढ्य महं दधामि ॥२॥ आ काव्य भणीने मस्तके मुकुट अने ललाटे तिलक धारण करवो. दिव्यं दिव्यैरत्न जालैरनेकै-र्नद्धं धुन्वद् ध्वान्तमन्तः स्फुरद्भिः । हैमं हेम्ना निर्मितं विश्वपाणी, पुण्यं पुण्यैः कङ्कणं स्वीकरोमि ॥३॥ आ काव्य भणीने कंकण पहेरg. प्रद्योतयन्ती निखिलं स्वकान्त्या, प्रकोष्टमङ्गद्युतिराजिरम्या । मुद्रेव जैनी वरमुद्रिकाभा-मलङ्करोत्वगुलिपर्वमूले ॥४॥ आ काव्य भणीने मुद्रिका पहेरची. केयूरहाराङ्गदकुण्डलादि, प्रालम्बसूत्रं कटिकम्बि-मुद्रिके । शस्त्री च पट्टे मुकुटं च मेखला, ग्रैवेयकं नूपुरकर्णपूरम् ॥५॥ For Private & Personal use only दा ॥ १४६ ।। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ षष्ठा .| कल्याणकलिका. खं० २॥ लिके च्यवनकल्याणकविधि । ॥ १४७ ॥ आ काव्य बोलीने भुजबंध, कुंडल, सोनानो दोरो, हार, कंदोरो वगेरे यथोपलब्ध तमाम आभूषणो पहेरवां अने -“ॐ ह्रीं | अहँ यूँ हूँ इन्द्रं परिकल्पयामीति स्वाहा ।" आ मंत्र बडे अभिमंत्रित वासक्षेप प्रतिष्ठाकारकना मस्तके नाखवो, आम इन्द्रने कल्पवो. पछी अभिमंत्रित वास हाथमा लइ - 'ॐ आँ ह्रीँ क्रों ऐं क्लौं हसौं इन्द्राणी परिकल्पयामीति स्वाहा ।' आ मंत्र भणी प्रतिष्टाकारकनी सीना मस्तके वासक्षेप करवो. ॐ ह्रीं नमो भगवति विश्वव्यापिनि हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हः सिंहासने स्वस्तिक पूरयामीति स्वाहा । आ मंत्र भणी इन्द्राणीना हाथे वेदिका उपर धवल मंगल गीत साथे पांच स्वस्तिक कराववा पछी नीचेना मंत्रोथी अंगन्यास करवो - ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो सिद्धाणं ही वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं ह्रौं नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं ह्रौं पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपान् ह्रः सर्वांगं रक्ष रक्ष स्वाहा । अंगन्यास पछी नीचे प्रमाणे करन्यास करवो - ॐ ह्रीं अहँतो अंगुष्टाभ्यां नमः । ॐ ह्री सिद्धाः तर्जनीभ्यां नमः । ॐ हूँ आचार्या मध्यमाभ्यां नमः । ॐ हूँ ह्रौं उपाध्याया अनामिकाभ्यां नमः । || १४७ ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ce ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ षष्ठाह्निके च्यवनकल्याणक-. विधि ॥ ॥ १४८ ॥ HE ॐ हुः सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौँ हुः ज्ञानदर्शनचारित्रतपांसि धर्माः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । उपरना मंत्रोमा जे जे हस्तावयवोनो उल्लेख छे ते तेनो मंत्र बोलतां स्पर्श करवा पूर्वक करन्यास करवो, पछी - ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं अर्ह सः नमो हंसः नमो हंसः नमो हंसः गुरुपादुकाभ्यां नमः । ए मंत्रोद्वारा गुरुपूजन करवू. पछी - ॐ ह्रां ह्रीं नमो अहं सः धर्माचार्याय नमः । ए मंत्रद्वारा धर्माचार्य- पूजन करवू पछी - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हुः अहँ परमब्रह्मणे असिआउसाय नमः हंसः स्वाहा । ए मंत्रथी सिंहासन स्थित प्रतिमा उपर वासक्षेप बडे पूजा करवी. पछी - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौँ हः अर्हद्भ्यो नमः । ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं अर्हते नमः । आ मंत्र बडे वासक्षेप मंत्रीने नवीन बिंब उपर नाखवो. पछी - ॐ परमहंसाय परमेष्ठिने हंसः हंसः हंसः हूँ हैं हाँ ह्रीं हूँ हैं हौँ हौँ हँः अर्हद्भ्यो नमः श्रीजिनबिम्ब स्थापयामीति संवौषट् । आ मंत्र बडे वासक्षेप मंत्री नवीन बिंबना मस्तके नाखवो अने जलमिश्रित करीने बिम्बना सर्वांगे तेनुं विलेपन करवू, तेनी आगे दुग्धभृत सुवर्ण कलश स्थापबो, अने - म ॥ १४८ ॥ For Private & Personal use only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ षष्टाह्निके च्यवनकल्याणकविधि ॥ ।। १४९ ॥ सुकृतकरणदक्षः पञ्चमुख्यः समस्तः, सकलदुरितनाशश्छिन्नदृष्कर्मपाशः । विमलकुलविवृद्धथै देवलोकाच्च्युतः श्री-नियतपदसमृद्धयै मानुषेऽहं सदा त्वम् ॥१॥ रत्नत्रयालङ्करणाय नित्य-मच्छायकायाय निरामयाय । निःस्वेदतानिर्मलतायुताय, नमो नमः श्रीपरमेश्वराय ॥२॥ आ कान्यो भणी - ॐ ह्रां ही हूँ हूँ ह्रौं हुः अहँ नमः हंस श्रीमदर्ह देवलोकाच्च्युत्वा मानुषत्वेऽवातरत्, हंसः हंसः हंसः श्रीपरमेश्वराय नमः स्वाहा । आ मंत्र बोली प्रतिष्ठाप्य नवीन सुन्दर जिन बिम्बने दूधथी भरेला सुवर्ण कलशमां स्थापवू, अने - ॐ हाँ ही हों य र ल व श ष स ह क्षौँ हंस अमुष्य प्राणान् इह प्राणे अमुष्य जीव इह स्थितः सर्वेन्द्रियाणि वाग्मनश्चक्षुः श्रोत्रःप्राणजिह्वामुखानि स्थापय संवौषट् वषट् स्वाहा स्वधा ।। आ मंत्र भणीने ते बिम्ब उपर वासक्षेप करवो. ए रीते बिम्बमां प्राणप्रतिष्ठा करवी. पछी ॐ ह्रीं अहँ ॐ ह्रीं-मोक्षद्वारे (ब्रह्मरंध्र उपर) ॐ ह्रीं अहँ अ आ ललाटे (ललाट उपर) ॐ ह्रीं अर्ह इ ई-दक्षिणेतरनेत्रयोः । ॐ ह्रीं अहँ उ ऊ-दक्षिणेतरकर्णयोः । ॐ ह्रीं अहँ ऋ ऋ -नासापुटयोः । ॐ ह्रीं अहँ ए ऐ-ऊर्ध्वाधो दन्तपंक्त्योः । ही अहं ओ औ-स्कन्धयोः । ॐ ह्रीं अर्ह अं - मस्तके । ।। १४९ ।। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ ॥ षष्ठाहिके च्यवन ॥ १५० ॥ कल्याणकविधि ॥ G ॐ ह्रीं अहँ अः- जिह्वाग्रे । ॐ ह्रीँ अर्ह क ख-मुखमंडले । ह्रीं अहं ग घ-कंठे । ॐ ह्रीं अर्ह -हनुस्थाने । (दाढी उपर) ह्रीं अहं च छ ज झ-दक्षिणभुजे । ॐ ह्रीं अहँ ज बामभुजे। ह्रीं अहं ट ठ ड ढ ण-दक्षिणकुक्षौ । ह्रीं अहं त थ द ध न-वामकुक्षौ । ॐ ह्रीं अहं प -दक्षिणोरौ । ॐही अह फ - वामोरौ । ही अहं ब - गुह्ये । ह्रीं अर्ह भ . नाभिमंडले । ॐ ह्रीं अर्ह म-स्फिजोः (इन्द्रियोभयपार्श्वयोः) । ह्रौँ अर्ह य- शरीरस्थाने (उदरे) । ही अहं र-उर्ध्वरोमाञ्चे (मस्तकादिकेशेषु) । ॐ ह्रीं अह ल-पृष्ठे । ॐ ह्रीं अहं व-ग्रीवाकक्षादिसन्धिषु । ॐ ह्रीँ अर्ह श-जानुयुग्मे । ॐ ही अहं ष-गुल्फमूलयोः । ॐ ह्रीं अहं स-पदयोः । ॐ ह्रीँ अर्ह ह-हृदये (प्राणस्थाने)। आ प्रमाणे बिंबना सर्वांगे मन्त्रन्यास करवो अने - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौँ शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं नमो अरहंताणं ॐ ह्रीँ नमो अरुहंताणं, ॐ अहं नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो अरहंताणं ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रौँ अहँ नमः स्वाहा । आ मंत्रवडे वास मंत्री बिंबना मस्तके नाखवो, अने ॥ १५० ॥ For Private & Personal use only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १५१ ।। ॐ हाँ हीँ हूँ हूँ ह्रीँ हः असिआउसाय ह्रीँ नमः स्वाहा” अथवा ॐ ह्रीँ परमहंसाय परमपरमेष्टिने परमहंस हं हाँ हुँ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रः परमेष्ठिने नमः स्वाहा । आ बे कर्णोपदेश मंत्रो पैकीना एक बड़े कर्णोपदेश करी बिम्बना मस्तके वासक्षेप करवो अने - ॐ ऐं क्लीं ह्सौ वद वद, वाग्वादिनि भगवति ह्रीँ नमः । ॐ नमो अरुहंताणं, धातृभ्योऽभीप्सितफलदेभ्यः स्वाहा ॥ | १ || एप्रमाणे आशीर्वाद देवो, त्यां माता स्वप्न देखे तेना नामना नीचेना श्लोको बोलवा - गजो वृषो हरिः साभि षेकश्रीः स्रक् शशी रविः । महाध्वजः पूर्णकुम्भः, पद्मसरः सरित्पतिः || १ || विमानं रत्नपुञ्जश्व, निर्धूमाग्निरिति क्रमात् । ददर्श स्वामिनी स्वप्नान् मुखे प्रविशतस्तदा ||२|| लोको बोल्या पछी ॐ ह्रीँ स्वामिनिस्वप्नदर्शनमिति स्वाहा । आ मंत्र भणवो. पछी स्नात्रकारे संपूर्ण चैत्यवंदन करवुं श्रावक श्रीपार्श्वनाथनो कलश कहेवा पूर्वक कुसुमांजलि करी आठ स्तुतिओ वडे देववंदन करे. आ प्रमाणे च्यवन कल्याणकनी विधि करवी. इति च्यवन कल्याणक विधि । ॥ षष्ठा ह्निके च्यवनकल्याणक विधि ॥ ।। १५१ ।। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। सप्तमाहिके जन्मकल्याणकविधि ॥ 4 ॥ १५२ ।। (७) सप्तमाह्निकम् । । जन्मकल्याणकोत्सव विधि-आह्निककृत्यबीजकम् । सकलीकरणं स्वस्मिन, शुचिविद्याधिरोपणम् । विधाय बलिप्रक्षेपः, कार्यो धूपजलान्वितः ॥९॥ नव्यबिम्बेषु सर्वेषु, क्षेप्तव्यः कुसुमाञ्जलिः । मुद्रा च तर्जनी वाम-शयेनाऽऽछोटनं ह्यपाम् ॥२६॥ तिलकं पुष्परोपं च, कृत्वा कार्यं ततः परम् । वज्र-तार्थ्य-मुद्गराख्य-मुद्राभिर्वर्मरोपणम् ॥९७॥ दिग्बन्धनं च विधिना, सप्त-धान्याभिषेचनम् । विधायाम्बां प्रपूज्याऽथ, जन्मक्षणं निदर्शयेत् ॥९८॥ षट्पञ्चाशत्कुमारीभिः, सूतिकर्म प्रकारयेत् । रक्षापोट्टलिका बध्या, करे मातुस्सुतस्य च ॥९९।। जलचन्दनगन्धादि-पुष्पवासादिकांस्तथा । स्वस्वमन्त्रैरभिमन्त्र्य, रत्नग्रन्थिः कराङ्गुलौ ॥१०॥ बध्या जिनस्य कण्ठे च, क्षेप्याऽरिष्टयवालिका । जलदर्शनपूर्वं च, गीतनृत्यादि कारयेत् ॥१०॥ इन्द्राणीभिः कृते जन्म-क्षणे कार्य जिनेशितुः । चतुःषष्टिसुराधीशै-मरौ जन्माभिषेचनम् ॥१०२॥ प्रतिष्ठाकारकेन्द्रेण, जिनाग्रे रूप्यतन्दुलैः । कार्योऽष्टमङ्गलालेख-स्ततश्चारात्रिकादिकम् ॥१०३।। प्रतिष्ठाचार्ये पोताना आत्मामां सकलीकरण करी शुचि विद्यानो आरोप करवो, पछी धूप तथा जलयुक्त बलिक्षेप कराववो, अने बधा नवीन बिम्बो उपर कुसुमांजलिक्षेप कराववो, तर्जनी मुद्रा देखाडवी, क्रियाकारके डाबा हाथमां जल लइ रौद्रदृष्टिपूर्वक जिनबिंबने | आछोटवू, पछी बिम्बने तिलक करी मस्तके पुष्प चढाववां, गुरुए वज्र, गरुड, मुद्गर मुद्राओ वडे बिंबने कवच करवो, मंत्रपूर्वक दिग्बन्ध | || १५२ ॥ For Private & Personal use only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ करवो, क्रियाकारके अभिमंत्रणपूर्वक सप्तधानधी बिंबोने स्नपन करावg, अम्बा देवीने पूजवा पूर्वक जन्ममहोत्सव- निदर्शन करावयु, छप्पन | दिशाकुमारीओ बडे सूतिकर्म करावबु, माता तथा पुत्रने हाथे रक्षापोटली बांधवी, अने जल, चन्दन, गन्ध, पुष्प, वास आदिने पोतपोताना || सप्तमामंत्रे अभिमंत्रित करवा, जिनना जमणा हाथनी आंगलीए पंचरत्ननी पोटली बांधवी, जिननो कंठे अरेठांनी माला तथा यवनी माला कहिके जन्मपहेराबवी, अने जलदर्शन करावी गीत नृत्यादिनी धामधूम कराववी. कुमारीओ तथा इन्द्राणीओ द्वारा जन्ममहोत्सव कराया पछी ६४ कल्याणकइन्द्रो मेरुपर्वत उपर लइ जईने जिननो जन्माभिषेक करवो, इन्द्ररूपे कल्पायेला प्रतिष्ठाकारक गृहस्थे जिननी आगल रूपाना अक्षतो बडे विधि ॥ अष्टमंगल आलेखवा अने ते पछी मंगलदीपक, आरती तथा लवणावतारणादिक कार्यों करवां. कृत्यविधि - ॐ नमो अरिहंताणं-हृदये, ॐ नमो सिद्धाणं-मस्तके, ॐ नमो आयरियाणं-शिखायाम्, ॐ नमो उवज्झायाणं-सन्नाहे, ॐ नमो लोए सब्बसाहणं-दिव्याने एम आत्मरक्षार्थे ३ वार पद भणनपूर्वक प्रतिष्ठाचार्य अंगन्यास करवो, तथा - ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्बसाहणं, | ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो हः क्षः अशुचिः शुचिर्भवाभि स्वाहा । आ शुचि विद्याए ३ वार सर्वांग स्पर्श करी प्रतिष्ठाचार्ये पोतानी पवित्रता करीने स्नात्रकारोनुं पण सकलीकरण करवू. ए पछी 'क्षि प ॐ स्वा हा' 'हा स्वा ॐ पक्षि' आ ५ तत्वोने पगो १, नाभि २, हृदय ३, मुख ४, ललाट ५ ।, तथा ललाट १, मुख २, हृदय ३, नाभि ४, पगोमां ५, एम चढ उपर क्रम बढे ३ वार स्थापवां. पछी - || १५३ ।। For Private Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। १५४ ।। "ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं बिम्वस्य रक्ष रक्ष स्वाहा " आ मंत्र बडे बलि बाकुला मंत्री प्रतिष्ठाना स्थाननी जल सहित बलि उत्क्षेप करवो, धूप उखेववो, चन्दन पुष्प अक्षत उछालवा, पछी सर्व नवीन जिन बिंबो उपर जल सहित कुसुमाञ्जलि - अभिनवसुगन्धिविकसित-पुष्पौघभृता सुगन्धिधूपाढ्या । बिम्बोपरिनिपतन्ती सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् ।। ए काव्य बोलीने गुरुए क्षेपवी, बने वचली आंगलिओ उंची करी रौद्रदृष्टिथी नवीन बिंबोने 'तर्जनी' मुद्रा देखाडवी, अने श्रावके डाबा हाथमां जल लई ‘“ज्लौं म्लौँ” उच्चारणपूर्वक प्रतिमाने आछोटवु, पछी गुरुए- “ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा ।" आ मंत्रोच्चारण पूर्वक बिंबने दृष्टिदोष निवारणार्थ 'वज्रमुद्रा, गरुडमुद्रा अने मुद्गरमुद्रा' बडे ३ बार कवच करवो अने अज मंत्रथी दिग्बंधन पण कर. श्रावके शण १, कुलथ २, राइ ३, जब ४, सरसव ५, कांग ६ अने अडद ७; आ सात धान्योनी ऋण ऋण मुष्टि बिंबो उपर नाखवी, अने कुलदेवी अंबानी पूजा करवी. पछी - ‘“संसारद्रुमदावपावकमहाज्वालाकलापोपमं ध्यातं श्रीमदनन्तबोधकलितैस्त्रैलोक्यतत्त्वोपमम् । श्रीमच्छ्रीजिनराट्रप्रसूतिसमयस्नानं मनः पावनं, कुम्भैर्नः शुभसंभवाय सुरभिद्रव्याढ्यवाः पूरितैः || १ || " " नमस्त्रिलोकीतिलकाय लोका-लोकावलोकैकविलोकनाय । सर्वेन्द्रवन्द्याय जितेन्द्रियाय, प्रसृतभद्राय जिनेश्वराय || २ || " “ॐ ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ ह्रः अर्हं तीर्थंकरपरमदेवाय ह्रीँ मातृकुक्ष्याः प्रसवाय जगज्जोतिष्कराय अर्हते नमः स्वाहा ।” ॥ सप्तमा ह्निके जन्म कल्याणक विधि ॥ ।। १५४ ।। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सप्तमा ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ हिके जन्मकल्याणकविधि । आ श्लोको अने मंत्र भणवो, ते पछी - उद्योतस्त्रिजगत्यासीद्, दध्वान दिवि दुन्दुभिः । षट्पश्चाशदिक्कुमार्यः, समागत्याऽकृत क्रियाम् ॥१॥ कुमार्योऽष्टावधो लोक-वासिन्यः कम्पितासनाः । अर्हज्जन्मावधेख़त्वा-ऽभ्येयुस्तत्सूतिवेश्मनि ॥२॥ भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिनी । सुवत्शा वत्समित्रा च, पुष्पमाला त्वनिन्दिता ॥३॥ नत्वा प्रभुं तदम्बा चे-शाने सूतिगृहं व्यधुः । संवर्तेनाऽशोधयन् क्ष्मा-मायोजनमितां गृहात् ॥४॥ "ॐ ह्रीँ अष्टावधोलोक-वासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं सूतिगृहमशोधयन् स्वाहा ।" आ. श्लोको अने मंत्र भणीने भूमिशोधन करावg. मेघंकरा मेघवती, सुमेघा मेघमालिनी । तोयधारा विचित्रा च, वारिषेणा बलाहका ॥१॥ अष्टोर्ध्वलोकादेत्यैता, नत्वाऽर्हन्तं समातृकम् । तत्र गन्धाम्बुपुष्पौघ-वर्षां हर्षाद्वितेनिरे ॥२॥ “ॐ ह्रीं अष्टावूर्ध्वलोकवासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं गन्धाम्बुपुष्पौघमवर्षयन् स्वाहा ।" आ श्लोको अने मंत्र भणी सुगन्धीजल छंटावबुं, पछी पुष्प वेरावां, अथ नन्दोत्तरा-नन्दे, आनन्दा-नन्दिवर्धने । विजया वैजयन्ती च, जयन्ती चापराजिता ॥ "ॐ ह्रीं अष्टौ पूर्वरुचकवासिन्यो देव्यो विलोकनार्थं दर्पणानि अग्रेऽधारयन् स्वाहा ।" आ श्लोक तथा मंत्र भणीने आरीसा देखाडवा. ॥ १५५ ॥ For Private & Personal use only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ || सप्तमा| ह्रिके जन्मकल्याणकविधि ॥ समाहारा सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा यशोधरा । लक्ष्मीवती शेपवती, चित्रगुप्ता वसुन्धरा ॥ "ॐ ह्रीँ अष्टौ दक्षिणरुचकवासिन्यो देवः स्नानार्थं करे पूर्णकलशान् धृत्वाभिषेकं कुर्वन्त्यो गीतगाने विदधति स्वाहा।" आ श्लोक अने मंत्र भणीने जल कलशोवाली ८ बालिकाओए उपस्थित थq.. इलादेवी सुरादेवी, पृथिवी पद्मवत्यपि । एकनासा नवमिका, भद्रा शीतेति नामतः ।। “ॐ ह्रीँ अष्टौ पश्चिमरुचकवासिन्यो देव्यो वीजनानि वीजयन्ति स्वाहा ।" आ श्लोक अने मंत्र भणीने पंखा चलाववा. अलम्बुषा मितकेशी, पुण्डरीका च वारुणी । हासा सर्वप्रभा श्रीहीं-रष्टोदगुचकाद्रितः ॥ “ॐ ह्रीं अष्टौ उत्तररुचकवासिन्यो देव्यो वालव्यजनानि वीजयन्ति स्वाहा ।" आ श्लोक अने मंत्र भणीने चामर ढालवा. चित्रा च चित्रकनका, सुतारा वसुदामिनी । दीपहस्ता विदिश्वेत्या-ऽस्थुर्विदिग्रुचकाद्रितः ॥ "ॐ ह्रीँ चतम्रो विदिग्वासिन्यो देव्यः प्रदीपहस्ता उद्योतं कुर्वन्ति स्वाहा ।" आ श्लोक अने मंत्र भणीने दीपक देखाडवा. रूपा रूपासिका चापि, सुरूपा रूपकावती । चतुरङ्गुलतो नालं, छित्त्वा खातोदरेऽक्षिपन् ॥१॥ "ॐ ह्रीँ चतम्रो रुचकद्वीपवासिन्यो देव्यश्चतुरङ्गुलतो नालं छित्त्वा भूखातोदरेऽक्षिपन् स्वाहा ॥" ॥ १५६ ॥ 44 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ श्लोक तथा मंत्र भणी ४ आंगल नाल कापी खाडामां दाटबुं. "ॐ ह्रीं पूर्वोत्तरदक्षिणेषु रम्भागृहत्रयं ब्यधुः स्वाहा ॥" “ॐ ही पालघर बांधवा. ॥ सप्तमा ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ काष्ठाभ्यामग्निमुत्पाय चन्दनायनाने तथा जिनमाताने | हिके जन्मकल्याणकविधि ॥ "ॐ राँ रौं बैरै रौं रः उत्तरे अरणिकाष्ठाभ्यामग्निमुत्पाद्य चन्दनायैर्नुहुवात् वषट् ।" आ मंत्र बडे चन्दनादि काष्टनो होम करी तेनी रक्षानी पोटलीओ तैयार करी जिनने तथा जिनमाताने हाथे बांधवी. ए पछी पवित्र जलकलशो, चन्दन, पुष्पो अने स्नात्रनी पुडिओ नीचेना मंत्रो बडे मंत्रवी. "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आपो जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।" आ मंत्रथी सर्व जल मंत्रबु. "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु गन्धान् गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।" आ मंत्रथी वास चंदन तथा सर्व औषधिनु अभिमंत्रण | करवं. "ॐ नमो यः सर्वतो मेदिनी पुष्पवती पुष्पं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।" आ मंत्र बडे पुष्पोर्नु अभिमंत्रण कर.. “ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह दह महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।" ए मंत्रथी धूप, अभिमंत्रण | क. । ए पछी नवीन बिंबना जमणा हाथनी आंगलीए पंचरत्ननी रक्षा पोटली बांधवी. पोटलीओ सौभाग्यमंत्र वडे मंत्रीने प्रत्येक बिंबना जमणा हाथे बांधवी, वली अरीठानी माला तथा जवनी माला प्रत्येक बिंबना कंठमां नाखवी, जलयात्राथी लावेल जल जलकुंडीमां भरी तेमां वास चंदन पुष्पादि नाखी 'ॐ ह्रीं नमः' आ मंत्र भणतां जलदर्शन कराबवू, धूप दीप करवा, गीतगान नाटकादि करवां. आम दिक्कुमारिकाओनो उत्सव थया पछी - छाल GOD " ॥ १५७ ॥ jainelibrary.org Jain Education Inter ! For Private Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १५८ ।। इन्द्राण्याद्यग्रमहिषी, सामानिकैश्च संयुता । अंगरक्षकदेवीभिः समागता जिनगृहे ॥ | १ || तारा तिलोत्तमा तारू, मनोवेगा च मोहिनी । सुन्दरी त्रिपुरा चैता, माना मानवती मुदा ||२|| “ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुतमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ हूँ हूँ: असिआउसा- त्रैलोक्यललामभूताय अर्हते नमः स्वाहा । " आ श्लोक अने मंत्र बोलीने नवीन बिंबना भालमां केसरनो तिलक करवो, अने इन्द्राणीए गीत -गान नाटकादिक करवुं. इन्द्राणीना उत्सव पछी “ ततः सिहासनं शाक्रं, चचालाऽचलनिश्चलम् । प्रयुञ्ज्याऽथावधिं ज्ञात्वा, अर्हज्जन्माभिषेचनम् ||१||” " वज्प्रेकयोजनां घण्टा, सुघोषां नैगमेषिणा । अवादयत्ततो घण्टा - रेणुः सर्वविमानगाः || २ || ” ‘“प्रचेलुः सुराऽसुरेन्द्रा-विविधैर्वाहनैर्घनैः । समागत्य जिनाम्बां च, नत्त्वा रूपं च पञ्चधा ||३||” “एको गृहीततीर्थेशः, पार्श्वे द्वावात्तचामरौ । एको गृहीतातपत्र, एको वज्रधरः पुरः ||४|| " " शक्रः सुमेरुशृङ्गस्थं गत्वाऽथो पाण्डुकं वनम् । मेरुचूलादक्षिणेना- तिपाण्डुकम्बलासने ||५|| “ अभिषेकोत्सवे जैने, चतुःषष्ठिः पुरन्दराः । सुमेर्वधिष्ठिते स्थाने, समेयुस्ते यथाक्रमम् ॥६॥” " चमरेन्द्रो १ बलीन्द्रश्च २, धरणेन्द्रस्तृतीयकः ३ । भूतानन्दश्च ४ वेण्विन्द्रो ५, बेणुदालिस्तथैव च ||७|| ” “हरिकान्तो ७ हरिशेणो (सखो ) ऽग्निशिखो ९ थाग्निमानवः १० । पूर्णेन्द्रोऽथ ११ विशिष्टश्च १२, जलकान्तो १३ जलप्रभः १४ ||८|| " ॥ सप्तमा ह्निके जन्म कल्याणक विधि ॥ ।। १५८ ।। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १५९ ।। “अमृतगति १५ र्भवनेन्द्रोऽमृतवाहननामकः १६, वेलम्बक १७, प्रभञ्जनौ १८, घोष१९ महाघोषकावपि २० ||९||” “कालेन्द्रोऽथ १ महाकालः २, सुरूपः ३ प्रतिरूपकः ४ । पूर्णभद्र५ - माणिभद्रौ६, भीमेन्द्रो७, महाभीमकः ८ || १० |” “किन्नर : ९ किंपुरुषेन्द्रः १०, सत्पुरुषस्तथैव ११ हि । महापुरुष १२ नामैको ऽतिकायश्च १३ तथाऽपरः || ११||” " महाकायो १४ गीतरति १५ - गीतयशाश्व१६ षोडश । संनिहितः १ समानीको २, धाता३ विधाता ४थापरः ||१२|| " “ऋषीन्द्रो५ ऋषिपालथे६, श्वरश्वापि महेश्वरः ८ । सुवत्सो९ विशालेन्द्रश्व १० हासो ११ हासरति : १२ पुनः ||१३||” “श्वेतो१३ महाश्वेतः १४ पतङ्ग १५ पतंगपतिश्वराः १६ चन्द्रा१ दित्यौ२ ज्योतिषेन्द्रौ कल्पेन्द्रादशधा पुनः || १४ || " " सौधर्मेन्द्र १ ईशानेन्द्रः २, सनत्कुमार ३ पुरन्दरः । माहेन्द्रो४ ब्रह्मेन्द्रश्च५, लान्तकेन्द्रश्च६ वज्रिणः || १५ || ” " शुक्रेन्द्रः ७ सहखारेन्द्र८, आनत - प्राणतेश्वरः ९ । आरणाच्युतशक्रश्च १०, इतीन्द्राः चतुःषष्ठिका || १६ || " (आ प्रकारना श्लोको भणीने) “ॐ ह्रीँ धुँ हुँ सौधर्मेन्द्रादिचतुःषष्ठिरिन्द्रा अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे सर्वविघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञया सावधाना भवन्तु स्वाहा । " ए लोको तथा मंत्र भणीने ‘“श्रीमन्मन्दरमस्तके शुचिजलैर्धौते सदर्भाक्षते, पीठे मुक्तिवरं निधाय रुचिरे तत्पादपुष्पम्रजा । इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे, मुद्राकंकणशेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ||१|| " ‘‘विश्वैश्वर्यैकवर्यास्त्रिदशपतिशिरः शेखर स्पृष्टपादाः, प्रक्षीणाऽशेषदोषाः सकलगुणगणग्रामधामान एव । ॥ सप्तमा ह्निके जन्म कल्याणक विधि ॥ ।। १५९ ।। ' Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं.२॥ ।। १६० ॥ जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वन्द्वपूजान्विताः श्री-अर्हन्तं स्नात्रकाले कलशभृतजलैरेभिराप्लावयेत्तम् ॥२॥" “ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं ह्रः अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतौषधिसहितेन षष्ठिलौककोटिप्रमाणकलशैः स्नापयामीति स्वाहा। ॥ सप्तमाआ काव्यो अने मंत्र भणवो, ते पछी - कहिके जन्म"तत्र पूर्वमच्युतेन्द्रो, विदधात्यभिषेचनम् । ततोऽनुपरिपाटीतो, यावच्चन्द्रार्यमादयः ॥१॥" कल्याणक विधि ।। आ श्लोकोक्त नियमानुसार सर्व प्रथम अच्युतेन्द्रे अभिषेक करवो, ते पछी आनत प्राणतेन्द्रादि उतरता क्रमथी यावत् चन्द्र सूर्य | सर्व इन्द्रो अभिषेक करे, प्रत्येक अभिषेक करतां नीचे लखेल मंत्र बोलवो - "ॐ हाँ हाँ क्षीरोदकादितीर्थजलेन स्नापयामीति स्वाहा ।" क्रमानुसार शक्रेन्द्रनो वारो आवतां शक्रेन्द्रे - "चतुर्वृषभरूपाणि, शक्रः कृत्वा ततः स्वयम् । शृङ्गाष्टकक्षरत्क्षीरे-रकरोदभिषेचनम् ॥१॥" आ श्लोकोक्त नियमानुसार चार वृषभरूप करीने शृंगोथी अभिषेक करवो. देवकृत स्नानाभिषेको थई गया पछी इन्द्ररूपे कल्पायेला प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थे जिन आगे रूपाना अक्षतो (तेना अभावे अखंडउज्वल स्वाभाविकधान्य) वडे अष्ट मंगलो पूरवां अने - "सन्मङ्गलप्रदीपं ते, विधायाऽऽरात्रिकं पुनः । संगीतनृत्यवाद्यादि, व्यधुर्विविधमुत्सवम् ॥१॥" आ श्लोक भणवो अने मंगलदीवो तथा आरती उतारवी, वाजिंत्रादि बगाडवां, अंते आठ स्तुतिओथी देववंदन करवू, आ प्रमाणे ॥ १६० ॥ देवकृत जन्मोत्सव करवो. CH छ था Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ अष्टमाहिके अष्टादश अभिषेक विधि ॥ १६१ ।। I ॥ (८) अष्टमाह्निकम् । अष्टादश अभिषेकविधि-आह्निकबीजकम् जिनस्य जन्मवृत्तान्ते, दास्या राज्ञे निवेदिते । राज्ञा नृत्योत्सवमयी, स्थितिश्चके दशाहिका ॥१०४।। तथाहि-प्रथमे घने, कृतकौतुकमङ्गलः । अभिषेकविधिर्वर्यो, विदधे मङ्गलार्थिना ॥१०॥ जलं गन्धाश्च पुष्पादि, स्वस्वमन्त्राभिमन्त्रितम् । अभिषेकेषु सर्वेषु, नियोज्यं विधिवित्तमैः ॥१०६॥ प्रत्येकस्नात्रपर्यन्ते, मूर्धनि पुष्परोपणण् । ललाटे तिलकं धूप-दाहः कार्यो विदांवरैः ॥१०७।। सुवर्णस्य जलेनाऽथ, 'पञ्चरत्नजलेन च । कषायछल्लिनीरेण', मृत्तिकामिश्रवारिणा ॥१०८।। पञ्चगव्यकुशोदेन', सदौषधिजलेन च । मूलिकाचूर्णनीरेणा-ऽऽ द्याष्टवर्गजलेन च ॥१०९।। द्वितीयाष्टकवर्गस्य, वारिणा गुणधारिणा' । विधाप्य स्नाननवकं, जिनाह्वानमथाचरेत् ॥११०॥ दिक्पालांश्च समाहूय, तत्तद्दिशि विनिक्षिपेत् । पुष्पाञ्जलिं ततः सर्वो-षधिस्नानं विधापयेत् ॥१११॥ ततो नव्यजिनं स्पृष्ट्वा, स्वेन दक्षिणपाणिना । मन्त्रन्यासं गुरुः कृत्वा, ग्रन्थिं सर्षपसंभवम् ॥११२।। जिनपाणौ बन्धयित्वा, दुर्दग्दोषनिवारणम् । तिलंक चाञ्जलिं कृत्वा, ततो विज्ञप्तिमाचरेत् ॥११३॥ अर्धं सुवर्णपात्रस्थं, जिनस्याग्रे विमोचयेत् । तथैव दिगधीशाना-मर्घदानं निवेदयेत् ॥११॥ For Private Personal Use Only ॥ १६१ ॥ Tww.jainelibrary.org Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ हृदय प्रतिष्ठा विधिः ॥ ॥ १६२ ॥ ततः पुष्पजलेनैका-दशं स्नानं विद्यापयेत् । गन्ध-वासजलैः१३ कार्य, चन्दनस्य रसेन१४ च ॥११५॥ केसरस्य५ जलेनापि, स्नानं पञ्चदशं विदुः । ततस्तीर्थजलोत्थं च, तथा कर्पूरवारिणा१७ ॥११६।। पुष्पाञ्जलिभवं चान्त्यं, स्नानमष्टादशं स्मृतम् । घृतं दुग्धं दधि चेक्षु-रसः सौषधिस्तथा ॥११७।। पञ्चामृतानितैर्वृत्तं, मतं पाञ्चामृताभिधम् । सर्वस्नानेषु वृत्तेषु, वासचूर्णादिना ततः ॥१८॥ बिम्बस्नेहं निराकृत्य, भूयो निर्मलवारिणा । कुम्भाष्टकेन संस्नप्य, काव्यघोषपुरस्सरम् ॥११९॥ रुक्षयित्वा ततो बिम्ब, विलिप्य चन्दनादिभिः । पुष्पारोपं विधायाऽऽरा-त्रिकादिकं समाचरेत् ॥१२०॥ दासी द्वारा जिनजन्मनी वधाई राजाने अपाई अने राजाए गीत-नृत्यादि महोत्सवमयी दश दिवसनी जन्म महोत्सवनी स्थिति जाहेर करी. तेमां पहेले दिवसे राजाए मंगलाचरणपूर्वक मंगल निमित्ते जन्माभिषेकनी विधि करी ते रीते विधिना जाणकारोए जल, गन्ध, पुष्प आदि अभिषेकोपयोगी पदार्थो स्व स्व मंत्रोए अभिमंत्रित करीने सर्व अभिषेकोमा वापरवा, प्रत्येक स्नानने अन्ते जिनने मस्तके पुष्पारोपण करवू, ललाटे तिलक करवो अने प्रत्येक अभिषेकना अन्तराले जाणकारोए धूप उखेवबो. ____ अभिषेको आ प्रमाणे करवा-सुवर्णलनो १, पञ्चरत्न जलनो २, कषाय छालना जलनो ३, तीर्थमृत्तिकाना जलनो ४, पञ्चगव्यकुशोदकनो | ५, सदौषधि जलनो ६, मूलिकाचूर्णना जलनो ७, प्रथमाष्टकवर्ग जलनो ८ अने द्वितीयाष्टकर्ग जलनो ९, ए नव अभिषेको करीने जिनाह्वान कर अने दश दिक्पालोनुं आह्वान करीने ते ते दिशामां पुष्पांजलि क्षेपवी. पछी सौषधिनो अभिषेक १० मो करवो. ए पछी गुरुए पोताना जमणा हाथथी नव्य जिनबिंबने स्पर्शी मंत्रन्यास करबो अने दृष्टिक्षेप निवारणार्थ बिम्बना हाथे सरसवोनी ॥ १६२ ॥ For Private & Personal use only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १६३ ।।। पोटली बांधीने ललाटमा तिलक करी विज्ञप्ति करवी, जिन आगे सुवर्णपात्रमां अर्ध मूकवो, तथा दिशापालोने पण ते ते दिशामा अर्घ आपवो. ए पछी पुष्पजलनो ११ मो अभिषेक करवो, गन्धजलनो १२ मो, वासजलनो १३ मो, चन्दनजलनो १४ मो, अने केसर जलनो १५ मो अभिषेक करवो, तीर्थजलनो १६ मो, कर्पूरजलनो १७ मो, अने पुष्पाञ्जलि क्षेपनो १८ मो अभिषेक करवो. घी, दूध, दहीं, शेरडीरस तथा सर्वोपधि; आ पांच अमृत गणाय छे, आ पंचामृतनो ते “पञ्चामृत" नामनो एक अभिषेक करवो, सर्व स्नानो थई रह्या पछी बास- कर्पूर- चूर्णादिक घसीने प्रतिमाना अंग उपरथी स्निग्धता ( चिकास) दूर करवी अने छेले निर्मल जलना कलशे करीने “चक्रे देवेन्द्रराजै" आ काव्य उच्च स्वरे बोलतां आठ अभिषेको करवा. अभिषेको थई रह्या पछी अंगलूंछणां करी बिंबने चंदनादिनुं विलेपन कर, पुष्प चढाववां अने मंगलदीपक तथा आरती आदि कार्यो करवां. कृत्यविधि "उपकरणो" सुवर्णचूर्ण अथवा सुवर्णकलश ४ । मंगलमृत्तिका पडिकुं १ । मूलिकाचूर्ण । सर्वोषधि चूर्ण । वासचूर्ण जल । तीर्थजल । घी-दूध-दही-खांड- सर्वोषधि । सुगंधीपुष्प छाब १। घसेल केसर चंदनबरासनी वाटकी २। अर्घ पात्र २ । पञ्चरत्नचूर्ण पडिकुं — ॥ अष्टमा ह्निके अष्टा दश अभिपेक विधि 11 ।। १६३ ।। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टमा श ॥ कल्याण-14 कलिका. खं० २॥ | ह्रिके अष्टादश अभिषेक विधि Gal ॥ १६४ ॥ Cal चा १। पंचगव्य दर्भजल । प्रथमाष्टवर्ग चूर्ण । पुष्पजल । चन्दनद्रव । कर्पूरचूर्ण जल । वासक्षेप रकाबी १। शुद्ध जले भरेला कलश ४ । पंचरतननी पोटली १ । हस्तलेपनी वाटकी १ । कषायछालचूर्ण पडिकुं १ । सदौषधि पडिकुं १॥ द्वितीयाष्टवर्ग चूर्ण । गन्धचूर्णजल । केसरजल । पुष्पाञ्जलि। दशांग धूप पडिकुं १ । धोला अथवा पीला सरसव नांखेल घसेला चंदनगोरोचननी वाटकी १। घीनी वाटकी १। सरसवनी पोटली । आरेठानी माला बिंब प्रति १-१ । पान सोपारी । कलशिया ४ । जर्मनशिल्वरनी अथवा त्रांबापीतलनी कुंडी १॥ मंगल दीवो १ आरती । मीढलनां कंकण । फल । अक्षत । गलास वा नालविनानो कलशियो । प्रक्षालनी कुंडी । बलिवाकुल भींजवेला । गेवासूत्रनी कोकडी । जवनी माला । नैवेद्य । आरीसो ११ वासक्षेपर्नु पडिकुं । दीवो १ (जंगाल)।। विधि-प्रथम स्नात्रकार श्रावके जिनमुद्राए उभा रही जल कलशादिकनी अधिवासना करी - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ आगच्छ, जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा । आ मंत्रे करी जलभृत कलशादिकनुं अभिमंत्रण कर. ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु विपृथु विपृथु गन्धान् गृह्ण गृह्ण स्वाहा । आ मंत्रथी गंध, वास, चन्दन, अष्टवर्ग सदौषधि सर्वोषधि, केसर, कर्पूरादिनुं अभिमंत्रण करवू. ॐ नमो यः सर्वतो मेदिनि ! पुष्पवति ! पुष्पं गृह्ण गृह स्वाहा । G याला Gael था A ल ॥ १६४ ॥ For Private Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ अष्टमाहिके अष्टादश अभि पेक ॥ १६५ ।। विधि ॥ आ मंत्रथी प्रत्येक स्नात्रमा चढाववानां पुष्पो अभिमंत्रबां. ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह दह, महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण गृह्ण स्वाहा । आ मंत्रथी प्रत्येक अभिषेकमां करातो धूप अभिमंत्रवो. पछी अभिषेक वखते तेमांथी कलशो भरवा, थोडो थोडो वास, घसेल चन्दन, पुष्पो, प्रत्येक अभिषेकना जलमां नाखवा, प्रत्येक स्नात्रने अन्ते प्रतिमाना मस्तके पुष्प चढाबवू, ललाटमा तिलक करवू, वासक्षेप करवो, अने धूप उखेवबो. ___अभिषेकना प्रारंभमां श्रावकोए प्रतिमाना जमणा हाथनी आंगलीमां पंचरत्ननी गांठडी बांधवी, ते पछी तैयार करेल स्नात्रनी पुडियोमाथी अनुक्रमे एक एक पुडी मंत्रमुद्राधिवासित पवित्र तीर्थजलमां नाखी ते जल बडे चार चार कलशो भरीने परमेष्ठिमंगलपूर्वक वाजिंत्रोना शब्दो साथे स्नात्रकारोए १८ स्नात्रो करवां. 'नमोऽर्हत्' कही मंत्रपाठ कहे त्यां सुधी बादित्रो बंध रखावबां. दरेक अभिषेकना पाठ- काव्य बोलतां पहेला 'नमोऽर्हत्.' बोलवू अने काव्य बोल्या पछी, "ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा" आ मंत्र बोलीने प्रतिमा उपर अभिषेक करवो. प्रत्येक अभिषेकने अंते काव्य बोलीने श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. पुष्प चढावबुं दशांग धूप उखेववो । काव्य प्रत्येक श्लोकनी साथे आपेला छे । अभिषेककाव्यादि - १ सुवर्णजल-'नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय - सर्व साधुभ्यः' ॥ १६५ ॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |अष्टमा क ॥ कल्याण-IN कलिका. खं० २ ॥ हिके अष्टादश अभि पेक विधि ॥ ।। १६६ ॥ सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गंन्धपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं बिंबोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपूतम् ॥१॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । अहिं श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवू. तिलक करतां नीचेनु कान्य बोलवू. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" २ पंचरत्न जल-'नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' नानारत्नौघयुतं, सुगन्धपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद् विचित्रवर्णं, मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ।।२।। ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमा तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोदुमव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥शा" || १६६ ।। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टमाहिके अष्टादश अभि षेक विधि ॥ ॥ १६७ ॥ तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किंवा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेनु कान्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" ३ कषायछाल जल-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । प्लक्षाश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिकल्कसंमिश्रम् । बिंबे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसबमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलबुं. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥शा" तिलक कर्या पछी नीचेर्नु कान्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावQ. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेर्नु कान्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - ॥ १६७ ॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ Ama|| अष्टमा ह्निके अष्टादश अभि ॥ १६८ ॥ विधि ॥ “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" ४ मंगलमृत्तिका जल- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । पर्वतसरोनदीसंग-मादिमृद्भिश्च मंत्रपूताभिः । उद्वर्त्य जैनबिंम्बं 'स्नपयाम्यधिवासनासमये' ॥४॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥॥" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq.. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥" ५ पंचगव्यदर्भोदक-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । जिनबिम्बोपरि निपतद्, घृतदधिदुगधादिद्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदकसंमिश्र, पंचगवं हरतु दुरितानि ॥५॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । ॥ १६८ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १६९ ।। श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन - गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवु . "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्भव - सिद्धार्थकरोचनातिलकः ||१||” तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. “किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एप कश्चिदुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन || १ || ” नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - ‘“मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ||१||” ६ सदौषधिचूर्णजल-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्त्तितस्य विम्बस्य । संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ||६|| ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन - गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवु . “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्भव - सिद्धार्थकरोचनातिलकः ||१||” तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. “किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । ॥ अष्टमा ह्निके अष्टादश अभि षेक विधि ॥ ।। १६९ ।। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ अष्टमाह्निके अष्टादश अभि ।। १७० ॥ विधि ।। किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" ७ मूलिकाचूर्ण जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।। सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥७॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचे- काव्य बोल. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावg. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एप कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - "मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" ८ प्रथमाष्टकवर्ग जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॥ १७०॥ Jan Education International For Private & Personal use only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ || अष्टमाह्निके अष्टादश अभि ॥ १७१ ।। विधि ।। नानाकुष्टाद्यौषधि-संसृष्टे तद्युतं पतन्नीरम् । बिंबे कृतसन्मन्त्रं, कर्मोघं हरतु भव्यानाम् ।।८।। ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचे- काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" ९ द्वितीयाष्टकवर्ग जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । मेदाद्यौषधिभेदो-ऽपरोऽष्टवर्गः स्वमंत्रपरिपूतः । जिनबिम्बोपरि निपतत्, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥९॥ ॐ नमो जिनाय हां अर्हते स्वाहा । जिनाबानादि आन्तर विधि :- नव अभिषेक थया पछी प्रतिष्ठाचार्ये (अभिषेक निश्रादाताए) उभा थई गरुड, मुक्ताशुक्ति | । अने परमेष्ठी नामक त्रण मुद्राओ पैकीनी कोई पण एक मुद्रा करीने प्रतिष्ठाप्य देवनुं आ प्रमाणे आह्वान करवू - For Private & Personal use only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GRE ।। कल्याणकलिका. | खं० २॥ विधि ॥ ___ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिक् कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय | त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ, स्वाहा । ॥ अष्टमाजिनाह्वान पछी विधिकारे नीचे प्रमाणे दिक्पालोनुं आह्वान करवू - कहिके अष्टा१ ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। दश अभि क २ ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ३ ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ४ ॐ निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। - ५ ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ६ ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ७ ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ८ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ९ ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। १. ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रप्रतिष्ठाविधौ (अढार अभिषेक विधौ) आगच्छ आगच्छ स्वाहा। ए मंत्रोथी प्रत्येक दिक्पालन आह्वान तेनी दिशा संमुख उभा रहीने करवू 'स्वाहा' पछी तेनी तरफ वासक्षेप करवो अने श्रावके ॥ १७२ ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || अष्टमा| हिके अष्टादश अभि षेक ।। १७३ ॥ विधि ॥ पुष्पांजलि फेंकवी. जो अंजन शलाकानुं विधान होय तो 'प्रतिष्ठाविधौ' बोलq. पण केवल 'बिंबस्थापनानो ज प्रसंग होय तो 'इह जिनेन्द्रस्थापने' अथवा 'जिनेन्द्रस्थापनाविधौ' आमांथी कोई एक पाठ बोलवो. श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं वाक्य बोलवू. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोमव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचेनुं कान्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" १० सर्वौषधि जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । सकलौषधिसंयुत्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मंत्रिततन्नीरनिवहेन ॥१०॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । मंत्रन्यासादि अवान्तर विधि- दशमो अभिषेक थया पछी प्रतिष्ठाचार्ये दृष्टिदोष निवारण माटे प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाने पोतानो जमणो हाथ अडकावी नीचेना मंत्रनो न्यास करवो - (आ विधि पण प्रतिष्ठाना अभिषेक समये करवी योग्य लागे छे.) adh ||१७३ ।। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ १७४ ॥ ॐ इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भन्यानां भः स्वाहा । अथवा ॐ क्षाँ क्ष्वी ह्रीं क्षौँ भः स्वाहा । || अष्टमा कहिके अष्टाआ बे पैकीना एक मंत्रनो न्यास करवो, ते पछी श्रावके दृष्टिदोष विघातार्थ लोहाऽस्पृष्ट धोला सरसबोनी पोटली नीचे लखेल मंत्रे दश अभि७ वार मंत्रीने जिनबिम्बने हाथे बांधवी. पोटली मंत्रवानो मंत्र - "ॐक्षाँ क्ष्वी झी स्वाहा ।" विधि । सर्व बिम्बोने पोटली बांधी ललाटमां चन्दननी टीली देवी, ए पछी प्रतिष्ठाचार्य (अढार अभिषेक के निश्रा दाता) हाथ जोडीने | आ प्रमाणे विज्ञप्ति करे, - स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसादं धिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ।। ते पछी श्रावक सर्पप दहि घृत अक्षत डाभ आ पांच द्रव्यात्मक अर्ध सुवर्ण पात्रमा लईने हाथ जोडी - ॐ भः अर्घ प्रतीच्छन्तु पूजां गृहन्तु जिनेन्द्रा स्वाहा । आ मंत्र बोलवा पूर्वक अर्थपात्र जिन आगल मुकवू, एज रीते श्रावक सरसवादि पांच द्रव्यात्मक अर्घनुं बीजं पात्र हाथमा लईने तथा प्रतिष्ठाचार्य या अष्टादश अभिषेक निश्रादाता वास लईने दिक्पालोनुं नीचे प्रमाणे आह्वान करी अर्घ प्रदान करे. ॐ इंद्राय आगच्छ आगच्छ, अर्घ प्रतीच्छ प्रतीच्छ, पूजां गृहाण स्वाहा । उपर प्रमाणे पूर्वदिशा संमुख इन्द्रनुं आव्हान करी प्रतिष्ठाचार्य वासक्षेप करे, अने स्नात्रकारो अर्घ चन्दन अक्षत पुष्प उछाले, | || १७४ ।। दीपक देखाडे, धूप उखेवे, अग्नि, यम, निक्रति, वरूण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग, ब्रह्माने पण ते ते दिशा संमुख आव्हानपूर्वक | |* For Private & Personal use only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ || अष्टमाह्रिके अष्टादश अभि षेक विधि ॥ ।। १७५ ॥ अर्घप्रदान करबो. श्रावको अर्घ आपती वेलाए “दिक्पाला अघु प्रतीच्छन्तु" आ शब्दो बोल्या करे. पछी - श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचे काव्य बोलवू. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढाव.. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसार, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥२॥" ११ कुसुम जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । अधिवासितं सुमंत्रैः, सुमनः किंजल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥११॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमा तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. For Private & Personal use only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं०२॥ Ma|| अष्टमा ह्निके अष्टादश अभि ॥ १७६ ॥ विधि ॥ "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - "मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" १२ गंध जल-नमोऽर्हत् सिध्दाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । गन्धांगस्नानिकया, सम्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः । स्नपयामि जैनबिम्ब, कमौघोच्छित्तये शिवदम् ॥१२॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमा तिलक करवो. तिलक करतां नीचे- काव्य बोलवू. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचे काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढाव. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - "मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" शाल dhe CRE या de AAP For Private & Personal use only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। १७७ ।। Jain Education Internationa १३ वास जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । हृद्यैराह्लादकरैः स्पृहणीयैर्मंत्रसंस्कृतैर्जेनम् । स्नपयामि सुगतिहेतोर्बिम्बं ह्यधिवासितं वासैः ||१३|| ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसबमिश्रित चंदन - गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवु . “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्भव - सिद्धार्थकरोचनातिलकः ||१||” तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. " किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चिदुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन || १ || ” नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ||१||” १४ चन्दन रस-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । शीतलसरससुगंधी, मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे || १४ || ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन - गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलबुं. ॥ अष्टमा हिके अष्टा दश अभि षेक विधि ॥ ।। १७७ ।। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ || अष्टमाहिके अष्टादश अभि ॥ १७८ ॥ विधि ॥ "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढाव. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" १५ केसर जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । काश्मीरजसुविलिप्तं, बिम्बं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मन्त्रयुक्तया शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१५॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । आन्तरविधि :- पंदरमो अभिषेक करी प्रतिमाने सूर्य, चंद्रना दर्शन कराववा अथवा आरीसो देखाडवो. (पण आ विधि अंजन शलाकाना समयनी छे.) श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचे- काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्मव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" थान का STA ॥ १७८ ॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ || अष्टमाहिके अष्टा| दश अभि | षेक ॥ १७९ ॥ विधि ॥ तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" १६ तीर्थ जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । जलधिनदीह्रदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैमन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१६॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमा तिलक करवो. तिलक करतां नीचे- काव्य बोलवू. “भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोमव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥शा" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढाव. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - श sth नत्र ॥ १७९ ।। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १८० ।। " मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ||१||” १७ कर्पूर जल - नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । शशिकरतुषारधवला, उज्ज्वलगंधा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमंत्रपूता पततु बिम्बे ॥ १७ ॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन - गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलबुं. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्भव- सिद्धार्थकरोचनातिलकः ||१|| " तिलक कर्या पछी नीचेनुं काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. " किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चिदुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ||१||” नीचेनुं काव्य बोलीने दशांग धूप उखेबबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ||१|| ” १८ बिम्बोपरि पुष्पांजलिक्षेप नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । नानासुगन्धिपुष्पौघ- रञ्जिता चंचरीककृतनादा । धूपामोदविमिश्रा, पततात्पुष्पांजलिर्बिम्बे ॥ १८॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । ॥ अष्टमा ह्निके अष्टा दश अभि षेक विधि ॥ ।। १८० ।। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-Is कलिका. खं० २॥ ॥ अष्टमाहिके अष्टादश अभि। षेक विधि ।। ।। १८१ ॥ साय 0 SBA alla STO श्वेत अथवा पीत सरसबमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं काव्य बोलवू. "भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोदमव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥शा" तिलक कर्या पछी नीचे- काव्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावq. “किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एप कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेवबो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकारं, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" पञ्चामृतनो अभिषेक - अढार अभिषेकने अन्ते घृत १, दुग्घ २, दहि ३, खांड ४, सौषधि चूर्ण ५; आ पांच द्रव्योर्नु पंचामृत करीने नीचेना श्लोको बोली तेनो अभिषेक करवो, - नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनगात्रसंपर्कात् तद् भगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृतसमुद्रस्य ॥१॥ दुग्धं दुग्धांभोधे-रुपाहृतं यत्पुरा सुरवरेन्द्रैः । तद् बलपुष्टिनिमित्तं, भवतु सतां भगवदभिषेकात् ॥२॥ दधि मंगलाय सततं, जिनाभिषेकापयोगतोऽप्यधिकम् । भवतु भविनां शिवा-ध्वनि दधिजलधेराहृतं त्रिदशैः ॥३॥ इक्षुरसोदादुपहृत-इक्षुरसः सुरवरैस्त्वदभिषेके । भवदवसदवथु भविनां, जनयतु नित्यं सदानन्दम् ॥४॥ यान || १८१ ॥ पोल Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण ॥ अष्टमा कलिका. कहिके अष्टा दश अभि खं० २॥ ॥ १८२ ॥ विधि ॥ सौषधिषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेके । तत्सर्वौषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्धयै ॥५॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा । पंचामृतनो अभिषेक कर्या पछी कर्पूरना चूर्ण बडे घसी प्रतिमानी स्निग्धता दूर करवी, चीकाश वधारे होय तो साधारण उष्ण जलनो उपयोग करचो, पछी ८ कलशिया शुद्धजले भरी अभिमंत्रित करीने नीचेनुं काव्य बोलतां आठ अभिषेक करवा चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभिर्नृत्यन्तीभिः सुरीभिललितपदगमं तृर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तु तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै-बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरंः स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥ आ काव्य प्रत्येक अभिषेके उच्च स्वरे बोलवु. पछी अंग ठूछी चन्दनादि विलेपन करवू. प्रतिमा आगळ पान, सोपारी, फलादि ढोg, ते पछी स्नात्रकारोए आरती मंगल दीवो करवो अने प्रतिष्ठाचार्ये संघ सहित मूलनायकनां चैत्यवन्दन-स्तुतिथी देववन्दन करवू, मूलनायक- चैत्यवंदन स्तुतिओ याद न होय तो नीचेर्नु चैत्यवंदन कहेg - इरियावही करी ने चैत्यवंदन कहेवू. . जय श्रीजिन ! कल्याण-वल्लीकन्दलनाम्बुद !। मुनीन्द्रहृदयाम्भोज-विलासवरषट्पद ॥१॥ तव नाथ ! पदद्वन्द्व-सपारसिका जनाः । सर्वसंपत्सुखश्रीभि-विलसन्ति सदोदयाः ॥२॥ नृलोके चक्रिताद्या याः, स्वर्लोके चेन्द्रतादयः । शिवेऽनन्तसुखाद्यास्ता-स्तव भक्तिवशाः श्रियः ॥३॥ सर्वश्रेयःश्रियां मूलं, ददधर्मं समग्रवित् । योगक्षेमकरो नाथ-स्त्वमेव जगतामसि ॥४॥ त्वमेव शरणं बन्धु-स्त्वमेव मम देवता । तन्मां पाहि भवात्तात ! कुरु श्रेयःसुखास्पदम् ॥५॥ ॥ १८२ ।। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ जंकिंचि. नमुन्धुणं, अरिहंत चेझ्याणं. अन्नत्थ एक नवकार नो काउ. नमो. । स्तुति. अर्हस्तनोतु स श्रेयः, श्रियं यद् ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकला.हि, रंहसा सहसोच्यते ॥१॥ ॥ अष्टमालोगस्ससब्बलोए अरिअन्नत्थ, एक नवकार नो काउकरी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति बोलवी । कहिके अष्टा दश अभिॐ मिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंह्रींश्च । आश्रीयते श्रियाते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरसुअस्स भगववंदणअन्नत्थकही एक नवकार नो काउकरी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति बोलवी । विधि ॥ नवतत्त्वयुता त्रिपदी, श्रिता रुचिज्ञानपुण्य शक्तिमता । वरधर्म कीर्तिविद्या नन्दास्याज्जैन गीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणंबुद्धाणं. 'श्री शान्तिनाथ' आराधनार्थं करेमि काउसगं, बंदणव० अन्नत्थकही एक लोगस्स सागर वर सुधीनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति बोलवी। श्री शांतिः श्रुतशान्ति-प्रशांति कोऽसावशांतिमुपशांतिम् । नयतु सदायस्य पदाः सुशांतिदाः संतु संति जिने ॥४॥ 'सुअदेवयाए करेमि काउसग्गं अन्नत्थकही एक नवकारनो नमोऽर्हत् कही स्तुति बोलवी ।। बद बदति न वाग्वादिनि ?, भगवति ?, कः श्रुत सरस्वति ? गमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिरतुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शासनदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति बोलवी । उपसर्गवलयविलयन-निरात जिनशासनावनैकरता। द्रुतमिह समीहितकृते स्यु-जिनशासन देवता भवताम् ॥६॥ 'श्री अम्बिकायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति कहेवी । M adhe C थाल de| १८३ ।। Gan ब Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। १८४ ।। अम्बाबालाङ्कितङ्कासौ, सौख्य ख्यातिं ददातु नः । माणिक्य रत्नालङ्कार - चित्रसिंहासनस्थिता ||७|| 'अच्छुत्ताए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थकही एक नवकारनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति कवी । चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वराना भद्रं करोतु सङ्घस्याच्छुप्ता तुरगवाहना ||८|| ‘खित्तदेवयाए’ करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति कवी । यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया, साक्षेत्र देवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी || ९ || 'समस्त वेयावच्चगराणं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थकही एक नवकारनो काउसग्ग करी 'नमोऽर्हत्' कही स्तुति कहेवी । सङ्घेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधौ सुवैया - वृत्यादिकृत्यकरणौक निबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरिभिः, सहदृष्ट्यो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ||१०|| 'नवकारनमुत्थुणंजावंति जावंतके नमोऽर्हत् कही निम्न स्तवन बोलवु ॐ मिति नमो भगवओऽरिहंत सिद्दायरिय उवज्झाए । वरसव्वसाहुसुसंघ - धम्मतित्थप्पवयणस्स ||१|| सप्पणवनमो तह, भगवई सुअदेवयाए सुहयाए । सिवसंतिदेवयाए, सिवपवयणदेवयाणं तु ||२|| इंदागणिजमनेरइय-वरुणवाज कुबेरईसाणा । बंभो नागुत्तिदसण्ह-मविय सुदिसाणपालाणं ॥ ३ ॥ सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सुराइगहाण य नवहं ||४|| साहंतस्स समक्खं, मज्झमिण चैव धम्मणुठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणार नवकार ओ घणियं ॥ ५ ॥ - ॥ अष्टमाह्निके अष्टा दश अभिपेक विधि ॥ ।। १८४ ।। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ || अष्टमाहिके अष्टा दश अभि षेक विधि ॥ १८५ ।। पछी जयवीयराय संपूर्ण कहेवा. ए पछी मूलनायक बिंबनुं नामस्थापन करवू, कुंकुमनां छांटणां करवां. पत्रदान आप_ अने ते पछी नीचेनी विधिधी प्रतिमाने वस्त्राभूषणोथी अलंकृत करी नैवेद्य चढाव. चञ्चच्चारुशुचिप्ररोहविसरप्रद्योतिताशामुखे, दिव्यश्रीकदिवाकरद्युतिभरादालुप्तदृग्गोचरे । निर्मूल्ये विशुची शुचौ जिनमहे दिव्यैकदेवाङ्गना-नीतैराभरणैरलंकृतमहो देहे दधे वाससी ॥९॥ ॐ हाँ ह्रीं परमअर्हते वस्त्राभरणैरर्चयामीति स्वाहा । आ काव्य तथा मंत्र भणीने प्रतिमाने आभूषण पहेरावां, वस्त्रयुगल चढाववू, अने सज्जैः प्राज्याज्ययुक्तैः परिमलबहुलैर्मोदकैर्मिश्रिखण्डैः, खाद्याद्यैर्लापनश्रीधृतवरपृथुलापूपसारैरुदारैः । स्निग्धांधोभिनितान्तं चरुभिरभिनवैः कर्मवल्लीपुठारान, चापे(येः)निर्मायधुर्पान्सुरनरमहितानत्रयेदर्हदयान् ॥१॥ ॐ हाँ ही परमअर्हते नैवेद्यनार्चयामीति स्वाहा । आम काव्य सहित मंत्र भणीने नैवेद्य चढाव, अने बलिवाकुला उछालवा ।। इति अभिषेकविधि ॥ ||॥ १८५ ॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण कलिका |॥ नवमाहिके दीक्षाकल्याणकअधिवासना विधि ।। सभा ॥ १८६ का (९) नवमाह्निकम् । दीक्षाकल्याणकोत्सव अने अधिवासना - आह्निकबीजकम् । अथोपनयनं लेख-शालायां समहोत्सवम् । जिनस्य शिशुच्छात्राणां, कृते नाना सुखादिका ॥१२१॥ पाठोपकरणं चापि, पट्टिकापुस्तकादिकम् । प्रदेयं छात्रवर्गाय, गुडधानादिकं तथा ॥१२२॥ जिनं यौवनसंप्राप्तं, मत्वा लोकैपणां विदन् । प्रवाह-मंगलं कुर्या-ल्लोकरीतिमनुस्मरन् ॥१२३॥ विज्ञः स्नात्रकरं श्राद्धो, निजेन वामपाणिना । जिनस्य दक्षिणं पाणिं, समादाय समर्चयेत् ॥१२४।। श्रीखण्डकुङ्कुमद्रवैः, सर्वाङ्गं श्रीजिनेशितुः । धेनुपमाञ्जलिमुद्रा-त्रिकं कृत्वा गुरुस्तदा ॥१२५।। अधिवासनमन्त्रेणा-भिमन्य कङ्कणोच्चयम् । सव्यं करं जिनेशानां, कुर्यात्कङ्कणभूषितम् ॥१२६।। मुक्ताशुक्तिचक्रमुद्रा-पूर्वं स्पृष्ट्वा जिनेश्वरम् । मस्तके स्कन्धयोर्जान्वो-स्ततश्च धूपमुक्षिपेत् ॥१२७।। गुरुश्च परमेष्ठ्याख्य-मुद्रयाऽऽहूय श्रीजिनम् । त्रिरधिवासयेद् मन्त्रः, पश्चाद्वासानपि क्षिपेत् ॥१२८॥ सदशं धूपवासादि-वासितं वस्त्रमक्षतम् । समारोप्य जिने सप्त-धान्यस्नानं प्रकारयेत् ॥१२९॥ कार्यं प्रोक्षणकं स्त्रीभिः, सुवर्णदानपूर्वकम् । भोगसामग्रिकामग्रे, ढौकयेल्लोकदुर्लभाम् ॥१३०॥ सर्वेषां जिनबिम्बानां, हस्तेषु हस्तलेपनम् । प्रियंगु-रोचनाचन्द्र-संभवं तनुयात् सुधीः ॥१३१॥ षष्ठ्यधिका च त्रिशती, क्रयाणकसमुद्भवा । जिनहस्ते प्रदातव्या, सर्वसंप्राप्तिसूचिका ॥१३२॥ C For Private & Personal use only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S न || नवमा ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ जाहिके दीक्षा कल्याणक- अधिवासना विधि ॥ ॥ १८७॥ ग्रहानाय तेभ्यश्च-बलिभाण्डोपढौकनम् । विधाय तोरणोपेतां, वरां चतुरिकां न्यसेत् ।।१३३।। तत्र भद्रासनं न्यस्य, प्रतिमामुपवेशयेत् । पार्श्वे स्वर्णघटं न्यस्य, न्यसेद्दीपचतुष्टयम् ॥१३४।। बलिपात्राणि संढौक्य, ततः कोणचतुष्टये । चतुरो घटकान् श्वेतान्, स्थापयेत् कङ्कणान्वितान् ॥१३५॥ ततोऽधिरोपयेद् वस्त्रं, वासितं वासचन्दनैः । मन्त्रपूर्वं ततो भोग-सामग्रीमुपढौकयेत् ॥१३६।। राज्यारोहसमारोहः, कर्तव्यस्तिलकादिकः । दीक्षाकल्याणकं पश्चा-द्यथायुक्ति प्रदर्शयेत् ॥१३७।। चैत्यवन्दनमाधाय, ततोऽधिवासनादिकाः । स्मर्तव्या देवताः कायो-त्सर्ग-स्तुतिकदम्बकैः ॥१३८॥ हवे प्रथम जिनने निशाले मोकलवानो उत्सव करवो, त्यां निशालिआ बालको माटे अनेक प्रकारनी सुखडी तथा पाटी, पुस्तकादि भणबाना उपकरणो साथे लेवां, अने छात्रोने वहेंचवां, छोकराओने गोल धाणा आदि आप_.. जिननी यौवनावस्था कल्पीने लोकेषणाना ज्ञाता विधिकारे लोकरीति प्रमाणे विवाह-मंगलनु निदर्शन करावg, विद्वान् स्नात्रकार श्रावके पोताना डाबा हाथ बडे जिननो जमणो हाथ पकडीने सुखड केसरना घोल वडे जिनना सर्वांगे पूजन करवू. गुरुए धेनु, पद्म अने अंजलि, ए त्रण मुद्राओ देखाडवी, अने अधिवासना मंत्रे करी कंकणो मंत्रीने बधी नव्य जिन प्रतिमाओना जमणा हाथे १-१ कंकण बांधवू. मुक्ताशुक्ति मुद्रा देखाडी चक्रमुद्राए मस्तक, बे स्कन्ध, अने बे जानुनो स्पर्श करबो तथा (श्रावके) धूप उखेवबो अने गुरुए परमेष्ठिमुद्राए जिन- आह्वान करवू. गुरुए त्रण वार अधिवासना मंत्र वडे अधिवासना करी बिंबना मस्तके वासक्षेप करवो, दशाओ सहित अखंड वस्त्रने धूप वासादिके अभिवासित करी ओढाड, स्नात्रकारे ते पछी सात धान्य वडे प्रतिमाने स्नान कराव. ४ अथवा ८ स्वीओए सुवर्ण- दान आपवा पूर्वक पोखणुं करवू, स्नात्रकारोए जिनने आगे उत्तमोत्तम फल-नैवेद्यादि भोग सामग्री ढोबी, अने प्रियंगु, | || १८७ ।। Www.jainelibrary.org Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नवमा ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ह्रिके दीक्षाकल्याणकअधिवासना विधि ॥ ॥ १८८ | गोरोचन तथा कर्पूर वडे तैयार करेलो हस्तलेप सर्व जिन बिंबोना हाथोमा आपवो तथा सर्व पदार्थनी प्राप्ति सूचवनारां त्रणसो साठ 4 क्रयाणां जिनना हाथमां आपवां. ए पछी ग्रहोगें आह्वान करी तेमने बलिपात्र ढोवू अने तोरणो सहित चॉरी स्थापवी. चॉरीमां भद्रासन स्थापी ते उपर जिन प्रतिमाने | बेसाडवी, प्रतिमानी पासे सुवर्णनो कलश स्थापी चार मंगलदीवा स्थापवा, आगे नैवेद्य पात्रो धरीने चार खूणाओमा चार कंकण बांधेला श्वेत गाडवा स्थापवा अने वास चंदन पुष्पादिके वासित वस्त्र आरोपी मंत्रपूर्वक भोग सामग्री ढोकवी. ए पछी राज्यपदाधिरोहणना उत्सवमा राज्यतिलकादिक कराव_ अने पछी दीक्षाकल्याणकनी उजवणी युक्तिपूर्वक देखाडवी. अन्तमां चैत्यवंदन करी कायोत्सर्गो तथा स्तुतिओ द्वारा अधिवासनादि देवीओ- स्मरण कर. कृत्यविधि -- “ॐ नमो बंभीए लिवीए । ॐ हाँ हाँ परमअर्हते लेखकशालाकरणमिति स्वाहा ॥" | आ प्रमाणे मंत्रो भणीने निशालिआओने गोल-धाणा वहेंचवा, तथा लेखण, दवात, कागल, वगेरे भणवाना उपकरणो आपबां. | Ma ए पछी विवाह महोत्सव करवो. प्रतिष्टाकारक-श्राद्धे पोताना डाबा हाथे जिननो जमणो हाथ पकडी पोताना जमणा हाथे बिंबना सर्वांगे अभिमंत्रित घाटा चंदन केसर वडे विलेपन करवू, वली सर्व बिंबो प्रति फूल-धूप-वास मुकवां. प्रतिष्ठागुरुए सुरभि मुद्रा, पद्ममुद्रा अने अंजलिमुद्रा, ए त्रण मुद्राओ जिनबिंबने देखाडवी. "ॐ नमः शान्यते हुँ यूँ हूँ सः ॥" अथवा "ॐ नमो खीरासवलद्धीणं, ॐ नमो संभिन्नसोआणं, ॐ नमो ॥ १८८ ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ नवमाह्रिके दीक्षा कल्याणक- अधिवासना विधि ॥ १८९ ॥ पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विजं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ, ॐ अवतर अवतर, सोमे सोमे, कुरु | कुरु, वग्गु वग्गु, सुमिणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविले कः क्षः स्वाहा ।" आ बे अधिवासना मंत्रो पैकीना कोई एक मंत्र वडे अभिमंत्रित ऋद्धि वृद्धि सहित मीढलना कंकणो सर्व देव प्रतिमाओना हाथे बांधवा. तथा बीजा अधिवासना मंत्रथी मुक्ताशुक्तिमुद्रा, अने चक्रमुद्राए करी श्रावके बिंबना मस्तक १, स्कन्ध २, अने जानु २; आ | पांच अंगो स्पर्शवां अने धूप उखेवबो, प्रतिष्ठागुरुए परमेष्ठिमुद्राए करी वली जिनने नीचेना मंत्र बडे आह्वान करवू - ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा । बार ३ आह्वान करी आसनमुद्राए वास कर्पूरादिवडे पूजा करवी. श्रावके चंदन, फल, फूल, धूप, वास अने वासित पूजित एवं सदश वस्त्र ढांक_, ते उपर ९ नालिएर मूकवां, विचित्र फल-बलिजंभीरां-रायण-दाडिम-केलां-द्राख-खारेक-सिंघोडा-अखरोट-बदाम-कमलकाकडी-पिस्तां-प्रमुख ढोवां. पछी भगवानने फुलेके चढाववा, ४ सधवा स्त्रीओए पुखणां करवां, पुंखनारी स्वीओए सुवर्णादिक- दान आपq, घीनी आरतिमंगलदीवो करवो. पछी श्रावकोए नवकार गणीने प्रियंगु, बरास, कर्पूर, गोरोचननो बनेलो हस्तलेप सर्व बिंबोना हाथोमा करवो, अने - ॐ आदित्यसोममंगल-बुधगुरुशुक्राःशनैश्चरौ राहुः । केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु-स्वाहा । || १८९ ।। Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ॥ कल्याणकलिका. | stha ॥ नवमाहिके दीक्षाकल्याणकअधिवासना विधि ॥ ।। १९० ॥ आ श्लोक बोली पूर्वे तैयार करावी राखेल बाट, खीर, करंबो, सेव, कूर, लापसी, पुडला, वडां, भजीयां, आ ९ वानीनां पात्रो थालमां भरी आगल मूकवां. ____ पछी गेवासूत्र तथा केसरथी रंगेल पीला सूत्रना तांतणाओथी वेष्टित एवी चॉरी बांधवी, तोरण सहित मंडप करवो, तेनी नीचे सिंहासन स्थापी तेमा प्रतिमा बेसाडवी, प्रतिमानी पासे सोनानो कलश स्थापबो अने पासे घी-गोलथी भरेल ४ मंगलदीवा स्थापवा. ए पछी बाट, खीर, कंसार, घेवर, करंबो, कूर (भात), घी, मेवा, पुडी, सुखडी, एटलां वाना थालमां भरी सधवा स्त्री लावीने त्यां मूके, ओवारणां करे, धाणा अने जल मूके, ४ गाडुआ (न्हाना घडा) त्यां थापे, तेओना गलामां गेवासूत्र अने सुहाली (सांकलीमीठी सूकी पुडि)नां कांकण बांधवा अने उपर जवारानां ४ सरावलां मूकवां. पछी गुरुए शक्रस्तवे चैत्यवंदन करवू, चंदनवास धूप फूल सहित कुसुंभी वस्त्र मस्तक-मुख उपर ढांक, बिंबनी सूरिमंत्रे अभिमंत्रित वासे गुरुए अधिवासना करवी अर्थात् आचार्य सूरिमंत्र अने अन्य प्रतिष्ठापके अधिवासना मंत्र भणीने बिंबना मस्तके वासक्षेप करवो. “ॐ नमः शान्तये हुँ यूँ हूँ सः" अथवा "ॐ नमो खीरासवलद्धीणं० इत्यादि" आ बे पैकीना एक मंत्र वडे अधिवासना करवी, पछी लग्न समये ऋद्धिवृद्धि, सोपारी, केसर, चंदन हाथमा लेईने - संसारे भोगयोग्या श्री-गुहिधर्मश्च कारणम् । भोगफलसाधनार्थं, तस्माच्च करपीडनम् ॥११॥ ॐ ह्रां ह्रीं ऐं क्लीं ह्सौँ अव्यक्ताव्यक्तसंपन्नाय संसारभोगकारणाय मङ्गलार्थं पाणिपीडनमिति स्वाहा । आ श्लोक तथा मंत्र भणीने सोपारी आदि बिंबना हाथमा मूकबां, वाजिंत्रो बगाडववां, धवल मंगल गवरावां, पोडशांश होम | - करबो, टीको करचो (बिंबना भाले कुंकुमर्नु तिलक कर.) बिंबने वस्त्राभरणादिक पहेराबवां, ५ जातिना २५ लाडवा ढोवा, मेवो बहेंचवा. ।। १९० ॥ Jan Education International Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नवमा ले ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ हिके दीक्षा कल्याणकअधिवासना विधि ॥ ।। १९१ ॥ जयति जगति यस्य प्राग्भवं पुण्यमात्मो-दयविजितविपक्षं विश्वकल्याणबीजम् । सुरसरिदलाम्भोधारणाधारणीयं, बहुगुणजिननाथं स्थापयेत्पट्टभोगे ॥१॥ ॐ ह्रां ह्रीं सिंहासनछत्रचामराद्यलंकारै राज्याभिषेकोऽयं पट्टस्थापनमिती स्वाहा । आ श्लोक तथा मंत्र भणीने भगवन्तने राजपाटे बेसाडवा, राजतिलक करवू, पछी नीचे प्रमाणे दीक्षाकल्याणकनो उत्सव करवोसांवत्सरं दानवरं नराणा-माघारसारैकवचश्चरित्रम् । परं पवित्रं पुरुषं पुराणं, पदप्रकृष्टं सुगरिष्टज्येष्ठम् ॥११॥ ॐ ह्रां ह्रीं परमअर्हते जिननाथाय स्नापयामीति स्वाहा । आ श्लोक तथा मंत्र भणीने प्रभुने दीक्षा स्नान कराव_, पछी महोत्सव पूर्वक इन्द्र-इन्द्राणी प्रमुख परिवारे परिवृत दान आपतां अशोकवृक्ष नीचे जई सर्वालंकार मुक्त करी पंचमुष्टि लोच करवो अने "ॐ नमो सिद्धाणं" पाठ बोली चारित्रचक्रदधतं भुवनैकपूज्यं, स्याद्वादतोयनिधिवर्धनपूर्णचन्द्रम् । तत्त्वार्थभावपरिदर्शनबोधदीप-मैश्वर्यवर्यसुमनं विगताभिमानम् ॥२॥ निर्ग्रन्थनाथममलं कृतदर्पनाशं, सर्वाङ्गभासुरमनन्तचतुष्टयाढ्यम् । मिथ्यात्वपङ्कपरिशोषणवासरेशं, क्रोधादिदोषरहितं वरपुण्यकायम् ॥३॥ ॐ ह्रां ह्री परम अर्हते महाव्रतपश्चसमितित्रिगुप्तिधराय मनःपर्यवज्ञानाय विपुलमत्यात्मकाय जिननाथाय नमः स्वाहा। आ श्लोको तथा मंत्र बोलबो, आम दीक्षा कल्याणक उजवq. Jain Education Intern For Private & Personal use only Www.jainelibrary.org Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। १९२ ।। पछी प्रतिष्ठा गुरु चैत्यवंदन करवुं त्रण स्तुतिओ कह्या पछी “सिद्धाणं०, बुद्धाणं." कही 'अधिवासनादेवीए करेमि काउस्सग्गं, ' अन्नत्थ०, लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग, नमोऽर्हत०, कही विश्वाशेषसुवस्तुषु, मन्त्रैर्याऽजनमधिवसति वसतौ । सेमामवतरतु श्री जिनतनुमधिवासनादेवी || १ || आ स्तुति कवी. पछी सुयदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०, १ नवकारनो का०, नमोऽर्हत० स्तुति:वद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रृतसरस्वतिगमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणि, तुभ्यं नम इतीह ॥१॥ संतिदेवयाए करेमि काउस्सग्गं०, अन्नत्थ०, १ नवकारनो काउस्सग्ग, नमोऽर्हत् स्तुतिः श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयात्, श्रीमती शान्तिदेवता ॥१॥ अंबादेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नवकारनो काउस्सग्ग, नमोऽर्हत्०, स्तुतिः 8 अम्बा बालाङ्किताङ्काऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालंकार - चित्रसिंहासनस्थिता ॥ खित्तदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्० स्तुति: यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ शासनदेवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत्० स्तुति: या पाति शासनं जैनं, सद्य: प्रत्यूहनाशिनी । साभिप्रेतसमृद्धयर्थं भूयात् शासनदेवता ॥ समस्तबेयावच्चगराणं०, १ नव०नो का०, नमोऽर्हत् स्तुतिः - - - - ॥ नवमा हिके दीक्षा कल्याणकअधिवासना विधि ॥ ।। १९२ ।। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। १९३ ।। संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैयावृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरभिः, सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ।। नवकार १ प्रकट, नमुत्थुणं०, जावतिचेइयाई०, नमोऽर्हत्०, स्तवन लघुशान्ति, जयबीराय, आ प्रमाणे देववंदन करी गुरु बेसीने धारणा करे - स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु प्रसादं सुधिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् । आ अधिवासना रात्रिना समयमां थाय छे. आम नवमा दिवसे दीक्षा कल्याणनो उत्सव करवो. नव्यप्रतिष्ठापद्धतौ दशमाह्निकम् । अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि आह्निकबीजकम् स्नात्रकारकरे बध्वा-भिमन्त्र्य कङ्कणादिकम् । दिशापालान् ग्रहान् स्मृत्वा, वासपुष्पादिकैर्यजेत् ॥१३९॥ ततः श्रीशान्तिमत्रेण, मन्त्रितं दिग्बलि क्षिपेत । चैत्यानां वन्दनं कृत्वा, प्रतिष्ठादेवतां स्मरेत् ॥१४०॥ धूपपूर्वं ततो बिम्बाद, वस्त्रे दूरीकृते गुरुः । विन्यसेत् प्रतिमाङ्गेषु, मन्त्रवर्णान् पृथक् पृथक् || १४१|| जिनाह्वानं परमेष्ठि- मुद्रया त्रिर्विधाय च । तेषां शासनदेवांश्च, देव्यश्च प्रतिहारकान् ॥१४२॥ ॥ दशमा ह्निके अअ नशलाका प्रतिष्ठा विधि ॥ ।। १९३ ।। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। १९४ ।। आहूय स्थापयित्वा च संनिधाप्या जिनान्तिके । प्रतिष्ठाभेदतो बिम्ब-तले रत्नादिकं न्यसेत् ॥ १४३॥ अञ्जनं रूप्यकच्चोल स्थितं सर्पिर्मधुप्लुतम् । मन्त्रयित्वा शुभे स्थाने, रक्षणीयं प्रयत्नतः ॥ १४४ ॥ शुभे लग्ने नवमांशे, प्राप्ते स्वर्णशलाकया । नयनोन्मीलनं कुर्याद्, गुरुर्मन्त्रविधानवित् ॥ १४५ ॥ स्थैर्यं कृत्वाऽञ्जनस्याथ, मन्त्रन्यासपुरस्सरम् । वासगन्धादिनिक्षेपः, कर्तव्यो बिम्बमस्तके || १४६ ।। कार्यो मन्त्रोपदेशश्व, बिम्बवामेतरश्रुतौ । चक्रमुद्राविधानेन सर्वाङ्गस्पर्शनं तथा ॥ १४७॥ दधिपात्रं करे धृत्वा दृष्टिमार्गे विधाय च । दृष्टिदोषनिरोधाय सौभाग्यवर्धनाय च ॥ १४८ ॥ स्थैर्यसंपादनार्थाय, सौभाग्यधेनुबोधिकाः । मुद्राः संदर्श्य सौभाग्य- मन्त्रं तत्र न्यसेद् गुरुः ।। १४९ ।। रत्नसिंहासने बिम्बं निवेश्य मन्त्रपूर्वकम् । नमस्कारं पठन् सूरि-र्वासान् शिरसि निक्षिपेत् ॥ १५०॥ ततः प्रोक्षणकं कार्यं मङ्गलातोद्यपूर्वकम् । दानपूर्वं ततः पुष्प वर्षणादिकमाचरेत् ॥ १५१ ॥ निर्वाणोत्सवप्रायोग्य-स्तुतिमन्त्रपुरस्सरम् । कृत्वा स्नानविधिं पूजां वर्धापनमथाचरेत् ॥१५२॥ गन्धपुष्पादि पूजाङ्ग - मावेद्य मन्त्रपूर्वकम् । पूर्वपूजामपाकृत्य, नव्यपूजां विधापयेत् ॥ १५३ ॥ आरात्रिकादि संपाद्य, चैत्यवंदनपूर्वकम् । प्रतिष्ठादेवताकायोत्सर्गादिकं समाचरेत् || १५४ || भृताऽक्षताञ्जलिः संघ- सहितो गुरुरुच्चकैः । गाथामङ्गलमुद्घोष्य, संमुखमक्षतान् क्षिपेत ॥ १५५ ॥ प्रतिष्ठागुणगर्भं तां, गुरुः कुर्यात् सुदेषनाम् । यां श्रुत्वा भव्यात्मानोऽन्ये-पि स्युस्तत्करणेच्छवः || १५६ || ॥ दशमाह्निके अञ्ज नशलाका प्रतिष्ठा विधि ॥ ।। १९४ ।। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ।। १९५ ।। स्थापनास्थानमन्यत्र, प्रतिष्ठास्थानतो यदि । स्थापनास्थानकं गत्वा, गुरुः सज्जीकरोत्वदः ॥१५७॥ चरा चेत् प्रतिमा बिम्ब-वामाङ्गे दर्भवालुकाम् । निवेशयेदचलायां, पञ्चरत्नादिकं तथा ॥१५८।। ततो ऽधिवासनास्थानाद्, बिम्बमानीय सोत्सवम् । शुभे लग्ने भद्रपीठे, स्थापयेद् विधिपूर्वकम् ॥१५९॥ तत्रैव समये चैत्य-मस्तके कलशं न्यसेत् । ध्वजदण्डं च विधिवत्, कुर्याच्च जिनवन्दनम् ॥१६०॥ शान्तिस्तवं स्तवस्थाने, पठित्वा दिग्बलिं क्षिपेत् । स्थापनां निश्चलां कृत्वा, स्मरणसप्तकं पठेत् ॥१६॥ शान्तित्रयं भयहर-मुपसर्गहरं तथा । स्तोत्रं समवसृत्याख्यं, तिजयपहुत्तस्तवम् ॥१६२।। मुखोद्घाटनपूर्वं च, पाभृतान्युपढौकयेत् । संघभक्तिर्मार्गणानां, दानं कार्यं यथोचितम् ॥१६३॥ स्नात्रकारोना हाथे अभिमंत्रित कंकणादिक बांधी दिक्पालो तथा ग्रहोर्नु स्मरण करीने तेमने बास पुष्पादिके पूजवा, पछी शांति मंत्रथी अभिमंत्रित बलि दिशाओमां फेंकवो, देववन्दन कर. तेमा प्रतिष्ठा देवतानो काउस्सग्ग करी तेनी स्तुति कहेवी, धूप उखेबीने बिंब उपरथी वस्त्र दूर कर्या पछी गुरुए प्रतिमाना अंगोमा मन्त्र वर्णोनो न्यास करवो अने परमेष्ठिमुद्रा करी त्रण वार जिनाह्वान करीने शासनदेवो, शासनदेवीओ, अने प्रतीहारोनुं जिननी पासे आह्वान, स्थापन, तथा संनिधापन कर, प्रतिष्ठा जो चर होय तो बिंबनी नीचे वामांगे वालुका साथे डाभ अने प्रतिष्ठा स्थिर होय तो प्रतिमा नीचे पंच रत्नादिनो न्यास करवो. नेत्रांजन-जे घृत-मधुमय होय छे तेने रुपाना कच्चोलामां भरी अभिमंत्रित करीने शुभस्थाने संभालपूर्वक राखg अने शुभ लग्न अने शुभ नवमांशक आवतां मन्त्र विधानज्ञाता प्रतिष्ठागुरुए सुवर्ण शलाका वडे प्रतिमान नेत्रोन्मीलन करवू, अने मंत्रद्वारा अंजन- स्थिरीकरण करी प्रतिमाना मस्तके वासक्षेप करवो, तेना चंदन विलिप्त जमणा काने मंत्रोपदेश करवो, तथा मुद्रा करी तेना सर्वांगनो स्पर्श | भा H ॥ १९५ ॥ For Private & Personal use only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा विधि ॥ करवो, दहिं- पात्र हाथमां लई बिंबने दृष्टिगोचर करी आगल मूकबुं अने दृष्टिदोष निवारणार्थ, सौभाग्यवर्धनार्थ, तथा स्थैर्यवृध्यर्थ 'सौभाग्य, | सुरभि अने प्रवचन' आ त्रण मुद्राओ देखाडीने गुरुए जिनशरीरे सौभाग्य मंत्रनो न्यास करवो, तथा बिंबने मंत्रोच्चारण पूर्वक रत्न सिंहासने | स्थापीने प्रतिष्ठाचार्य नमस्कार मन्त्र भणतां तेना मस्तके वासक्षेप करवो. स्त्रीओए दान आपवा पूर्वक वाजिंत्र गीतोना नादपूर्वक प्रतिष्ठित प्रतिमाने पोखणां करवां अने पुष्पो वर्षावां. पछी निर्वाण कल्याणकोत्सवने योग्य स्तुति पाठ अने मंत्रोच्चारपूर्वक निर्वाण- स्नान तथा पूजन करीने पुष्पांजलि नाखीने कल्याणकारक जिनने वधावबां, गंधपुष्पादि प्रत्येक पूजांगो मंत्रपूर्वक जिन आगे निवेदन करवां अने प्रथमनी पूजा दूर करी निवेदित द्रव्यो वडे नवी पूजा करवी, आरती आदि छेल्लां कृत्यो करीने देववंदन करवू, तेमां पण प्रतिष्ठा देवतानो कायोत्सर्ग करवो तथा तेनी स्तुति कहेवी. संघ सहित गुरु अक्षतो बड़े अंजलि भरीने उच्च स्वरे मंगल गाथाओनी उद्घोषणा करे अने जिन संमुख अक्षतांजलि प्रक्षेप करे. | अन्ते गुरु संघ समक्ष प्रतिष्ठागुणगर्भित देशना करे के जेने सांभलीने बीजा पण भव्यजीवो प्रतिष्ठा कराबवाना इच्छुक बने. अधिवासना प्रतिष्ठाना स्थानथी जो बिंबनी स्थापना-प्रतिष्ठानुं स्थान भिन्न होय तो स्थापना-स्थाने जइने गुरुए आ प्रमाणे तैयारी | करवी. जो प्रतिष्ठा चर' अर्थात चल रहेवानी होय तो प्रतिमा नीचे दर्भ तथा बालुका स्थापबी अने स्थिर होय तो प्रतिमा नीचे पंचरत्न | अदिनो विन्यास आदि तैयारी करवी. ते पछी प्रतिष्ठा मंडपमांथी उत्सवपूर्वक शुभ शकुनो पूर्वक बिंबने स्थापना-स्थानके लाव, अने शुभ समयमा विधिपूर्वक भद्र पीठे (पबासन उपर) प्रतिष्ठित कर, तेज शुभ समयमा प्रासादना शिखर उपर कलश तथा ध्वजादण्डर्नु पण विधिपूर्वक आरोपण कर, अने देववंदन करवू, वंदनमां स्तवनना स्थाने अजितशान्ति कहेवी, देववंदन करीने दिपालोने बलिक्षेप करवो अने सूत्रधारना हाथे स्थापना निश्चल करावीने तेनी अगल सात स्मरणनो पाठ करवो, सात स्मरणोमां त्रण शान्ति (अजितशान्ति 00 ॥ १९६ ॥ For Private & Personal use only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थाल ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ ।। १९७ ॥ - स्तव, लघुशान्ति स्तव, अने बृहच्छान्ति) भयहर स्तव (नमिऊण) ४, उपसर्ग हर ५, समवसरण स्तोत्र ६ अने तिजयपहुत्त स्तव ७, आ स्तोत्रोनो पाठ करवो. ॥ दशमाअन्ते मुखोद्घाटन करवू, अने जिन आगल भेटो धरबी, संघनी भक्ति करवी, अने याचकदान आदि शासन प्रभावनानां कार्यो हिके अञ्जकरवां. नशलाकाकृत्यविधि - प्रतिष्ठाप्रतिष्ठा-प्रथम कंकण मिढल मरोडाफली सर्व स्नात्रकारोने बंधावबी, अने - विधि ।। शक्राग्न्यन्तकनैर्ऋतेशवरुण श्रीवायुवस्वीश्वरा-ईशानोऽब्जभवः प्रभूतफणभृद् देवा अमी सर्वतः । निघ्नन्तो दुरितानि शीघ्रमभितस्तिष्ठन्तु पूजाक्षणे, स्वस्वस्थानमनेकधा द्युतिभृतः प्रोद्यद्विकृष्टासयः ॥१९॥ आ काव्य भणीने दिक्पालोनी पुष्प-वासादिथी पूजा करवी. भानु चन्द्रं निर्मलं भूमिपुत्रं, सौम्या शान्तं देवपूज्ये सशुक्रम । शौरिं राहु केतुयुक्तं सुपुण्यैः, संशान्त्यर्थं पूजयेद् भावभक्त्या ॥१॥ आ काव्य भणीने ग्रहो उपर वास पुष्पाक्षत-चढावबां, पछी नीचेना मंत्र वडे शान्ति बलि मंत्रवो ॐ नमो भगवते अर्हते शान्तिनाथस्वामिने सकलातिशेषकमहासंपत्समन्वितात्रैलोक्यपूजिताय नमो नमः शान्तिदेवाय सर्वाऽमरसुसमूहस्वामिसंपूजिताय भुवनजनपालनोद्यताय सर्वदुरितविनाशनाय सर्वाऽशिवप्रशमनाय सर्वदुष्टग्रहभूतपिशाचशाकि- | नीमारिप्रमथनाय, नमो भगवति जये विजये अपराजिते जयन्ति जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याणमङ्गलप्रददे साधूनां शान्ति- || ॥ १९७॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. | खं० २॥ | | दशमा| हिके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ तुष्टि-पुष्टि-प्रदे स्वस्तिदे भव्यानां ऋद्धि-वृद्धि-निर्वृतिनिर्वाणजननि सत्त्वानामभयप्रदाननिरते भक्तानां शुभावहे सम्यग्दृष्टीनां धृति-रति-मति-बुद्धि-प्रदानोद्यते जिनशासननिरतानां श्रीसंपत्कीर्तियशोवर्द्धनि रोग-जल-ज्वलन-विषधर-दुष्टज्वर-व्यन्तर-राक्षसरिपु-मारी-चौरेति श्वापदोपसर्गादिभयेभ्यो रक्ष रक्ष शिवं कुरु कुरु तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु ॐ नमो नमो हाँ ह्रीं हूँ ह्रः यः क्षः ही फुट फुट् स्वाहा । आ मंत्र ३ वार भणी बलि बाकला मंत्रीने प्रतिष्ठा स्थानकेथी दशे दिशामां धूप, दीप, वास, पुष्प, अक्षत, जल सहित बलिक्षेप करवो. पछी बिंब उपर कुसुंभी वस्त्र ढांक_. गुरुए चैत्यवंदन करवू, नमुत्थुणं विगेरे स्तुति ३ कह्या पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कही प्रतिष्ठा देवयाए करेमि का०, अन्नत्थ०, लोगस्स १ चिन्तववो, नमोऽर्हत्० कही. यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिंब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥" शासनदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, नव० १ नो काउ०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः - या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्युहनाशिनी । साभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयाच्छासनदेवता ॥१॥ खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयानः सुखदायिनी ॥१॥ संतिदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०, १ नवकार, नमोऽर्हत०, स्तुतिः - श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणः । शिवशान्तिकरी भूयाच्छीमती शान्तिदेवता ॥१॥ ॥ १९८ ॥ For Private & Personal use only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ॥ १९९ ।। समस्तवेयावच्चगराणं०, १ नव० का०, नमोऽर्हत्०. स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥शा १ प्रकट नवकार कही, नमुत्थणं०, जावंति०, उवसग्गहरं०, जयवीयरायः । पछी श्राद्धे सर्वं बिम्बोने घूप उखेबवो, आच्छादित (ढांकेल) वस्त्र दूर करवू. पछी गुरु लग्न निकट आवतां उच्चश्वरे अने उच्च श्वासे बिंबने विषे आ अक्षरो स्थापे - 'हाँ' ललाटे । 'श्री' नेत्रयोः । 'ही' हृदये । 'रैं' सन्धिस्थानेषु । 'श्लौँ' प्राकारे ।। वर्णन्यास करीने बिम्ब आगल घृतपात्र मूकबुं. पछी उदयति परमात्मज्योतिरुद्योतिताशं, विषयविनययुक्तया ध्वस्तमोहान्धकारम् । शुचितरघनसारोल्लासिभिश्चन्दनौघैः, जिनपतिगुरुगन्धैश्चर्चयेद् भक्तिभृतम् ॥१॥ घातिक्षयोद्भूतविशुद्धबोध-प्रबोधिताऽशेषविशेषविज्ञान । सुरेन्द्र-नागेन्द्रनरेन्द्रवन्द्यान्, समर्चयेत् श्रीजिननायकाञः ॥२॥ ॐ ह्रां ह्रीं नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारीमहिताय इन्द्रपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय अष्टमहाप्रातिहार्यधराय आगच्छ आगच्छ स्वाहा । Jww.jainelibrary.org Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ २० ॥ परमेष्ठि मुद्राए ३ वार कही जिनाह्वान करवू, पछी - ॐ ह्रां ह्रीँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरमदेवाः तेषां प्रतिहारदेवाः शासनदेवा देव्यश्च प्रत्येक एकादश देवाः छत्रधराः, | | दशमाचामरधरा, कुण्डलधारको, सिंहासनोभयपार्श्वयोर्दीपधूपधारको, शासनयक्षौ, इमे सर्वे देवा अत्रागच्छतागच्छत, अवतरन्तु, हिके अञ्ज निशलाकाअवतरन्तु ॐ आँ क्रीँ ह्रौं नमः स्वाहा । आ मंत्रे आव्हान करवू. प्रतिष्ठाॐ हाँ हाँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरदेवास्तेषां प्रतिहारदेवाः, शासनदेवा देव्यश्च ॐ ही अत्र तिष्ठन्तु तिष्ठन्तु विधि ॥ ठः ठः स्वाहा । आ मंत्र वडे तेओनुं स्थापन करवू. ___ॐ ह्रां ह्रीँ ऋषभादिवर्द्धमानान्तास्तीर्थंकरपरमदेवास्तेषां प्रतिहारदेवाः, शासनदेवा देव्यश्च अत्र सन्निहिता भवन्तु भवन्तु वषट् । आ मंत्रे तेमनु संनिधान करवू. पछी रुपाना कचोलामा रातो सुरमो, बरास, कस्तुरी, साकर, घृत, मिश्रित करीने___ॐ हँ हाँ ही हूँ हौँ हः हाँ ह्रीँ हूँ हूँ हौँ हूः बिम्बप्रदेशे सिद्धाञ्जनाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन् ज्ञानाधिपते ज्योतिः प्रकटय प्रकटय स्वाहा । ए मंत्रे मंत्रवो । ए पछी शुभ लग्न नवांशकमां सुवर्णशलाकामां अंजन लइने - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रीं ह्रः अर्हन् अञ्जने अवतर अवतर क्यूँ हूँ केवलज्ञानज्योतिः प्रकटय प्रकटय स्वाहा । ए मंत्र करी नेत्रमा अंजन कर. ॐ हाँ ही परमार्हन केवलज्ञान-केवलदर्शनसिद्धाञ्जने स्थिरीभव हुं फट् ।' आ मंत्रे स्थिरीकरण करवू. अने M का Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ दशमाहिके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा । २०१। विधि ॥ ॐ ह्रीं सर्वज्ञाय लोकालोकप्रकाशकाय नमः स्वाहा । आ मंत्र भणीने बिंबने आरिसो देखाडवो. पछी ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये अपराजिते ॐ ह्रीं स्वाहा ।' । आ मंत्रे करी बिंबना मस्तके वासक्षेप करवो तथा प्रतिमाना जमणा काने श्रीखण्ड, कर्पूर, केसर, लगाडी आपणो जमणो हाथ उपर दइ एज मंत्रनो न्यास करवो, चक्र मुद्राए एज मंत्र भणतां प्रतिमानो सर्वांग स्पर्श करवो, दधिपात्र देखाडवू, अने घूप उखेववो. ए पछी गुरुए दृष्टि रक्षार्थ, सौभाग्यार्थ, स्थैर्यार्थ, सौभाग्य १, सुरभि २, प्रवचन ३, अंजलि ४, अने गरुड ५, ए पांच मुद्राओ सहित नीचेना मंत्रनो प्रतिमामां न्यास करवो - ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविले ॐ ह्रीं कः | क्षः स्वाहा । ए मंत्र वार ३ भणीने वास-धूप करवो. ॐ इदं रत्नमयमासनमलङ्कुर्वंतु इहोपविष्टा भव्यानवलोकयन्तु हृष्टदृष्ट्या जिनाः स्वाहा । आ मंत्र पद्म मुद्राए भणीने बिंबने समवसरणमां बेसाडबुं, समंत्राक्षर ३ नवकार कहीने वासक्षेप करवो, ३६० क्रयाणकोनो पडो | प्रतिमाना हाथमा मुकवो, ४ स्त्रिओए पुखणां करवां, स्त्रीओए यथाशक्ति सुवर्णदान देवू, आम केवल कल्याणकनो उत्सव करी पुष्पवासनी वृष्टि करवी, धूप करवो. पछी सर्वाऽपायव्यपायादधिगतविमलज्ञानमानन्दसारं, योगीन्द्रध्येयमग्यं त्रिभुवनमहितं यत्तथाव्यक्तरूपम् । नीरन्धं दर्शनायं शिवमशिवहरं छिन्नसंसारपाशम, चित्ते संचिन्तयामि प्रकटमविकट मुक्तिकान्तासुकान्तम् ॥१॥ For Private Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ।। २०२ ॥ इत्थं सिद्धं प्रसिद्ध सूरनरमहितं द्रव्य-भावाद्विकर्म- पर्यायिध्वंसलब्धाऽक्षयपुरवलसद्राज्यमानन्दरुपम् । ध्यायेद्विध्यातकर्मांशकलमविकलं सौख्यमाप्पैहिकं सत्, ब्रह्मोपेतं प्रमोदादसमसुखमयं शाश्वतं हेलयैव ॥२॥ ॐ हाँ ही परमअर्हते अष्टकर्मरहिताय सिद्धिपदं प्राप्ताय पारंगताय स्नापयामीति स्वाहा । आ कान्यो तथा मंत्र बोली प्रतिमानो अभिषेक करवो अने - 'ॐ ह्रीं अहँ सिद्धाय नमः । ' आ मंत्र भणी प्रतिमानी पूजा करवी. पछी श्रावकोए हाथमा ५.५ पुष्पो अंजलिमां लईने - च्यवन-जन्म-चारित्र-ज्ञान-निर्वाणनामके । कल्याणपञ्चके लोका- नन्दकृन्नन्दताज्जिनः ॥१॥ आ श्लोक भणी पुष्पो प्रतिमा उपर क्षेपवां. पछी स्नात्रकोए बंने हाथनी अंजलिमा गन्ध लइनेॐ ह्म्ये गन्धान् नः प्रतिच्छन्तु स्वाहा । आ मंत्र भणी गन्धथी पूजा करवी, तथा पुष्पो हाथमां लई - ॐ म्ये पुष्पाणि गृह्णन्तु स्वाहा । आ मंत्र बोली प्रतिमा उपर पुष्पो चढाववां, धूपधाणुं हाथमां लई धूप पूडी उपर नाखीॐ हम्ये धूपं भजन्तु स्वाहा । आ मंत्र बोली धूप उखवबो, कुसुमांजलि हाथमा लईनेॐ ह्म्ये सकलसत्त्वलोकमवलोकय भगवान्नवलोकय स्वाहा । आ मंत्र बोली बिम्ब सामे त्रण वार कुसुमांजलि नाखवी. पछी स्नात्रकारोए पहेला करेली सघळी पूजा दूर करी चंदन, केसर, पुष्प, वस्त्र, आभरणादि वडे नवी पूजा करवी, पहेलानुं सघलुं बलि नैवेद्य दूर करवू, अने बीजोरादिक फला, ५ जातिना ५-५ लाडवा, मेवो, मुखवास, आदि सर्व नवु चढावई, पछी लूण-पाणीनी विधिपूर्वक आरति अने मंगलदिवो करवो. G ॥ २०२ ।। ब Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दशमा ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ कहिके अञ्ज नशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ पछी प्रतिष्ठागुरुए नीचे प्रमाणे देववंदन करवू - आकाशगामित्वचतुर्मुखत्व, विश्वेश्वरत्वाऽमितवीर्यताद्याः । प्रिया हिता वागपि यत्र नित्यं, नमो नमस्तीर्थकराय तस्मै ॥१॥ देवेन्द्रवन्धमनिमेषनिसेवितांत्रिं, सत्प्रातिहार्यविभवाचितमाप्तमुख्यम् । लोकातिषायिचरितं वरितं गुणौघै- श्चिद्रुपमस्तवृजिनं हि जिनं नमामि ॥२॥ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि-दिव्यध्वनिश्चामरमासनं च । भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रमेतैर्युतं नौमि जिनेशरुपम् ॥३॥ नित्योदयं दलितमोहमहान्धकार, संसारतापहरणं शरणं गुणानाम् । नष्टाष्टकर्मकलिलं विजितान्तरारम् रुपं व्रजामि शरणं जितशीतभानोः ॥४॥ गजेन्द्रसिंहादिभयं समुद्र-संग्रामसग्निमहोदराद्याः । यतः प्रणाशं छुपयान्ति सद्यः, सदा तमचै शिवदं जिनेन्द्रम् ॥५॥ उपरनां नमस्कार काव्यो बोलीने नमुत्थुणं कही जे तीर्थंकरनी प्रतिष्ठा होय तेनी स्तुती कहेवी, बीजा 'ओमिति मन्ता' अने 'नवतत्त्वयुता' आ बे स्तुतिओ कही 'सिद्धाणं बुद्धाणं' कही, श्रीप्रतिष्ठादेवतायै करेमि काउस्सग्गं०, अन्नत्थ. कही, लोगस्स १ काउस्सग्ग करवा, नमोऽर्हत्, कही - यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जिनबिम्बं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥ आ प्रतिष्ठादेवतानी स्तुति कहेवी, पछी श्रुतदेवता १, शान्तिदेवता २, क्षेत्रदेवता ३, शासनदेवता ४, अने समस्त वेयावच्चगर ५ | ना काउस्सग्ग १-१ नवकारना करवा, नमोऽर्हत् कही नीचेनी स्तुतिओ अनुक्रमे कहेवी - AASHA MM For Private & Personal use only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | च खं० २॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ॥ २०४ ॥ १ 'वद वदति न वाग्वादिनि' । २ 'उन्मृष्ट रिष्ट दुष्ट' । ३ 'यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य' । ४ 'उपसर्गवलयविलयन'। ५ 'संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे०' । ___ आ स्तुतिओ बोली १ नवकार प्रकट कही बेसीने नमुत्थुणं०, जावंति चेइआई०, खमा०, जावंत केवि साहू, नमोऽर्हत् कहीने, | स्तवनने स्थाने शान्ति (अजितशान्ति) कहेवी, अन्ते जयवीयराय कहीने देवबंदन पूरुं करवू, पछी प्रतिष्ठागुरुए तथा श्रीसंघे अक्षतोनी अंजलिओ भरवी अने गुरुए नमोऽर्हत् कही नीचेनी मंगल-गाथाओ उच्चस्वरे बोलवी - जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोअचूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुपइट्ठ त्ति ॥१॥ जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोगस्स मज्झयारम्मि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुपइट्ठ त्ति ॥२॥ जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारम्मि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुपइट्ठ त्ति ॥३॥ जह जंबुस्स पइट्ठा, समग्गदीवाण मज्झयाम्मि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुपइट्ठ त्ति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारम्मि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुपइट्ठ त्ति ॥५॥ धम्माधम्मागास-त्थिकायमइअस्स सवलोगस्स । जह सासया पइट्ठा, एसा वि अ होउ सुपइट्ठा ॥६॥ पंचह्न वि सुपइट्ठा, परमिट्ठीणं जहा सुए भणिया । नियमा अणाइनिहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥७॥ पछी बधाए अक्षतांजलि बिंब सामे उछालवी, श्रावकोए पुष्पांजलि पण नाखबी. ए पछी प्रतिष्ठागुरुए प्रवचन मुद्राए प्रतिष्ठाफलदर्शक देशना आपबी. ab ॥ २०४ ।। For Private Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २०५ ।। प्रतिष्ठाफल देशना राया बलेण वड्ढइ, जसेण धबलेइ सयलदिसिभाए । पुण्णं वड्ढइ विउलं, सुपरट्ठा जस्स सम्मि ||१|| उवहणइ रोगमारिं, दुब्भिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे । भावेण कीरमाणा, सुपइट्ठा सयललोयस्स ||२|| जे राजाना देशमां विधिपूर्वक प्रतिष्ठा थाय छे ते राजानुं बल बधे छे, सर्व दिशा भागोने ते पोताना यशथी उज्ज्वल बनावे छे, अने त्यां विपुल पुण्यनी वृद्धि थाय छे. भावधी कराती उत्तम प्रतिष्ठा सर्वलोकना रोग तथा महामारीने दूर करे छे, दुर्भिक्ष- दुष्कालनो नाश करे छे, अने सुभिक्ष आदि शुभ भावोनी सृष्टि करे छे ।१ २ ।। जिणबिम्बपठ्ठे जे, करिति तह कारविंति भत्तीए । अणुमन्नंति पइदिणं, सव्वे सुहभाइणो हुति ||३|| दव्वं तमेव भण्णइ, जिणबिंबपगुणाइकज्जेसु । जं लग्गइ तं सहलं, दुग्गइजणणं हवाइ से ||४|| एवं नाऊण सया, जिणवरबिंबस्स कुह सुपरट्ठ । पावेह जेण जरमरण- वज्जिअं सासयं ठाणं ||५|| जेओ भक्तिथी जिनबिंबनी प्रतिष्ठा करे छे, करावे छे, अने नित्य अनुमोदना करे छे, ते सर्व सुखना भागी थाय छे, द्रव्य ते ज सफल कहेवाय के जे जिन बिंबप्रतिष्ठा आदिना कामोमां लागे छे. 'बाकीनुं धन दुर्गतिम लई जनारुं छे.' एम जाणीने सदा जिनेश्वरना बिम्बोनी उत्तम प्रतिष्ठा करो, करावो, के जेथी जरा मरण रहित शाश्वतपदने पामो ॥ ३-४-५॥ कंकण मोचनविधि - प्रथमेऽह्नि तृतीये वा, पञ्चमे सप्तमे शुभे । विद्वान् कङ्कण-मुक्त्यर्थं विधिं कुर्यादधस्तनम् || १६४ || ॥ दशमा ह्निके अञ्ज नशलाका प्रतिष्ठाविधि ॥ ।। २०५ ।। Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ del शा ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ दशमाशा ह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ । २०६ ॥ Shel योन पश्चामृतैजिनस्नानं, विधाय प्रथमं ततः । अष्टोत्तरशतघटैः, शुद्धनीरेण पूरितैः ॥१६५।। चक्रे देवेन्द्रराजैरि-त्यादि घोषपुरस्सरम् । संस्नप्य पूजयेत् प्राज्य-नैवेद्यमुपढौकयेत् ॥१६६।। दिशासु बलिमुत्क्षिप्य, कृत्वा च जिनवन्दनम् । सौभाग्यमन्त्रमारोप्य, मोचयेत् कङ्कणं करात् ॥१६७।। प्रतिष्ठाना दिवसे अथवा त्रीजे, पांचमे वा सातमे शुभ दिवसे कंकण मोचन निमित्ते विद्वान् विधिकारे नीचेनी विधि करवी. प्रथम पंचामृत वडे जिनने स्नपन करावीने, शुद्ध जले भरेला १०८ कलशोए "चक्रे देवेन्द्रराजैः" इत्यादि काव्य भणवा पूर्वक १०८ स्वच्छ जलना अभिषेक करावीने पूजा करवी, नैवेद्य ढोकवू अने दिशाओमां दिक्पालोने बलिक्षेप करवो. देवेन्द्रवदन करवू, अने सौभाग्य मंत्रन्यास करीने नमस्कार मंत्र भणतां हाथथी कंकण छोड. कृत्यविधि - प्रतिष्ठा पछी आवश्यक कार्ये तेज दिवसे कंकण छोडवानी विधि करवी. अन्यथा त्रीजे पांचमे वा सातमे शुभ दिवसे कंकण छोडवां. प्रथम प्रतिमाने नीचे प्रमाणे पञ्चामृत स्नान कराव_. पञ्चामृत स्नान - एक कलशमां शुद्ध ताजु घृत लइ “ नमोऽर्हत् सिद्धाऽऽचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" कही - घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनगात्रसंपर्कात् । तद् भगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृतसमुद्रस्य ॥१॥ आ पद्य बोलीने प्रतिमाने घृतनो अभिषेक करवो, पछी दूधनो कलश लइने 'नमोऽर्हत०' कही - य || २०६ ॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २०७ ।। दुग्धं दुग्धाम्भोघे-रुपाहृतं यत्पुरा सुरवरेन्द्रैः । तद् बलपुष्टिनिमित्तं भवतु सतां भगवदभिषेकात् ।।२।। ए पद्य कही दूधनो अभिषेक करवो, पछी दहिनो कलश लइ 'नमोऽर्हत्० ' कही - दधि मंगलाय सततं, जिनाभिषेको पयोगतोऽप्यधिकम् । भवतु भविनां शिवा ध्वनि दधिजलधेराहृतं त्रिदशैः ||३|| आ पद बोली दहिनो अभिषेक करवो, पछी सेलडीना रसनो अथवा देशी साकरना पाणीनो कलश भरी 'नमोऽर्हत्' कही - इक्षुरसोदादुपहृत, इक्षुरसः सुरवरैस्त्वदभिषेके । भवदवसदवथु भविनां जनयतु नित्यं सदानन्दम् ||४|| ए बोलीने अभिषेक करवो, पछी सर्वौषधिना जलनो कलश लई 'नमोऽर्हत्०' कही सर्वौषधीषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेके । तत्सर्वौषधिसहितं पञ्चामृतमस्तु वः सिद्धये ॥५॥ आ पद्य बोली सर्वौषधिनो अभिषेक करवो, उपर प्रमाणे पंचामृत स्नान करावीने कर्पूरना चूर्णथी अथवा गन्ध-चूर्णवडे प्रतिमानी स्निग्धता दूर करी शुद्ध जले भरेला १०८ कलशोवडे अभिषेक करवा, प्रत्येक अभिषेके - चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभिर्नृत्यन्तीभिः सुरीभिर्ललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै- र्बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपर : स्नापयाम्यत्र काले || १ || ए काव्य बोलबुं, जिन आगे फल नैवेद्य ढोबुं, अभिषेको पूर्ण थया पछी अंग लूंछी प्रतिमानी पूजा करवी, दिशाओमां भूत बलिक्षेप करवो. पछी ईर्यावही॰ पडिक्कमीने चैत्यवंदन करवुं, चैत्यवंदन मूलनायकनुं बोलवु अने स्तुति पण मूलनायकनी कहेवी, तेना अभावे चैत्यवंदन - ॥ दशमा ह्निके अञ्ज नशलाका प्रतिष्ठा विधि ॥ ॥ २० 11 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ । ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ।। ॥ २०८ ।। अने स्तुतिओ नीचे लखेला बोलवां ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्वचिन्तामणीयते । ही धरणेन्द्रवैरुट्या-पद्मादेवीयुताय ते ॥१॥ शान्ति-तुष्टि-महाष्टि-धृतिकीर्तिविधायिने । ॐ ही द्विड्व्यालवेताल-सर्वाधिव्याधिनाशिने ॥२॥ जयाऽजिताख्याविजया-ऽख्याऽपराजितयान्वितः । दिशांपालैहैर्य:-विद्यादेवीभिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् । चतुःषष्ठिसुरेन्द्रास्ते, भासन्ते छत्रचामरैः ॥४॥ श्रीशंखेश्वरमण्डन ! पार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प । चूरय दुष्टवातं, पूरय मे वाञ्छितं नाथ !॥५॥ नमुत्थणं० अरिहंत चेईआणं, बंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽहत्०, स्तुतिः - अहंस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥११॥ लोगस्स०, सब्बलोए अरिहंत०, वन्दणव०, अन्नत्थ० १ नव०, स्तुतिः - ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदद्मिश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवरदीवड्ढे०, सुअस्स०, वन्दणव०, अन्नत्थ०, १ नव० स्तुतिः - नवतत्त्वयुतात्रिपदीश्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्ति विद्या-नन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं०, कंकणछोटनार्थ-प्रतिष्ठादेवता विसर्जनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्थ०, १ लोगस्स०, सागरवरगंभीरा०, नमो०, | स्तुतिः - |॥ २०८ ।। Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ दशमाकहिके अञ्ज| नशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिंब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥४॥ श्रुतदेवतायै करेमिका०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - वद वदति न वाग्वादिनि ! भगवति ! कः श्रृतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरंगमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शान्तिदेवतायै करेमि का०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशांतिकरी भूयाच्छीमती शान्तिदेवता ॥६॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो०, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्र देवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥७॥ शासनदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो०, स्तुतिः - या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयाच्छासनदेवता ।।८।। अम्बादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - अम्बा बालाकिताङ्काऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥९॥ अच्छुप्तायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्याऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥१०॥ समस्तवेआवच्चगराणं, संति०, करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - For Private & Personal use only ॥ २०९ ॥ sow.jainelibrary.org Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ दशमाह्रिके अञ्ज| नशलाका प्रतिष्ठाविधि ॥ ।। २१० ॥ संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सहभवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥११॥ १ नवकार प्रकट कही 'नमुत्थुणं०, जावंति चेइआइ०, नमो०, स्तवनं: - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरिअउवज्झाय । वरसब्बसाहमुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥११॥ सप्पणव नमो तह भगवईइ, सुयदेवयाए सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाउकुबेरईसाणा । बंभो नागुत्तिदसण्ह-मवि अ सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्डं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणिअं ॥५॥ जयवीयराय संपूर्ण कहेवा । प्रथमेऽनि तृतिये वा, पञ्चमे सप्तमे शुभे । विद्वान् कङ्कण-मुक्त्यर्थं, विधिं कुर्यादधस्तनम् ॥१६॥ पञ्चामृतैजिनस्नानं, विधाय प्रथमं ततः । अष्टोत्तरशतघटैः, शुद्धनीरेण पूरितः ॥१६५।। चक्रे देवेन्द्रराजैरि-त्यादि घोषपुरस्सरम् । संस्नप्य पूजयेत् प्राज्य-नैवेद्यमुपढौकयेत् ॥१६६॥ दिशासु बलिमुत्क्षिप्य, कृत्वा च जिनवन्दनम् । सौभाग्यमन्त्रमारोप्य, मोचयेत् कङ्कणं करात् ॥१६७।। प्रतिष्ठाना दिवसे अथवा त्रीजे, पांचमे वा सातमे शुभ दिवसे कंकण मोचन निमित्ते विद्वान विधिकारे नीचेनी विधि करवी. बाबा For Private & Personal use only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. ॥ दशमाहिके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ।। २११ ।। प्रथम पंचामृत बडे जिनने स्नपन करावीने, शुद्ध जले भरेला १०८ कलशोए "चक्रे देवेन्द्रराजैः' इत्यादि काव्य भणवा पूर्वक १०८ | स्वच्छ जलना अभिषेक करावीने पूजा करवी, नैवेद्य ढोक, अने दिशाओमां दिक्पालोने बलिक्षेप करवो. देववन्दन करवू, अने सौभाग्य मंत्रन्यास करीने नमस्कार मंत्र भणतां हाथथी कंकण छोडवू. __कृत्यविधि - प्रतिष्ठा पछी आवश्यक कार्ये तेज दिवसे कंकण छोडवानी विधि करवी. अन्यथा त्रीजे पांचमे वा सातमे शुभ दिवसे कंकण छोडवां. प्रथम प्रतिमाने नीचे प्रमाणे पञ्चामृत स्नान करावQ. जयवीराय कहेवा. पछी सौभाग्य मुद्रावडे - "ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा ।" ___ सौभाग्यमुद्राए आ मंत्रनो बिंब उपर न्यास करी तेना हाथी सरसव पोटली, आरेठानी माला, मीढलनु कंकण, विगेरे उतारी पोताना प्रिय जनना हाथमा अथवा सधवा स्त्रीना हाथमां देवं. कंकण छोटन विधि (प्रकारान्तरेण) - बिम्बस्थापना संबन्धी कार्य पूरु कर्या पछी श्रीसंघे जन्माभिषेक कलश भणबादिक विधिपूर्वक पंचामृत स्नान करवू, नैवेद्यफलादि चढाववां, आगे अष्टमंगलनो आलेख करवो, स्नात्र पूर्ण थया पछी 'इरियावाही.' पडिक्कमीने गुरु साथे देववंदन करवू. चैत्यवंदन तथा स्तुति मूलनायकनी कहेवी, याद न होय तो चैत्यवंदन अने स्तुतिओ नन्दी क्रियानी कहेवी, चोथो काउसग्ग शान्तिनाथ आराधबा निमित्ते ‘सागरवरगंभीरा' सुधीनो करवो, ने पारीने शान्तिनाथनी स्तुति कहेवी. बीजा पण काउसग्गो नन्दीमा कराय छे तेज प्रमाणे करवा, || २११ ।। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ अने स्तुतिओ पण नन्दीनी कहेवी. स्तवनने स्थाने शान्ति (अजितशान्ति) स्तब कही 'जयवीरायः' कहेवा. ___ ए पछी खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं करूं ? इच्छं, क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्यः' १ लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग करी पारी उपर १ नोकार प्रकट पूरो कहेवो. बली खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! क्षुद्रोपद्रव उवसमावणी काउस्सग्ग करुं ! इच्छं, क्षुद्रोपद्रव उवसमावणी करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्य०, १ नोकार, १ उवस्सग्गहर, १ लोगस्स सागरवर गंभीरा सुधी, आ त्रणनो काउस्सग्ग करी पारी उपर १ नवकार प्रकट कहेवो. त्रीजी वार खमासण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! कंकणछोटनार्थ काउस्सग्ग करुं ? इच्छं, कंकणछोटनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्य०, १ नवकारनो काउस्सग्ग करयो, पारी १ नवकार प्रकट कहेवो. ए पछी सौभाग्य मंत्र भणी कंकण छोडवू, फलादिनी साथे सधवा स्त्रीने खोले मेलबुं अने विशेष प्रकारे गुरुभक्ति अने संघभक्ति |॥ दशमाहिके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ॥ ॥ २१२ ॥ थान करवी. ॥ इति कंकण छोटण विधि । ॥ २१२।। आ कंकण छोटन विधि पंदरमा सैकामां लखायेल एक प्राचीन पत्रना आधारे लखी छे. For Private & Personal use only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। यक्षय ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ॥ क्षिणी प्रतिष्ठा विधि ॥ अथ यक्षयक्षिणी-प्रतिष्ठा - "ॐy नमः" आ मंत्र ३-५-७ वार भणीने अंबिका क्षेत्रपालादि सर्व देवी देवोनी अधिवासना करवी. "ॐक्षी यूँ नमो वीराय स्वाहा" आ देवोनी प्रतिष्ठानो मंत्र छे, आ मंत्र बोलीने ३ वार बासक्षेप करी कोइ पण देवनी प्रतिष्ठा करवी.. “ॐ ह्रीं क्ष्मी स्वाहा" आ मंत्र देवीओनी प्रतिष्ठानो छे. आ मंत्र भणीने कोई पण देवीने ३ वार वासक्षेप करी तेनी प्रतिष्ठा करवी. ____ उपर प्रमाणे यक्ष-यक्षिणिओनी सामान्य प्रतिष्ठा करी ते प्रत्येकनी विशेष प्रतिष्ठा नीचेना क्रमथी करवी - १ ॐ झी गोमुखयक्षः अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी चक्रेश्वरी ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । | २ ॐ झी महायक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी अजिते ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी त्रिमुखयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी दुरितारिदेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ४ ॐ झी ईश्वरयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी कालिदेवि! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ५ ॐ झी तुम्बरुयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी महाकालीदेवी ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ६ ॐ झी कुसुमयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झीँ अच्युते देवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी मातङ्गयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी शान्ता देवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॥ २१३ ॥ For Private & Personal use only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिका. खं०२॥ ॥ यक्षयक्षिणी प्रतिष्ठा विधि ॥ ॥ २१४ ॥ ८ ॐ झी विजययक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी ज्वालादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ९ ॐ झी अजितयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी सुतारे देवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । १० ॐ झी ब्रह्मयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी अशोकादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ११ ॐ झी मनुजेश्वरयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झीँ श्रीवत्सादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी कुमारयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी प्रचण्डादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा ! ॐ झी षण्मुखयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी विजयादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । झी पातालयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा ! ॐ झी अंकुशादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । १५ ॐ झी किन्नरयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी कंदादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी गरुडयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झीँ निर्वाणीदेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । | १७ ॐ झीँ गन्धर्वयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी अच्युतादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी यक्षेन्द्र ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी धारणीदेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी कुबेरयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी वैरोट्यादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । २० ॐ झी वरुणयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २स्वाहा । ॐ झी वरदत्तादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । २१ ॐ झी भृकुटियक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झी गन्धारीदेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २१५ ।। ॐ झीँ अम्बादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झीँ पद्मावतीदेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ झीँ सिद्धायिकादेवि ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । २२ ॐ झीँ गोमेधयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । २३ ॐ झीँ पार्श्वयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । २४ ॐ झीँ मातंगयक्ष ! अवतर २ तिष्ठ २ स्वाहा । प्रत्येक यक्ष यक्षिणीनी अधिवासना-प्रतिष्ठा करीने सौभाग्य मुद्राए तेमनामां नीचे लखेल सौभाग्यमंत्रनो त्रण त्रण वार न्यास करवो “ॐ जये श्रीँ हूँ सुभद्रे इँ स्वाहा " यक्ष यक्षिणी क्षेत्रपाल माणिभद्रादि दरेक देव देवीने माटे उपर लखेल अधिवासना प्रतिष्ठा अने सौभाग्य मंत्र जाणवा. नवीन प्रतिष्ठित बिंब देवगृहे स्थापन विधि जो ते ज दिवसे प्रतिमा चैत्यमा प्रतिष्ठित करवी होय तो ते पछी नीचेनी विधि करवी - - जे स्थानमा प्रतिमा स्थापन करवी होय त्यां कुंभारना चाकनी माटी अने डाभ स्थापन करवो, उपर चन्दन केसरनो स्वस्तिक करवो अने ते उपर ३ आसन यंत्रो पैकीनुं कोइ पण यंत्र मूलनायकना आसने स्थापन करवुं, अथवा लखवुं, ते पछी सर्व दिशाओमां बलिबाकुला उछालवा. मूलनायक स्थापन करवानुं आसन स्थान ( गादी ) प्रथमथी ज द्वारना चोसठिया ५५ मा भागे बिंबनी दृष्टि आवे ते प्रमाणे निश्चित करावीने राखनुं, मुहूर्तनो समय नजीक आवता "ॐ कूर्म निजपृष्टे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा । " ॥ प्रतिष्ठा विधि ॥ ।। २१५ ।। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाल ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ आ मंत्रथी ७ वार आसन स्थान अभिमंत्रQ अने मुहूर्तना समयमां त्यां प्रतिमा स्थापन करीने - "ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा"। आ मंत्रनो प्रतिमा उपर ७ वार न्यास करीने प्रतिष्ठा-गुरुए प्रतिमा उपर वासक्षेप करवो, स्नात्रकार श्रावके चन्दन केसरथी पूजा | करवी, धूप उखेववो, सुगंधी पदार्थो चढाववां, लाभणदीवो करवो मंगलदीवो करवो. लाभणदिवाने सवा लाख चोखानो साथियो करवो, माणेकलाडु चढाववो, श्रीफल चढावबु, लूण उतार, कंकुना थापा देवा । श्री संघ सहित चैत्यवंदन करवू । गुरुमहाराजनुं मांगलिक सांभळवू । इति प्रतिष्ठा विधि ॥ || अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ ।। २१६ ॥ ॥ अथ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ प्रथम अबोट पाणी छंटावी, भूमि शुद्ध करावी, शुद्ध सधवा स्त्री पासे कुंकुमनी गोबली देवराववी, उपर चोखानो साथियो पूरावी सोपारी मुकीने, परनालियो बाजोट मांडी ते उपर चंदरओ बांधवो, पछी पूर्व या उत्तर सन्मुख ४ भगवान स्थापन करवा, बलिक्षेप करवो। पछी १०८ त्रागनी दिवेट करी बंने बाजु दीवा उपर कुण्डी २ आणि ते मांहे एके कुंडिए सधवा स्त्रीने घाटडी ओढाडी पंचामृत करावीये, शुद्ध जल, दहि, दूध, घी, सेलडीरस एटलां पंचामृत एकठा कीजे. कुंडी(गोली) उपर ॐ ह्रीं श्रीं क्षुद्रोपद्रवान् नाशय नाशयस्वाहा। गोली पासे सात स्मरण भणवा । बिजी कुंडी स्नात्रजल झीलवा सारु मांडवी, पछी देव पूजी गेवासूत्रनो कंकण बांधवू, ते पछी चार * स्तुतिए देवबांदवा, चैत्यवंदन करवू, स्तवनने ठेकाणे लघुशान्ति कहेवी, ते पछी जयवीयराय कहेवा. GUR For Private & Personal use only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S । कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शत स्नात्र विधि ॥ ।। २१७ पछी सघवा स्त्री पासे कोरो कुंभ जलथी भरावी, उपर नालियेर मेली, लाल वस्त्रे ढांकी, देव आगे मूकबो; अने पूजा शरु करवी. | जणा चार ४ पूजवा बेसे, जणा ४ उभा रही कलश ढाले, बंने तरफ जणां २ दीवामां घी सींचे, एक अगरबत्ती नो धूप करे, एक जण कलश ४ भरीने आपे. जणा ४ दशियावड वस्त्र उपर फलावलि ढोवे. बे जण चामर वींजे, तिहां गुरु गाथा ४ भणे, पाठान्तरे जण १ गाथा ४ भणे, काली बेलीथी अथवा परवालानी मालाथी १०८ पूजाओ गणवी, पूजाने अन्ते जण १ घंट वगाडे. स्नात्रनो प्रारंभ - नमोऽर्हतसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । "ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सब्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिभं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वाऽमरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासीमाणवासी अ । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए गाथा भणीने कलश ढालवा, सेवती अदिनां पुष्पोमांथी १-१ पुष्प प्रत्येक प्रतिमाने चढावे, पूजा करे, एज रीते १०८ वार गाथाओ बोली बोलीने कलश ढालवा, अने चंदन पुष्पादिवडे प्रतिमाओनी पूजा करवी, पछी देवनी वैयावच्च करवी. एटले के उष्ण जल वडे प्रतिमा उपर लागेल चीकाश उतारे, शुद्ध जलथी पखालीने विलेपन पूर्वक नैवेद्य चढावे, ४ प्रतिमाओनी आगल ४ नालियेर ढोवे, | ९ ग्रह अने १० दिक्पालोनी पूजा करे. पछी सर्व जण इरियावहि पडिक्कमीने आठे थुइए देववंदन करे अने स्तवनने ठेकाणे अजितशान्ति कहे, पछी कुसुमांजलि आदि | काला || २१७॥ For Private & Personal use only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I ॥ कल्याणकलिका. | ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र Kale विधि ।। दईने विधिपूर्वक स्नात्र करवू, अने सर्व कोइए पूजा कर्या बाद आरती मंगलदीवो प्रकटाववो. शान्ति कलश भरवानी विधि - | पखालनी कुंडीमाथी पाणीनो कलश भरवो, अने पछी ते जल बीजी कुंडीमां मोटी शान्तिना पाठ बोलवा पूर्वक अखंड धाराए लेबु, शान्ति कहे त्यां सुधी धारा चालू राखवी, कुंडी मध्ये प्रथम “ॐ ह्रीं नमः" ए मंत्र लखवो, तेने नीचे दशियावाड-अखंड वस्त्र मांडवू, कुंडीमा रूपामहोर अर्थात चोखंडो रूपैयो अथवा रूपानाणुं मूकबुं, कुंडीने गले गेवासूत्रे बांधवू, उपरथी मध्यभाग पर्यन्त | चारे बाजु लटकती एक पुष्पमाला पहेराववी. शान्ति पूरी थया पछी ए स्नात्रजल, पुष्प अने रूपैया सहित कुंडी मांथी कलशमां भरवू, कलशना मुख उपर चार बाजु ४ पान मुकी उपर नालियेर मूकी गेवासूत्रे वींटवो. अने ते कुंभ घरधणीने माथे उपडावबो, पण कुंभ भूमि उपर न मूकवो, पछी रांधेल बलि बाकुला वडे देवताओनुं विसर्जन करवू. आह्वान करतां जे प्रमाणे पाठ बोल्यो हतो तेज प्रमाणे "बलिं गृहाण २" अहीं सुधी बोलवो अने ते उपरान्त “स्वस्थानं गच्छ २ स्वाहा" एटलो वधारे बोलवो. ___ पछी चतुर्विध संघनी पूजा करे अने स्नात्रकारोने नालियेरनी प्रभावना आपे, इति अष्टोत्तरीशतस्नात्रविधि समाप्त.१.२ १. आदर्श पुस्तक १ नो लेखन कालादि सूचक अंतिम लेख-संवत १६३९ वर्षे फागुण शुदि ११ दिने लिखतं अहम्मदावादात् गणिश्री पुण्यसागर शीश गणिश्री देवसागर वाचनार्थ, श्री । २ आदर्श पुस्तक नं. २ नो लेखन कालादि सूचक अंतिम लेख-सं. १६८० वर्ष कार्तिक वदि ५ रवी वीरमग्राम पं. विमलसी लिखितं ॥ कल्याणमस्तु ।। ग्रंथाग्रं १४० ॥ २१०८ पूजामा बच्चे बच्चे समयप्रमाणे ॐ नमोऽहते परमेश्वराय चतुर्मखाय, परमाष्टिने दिकुमारी परिपूजिताय, दिव्य शरीराय, त्रैलोक्यमहिताय, देवाधिदेवाय अस्मिन् जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते, मध्यखंडे.....देशे, ......वारे .....प्रासादे श्री शांतिनाथस्वामि मंडपे, ....पुण्य निश्रायां, श्रोष्टिचर्य श्री.. ....... बृहत्शांतिस्नात्रविधि महोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुत्र श्री संघस्य च ऋद्धिं वृद्धि कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा । आ प्रमाणे श्री संघने बोलाव, । यान G याला ॥ २१८ ॥ For Private & Personal use only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ J॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २१९ ॥ । अथ श्रीशान्तिस्नात्रविधिः । प्रतिष्ठामां अथवा यात्रामा क्षुद्रोपद्रव शान्त्यर्थं अट्ठाही उत्सवनी आदिमां शान्तिधारा करवी. शुभ दिवसे विधिपूर्वक जलयात्रा करवी, जलयात्रानी विधि प्रतिष्ठाविधिथी जाणी लेबी. मुहूर्तने दिवसे प्रभाते डाम प्रमुख लांछनरहित एवा जघन्यथी चार स्नात्रिया विधिपूर्वक स्नान करे, ते आ रीते - "ॐ हीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा" । आ मंत्रथी ७ बार मंत्री जल शुद्धि करबी. ॐ ह्रीं यक्षाधिपतये नमः । आ मंत्रे ७ बार दातण मंत्रg. मंत्रित जलनी अंजलि भरी- "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामदेवाधिपते ! ममेप्सितं पूरय २ स्वाहा" आ मंत्र ७ वार बोलीने मुख धोबु. पूर्व संमुख बेसी तैल मर्दन करीने-“ॐ ही अमले विमले विमलोद्भवे सर्वतीर्थजलोपमे पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा ।" आ मंत्र ३ वार बोलीने हाथथी सर्वाङ्ग स्पर्श करे. नवां धोयेल शुद्ध वस्त्र हाथमा लइ-“ॐ ह्रीं आँ क्रौं नमः" आ मंत्रे ३ वार मंत्रीने पहेरवां. तिलकनु केसर हाथमा लइ-"ॐ आँ ह्रीं क्लौँ अर्हते नमः । आ मंत्रे ७ वार मंत्रीने केसरे तिलक करे. गेवासूत्रनो दडो लइ- “ॐ ह्रीँ अवतर २ सोमे २ कुरु २ वग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे ॐ कवलिकः क्ष स्वाहाः" ॥ २१९ ॥ www.iainelibrary.org Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २२० । आ मंत्रे मंत्री सर्व स्नात्रियाने हाथे बांधवी, एज मंत्रथी मिंढल मरडासिंगी पण मंत्रवी. ___पछी मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करवी, पूजामंत्र “ॐ ह्रीँ श्रीँ परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं, चंदनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं ८ ताम्बूलं यजामहे स्वाहा ।" ___हवे वृद्ध श्रावक सोनवाणी करीने - "ॐ ह्रीँ श्री जीराउलापार्श्वनाथाय रक्षां कुरु २ स्वाहा" आ मंत्रे ७ वार मंत्रे, पछी ७ नोकार गणीने ते जल सर्वत्र छांटे। पछी वास अक्षत अने फूल लइ . "ॐ भूर्भुवः स्वधाय स्वाहा" आ मंत्र बोली ते बडे भूमि शुद्ध करे. भूमि शुद्ध करी त्यां पूर्व अथवा उत्तर मुख पीठ मांडी तेनी "ॐ ह्रीं अर्हत्पीठाय नमः । आ मंत्र ७ वार बोली वासाक्षते 3 पूजा करे. पछी -"ॐ नमोऽर्हतेपरमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्यमहिताय अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" आ मंत्र वार ३ बोलीने शांतिनाथजीनी मूर्ति थापवी, एज प्रमाणे एकेकी प्रतिमा पंचतीर्थीनी स्थापवी, विहित प्रतिमा न होय तो बीजी जिनप्रतिमा नीचेना मंत्र वडे विहित कल्पबी, मंत्र आ प्रमाणे छे. "ॐ नमोऽर्हद्भ्यस्तीर्थंकरेभ्यो जिनेभ्योऽनाद्यनन्तेभ्यः समबलेभ्यः समकृतेभ्यः समप्रभावेभ्यः समकेवलेभ्यः समतत्त्वोपदेशेभ्यः | समपूजनेभ्यः समजल्पनेभ्यः सममत्वत्रतीर्थंकर नाम पंचदशकर्मभूमिभवस्तीर्थंकरोयोऽत्राराध्यते, सोऽत्र प्रतिमायां सन्निहितोऽस्तु" | आ मंत्रवडे जे तीर्थकरनी प्रतिमा आवश्यक होय तेनी कल्पना करवी, पछी कोरा सराबलामा सधवा स्त्रीनां हाथे गोघृत पूरावq, I ॥ २२० । For Private & Personal use only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ अष्टोत्तर | शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २२१ ॥ नीचेनो मंत्र ३ वार बोलीने दीपस्थापन करवा. "ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनदृष्टिसंपर्कात् । तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः स्वाहा ॥" पछी त्रांबानी माटली घोइ धूपीने तेमां साथियो करवो. तेना उपर ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय २ स्वाहा ।" ए मंत्र चन्दन केसरथी अथवा अष्टगंधथी लखवो. तेनां कांठे मिंढल, मरडासिंगी, समूलाडाभ सहित गेवासूत्र बांधवू अने अन्दररूपाना| अथवा पंचरत्ननी पोटली मूकबी. पंचरत्न मूकती वखते नीचेनो मंत्र बोलबो. "ॐ नानारत्नौघयुतं, सुगंधपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद् विचित्रवर्णं, मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे स्वाहा ।" “ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा" आ मंत्र ७ वार बोलीने त्रांबानी गोली प्रभुने जमणे पासे थापवी. वास फूले पूजवी. पछी घी, १ दूध २ दहि ३ साकर ४ पाणी ५ आ पांच पदार्थोनू पंचामृत तैयार करवू. "ॐ जिनबिम्बोपरि निपतद्, घृतदधिदुग्धादिभिः सुपरिपूता । गंगोदकसंमिश्रा, पंचसुधा हरतु दुरितानि स्वाहा ॥" आ मंत्रे ३ वार मंत्रीने पंचामृत माटलीमां रेडबुं, गंगादि तीर्थजल कूपादिनां पाणी जे लाग्या होय ते पण “ॐ ह्रीँ भः जलधिनदीह्रदकुंडेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मंत्रसंस्कृतैरिह बिम्बं स्नपयामि शुद्धयर्थं स्वाहा ॥" आ मंत्रे ७ वार मंत्रीने पंचामृतनी गोलीमां रेडवा, चन्दननां छांटा नांखवां, पुष्प नाखवा.. गोली उपर रेशमी अथवा सूत्राउ, पीलुं अथवा रातुं वस्त्र ढांकीने दक्ष श्रावक धूप दीप सहित माटली उपर हाथ राखी, नवकार | १ उवसग्गहर २ संतिकर ३ तिजयपहुत्त ४ नमिऊण ५ अजितशान्तिस्तव ६ भक्तामर ७ ए सात स्मरण गणे. || २२१ ।। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G था ॥ अष्टोत्तरि ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २२२ ।। C विधिपूर्वक स्नात्रपीठ उपर श्रीशान्तिनाथनी तथा ऋषभदेवनी पंचतीर्थी सिद्धचक्र संयुक्त थापी ते आगल स्वर्ण रूप्य कलश धोइ धूपी, पंचामृत भरी, श्री शान्तिनाथ-स्नात्र भणावq. पछी ४ कुमार तथा कुमारिका पवित्र वस्त्राभरणादिक पहेरी अष्टप्रकारी पूजा भणावे. “स्नात्र करतां जगतगुरु शरीरे, सकल देवे विमल कलश नीरे । आपणा कर्ममल दूर कीधा, तेणे ते विबुधा ग्रंथे प्रसिद्धा ।।१।। हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी इम आशीष भणावे । जिहां लगे सुरगिरि जंबुदीवो, अमतणा नाथ जीवाण जीवो ॥२॥ श्रीमन्मन्दरमस्तके शुचिजलैधौते सदर्भाक्षते, पीठे मुक्तिवरं निधाय रुचिरे तत्पादपुष्पसजा । इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे, मुद्राकंकणशेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ॥१॥ विश्वैश्वर्यैकवर्या स्त्रिदशपतिशिरःशेखरस्पृष्टपादाः, प्रक्षीणाऽशेषदोषाः सकलगुणगणग्रामधामान एव । जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वंद्वपूजान्विताश्री-अर्हन्तः स्नात्रकाले कलशजलभरैरेभिराप्लावयेत्तान् ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हूँः अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतौषधिभिः सहितेन षष्टिलक्षकोट्यैकप्रमाणकलशैः स्नापयामि शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरु कुरु २ । आ प्रमाणे मंत्र बोलीने स्नात्र करवू. इति जल पूजा ॥१॥ था 26 था Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 98 ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि । ॥ २२३ जिनतनु चरचता सकल नाकी, कहे कुग्रह उष्णता आज थाकी । सफल अनिमेषता आज माकी, भव्यता अमतणी आज पाकी ॥३॥ इति चन्दन पूजा ॥२॥ जगधणी पूजता विविध फूले, सुरवरा ते गणे खिण अमूले । खंत धरी मानवा जिनप पूजे, तसतणा पापसंताप धूजे ॥४॥ इति फल पूजा ।।३।। जिनगृहे वासतो धूपपूरे, मिच्छत्त दुर्गन्धता जाय दूरे । धूप जिम सहज उरध गति स्वभावे, कारका उंच गति भाव पावे ॥५॥ इति धूप पूजा ॥४॥ जे जना दीपमाला प्रकाशे, तेहथी तिमिर अज्ञान नाशे । निज घट ज्ञान ज्योति विकाशे, जेहथी जगतना भाव भासे ॥६॥ इति दीप पूजा ॥५॥ स्वस्तिक पूरतां जिनप आगे, स्वचेतसि भद्र कल्याण जागे । जन्म जरा मरणथी अशुभ भागे, नियत शिव इम रहे तास आगे ॥७॥ इति अक्षत पूजा ॥६॥ ढोकतां भोग परभाव त्यागे, भविजना निज गुण भोग मागे। हम भणी हमतणुं सरूप भुंजे, आपज्यो तातजी जगत पूजे ॥८॥ इति नैवेद्य पूजा ॥७।। फल भरे पूजतां जगतस्वामी, मनुज गति वेल होई सफल पामी । . सकल मुनि ध्येय गति भेद रंगे, ध्यावतां फल समापत्ति संगे ॥९॥ इति फल पूजा ॥८॥ ॥ २२३ ॥ क For Private & Personal use only arww.jainelibrary.org Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ २२४ ॥ अष्टप्रकारी पूजा करी पछी प्रभुने जमणे पासे श्रीशान्तिदेवीनो कुंभ-कुंभथापनानी परे थापवो, पछी त्यां ग्रहस्थापना, दिक्पालस्थापना अने नन्दावर्त साथिया प्रमुख अष्टमंगलनी स्थापना करवी. ॥ अष्टोत्तर दश दिक्पाल अने नवग्रहने पवित्र बलिबाकुल देवा, खीर १ लापसी २ वडां ३ भात ४ करंबो, ५ पुडला ६ मीठो मोलो सात शत स्नात्र धाननो खीचडो ७ (चणा १ गहुं, २ जब ३ जवार ४ लीला मग ५ चोला ६ अडद ७ ए सात धान्य) गोघृत सेर १ बुरो खांड सेर विधि ॥ सवा, ए सर्व एकठां करीने वासक्षेपनी मुट्ठी भरी - “ॐ नमो अरिहन्ताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्बसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किन्नरकिंपुरिसमहोरग, गरुलसिद्धगंधब्वजक्खरक्खसपिसायभूयपेयसाइणीडाइणीपभिईओ जिणघरनिवासिणो नियनियनिलयठिआ पविआरिणो संनिहिआ असंनिहिआ ते सव्वे इमं विलेवणधूवपुप्फफलपईवसणाहं बलिं पडिच्छन्ता तुट्टिकरा भवंतु, पुट्ठि-सिवंकरा भवंतु, संतिकरा भवंतु, सुत्थं जणं कुणंतु, सम्वजिणाणं संनिहाणप्पहावओ पसन्नभावत्तणेणं सन्वत्थरक्खं कुणंतु सब्वत्थ दुरिआणि नासेन्तु सब्बासिवभुवसमेंतु संतितुट्ठिपुट्ठिसिवसुत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा ॥" al ए भूत बलि मंत्र वार ३ भणी वासमुट्ठि बलि उपर वेरवी. पंचवर्णां फूल वेरवां, ते पछी कलश १ चंदन २ फूल ३ धूप ४ दीप | ५ वास चोखा ६ आरीसो ७ चामर ८ घण्ट ९ थालीवेलण १० बलिभाजनघर ११ अने पाठ बोलनार १२ ए १२ जण शुद्ध आह्वान करे. - ॥ २२४ ॥ ॐ नम इन्द्राय पूर्व दिगधिष्ठायकाय ऐरावणवाहनाय सहस्रनेत्राय वज्रायुधाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे || For Private & Personal use only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ |॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २२५ ॥ शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ बलिं गृहाण गृहाण शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टिकरो भव, शिवंकरो भव, | स्वाहा ॥१॥ | ॐ नमोऽग्निमूर्तये शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ बलिं गृहाण गृहाण, शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥२॥ | ॐ नमो यमाय दक्षिणदिगधिष्ठायकाय महिषवाहनाय दण्डायुधाय कृष्णमूर्तये सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥३॥ ॐ नमो नित्रतये खगहस्ताय शिववाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं | गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥४॥ ॐ नमो वरुणाय पश्चिमदिगधिष्ठायकाय मकरवाहनाय पाशहस्ताय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिको भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥५॥ ॐ नमो वायवे वायवीपतये ध्वजहस्ताय हरिणवाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥६॥ व ॐ नमो धनदाय उत्तरदिगधिष्ठायकाय गदाहस्ताय नरवाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे | आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥७॥ शाल ।। २२५ ।। Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ge || कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। २२६ ।। ॐ नम ईशानाय ऐशान्यधिपतये त्रिशूलहस्ताय वृषभवाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे IN आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥८॥ || अष्टोत्तर ॐ नमो ब्रह्मणे उर्ध्वलोकाधिष्ठायकाय राजहंसवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे शत स्नात्र आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥९॥ विधि ॥ ॐ नमो नागाय पातालाधिष्ठायकाय पद्मवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥१०॥ ___ॐ नम आदित्यसोममंगल-बुधगुरुशुक्राः शनैश्चरो राहुः, केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठंतु ॥ ये केऽपि देवदेव्यो, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठंतु ॥ अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छत आगच्छत बलिं गृह्णीत गृह्णीत शान्तिकरो भवंतु, तुष्टिकरा भवंतु, पुष्टिकरा भवंतु, शिवंकरा भवन्तु स्वाहा ॥ विसर्जनना पाठमां “पूजाबलिं गृहाण २ स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा" आ प्रमाणे बोलवु. पछी सोनावाणी १ फूल २ कंकु ३ चंदन ४ हाथमा राखी वाजिंत्र पूर्वक - "ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः" पूर्वमां, “ॐ ह्रीं दिक्पालेभ्यो नमः" दक्षिणमां, "ॐ ह्रीं ग्रहेभ्यो नमः" ऊर्ध्व * दिशामां, "ॐ ह्रीं षोडशमहादेवीभ्यो नमः" पश्चिममां, “ॐ ह्रीँ श्री जिनशासनदेवीदेवेभ्यो नमः" उत्तरमां, ____ उपर प्रमाणे बोली आगे जणावेल दिशाओमां जल छांटg, फूल, कुंकुम, चन्दननी अंजलि भरी नाखवी. ॥ २२६ ॥ काल STRA N था Gue For Private & Personal use only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। २२७ ।। Jain Education Internati पछी चार कलश सुवर्ण पाणीए तथा क्षीरोदक पंचामृते भरीने शान्ति घोषणा पूर्वक उच्चरते स्नात्र करीए - यथा-‘“रोगशोकादिभिर्दोषै रजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तये तस्मै, विहितानन्तशान्तये ||१|| श्रीशान्तिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसंपदः । श्रीशान्तिदेवता देया- दशान्तिमपनीयताम् ॥२॥ अम्बा निहतडिम्बा मे, सिद्धबुद्धसमन्विता । सिते सिंहे स्थिता गौरी, वितनोतु समीहितम् ||३|| धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा । क्षुद्रोपद्रवतः सा मां पातु फुल्लत्फणावली ॥४॥ चंचचक्रधरा चारु- प्रवालदलदीधितिः । चिरं चक्रेश्वरी देवी, नन्दतादवताच्च माम् ||५|| खङ्गखेटककोदण्ड-बाणपाणी तडिद्युतिः । तुरंगगमनाऽछुप्ता, कल्याणानि करोतु मे ॥६॥ मथुरापुरीसपार्श्व-सुपार्श्वस्तू परक्षिका । श्रीकुबेरा नरारूढा, सुताङ्काऽवतु वो भयात् ॥७॥ ब्रह्मशान्तिः स मां पाया-दपायाद्वीरसेवकः । श्रीमद्वीरपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा ॥८॥ श्रीशक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंस्थिताः । देवीदेवास्तदन्येऽपि, संघं रक्षन्त्वपायतः || ९ || श्रीमद्विमानमारूढा, यक्षमातंगसंगता । सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषुधारिणी ॥ १०" त्यार पछी गेवासूत्रनो एकवीस तारनो दोरो करी, तेने फूल गुंथणीये नवकार १ उवस्सग्गहर २ लोगस्स ३ ए त्रणथी सातार मंत्रीने देहरा उपर तथा घर उपर वींटवो, तथा गाम कोटे वटवो. पछी वज्रपंजर करी अष्टप्रकारी पूजानो सामान मेलवी, एकसो आठ नालनो कलश क्षीरोदक- पंचामृते भरी ४ तथा ८ कलशे करी ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २२७ ।। jainelibrary.org Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ २२८ ॥ शुभश्रावक स्नात्र करे. “ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" ए पाठ प्रत्येक अभिषेक आदिमां बोलीने पछी गाथाओ बोली | स्नात्र (अभिषेक) करे. स्नात्रनो प्रारंभ - ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ शान्तिं शान्तिनिशान्तं, शान्तं शान्ताऽशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मंत्रपदैः शान्तये स्तौमि ह्रीं स्वाहा ॥१॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः असियाउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा ।" ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संति थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमिइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासीविमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ शांतिस्नात्र जो शान्तिक रूप होय तो उपरनो पाठ बोलीने अभिषेक करचो पण ते पौष्टिक रूप होय तो उपरनो पाठ बोल्या पछी उपर - || २२८ ।। के www.iainelibrary.org Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २२९ ।। “ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीरायत्रैलोक्यमहिताय अमुकग्रामे अमुकस्थाने शांतिस्नात्रोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च ऋद्धिं वृद्धिं कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा ।" आ पाठ बोल्या पछी पहेलो अभिषेक करवो ॥१॥ २- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ओमिति निश्चितवचसे, नमो नमो भगवतेऽर्हते पूजाम् । शान्तिजिनाय जयवते यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ह्रीँ स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे, स्वाहा ॥१॥ ॐ रोग जलजलणविसहर-चोरारिमिइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ||२|| ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ||३|| ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा || ४ | एम भणीने (बीजो) अभिषेक करवो ||२|| ३ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सकलातिशेषकमहा-संपत्तिसमन्विताय शस्याय । त्रैलोक्यपूजिताय च नमो नमः शांतिदेवाय ह्रीँ स्वाहा || ३ || ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ ह्रौं ह्रः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २२९ ।। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ C ॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र का विधि ॥ SHA २३० ॥ अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्बभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे, स्वाहा ॥१॥ ॐ रोग जलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सव्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविद्रुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ एम भणी (त्रीजो) अभिषेक करवो ॥३॥ ४ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सर्वामरसुसमूह-स्वामिकसंपूजिताय न जिताय । भुवनजनपालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ह्रीं स्वाहा ।। ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे, स्वाहा ॥१॥ ॐ रोग जलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सब्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविद्रुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सञ्चाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए बोलीने चोथो अभिषेक करवो ॥४॥ || २३० ॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २३१ ।। ५- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सर्वदुरितौघनाशन-कराय सर्वाऽशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच - शाकिनीनां प्रमथनाय ह्रीं स्वाहा || ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ हूँ हूँ असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिंकरं, संतिष्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे, स्वाहा ||१|| ॐ रोग जलजलणविसहर- चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ||२|| ॐ वरकणयसंखविदुम- मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा || ३ || ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| ए बोलीने पांचमो अभिषेक करवो ||५|| ६- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ यस्येति नाममंत्र - प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुते जनहित मिति च नुता नमत तं शान्तिं ह्रीँ स्वाहा ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीं हूँ असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्ह नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे, स्वाहा ||१|| ॐ रोग जलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ||२|| ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २३१ ।। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । अष्टोत्तरि ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २३२ ॥ ॐ वरकणयसंखविद्रुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए बोलीने छट्ठो अभिषेक करवो ॥६॥ ७-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।। ॐ भवतु नमस्ते भगवति; विजये सुजये परापरैरजिते । अपराजिते जगत्यां, जयतीति जयावहे भवती ॥७॥ ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हाँ हूँ हैं ह्रौं हूँः असिआउमा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संति संतिकर, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संत विहेउ मे स्वाहा ॥११॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सब्बामरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणबइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सच्चे उबसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ प्रमाणे बोलीने सातमो अभिषेक करवो ॥७॥ ८ नमोऽहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सर्वस्याऽपि च संघस्य, भद्रकल्याणमंगलप्रददे । साधूनां च सदाशिव-सुतुष्टिपुष्टिप्रद जीयाः ॥८॥ ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ही हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते || २३२ ।। For Private & Personal use only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २३३ ।। नमः स्वाहा। ॐ तं संतिं संतिकरं, सतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विउ मे स्वाहा ||१|| ॐ रोगजलजलणविसहर - चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ||२|| ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सब्वामरपूइयं वंदे स्वाहा || ३ || ॐ भवणवइ-वाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| आम बोलीने आठमो अभिषेक करवो ||८|| ९- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ भव्यानां कृतसिद्धे, निर्वृतिनिर्वाणजननि ! सत्त्वानाम् ! अभयप्रदाननिरते !, नमोऽस्तु स्वस्तिप्रदे ! तुभ्यम् ||९|| ह्रीं स्वाहा ! ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीं हूँ हूँ हूँ हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, सतिष्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ||१|| ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि तणेण पसमति सव्वाई स्वाहा ||२|| ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ||३|| ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ एम बोलीने नवमो अभिषेक करवो || ९ || ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २३३ ।। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरि ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २३४ ॥ १०-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ भक्तानां जन्तूनां, शुभावहे ! नित्यमुद्यते ! देवि !। सम्यग्दृष्टीनां धृति-रतिमतिबुद्धिप्रदानाय ॥१०॥ ह्रीं स्वाहा ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्बाई स्वाहा ॥२॥ ॐ बरकणय संखविद्रुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सञ्चामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइ वाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुठ्ठदेवा, ते सव्वे उबसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ बोलीने दसमो अभिषेक करवो ॥१०॥ ११-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ जिनशासननिरताना, शान्तिनतानां च जगति जनतानाम् । श्रीसंपत्कीर्तियशो-वर्द्धिनि ! जयदेवि ! विजयस्व !॥ १शा ही स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं संतिण्णं सब्वभया ! संतिं थुणामि जिणं, संतिं बिहेउ मे स्वाहा ॥११॥ ॥ २३४ ॥ For Private & Personal use only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका, खं० २ ।। ।। २३५ ।। ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ||२| ॐ वरकणय संखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ||३|| ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| १२- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सलिलाऽनलविषविषधर- दुष्टग्रहराजरोगरणभयतः । राक्षसरिपुगणमारी - चौरेतिश्वापदादिभ्यः || १२|| ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ हूँ हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्ह नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं संतिण्णं सव्वभया । संति थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ||१|| ॐ रोगजलजलणविसहर- चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा || ३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि ते सव्वे दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| आ बोलीने बारमो अभिषेक करवो ||१२|| १३- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शांतिं च कुरु कुरु सदेति । तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु स्वस्तिं च कुरु कुरु त्वं ॥ १३ ॥ ह्रीं स्वाहा । ॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ ।। २३५ ।। w.jainelibrary.org Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं०२॥ ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते * नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं संतिण्णं सब्बभया । संतिं थुणामि जिणं संतिं बिहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइमाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ बोलीने तेरमो अभिषेक करवो ॥१३॥ १४-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ भगवति गुणवति शिवशांति-तुष्टि पुष्टि स्वस्तीह कुरु २ जनानां । ओमिति नमोनमो हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रीं ह्रः यः क्षः ही फट् | | २ स्वाहा ॥१४॥ ही स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ: असिआउसा त्रैलाक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकर, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्बाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखबिदुम-मरगय घणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ For Private & Personal use only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । ॥ अष्टोत्तर शत स्नान विधि ॥ ।। २३७ ।। ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासि विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए बोलीने चौदमो अभिषेक करवो ॥१४॥ १५-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । एवं यन्नामक्षर-पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी । कुरुते शान्तिं नमतां, नमो नमः शान्तये तस्मै ॥१५॥ ही स्वाहा ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हां ही हूँ हैं ह्रौं हुः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | नमः स्वाहा। ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोग जलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा ते सब्चे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आम बोली पंदरमो अभिषेक करवो ॥१५॥ १६-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ इति पूर्वसूरिदर्शित-मंत्रपदविदर्भितः स्तवः शान्तेः । सलिलादिभयविनाशी, शान्त्यादिकरश्च भक्तिमताम् ॥१६॥ ह्रीं स्वाहा ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | नमः स्वाहा । GMA G ॥ २३७ ।। ' Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरि ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २३८ । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्बभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे, स्वाहा ॥शा ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइन्दगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविममरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सब्बामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्टदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए बोलीने सोलमो अभिषेक करवो ॥१६॥ १७-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ यश्चैनं पठति सदा शृणोति भावयति वा यथायोगम् स हि शांतिपदं यायात्, सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥ ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा। ॐ तं संति संतिकर, संतिण्णं सच्चभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥शा ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ।।२।। ॐ वरकणयसंखविद्रुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सब्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतरजोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उबसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए बोलीने सत्तरमो अभिषेक करवो ॥१७॥ १८. नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । || २३८ ॥ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ Aathi का ॥ २३९ ।। S ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संतिसामि पायाणम् । झौं स्वाहा मंतेण सञ्चासिवदुरिअहरणाणं ॥१८॥ ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | ana|| अष्टोत्तर नमः स्वाहा । शत स्नात्र ॐ तं संतिं संतिकरं संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं संति विहेउ मे, स्वाहा ॥११॥ विधि ॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविद्म-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सच्चामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणबासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उनसमंतु मम स्वाहा ।।४।। आम बोलीने अढारमो अभिषेक करवो ॥१८॥ १९-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः। ॐ संतिं नमुकारो खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं । साँ ही नमो सवोसहि-पत्ताणं च देइ सिरिं ॥१९।। ह्रीं स्वाहा ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हाँ हूँ हैं ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सवभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमईदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखबिम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वामरपूइयं बन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ G GI थान dhe C थान For Private & Personal use only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ||॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २४० ॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सच्चे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ बोलीने ओगणीसमो अभिषेक करवो ।।१९।। २०-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ पणवीसा य असीआ, पनरसपन्नासजिनवरसमूहो । नासेउ सयलदुरिअं, भविआणं भत्तिजुत्ताणं ॥२०॥ ह्रीं स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हां ही हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्बाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविद्म-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्बामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ बोलीने वीसमो अभिषेक करवो ॥२०॥ २१-नर्मोऽहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ वीसा पणयालाविय, तीसा पन्नत्तरी जिणवरिंदा । गहभूअरक्खसाइणी-घोरुबसग्गं पणासंतु ॥२१॥ ह्रीं स्वाहा ।।। ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । || २४० ॥ கம் Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। २४१ ।। Jain Education Internationa ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ||१|| ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा || २ || ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा || ३ || ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| ए एकवीसमो अभिषेक ||२१|| २२-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ सित्तरि पणतीसा विअ, सट्ठी पंचैव जिणगणो एसो । वाहिजलजलणहरिकरि - चोरारिमहाभयं हरउ ||२२|| ह्रीँ स्वाहा || ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रीं ह्रीँ हूँ हूँ हूँ हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा || १ || ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा || २ || ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा || ३ || ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ||४|| इति बावीसमो अभिषेक ||२२|| २३- नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २४१ ।। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २४२ ॥ ॐ पणपन्ना य दसेव य, पन्नट्ठि तह य चेव चालीसा । रक्खन्तु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिद्धा ।।२३।। ह्रीं स्वाहाः। ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संति संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविठ्म-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ आ तेवीसमो अभिषेक ॥२३॥ २४ नमोऽहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ श्रीमते शांतिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्याऽमराधीश-मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये २४ ही स्वाहा । ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥११॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३।। || २४२ ॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ यान ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ॥ कल्याण ए चोवीसमो अभिषेक ॥२४॥ कलिका. २५-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । खं० २॥al ॐ शांतिः शान्तिकरः श्रीमान् शांतिं दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शांतिगृहे गृहे ॥२५॥ ही स्वाहा ।। ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | ॥ २४३ ॥ नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं धुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वामरपूइयं बन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए पचीसमो अभिषेक ॥२५॥ २६-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।। ॐ उन्मृष्टरिष्टदुष्ट-ग्रहगतिदुःस्वप्नदुनिमित्तादि । संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥२६॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | नमः स्वाहा । थाना शा AMATA ||२४३ ।। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तर ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शत स्नात्र विधि । ।। २४४ ।। ॐ तं संति संतिकरं, संतिण्णं सब्बभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाइं । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखबिद्म-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सञ्चामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्चे उबसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए छब्बीसमो अभिषेक ॥२६॥ २७-नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ श्रीसंघजगजनपद-राज्याधिपराज्यसंनिवेशानां । गोष्ठीपुरमुख्यानां, व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् ॥२७॥ ही स्वाहा ।। ॐ श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु । ॐ श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु । ॐ श्रीराज्याधिपानां शान्तिर्भवतु । ॐ श्रीराज्यसंनिवेशानां शान्तिर्भवतु । ॐ श्रीगौष्ठिकानां शान्तिर्भवतु । ॐ श्रीपुरमुख्यानां शान्तिर्भवतु । ॐ श्री पौरजनस्य शान्तिर्भवतु । ॐ श्री ब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु । ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा । ॐ नमो तुह दसणेण सामिअ, पणासए रोगसोगदोहग्गं । कप्पदुमेव जायइ, तुह दंसणं, सम्मफलहेउ स्वाहा ॥ ॐ नम एव पणवसहियं, मायाबीएण धरणनागिंदं । सिरिकामराज कलियं, पासजिणिंदं नमसामि स्वाहा ।। ॐ अद्वैव य अट्ठसया, अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ । रक्खन्तु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिद्धा ह्रीं स्वाहा । ॐ धंभेइ जलं जलणं, चिंतियमित्तो पंचनमुक्कारो । अरिमारिचोरराउल-घोरुवसग्गं मम निवारेउ स्वाहा ।। ॥ २४४ ।। CHES Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाल Gal ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ | अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ।। EMA ॐक्षेमं भवतु सुभिक्षं, सस्यं निप्पद्यतां जयतु धर्मः । शाम्यन्तु सर्वरोगा, ये केचिदुपद्रवा लोके ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते | नमः स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाइं स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सव्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय अस्मिन् जंबूद्वीपे, दक्षिणभरते, मध्यखण्डे, अमुकदेशे, अमुकनगरे, अमुकगृहे बृहत्स्नात्रे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च ऋद्धिं वृद्धिं कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ए मंत्र भणीने सत्तावीसमो अभिषेक करवो । पछी स्नात्र करी अष्ट प्रकारी विशेष पूजा करवी, अने आरती मंगलदीवो करीने नैवेद्य ढोकबुं, पछी मुहपत्ति लेइने देव बांदवा। इरियावही पडिक्कमी काउसग्ग करी उपर लोगस्स कहे. खमासमण देइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन्-चैत्यवंदन करूं. इच्छं कही "ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिन्तामणीयते' इत्यादि चैत्यवंदन कही, नमुत्थुणं अरिहन्ताणंचेइयाणं. १ नवकारनो काउसग्ग करवो. नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । न ।। २४५ ॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ।। ।। २४६ ।। अर्हंस्तनोतु सः श्रेयः श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि रंहसा सहसौच्यत ॥ १ ॥ लोगस्स० सव्वलोए० १ नवकारनो काउसरग | ओमिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंहिँश्च । आश्रीयते श्रिया ते भवतो भवतो जिनाः पान्तु ||२|| पुक्खरखरवदी० वंदण० १ नवकारनो काउसग्ग । नवतत्त्वयुता त्रिपदी - श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दास्याजैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बु० श्री शांतिनाथ आराधना ० वंदणवत्तिया० १ लोगस्सनो काउसग्ग० नमोऽर्हत्सिद्धा० श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशांतिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने || ४ || श्रीद्वादृशांगी आराध० वंदण० १ नवकारनो का० नमोऽर्हत्सिद्धाः 1 सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपांगा सदा स्फुरदुपांगा । भवतादनुपहतमहा - तमोपहा द्वादशाङ्गी वः ||५|| श्रुतदेवता आराधना० अन्नत्थ० १ नवकारनो० का० नमोऽर्हत्सि०. - - वद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वति गमेच्छुः । रंगत्तरङ्गमतिवर - तरणि स्तुभ्यं नम इतीह ||६|| शासनदेवता आ० अन्नत्थ० नमोऽर्हत्० उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥७॥ समस्तवैयावच्च० संतिग० समदिट्टिसमा अन्नत्थ० १ नवकारनो का० नमोऽर्हत० - ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २४६ ।। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरि ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शत स्नात्र विधि ॥ ॥ २४७ ॥ प संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ नमुत्थुणं. जावंति चेइया. जावतकेवि० स्तवनना स्थाने अजितशान्तिस्तब कहेवू, अन्ते जयवीयराय कहेवा, अने छेल्ला जे बलि बाकुला राख्या छे ते उछालवा. ___पछी पूर्वला कुंभ आगल बीजा ४ कुंभ दाग रहित अने सारा घाटवाला लेइने तेमां चोखा सेर ५, रूपानाणां ४, सोपारी ४, श्रीफल ४ उपर मूकी नीला पीला वस्त्रो ढांकी, गेवासूत्रे बांधीये, फूलमालाओ पहेरावी, शुद्ध श्रावक कुमारिकाओ पासे उपडावी वाजते गाजते श्रीशान्तिपीठे आवी शान्ति कलश पासे थापे, शान्तिदेवीने योग्य नैवेद्य धरीये, क्षीर १, करंबो २, बाट-लापसी ३, सुहाली ४, २१ वडा ५, पंचधारी लापसी ६, लाडवा मगदलना ९, ७ दधिपात्र. १ ए सर्वबलि नैवेद्यना पात्रो आगे ढोइये. पछी आरती मंगलदीवो करी शान्ति उद्घोषणा पूर्वक देवी देवता क्षेत्रदेवता पूजीने देववंदन कर, इरियावही पडिकमी १ लोगस्सनो का० चैत्यवंदन, नमुत्थुणं स्तवनने स्थाने संतिकरं कहेg, जयवीयराय० १ नवकारनो का० नमोर्हऽत् स्तुति, कल्लाणकन्दं, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि का० १ लोगस्सनो का० नमोऽर्हत्. यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥२॥ भवनदेवयाए करेमि काउसग्गं अन्नत्थ, १ लोगस्सनो काउसग्ग० नमोऽर्हत् स्तुति - ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥ संतिदेवयाए करेमि का० १ नवकारनो का० नमो० स्तुतिः - के ॥ २४७ ।। For Private & Personal use only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २४८ ।। श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयात्, श्रीमती शान्तिदेवता ||३|| क्षुद्रोपद्रव उपशमावणि करेमि का० अन्नत्थ० १ नवकार, १ उपसर्गहर, १ लोगस्स पूरी ए त्रणनो काउ० नमोऽर्हत्॰ स्तुतिः - सर्वे यक्षम्बिकाद्या ये, वैयावृत्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ||१|| उपर प्रकट पूरो नवकार नमुत्थुणं स्तवनने स्थाने संतिकरं, जयवीयराय. पछी म्होटी शान्तिनो पाठ बोलतां न्हवण जले करी अखंड धाराथी शांतिकलश भरी, ते उपर नालियेर मूकी, तास्तो (नीलुं या पी) वींटी सोहासण स्त्री उपाडे, बाजते गाजते गृहस्थने घेर पधरावीये, ते पछी विसर्जन करे. पछी नवण पाणी मंत्री ते कलश लेइ घरमा घरनी बाहिर बाजा वाजते धारा देवी. इति श्रीसकलचंद्रगणिकृतः श्रीशान्तिस्नात्रविधिः संपूर्णः ॥ विसर्जनम् नन्द्यावर्तस्थितं देव-गणं संपूज्य सक्रमम् । विसर्जयेत् सुरानन्यान्, दिशापालादिकानपि ॥ १६८ ॥ नन्द्यावर्त स्थित देवसमुदायने प्रथमना ज क्रम प्रमाणे वासादि वडे पूजीने विसर्जन करवा, दिक्पालादि बीजा पण जे जे देवो आमंत्रित करेला होय ते सर्वेनुं पूजा सत्कारपूर्वक विसर्जन कर. विसर्जन विधि - कुंभ स्थापन, अखंडदीपक स्थापन अने नन्द्यावर्तनो पाटलो पूर्वक्रमथी वास चन्दनादि वडे पूजीने. “ॐ विसर विसर स्वस्थानं ॥ अष्टोत्तर शत स्नात्र विधि ॥ ।। २४८ ।। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थान । तीर्थ ।। कल्याणकलिका. Go गच्छ गच्छ स्वाहा ।" ___आ मंत्र बोली अंजलि मुद्राए नन्द्यावर्तन अन्य सर्व स्थापनाओनुं विसर्जन कर, एज रीते "ॐ विसर विसर प्रतिष्ठा देवते स्वाहा" । कही ग्रह दिक्पाल आदिना पाटलाओने वासक्षेप करी - "देवा देवार्चनार्थं ये, पुराऽऽहूताश्चतुर्विधाः । ते विधायाऽर्हतां पूजा, यान्तु सर्वे यथागतम् ॥१॥" आ श्लोकथी सर्व देवोनुं विसर्जननीमुद्राए विसर्जन करवू, उपर बृहच्छांतिनो पाठ कहेवो, अने संघ भक्ति करवी.१ यात्रा खं०२॥ शान्ति कम् ॥ ।। २४९ ।। C GB श्री GES C था जा बीमा ९-तीर्थयात्रा शान्तिकम् तीर्थयात्रा प्रयाणाद्य-दिवसे यो विधीयते । जिनस्नात्रविधिस्तीर्थ-यात्रा शान्तिकमुच्यते ॥१७७।। तीर्थयात्राए निकलवाना दिवसे जे प्रयाण पूर्वे जिनस्नात्र विधि करवामां आवे छे ते "तीर्थयात्राशान्तिक" कहेवाय छे. संघ तीर्थयात्रा निमित्ते प्रयाण करे ते दिवसे प्रथम शुद्ध जल मंगावी, देहरासरमां भूमि शुद्ध करी, सिंहासन उपर श्रीशान्तिजिननी पंचतीर्थी अथवा चोवीसी स्थापी आगे श्रीसिद्धचक्रनी स्थापना करवी, अने पछी कुमारिका अने ४ स्नात्रकारोए मली कुसुमांजलि चढाववा पूर्वक शान्तिकलश भणवा पूर्वक स्नात्र पूजा भणाववी. ते पछी स्नात्रकारोए हाथमां कुंकुम, चंदन, पुष्प लेइने पूर्व सन्मुख उभा रहीने - १. कंकण मोचनी क्रिया ज प्रतिष्ठाना दिवसे ज करवानी होय तो विसर्जन विधि कंकण मोचन पछी कराववी, पण कंकण मोचन त्रीजे पांचमे के सातमे दिवसे करवानुं होय तो विसर्जन तेज दिवसे अथवा बीजे दिवसे अगाउ करी देवू. G २४९ ॥ GH T Jain Education Intentional For Private &Personal use only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | त्र ॥ तीर्थ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ यात्राशान्ति कम् ॥ ।। २५० ।। "ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः । ॐ ह्रीं दिक्पालेभ्यो नमः । ॐ ही ग्रहेभ्यो नमः । ॐ ही षोडशमहादेवीभ्यो नमः। ॐ ह्रीं जिनशासनदेवीदेवेभ्यो नमः ।" आ पाठ बोली पुष्पाञ्जलि नांखवी, एज प्रमाणे दक्षिण, पश्चिम, उत्तर दिशा संमुख उभा रहीने उपरनो पाठ बोली बोलीने पुष्पाञ्जलिओ नांखवी, केसर चंदनना च्यारे दिशाओमां छांटा नाखवां, धूप उखेबवो. ते पछी च्यार कलशिया सोनानां वर्क अने दूध युक्त पंचामृते भरीने निर्दाग अने अखंड शरीरवाला स्नात्रकारो हाथमा लेइ उभा रहे, विधिकार नीचे प्रमाणे शान्ति घोषणा करे. - "रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तये तस्मै विहितानन्तशान्तये ॥१॥ श्रीशान्तिजिनभक्ताय भन्याय सुखसंपदम् । श्रीशान्तिदेवता देया दशान्तिमपनीयते ॥२॥ अम्बा निहतडिम्बा मे सिद्धवु(शु)द्धसमन्विता । सिते सिंहे स्थिता गौरी वितनोती समीहितम् ॥३॥ धराधिपतिपत्नी या देवी पद्मावती सदा । क्षुद्रोपद्रवतः सा मां पातु फुल्लत्फणावली ॥४॥ चश्चच्चक्रधरा-चारु-प्रवालदलदीधितिः । चिरं चक्रेश्वरी देवी नन्दतादवताच्च माम् ॥५॥ खड्गखेटककोदण्ड-बाणपाणिस्तडिद्युतिः । तुरंगगमनाऽच्छुप्ता कल्याणानि करोतु मे ॥६॥ मथुरापुरी सपार्श्व सुपार्श्वस्तूपरक्षिका । श्रीकुबेरा नरारूढा सुताङ्काऽवतु वो भयात् ॥७॥ ब्रह्मशान्तिः स मां पायादपायाद् वीरसेवकः । श्रीमद्वीरपुरे सत्या येनकीर्तिः कृता निजा ॥८।। ।। २५० ।। SIA Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ तीर्थयात्राशान्तिकम् ॥ ॥ २५१॥ श्रीशक्रप्रमुखा यक्षा जिनशासनसंस्थिताः । देवदेव्यस्तदन्येऽपि संघ रक्षन्त्वपायतः ॥९॥ श्रीमद्विमानमारूढा यक्षमातङ्गसंगता । सा मां सिद्धायिका पातु चक्रचापेषुधारिणी ॥१०॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हूँः असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा ।' आ पाठ बोली अभिषेक करवो. अष्टपकारी पूजा करवी, पछी ४ अथवा ८ कलशा दूध जले भरीने स्नात्रकारो उभा रहीने नीचेनो स्नात्र पाठ भणावे. - ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संति थुणामि जिणं, संति विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविदम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं सब्वामरपूइयं वन्दे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ श्रीमन्मन्दरमस्तके शुचिजलैधौते सदर्भाक्षते । पीठे मुक्तिवरं विधाय रचितेतत्पादपुष्पम्रजा ॥ इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे । मुद्राकंकणशेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ॥२॥ विश्वेश्वर्यैकवर्या स्त्रिदशपतिशिरःशेखरस्पृष्टपादाः, प्रक्षीणाऽशेषदोषाः सकलगुणगणग्राम धामान एव । जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वन्द्वपूजान्विता श्री-अर्हन्तं स्नात्रकाले कलशजलभृतैरेभिराप्लावयेत्तम् ॥२॥ || २५१ ।। w ww.jainelibrary.org Jain Education Internationa Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॐ हाँ ही हूँ हूँ ह्रौं हूँः अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतौषधिसहितेन पष्टिलक्षाधिकैककोटिप्रमाणकलशैः स्नपयामि शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरु २ स्वाहा ।" ___आ पाठ बोली स्नात्राभिषेक करवो, वाजिंत्रनादपूर्वक अभिषेक करी अष्टविध पूजा करी आरती मंगलदीवो करवो, आगे नैवेद्य ॥ तीर्थयात्रा ढोg. शान्तिकम् ॥ ।। २५२ ॥ ए पछी इर्यावही प्रतिक्रमवा पूर्वक नीचे प्रमाणे ८ थुइए देववंदन करे. ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिन्तामणीयते । ॐ धरणेन्द्रवैरोट्या पद्मादेवीयुताय ते ॥१॥ शान्तितुष्टिमहापुष्टि-धृति कीर्तिविधायिने । ॐ ह्रीं द्विड् व्यालवेताल-सर्वाधिव्याधिनाशिने ॥२॥ जयाऽजिताऽऽख्या विजयाख्यापराजितयाऽन्वितः । दिशांपालैहैर्यक्षैर्विद्यादेवीभिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् । चतुःषष्टिः सुरेन्द्रास्ते भासन्ते छत्रचामरैः ॥४॥ श्रीशंखेश्वरमण्डन-पार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प चूरय दुष्टत्रातं, पूरय मे वाञ्छितं नाथ ॥५॥ जंकिंचि० नमुत्थुणं० अरिहंत चेइआणं. करेभि का. वंदणवत्ति० १ नवकार० नमोऽ० स्तुति - अर्हस्तनोतु स श्रेयः - श्रियं यद्ध्यनतो नरैः । अप्यन्द्री सकलाऽत्रैहि रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ लोगस्स सब्बलोए० अरिहन्त० वंदण० अन्नत्थ० १ नव० का० नो स्तुति - ओमिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंहिँश्च । आश्रीयते श्रिया ते भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवरदी• वंदण० अन्नत्थ० १ नव० स्तुति - ॥२५२ ।। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ॥ तीर्थ छ कलिका. खं०२॥ यात्राशान्तिकम् ॥ ॥ २५३ ॥ नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं० बुद्धाणं० श्रीशांन्तिनाथ आराधनार्थं करेमि का. वंदण• १ लोगस्स. नथोऽर्हत् स्तुति० - श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः अशान्तिकोसावशान्तिमुपशान्तिं । नयतु सदा यस्य पदाः सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥४॥ श्रीद्वादशाङ्गी आराधनार्थं करेमि का. वंदण० १ नव० नमो० स्तुति -- सकलार्थसिद्धिसाधनबीजोपाङ्गा सदा स्फुरदुपाङ्गा । भवतादनुपहतमहातमोपहा द्वादशाङ्गी वः ।।५।। श्रुतदेवताये करेमि का. अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - बद वदति न वाग्वादिनि भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥६॥ शासनदेवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - उपसर्गवलयविलयन-निरताजिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिहसमीहितकृते स्युः शासनदेवता भवताम् ॥७॥ समस्तवैआवच्चगराणं० सन्ति० सम्म० अन्नत्य० १ नव० नमो. स्तुति - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैयावृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्ट्यो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ नवकार पूर्ण कही बेसीने नमुत्थुणं, जावंति, अजितशान्ति स्तवन कही जयवीयराय कहेवा. ते पछी इर्यावही पडिकमी काउसग्ग १ लोगस्सनो करी उपर लोगस्स प्रकट कही खमासमण देइ क्षेत्रदेवतायै करेमि का० १ लोग० | ॥ २५३ ।। Jain Education Interational Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ तीर्थ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ यात्राशान्तिकम् ॥ नमो स्तुति - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ भवनदेवतायै करेमि० का० अन्नत्थ, १ नव० नमो. स्तुति - ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥ शान्तिदेवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ लो० नमो० स्तुति - उन्मृष्टरिष्टदुष्ट-ग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि । संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥३॥ क्षुद्रोपद्रवशमावणी करेमि का० अन्नत्थ. १ नव० १ लो० १ उवसग्ग० ए त्रणनो काउसग्ग करी नमोऽर्हत् कही स्तुति-- सर्वे यक्षाम्बिकाया ये वैयावृत्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥४॥ उपर १ नवकार पूर्ण कहेवो. ए पछी स्नात्रजल कलशोमां भरी, म्होटी त्रांबाकुंडीमा स्वस्तिक करी, बृहच्छान्तिनो अस्खलित पाठ बोलतां बे कलशो बड़े अखण्ड धाराथी त्रांबाकुंडीमां लेबु. शान्ति पूर्ण बोलाइ रहे त्यां सुधी धारा चालु राखवी. शान्तिपाठमां 'श्रीब्रह्म लोकस्य शान्तिर्भवतु' ए पछी श्री संघनायक अमुक (संघपतिनुं नाम होय तो बोलवू') स्य शान्तिर्भवतु, श्रीसंघजनस्य शान्तिर्भवतु आटलो पाठ वधारे बोलवो. शान्ति पाठ चोलीने कुंडीमां लीधेल जल मस्तके लगाडवू. ए पछी क्षीर, करंचो, बाट, पंचधारी लापसी, वडा, सुंहाली २१ मगदना लाडु २०, दहि पाब ए सर्व एक थालमां मूकी प्रभु आगल ढोवा, पछी संघ मलीने संघवीने तिलक करे. संघपति पण संघ- सन्मानसाधर्मिक वात्सल्यादिक करे. For Private Personal use only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २५५ शुभ लग्नसमयमां चन्द्रनाडीमां स्वर वहेतो होय ते वखते शुभ शकुने पोताना घरथी प्रयाण मुहूर्त करवुं. नगरनी बहार डेरा दिए त्यां नित्य शुद्ध वेष पहेरी, साधु अथवा श्रावके बन्ने टंक जिनमंदिरमां सात स्मरणनो पाठ करवो. वली जे दिवसे प्रस्थान करे ते दिवसे संघवी पोते अथवा पोतानां परिवारमां जे माणस पठित अने चतुर होय तेणे १ नवकार २ लोगस्स ३ उवसग्गहर ए त्रणनी फूल गुंथणीए १ नवकारवाली गणवी. ॥ इति तीर्थयात्रा शान्तिक विधिः ॥ १० - ग्रहशान्तिकम् ग्रहशान्तिमाद्यं स्याद् ग्रहशान्तिकरं परम् । द्वितीयं गोचरग्रह - पीडायाः परिहारकम् ।। १७८ || बे प्रकारना ग्रहशांतिकमा पहेलुं सामान्य रीते ग्रहशांति करनारुं छे, ज्यारे बीजुं गोचरथी पीडता ग्रहोनी पीडा शांति करनारुं ग्रहशांतिक छे. प्रथम पूर्व प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा सिंहासन उपर स्थापन करी तेनी पूजा करवी. ते पछी तेनी आगल शुद्ध भूमिमां चन्दननो अथवा सेवननो पाटलो स्थापीने तेने चन्दनना रसनुं विलेपन करवुं, अने सूक्या पछी ते उपर ग्रहो आलेखवा, अने पूजवा . ग्रहो - केसर चन्दन १चंदन २ केसर ३ गोरोचन ४ केसर ५ चंदन ६ कस्तूरी ७ कस्तूरी ८ कुंकुम ९ आ द्रव्यो बडे अनुक्रमे आलेखवा अने पूजवा. ग्रहोने रक्त कणेर, १ कुमुद २ जासूल ३ चंपक ४ सेवंती ५ जाइ ६ बकुल ७ या दमनक ७ कुन्द ८ पांच वर्णीना पुष्पो अनुक्रमे चढाववां. ॥ ग्रह शान्ति कम् ॥ ।। २५५ ।। ww.jainelibrary.org Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। २५६ ।। ग्रहोने गुड भात १ क्षीर २ कंसार अथवा लापसी ३ घेवर ४ दहिनो करम्बो ५ घी भात ६ खीचडी ७ उडदनो लाडू ८ उडद या तलनो लाडू ९ आ नैवेद्य अनुक्रमे चढाववां. ग्रहोने द्राक्षा १ सेलडी २ सोपारी ३ नारंगी ४ जंबेरी ५ बीजोरुं ६ खजूर ७ नालियेर ८ दाडिम ९ आ फलो अनुक्रमे चढाववां. ग्रहोने कमलवर्ण - गुलाबी १ श्वेत २ रक्त ३ नीला ४ पीत ५ श्वेत ६ कृष्ण ८ कृष्ण ९ आ वर्णना १-१ हाथना वस्त्रखण्डो ओढाडवां.. प्रत्येक ग्रहनो मंत्र बोली उपर्युक्त द्रव्यो चढाववां, अने पछी स्तोत्रवडे ते ते ग्रहनी प्रार्थना करवी. ग्रह मंडलनां स्थान - मध्ये तु भास्करं विद्याच्छशिनं पूर्वदक्षिणे । दक्षिणे लोहितं विद्याद्, बुधं पूर्वोत्तरेण तु ॥ | १ || उत्तरेण गुरुं विद्यात्, पूर्वेणैव तु भार्गवम् । पश्चिमेन शनिं विद्यात्, राहुं दक्षिणपश्चिमे ||२|| पश्चिमोत्तरतः केतुः, स्थाप्यव किल तंदुलैः । मार्त्तण्डे मण्डलं वृत्तं, चतुरस्रं नीशाकरे || ३ || ग्रह मण्डलोना आकार - महीपुत्रे त्रिकोणं स्याद्, बुधे वै वाणसन्निभम् । गुरौ तु पट्टिकाकारं, पंचकोणं तु भार्गवे ||४|| धनुराकृति मन्दे तु शूर्पाकारं तु राहवे । केतवे तु ध्वजाकारं, मण्डलानि नवैव तु ||५|| ग्रहोनां मुख - शुक्रार्कौ प्राङ्मुखौ ज्ञेयौ, गुरुसौम्यावुदङ्मुखौ । प्रत्यङ्मुखः शनिः सोमः शेषाश्च दक्षिणामुखाः ||६|| ॥ ग्रह शान्ति कम् ॥ ।। २५६ ।। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ग्रह ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शान्ति कम् ॥ ब ।। २५७ SA Nila मध्यमां सूर्य, अग्निकोणमा चन्द्र, दक्षिणमा मंगल, ईशानमा बुध, उत्तरमा गुरु, पूर्वमा शुक्र, पश्चिममा शनि, नैऋत्यमां राहु अने | वायव्यमां केतुनी स्थापना तांदुलो 'चावलो' बड़े करवी. सूर्यनुं मंडल गोलाकार, चन्द्रनुं चोरस, मंगल- त्रिकोण, बुधनुं बाणाकार, गुरुर्नु पट्टिना आकारनु, शुक्रनुं पंचकोण, शनि- धनुषाकार, राहुर्नु सूर्याकार, अने केतुनुं मंडल ध्वजाकार होय छे. सूर्य शुक्र पूर्वमख, बुध गुरु उत्तरमुख, चन्द्र शनि पश्चिममुख अने शेष मंगल, राहु, केतु आ ग्रहो दक्षिणामुखवाला होय छे. प्रतिष्ठा अट्ठाहि महोत्सव आदिमां उपरोक्त दिशाओमां ग्रहोनी पाटला उपर मण्डलो आलेखवी, पछी हाथमां पुष्पाञ्जलि लेइ -- जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् । ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि, लोकानां सुखहेतवे ॥१॥ जिनेन्द्रैः खेचरा ज्ञेया, पूजनीया विधिक्रमात् । पुष्पैर्विलेपनै पै नैवेद्यैस्तुष्टिहेतवे ॥२॥ पद्मप्रभस्य मार्तण्ड-श्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च । वासुपूजो महीपुत्रो, बुधस्याऽष्टौ जिनेश्वराः ॥३॥ विमलानन्तधर्माराः, शान्तिः कुन्थुर्नमिस्तथा । वद्धमानो जिनेन्द्राणां, पादपद्मे बुधं न्यसेत् ॥४॥ ऋषभाजितसुपार्वा, अभिनन्दन शीतलौ । सुमतिः संभवः स्वामी, श्रेयांसश्च बृहस्पतिः ॥५॥ सुविधेः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्वरः । नेमिनाथे भवेदाहुः, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ॥६॥ जन्मलग्ने च राशौ च पीडयन्ति यदा ग्रहाः । तदा संपूजयेद् धीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् ॥७॥ गंधपुष्पादिभिधूपै नैवेद्यैः फलसंयुतैः । वर्णसदृशदानैश्च, वासोभिर्दक्षिणान्वितैः ॥८॥ शाल By For Private & Persohal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाल || कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ब ॥ ग्रहशान्ति ।। २५८ ॥ आदित्यसोममंगल-बुधगुरुशुक्राः शनैश्चरो राहुः । केतप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ।।९।। जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां तुष्टिहेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोत्तरं नरः ॥१०॥ भद्रबाहुरुवाचेमं, पंचमः श्रुतकेवली । विद्याप्रवादतः पूर्वाद्, ग्रहशान्तिविधिस्तवम् ॥११॥ आ ग्रहशान्तिस्तवननो पाठ बोलीने, पुष्पांजलि ग्रहोना पाटला उपर नाखवी, ते पछी सूर्यादिक एक एक ग्रहनी नीचेनी विधियी पूजा करवी. १ सूर्यपूजा - ॐ घृणि घृणि नमः श्रीसूर्याय सहस्रकिरणाय रत्नादेवीकान्ताय वेदगर्भाय यमयमुनाजनकाय जगत्कर्मसाक्षिणे पुण्यकर्मप्रभावकाय पूर्वदिगधीशाय स्फटिकोज्वलाय रक्तवस्त्राय कमलहस्ताय सप्ताश्वरथवाहनाय श्रीसूर्य सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह ग्रहशान्तिके आगच्छ आगच्छ इदमयं पायं बलिं आचमनीयं गृहाण गृहाण संनिहितो भव भव स्वाहा । जलं गृहाण गृहाण, गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं दीपं, नैवेद्यं गृहाण गृहाण, सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि २ स्वाहा ।" आ मंत्र बोलीने सूर्यना मंडल उपर जल, गंध, पुष्प, अक्षत, फल, मुद्रा, धूप, दीप, नैवेद्य, आदि द्रव्यो चढाववां, अने अन्तमां नीचेना स्तोत्रवडे प्रार्थना करवी. सूर्यस्तोत्र - अदितेः कुक्षिसंभूतो, भरण्यां विश्वपावनः । काश्यपस्य कुलोत्तंसः, कलिङ्गविषयोद्भवः ॥१॥ ॥ २५८ ।। For Private & Personal use only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ॥ ग्रह शान्ति कलिका. खं० २ ॥ कम् ।। ।। २५९ ।। रक्तवर्णः पद्मपाणि-मन्त्रमूर्तिस्त्रयीमयः । रत्नादेवीजीवितेशः, सप्ताश्वोऽरुणसारथिः ॥२॥ एकचक्ररथारुढः, सहस्रांशुस्तमोपहः । ग्रहनाथ उर्द्धमुखः, सिंहराशौ कृतस्थितिः ॥३॥ लोकपालोऽनन्तमूर्तिः, कर्मसाक्षीसनातनः । संस्तुतो बालखिल्यैश्च, विघ्नहर्ता दरिद्रहा ॥४॥ तत्सुता यमुनातापी-भद्रा-यमशनैश्चराः । अश्विनीकुमारौ पुत्रौ, निशाहा दैत्यसूदनः ॥५॥ पुन्नागकंकुमैलैंप, रक्तपुष्पैश्च धूपनैः । द्राक्षाफलैर्गुडान्नेन, प्रीणितो दुरितापहः ॥६॥ पद्मप्रभजिनेन्द्रस्य, नामोच्चारेण भास्कर । शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिं च, रक्षां कुरु कुरु द्रुतम् ।।७।। सूर्यो द्वादशरूपेण, माठरादिभिरावृतः । अशुभोऽपि शुभास्तेषां, सर्वदा भास्करोग्रहः ॥८॥ २ चन्द्रपूजा -ॐ चंचं नमश्चन्द्राय शंभुशेखराय षोडशकलापरिपूर्णाय तारागणाधीशाय आग्नेयदिगधीशाय अमृतमयाय सर्वजगत्पोषणाय श्वेतशरीराय श्वेतवस्त्राय श्वेतदशवाजिवाहनाय सुधाकुंभहस्ताय श्रीचन्द्र सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह ग्रहशान्तिके आगच्छ आगच्छ इदमयं पायं बलिं आचमनीयं गृहाण गृहाण संनिहितो भव २ स्वाहा । जलं गृहाण २ गंधं पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूप दीपं, नैवेद्यं गृहाण २ सर्वोपचारान् गृहाण २ शान्तिं कुरु २ तुष्टी कुरु २ पुष्टी कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि २ स्वाहा " आ मंत्र भणी चन्द्र मंडल उपर चन्द्रयोग्य द्रव्यो चढावबां. पछी नीचेनो स्तोत्रपाठ करी चन्द्रनी प्रार्थना करवी. wivw.jainelibrary.org Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ग्रहशान्तिकम् ॥ ॥ २६ ॥ चन्द्रस्तोत्र - अत्रिनेत्रसमुद्भूतः, क्षीरसागरसंभवः । जातो यवनदेशे च, चित्रायां समदृष्टिकः ॥११॥ श्वेतवर्णः सदाशीतो, रोहिणीप्राणवल्लभः । नक्षत्र औषधिनाथ, तिथिवृद्धिक्षयंकरः ॥२॥ मृगाङ्कोऽमृतकिरणः, शान्तो वासुकिरूपभृत् । शंभुशीर्षकृतावासो, जनको बुधरेवयोः ॥३॥ अर्चितश्चन्दनैः श्वेतैः, पुष्पै—पवरेक्षुभिः । नैवेद्यपरमान्नेन, प्रीतोऽमृतकलामयः ॥४॥ चन्द्रप्रभजिनाधीश-नाम्ना त्वं भगणाधिप । प्रसन्नो भव शान्तिं च, कुरु रक्षां जयश्रियम् ॥५॥ __३ मंगलपूजा-ॐ ह्रीं हूँ हंसः नमः श्रीमंगलाय दक्षिणदिगधीशाय विद्रुमवर्णाय रक्ताम्बराय भूमिस्थिताय कुद्दालहस्ताय श्रीमंगल ! | सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह ग्रहशान्तिके आगच्छ आगच्छ इदमयं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण गृहाण संनिहितो भव भव स्वाहा। जलं गृहाण गृहाण गंधं पुष्पं अक्षतान् फलानि मुद्रां, धूपं दीपं, नैवेद्यं गृहाण गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा । आ मंत्र बोली मंगलना मंडल उपर मंगलोपयोगी पूजानां द्रव्यो चढाववां, अने नीचेना स्तोत्र बडे मंगलनी प्रार्थना करवी. मंगलस्तोत्र - भौमो हि मालवे जातः, आषाढायां धरासुतः । रक्तवर्ण उर्ध्वदृष्टि-र्नवार्चिस्साक्षको बली ॥१॥ प्रीतः कुंकुमलेपेन विद्वमैश्च विभूषणैः । पूगैनैवेद्यकासारै, रक्तपुष्पैः सुपूजितः ॥२॥ || २६० ।। For Private & Personal use only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ग्रहशान्तिकम् ॥ ॥ २६१ ॥ सर्वदा वासुपूज्यस्य, नाम्नासौ शान्तिकारकः । रक्षां कुरु धरापुत्र !, अशुभोऽपिशुभो भव ॥३॥ ४ बुधपूजा - ॐ ऐं नमः श्रीबुधाय उत्तरदिगधीशाय हरितवर्णाय कलहंसवाहनाय पुस्तकहस्ताय श्रीबुध ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह ग्रहशान्तिके आगच्छ २ इदमयं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण २ संनिहितो भव भव स्वाहा । जलं गृहाण गृहाण गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं दीपं, नैवेद्यं गृहाण गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण २ शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ कृद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा । आ मंत्र बोली बुधना मंडल उपर चंपक पुष्प नारंगी, घेवर आदि बुधोपभोग्य द्रव्यो चढावीने नीचेना स्तोत्रथी बुधनी प्रार्थना करवी. बुधस्तोत्र - मगधेषु धनिष्ठायां, पंचार्चिः पीतवर्णभृत् । कटाक्षदृष्टिकः श्यामः, सोमजो रोहिणीभवः ॥१॥ कर्कोटरूपो रूपाढ्यो, धूपपुष्पानुलेपनैः । दुग्धान्नैर्वरनारिङ्गै-स्तर्पितः सोमनन्दनः ॥२॥ विमलानन्तधर्माराः, शान्तिः कुंथुर्नमिस्तथा । महावीरादिनामस्थः, शुभो भूयात् सदा बुधः ॥३॥ बृहस्पतिपूजा -ॐ जीव जीव नमः श्रीगुरवे बृहस्पतये ईशानदिगधीशाय सर्वदेवाचार्याय सर्वग्रहबलवत्तराय कांचनवर्णाय पीतवस्त्राय पुस्तकहस्ताय हंसवाहनाय श्रीगुरो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह ग्रहशान्तिके आगच्छ आगच्छ इदमर्थ्य पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण २ संनिहितो भव २ स्वाहा । जलं गृहाण गृहाण गंधं पुष्पं अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं | | दिपं, नैवेद्यं गृहाण २२ सर्वोपचारान् गृहाण २ शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि I ॥ २६१ ॥ For Private & Personal use only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २६२ ।। देहि स्वाहा । आ मंत्र भणी गुरूंपभोग्य द्रव्यो गुरुना मंडल उपर चढावी अने ते पछी नीचे लखेल बृहस्पतिस्तोत्र भणीने प्रार्थना करवी. बृहस्पतिस्तोत्र बृहस्पतिः पीतवर्णः, इन्द्रमंत्री महामतिः । द्वादशार्चिर्देवगुरुः, पद्मश्च समदृष्टिकः || १ || उत्तराफाल्गुनीजातः, सिन्धुदेशसमुद्भवः । दधिभाजनजम्बीरैः पीतपुष्पैर्विलेपनैः ||२|| ऋषभाजितसुपार्श्वा, अभिनन्दनशीतलौ । सुमतिः संभवस्वामी, श्रेयांसो जिननायकः ||३|| एतत्तीर्थकृतां नाम्ना, पूजया च शुभो भव । शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिं च कुरु देवगणार्चित ! ||४|| शुक्रपूजा – ॐ सुं नमः श्रीशुक्राय दैत्याचार्याय आग्नेयदिगधीशाय स्फटिको ज्वलायश्वेतवस्त्राय कुंभहस्ताय तुरगवाहनाय श्रीशुक्र ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह ग्रहशान्तिके आगच्छ २ इदमर्घ्यं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण २ संनिहितो भव २ स्वाहा । जलं गृहाण २ गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं दीप, नैवेद्य गृहाण २ सर्वोपचारान् गृहाण २ शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा । - आ मंत्र बोलवा पूर्वक शुक्रना मण्डलने उपयुक्त द्रव्योवडे आलेखवुं, पूजबूं अने पुष्प फलादि द्रव्यो चढाववां, अन्तमा शुक्रस्तोत्रवडे प्रार्थना करवी. शुक्रस्तोत्र ॥ ग्रह शान्तिकम् ॥ ।। २६२ ।। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ कोल alth ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ।। ग्रहशान्तिकम् ॥ G ॥ २६३॥ शुक्रः श्वेतो महापद्मः, पोडषार्चिः कटाक्षदृक् । महाराष्ट्रेषु ज्येष्ठाया-मथाऽभूत् भृगुनन्दनः ॥१॥ दानवार्यो दैत्यगुरु-विद्यासंजीवनीनिधिः । सुगन्धचन्दनालेपैः सितपुष्पैः सुपूजितः ॥२॥ घृतनैवेद्यजम्बीरे-स्तर्पितो भार्गवो ग्रहः । नाम्ना सुविधिनाथस्य, हृष्टोऽरिष्टनिवारकः ॥३॥ शनिपूजा -ॐ शः नमः शनैश्चराय पश्चिमदिगधीशाय नीलदेहाय नीलाम्बराय परशुहस्ताय कमठवाहनाय श्रीशनैश्वर ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छदः इह ग्रहशान्तिके आगच्छ आगच्छ, इदमयं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण गृहाण सन्निहितो भव भव स्वाहा । जलं गृहाण गृहाण गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं दीपं, नैवेद्यं गृहाण गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण २ शांतिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि २ स्वाहा । आ मंत्र भणी शनिना मंडल उपर शनियोग्य द्रव्यो चढाववां अने शनिस्तोत्र भणतां शनिनी प्रार्थना करवी. शनिस्तोत्र - शनैश्वरः कृष्णवर्ण-इछायाजो रेवतीभवः । नीलवर्णः सुराष्ट्रायां , शंखः पिङ्गलकेशकः ॥११॥ रविपुत्रो मन्दगतिः, पिप्पलादनमस्कृतः । रौद्रमूर्तिरघोदृष्टिः, स्तुतो दशरथेन च ॥२॥ नीलपत्रिकया प्रीत-स्तैलेनकृतलेपनः । उत्त्पत्तिः काचकासारे, तिलदानेन तर्पितः ॥३॥ मुनिसुव्रतनाथस्य, आख्यया पूजितः सदा । अशुभोऽपि शुभाय स्यात्, सप्तार्चिः सर्वकामदः ॥४॥ राहुपूजा - “ॐ क्षः नमः श्रीराहवे नैर्ऋतदिगधीशाय कज्जलश्यामलाय श्यामलवस्त्राय परशुहस्ताय सिंह वाहनाय || २६३ ।। Jain Education Intematoda For Private & Personal use only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ ग्रहशान्ति कम् ॥ ।। २६४ ।। श्रीराहो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह ग्रहशान्तिके आगच्छ २ इदमयं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण गृहाण संनिहितो भव भव स्वाहा । जलं गृहाण २ गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूपं, दीप, नैवेद्यं गृहाण २ सर्वोपचापरान् गृहाण २ शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि देहि स्वाहा ।" आ मंत्र भणी राहुना मण्डल उपर राहुयोग्य द्रव्यो चढावबीने राहुनी पूजा करबी, अने स्तोत्र वडे प्रार्थना करवी, राहुस्तोत्र - शिरोमात्रः कृष्णकान्ति-र्ग्रहमल्लस्तपोमयः । पुलकश्च अधोदृष्टि-भरण्यां सिंहिकासुतः ॥११॥ संजातो बर्बरकूले, सधूपैः कृष्णलेपनैः । नीलपुष्पैर्नालिकेरै-स्तिलमाषैश्च तर्पितः ॥२॥ राहुः श्रीनेमिनाथस्य, पादपद्मेऽतिभक्तिमान् । पूजितो ग्रहकल्लोलः, सर्वकाले सुखावहः ॥३॥ __ केतुपूजा - ॐ नमः श्रीकेतवे राहुप्रतिच्छन्दाय श्यामाङ्गाय श्यामवस्त्राय पन्नगवाहनाय पन्नगहस्ताय श्रीकेतो ! सायुधः सवाहनः सपरिच्छद इह ग्रहशान्तिके आगच्छ २ इदमयं पाद्यं बलिं आचमनीयं गृहाण २ संनिहितो भव भव स्वाहा । जलं गृहाण, गंध, पुष्पं, अक्षतान्, फलानि, मुद्रां, धूप, दीप, नैवेद्यं गृहाण गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण शान्तिं कुरु २ तुष्टिं कुरु २ पुष्टिं कुरु २ ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं देहि २ स्वाहा । आ मंत्र बोलीने केतुना मंडल उपर केतुभोग्य द्रव्यो चढाववा. अने नीचे लखेल स्तोत्र द्वारा प्रार्थना करवी. केतुस्तोत्र - * चाल ॥ २६४ ॥ For Private & Personal use only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S चाल । कल्याणकलिका. खं० २॥ ।। ग्रहशान्तिकम् ॥ ।। २६५ ॥ पुलिन्दविषये जातो, ऽनेकवर्णोऽहिरूपभृतं । आश्लेषायां सदा क्रूरः शिखी भौमतनुः फणी ॥१॥ पुण्डरीककबन्धश्च, कपालतोरणः खलः । कीलकस्तामसो धूमो, नाना नामोपलक्षितः ॥२॥ मल्ले: श्रीपार्श्वनाथस्य, नामधेयेन राक्षसौ । दाडिमैश्च विचित्रान्नैस्तय॑ते चित्रपूजया ॥३।। राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे अशुभोऽपि शुभो नित्यं, केतुर्लोके महाग्रहः ॥४॥ उपर प्रमाणे नवग्रहोनी पृथक् पृथक् पूजा प्रार्थना करी उपर रक्त वस्त्र ओढाडवू. अने गेवासूत्रे पाटलो वींटवो. प्रत्येक ग्रहने जुदा जुदा वस्त्र खंडो ने बदले एक ज दशियावड अखंड ९ हाथ परिमित वस्त्र नवे य ग्रहोगें पूजन थया पछी पाटला उपर ओढाडिये तो पण चाले, प्रत्येकनी पूजा प्रार्थना थया पछी नीचेना स्तोत्र द्वारा सामुदायिक प्रार्थना करवा. ग्रहस्तोत्र - जिननामकृतोच्चारा, देशनक्षत्रवर्णकैः । स्तुताश्च पूजिता भक्त्या ग्रहाः सन्तु सुखावहाः ॥१॥ जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां सुख हेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या जपेदष्टोत्तरं नरः ॥२॥ एवं यथा नामकृताऽभिषेकाः, आलेपनै—पनपूजनैश्च । फलैश्च नैवेद्यवर्जिनानां, नाम्ना ग्रहेन्द्राः शुभदा भवंतु ॥३॥ साधुभ्यो दीयते दानं, महोत्साहो जिनालये । चतुर्विधस्य संघस्य, बहुमानेन पूजनम् ॥४॥ भद्रबाहरुबाचेदं, पंचमः श्रुतकेवली । विद्याप्रवादतः पूर्वात्, ग्रहशान्तिविधिं शुभम् ॥५॥ थान G शाल GS न बा For Private & Personal use only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ उक्त ग्रहशान्तिक प्रतिष्ठाना प्रारंभमां के एवा ज कोइ महत्वपूर्ण कार्य प्रसंगे करवामां आवे तो पूजीने ग्रहोनी स्थापना जिनबिम्बना | जमणा हाथनी दिशामा राखी मूकवी. प्रतिष्ठादि कार्य थइ गया पछी ज्यारे बीजा देवोनुं विसर्जन कराय त्यारे एर्नु पण विसर्जन कर, पण संघ प्रयाणावसरे के बीजा एवा शुभ प्रसंगे शान्तिक कर्यु होय तो सर्वनी पूजा प्रार्थना थया पछी ग्रहोर्नु विसर्जन करी देवें. उक्त ग्रहशान्तिक प्रायः शुभ कार्य प्रसंगे करवानुं छे. आमां कार्य प्रसंगनी निर्विघ्न समाप्ति माटे सर्व ग्रहोनी पूजा प्रार्थना करवामां आवे छे. ग्रह विशेषनी पीडाशान्ति निमित्ते शांतिक कर, होय तो तेनी विधि कंडक भिन्न छे. जे विधि जुदी आपेली छे. || इति ग्रहशान्तिक ।। ॥ ग्रहशान्तिकम् ।। AB स ११ गोचरग्रहपिडा शान्तिकविधिः (२) आ ग्रहशान्तिकमां पण ग्रहनी पूजा प्रार्थना तो उपरना शान्तिकमां कह्या प्रमाणे ज करवानी होय छे. मात्र मंत्र पाठमां "इदमयं पाद्यं बलिं चरुं" आम 'बलि' पछि 'चरूं' आ शब्द वधारीने मंत्र पाठ बोलवानो होय छे. आ शान्तिकमा विशेषता 'होम' नी छे. कोइ पण ग्रहनु शान्तिक होय तेनी पूजा प्रार्थना कर्या पछी १०८ वार होम करवो पडे छे, अने स्थापना शान्तिनाथजीनी प्रतिमा आगल ज नहिं पण ते ते ग्रह प्रतिबद्ध जिन प्रतिमा आगे तेना ज वारना दिवसे तेनु शान्तिक करवू पडे छे. राहु केतुर्नु शान्तिक शनिवारे कराय छे. जे ग्रह- शान्तिक होय तेनां होमनां द्रव्यो अने दानना पदार्थो प्रथमधी मंगावीने पासे राखवां, दरेक ग्रहना होममां कुंड त्रिकोण | ॥ २६६ ॥ For Private & Personal use only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २६७ ।। अने होमना समिध (काष्ट) वडपीपल अने पीपलीना लेवां. सूर्यना शान्तिकमां होम द्रव्य घृत, मधु, कमलकाकडी, दान- उज्वलवस्त्र, तांदला अने घोडानुं, चन्द्र शान्तिकमा होम द्रव्य घृत, सर्वौषधि, दान-तांदला, श्वेतवस्त्र, मोतीनुं । मंगल शान्तिकमां घृतमधुनो होम, दान रक्तवस्त्र, रक्त घोडानुं । बुध शान्तिकमां होम-घृत, मधु, प्रियङ्गुनो, दान- मरकतमणि, धेनुं । गुरु शान्तिकमां होम-घृत, मधु, जव, तिलनो, दान- सुवर्ण, पीत वस्त्रनुं । शुक्र शान्तिकमां होम- पंचगव्यनो, दान- श्वेतरत्न धेनुनुं, कृष्ण गाय-वृषभ, नीलमणिनुं । शनि शान्तिकमां होम-तिलघृतनो, दान-ऊन अने लोहनुं देवं जोइये । राहु शान्तिकमां होम-तिलघुतनो, दान- बकरानुं अने शस्त्रनुं । केतु शान्तिकमां होम-तिलघृत, दान कृष्ण गाय-वृषभ, नीलमणिनुं । सूर्यनुं शान्तिक पद्मप्रभजिननी प्रतिमाने पूजिने तेनी आगे सूर्यने स्थापीने करवुं. चन्द्रनुं शान्तिक-चन्द्रप्रभजिनना बिंबने पूजिने तेनी आगे चन्द्रनी स्थापना करीने कर. मंगलनुं शान्तिक-वासुपूज्यजिनने पूजी तेनी मंगलने स्थापन करीने कर. बुधनुं शान्तिक- विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुंथु, अर, नमि, महावीर, आ पैकीना कोइ पण जिननी मूर्तिने पूजिने तेनी आगल बुधने स्थापीने कर. ॥ ग्रह शान्ति कम् ॥ ।। २६७ ।। Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जीर्णो ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ गुरुर्नु शान्तिक-ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, सुपार्श्व, शीतल, श्रेयांस, आ पैकीना कोइ पण एक तीर्थंकरनी प्रतिमाने | पूजी, तेनी आगल कर. शुक्रनु शान्तिक-सुविधिनाथने पूजी तेमनी आगल शुक्रने स्थापीने करवू. शनि- शान्तिक-मुनिसुव्रतने पूजी तेमनी आगल शनिने स्थापीने करवू. राहुर्नु शान्तिक-नेमिनाथनी पूजा करी तेमनी आगल राहुने स्थापीने करवू. केतु- शान्तिक-मल्लिनाथ अथवा पार्श्वनाथने पूजीने तेमनी आगल केतुनी स्थापना करीने करवू. ॥ इति गोचर ग्रहपीडा शान्तिक । विधिः ॥ ॥ २६८ ॥ १२ जीर्णोद्धारविधिः - जीर्णोद्धारविधौ भग्न-खण्डितार्चा विसर्जने । यद् विधेयं विधानं तत्, पादलिप्तोक्तमुच्यते ॥१७९॥ जीर्णोद्धार विधिमां भांगेली अने खण्डित थयेली प्रतिमाना विसर्जनमा जे विधान कराय छे, ते पादलिप्ताचार्ये निर्वाण कलिकामां कह्या प्रमाणे अहियां कहेवाय छे. खण्डित थयेल, फाटेल, भांगेल, वांकीवलेल, जीर्णशीर्ण थयेल, वलेल, सगर्भ, घा लागेल, प्रमाणहीन, प्रमाणाधिक, वांकी, विकराल आकारवाली, भयंकर आकारवाली, मंत्रना अभावथी पिचाश आदिथी अधिष्ठित थयेली, प्रतिमाने उठाडीने तेना स्थाने नवी प्रतिमा प्रतिष्ठित करवी. ॥ २६८ ॥ For Private Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के । कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ जीर्णो द्धार विधिः ॥ ॥ २६९ ॥ प्रतिष्ठाचार्य प्रभातना उठीने नित्य नियम करीने सकलीकरण करे, पछी खंडित स्पुटित भग्नादि कारणे बिंबान्तर स्थापन करवानी इच्छावाला प्रतिष्ठाचार्य शान्ति निमित्ते किपालोने बलिदान आपे ते आ प्रमाणे - ॐ इन्द्राय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ अग्नये प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ यमाय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ निर्ऋतये प्रतिगृह्ण स्वाहा। ॐ वरुणाय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ वायवे प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ कुबेराय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ ईसानाय प्रतिगृह्ण स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ नागाय प्रतिगृह्ण स्वाहा । आ प्रमाणे बोलीने पोतपोतानी दिशामा अनुक्रमे बहार बलि फेंकीने वायव्य कोणमां -"ॐक्षा क्षेत्रपालाय स्वाहा ।" आम बोलीने क्षेत्रपालने बलिदान आपी - "ॐ सर्वभूतेभ्यो वषट् स्वाहा ।" ए मंत्र बोलीने भूत आदिनुं संतर्पण करवू, ए पछी चैत्यवंदन कर. चैत्यवंदन करीने मण्डल पासे आवी ॐकार बडे आसन पूजीने बेसीने भूतशुद्धि अने सकलीकरण करी विशेष अर्धपात्रनी द्रव्यशुद्धि करवी. पछी आसनपूजादि कृत्य करी अर्धपाद्य आचमनीयादि देइने नित्यविधिथी सांग भगवन्तनी पूजा करवी, पछी आयुध सहित लोकपालोनी पूजा करवी. पूर्व दिशामां ॐ इन्द्राय स्वाहा, ॐ वज्राय स्वाहा । आग्नेय दिशामां ॐ अग्नेय स्वाहा, ॐ शक्तये स्वाहा । दक्षिण दिशामां ॐ यमाय स्वाहा, ॐ दण्डाय स्वाहा । नैर्ऋत दिशामां ॐ निर्ऋतये स्वाहा, ॐ खड्गाय स्वाहा । पश्चिम दिशामां ॐ वरुणाय स्वाहा, ॐ पाशाय स्वाहा । वायव्य दिशामां ॐ वायवे स्वाहा, ॐ ध्वजाय स्वाहा । उत्तर दिशामां ॐ कुबेराय स्वाहा, ॐ गदायै स्वाहा । ईशान दिशामां ॐ ईशानाय स्वाहा, ॐ शूलाय स्वाहा । | २६९ ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। २७० ।। ईशानमांज ॐ ब्रह्मणे स्वाहा, ॐ पद्माय स्वाहा । नैर्ऋत दिशामां ॐ नागाय स्वाहा, ॐ उत्तराय स्वाहा । - उपर प्रमाणे आयुध सहित लोकपालोनुं पूजन करी तेमने पोताना कर्तव्य विषे सावधान करवा ते आ प्रमाणे -- ५ भो भो वरुण ! ! १ भो भो शक्र ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये, सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । २ भो भो अग्ने ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ३ भो भो यम ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ४ भो भो निर्ऋते ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ६ भो भो वायो त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ७ भो भो कुबेर त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ८ भो भो ईशान ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । ९ भो भो ब्रह्मन् ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । १० भो भो नाग ! त्वया स्वस्यां दिशि विघ्नप्रशान्तये सावधानेन शान्तिकर्मान्तं यावद् भगवदाज्ञया स्थातव्यम् । सर्वलोकपालोने भगवाननी आज्ञा संभलावी, अस्त्रमंत्र अने मुद्रा वडे पोताना शरीर फरती किल्लेबन्दी कर्या पछी मंडपमां सर्वत्र अर्धजल छांटा द्वारा विघ्न निवारण करी, देवनी पासे जइ देवनी विपरीत क्रमथी पूजा करवी. ते पछी विसर्जन निमित्ते देवने अर्ध ! ॥ जीर्णो द्धार विधिः ॥ ।। २७० ।। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | जीर्णो ।। कल्याणकलिका. खं. २॥ | विधिः ॥ | आपीने भगवानने विज्ञप्ति करे - "भगवन् ! बिंबमिदमशेषदोपावहमस्य चोद्धारे सति शान्तिः स्यादिति भगवतोक्तमतोऽस्य समुद्धाराय समुद्यतं मामा- | तिष्ठ।" "एवं कुरु." आ प्रमाणे विज्ञप्ति करी आज्ञा मेलवीने सुवर्णादिनो एक कलश गलेल जलथी भरीने, तेने चन्दन, पुष्प, अक्षतो बडे पूजी मूल मंत्र वडे अभिमंत्रित करी, मुद्रा देखाडीने ते जलकलशे देवनो अभिषेक करवो... ते पछी बिम्बने स्थानथी दूर करवा निमित्ते मूल मंत्रनो एक हजार जाप करवो अने १०८ सुवर्णना पुष्पो बडे बिम्बनी पूजा करवी, ए बधुं कर्या पछी प्रतिमानी पासे आवीने प्रतिमाना शरीरमा रहेल सत्त्वने नीचे प्रमाणे संभलावे - "प्रतिमारूपमास्थाय, येनादौ समधिष्ठिता । स शीघ्रं त्यक्त्वा, यातु स्थानं समीहितम् ॥१॥" आ प्रमाणे कहीने - "ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ ।" आ मंत्र बोली अर्ध देइने, प्रतिमाधिष्ठायक देवविशेषतुं विसर्जन करवू. ते पछी सुवर्णना ओजारने अभिमंत्रित करी, ते बडे उत्थापन करी, सुवर्णना पाशवाली दोरी बडे शिखामां बांधीने हाथी आदिनी सवारी करावीने सर्व लोकोनी साथे – 'शान्तिर्भवतु" । आ प्रमाणे बोलतां देवने बहार लइ जइ, जो बिंब पाषाण- होय तो अगाध जलमां अथवा तो म्होटा पर्वतमा भण्डार, जो प्रतिमा माटीनी होय अथवा रत्नमयी होवा छतां अग्नि विगेरेमा दाझवाथी तेजहीन अने स्थानच्युत थइ गइ होय तो तेने पण पूर्वनी जेम परठवी देवी. मा || २७१ ।। Jain Education Intern al थानww.jainelibrary.org Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. ॥ देवी प्रतिष्ठा ॥ सुवर्णादि धातुमय बिम्बने सुधारीने पाछु त्यां स्थापन करी देवू. एज विधिथी चूलक, ध्वज, प्रासादादिक जे दोषयुक्त होय तेनुं विसर्जन करवू. प्रासादना विसर्जनमां नीचे प्रमाणे विशेषता छे- प्रासादना जीर्णोद्धारमां मंत्रो अंगमा जोडी बिंबने राखी प्रासाद नवो तैयार थाय त्यां सुधी षडङ्गनुं पूजन कर. प्रासाद ज्यारे तैयार थइ जाय त्यारे षडंगयोजित मंत्रो त्यांथी संहरी पाछा प्रासादनां अंगोमां यथास्थान ते मंत्रोनो न्यास करवो, Mए प्रमाणे जीर्णने दूर करी प्रायश्चित निमिते जाप करवो. ते पछी आचार्यने दक्षिणा आपी, खमावी, विदाय करवा, उक्त रीते जीर्ण बिम्बादिकने हटावी ते ज प्रकार अने परिमाणवाला बीजा बिम्ब आदिकने विधिपूर्वक प्रतिष्ठित करवां. ॥ इति जीर्णोद्धार विधिः ॥ ।। २७२ ॥ १३ देवी प्रतिष्ठा - विधिदैवीप्रतिष्ठाया, आचारार्कगतः खलु । इहाऽखिलोऽपि संदृब्धो, विधिकारहितेच्छया ॥१८०॥ देवीप्रतिष्ठानी जे विधि आचारदिनकरमां बतावेल छे, ते संपूर्णनो विधिकारोना हितार्थे अहियां संग्रह कर्यो छे. देवीओ त्रण प्रकारनी होय छे. १ प्रासाददेवीओ २ संप्रदायदेवीओ ३ कुलदेवीओ. त्यां प्रासाददेवीओ पीठ, उपपीठ, क्षेत्र अने उपक्षेत्रने, विपे बनावेली गुफामा रहेली, लिंगरूप, स्वयंभूतरूप अथवा मनुष्ये बनावेला | भा ॥ २७२ ।। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डा ॥ कल्याण 'कलिका. खं० २ ॥ रूपवाली होय छे. संप्रदायदेवीओ - अंबा, सरस्वती, त्रिपुरा अने तारा प्रमुख गुरुए उपदेशेल मंत्रोपासनावाली होय छे. ॥ देवी कुलदेवीओ - चंडी, चामुण्डा, कंठेश्वरी, सत्यका, सुशयना, अने व्याघ्रराजी वगेरे जाणवी. प्रतिष्ठा ॥ ए बधी देवीओनी प्रतिष्ठा सरखीज होय छे. देवी प्रतिष्ठा प्रसंगे प्रतिष्ठा करावनारना घरे प्रथम ग्रह शान्तिक अने पौष्टिक कर्म करवू, त्यारबाद प्रासाद अथवा घरमा बृहत् स्नात्रविधि बडे स्नात्र करवू. देवीना प्रासादे ग्रपतिमाने लइ जइने त्यां ग्रहशान्तिक स्नात्र करवू. त्यार पछी पूर्वे कहेल रीति वडे भूमि शुद्ध करीने, तेमां पंचरत्न मूकीने, तेना उपर कदम्बना काष्ठनो पाटलो मूकी तेना उपर देवीनी प्रतिमा स्थापन करवी, स्थिर प्रासाददेवीप्रतिमाने कुलपीठ उपर पंचरत्न न्यासपूर्वक स्थापन करे. त्यार बाद दरेक कुडव प्रमाण मेलवेला सर्वप्रकारना धान्य बडे देवीनी प्रतिमाने नीचेनो मन्त्र बोली वधाववी. मंत्र - "ॐ श्री सर्वान्नपूर्णे सर्वान्ने स्वाहा ।" त्यार बाद पूर्वे कहेला लक्षणवाला चार स्नात्र करनारा तैयार करवा, आचार्य पोते तथा स्नात्र करनारा वींटी, कंकण, अने दशा सहित वस्त्र धारण करी पोताना अने ते स्नात्र करनाराना अंगनी रक्षानो न्यास त्रण वार आ प्रमाणे करे - ॐ ह्रीँ नमो ब्रह्माणि-हृदये । ॐ ह्रीँ नमो वैष्णवि-भुजयोः । ॐ ह्रीँ नमः सरस्वति-कण्ठे । ॐ हीं नमः परमभूषणेमुखे । ॐ ह्रीँ नमः सुगन्धे-नासिकयोः । ॐ ह्रीँ नमः श्रवणे-कर्णयोः । ॐ ह्रीं नमः सुदर्शने-नेत्रयोः । ॐ ह्रीँ नमो || भ्रामरि-भूवोः। ॐ ह्रीँ नमो महालक्ष्मि-भाले। ॐ ह्रीँ नमः प्रियकारिणि-शिरसि । ॐ ह्रीं नमो भुवनस्वामिनि-शिखायाम्। For Private & Personal use only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ देवी प्रतिष्ठा ।। Jad, ॐ ह्रीं नमो विश्वरूपे-उदरे । ॐ ह्रीं नमः पद्मवासे-नाभौ । ॐ ह्रीं नमः कामेश्वरि-गुह्ये । ॐ ह्रीं नमो विश्वोत्तमे-उर्वोः। | । कल्याण- ॐ ह्रीं नमः स्तंभिनि-जान्वोः । ॐ ह्रीं नमः सगमने-जंघयोः । ॐ ह्रीं नमः परमपूज्ये-पादयोः। ॐ ह्रीं नमः सर्वगामिनि- कलिका. || कवचम् । ॐ ह्रीं नमः परमरोद्रि-आयुधम् ।। खं० २ ॥ ए प्रमाणे गुरु पोतानी अने स्नान करनाराओनी अंगरक्षा करे । त्यार बाद पंचगव्यवडे नीचेनो श्लोक बोली देवीनु स्नात्र करे. विश्वस्यापि पवित्रतां भगवती प्रौढानुभावैर्निजैः, संधत्ते कुशलानुबन्धकलिता मामरोपासिता । तस्याः स्नात्रमिहाधिवासनविधौ सत्पंचगव्यैः कृतं, नो दोषाय महाजनागमकृतः पन्थाः प्रमाणं परम् ॥१॥ त्यार बाद पुष्पाञ्जलि ग्रहण करीने. सर्वाशापरिपूरिणि, निजप्रभावैर्यशोभिरपि देवि ! आराधनकर्तृष्णं, कर्तय सर्वाणि दुःखानि ।। आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि नांखवी. ॥१।। फरीथी पुष्पाञ्जलि ग्रहण करीने - यस्याः प्रौढदृढप्रभावविभवैर्वाचंयमाः संयम, निर्दोष परिपालयन्ति कलयन्त्यत्कलाकौशलं । तस्यै नम्रसुरासुरेश्वरशिरःकोटिरतेजश्छटा-कोटिस्पृष्टशुभाघ्रये त्रिजगतां मात्रे नमः सर्वदा ।।२।। आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलिनो प्रक्षेप करवो.॥२॥ फरी पुष्पाञ्जलि ग्रहण करीने - न व्याधयो न विपदो न महान्तराया, नैवायशांसि न वियोगविचेष्टितानि । || २७४ ।। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका, खं०२॥ ॥ देवी प्रतिष्ठा ॥ था यस्याः प्रसादवशतो बहुभक्तिभाजा-माविर्भवन्ति हि कदाचन साऽस्तु लक्ष्यै ॥३॥ आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि नांखे ॥३।। फरीथी पुष्पाञ्जलि लेइने - दैत्यच्छेदोद्यतायां परमपरमतक्रोधप्रबोध-क्रीडानिर्वीडपीडाकरणमशरणं वेगतो धारयन्त्या । लीलाकर्पूरकीलाजनितनिजनिजक्षुत्पिपासाविनाशः, क्रव्यादामास यस्यां विजयमविरतं सेश्वरा वस्तनोतु ॥४॥ आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि नांखवी. ॥४॥ फरी पुष्पाञ्जलि ग्रहण करीने - लुलायदनुजक्षयं क्षितितले विधातुं सुखं, चकार रभसेन या सुरगणैरतिप्रार्थिता । चकार रभसेन या सुरगणैरति प्रार्थिता, तनोतु शुभमुत्तमं भगवती प्रसादेन सा ॥५॥ आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि चढावबी. ॥५॥ फरीथी पुष्पाञ्जलि लेइने - सा करोतु सुखं माता, बलिजित्तापवारिणी । प्राप्यते यत्प्रसादेन, बलिजित्तापवारिणी ।।६।। आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि नांखवी.॥६।। फरीथी पुष्पाञ्जलि लइने - जयन्ति देव्याः प्रभुतामतानि, निरस्तनिःसंचरतामतानि । निराकृताः शत्रुगणाः सदैव, संप्राप्य यां मंक्षु यजे सदैव ॥७॥ आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि चढाववी, ॥७॥ फरीथी पुष्पाञ्जलि ग्रहण करी - सा जयति यमनिरोधन-की संपत्करी सुभक्तानाम् । सिद्धर्यत्सेवायामत्यागेऽपि हि सुभक्तानाम् ॥८॥ आ श्लोक बोली पुष्पाञ्जलि चढावची ।।८।। Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. Gॐ यान ॥ देवी प्रतिष्ठा । C ।। २७६ ॥ A थान एम आठ पुष्पाञ्जलि चढाव्या पछी देवीनी आगे भगवती- मण्डल स्थापन करवू. तेनी विधि आ प्रमाणे छे प्रथम छ खूणावालुं चक्र लखवू, तेनी मध्यमां हजार हाथवाली अनेक प्रकारना शस्त्रने धारण करनारी, श्वेत वस्त्रधारी अने सिंह | वाहनवाली भगवती देवीने चीतरी स्थापन करवी अथवा कल्पवी. त्यार बाद छ खुणामां प्रारंभथी प्रदक्षिणाना क्रमथी आ प्रमाणे लखवुॐ ह्रीँ जम्भे नमः १। ॐ ह्रीँ जन्भिन्यै नमः २ । ॐ ही स्तंभे नमः ३ । ॐ ह्रीं स्तंभिन्यै नमः ४ । ॐ ही नमः ५ । ॐ ह्रीँ मोहिन्यै नमः ६ । त्यार बाद तेनी बहारना बलयमा आठ दलवालं चक्र करवू, अने तेमा प्रदक्षिणाना क्रमे आ प्रमाणे लखवू ह्रीँ श्री ब्रह्माण्यै नमः १ । ह्रीँ श्री माहेश्वर्यै नमः २ । ह्रीँ श्री कौमार्यै नमः ३। ह्रीं श्री वैष्णव्यै नमः ।। ह्रीं श्रीं वारायै नमः ५। ह्रीं श्रीं इन्द्राण्यै नमः ६। ह्रीं श्रीं चामुण्डायै नमः ७। ह्रीं श्री कालिकायै नमः ॥८॥ त्यार बाद तेनी बहारनी भागमां त्रीजुं वलय करी, सोळ दळवारों चक्र करीने प्रदक्षिणाना क्रमथी आ प्रमाणे लखवू ह्रीं श्रीं रोहिण्यै नमः १। ह्रीं श्रीं प्रज्ञप्त्यै नमः २। ह्रीं श्रीं वज्रशृङ्खलायै नम ३। ह्रीं श्रीं वज्रांकुश्यै नमः ४। ह्रीं श्री अप्रतिचक्रायै नमः ५। ह्रीं श्रीं पुरुषदत्तायै नमः ६। ह्रीं श्रीं काल्यै नमः ७। ह्रीँ श्री महाकाल्यै नमः ८ ही श्री गौर्यै नमः ९। ह्रीँ श्रीँ गान्धाय नमः १०। ह्रीँ श्री महाज्वालायै नमः ११ह्रीं श्री मानव्यै नमः १२। ह्रीं श्रीं वैरोट्यायै नमः १३॥ ही श्री अच्छुप्तायै नमः १४॥ ह्रीं श्रीं मानस्यै नमः १५। ह्रीं श्रीं महामानस्यै नमः १६॥ शा CR शील ॥ २७६ ॥ பட்ட याला Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २७७ ।।। फरीथी वलय करीने तेनी बहार चौसठ दल करीने, तेमां जमणी बाजुमा अनुक्रमे आ प्रमाणे देवीओ लखवी. ॐ ब्रह्माण्यै नमः । ॐ कौमार्यै नमः २। ॐ वारायै नमः ३। ॐ शाङ्कर्यै नमः ४। ॐ इन्द्राण्यै नमः । ॐ कंकाल्यै नमः ६। ॐ कराल्यै नमः ७| ॐ काल्यै नमः ८। ॐ महाकाल्यै नमः ९ । ॐ चामुण्डायै नमः १०। ॐ ज्वालामुख्यै नमः ११। ॐ कामाख्यायै नमः १२। ॐ कापालिन्यै नमः १३ | ॐ भद्रकाल्यै नमः १४ । ॐ दुर्गायै नमः १५ । ॐ अंबिकायै नमः १६। ॐ ललितायै नमः १७। ॐ गौर्यै नमः १८ । ॐ सुमंगलायै नमः १९ । ॐ रोहिण्यै नमः २० । ॐ कपिलायै नमः २१ । ॐ शूलकटायै नमः २२। ॐ कुण्डलिन्यै नमः २३ | ॐ त्रिपुरायै नमः २४॥ ॐ कुरुकुल्लायै नमः २५ । ॐ भैरव्यै नमः २६ । ॐ भद्रायै नमः २७| ॐ चन्द्रावत्यै नमः २८| ॐ नारसिंहयै नमः २९ । ॐ निरञ्जनायै नमः ३० । ॐ हेमकांत्यै नमः ३१ । ॐ प्रेतासन्यै नमः ३२| ॐ ईश्वर्यै नमः ३३ | ॐ माहेश्वर्यै नमः ३४। ॐ वैष्णव्यै नमः ३५ । ॐ वैनायक्यै नमः ३६ । ॐ यमघण्टायै नमः ३७| ॐ हरसिद्धयै नमः ३८ । ॐ सरस्वत्यै नमः ३९ । ॐ तोतलायै नमः ४० । ॐ चण्डयै नमः ४१ । शङ्खिन्यै नमः ४२ । ॐ पद्मिन्यै नमः ४३ | ॐ चित्रिण्यै नमः ४४ । ॐ शाकिन्यै नमः ४५ । ॐ नारायण्यै नमः ४६ । ॐ पलादिन्यै नमः ४७॥ ॐ यमभगिन्यै नमः ४८। ॐ सूर्यपुत्र्यै नमः ४९ । ॐ शीतलायै नमः ५० । ॐ कृष्णपाशायै नमः ५१ । ॐ रक्ताक्ष्यै नमः ५२। ॐ कालरात्र्यै नमः ५३। ॐ आकाश्यै नमः ५४ । ॐ सृष्टिन्यै नमः ५५ | ॐ जयायै नमः ५६ । ॐ विजयायै नमः ५७। ॐ धूम्रवर्यै नमः ५८ । ॐ वेगेश्वर्यै नमः ५९ । ॐ कात्यायन्यै नमः ६० । ॐ अग्निहोत्र्यै नमः ६१ । ॥ देवी प्रतिष्ठा ॥ ।। २७७ ।। Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं०२॥ ॥ देवी प्रतिष्ठा ॥ ॥ २७८ ॥ ॐ चक्रेश्वर्यै नमः । ॐ महाम्बिकायै नमः ६३॥ ॐ ईश्वरायै नमः ६४।। फरीथी तेनी फरतुं वलय करीने बावन दल करीने तेमा अनुक्रमे जमणी बाजुथी आरंभीने आ प्रमाणे देवो स्थापवा___ॐ क्रों क्षेत्रपालाय नमः १॥ ॐ क्रों कपिलाय नमः २। ॐ क्रों बटुकाय नमः ३॥ ॐ नारसिंहाय नमः ४॥ ॐ क्रों | गोपालाय नमः ५। ॐ क्रों भेरवाय नमः । ॐ क्रों गरुडाय नमः । ॐ क्रों रक्तसुवर्णाय नमः ८॥ ॐ क्रों देवसेनाय नमः ९। ॐ क्रों रुद्राय नमः १०। ॐ क्रों वरुणाय नमः ११॥ ॐ क्रों भद्राय नमः १२॥ ॐ क्रों वज्राय नमः १३॥ ॐ क्रों वज्रजंघाय नमः १४॥ ॐ क्रों स्कन्दाय नमः १५। ॐ क्रों कुरुवे नमः १६। ॐ क्रों प्रियंकराय नमः १७) ॐ क्रों प्रियमित्राय नमः १८। ॐ वह्नये नमः १९॥ ॐ को कंदर्पाय नमः २०॥ ॐ क्रों हंसाय नमः २१॥ ॐ क्रों एकजंघाय नमः २२। ॐ क्रों घंटापथाय नमः २३॥ ॐ क्रों दजकाय नमः २४॥ ॐ क्रों कालाय नमः २५। ॐ क्रों महाकालाय नमः २६। ॐ क्रों मेघनादाय नमः २७। ॐ क्रों भीमाय नमः २८ ॐ क्रों महाभीमाय नमः २९। ॐ क्रौँ तुंगभद्राय नमः ३० । ॐ क्रों विद्याधराय नमः ३१॥ ॐ क्रों वसुमित्राय नमः ३२॥ ॐ क्रो विश्वसेनाय नमः ३३॥ ॐ क्रों नागाय नमः ३४। ॐ क्रों नागहस्ताय नमः ३५। ॐ क्रों प्रद्युम्नाय नमः ३६। ॐ क्रों कंपिल्लाय नमः ३७। ॐ क्रों नकुलाय नमः ३८। ॐ क्रो आह्लादाय नमः ३९। ॐ क्रों त्रिमुखाय नमः ४०। ॐ क्रों पिशाचाय नमः ४१॥ ॐ क्रों भूतभैरवाय नमः ४२। ॐ क्रों महापिशाचाय नमः ४३। ॐ क्रों कालमुखाय नमः ४४। ॐ क्रों शुनकाय नमः ४५। ॐ क्रों अस्थिमुखाय नमः ४६। ॐ क्रों रेतोवेधाय नमः ४७॥ ॐ क्रों स्मशानचाराय नमः ४८॥ ॐ क्रों केलिकलाय नमः ४९। ॐ क्रों गाय ॥ २७८ ॥ For Private & Personal use only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. सं० २ ।। ।। २७९ ।। नमः ५० । ॐ क्रों कंटकाय नमः ५१ । ॐ क्रों विभीषणाय नमः ५२॥ फरीथी वलय करी तेमां अष्टदलो करवां, अने जमणी बाजुना क्रमे करीने त्यां आ प्रमाणे देवो स्थापवा - ह्रीँ श्रीँ भैरवाय नमः १। ह्रीँ श्रीँ महाभैरवाय नमः २ । ह्रीँ श्रीँ चण्डभैरवाय नमः ३। ह्रीँ श्रीँ रुद्रभैरवाय नमः ४। ह्रीं श्रीं कपालभैरवाय नमः ५ । ह्रीँ श्रीँ आनन्दभैरवाय नमः ६ । ह्रीँश्रीँ कंकालभैरवाय नमः ७| ह्रीं श्रीं भैरवभैरवाय नमः ८। फरीथी तेना उपर वलय करीने - "ॐ ह्रीँ श्रीँ सर्वाभ्यो देवीभ्यः सर्वस्थाननिवासिनीभ्यः सर्वविघ्नविनाशिनीभ्यः सर्वदिव्यधारिणीभ्यः सर्वशास्त्रकरीभ्यः सर्ववर्णाभ्यः सर्वमंत्रमयीभ्यः सर्वतेजोमयीभ्यः सर्वविद्यामयीभ्यः सर्वमंत्राक्षरमयीभ्यः सर्वर्द्धिदाभ्यः सर्वसिद्धिदाभ्यो भगवत्यः पूजा प्रतिच्छन्तु स्वाहा । " आ प्रमाणे उपरना मंत्राक्षरो वलय आकारे लखवा, तेनी उपर फरीथी वलय करी दश दल करी जमणी बाजुना क्रमे आ प्रमाणे दश दिक्पाल स्थापन करवा - ॐ इन्द्राय नमः १। ॐ अग्रये नमः २। ॐ यमाय नमः ३। ॐ निरृतये नमः ४। ॐ वरुणाय नमः ५ । ॐ वायवे नमः ६। ॐ कुबेराय नमः ७| ॐ ईशानाय नमः ८। ॐ ब्रह्मणे नमः ९ । ॐ नागेभ्यो नमः १० । फरीथी वलय करीने दश दल करीने तेमां जमणी बाजुना क्रमे आ प्रमाणे ग्रहादिक स्थापवा ॐ आदित्याय नमः १। ॐ चन्द्राय नमः २। ॐ मंगलाय नमः ३। ॐ बुधाय नमः ४ । ॐ गुरवे नमः ५। ॐ शुक्राय ॥ देवी प्रतिष्ठा ॥ ।। २७९ ।। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २८०॥ नमः ६। ॐ शनैश्चराय नमः । ॐ राहवे नमः ८॥ ॐ केतवे नमः । ॐ क्षेत्रपालाय नमः १०॥ ।। कल्याणत्यारपछी तेनी बहारना भागमां चार खुणावालुं भूमिपुर करवू, तेना ईशान खुणामां गणपति, पूर्व दिशामां अम्बा, अग्नि खुणामां ॥ देवी कलिका. कार्तिकेय, दक्षिण दिशामां यमुना, नैऋत्य खुणामां क्षेत्रपाल, पश्चिम दिशामां महाभैरव, वायव्य खुणामां गुरु, अने उत्तर दिशामां गंगार्नु | प्रतिष्ठा ॥ खं० २॥ स्थापन करवू, ए प्रमाणे भगवती मंडलनु स्थापन करी पूजन कर, ॐ ह्रीँ नमः अमुकदेव्यै, अमुकभैरवाय, अमुकवीराय, अमुकयोगिन्यै, अमुकदिक्पालाय, अमुकग्रहाय, एवं भगवन् ! अमुक ! अमुके ! आगच्छ आगच्छ, इदमयं पाद्यं, बलिं, चरुं, आचमनीयं, गृहाण गृहाण संनिहिता भव भव स्वाहा, जलं गृहाण गृहाण, गंधं पुष्पं, अक्षतान्, फलं, मुद्रां, धूपं, दीप, नैवेद्यं, गृहाण गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण गृहाण, शान्तिं कुरु कुरु तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमिहितं कुरु कुरु स्वाहा ।। आ मंत्र वडे प्रत्येक देवदवीनी अनुक्रमे सर्व वस्तुओ तथा सर्व उपचारो बडे पूजा करवी, अने त्रण खुणावाला कुंडने विष घी, मध, अने गूगल बडे तेटली संख्यामा होम करवो, होमनो मंत्र आ प्रमाणे छे ॐ राँ अमुको देवः देवी वा संतर्पिताऽस्तु स्वाहा । ए प्रमाणे विधि करीने देवी प्रतिमाने दशियावड वस्त्र वडे आच्छादन करे, अने उपर चंदन, अक्षत, अने फूल बडे पूजन करे, जिनमतमां देवी प्रतिष्ठामा वेदी कराती नथी. ते पछी लग्नवेला प्राप्त थाय त्यारे गुरु एकान्ते प्रतिष्ठा करे. देवी प्रतिष्ठामा १ चंदन, २ केशर, ३ कंकोल, ४ कपूर, ५ विष्णुकान्ता, ६ शतावरी, ७ वालो, ८ दूर्वा (ध्रो), || २८० ॥ || ९ प्रियंगु (घउला), १० उशीर (सुगंधीवालो), ११ तगर, १२ सहदेवी, १३ कुष्ठ (कूठ), १४ कचूरो, १५ जटामांसी, || Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ देवी प्रतिष्ठा ।। || १६ शैलेय (शिलारस), १७ कसुबो, १८ लोध्र, १९ बला, २० तज, २१ कदंब, २२ उदंबर, २३ पीपलो, २४ बड, ।। कल्याण अने २५ आम्र ए पच्चीस वस्तुमय वासक्षेप तैयार करवो. कलिका. चा सौभाग्य मुद्रावडे प्रस्तुत देवीना मंत्रथी वासक्षेप मंत्रित करवो, त्यार बाद वासक्षेप करवो, प्रथम देवीना मंत्रपाठ पूर्वक तेना सर्व अंगोमा माया बीजनुं स्थापन करवू, पछी वस्त्र दूर करी सर्वजन समक्ष गन्ध अने अक्षतादि वडे पूजा करवी, त्यार बाद भगवतीने स्नात्र करवं. ।। २८१ ॥ प्रथम दूधनो कलश ग्रहण करीने - "क्षीराम्बुधेः सुराधीशै-रानीतं क्षीरमुत्तमम् । अस्मिन् भगवतीस्नात्रे, दुरितानि निकृन्ततु ॥१॥ दहीनो कलश ग्रहण करीने - घनं घनबलाधारं, स्नेहपीवरमुज्वलम् । संदधातु दधिश्रेष्ठं, देवीस्नात्रे सतां सुखम् ॥२॥ फरी घीनो कलश ग्रहण करीने - स्नेहेषु मुख्यमायुष्यं, पवित्रं पापतापहृतम् । घृतं भगवतीस्नात्रे, भूयादमृतमञ्जसा ॥३॥ फरी मधनो कलश ग्रहण करीने - सर्वोषधिरसं सर्व-रोगहृत्सर्वरञ्जनम् । क्षौद्रं क्षुद्रोपद्रवाणां, हन्तु देव्याभिषेचनात् ॥४॥ त्यार पछी सर्वौषधि मिश्रित जलनो कलश ग्रहण करीने - बाल ॥ २८१ ।। Jain Education Interna Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काशन ब ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ NA ॥ देवी | प्रतिष्ठा ॥ ॥ २८२ AN सौषधिमयं नीरं, नीरं सद्गुणसंयुतम् भगवत्यभिषेकेऽस्मिन्नुपयुक्तं श्रियेऽस्तु नः ॥५॥ आ श्लोक बोलीने अभिषेक करे, त्यार बाद जटामांसी- चूर्ण लेइने - सुगन्धं रोगशमनं, सौभाग्यगुणकारणम् । इह प्रशस्तं मांस्यास्तु, मार्जनं हन्तु दुष्कृतम् ॥६॥ आ श्लोक बोलीने मार्जन करे, पछी चन्दननु चूर्ण लेइने - शीतलं शुभ्रममलं, धूततापरजोहरम् । निहन्तु सर्वप्रत्यूह, चन्दनेनाङ्गमार्जनम् ॥७॥ आ श्लोक बोली अंगे मार्जन करे, पछी केसर- चूर्ण लेइने - काश्मीरजन्मजैचूर्णैः, स्वभावेन सुगन्धिभिः । प्रमार्जयाम्यहं देव्याः, प्रतिमां विघ्नहानये ॥८॥ आ प्रमाणे पांच स्नात्र अने त्रण मार्जन करीने देवीनी पासे स्त्रीओने उचित सर्व वस्त्र, भूषण, गंध, माला अने मंडल करनार वस्तुओ तथा नैवेद्य पण बहु प्रकारनां मूके. त्यार बाद प्रतिष्ठा पूर्ण थाय त्यारे मंडलनुं विसर्जन नंद्यावर्तना विसर्जननी जेम करे. त्यार पछी कन्यानु पूजन, गुरुओने दान, महोत्सव अने संघ-पूजा महाप्रतिष्ठानी पेठे करे. आ प्रतिष्ठा प्रासाद देवी, संप्रदाय देवी अने कुलदेवी त्रणेनी जाणवी. तेनुं पूजन. गुरु, आगम के कुलाचारथी जाणवू, ग्रन्थ विस्तारना भयथी अने आगम प्रकट करवा योग्य नहिं होवाथी अहीं बताव्युं नथी.. ___ ए संबन्धे कहेवामां आव्युं छे के-आ आगमनुं रहस्य छे, अने ते प्रयत्नथी गुप्त राखq. कारण के गुप्त राखवाधी सिद्धि थाय छे, अने प्रकट करवाथी सिद्धिनो संशय छे. तथा सर्व देवोनी प्रतिष्ठा ते ते कल्पमा कहेला अथवा गुरुए उपदेशेला ते ते देवीना मंत्र वडे करवी. बाकीचें वर्षा कार्य सर्व देवीनी ॥ २८२ ।। For Private & Personal use only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण IN प्रतिष्ठामां सरखं जाणवू. जे देवीओ अप्रसिद्ध होवाथी तेनो कल्प जणातो न होय अथवा गुरुना उपदेशना अभावयी तेना नामनो मंत्र | "] न कहेलो होय त्यां ते देवीओनी प्रतिष्ठा अम्बा देवी के चण्डी देवी के त्रिपुरा देवीना मंत्र वडे करवी. कलिका. अहीं देवी प्रतिष्ठामा शासनदेवी, गच्छदेवी, कुलदेवी, नगरदेवी, भुवनदेवी, क्षेत्रदेवी, अने दुर्गा देवी, ए बधी देवीओनो प्रतिष्ठाविधि एक ज छे, ॥ इति देवीप्रतिष्ठाविधिः ।। ।। २८३ ।। || विविधवस्त्वधिवासना ॥ १४ विविधवस्त्वधिवासना - नानावस्तुगणस्याधि-वासनाविधिरल्पकः । उद्धृत्याचारसूर्याख्य-ग्रन्थादत्र निवेशितः ॥१८१।। अनेक पदार्थोनी थोडीक अधिवासना विधि आचारदिनकरथी उद्धरीने परिच्छेदमा दाखल करेल छे. कोइ पण सजीव अजीव वस्तुनो स्वीकार करतां, अमुक मंत्र पूर्वक वासक्षेप द्वारा, अभिषेक द्वारा अथवा हस्तन्यास द्वारा तेने पवित्र करवी तेनुं नाम अधिवासना छे. जे जे पदार्थनी प्रतिष्ठा विहित छे, ते सर्वनी अधिवासना अवश्य विहित छे ज, पण जे पदार्थोनी प्रतिष्ठा थती नथी तेमनी पण अधिवासना थाय छे. विधिकारोनी ज्ञानवृद्धि निमित्ते अमो नीचे केटलाक एवा पदार्थोनी अधिवासना विधि आपीये छीए के जेमनी प्रतिष्ठा विहित नथी छतां अधिवासना विधेय छे. ॥ २८३ ।। Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ विविधवस्त्वधिवासना ।। ।। २८४ ।। १ पूजाभूमिनी अधिवासना - ॐ लल, पवित्रतायां मंत्रैक-भूमौ सर्वसुरासुराः । आयान्तुं पूजां गृह्णन्तु, यच्छन्तु च समीहितम् ॥१॥ २ शयन भूमिनी अधिवासना - ॐ लल, समाधि संहतिकरी, सर्वविघ्नापहारिणी । संवेशदेवताऽत्रैव, भूमौ तिष्ठतु निश्चला ॥२॥ ३ बेसवानी भूमिनी अधिवासना - ॐ लल, शेषमस्तकसंदिष्ठा, स्थिरा सुस्थिरमंगला । निवेशभूमावत्राऽस्तु, देवतास्थिरसंस्थितिः ॥३॥ ४ विहारभूमिनी अधिवासना - ॐ लल, पदे पदे निधानानां, खनीनामपि दर्शनम् । करोतु प्रीतहृदया, देवी विश्वंभरा मम ॥४॥ ५ क्षेत्रभूमिनी अधिवासना - ॐ लल, समस्तरम्यवृक्षाणां, धान्यानां सर्वसंपदाम् । निदानमस्तु मे क्षेत्र-भूमिः संप्रीतमानसा ॥५॥ ६ सर्व कार्योपयोगि सर्व भूमिनी अधिवासना - ॐ लल, यत्कार्यमहमत्रैक-भूमौ संपादयामि च । तच्छीघ्रं सिद्धिमायातु, सुप्रसन्नाऽस्तु मे क्षितिः ॥६॥ ७ जलनी अधिवासना - ॐ वव, जलं निजोपकाराय, परोपकृतयेऽथवा । पूजार्थायाऽथ गृह्णामि, भद्रमस्तु न पातकम् ॥७॥ ८ अग्निनी अधिवासना - ॥ २८४ ॥ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ विविध ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ वस्त्वधिवासना ॥ ॐ रं । धर्मार्थकार्यहोमाय, स्वदेहाय वाऽनलम् । संघुक्षयामि न पापं, फलमस्तु ममेहितम् ॥८॥ ९ चूलानी अधिवासना - ॐरं । अग्न्यगारमिदं शान्तं, भूयाद्विघ्नविनाशनम् । तद्युक्तिपाकेनाऽनेन, पूजिताः सन्तु साधवः ॥९॥ १० सिघडीनी अधिवासना - ॐ रं । सर्वदेवेष्टदानस्य, सर्वतेजोमयस्य च । आधारभूता शकटी, वढेरस्तु समाहिता ॥१०॥ ११ वस्त्राधिवासना - ॐ श्रीं । चतुर्विधमिदं वस्त्रं, स्त्रीनिवाससुखाकरम् । वस्त्रं देवधृतं भूयात्, सर्वसंपत्तिदायकम् ॥११॥ १२ भुषणोनी अधिवासना - ॐ श्रीं । मुकुटाङ्गदहारार्ध-हाराः कटकनूपुरे । सर्वभूषणसंघातः, श्रियेऽस्तु वपुषा धृतः ॥१२॥ १३ पुष्पमालानी अधिवासना - ॐ श्रीं । सर्वदेवस्य संतृप्ति-हेतुर्माल्यं सुगंधि च । पूजाशेषं धारयामि, स्वदेहेन त्वदर्चना ॥१३॥ १४ सुगंधाधिवासना - ॐ हो । कर्पूरागुरुकस्तुरी-श्रीखंडशशिसंयुतः । गंधपूजादिशेषो मे, मंडनाय सुखाय च ॥१४॥ १५ तम्बोलनी अधिवासना - Jain Education inte T Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. Ama|| विविध वस्त्वधिवासना ॥ खं.२ ॥ ॥ २८६ ॥ ॐ श्रीं । नागवल्लीदलैः पूग-कस्तूरी वर्णमिश्रितैः । ताम्बूलं मे समस्तानि, दुरितानि निकृन्ततु ॥१५॥ १६ चन्द्रवानी अने छत्रनी अधिवासना - ॐ श्रीं ह्रीं । मुक्ताजालसमाकीर्णं, छत्रं राज्यश्रियः समम् । श्वेतं विविधवर्णं वा, दद्याद् राज्यश्रियं स्थिराम् ॥१६॥ १७ शयनासन-सिंहासन आदिनी अधिवासना - ॐ ह्रीं लल । इदं शय्यासनं सर्वं, रचितं कनकादिभिः । वस्त्रादिभिर्वा काष्ठाद्यैः, सर्वसौख्यं करोतु मे ॥१७॥ १८ हाथी घोडाना पलाणनी अधिवासना - ॐ स्थाँ स्थी । सर्वावष्टम्भजननं, सर्वासनसुखप्रदम् । पर्याणं वर्यमत्राऽस्तु, शरीरस्य सुखावहम् ॥१८।। १९ पगरखानी अधिवासना - ॐ सः । काष्ठचर्ममयं पाद-त्राणं सर्वाङ्गिरक्षणम् । नयताद् मां पूर्णकाम-कारिणी भूमिमुत्तमाम् ॥१९॥ २० सर्व वासण वर्तनोनी अधिवासना - ॐ क्रॉ । स्वर्णरूप्यताम्रकांस्य-काष्ठमृच्चमभाजनम् । पानान्नहेतुः सर्वाणि, वांछितानि प्रयच्छतु ॥२०॥ २१ सर्व औषधोनी अधिवासना - ॐ सुधा सुधा । धन्वन्तरिश्च नासत्यौ मुनयोऽत्रिपुरःसराः । अत्रौषधस्य ग्रहणे निघ्नन्तु सकला रुजः ॥२१॥ २२ मणिरत्नोनी अधिवासना - ।। २८६ ।। Jain Education international Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। २८७ ।। ॐ वं हंसः । मणयो वारिधिभवा, भूमिभागसमुद्भवाः । देहि देह भवाः संतु, प्रभावाद्वाञ्छितप्रदाः ||२२|| २३ दीपकनी अधिवासना ॐ जय जय । सूर्यचन्द्रश्रेणिगतः सर्वपापतमोपहः । दीपो मे विघ्नसंघातं निहन्यान्नित्यपावर्णः ||२३|| २४ भोजननी अधिवासना - ॐ हन्तु हन्तु । पूजादेबबलेः शेषं, शेषं च गुरुदानतः । भोजनं मम तृप्त्यर्थं तुष्टिं पुष्टिं करोतु च ||२४|| २५ भाण्डागाराधिवासना - ॐ श्रीँ महालक्ष्यै नमः । कोष्ठागाराधिवासना - ॐ अन्नपूर्णायै नमः || २५ || २६ पुस्तकनी अधिवासना - ॐ ऐं । सारस्वतमहाकोष-निलयं चक्षुरुत्तमम् । श्रुताधारं पुस्तकं मे, मोहध्वान्तं निकृन्त ||२६|| २७ जपमालानी अधिवासना ॐ ह्रीँ । रत्नैः सुवणैबजैर्वा, रचिता जपमालिका । सर्वजापेषु सर्वाणि, वांछितानि प्रयच्छतु ||२७|| २८ वाहननी अधिवासना 7 ॐ यां यां । तुरङ्गहस्तिशकट - रथमर्त्योढवाहनम् । गमने सर्वदुःखानि हत्वा सौख्यं प्रयच्छतु ||२८|| २९ सर्व शस्त्रोनी अधिवासना - 1 ॥ विविधवस्त्वधि वासना ॥ ।। २८७ ।। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यान Ma|| विविध ।। कल्याण कलिका. खं०२॥ वस्त्वधिवासना ॥ ॥ २८८ ॥ थान ॐ द्राँ द्रीं ह्रीं । अमुक्तं चैव मुक्तं च, सर्वं शस्त्रं सुतेजितम् । हस्तस्थं शत्रुघाताय, भूयान्मे रक्षणाय च ॥२९॥ ३० कवचनी अधिवासना - ॐ रक्ष रक्ष । लोहचर्ममयो दंशो, वज्रमन्त्रेण निर्मितः । पततोऽपि हि वज्रान्मे, सदा रक्षां प्रयच्छतु ॥३०॥ ३१ पाखरनी अधिवासना - ॐ रक्ष रक्ष । तुरङ्गस्यास्यरक्षार्थं प्रक्षरं धारितं सदा । कुर्यात् पोषं स्वपक्षीये, परपक्षे च खंडनम् ॥३१॥ ३२ ढालनी अधिवासना - ॐ रक्ष रक्ष । सर्वोपनाहसहितः, सर्वशस्त्राऽपवारणः । स्फरः स्फुरतु मे युद्धे, शत्रुवर्गक्षयंकरः ॥३२॥ ३३ गाय भैस बलदनी अधिवासना - ॐ घन घन । गावो नानाविधैर्वण्र्णैः, श्यामला महिषीगणाः । वृषभाः सर्वसंपत्तिं, कुर्वन्तु मम सर्वदा ॥३३॥ ३४ घरना उपकरणोनी अधिवासना - ॐ श्रीं । गृहोपकरणं सर्वं, स्थाली घट उदू(लू)खलम् । स्थिरं चरं वा सर्वत्र, सौख्यानि कुरुतात् गृहे ॥३४।। ३५ खरीदवानी वस्तुनी अधिवासना - ॐ श्रीं । गृह्यमाणं मया सर्वं, क्रेयवस्तु निरन्तरम् । सदैव लाभदं भूयात्, स्थिरं सुखदमेव च ॥३५॥ ३६ वेचवानी वस्तुनी अधिवासना - श्री भाव || २८८ ।। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ॥ विविधवस्त्वधिवासना ॥ ॥ २८९ ॥ ह NHA ॐ श्रीं । एतद्वस्तु च विक्रेयं, विक्रीणामि यदञ्जसा । तत्सर्वं सर्वसम्पत्तिं, माविकाले प्रयच्छतु ॥३६॥ ३७ सर्व भोग्य उपकरणनी अधिवासना - ॐ खं खं । सर्वभोग्योपकरणं, सजीवं जीववर्जितम् । तत्सर्वं सुखदं भूयाद्, माभूत्पापं तदाश्रयम् ॥३७।। ३८ चामरोनी अधिवासना - ॐ चं चं । गोपुच्छसंभवं हृद्यं, पवित्रं चामरद्वयम् । राज्यश्रियं स्थिरीकृत्य, वाञ्छितानि प्रयच्छतु ॥३८॥ ३९ सर्व वाजाओनी अधिवासना - ॐ वदवद । सुषिरं च तथाऽऽनद्धं, ततं धनसमन्वितम् । वाद्यं प्रौढेन शब्देन, रिपुचक्रं निकृन्ततु ॥३९॥ ४० उपर जणावेल सिवायनी सर्व वस्तुओनी अधिवासना - ॐ श्री आत्मा । सर्वाणि यानि वस्तुनि, मम यान्त्युपयोगिताम् । तानि सर्वाणि सौभाग्यं, यच्छन्तु विपुलां श्रियम् ॥४०॥ जे जे वस्तुओनी अधिवासना पूर्वोक्त मंत्रोथी नथी थती ते सर्वनी उपर्युक्त मंत्रवडे करी शकाय छे. अधिवासना माटे सामान्य प्रकारे शुभ दिवस अने चन्द्रबल जोवू. ए सिवाय विशेष विधिनी अनुकूलता अथवा अवकाश न होय तो नीचे- पद्य भणीने सर्व देव, देवी, कलश, ध्वजादिनी स्थापना करी देवी. भद्रं कुरुष्व परिपालय सर्ववंश, विघ्नं हर स्व विपुलां कमलां प्रयच्छ ।' For Private & Personal use only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाल ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ जैवातृकार्कसुरसिद्धजलानि यावत्, स्थैर्य भजस्व वितनुष्व समीहितानि ॥४१॥ स्थापनीय वस्तुनी स्थापना करी उपरनुं पद्य भणी वासक्षेप करवो अने स्थापितने प्रणाम करवा. इति विविधवस्त्वधिवासनाविधिः || श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ परिच्छेद १५ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः । प्रतिष्ठाविधिरादिष्टो, निर्वाणकलिकाभिधे । ग्रन्थे सोऽत्रोद्धृतः पादलिप्तसूरिमतानुगः ॥१३॥ निर्वाणकलिका नामक ग्रन्थमा जे विधिनो आदेश करेलो छे ते पादलिप्तसूरि संमत बिम्ब प्रतिष्ठाविधि अहीं उध्धृत करेल छे, आ बिम्बप्रतिष्ठा निमित्ते प्रथम बे मण्डपो बनाववा, एक अधिवासना मंडप अने बीजो स्नानमंडप. मण्पड निर्माण विधि - प्रतिष्ठा मण्डप बनावबानो कार्यारंभ प्रतिष्ठाकारकने चन्द्रबल पहोंचतुं होय तेवा शुभ मुहूर्त अने शुभ लग्नमां करवो जोइये. मण्डप तथा वेदिकानी रचना अने परिमाण - ज्यां वीतरागदेवनी प्रतिष्ठा करवी होय त्यां एकसो हाथ जेटली भूमिने जयणापूर्वक शुद्ध करीने मंगल दृश्योथी आकर्षक बनावी तेमां उपर्युक्त बे मंडपो बनाववा अने तैयार थतां विधिपूर्वक तेमा प्रवेश करवो. प्रतिष्ठा मंडपनी रचना समचोरस तथा चतुर्मुख अने तेनी लम्बाई पहोलाइनुं माप प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाना माप उपरथी निश्चित थाय छे. एनी उंचाइ पण प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी उंचाईनी साथे संबंध राखे छे. प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी उंचाई जो १-२ अथवा ३ हाथनी होय तो तेने योग्य | For Private & Personal use only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। २९१ ॥ प्रतिष्ठा मंडप अनुक्रमे ८-९ १० हाथ लांबो पहोलो होवो जोइये अने प्रतिमा ४-५-६-७-८ के ९ हाथनी उंची होय तो प्रतिष्ठा मंडप अनुक्रमे १२-१४-१६-१८ २०-२२ हाथ लांबो पहोलो होवो जोइये. बीजा मत प्रमाणे १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ हाथनी प्रतिमाने योग्य मंडप अनुक्रमे १२-१४-१६-१८ २०-२२-२४-२६-२८ हाथनो अनुरूप होय छे. नव हाथथी म्होटी प्रतिमा होती नथी. तेथी २८ हाथथी मोटो प्रतिष्ठा मण्डप पण विहित नथी. प्रतिष्ठा मंडपथी पूर्व अथवा ईशान दिशामां एक स्नान मंडप बनाववो जोइये, स्नान मण्डपनी लंबाई-पहोलाई प्रतिष्ठा मण्डपना करतां अडधी होवी जोइये. मण्डपनां तोरणोनी उंचाई मण्डपमां स्थापित थनार प्रतिमा जो १-२ या ३ हाथनी होय अने मंडप तेने अनुरूप बनावेल होय तो तेनां तोरणो अनुक्रमे ५-६ या ७ हाथ उंचा होवां जोइये. कदापि प्रतिमा ४-५-६ पैकीना कोई मापनी होय तो तोरणो ७ हाथ ८ आंगल उंचा अने प्रतिमा ७- ८-९ हाथनी होय तो तोरणों ७ हाथ १२ आंगल उंचा राखवा. तोरणोनी ऊंचाई एज मंडपनी ऊंचाई समजवानी छे. — पूर्वादि दिशानां तोरणो अनुक्रमे वड, उंबर, पारसपीपल, अने पीपलीनां होवा जोइये. शास्त्रोमा आ तोरणोनां नामो अनुक्रमे १ शान्ति, २ भूति, ३ बल अने ४ आरोग्य ए प्रमाणे लखेलां छे.. तोरणो उपर श्वेत अथवा विविध रंगना ध्वजो लगाडवा अने ध्वजानी पासे कमलवर्ण (गुलाबी), श्वेत, लाल, नीली, पीली, आदि अनेक रंगनी पताका (छोटी ध्वजा) ओ रोपवी. पूर्वादि द्वारोनां तोरणोनां ध्वजो अनुक्रमे १ धर्मध्वज, २ मानध्वज ३ गजध्वज अने ३ सिंहध्वज ए नामोथी प्रसिद्ध छे. ॥ श्री पाद लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। २९१ ।। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ प्रतिष्ठा मंडपने रंगीन पुष्पमालाओ रेशमी वखना चंद्रवाओ तथा विविध रंगोमां रंगायेल सूत्राउ वस्त्रोना पडदाओ बडे शणगारखो, मंडपना शणगारमा कालारंगनां वस्त्रोनो उपयोग न करवो, तेमज तेना पडदाओमां उपसर्ग अथवा उपद्रवोनां भयजनक दृश्यो न बतावां. तीर्थंकरोना कल्याणक प्रसंगो, प्रसंगने अनुरूप मंगलसूचक अने आहादजनक चित्रो अने प्रसिद्ध तीर्थस्थानोना चित्रपटो देखाडवा लाभदायक होय छे. वेदीरचना मण्डप तैयार थवा आवे त्यारे तेना मध्यभागमा एक सुन्दर वेदी बनावबी. वेदीने अष्टमंगल आदिकनां शुभचित्रोथी सुशोभित बनाववी जोइये अने ते मंडपने अनुरूप परिमाणनी होवी जोइये, प्रतिष्ठाकल्पोमा १ नन्दा, २ सुनन्दा, ३ प्रबुद्धा, ४ सुप्रभा, ५ सुमंगला, ६ कुमुदमाला, ७ विमला, अने ८ पुण्डरीकिणी; आ नामोथी आठ प्रकारनी वेदियो, निरूपण कयु छे. (१) एक हाथ चोरस अने चार आंगल उंची वेदीने 'नन्दा' कहे छे, (२) बे हाथ समचोरस अने आठ आंगल उंची होय ते वेदी 'सुनन्दा' नामथी ओलखाय छे, (३) त्रण हाथ समचोरस अने बार आंगल उंची वेदीनुं नाम 'प्रबुद्धा' कहेवाय छे. (४) चार हाथ समचोरस तेम सोल आंगल उंची होय ते वेदी 'सुप्रभा' ए नामधी ओलखाय छे. (५) पांच हाथ समचोरस अने वीश आंगल उंची वेदी 'सुमंगला' ए नामथी प्रतिष्ठाकल्पोमां प्रसिद्ध छे. (६) छ हाथ समचतुरस्र अने चोवीस आंगल उंची वेदीनुं नाम 'कुमुदमाला' छे. (७) सात हाथ समचोरस अने अठ्ठावीश आंगल ऊंची वेदी 'विमला' नामनी होय छे अने (८) आठ हाथ समचोरस अने बत्रीस आंगलनी उंचाईवाली वेदीनुं नाम 'पुण्डरीकिणी' होय छे. शुभ आय लाववा माटे वेदियोना उपर्युक्त मापमा एक एक आंगलनी वृद्धि करी शकाय छे. ।। २९२ ॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | श्री पाद ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ लिप्तसूरिप्रणीतः ॥ २९३ प्रतिष्ठाविधिः ॥ आचार्य श्री पादलिप्तसूरिना मते वेदियो- स्वरूप उपर जणाव्या प्रमाणे छे, पाछलना प्रतिष्ठा कल्पोमां वेदियोनुं माप अने स्वरूप | जुदा प्रकार- पण जोवाय छे. तेनुं कारण प्रतिष्ठा मंडपर्नु रूपान्तर थर्बु ए छे. पादलिप्तसूरिजीए प्रतिष्ठामंडपने 'अधिवासनामंडप' कह्यो | छे, एनो अर्थज ए छे के ते मण्डप अधिवासना अने प्रतिष्ठानी खास क्रियाओने माटे ज बनावातो, तेमा प्रतिष्ठाकारक आचार्य, शिल्पी अने इन्द्रादिक ४ स्नात्रकारो ज जता अने प्रतिष्ठा संबन्धि कार्यविधि करता-करावता. प्रतिष्ठा मंडपना मुख द्वार आगल प्रेक्षको माटे जुदो सभामंडप बांधवामां आवतो, कालान्तरे आ चतुर्मुख प्रतिष्ठामण्डपर्ने स्थान आजकालमां बनता एक दिशापरक त्रिद्वार अने पंचद्वार | मण्डपोए लीधुं, समचोरसने बदले लम्बचोरस अने मापमा उक्त उत्कृष्ट मापथी पण अधिक मापवाला प्रतिष्ठामंडपो बनवा लाग्या. अने क्रियाकारको अने दर्शकोनो एक ज मंडपमा समावेश थवा मांड्यो. ए ज कारणथी वेदिओ पण मध्यभाग छोडीने सामेनी भीतनी पासे पहोंची गइ अने पोतानुं समचोरस रूप छोडीने लम्बचोरस थवा मांडी. आ स्वरूपपरिवर्तन 'अंजनप्रतिष्ठा' अने 'स्थापनप्रतिष्ठा' नो भेद भूलाबाथी थयुं छे. स्थापनाप्रतिष्ठाने माटे मंडप अने वेदीनुं आ परिवर्तितस्वरूप भले स्वीकार्य होय पण 'अंजनशलाका प्रतिष्ठा' ना प्रसंगे तो मंडप अने वेदी शास्त्रोक्त रीतथी ज बनाववी जोइये. वेदीनां उपादान द्रव्यो वेदी कया उपादानोथी बनाववी ? ए विषे श्री पादलिप्तसूरिजीए कंइपण सूचन कयुं नथी, छतां पाछलना विधिग्रंथोमां वेदी शुद्ध जल अने शुद्ध माटीथी बनावेली काची इंटोनी बनाववाना उल्लेखो मले छे, तेथी वेदी शुद्ध रीते बनावेली काची इंटोनी ज बनाववी जोइये. . वेदीना खूणाओमां रोपवानी खीलिओ - ॥ २९३ ॥ Jain Education Internat orate Personal use only Enww.jainelibrary.org Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदी ॥ कल्याणकलिका. ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ न ___ वेदीना ४ खूणाओमां ब्राह्मणादि वर्णानुकूल पलाश, बड, ऊंबर अने खेजडी, ए च्यारनी ४ खीलियो घडावीने रोपवी, जो प्रतिष्ठा | करावनार गृहस्थ ब्राह्मण होय तो पलाशनी, क्षत्रिय होय तो वडनी, वैश्य होय तो उंबरानी अने शूद्र होय तो खेजडीनी खीलियो योग्य गणाय, अथवा सर्व वर्णने बांसनी खीलियो योग्य होय छे, च्यारे खीलिओ एक ज वृक्षनी होइ गांठ विनानी, फाट, व्रण अने पोल बिनानी होवी जोइये, खीलिओने काष्ठ-पत्थर अथवा लोहथी न ठोकवी, पण तांबा, रूपा, सोना के बीजा कोइ शुभ धातुना बनेला साधनथी ठोकीने रोपवी जोइये. मंडपनी लीपाई-पोताई - मण्डप अने वेदी तैयार थइ जाय त्यारे मंडपने गोबर अने धोली माटी 'खडी अथवा गोर माटी' नी गारथी लींपवी जोइये, गारमा सुगन्धी जल, यक्षकर्दम नांखीने सुगन्धी बनाववी. वेदीने पण खडी अथवा चूनाना घोलथी पोतवी, घोलमां यक्षकर्दम उपरांत पंचरत्ननु चूर्ण अने सुवर्णनी रज नाखीने एक रस करवो. वेदीने पोतावी तेनी भींतो उपर चारे बाजुए मार्गलिक चित्रो कढाववां. प्रतिष्ठोपयोगी सामग्री मंडप बनावीने आ प्रमाणे प्रतिष्ठोपयोगी सामान लाववो. ८ स्नपनकलशो- सोना, रूपा, त्रांबा अथवा माटीना । ४ आद्यकुंभो (प्रतिमाना च्यार विदिशाकोणोमा स्थापवाना) । १ स्थपतिकुंभ । धान्यवर्ग - जब, ब्रीहि, गहुँ, तल, अडद, मग, वाल, चणा, मसूर, तूअर, शणबीज, नीवार (बंटी), शामो, आदि । रत्नवर्ग - हीरा, सूर्यकान्त, नीलम, महानीलम, मोती, पुखराज, पद्मराग (माणेक), वैडूर्य (अकीक), आदि । लोहवर्ग - सोनू, रू', बांबू, कृष्णलोह, जशद, पीतल, कांसु, सीसुं, आदि । कषायवर्ग - न ॥ २९४ ॥ For Private & Personal use only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. सं० २ ॥ ।। २९५ ।। वड, उंबर, पीपल, चंपो, आशोपालव, कदंब, आंबो, जांबू, बकुल (बोलसिरी), अर्जुन, पाडल, वेत्र, पलाश, आदि (नीछाल) । मृत्तिकावर्ग - उद्देहीना राफडानी, पर्वतना शिखरनी, नदीना वे कांठानी, महानदीना संगमनी, डाभमूलनी, बिल्वमूलनी, चोहटानी (चौटानी), हाथीदांतनी, वृषभशृंगनी, राजद्वारनी, पद्मसरोवरनी अने एकवृक्ष आदिनी जुदी जुदी माटी । पानीयमार्ग गंगा-यमुनामही- नर्मदा- सरस्वती-तापी- गोदावरी आदि नदीओ अने समुद्र, पद्मसरोवर तथा ताम्रपर्णी नदीसंगम आदि जलाशयोनुं पाणी. औषधिवर्गसहदेवी, जया, विजया, जयन्ती, अपराजिता, विष्णुक्रान्ता, शंखपुष्पी, बला, अतिबला, हेमपुष्पी, विशाला, नाकुली, गंधनाकुली, सहा, वाराही, शतावरी, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, कुमारी भूइरींगणी, उभीरींगणी, चक्रांका, मोरशिखा, लक्ष्मणा, दूर्वा, दर्भ, पतंजारी, गोरंभा, रुद्रजटा, लज्जालु, मेषशृंगी अने ऋद्धिवृद्धि, आदि औषधिओ । अष्टकवर्ग वज्र, लोध्र जेठीमधु, कूठ, देवदारु, खसमूल, ऋद्धिवृद्धि अने शतावरी, ए ८ औषधिओ । अष्टकवर्गद्वितीय - मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभक, नखी अने महानखी, ए बीजी ८ औषधिओ. सर्वौषधिवर्ग प्रियंगु, सुगंधीवालो, आंबला, जावंत्री, हलदर, ग्रंथिपर्णक (गठवण), नागरमोथ अने कूठ आदि सर्वौषधि । गन्धवर्ग शिलारस, कूठ, जटामांसी, मुरमांसी, श्वेतचंदन, अगर, कर्पूर, नखला अने पूतिकेशा आदि गन्धो। वास - श्वेतचंदन, केसर, कर्पूर (बरास) थी बनेल वासचूर्ण अर्थात् वासक्षेप । मुद्रिकाओ - ( आचार्य इन्द्रादिविधिकारयोग्य) । मींडलफलो (कांकणयोग्य) । रक्तसूत्र (लाल रंगे रंगेल सूत्र अथवा गेवासूत्र ) । ऊन कांतेली । लोहनी मुद्रिका । ऋद्धिवृद्धिसहित कांकणो । जवनी मालाओ । तराको (पूतराको सूत्रनी कोकडी भरेला ) । मेनशिल । गोरोचन । श्वेतसर्षपो ( अथवा पीला सर्पपो, अर्ध तथा रक्षा पोटली योग्य) । धोली पछेडी नं० २ । नन्द्यावर्तना माटलानुं आछादन वस्त्र (श्वेत) । प्रतिमाने पडदो करवानुं वस्त्र । फुटकर वस्त्रो (नील पीत रक्त आदि रंगनां ) | घंट अने घंटडिओ । धूपधाणां । कांसानी वाटकी । रूपानी वाटकी। सोनानी सली । आरीसो ( दर्पण) । - ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। २९५ ।। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ २९६ ॥ शुभफलवर्ग - नालियोर, बीजोरां, केला, नारंगी, आंधा, केरी, जांबू, कोहलां, वंताक, आंबलां, बोर, आदि श्रेष्ठ फलो । सोपारिओ। नागरखेलनां पानो । १०८ मातृका पडिओ। १ सेई अखंड चोखा-शेलडिओ, अने विविध फूलो । इत्यादि प्रतिष्ठा सामग्री पुष्कल एकत्र करी उत्तम वेदिका उपर राखवी. उत्सव क्रिया (१) मंडपप्रतिमा प्रवेश - प्रतिष्ठोत्सवना प्रथम दिवसे सर्व प्रथम मण्डपनी प्रतिष्ठा अने बेदी, पूजन करीने तेमा प्रतिमा प्रवेश | कराबवो. ते माटे प्रथम प्रतिष्ठाचार्य ४ स्नात्रकारोनी साथे प्रतिष्ठामंडपना पूर्व द्वारे जइने - १."ॐ न्यग्रोधात्मने सुराधिपतोरणाय नमः ।" आ मंत्र बोली तोरण उपर वासाक्षत नाखे, स्नात्रकारो जल-चन्दनादिक छांटे, पुष्पो चढावे अने धूप उखेवे. २-“ॐ पूर्वद्वारव्यवस्थिताय धर्मध्वजाय नमः ।" आ मंत्र भणी ध्वज उपर, ३."ॐ मेघाय नमः ।" आ मंत्र बडे डाबा हाथ तरफनी बार शाखा उपर अने ४."ॐ महामेघाय नमः" ए मंत्रथी जमणा हाथ तरफनी बार शाखा उपर त्रण त्रण वार वासाक्षत नाखे, स्नात्रकारो जल- | चन्दन-पुष्पादि चढावे. ए पछी प्रतिष्ठाचार्य दक्षिणद्वारा जइ उपर प्रमाणे ज तोरण, ध्वज अने शाखाना मंत्रो बडे ते ते उपर वासक्षेप करे. स्नात्रकारो जलचन्दनादि चढावे. ए पछी दक्षिणद्वारे जइ त्यां प्रतिष्ठा करे, तेना मंत्रो नीचे प्रमाणे-- दक्षिणद्वारना प्रतिष्ठामंत्रो-१ "ॐ उदुम्बरात्मने धर्मराजतोरणाय नमः।" २ "ॐ दक्षिणद्वारव्यवस्थिताय मानध्वजाय | पछी प्रतिष्ठाचार्य दक्षिणा त्या प्रतिष्ठा करे, तेना मा ॥ २९६ ॥ " "ॐ दक्षिणद्वार For Private & Personal use only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ २९७ ॥ नमः ।" ३ “ॐ कालाय नमः ।" ४ "ॐ नीलाय नमः ।" ए पछी पश्चिमद्वारे जइ प्रतिष्ठा करे तेना मंत्रो. ॥ श्री पाद१."ॐ अश्वत्थात्मने सलिलाधिपतोरणाय नमः।" २-"ॐ पश्चिमद्वारव्यवस्थिताय गजध्वजाय नमः।" ३ "ॐ लिप्तसूरिजलाय नमः ।" ४. “ॐ अजलाय नमः ।" प्रणीतः एज रीते उत्तरद्वारे जइ प्रतिष्ठा करे तेना मंत्रो - प्रतिष्ठा१ ॐ "प्लक्षात्मने यक्षाधिपतोरणाय नमः।"२- "ॐ उत्तरद्वारव्यवस्थिताय सिंहध्वजाय नमः।" ३-"ॐ अचलाय विधिः ॥ FN नमः ।" ४."ॐ लुलिताय नमः ।" ए पछी प्रतिष्ठाचार्य स्नात्रकारोनी साथे मूलनायक प्रतिमार्नु मुख जे दिशा संमुख राखबार्नु होय तेना सामेनी दिशाना द्वारथी मण्डपमा जइने “ॐ भूरसि भूतधात्री सर्वभूतहिते विचित्रवणैरलंकृते देवि ! भूमिशुद्धिं कुरु २ स्वाहा ।" आ मंत्रथी भूमि उपर त्रण वार वासक्षेप करे, स्नात्रकारो जल, चन्दनादि छांटे, पुष्प चढावे, धूप उखेवे, वेदीनी च्यारे तरफ १००-१०० हाथनी अन्दर अपवित्र वस्तु 'लोही, मांस-हाडकुं मल-मूत्रादि होय तो दूर करावी भूमिशुद्धि करे. ज्यां पूर्वप्रतिष्ठित पंचतीर्थी आदि प्रतिमा देववंदनादि निमित्ते स्थापवी होय त्यां सिंहासनादि स्थापन करीने ते उपर “ॐ चतुर्मुखदिव्यसिंहासनाय नमः ।" ए मंत्रथी वासक्षेप करवो. ज्यां नवीन प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाओ स्थापित करवानी होय ते वेदी उपर “ॐ अर्हत्पीठाय नमः ।" आ मंत्रे वासक्षेप करी मंडप प्रतिष्ठानुं कार्य पूर्ण कर. मंडप प्रतिष्ठा थया पछी शुद्धपणे तैयार करावेल अने घण्टाकर्णना मंत्रथी २१ बार अथवा ७ वार अभिमंत्रित करीने तैयार राखेल | । | ॥ २९७ ॥ For Private Personal use only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ | श्री पाद लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ।। ।। २९८ ॥ गोलनी ५ सेर सुखडी बालकोने बहेंची देवी, उपर प्रमाणे विधि सहित मण्डप प्रतिष्ठा करी शुभ समय जोइ वेदी उपर नवीन प्रतिमाओ पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख स्थापन | करवी, अने पूर्वप्रतिष्ठित प्रतिमानी स्थापना सिंहासन उपर करवी. जो स्थिर प्रतिष्ठा होय अर्थात् प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा सदाने माटे त्यां ज स्थापित रहेवानी होय तो तेनी नीचे पंचरत्ननी पोटली कुंभकारचक्रनी माटी सहित प्रथम स्थापीने पछी प्रतिमानी स्थापना करवी. पण प्रतिष्ठा जो 'चल' होय, एटले के प्रतिष्ठा थया पछी प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा त्यांथी बीजे लेइ जवानी होय तो तेनी नीचे वाम भागनी तरफ समूलो डाम अने नदीनी पवित्र वालुका स्थापन करवी. ते पछी प्रतिष्ठाचार्य नवां वस्त्र पहेरी स्नात्रकारो साथे मंगल निमित्ते नीचे प्रमाणे चैत्यवंदन कर, अने शान्ति निमिते देवताओना कायोत्सर्ग करवा. मूलनायकनो नमस्कार - चैत्यवंदन कही, नमुत्थुणं, अरिहंत चेइआणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिआ०, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउसग्ग करी, नमोऽर्हत्• कही, मूलनायकनी स्तुति कहेवी. मूलनायकनी स्तुति याद न होय तो - अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ ए स्तुति बोलवी, पछी लोगस्स० सवलोए० अन्नत्थ० १ नवकारनो काउसग्ग द्वितीया स्तुति नीचेनी पण कही शकाय छे. ओमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदंहिश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पछी पुक्खरवरदीवड्ढे० सुअस्स भगवओ करेमि का. अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० तृतीया स्तुति नीचेनी पण कही शकाय. 1 १. आ विधान पादलितोक्त नथी छतां वर्तमानकाले आधुनिक विधिओना लेखथी करातु होइ लख्यु छे. For Private & Personal use only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री पाद । कल्याणकलिका. खं० २॥ लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ 0 "नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दाऽऽस्या जैनगी यात् ॥३॥ पछी सिद्धाणं, बुद्धाणं, पूर्ण कहीने श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउसग्गं, बंदणवत्तिआए. अन्नत्थ० १ लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउसम्ग करी पारी नमोऽर्हत् स्तुति - "श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः प्रशान्तिकोसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥४॥ पछी श्री श्रुतदेवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नब० का० नमोऽर्हत् कही स्तुति - "वद वदति न वाग्वादिनि !" भगवति ! कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ पछी श्रीशान्तिदेवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नव० काउ० करी, नमोऽर्हत् स्तुति - श्री चतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नति कारिणी । शिवशान्तिकरी भूयात्, श्रीमती शान्तिदेवता ॥६॥ पछी श्री शासनदेवयाए करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नव० काउ० करी, नमोऽर्हत्० स्तुति - "उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥७॥ पछी श्रीभवनदेवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नवकारनो काउ० करी नमोऽर्हत्• कही स्तुति - "ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥८॥ पछी क्षेत्रदेवतायै करेमि का० अन्नत्य० १ नव० का० नमोऽ० स्तुति - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥९॥ पछी अंबिकार्य करेमि का. अन्नत्थ० १ नव० का० नमोऽर्हत् स्तुति - For Private Personal Use Only Jin Education intentional Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३०० ।। ‘“अम्बा बालाङ्किताङ्काऽसौ, सौख्यरव्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कारचित्रसिंहासनस्थिता ||१०|| पछी अच्छुप्तायै करेमि का० अन्नत्थ १ नवकार० काउ० नमोऽर्हत् स्तुति "चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या-ऽच्छुप्ता तुरगवाहना ।।११॥ पछी समस्तवेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मद्दिट्ठिसमाहिगराणं करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नवकार काउ० नमोऽर्हत्• कही स्तुतिसंघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैयावृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः || १२॥ - उपर नवकार १ गणीने बेसी, नमुत्थुणं० जावंति चेइआई०, जावंत के वि० साहू० नमो० कही, नीचेनुं स्तवन कहे. “ॐ मिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरिउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ - धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणवं नमो भगवईइ, सुयदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ||२|| इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाउ कुबेर ईसाणा । बंभोनागुत्ति दसह - मवि अ सुदिसाण पालाणं ||३|| सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवहं ||४|| साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चैव धम्मणुठ्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ जिणाइनवकारओ धणिअं ||५|| उपर 'जयवीयराय' इत्यादि कहीने चैत्यवंदना समाप्त करवी. पछी वेदी उपर बेसी प्रतिष्ठाचार्ये आत्मामां नीचे प्रमाणे शुचिविद्या आरोपवी ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३०० ।। Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुचिविद्या -"ॐ नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सब्वसाहणं, "! ॥ कल्याण- ॐ नमो सवोसहिपत्ताणं, ॐ नमो विज्जाहराणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ कं क्षं नमः, अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।" ॥ श्री पादकलिका. | उपर्युक्त शुचिविद्याने धेनुमुद्रावडे ५-७ बार आत्मामां आरोपीने पवित्र थर्बु, पछी अर्हदादि मंत्रो द्वारा आत्माने विषे सकलीकरण लिप्तसूरिखं० २॥ प्रणीतः करवू. सकलीकरणना मंत्रो अने विधि-१ ॐ हाँ नमो अरिहंताणं, हृदये-हृदये हस्तस्पर्श करवो. २-ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं, प्रतिष्ठा॥ ३०१ ।। विधिः ॥ शिरसि-मस्तकने स्पर्शवं, ३-ॐ हूँ नमो आयरियाणं, शिखायां-शिखाए स्पर्श करवो. ४-ॐ ह्रौं नमो उवज्झायाणं, कवचेसर्वांगनो स्पर्श करवो. ५-ॐ हूः नमो लोए सव्वसाहणं, अस्त्रं-आयुधग्रहण चेष्टा करवी. उपरना ५ मंत्रपदो पैकी प्रथमनां ४ पदो वडे ते ते अंगनो स्पर्श करतां अनुक्रमे आग्नेय, ऐशान, नैर्ऋत्य अने वायव्य कोण तरफ धेनुमुद्रा देखाडवी अने पांचमां पदवडे हाथोमां शस्त्रग्रहणनी चेष्टा करी पूर्व, दक्षिण, पश्चिम अने उत्तर दिशाओमा अनुक्रमे त्रासनी मुद्रा देखाडवी. न ए बधुं कर्या पछी श्रद्धालु, पवित्र अने तपविशुद्ध देह तथा मुकुट, कटक (कडां) भुजबंध, कुंडल, मुद्रिका, हार, जनोई (बैकक्ष) Hamal आदि १६ आभरणोथी भूषित श्वेतवस्त्रधारी एवा गृहस्थने देवनी जमणी भुजा तरफ उभो राखी तेने इन्द्र कल्पवो अने उक्त मंत्रो वडे तेनुं पण सकलीकरण करवू. ए प्रमाणे इन्द्रनी अंगरक्षा कर्या पछी प्रतिष्ठाचार्ये विघ्नोच्चाटन निमित्ते नीचेना भूतबलि मंत्रे बलि मंत्रीने इन्द्रना हाथे नंखाववो. भूतबलिमंत्र-"ॐ नमो अरिहंताणं, नमोसिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो आगासगामीणं, नमो चारणाइलद्धिणं, | 26 एक AR शा G Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३०२ ॥ इमे किंनर किंपुरिस महोरग गरुल सिद्ध गंधव्व जक्ख रक्खस भूय पिसाय डाइणि पभिई जिणघरणिवासिणो नियनियनिलयठ्ठिया पवियारिणो संनिहिया य असंनिहिया य ते सव्वे विलेवणपुप्फधूवपईवसणाहं बलिं पडिच्छन्तु तुट्टिकरा भवंतु सिवंकरा भवंतु सत्थयणं कुणंतु सव्वजिणाण संनिहाणप्पभावओ पसन्नभावेण सव्वत्थ रक्खं कुणंतु सव्वदुरियाणि नासेंतु सव्वासिवं उवसमेंतु संति--तु-सिवसत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा । " ते पछी स्थापेल प्रतिमाना ४ खूणाओमां ४ कलशो स्थापना, कलशोना मुखे फल मूकवां अने गलामां सूत्रे परोएल मींडलनां कांकण बांधवां अने पुष्पमालाओ पहेराववी. कलश स्थाप्या पछी प्रतिमाना अंगोमां आ प्रमाणे वर्ण न्यास करवो - १ 'ॐ हाँ' - ललाटमां, २ 'ॐ ह्रीँ" - डाबा काने, ३ 'जमणा काने, ४ 'ॐ हौं' - माथाना पाछला भागमां, ५ 'ॐ हू' मस्तक उपर. ॐ ६ ॐ क्ष्माँ' वे नेत्रो उपर, ७ ॐ क्ष्मीँ' मुख उपर, ८ 'ॐ क्ष्यूँ' कंठ भागमां, ९ ॐक्ष्म हृदयमां. १० ॐ क्ष्मः' बे भुजाओमां. ११ ‘ॐ क्रौ’ पेट उपर, १२ 'ॐ ह्रीँ' कटिभागमां, १३ ‘ॐ हूँ' बे जांघोमा, १४‘ॐ क्ष्यूँ' बे पगोमां अने १५ ‘ॐ क्ष्मः ' बे हाथोमां. उपर प्रमाणे केसर चंदन कर्पूर आदिना रसथी प्रतिमाना उक्त अंगभागोमां दृष्टिदोषनिवारणार्थं मंत्राक्षरोनो न्यास करवो. मंत्रन्यास पछी आचार्ये नीचेना दिग्बन्ध मंत्रवडे श्वेतसर्षपो मंत्रीने पूर्वादि दिशाओमां नंखावी दिग्बन्ध कराववो. किरिटि किरिटि घातय घातय परिविघ्नाय स्फोटय स्फोटय सहम्रखंडान् कुरु कुरु दिग्बन्ध मंत्र ॐ हूँ हूँ फुट् - ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३०२ ।। Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥३०३चा परमुद्रां छिन्द छिन्द परमन्त्रान् भिन्द भिन्द क्षः फट् स्वाहा" स्नान विधि – दिग्बन्ध कर्या पछी प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाने स्नानमंडपमा लइ जइ स्नान कराव. तेमां ४ कलशो छाणेल जलवडे भरीने पुष्प अक्षतादिके पूजी स्वमंत्रे अभिमंत्रित करीने आचार्य प्रथम स्थपतिनो वस्त्रालंकार, तांबूल, आदिथी सत्कार करीने एक मुद्रित (ढांकणवालो) कलश स्थपति (सूत्रधार) ने आपे, बीजा कलशो इंद्रादिकने आपीने लग्ननो 'इष्ट' नवमांश आवतां प्रथम स्थपति पोतानो कलश ढाले, पछी बीजाओ पोतपोताना कलशो बडे प्रतिमाने स्नान करावे. ए पछी १ सातधान्य, २ रत्नचूर्ण, ३ मंगलमृत्तिका, ४ कषायछाल अने ५ सदौषधि, आ पदार्थोना जल बडे कलशो भरीने एक पछी एक एम ५ स्नानो करावां, प्रथमर्नु ४ कलशस्नान अने ए पांच स्नानोना जल कलशो मंत्रवानो मंत्र नीचे प्रमाणे एक ज छे.. "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आपो जलं गृह गृण्ह स्वाहा ।" प्रत्येक अभिषेकना द्रव्यमिश्रजलवडे कलशो भरीने आ मंत्रे अभिमंत्रीने कलशमुद्राए कलशो वडे ए छ स्नान करावबां. छ पछी ७ प्रथमाष्टवर्ग, ८ द्वितीयाष्टवर्ग, ९ सर्वौषधि, १० पंचामृत, ११ कुसुमजल, १२ गन्ध, १३ वास, १४ चन्दन, १५ कुंकुम (केसर), १६ कर्पूर, १७ तीर्थोदक अने १८ कुसुमाञ्जलि, ए बीजा १२ अभिषेको करवा. अष्टवर्गादि ११ द्रव्यो जलमां नाखीने ते जल वडे कलशो भरीने अने १२ मा कुसुमांजलि माटे हाथोनी पसलीमा पुष्पो लेइने अभिषेक मंत्रे मंत्रीने प्रतिमा स्नपन करावg, आ १२ अभिषेकोनो मंत्र नीचे प्रमाणे छे - “ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु विपृथु विपृथु गन्धं गृह गृह स्वाहा ।" प्रत्येक अभिषेकना कलशो आ मंत्रवडे मंत्रवा अने कलशमुद्रा देखाडी प्रतिमा उपर ढालवा, कुसुमांजलि अभिषेकमां कलश मुद्रा | For Private & Personal use only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ | श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ ३०४ ।। श्रा नथी. प्रत्येक अभिषेक पछी नीचेना मंत्रो बडे मंत्रीने प्रतिमाना मस्तके पुष्प चढाव, अने धूप उखेववो. सर्वस्नानोनो पुष्पमंत्र- 'ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते मेदिनि पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृण्ह गृह स्वाहा ।" सर्वस्नानोनो धूपमंत्र - "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह महाभूते तेजोधिपते घू धू धूपं गृह गृण्ह स्वाहा ।" | आम स्नानादिवडे प्रतिमानी आकारशुद्धि करीने तेमां परमेष्ठि मुद्राए नीचे प्रमाणे भगवंतन आह्वान करवू. “ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" आह्वान कर्या पछी अभिमंत्रित चंदनबडे प्रतिमाने सर्वांगे विलेपन करवू, अञ्जलिमुद्राए पुष्पो चढावां, धूप उखेववो, वासक्षेप करवो अने श्वेत बस्थी ढांकी “ॐ ह्रीँ अर्हद्भ्यो नमः" आ मूल मंत्रबडे पूजवी. उक्त सर्वक्रिया-विधान स्नानमंडपमा कर्या पछी प्रतिमाने हृदय उपर स्थापी (जो प्रतिमा न्हानी होय तो हाथोमां लेइ छाती आगल राखीने अने म्होटी होय तो रथमा बेसाडी) अधिवासनामंडपने प्रदक्षिणा देतां सुवर्ण, रूप्य, कांस्य, धन, रत्नो, कोडी, प्रमुखनाj उछालता मंडपना पश्चिम द्वारे जवु, त्यां प्रतिमाने रथथी उतारीने ते द्वारथी मंडपनी अंदर प्रवेश करावबो, प्रतिमाने भद्रपीठे स्थापी तेनी सामे पीठिका उपर नन्द्यावर्तमण्डलनु पूजन करवू. "नन्द्यावर्तमण्डलनी आलेखन विधि" लगभग एक गज समचोरस सेवनना पाटलाने चंदनना द्रवनुं विलेपन करी सूकच्या पछी तेमां चोरस क्षेत्र साधबु, तेना मध्यस्थानथी सूत्र गोल भमाडीने तेमा ६ गोल वृत्तो पाडवां, अने ते वृत्तोनी बहार एक पछी एक एवा ३ गोल प्राकारो बनावबा. था | Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ १-प्रथमवृत्तमां-मध्यभागे नन्द्यावर्तनो आकार आलेखी तेना मध्यमां - “ॐ नमो हद्भ्यः स्वाहा १ अने पूर्वादि दिशाओमां अनुक्रमे-“ॐ नमः सिद्धेभ्यः स्वाहा २, ॐ नम आचार्येभ्यः स्वाहा ३, ॐ नम उपाध्यायेभ्यः स्वाहा ४ अने ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा ५, आ पदो लखवां तथा आग्नेयादि खुणाओमां अनुक्रमे-“ॐ नमो ज्ञानाय स्वाहा ६, ॐ नमो दर्शनाय स्वाहा ७, ॐ नमश्चारित्राय स्वाहा ८ अने ॐ नमः शुचिविधायै स्वाहा । ___आ ९ मंत्र पडो लखीने जिननी जमणी बाजु उपर 'ॐ नमः शक्राय स्वाहा १०, तेनी नीचे ॐ नमः श्रुतदेवतायै स्वाहा ११, जिननी डाबी बाजु 'ॐ' नम ईशानाय स्वाहा १२, नीचे ॐ नमः शान्ति देवतायै स्वाहा १३ मुं लखवू अने ॐ नमो नंद्यावर्ताय स्वाहा' आ मंत्र नंद्यावर्तनी उपर लखवो. नन्द्यावर्तनी पूर्वादि दिशाओने छेडे अनुक्रमे वज्र, यव, अंकुश अने पुष्पमालाना आकारो आलेखवा अने पूजन समये नाम मंत्रो बोलीने पुष्पादि बड़े पूजवा. (२) बीजा वृत्तमां – कर्णिकानी तरफथी निकलेली केसरनी पांखडीओ बनाववी, पांखडी मूलमां धोली, मध्यमा राती अने अंतमां पीला रंगनी करवी, पांखडीओमां दिशा विदिशामा ३-३ ना हिसाबे २४ कोष्ठको करवां अने पूर्व कोष्ठकथी शरु करीने-- ॐ नमो मरुदेव्यै स्वाहा १, ॐ नमो विजयायै स्वाहा २, ॐ नमः सेनायै स्वाहा ३, ॐ नमः सिद्धार्थायै स्वाहा |४, ॐ नमो मंगलायै स्वाहा ५, ॐ नमः सुसीमायै स्वाहा ६, ॐ नमः पृथव्यै स्वाहा ७, ॐ नमो लक्ष्मणायै स्वाहा ८, ॐ नमो रामायै स्वाहा ९, ॐ नमो नन्दायै स्वाहा १०, ॐ नमो विष्णवे स्वाहा ११, ॐ नमो जयायै स्वाहा १२, ॐ नमः श्यामायै स्वाहा १३, ॐ नमः सुयशसे स्वाहा १४, ॐ नमः सुव्रतायै स्वाहा १५, ॐ नमोऽचिरायै स्वाहा १६, ॥ ३०५ ॥ at Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३०६ ।। ॐ नमः श्रियै स्वाहा १७, ॐ नमो देव्यै स्वाहा १८, ॐ नमः प्रभावत्यै स्वाहा १९, ॐ नमः पद्मावत्यै स्वाहा २०, ॐ नमो वप्रायै स्वाहा २१, ॐ नमः शिवायै स्वाहा २२, ॐ नमो वामायै स्वाहा २३, ॐ नमः त्रिशलायै स्वाहा २४. ए २४ मातृनाम मंत्रो लखवा, पछी ए बीजा वृत्तमां ज केसरनी पांखडिओनी नीचेथी बहार निकळेलां आठ कमलपत्र पूर्वादि आठ दिशाओमां बनावीने पूर्वादि ४ दिशाओमां ॐ जयायै स्वाहा १, ॐ विजयायै स्वाहा २, ॐ अजितायै स्वाहा ३ ॐ अपराजितायै स्वाहा ४, आ चारनो न्यास करवो अने आग्नेयादि ४ विदिशाओमां – ॐ जम्भायै स्वाहा ५, ॐ जंभिन्यै स्वाहा ६, ॐ मोहायै स्वाहा ७, ॐ मोहिन्यै स्वाहा ८, आ चार देवीओनो आलेख करवो. ३ त्रीजा वृत्तमां – पूर्वादि दिशा-विदिशाओमां ३-३ कमलपत्ररूपे कोठाओ पाडीने कोष्टकनुं वलय करवु, अने ते पछी ईशान १, पूर्व २, आग्नेय ३, दक्षिण ४, नैऋत्य ५, पश्चिम ६, वायव्य ७ अने उत्तर ८ आ क्रमथी आठ दिशाओमां अनुक्रमे सारस्वत १, आदित्य २, बह्नि ३, वरुण ४, गर्दतोय ५, तुषित ६, अव्याबाध ७ अने अरिष्ट ८, ए आठ लोकान्तिक देवोनो आलेख कर्या पछी सारस्वत-आदित्य बेनी बच्चे ९ अग्न्याभ अने १० सूर्याभ, आदित्य - वह्नि बेनी बच्चे ११ मा चंद्राभ अने १२ सत्याभ, वह्नि-वरुण बेनी बच्चे १३-१४ श्रेयस्कर अने क्षेमंकर, वरुण-गर्दतोय बेनी बच्चे १५ वृषभाभ अने १६ कामचार, गर्दतोय तुषितनी बच्चे १७-१८ निर्माण अने दिशान्तरक्षित, तुषित-अव्याबाध बेनी बच्चे १९-२० आत्मरक्षित अने सर्वरक्षित, अन्याबाध - अरिष्टनी बच्चे २१-२२ मरुत अने वसु, अने अरिष्ट-सारस्वत बेनी बच्चे २३ अश्व अने २४ विश्व, ए नामक लोकान्तिक देवोनुं आलेखन कर. नीचेना कोष्ठक ऊपरथी कया दिशाभागमां कया लोकान्तिक देवनुं स्थान छे ते जणाशे - ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३०६ ।। Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ॥ ३०७ ॥ ६ १८ आ कोष्ठकने फरता आंकडाथी लोकान्तिक देवोनां क्रमिक नामोना नंबरो समजवाना छे. आ प्रत्येक कोष्ठकमां ॐ नमः सारस्वतेभ्यः स्वाहा १, ॐ नमः आदित्येभ्यः स्वाहा २, ॐ नमो वह्निभ्यः स्वाहा ३, ॐ नमो वरुणेभ्यः स्वाहा ४, ॐ नमो गर्दतोयेभ्यः पूर्वा २ स्वाहा ५, ॐ नमस्तुषितेभ्यः स्वाहा ६, ॐ नमो ऽव्याबाधेभ्यः स्वाहा ७, ॐ नमो ऽरिष्टेभ्यः स्वाहा ८, ॐ नमो ऽग्न्याभेभ्यः स्वाहा ९, ॐ नमः सूर्याभेभ्यः स्वाहा १०, ॐ नमश्चन्द्राभेभ्यः स्वाहा ११, ॐ नमः सत्याभेभ्यः स्वाहा १२, ॐ नमः श्रेयस्करेभ्यः स्वाहा १३, ॐ नमः क्षेमंकरेभ्यः स्वाहा १४, ॐ नमो वृषभाभेभ्यः स्वाहा १५, ॐ नमः कामचारेभ्यः स्वाहा १६, ॐ नमो निर्माणेभ्यः स्वाहा १७, ॐ नमो दिशान्तरक्षितेभ्यः स्वाहा १८, ॐ नमः आत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा १९, ॐ नमः सर्वरक्षितेभ्यः स्वाहा २०, ॐ नमो मरुतेभ्यः स्वाहा २१, ॐ नमो वसुभ्यः स्वाहा २२, ॐ नमो ऽश्वेभ्यः स्वाहा २३, ॐ नमो विश्वेभ्य स्वाहा २४. १६ १५ ४ १४ १३ ७ २१ २२ पश्चिम वायव्य नैर्ऋत्या उत्तरा लोकान्तिक कोष्टक २३ २४ ऐग्रणी दक्षिणा आग्नेयी ३ एप्रमाणे क्रमांक साधे पूरा नाम मंत्रो लखवा. ४ - - चोथा वृत्तमां आलेख करवो. “ॐ नमो रोहिण्यै स्वाहा १, ॐ नमः प्रज्ञप्त्यै स्वाहा २, ॐ नमो वज्रशृंखलायै स्वाहा ३, ॐ नमो वज्रांकुश्यै - दिशा - विदिशामा २-२ ना हिसाबे १६ कमलपत्रो बनावीने तेमां नीचेना क्रमथी सोल विद्यादेविओनो ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ।। ३०७ ।। Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ लिस || श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ याला ॥ ३०८ ।। त्र स्वाहा ४, ॐ नमो ऽप्रतिचक्रायै स्वाहा ५, ॐ नमः पुरुषदत्तायै स्वाहा ६, ॐ नमः काल्यै स्वाहा ७, ॐ नमो महाकाल्यै 18 स्वाहा ८, ॐ नमो गौर्ये स्वाहा ९, ॐ नमो गान्धायै स्वाहा १०, ॐ नमो महाज्वालायै स्वाहा ११, ॐ नमो मानव्यै स्वाहा १२, ॐ नमो वैरोट्यायै स्वाहा १३, ॐ नमो ऽच्छुप्तायै स्वाहा १४, ॐ नमो मानस्यै स्वाहा १५, ॐ नमो महामानस्यै स्वाहा १६ ।" ५ - पांचमा वृत्तमां - पूर्वादि दिशा विदिशाओमां कमलपत्राकारे ८ कोष्ठको बनाववां अने तेमा क्रमशः पूर्वादिमां ॐ नमः' सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा १, ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा २, ॐ नमो चमरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा ३, ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ४, ॐ नमश्चन्द्रादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा ५, ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ६, ॐ नमः किन्नरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा ७, ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ८. ए प्रमाणे मंत्रो आलेखवा. ६ - छट्ठा वलयमां – पूर्वादि दिशाओमां कमल पत्राकारे आठ कोष्ठको करीने तेमां - ॐ नमः इन्द्राय स्वाहा १, ॐ नमोऽग्नये स्वाहा २, ॐ नमो यमाय स्वाहा ३, ॐ नमो निर्ऋतये स्वाहा ४, ॐ नमो वरुणाय स्वाहा ५, ॐ नमो वायवे स्वाहा ६, ॐ नमः कुबेराय स्वाहा ७, ॐ नमः ईशानाय स्वाहा ८, लखवू तथा उर्ध्वदिशामां ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा ९, अने अधोदिशामां 'ॐ नमो धरणेन्द्राय स्वाहा' १० लखवू. प्रथम वृत्तमा नन्द्यावर्त्तस्थित जिनबिम्बनां चरणो नीचे - शा यान ल || ३०८ ॥ ANA Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ॥ ३०९ ॥ Jain Education Intern “१ ॐ नम आदित्याय स्वाहा, २ ॐ नमः सोमाय स्वाहा, ३ ॐ नमो मङ्गलाय स्वाहा, ४ ॐ नमो बुधाय स्वाहा, ५ ॐ नमो बृहस्पतये स्वाहा, ६ ॐ नमः शुक्राय स्वाहा, ७ ॐ नमः शनैश्वराय स्वाहा, ८ ॐ नमो राहवे स्वाहा अने ९ ॐ नमः केतवे स्वाहा. ' ए नव मन्त्रोथी नवग्रहोने आलेखवा. "" वृत्तोनी बहार अर्थात् गढोनी अंदर दक्षिण दिशामां 'ॐ नमः क्षेत्रपालाय स्वाहा' अग्निकोणमां 'ॐ नमो गणधरादि त्रिकाय स्वाहा', नैर्ऋत्यमां 'ॐ नमो भवनपत्यादिदेवी त्रिकाय स्वाहा' वायव्यमां 'ॐ नमो भवनपत्यादिदेवत्रिकाय स्वाहा' अने ईशानमां 'ॐ नमो वैमानिकदेवादित्रिकाय स्वाहा'. ए पर्षदा मंत्रो लखवा. त्रण प्राकारो - नन्द्यावर्त्तनां ६ वर्तुलो पछी तेओने आवरी लेता त्रण प्राकारोनां ३ वलयो बनाववां, आनी चारे दिशाओमां द्वारे राखी ते उपर तोरणो अने ध्वजो आलेखवा. 1 प्रथम प्राकारनां पूर्वादि द्वारोनी अंदर बने बाजुए १ वैमानिक, २ व्यंतर, ३ ज्योतिष अने ४ भवनपति; ए देवदेवीओनां वे बे युगलो अनुक्रमे पीत, श्वेत रक्त अने कृष्णवर्णनां आलेखवां. प्रथम प्राकारनां पूर्वादि द्वारपालो अनुक्रमे सोम, यम, वरुण अने कुबेर; धनुः, दण्ड, पाश अने गदाधारी आलेखवां. प्रत्येक द्वारा मध्यमां यष्टिधारी तुंबरुनो आलेख करवो. बीजा प्राकारनां पूर्वादिद्वारपाली तरीके जया १, विजया २, अजिता ३, तथा अपराजिता ४; अने त्रीजा बाह्य प्राकारनां पूर्वादिद्वारपालो तरीके चार तुंबरू आलेखवा. Private & Personal Use Only ॥ श्री पादलिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ॥ ३०९ ॥ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥ ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ त्रणे प्राकारोनां पूर्वादि तोरणो एक ज नामनां छे. पूर्वद्वारोनां 'सुराधिप' १, दक्षिणद्वारोनां 'धर्मराज' २, पश्चिम द्वारोनां | 'सलिलाधिप' ३ अने उत्तरद्वारोनां 'यक्षाधिप' ४; ए चार चार तोरणो आलेखवां. त्रणे प्राकारोनां पूर्वादि ध्वजोनां नामो पण समान छ, त्रणे पूर्वद्वारो उपर 'धर्मध्वजो' १, दक्षिणद्वारो उपर 'मानध्वजो' २, 1 पश्चिम द्वारो उपर 'गजध्वजो' ३, अने उत्तर द्वारो उपर 'सिंहध्वजो' ४, ए चार चार आलेखवां. बीजा प्राकारमा तिर्यश्चो अने त्रीजा प्राकारमां यान-वाहनो आलेखवां, त्रण प्राकारोनी बहारनी भूमिमां देव अने मनुष्योने आलेखवा. चारे द्वारोनी बन्ने बाजुए कमलवन सहित वावडियो आलेखवी. अंतमां वज्रलांछित पृथ्वीमंडप आलेखीने पूर्वादि ४ दिशाओमां "परविद्याः क्षः फुट्" अने अग्नेयादि ४ विदिशाओमां – “परमंत्राः क्षः फुट्" आ मंत्राक्षरो लखवा. नन्द्यावर्त्तना पाटलाना या पट्टना चारे खुणाओ उपर कमलस्थित अने कमलोवडे ढांकेला मुखवाला ४ पूर्णकलशो आलेखवा, अने सर्वनी बाहर वायुमंडल आपq. __ खुलासो - 'आलेखन' अथवा 'आलेख' नो 'अर्थ' चित्रबुं छे, एथी समजबुं जोइये के नंद्यावर्तना पट्टना प्रत्येक वलयमां अने वलयना प्रत्येक कोष्ठकमां आवतां देव-देविओनां नामोना स्थाने तेमनां चित्रो आलेखवाना होय छे, पण ए कार्य अशक्य होइ एमनां नाममंत्रो ज लखवानी पद्धति प्रचलित धई छे, तेथी प्रत्येक देवदेवीना स्थाने तेनो नाममंत्र लखाय छे. नामनी पूर्वे 'ॐ नमः' अने नामने चतुर्थी विभक्ति लगाडीने अन्तमा 'स्वाहा' शब्द लखबो, एने 'नाममंत्र' कहे छे. नाममंत्र लखवा जेटलो पण अवकाश न होय तो एकलां नामो लखीने पण पूजन करी शकाय छे. वृत्तोनी बहार ३ प्राकारोनां द्वारो, तेनां तोरणो, ध्वजो, वावडियो, कलशो अने पार्थिवादि मंडलो, बनतां सुधी ते ते आकारमा For Private & Personal use only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ | श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ।। ३११ ॥ चित्रवां जोइये, छतां तेम बनवू अशक्य होय तो प्रत्येकनुं नाम मात्र लखीने काम चलावी लेवू, पण प्रत्येक वलयना कोष्ठकोमां के बहार | लखातां नामोनी साथे संख्यांक अवश्य लखबो के जेथी पूजन समये नंबरवार मंत्रोवड़े नंबरवार कोष्ठकोमा आवता आराध्यपदोनुं पूजन | सुगमताथी थइ शके. नंद्यावर्तनी पूजन विधि पूर्वोक्त प्रकार नन्द्यावर्तन आलेखन करीने प्रसंग आवतां आवश्यक सामग्री जोडीने तेनुं पूजन करवू. नंद्यावर्त पूजननो मुख्य अधिकार प्रतिष्ठा गुरुनो छे, योग्य प्रतिष्ठा गुरुनो योग होय तो नन्यावर्त्तनुं पूजन तेमना हाथे ज करावq, प्रत्येक पदनो मंत्र बोली गुरु वासक्षेपवडे तेनुं पूजन करे, ते पछी स्नात्रकार श्रावक पुष्पाक्षतादि चढावे. नन्द्यावर्तनी पूजा-सामग्री तरीके वासक्षेप, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, फल, नैवेद्य, ए पदार्थो मुख्य छे. कोइ ग्रंथमा मुद्रानो पण उल्लेख छ, आज काल केटलाक विधिकारो पैसा-टका पूजामां मूकावे पण छे. नंद्यावर्तना वलयोमा मुख्य देव पदो ११३ छे' एटले चढाववानां द्रव्योनी संख्या ते हिसाब राखवी, प्रथम वलयमां नन्द्यावर्त, वज्र, यव, अंकुश अने पुष्पमाला, आ मंगल चिह्नोनुं पूजन तेना मंत्रो बोलीने वासक्षेपथी कर, प्राकारगढ परिषत्रिलो, देवयुगलो, द्वारपालो, तोरणो, ध्वजो अने मंडलो पण वासक्षेप बडे पूजवां. प्रत्येक कोष्टकगत पदनो मंत्र बोलीने ते पछी ते पदनु पूजन करवू, प्रत्येक वलयना पूजामंत्रो नीचे प्रमाणे छे. नन्द्यावर्त पूजनमंत्रो-प्रथम वलये ९ पदानि, ॐ नमोऽर्हद्भ्यः स्वाहा १, ॐ नमः सिद्धेभ्यः स्वाहा २, ॐ नम आचार्येभ्यः १. प्रथम बलयमा अर्हदादि ९ अने इन्द्रादि ४, बीजामां जिनमाता २४ अने जयादि ८, त्रीजा वृत्तमा २४ लोकान्तिक, चोधामा १६ विद्यादेवी, पांचमामां इन्द्रादि ८, छट्ठामा दिशापाल १० ग्रह ९ अने क्षेत्रपाल १ कुल ११३ । For Private & Personal use only ॥ ३११ ॥ Jan Education Inter! Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ३१२॥ व स्वाहा ३, ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः स्वाहा ४, ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः स्वाहा ५, ॐ नमो ज्ञानाय स्वाहा ६, ॐ नमो दर्शनाय | स्वाहा ७, ॐ नमश्चारित्राय स्वाहा ८, ॐ नमः शुचिविद्यायै स्वाहा ९ । ॥ श्री पाद___ प्रथम वलये वैयावृत्त्यकर ४ पदानि. ॐ नमः शक्राय स्वाहा १ । ॐ नमः श्रुतदेवतायै स्वाहा २ । ॐ नम ईशानाय लिप्तसूरिस्वाहा ३॥ ॐ नमः शान्तिदेवतायै स्वाहा ॥ प्रणीतः प्रथम वलये ५ मंगलचिलानि-ॐ नमो नन्द्यावर्ताय स्वाहा । ॐ नमो वज्राय स्वाहा २ । ॐ नमो यवाय स्वाहा || प्रतिष्ठा३। ॐ नमोऽऽकुशाय स्वाहा ४॥ ॐ नमः सुमनोदाम्ने स्वाहा । विधिः ॥ द्वितीय वलये २४ जिनमातृपदानि-ॐ नमो मरुदेव्यै स्वाहा । ॐ नमो विजयायै स्वाहा । ॐ नमः सेनायै स्वाहा | ३ । ॐ नमः सिद्धार्थायै स्वाहा ।। ॐ नमो मंगलायै स्वाहा ५। ॐ नमः सुसीमायै स्वाहा ६। ॐ नमः पृथिव्यै स्वाहा ७। ॐ नमो लक्ष्मणायै स्वाहा ८। ॐ नमो रामायै स्वाहा ९॥ ॐ नमो नन्दायै स्वाहा १०॥ ॐ नमो विष्णवे स्वाहा ११॥ ॐ नमो जयायै स्वाहा-१२ । ॐ नमः श्यामायै स्वाहा १३ । ॐ नमः सुयशायै स्वाहा १४ । ॐ नमो सुव्रतायै स्वाहा ।१५। ॐ नमोऽचिरायै स्वाहा १६। ॐ नमः श्रियै स्वाहा १७। ॐ नमो देव्यै स्वाहा १८॥ ॐ नमः प्रभावत्यै स्वाहा १९॥ ॐ नमः पद्मावत्यै स्वाहा २०॥ ॐ नमो वप्रायै स्वाहा २१॥ ॐ नमः शिवायै स्वाहा २२॥ ॐ नमो वामायै स्वाहा २३। ॐ नमस्त्रिशलायै स्वाहा २४॥ द्वितीय वलये जयादि ८ देवी पदानि-ॐ नमो जयायै स्वाहा १, ॐ नमो विजयायै स्वाहा २, ॐ नमोऽजितायै | || ३१२ ॥ स्वाहा ३, ॐ नमोऽपराजितायै स्वाहा ४, ॐ नमो जंभायै स्वाहा ५, ॐ नमो जंभिन्यै स्वाहा ६, ॐ नमो मोहायै स्वाहा || Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ नि எம் | श्र ७, ॐ नमो मोहिन्यै स्वाहा । तृतीय वलये २४ लोकान्तिक पदानि-ॐ नमः सारस्वतेभ्यः स्वाहा १, ॐ नम आदित्येभ्यः स्वाहा २, ॐ नमो वह्निभ्यः | स्वाहा ३, ॐ नमो वरुणेभ्यः स्वाहा ४, ॐ नमो गर्दतोयेभ्यः स्वाहा ५, ॐ नमस्तुषितेभ्यः स्वाहा ६, ॐ नमोऽव्याबाधेभ्यः स्वाहा ७, ॐ नमोऽरिष्टेभ्यः स्वाहा ८, ॐ नमोऽग्न्याभेभ्यः स्वाहा ९, ॐ नमः सूर्याभेभ्यः स्वाहा १०, ॐ नमश्चन्द्राभेभ्यः स्वाहा ११, ॐ नमः सत्याभेभ्यः स्वाहा १२, ॐ नमः श्रेयस्करेभ्यः स्वाहा १३, ॐ नमः क्षेमंकरेभ्यः स्वाहा १४, ॐ नमो वृषभेभ्यः स्वाहा १५, ॐ नमः कामचारेभ्यः स्वाहा १६, ॐ नमो निर्माणेभ्यः स्वाहा १७, ॐ नमो दिशान्तरिक्षेभ्यः स्वाहा १८, ॐ नमः आत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा १९, ॐ नमः सर्वरक्षितेभ्यः स्वाहा २०, ॐ नमो मरुतेभ्यः स्वाहा २१, ॐ नमो वसुभ्यः स्वाहा २२, ॐ नमोऽश्वेभ्यः स्वाहा २३, ॐ नमो विश्वेभ्यः स्वाहा २४ । चतुर्थ वलये १६ विद्यादेवी पदानि- ॐ नमो रोहिण्यै स्वाहा । ॐ नमः प्रज्ञप्त्यै स्वाहा २। ॐ नमो वज्रशृंखलायै स्वाहा ३॥ ॐ नमो वज्रांकुश्यै स्वाहा ४॥ ॐ नमोऽप्रतिचक्रायै स्वाहा ५। ॐ नमः पुरुषदत्तायै स्वाहा ६। ॐ नमः काल्यै स्वाहा । ॐ नमो महाकाल्यै स्वाहा ८॥ ॐ नमो गौर्यै स्वाहा । ॐ नमो गान्धायै स्वाहा १०॥ ॐ नमो महाज्वालायै स्वाहा १॥ ॐ नमो मानव्यै स्वाहा १२॥ ॐ नमो वैराट्यायै स्वाहा १३॥ ॐ नमोऽछुप्तायै स्वाहा १४॥ ॐ नमो मानस्यै स्वाहा १५। ॐ नमो महामानस्यै स्वाहा १६।। पंचम वलये सौधर्मेन्द्रादि ८ पदानि-ॐ नमः सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॐ GE GH For Private & Personal use only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३१४ ।। नमश्वमरेन्द्रादिभ्यः स्वाहा ३ | ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ४। ॐ नमश्चन्द्रादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा ५ । ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ६। ॐ नमः किन्नरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ॐ नमस्तद्देवीभ्यः स्वाहा ८। षष्ठ वलये दिक्पालपदानि- ॐ नम इन्द्राय स्वाहा १ | ॐ नमोऽग्नये स्वाहा २। ॐ नमो यमाय स्वाहा ३ | ॐ नमो निरृतये स्वाहा ४। ॐ नमो वरुणाय स्वाहा ५ । ॐ नमो वायवे स्वाहा ६ । ॐ नमः कुबेराय स्वाहा ७। ॐ नम ईशानाय स्वाहा ८। ॐ नमो धरणेन्द्राय स्वाहा ९। ॐ नमः ब्रह्मणे स्वाहा १०। प्रथम वलये जिनचरणाधो ग्रहपदानि ॐ नम आदित्याय स्वाहा १ । ॐ नमः सोमाय स्वाहा २ । ॐ नमो मंगलाय स्वाहा ३। ॐ नमो बुधाय स्वाहा ४। ॐ नमो बृहस्पतये स्वाहा ५ । ॐ नमः शुक्राय स्वाहा ६ । ॐ नमः शनैश्वराय स्वाहा ७। ॐ नमो राहवे स्वाहा ८। ॐ नमः केतवे स्वाहा ९ । क्षेत्रपालपदं - ॐ नमो दक्षिणदिग्व्यवस्थित क्षेत्रपालाय स्वाहा । परिषत्त्रिकपदानि - ॐ नमो गणधरादित्रिकाय स्वाहा । ॐ नमो भवनपत्यादिदेवीत्रिकाय स्वाहा २। ॐ नमो भवनपत्यादिदेवत्रिक्राय स्वाहा ३। ॐ नमो वैमानिकदेवादित्रिकाय स्वाहा ४ | प्रथम प्राकारे द्वारोभयपार्श्वस्थितदेवयुगलकपदानि - ॐ नमो वैमानिकयुगलकाभ्यां स्वाहा १ । ॐ नमो व्यन्तरयुगलकाभ्यां स्वाहा २। ॐ नमो ज्योतिष्कयुगलकाभ्यां स्वाहा ३ | ॐ नमो भवनपतियुगलकाभ्यां स्वाहा ४ | प्रथम प्राकार द्वारपाल पदानि ॐ नमः सोमाय स्वाहा । ॐ नमो यमाय स्वाहा २। ॐ नमो वरुणाय स्वाहा ३ | ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३१४ ।। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॐ नमः कुबेराय स्वाहा ४॥ ॥ कल्याण द्वितीय प्राकार द्वारपाली पदानि- ॐ नमो जयायै स्वाहा । ॐ नमो विजयायै स्वाहा । ॐ नमोऽजितायै स्वाहा | कलिका. ३। ॐ नमोऽपराजितायै स्वाहा ।। खं० २ ॥ तृतीय प्राकार द्वारपाल पदानि - ॐ नमस्तुम्बरवे स्वाहा १॥ ॐ नमस्तुम्बरवे स्वाहा २॥ ॐ नमस्तुम्बरखे स्वाहा ३। ॐ नमस्तुम्बरवे स्वाहा ४॥ पूर्वादितोरणपदानि - ॐ नमः सुराधिपतोरणेभ्यः स्वाहा । ॐ नमो धर्मराजतोरणेभ्यः स्वाहा । ॐ नमः ae सलिलाधिपतोरणेभ्यः स्वाहा ३॥ ॐ नमः यक्षाधिपतोरणेभ्यः स्वाहा ।। पूर्वादिध्वजपदानि - ॐ नमो धर्मध्वजेभ्यः स्वाहा । ॐ नमो मानध्वजेभ्यः स्वाहा २। ॐ नमो गजध्वजेभ्यः स्वाहा ३। ॐ नमः सिंहध्वजेभ्यः स्वाहा । मण्डलपूजा मंत्रपदानि - ॐ नमः पीतयुतिपृथिवीमण्डलाय स्वाहा १ । ॐ नमः कृष्णद्युतिवायुमंडलाय स्वाहा २ । नन्द्यावर्तना पूजनना अन्ते यथोपलब्ध फलमेवो चढावा धूप उखेवी, पाटलाने दशिया बडे नवा श्वेत वस्त्रे ढांकबो, उपर गेवासूत्र अथवा रक्तसूत्र वींटवू. वस्त्र उपर चन्दन केसरना छांटा नाखवा, पुष्प-अक्षत वेरखां, प्रतिष्ठागुरुए वासक्षेप करवो, स्थिर प्रतिष्ठामां नन्दावर्तना कर्णिका भागमा प्रतिमानी कल्पना करवी अने चरप्रतिष्ठामा त्यां प्रतिमा स्थापन करवी अने ते पछी पाटलो प्रतिष्ठाप्य जिनप्रतिमावाली वेदी उपर आगलना भागमा स्थापित करवो, आगे बीजा पाटिया उपर नैवेद्य ढोर्बु, ॥ इति नन्दावर्तपूजा मंत्रपदानि ॥ ॥ ३१५ ।। Jan Education Intematon For Private Personal use only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G । कल्याणकलिका. खं०२॥ | ॥ श्री पादथाना लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ S ॥ ३१६ ॥ dh ab चल अधिवासना ए पछी पुष्प, अक्षत वास, चंदन, जवमाला, कंकल, वस्त्र, मीढल, आदि अधिवासनानी सामग्री एकत्र करी सौभाग्यमंत्रे अथवा अधिवासना मंत्रबडे मंत्रवी, मुद्राओ देखाडवी, पछी ते लेइने प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी पासे जवू, प्रथम चन्दन वडे प्रतिमाने सर्वांगे विलेपन करवू, पुष्पो चढावबां अने बासक्षेप करवो. ते पछी कपाट अने जिनचक्र मुद्राओ बडे शक्तिने उत्तेजित करी प्रतिमाना १ मस्तक, २ दक्षिणस्कन्ध, ३ वामस्कन्ध, ४ दक्षिणकुक्षि अने ५ वामकुक्षि; आ पांच अंगोमां अथवा तो १ मस्तक, २ हृदय, ३ नाभि, ४ पृष्ठभाग, ५ दक्षिणभुजा, ६ वामभुजा, ७ दक्षिण ऊरु (साथल) अने ८ वाम ऊरु; आ आठ अंगोमा आचार्य मंत्रवडे अथवा बीजा (वर्धमानविद्यादि) मंत्रबडे मंत्रन्यास करवो. ए पछी सौभाग्यमुद्रा पूर्वक प्रतिमामा सौभाग्यमंत्रनो न्यास करवो. अधिवासना मंत्रो - १. "ॐ नमो भगवओ उसभसामिस्स पढमतित्थयरस्स सिज्झउ मे भगवई महाविज्जा जेण सच्चेण इंदेण सव्वदेवसमुदयेण मेरुम्मि सब्बोसहीहिं सब्वे जिणा अहिसित्ता तेण सव्वेण अहिवासयामि सुब्बयं दृढब्वयं सिद्धं बुद्धं सम्मइंसणमणुपत्तं हिरि हिरि सिसि सिरि मिरि मिरि गुरु गुरु अमले अमले विमले विमले सुविमले सुविमले मोक्खमग्गमणुपत्ते स्वाहा ।" अथवा - २. “ॐ नमो खीरासवलद्धीणं ॐ नमो महुआसवसद्वीणं, ॐ नमो संभिण्णसोईणं, ॐ नमो पयाणुसारिणं ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विजं पउजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ ॐ के क्षः स्वाहा ।" आ बे अधिवासना विद्याओ पैकीनी कोई पण एक विद्या ३ वार भणीने प्रतिमा उपर वासनिक्षेप करी तेनी अधिवासना करवी. अधिवासनानन्तर आचार्ये - G CA न का do For Private & Personal use only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ || श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ ३१७॥ ॐ नमो वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमिणे सोमणसे महुमहुरे जयंते अपराजिए स्वाहा ।" आ सौभाग्यमंत्र बड़े ७ वार जपीने प्रतिमाने कंकण, मीढल अने जबमाला बांधवी. ए पछी प्रतिष्ठाचार्ये प्रतिमामां नीचे प्रमाणे पृथिव्यादि तत्त्वोनो न्यास करवो १ ॐ हाँ पृथिव्यै नमः, २ ॐ हाँ गन्धाय नमः, ३ हाँ अभ्यो नमः, ४ ॐ हाँ रसाय नमः, ५ ॐ हाँ तेजसे | नमः, ६ ॐ ह्रां रूपाय नमः, ७ ॐ हाँ वायवे नमः, ८ ॐ हाँ स्पर्शाय नमः, ९ ॐ हाँ आकाशाय नमः, १० ॐ हाँ शब्दाय नमः, १ ॐ हाँ पादाभ्यां नमः, ॐ हाँ पादाधिपतये विष्णवे नमः, पादाधिपाऽस्य गमनोत्साहं कुरु कुरु । २ ॐ हाँ पाणिभ्यां नमः, ॐ हाँ पाण्यधिपतये इन्द्राय नमः । पाण्यधिपाऽस्य पदार्थग्राहकत्वं कुरु कुरु । ३ ॐ हाँ पायवेनमः । ॐ पाय्वधिपतये मित्राय नमः । पाय्वधिपाऽस्य वायूत्सर्ग कुरु कुरु । ४ ॐ हाँ उपस्थाय नमः । ॐ हाँ उपस्थाधिपतये ब्रह्मणे नमः । उपस्थाधिपाऽस्यानन्दं कुरु कुरु । ५ ॐ हाँ वाचे नमः । ॐ हाँ वागधिपतये अग्नये नमः । वागधिपाऽस्य वाचं कुरु कुरु । ६ ॐ हाँ त्वचे नमः । ॐ ह्रां त्वगधिपतये वायवे नमः । त्वगधिपास्य स्पर्शग्राहकत्वं कुरु कुरु । ७ ॐ ह्रां जिह्वायै नमः । ॐ ह्रां जिह्वाधिपतये नमः । जिह्वाधिपास्य रसग्राहकत्वं कुरु कुरु । ८ ॐ ह्रां घ्राणाय नमः । ॐ ह्रां प्राणाधिपतिभ्यामश्विभ्यां नमः । घ्राणाधिपास्य गन्धग्राहकत्वं कुरु कुरु । Jain Education Inter For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ ३१८ ॥ ९ ॐ ह्रां चक्षुषे नमः । ॐ हाँ चक्षुरधिपतये रक्ताय नमः चक्षुरधिपाऽस्य रुपग्राहकत्वं कुरु कुरु । १० ॐ हाँ श्रोत्राभ्यां नमः । ॐ हाँ श्रोत्राधिपतये आदित्याय नमः । श्रोत्राधिपाऽस्य शब्दग्राहकत्वं कुरु कुरु । ११ ॐ हाँ मनसे नमः । ॐ ह्रां मनोधिपतये चन्द्राय नमः । मनोऽधिपास्य संकल्पविकल्पं कुरु कुरु । १२ ॐ हाँ अहंकाराय नमः । ॐ हाँ अहंकाराधिपतये नमः । अहंकाराधिपास्याभिमानं कुरु कुरु । १३ ॐ हाँ बुद्धथै नमः । ॐ ह्रां बुद्धयधिपतये नमः । बुद्धयधिपास्य बोधं कुरु कुरु । १४ ॐ हाँ रागाय नमः । ॐ हाँ रागाधिपतये नमः । रागाधिपास्य विषयेषु रागं कुरु कुरु । १५ ॐ हाँ विद्यायै नमः । ॐ ह्रां विद्याधिपतये नमः । विद्याधिपास्य ज्ञानाभिव्यक्तिं कुरु कुरु । १६ ॐ हाँ कलायै नमः । ॐ हाँ कलाधिपतये नमः कलाधिपास्य कर्तृत्वव्यक्तिं कुरु कुरु । नाडीदशक विन्यास - १ ॐ हाँ इडायै नमः । २ ॐ हाँ पिङ्गलायै नमः । ३ ॐ ह्रां सुषुम्णायै नमः । ४ ॐ हाँ सावित्र्यै नमः । ५ | ॐ हाँ शंखिन्यै नमः । ६ ॐ हाँ कूष्माण्ड्यै नमः । ७ ॐ हाँ यशोव (म) त्यै नमः । ८ ॐ हाँ हस्तिजिह्वायै नमः। | ९ ॐ ह्रां पूषायै नमः । १० ॐ हाँ अलम्बुषायै नमः। वायुदशकविन्यास - १ ॐ ह्रां प्राणाय नमः । २ ॐ हाँ अपानाय नमः । ३ ॐ हाँ समानाय नमः । ४ ॐ हाँ उदानाय नमः । ५ || ३१८ ॥ For Private & Personal use only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थान GA ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ बा था का ॐ हाँ व्यानाय नमः । ६ ॐ हाँ नागाय नमः । ७ ॐ हाँ कूर्माय नमः । ८ ॐ हाँ कृकलासाय नमः । ९ ॐ हाँ Jas देवदत्ताय नमः । १० ॐ हाँ धनञ्जयाय नमः । || श्री पादसहजगुणस्थापन – पृथिव्यादि तत्वोनो विन्यास कर्या पछी आ मंत्रवडे प्रतिमामा सहजातिशयो स्थापन करवा लिप्तसूरि“ॐ नमो विश्वरूपाय अर्हते केवलज्ञानदर्शनधराय हूँ ह्रौं सः सहजगुणान् जिनेशे स्थापयामि स्वाहा ।" प्रणीतः ए मंत्रद्वारा सहजगुण स्थापी अभिमंत्रित श्वेत वस्त्रथी प्रतिमा आच्छादन करवू, उपर पुष्प अक्षत नाखवा, चंदन छांटवू अने रत्न प्रतिष्ठा विधिः ॥ तथा फलमिश्रित सात धान्यनो प्रतिमाने अभिषेक करवो (शणवीज १, व्रीहि २, कुलत्थ ३, जब ४, कांग ५, उडद ६, अने सरसव, ए सात धान्यो प्रतिमा उपर वरसावां.) ए पछी नवीन वस्त्र ओढाडेल ते प्रतिमानी चारे तरफ ४ श्वेत कलशो स्थापन करवा, कलशो जलबडे भरी अंदर अक्षत, सुवर्ण, रुप्य अने मणि (पंचरत्न) नाखबां, उपर चंदननु विलेपन करवू. काठे पुष्पमालाओ पहेराववी, मुखे जवारनां पात्रो मूकवां अने चोगुणा रक्तसूत्रना तांतणे भरेला ४ तराकोना सूत्रवडे ते कलशो बांधवा. गहूंना आटाना ४ कोडियां करी घी-गोलथी भरवां अने तेमां दीपको प्रगटावी कलशोनी पासे सुंदर अक्षतनी ढगलीओ करी तेनी उपर दीपको मूकवा, पासे शेलडी प्रमुख मंगलिक द्रव्यो मूकवां. ते पछी ७ सात सरावो (कोडियां) मां भिन्न भिन्न प्रकारना विविध पक्वान्नमय कंद-मूल-मिश्र बलि (नैवेद्य) देवो, बलिना ७ सरावो नीचे प्रमाणे करवा- १ दूधपाकनो, २- गोलना पिण्डोनो, ३-खीचडीनो, ४-दहि अने भातना करंबानो, ५-सुहाली (सुंवाळी)नो, ६-शालिना भातनो अने ७ तलेल पिंडलिओ (मुठीया)नो, सरावोमां मेवो तेमज सुगंधीवास पुष्पो नांखवा. || ३१९ ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ए पछी चवरी (चोरी) मांडवी, तेमां जवारा, वेदी, आदि ८ मंगलिक द्रव्यो स्थापन करवां, चवरी अने वेदीने रक्तसूत्र वडे वींटीने | मजबूत करवी, चवरीना ४ खुणाओमां रक्षानिमित्ते वज्ररूपी ४ बाणो अथवा भालडिओ (नाना भालाओ) अखमंत्रे अभिमंत्रित करीने खोसवी. ए पछी रूपलावण्यवती अने सुन्दरवेशवाली ४ अथवा ८ युवति सधवा स्त्रियोए चबरीना ४ खूणाओमां ४ कलशो स्थापन करवा, कलशोना मुखे गोलना पिंडो मूकवा अने गलामां सुहालीनी माला पहेराववी, पछी कासानी थालीमा राखेल (दुर्वा) थ्रो, दहि, अक्षत, तराक आदि उपकरणो सहित सुवर्णादि दान देती ते ४ अथवा ८ स्त्रियो रक्तसूत्रबडे स्पर्श करीने पुंखणां करे, साथेनी बीजी स्त्रियो मंगल गीत गावे, आ स्त्रियोनो वेष सारामां सारो होवो जोईये, आ पुंखवानी क्रिया करनारी स्त्रिओए यथाशक्ति सुवर्णादिनुं दान कर, जोईये, जिनने पुंखनारी स्त्रियो कदापि काले वैधव्य अथवा दारिद्यपणाने पामती नथी. पुंग्वणां करनारी स्त्रियोने गोल लवण आदि आपीने तेमनो सत्कार करवो, एमना हाथे ज लूणपाणी अने आरति पण उतराववी. ते पछी संघसहित चैत्यवन्दन करवू, वर्धमान स्तुति कहेवी, त्रण स्तुतिओ कह्या पछी 'सिद्धाणं बुद्धाणं ' कही श्री अधिवासनादेवतायै | करेमि काउसग्गं, अन्नत्य उससियेणं० १ लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग करी नमोऽर्हत. कही “विश्वाऽशेष-सुवस्तुषु, मन्त्रैर्याऽजसमधिवसति वसतौ । साऽस्यामवतरतु श्री-जिनतनुमधिवासना देवी ॥१॥" आ स्तुति कहेवी, उपरांत - "प्रोत्फुल्लकमलहस्ता, जिनेन्द्रवरभवनसंस्थिता देवी । कुन्देन्दुशंखवर्णा, देवी अधिवासना जयति ॥१॥" आ स्तुति कहीने बाकीना देवताओना काउस्सग्गो करी स्तुतिओ कही चैत्यवन्दना संपूर्ण करवी. Jan Education In tional Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। ३२१ ॥ आ प्रमाणे विधिथी अधिवासित करीने भगवन्तने गन्ध-धूप - पुष्पादिके वासित अने सुन्दर पाथरेली विद्रुमशय्यामां (नवपल्लव जेवी कोमल रक्तास्तरणवाली शय्यामां ) पोढाववा अने उपर अभिमंत्रित रक्त वस्त्र ओढावj. पछी सात स्वरमय गीतो गातां, मंगल वाद्यो वगाडतां चतुर्विध श्रीश्रमणसंघनी साथे धर्मजागरिका करवी. इति अधिवासना । प्रतिष्ठा विधिः - अधिवासना थया पछी केटलोक समय व्यतीत करवो, रात बीतीने सूर्योदय थइ गया पछी प्रतिष्ठा करवी. पूर्वे जेम विघ्नोच्चाटन निमित्ते भूतबलिनो प्रक्षेप कर्यो तेम आ प्रसंगे प्रथम शान्तिबलि नाखीने पछी चैत्यवन्दनादिक कार्यों करवां' ते पछी प्रतिमा उपरनुं बस्त्र उठावी लइने सौभाग्यवती स्त्रीना वा कुमारिकाना हाथमां आपवुं अने रूपानी वाटकीमां तैयार राखेल मधु-घृतरूप अंजनमां सोनानी शलाका भरी लग्न - नबामांशमां 'ॐ अर्हन्' आ मंत्रनुं उच्चारण करवा पूर्वक जिनप्रतिमानुं 'नयनोन्मीलन' करवुं, अर्थात् अंजनशलाका करी ज्ञानरूप नेत्र उघाडवां. अंजनशलाका करीने दृष्टिना संतर्पण निमित्ते घृत तथा दधिनां पात्रो देखाडवां अने आरीसो पण देखाडवो, पछी १ चैत्यवन्दनमां ३ वर्धमानस्तुतिओ कह्या पछी 'श्री प्रतिष्ठादेवतायै करेमि काउस्सग्गं अन्नत्य ऊससिएणं०' १ लोगस्ससागरवरगंभीरा सुधीनो काउस्सग्ग करी, पारी, नमोऽर्हत् कही - • " यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिम्बं सा विशतु देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥ जड़ सग्गे पायाले, अहवा खीरोदहिम्मि कमलवणे । भगवइ करेहि संतिं सन्निज्झं सयलसंघस्स ||२|| " आबे स्तुति का पछी बीजा देवताओना काउस्सग्ग करवा अने स्तव कह्या बाद जयवीयराय कही चैत्यवंदना समाप्त करवी ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३२१ ।। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ "ॐ नमो भगवते अर्हते घातिक्षयकारिणे घातिक्षयोत्पन्नगुणान् जिने संस्थापयामि स्वाहा ।' आ मंत्र बडे प्रतिमामा घातिकर्मक्षयोत्पन्न ११ अतिशयनी स्थापना करवी. ए पछी प्रतिष्ठाचार्ये स्वमंत्रोच्चार पूर्वक देहरासरमा जइ भद्रपीठ उपर ज्यां प्रतिमा प्रतिष्ठित करवी होय त्यां मध्यभागे तेमज पूर्वादि दिशाओमां करावेल ९ खातोमा रत्नादि ५-५ द्रव्यो स्थापन करवा. ए ध्यानमा राखवू के अहींया द्वार तरफनी दिशाने पूर्वा अने सृष्टिक्रमे ते पछीनी आग्नेय्यादि गणवानी छे, द्रव्यो स्थापवानी समजण- १- रत्नो पैकी - पूर्वादिमा अनुक्रमे-१ हीरो, २ सूर्यकान्त, ३ नीलम, ४ महानील, ५ मोती, ६ पुष्पराग, ७ पद्मराग तथा ८ वैडूर्य अने मध्यगर्तमां हीरक आदि सर्व. २-लोह पैकी - पूर्वादिमा १ सुवर्ण, २ ताम्र, ३ कृष्णलोह, ४ त्रपु, ५ रूप्य, ६ पित्तल, ७ कांसु, ८ सीसुं अने मध्यमां यथोपलब्ध सर्व, ३-धातुओ पैकी - पूर्वादिमा १ हरिताल, २ मैनशिल, ३ तूरी, ४ सुवर्णमाक्षिक, ५ पारो, ६ सोनागेरु, ७ गन्धक, ८ अभ्रक अने मध्यमा उक्त सर्व. ४-औषधिओ पैकी - पूर्वादिमा १ खश, २ विष्णुक्रान्ता, ३ रक्तचंदन, ४ कृष्णागुरु, ५ श्रीखंड, ६ उत्पलसारिक, ७ कूठ, ८ शंखपुष्पी, अने मध्यमा उक्त सर्व. ५-बीजो पैकी . १ व्रीहि, २ गोधूम, ३ तिल, ४ अडद, ५ मग, ६ जव, ७ नीबार (बंटी), ८ शामो अने मध्यमा उक्त सर्व बीजो. ॥ ३२२ ॥ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३२३ ।। सर्वरत्नोना अभावे हीरो, सर्वलोहना अभावे सुवर्ण, सर्व धातुओना अभावे हरताल, सर्व औषधीना अभावमां सहदेवी, (विष्णुक्रांता) अने सर्वबीजोना अभावमां जवनो उपयोग करवो. अथवा सर्वना अभावमा एकलो पारो सर्व खाडाओमां मूकवो, मध्यगर्त उपर पांडुकंबलशिला तथा सिंहासन सहित सोनानो, त्रांवानो अथवा माटीनो मेरुपर्वत स्थापित करवो. उपर्युक्त विधि स्थिर प्रतिष्ठानी छे, जो प्रतिष्ठा चर हाय एटले के प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा आसन उपर चर राखवानी होय तो उक्त विधिना स्थाने आसने रत्नगर्भित कुंभकारना चक्रनी माटी अने दर्भ, आ वे चीजोनो ज विन्यास करवो. पीठ उपर पूर्वोक्तप्रकारे रत्नादिकनो विन्यास कर्या पछी भगवन्तने अभिमंत्रितवस्त्रनो पडदो करीने अधिवासनामंडपमांथी लइ, लोकपालोने बलिक्षेप करी, 'जय' शब्दादि मंगलोच्चार पूर्वक वाजिंत्रोना नाद साथे रत्न- रूपैया पैसा उछालतां भद्रपीठ (गभारामां पबासन ) उपर पधराबवा, त्यां उतारती वखते 'स्थिरो भव' ए शब्दो कहेवा, सूत्रधारे भद्रपीठ उपरना खाडाओने पाटीआओथी ढांकी प्रतिमाने बेसाडाने स्थिर करवाने योग्य सर्व तैयारी करीने लग्ननी प्रतीक्षा करवी, लग्नसमय निकट आवतां सूत्रधारे प्रतिमा उपरनो पडदो दूर करवो अने आचार्ये मध्यमा आंगलीमां चंदन, अंगूठा तर्जनीमां वासचूर्ण अने मुट्टिमां पुष्पाक्षत लेइ श्वासनुं कुंभक करी प्रतिमाने मूलस्थाने प्रतिष्ठित करवी. 'ॐ अर्ह' आ मंत्रवडे १ मस्तक, २-३ जमणो-डावो स्कंध, अने ४-५ जमणो-डावो जानु, आ पांच अंगो उपर वासादि निक्षेप कर, चंदननुं तिलक कर अने “ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । ॐ ओहिजिणाणं । ॐ नमो परमोहिजिणाणं । ॐ नमो सव्वोहिजिणाणं । ॐ नमो अणन्तोहिजिणाणं । ॐ नमो केवलिजिणाणं । ॐ नमो भवत्थकेवलिजिणाणं । ॐ नमो भगवओ अरहओ महई महावीरवद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे ॥ श्री पाद लिप्तसूर प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३२३ ।। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. || श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः 1 प्रतिष्ठा ३२४ ॥ विधिः ॥ भगवई महई महाविज्जा वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे बद्धमाणवीरे जये विजये जयन्ते अपरा जिए अणिहए मा चल मा चल वृद्धिदे वृद्धिदे हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं सः सः ओहिणि मोहिणि स्वाहा ।" आ प्रतिष्ठामंत्रे अथवा आचार्यमंत्रवडे चक्रमुद्राए प्रतिमामा ३-५ वा ७ वार मंत्रन्यास करे. "ॐ ह्रीँ अर्हन्मूर्तये नमः ।" आ मंत्रे प्रवचन मुद्रा देखाडी प्रतिमाने प्रतिबोधित करे, अने “स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" आ मंत्रे जिनमुद्रा देखाडी पछी प्रतिमान स्थिरीकरण करे. पछी, धेनुमुद्रा देखाडी अमृतीकरण करे अने “हूः अस्त्राय हूँ फट्" आ | अत्रमंत्रे गरुडमुद्राद्वारा दुःखविघ्नादिकनुं उच्छेदन करे. पछी सौभाग्यपूर्वक सौभाग्यमंत्रे प्रतिमामां सौभाग्य स्थापे. नामस्थापन – ए पछी प्रतिष्ठित जिन- ऋषभ आदि कोइ पण एक नाम प्रतिष्ठित करी गंध-पुष्पादिके पूजा करवी, धूप उखेववो अने नमस्कार मुद्राए नमस्कार करवो. ते पछी देवकृतातिशय, प्रातिहार्य, यक्ष, यक्षेश्वरी, धर्मचक्र, मृगद्वंद्व, रत्नध्वज, प्राकारत्रय, आदिनी नीचे लखेला तेना तेना मंत्रवडे स्थापना करवी - १. ॐ नमो भगवते अर्हते सुरकृतातिशयान् जिनस्यशरीरे स्थापयामि स्वाहा । २. ॐ नमो भगवते अर्हते असिआउसा जिनस्य प्रातिहार्याष्टकं स्थापयामि स्वाहा । ३. ॐ यक्षेश्वराय स्वाहा । ४. ॐ हाँ हूँ ह्रीं शासनदेव्यै स्वाहा । ५. ॐ धर्मचक्राय स्वाहा । ६. ॐ मृगद्वन्द्वाय स्वाहा । ७. ॐ रत्नध्वजाय स्वाहा । ८. ॐ नमो भगवते अर्हते जिनस्य प्राकारादित्रयं स्थापयामि स्वाहा । ए पछी प्रथम-अधिवासनाना प्रसंगे कर्यां तेम ४ अथवा ८ सधवा स्त्रियो द्वारा पुंखणां करावयां, लूणपाणी उतराव, अने आरती | ॥ ३२४ ॥ For Private & Personal use only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | श्री पाद || कल्याणकलिका. खं०२॥ लिप्तसूरिप्रणीतः ॥ ३२५ ॥ प्रतिष्ठाविधिः॥ मंगलदीवो कराववो. _ पछी आचार्ये चतुर्विध श्रमण संघ सहित देववंदनमा नन्दीनी ३ स्तुतिओ कह्या पछी सिद्धाणं बुद्धाणं. कही श्री प्रतिष्ठादेवतायै | | करेभि काउस्सग्गं, अन्नत्थ. १ लोगस्ससागरवरगंभीरा सुधीनो काउसग्ग करी, पारी, नमोर्हत् कही - “यदधिष्टिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः, सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्री जिनबिम्बं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥" ए स्तुति कहीने श्री प्रवचनदेवतायै करेमि का० अन्नत्थ. १ नव० काउ० नमोऽर्हत्. कही - "जइ सग्गे पायाले, अहवा खीरोदहिम्मि कमलवणे । भयवइ करेहि संति, सन्निझं सयलसंघस्स ॥१॥" आ स्तुति कहेवी. पछी श्री सिद्धायिकायै करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० काउ० नमोऽर्हत्. कहीने - "अट्ठविहकम्मरहियं, जा वंदइ जिणवरं पयत्तेण । संघस्स हरउ दरिअं, सिद्धा सिद्धाइया देवी ॥१॥" ए स्तुति कही खित्तदेवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० नमोऽर्हत्. कही - “जीसे खित्ते साहू दंसणनाणेहिं चरणसहिएहिं । साहिति मुक्खमग्गं, सा देवी हरउ दुरियाई ॥१॥" स्तुति कहेवी. पछी भवनदेवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ. १ नव० नमोऽर्हत् कही - "ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्याय संयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥१॥" आ स्तुति कही, उपर नवकार संपूर्ण कही बेसी नमुत्थुणं, जावंति चेइयाइं । जावंत केवि साहू कहीने नमोऽर्हत्पूर्वक स्तवनना स्थाने 'अजितशांतिस्तव' कही जयवीराय कहेवा. पछी आचार्ये वासमिश्र अक्षतनी अने इन्द्रादिक संघजनोए पुष्प-गन्धादिमिश्र सातधान्यनी अंजलिओ भरी उभा थइ नीचेनी | सा ॥ ३२५ ।। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २॥ an श्री पादलिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ ३२६ ॥ गाथाओ बोलवी. जह सिद्धाण पइठा, तिलोय चूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥१॥ गेविज्जगकप्पाणं, सुपइट्ठा वण्णिया जहा समए । आचंदसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥२॥ जह मेरूस्स पइट्ठा, असेससेलाण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥३॥ कुलपव्वयाण वक्खार-बट्टवेयट्टदीहियाणं च । कूडाण जमग-कंचण-चित्त-विचित्ताइयाणं च ॥४॥ अंजणग-रुयग-कुंडल-माणुस-इसुयारमाझ्याणं च । सेलाण जह पइट्ठा, तह एसा होइ सुपइट्टा ॥५॥ जह लवणस्स पइट्ठा, असेसजलहीण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥६॥ कुंडाण दहाणं तह, महानईणं च जह य सुपइट्ठा । आकालिगी तहेसा, वि होउ निच्चं तु सुपइट्ठा ।।७। जंबुद्दीवाईणं, दीव समुद्दाण सबकालंभि । जह एयाण पइट्ठा, सुपइट्ठा होउ तह एसा ॥८॥ धम्मा धम्मागासत्थि-कायमइयस्स सब्बलोयस्स । जह सासया पइट्ठा, एसा वि तहेव सुपइट्ठा ॥९॥ पंचण्ह वि सुपइट्ठा, परमिट्ठीणं जहा सुए भणिया । नियया अणाइनिहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥१०॥ तह पवयणस्स गमभंग-हेउ-नय-नीइ कालकलियस्स । जह एयस्स पइट्ठा, निच्चा तह होउ एसा वि ॥११॥ तह संघ-नराहिव-जणवयाण रजस्स तह य ठाणस्स । गोट्ठीए सब्बकालंमि, सासया होउ सुपइट्ठा ॥१२।। इय एसा सुपइट्ठा, गुरुदेवजईहिं तह य भविएहिं । निउणं पुट्ठा संघेण, चेव कप्पट्ठिया होइ ॥१३॥ ।। ३२६ ।। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देता ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ क ___ कार्यविशेषमा प्रवृत्ति करनार बुद्धिमान् मनुष्य मंगल शब्द सांभलीने जेम पोताना इष्ट कार्यनी सिद्धिमां ते शुभ शकुन गणे छे ते ज प्रमाणे बुद्धिमान मनुष्योए प्रतिष्ठाना अन्तमा भणाती आ मंगलगाथाओने सांभलीने प्रतिष्ठानी सिद्धि तथा सफलतानी बुद्धि करवी | || श्री पाद] अने धान्य अंजलिनो भगवंत सामे प्रक्षेप करी हर्ष प्रदर्शित करवो जोइये. लिप्तसूरिए पछी प्रतिष्ठाचार्ये नीचे प्रमाणे प्रतिष्ठागुणगर्भित देशना करवी - प्रणीतः राया बलेण वड्डइ, जसेण धवलेइ सयल दिसिभाए । पुण्णं वड्डइ बिउलं सुपइट्ठा जस्स देसम्मि ॥१॥ प्रतिष्ठा विधिः ।। उवहणइ रोगमारिं, दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे । भावेण कीरमाणा, सुपइट्ठा सयललोयस्स ॥२॥ जिणबिंबपइटुं जे, करिति तह कारविंति भत्तीए । अणुमन्नंति पइदिणं, सव्वे सुहभाइणो हुंति ॥३॥ दव्वं तमेव भण्णइ, जिणबिंब पइट्ठणाइकज्जेसु । जं लग्गइ तं सहलं, दुग्गइजणणं हवइ सेसं ॥४॥ एवं नाऊण सया, जिणवरबिंबस्स कुणइ सुपइटुं । पावेह जेण जरमरण-वज्जियं सासयं ठाणं ॥५।। जे राजाना देशमा विधिपूर्वक प्रतिष्ठा थाय छे ते राजा- बल वधे छे, सर्वदिशाभागोने ते पोताना जसवडे उज्ज्वल बनावे छे अने | त्यां विपुलपुण्यनी वृद्धि थाय छे. (१) भावथी कराती उत्तम प्रतिष्ठा सर्वलोकना रोग तथा महामारीने दूर करे छे, दुर्भिक्ष-दुष्कालनो - नाश करे छे अने सुभिक्ष आदि शुभ भावोनो वधारो करे छे. (२) जेओ भक्तिथी जिनप्रतिमानी प्रतिष्ठा करे छे, करावे छे अने नित्य अनुमोदे छे ते सर्वे सुखना भागी थाय छे. (३) द्रव्य ते ज सफल कहेवाय के जे जिनप्रतिमा-प्रतिष्ठाना कामोमा लागे छे, ए सिवायर्नु धन दुर्गतिमां लइ जनारुं छे; एम जाणीने जिनेश्वरनी प्रतिमाओनी उत्तम प्रतिष्ठा सदाकाल करो करावो के जेथी जरा-मरणरहित शाश्वतपदने प्राप्त करी शको ! (४-५) Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३२८ ॥ ए पछी मुखोद्घाटन करीने नीचेना मंत्रे अभिमंत्रित करीने शान्तिबलिनो प्रक्षेप करवो. “ॐ नमो भगवते अर्हते शान्तिनाथस्वामिने सकलातिशेषमहासंपत्समन्विताय त्रैलोक्यपूजिताय नमो नमः शान्तिदेवाय सर्वामरसुसमूहस्वामिसंपूजिताय भुवनपालनोद्यताय सर्वदुरितविनाशनाय सर्वाऽशिवप्रशमनाय सर्वदुष्टग्रहभूतपिशाचमारिशाकिनीप्रमथनाय नमो भगवति जये विजये अजिते अपराजिते जयन्ति जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याणमंगलप्रदे साधूनां श्रीशान्तितुष्टिपुष्टिदे स्वस्तिदे भव्यानां सिद्धिवृद्धिनिर्वृतिनिर्वाणजनने सत्त्वानामभयप्रदानरते भक्तानां शुभावहे सम्यग्दृष्टीनां धृतिरतिमतिबुद्धिप्रदानोद्यते जिनशासनरतानां श्रीसम्पत्कीर्तियशोवर्धनि रोगजलज्वलनविषविषधरदुष्ठज्वरव्यन्तरराक्षसरिपुमारिचौरईतिश्वापदोपसर्गादिभयेभ्यो रक्ष रक्ष शिवं कुरु कुरु शान्तिं कुरु कुरु तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु ॐ नमो नमः हूँ हूँ क्षः ह्रीँ फट् फट् स्वाहा || " ए पछी संघादिपूजा, दीनानाथादिदान, बंदिबन्धमोक्ष, आदि प्रसंगोचित कार्यो करवां के जे शासनोन्नतिनां अंग बने, स्वजनवर्ग अने साधर्मिकवर्गने विषे विशेष वात्सल्य देखाडवुं. प्रतिष्ठा पछी अष्टाह्निक-महोत्सव करवो, देश, काल के कार्यवशात् तेम न बनी शके तो त्रण दिवसो तो अवश्य उत्सवमां व्यतीत करवा. आवश्यककार्य होय तो प्रतिष्ठाना दिवसे, अन्यथा त्रीजा दिवसे विशेषपूजा करी, लोकपालोने पूजी, सोहागण स्त्रीयोनां मंगलगीतो पूर्वक ‘ॐ हूँ यूँ क्ष्वीँ सः’ आ मंत्रना उच्चार पूर्वक कंकणो छोडबां. ते पछी नन्द्यावर्तनी पासे जइ प्रथम विसर्जनार्थक अर्घ आपवो, पछी पूर्वाक्तन्याये भोगागो संहरीने देवने विषे जोडी संहार मुद्राए “स्वस्थानं गच्छ गच्छ’” आ मंत्रवडे पूजाने खेंची मस्तके चढावी पूरक द्वारा - “क्षमस्व " आम बोलीने तेनुं हृदयकमलमां विसर्जन ॥ कूर्म प्रतिष्ठा ॥ ।। ३२८ ।। Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ कूर्म | प्रतिष्ठा ॥ IMel ॥ ३२९ ॥ करवू. ___कंकणमोचन अने नन्द्यावर्त्तविसर्जनना प्रसंगे पण प्रतिमाने घृत, दूध, दधि आदिथी न्हबरावीने शुद्ध जले भरेला १०८ माटीना | वारको (न्हाना कलशाओ) वडे अभिषेक करवो. ते पछी प्रति महीने प्रतिष्ठानी तिथि आवे त्यारे उपर प्रमाणे स्नात्र करावQ, वर्ष पूरुं थाय त्यारे अष्टाह्निका महोत्सव पूर्वक विशेष पूजा करीने दीर्घायु निमित्ते गांठ बांधवी अने कल्याणना अभिलाषी भाग्यशाली गृहस्थे सदा सावधान रहिने अधिकाधिक विशेष पूजादिक भक्ति करवी. इति पादलिप्तोक्त बिम्बप्रतिष्ठापद्धति. अथ संक्षिप्त-प्रतिष्ठाविधि (पादलिप्तसूरीया) इय सत्तिविहवसत्ताणु-सारओ वण्णिआ पइट्ठा उ । विहवाभावासत्तीए, असढभावो इयं कुज्जा ॥१॥ उपर प्रमाणे शक्ति विभव अने सत्त्वने अनुसरीने प्रतिष्ठा विधि वर्णवेल छे, जेनी पासे विभव अने शक्तिनो अभाव होय ते निष्कपट परिणामी गृहस्थ नीचे प्रमाणे करे - पुहइमयं पिहुअंगुट्ठ-मेत्तयं तणकुडाए विसुओ य । सुइभूओ जिणबिंब, ठविज्ज इमिणा विहाणेण ॥२॥ संसारविरागमणो, गरहानिंदाजुगुच्छियप्पाणो । काऊण भावमंगल-पंचनमुक्काररूवं तु ॥३॥ संसार उपर अनासक्तमनवालो, आत्मसाक्षीए अने गुरु साक्षीए पोतानी भूलोनो पश्चात्ताप करनारो गृहस्थ पृथ्वीमय (माटीना) एक | अंगुष्ठ प्रमाणे जिनबिंबने बाह्य शुद्धिपूर्वक पंचनमस्कार पाठरूप भावमंगल करीने घासनी झुपडीमां पण प्रतिष्ठित करी शके. २-३ .. कलसाईणमभावे, विरहे तह सेसमंगलाणं च । पंचनमुक्कारोच्चिय, भावोत्तममंगलं नियमा ॥४॥ ॥ ३२९ ।। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३३० ।। कलश आदिना अभावमां तेमज बीजा मंगलोना विरहमां पंचपरमेष्ठिनमस्कार ज नियमा करेते उत्तम भावमंगल छे. पज्जत्तमिणं णियमा, मायालोहेहि विप्पमुक्कस्स । पंचनमोक्कारेणं, जं कीरई मंगलाई ||५|| जे कपट अने लोभ करी मुक्त छे तेवो शक्तिहीन केवल पंचनमस्कार वडे मंगल आदिक कार्यों करे ते तेने नियमा संपूर्ण समजवां . ५ सव्वत्थ भावमंगल-पंचनमोक्कारपुब्विया किरिया । कायव्वा जिणबिंबाण, सव्वभावेण सुट्ठा ||६|| सर्वत्र भावमंगल - पंचनमस्कारपूर्वक क्रिया करवी अने जिनबिंबोनी उत्तम प्रतिष्ठा सर्वभावथी पंचनमस्कार पूर्वक ज करवी. ६ इय सामन्नपइट्टा-विहाणमेयं समासओ भणियं । इन्हिं भणिमो लिप्पाइ याण अचलाण परिमाणं ||७|| उपर प्रमाणे आ सामान्य प्रतिष्ठा विधान कहां, हवे 'लेपमय' आदि अचल- प्रतिमाओनुं प्रतिष्ठा विधान कहीये छीये. लेपमयप्रतिमा-प्रतिष्ठाविधि 1 लेपमय प्रतिमा एटले शास्त्रोक्तरीतिथी वज्रलेप बनावी ते वडे तैयार करेली प्रतिमा, आवा प्रकारनी प्रतिमाओ देवालयना गर्भगृहना मूल आसन उपर ज मांडवामां आवती अने धीरे धीरे पूर्ण थइ सुकाई जती त्यारे ते ज स्थले ते उपर प्रतिष्ठानुं विधान करवामां आवतुं, तेवी प्रतिमाओ त्यांथी आघी पाछी करी शकाती नहिं, तेथी ते 'अचलप्रतिमा' ओ कहेवाती हती, तेमनी प्रतिष्ठाविधि नीचे प्रमाणे कराती - प्रथम भूतबलिक्षेप पूर्वक चैत्यवन्दन तथा देवताओना कायोत्सर्गों करी प्रतिष्ठाचार्ये पोतानुं तेमज इन्द्रादिक स्नात्रकारोनुं सकलीकरण करवुं. ते पछी अभिषेकनी सर्व सामग्री तैयार करी स्नानमंडपमां गोठववी. स्नानमंडपनी पीठिका उपर शुद्ध अने स्वच्छ एक दर्पण (मोटो ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३३० ।। Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ आरीसो) एवी रीते गोठवबो के लेपमय प्रतिमा तेमां प्रतिबिंबित थई जाय, दर्पणमा प्रतिबिंबित प्रतिमा उपर पूर्वोक्त विधिथी सर्व अभिषेक करवा अने चंदनना छांटा नाखवा, तथा चंदनविलेपनादि कर. बाकीनी 'अधिवासनानो वासक्षेप, प्रतिष्ठानो वासक्षेप, मुद्रापूर्वक सौभाग्यादि मंत्रोनो न्यास' आदि तमाम क्रियाओ मूल लेपमय प्रतिमाओ उपर करवी. चित्रित तीर्थपट्ट, चित्रप्रतिमा, के चित्रितयंत्रपट्टोनी प्रतिष्ठा विधि पण लेपमय प्रतिमानी जेम ज आरीसामा प्रतिबिंब लेइने करवी. अभिषेक, चन्दनविलेपनादि प्रतिबिंब उपर अने वासनिक्षेपादिक मूल वस्तु उपर करवा. इति लेपप्रतिमा प्रतिष्ठाविधि । सरस्वत्यादि प्रतिमा प्रतिष्ठा - पूर्वनी जेम मंडलादिक कार्यों करीने पोत पोताना मंत्रवडे सरस्वती आदि प्रतिमाओनी प्रतिष्ठा करवी. सरस्वत्यादिसमस्तवैयावृत्तकर आदिनो अधिवासनामंत्र- 'ॐ V नमः" प्रतिष्ठामंत्र- “ॐ हाँ हूँ ही नमः ।" अने सौभाग्यमंत्रः - "ॐ जये श्री हूँ सुभद्रे इं स्वाहा ।" ए छे. विशेषविवरण नीचे प्रमाणे छ - (१) "ॐई ह्रीं श्री ही ई सरस्वति ! अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" (२) “ॐ हीं मणिभद्रयक्ष ! अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" (३) "ॐ ही वं ब्रह्मशान्ते ! अबतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" (४) "ॐ ह्रीँ अं अम्बिके ! अबतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" प्रतिष्ठाकारकनी जवाबदारी - ॥ ३३१॥ Jan Education international Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ।। ।। ३३२ ।। एवमनेन विधिना यथावत् विज्ञाय अभ्यस्य च अभिमानादिरहितेनार्येण प्रतिष्ठादिकं कर्तव्यमन्यथाकरणे भवपातः । तथा चोक्तम् अवियाणिऊण य विहिं, जिंणबिंबं जो ठवेइ मूढमणो । अहिमाणलोहजुत्तो, निवडइ संसारजलहिम्मि || १॥ एम ए विधिथी यथार्थ रहस्य समजीने अभ्यास करीने अभिमानादिरहित एवा आर्यप्रकृतिना आचार्ये प्रतिष्ठादि कार्यो करवां विपरीतपणे करवाथी संसार भ्रमण थाय छे, शास्त्रमां कह्युं पण छे, 'विधिने पूरी रीते जाण्या विना अभिमान अने लोभने वश थड़ जे मूढ मननो मनुष्य जिनप्रतिमानी प्रतिष्ठा करे छे ते संसारसमुद्रमां पड़े छे. ' इति पादलिप्तबिंबप्रतिष्ठाविधिः समाप्तः ॥ पादलिप्तप्रतिष्ठाकल्पमूलम् काउं खेत्तविसुद्धिं, मङ्गलकोउयजुयं मणभिरामं । वत्युं जत्थ पइट्ठा, कायव्वा वीयरायस्स || १ || सुइविज्जाए सुइणा, पंचगाबद्धपरियरेण चिरा । निसिऊण जहाठाणं, दिसिदेवयमाइए सब्वे ||२|| एवं सन्नद्धगत्तो य, सुई दक्खो जिइंदियो । सियवत्थपाउरंगो, पोसहिओ कुणइ पठ्ठे ||३|| उइयदिसासु विणिवेसियस्स दक्णिणभुयाणुमग्गेण । उत्तमसियवत्थविहूसिएण, कयकयकम्मे ||४|| मज्झे य नसेयवं नंदावज्जं (त्तं) जवंकुसं सुमणवज्जं । तस्सोवरि ट्ठबिज्जा, पडिमा देवस्स इत्था (च्छा ) ए ||५|| मज्झे निरंजणजिणो, पुब्बावरदाहिणोत्तरदिसासु । तह सिद्ध सूरुवज्झाय साहु- सुति - रयणतियनासो || ६ || केसरनिलये तह मायरो य मरुदेवि विजयसेणा य | सिद्धत्था तह मंगल, सुसीम पुहवी य लक्खणया ||७|| ॥ श्री पाद लिप्तसूरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ।। ३३२ ।। Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ श्री पाद| लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ॥ ३३३ ॥ रामा नंदा विण्हू जयसामा सुजससुब्बयाअइरा । सिरिदेवी य पहावइ, तत्तो पउमावई वप्पा ||८|| सिव वम्मा तिसलावि य मायाए नामरूवाउ । ॐ नमो पुव् अन्ते साह ति तओ य वत्तव्यं ।।९।। लोयंतियदेवाणं, तत्तो चउवीसपरिगणो नसिउं । सगमन्तेहिं विहिणा, सोलसविज्जागणओ य तओ ॥१०॥ पुब्बोत्तराइ रोहिणी, पन्नत्ति वज्जसंकला तह य । वज्जंकुसी य अप्पडि-चक्का तह पुरिसदत्ता य ॥११।। काली य महाकाली, गोरी गन्धारी जालमाला य । माणवि वइरोट्टाऽच्छुत्ता माणसि महामाणसी चेव ॥१२॥ वेमाणिया य देवा तत्तो य चउब्विहा सदेवीया । इंदाइ दिसाइ(हि)वई नसेज नियएहि मंतेहिं ॥१३॥ दारे य ठाइ सोमो यमो य वरुणो य तह कुबेरो य । हत्थेसुं वइर-धणुदण्ड-पासगयगाहिणो तह य ॥१४॥ सक्को य जिणासन्नो, णाणादेवा जहोइया बारे । पडिहारो विय तुंबरु मंतो पणवो तओ साहा ॥१५॥ एवं नसिउं सव्वं, पुज्जेओ विविहगन्धमल्लेहिं । नसियब्वो पञ्चंगो, मंतो पडिमाइजत्तेणं ॥१६।। सदसनवधवलवत्थेण, छाइउं वासपुष्फधूपेणं । अहिवासिअ तिन्निवाराउ सूरिणा सूरिमन्तेण ।।१७।। चत्तारि पुरो कलसा सलिलक्खयकणयरुप्पमणिंगभा । वरकुसुमदाम कण्ठो-वसोहिया चन्दणविलित्ता ॥१८॥ जववारयसयवत्ताइघट्टिया रयणमालियाकलिया । मुहपुण्णचत्तचउतंतुगोत्थया होति पासेसु ॥१९॥ मंगलदीवा य तहा, घयगुलपुण्णा तहेक्खुरुक्खाय । वरवन्नअक्खयविचित्त-सोहिया तह य कायज्वा ॥२०॥ ओसहिफलवत्थसुवण्णरयणमुत्ताइयाई विविहाई । अन्नाइंवि गरुय सुदंसणाई दवाई विमलाई ॥२१॥ चित्तबलिगन्धमल्ला, विचित्तकुसुमाई चितवासाई । विविहाई धन्नाई, सुहाई रूवाई उवणेह ॥२२॥ w w.jainelibrary.org Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ चउनारीओमिणणं, नियमा अहियासु नत्थि उ बिरोहो । नेवत्थं च इमासिं, जं पवरं तं इह सेयं ॥२३।। दिक्खियजिण ओमिणणा, दाणाइ ससत्तियो तहेयंमि । वेहब्वं दालिई, न होइ कइयावि नारीणं ॥२४॥ आरत्तियमवयारण-मंगलदीवं च निम्मिउं पच्छा । चउनारीहि निम्म(त्थ)च्छणं च बिहिणा उ काय ॥२५॥ वन्दित्तुं चेझ्याई, उस्सग्गो तह य होइ कायब्बो । आराहणानिमित्तं पवयणदेवीए संघेण ॥२६।। विश्वाशेषसुवस्तुषु, मन्त्रैर्याजम्रमधिवसति वसतौ । सास्यामवतरतु श्री-जिनतनुमधिवासना देवी ॥२७॥ प्रोत्फुल्लकमलहस्ता, जिनेन्द्रवरभवनसंस्थिता देवी । कुन्देन्दुशसवर्णा, देवी आधिवासना जयति ॥२८॥ इय विहिणा अहिवासेज, देवबिंब निसाए सुद्धमणो । तो उग्गयम्मि सूरे, होइ पइट्ठा समारम्भो ॥२९॥ कल्लाणसलायाए, महुघयपुण्णाए अच्छि उग्घाडे । अण्णेण वा हिरण्णेण, निययजहसत्तिविहवेण ॥३०॥ तो चेइयाई विहिणा वंदिज्जा सयलसंघसंजुत्तो । परिवड्ढमाणभावो जिणदेवे दिनदिट्ठीओ ॥३२॥ तत्तो चिय पवयणदेवयाए पुणरबि करेज उस्सग्गं । आराहणथिरकरणट्ठयाए परमाए भत्तीए ॥३२॥ यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥३३॥ जइ सग्गे पायाले, अहवा खिरोदहिम्मि कमलवणे । भयवइ करेहि संति, सन्निज्ज्ञं सयलसंघस्स ॥३४।। अट्ठविहकम्मरहियं, जा वन्दइ जिणवरं पयत्तेण । संघस्स हरऊ दुरियं, सिद्धा सिद्धाइया देवी ॥३५॥ वंदित्तुं चेइयाई, इमाई तो सरभसं पढेज्जा । सुमंगलसाराई तह थिरत्तसारेण सिद्धाई ॥३६॥ जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोयचूडामणिम्मि सिद्धिपये । आचन्दसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥३७।। Late || ३३४ ।। Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ गेविज्जगकप्पाणं, सुपइट्ठा वण्णिया जहा समए । आचन्दसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥३८॥ जह मेरुस्स पइट्ठा, असेससेलाण मज्झयारम्मि । आचंदरियं तह, होइ इमा सुपइट्टत्ति ॥३९॥ कुलपब्बयाण वक्खारवट्टवेयट्टदीहियाणं च । कूडाण जमग-कंचण-चित्त-विचित्ताइयाणं च ॥४०॥ अञ्जणग-रुयग-कुण्डल-माणुस-इसुयारमाइयाणं च । सेलाण जह पइट्ठा, तह एसा होइ सुपइट्ठा ॥४१॥ जह लवणस्स पइट्ठा, असेसजलहीण मज्झयारम्मि । आचन्दसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥४२॥ कुंडाण दहाणं तह, महानईणं व जह य सुपइट्ठा । आकालिगी तहेसा, वि होउ निच्चं तु सुपइट्ठा ॥४३॥ जम्बुद्दीवाईणं, दीवसमुद्दाण सबकालंमि । जह एयाण पइट्ठा, सुपइट्ठा, होउ तह एसा ॥४४॥ धम्माधम्मागासत्थि-कायमइयस्स सब्बलोयस्स । जह सासया पइट्ठा, एसावि तहेब सुपइट्ठा ॥४५।। पंचण्ह वि सुपइट्ठा, परमेट्ठीणं जहा सुए भणिया । नियमा अणाइणिहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥४६॥ तह पवयणस्स गम-भंग-हेउ नयनीइकालकलियस्स । जह एयस्स पइट्ठा, निच्चा तह होउ एसा वि ॥४७॥ तह संघ-नराहिब-जणवयाण रज्जस्स तहय ठाणस्स । गोट्ठिए सव्वकालंपि, सासया होउ सुपइट्ठा ॥४८॥ इय एसा सुपइट्ठा, गुरुदेवजईहिं तहय भविएहिं । निउणं पुट्ठा सोण, चेव कप्पट्ठिआ होइ ॥४९॥ सोउं मंगलसद, सउणं ति जहेब इट्ठसिद्धित्ति । एत्थं पि तहा सम्म, नायब्वं बुद्धिमतेहिं ॥५०॥ रायाबलेणं बट्टइ, जसेण धवलेइ सयलदिसिभाए । पुण्णं वडइ विउलं, सुप्पइट्ठा जस्स देसम्मि ॥५१॥ उवहणइ रोगमारी, दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे । भावेण कीरमाणा, सुपइट्टा, सयललोयस्स ॥५२॥ Jan Educban Internet For Private & Personal use only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३३६ ।। जिणबिम्बपठ्ठे जे, करिति तह कारविंति भत्तीए । अणुमण्णन्ति पइदिणं, सब्बे सुइभाइणो होंति ॥ ५३ ॥ दव्वं तमेव भण्णइ, जिणबिंबपगुणमि धण्णाणं । जं लग्गड़ तं सहलं, दोग्गइजणणं हवइ सेसं ॥ ५४ ॥ एवं नाऊण सया, जिणवरबिम्बस्स कुणह सुपट्टं । पावेह जेण जरमरण वज्जियं सासयं ठाणं || ५५ || सत्तीए सङ्घपूया, बिसेसपूया य बहुगुणा एसा । जं एस सुए भणिओ, तित्थयराणंतरो सङ्घ ॥ ५६ ॥ गुणसमुदओ य संघो, पवयण तित्थन्ति होइ एगड्डा । तित्थयरोवि य एवं, नमए सुहभावओ चेव ||५७ || तप्पुब्विया अरया, पूइयपूया य विणयकम्मं य । कयकिच्चो वि जह कहं, कहेइ नमए तहा तित्थं ॥ ५८|| एयंमि पूइयंमि, नत्थि तयं जं न पूइयं होइ । भुवणेवि पूयणिज्जं न पुण ठाणं जओ अन्नं ॥ ५९ ॥ तप्पूयापरिणामो, हंदि महाविसयमो मुणेयब्वो । तदेसपूयणम्मि वि, देवयपूयाइ नाएण || ६० || आसन्न सिद्धियाणं, लिंगमिणं जिणवरेहिं पन्नत्तं । संघमि चेव पूया, सामन्नेणं गुणनिहिम्मि ॥ ६१ ॥ एसा य महादाणं, एस चिय होइ भावजन्नति । एसा गिहत्थसारो, एसच्चिय सम्पयामूलम् ||६२|| एईए फलं एयं परमं निव्वाणमेव नियमेण । सुरनरसुहाई अणुसंगियाई इह किसिपलालं व ॥ ६३॥ कयमेत्थ पसंगेणं, उत्तरकालोइयं इहाऽण्णं पि । अणुरूवं कायव्वं, तित्थुन्नकारगं नियमा ||६४ || जइओ जणोवयारो, बिसेसओ णवर सयणवग्गंमि । साहम्मिय वग्गम्मि य, एयं खलु परमवच्छलं ॥ ६५ ॥ अट्ठाहिया य महिमा, सम्मं अणुबन्धसाहिया केइ । अहवा तिनि य दियहे, निओगओ चैव कायव्वा || ६६ || अट्ठाहियावसाणे, पडिस्सरोम्मुयणमेव कायव्वं । भूपबलिदीणदाणं, एत्थंपि ससत्तिओ कुजा ||६७|| ॥ श्री पादलिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठा विधिः ॥ ।। ३३६ ।। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ ३३७ ॥ इय सत्तिविहवसत्ताणुसारओ वण्णिया पइट्ठा उ । विहावाभावासत्तीए असढभावो इयं कुजा ||६८ || पुहइमयं पिहु अङ्गुट्ठ-मेत्तयं तणकुडाए विसुओ य । सुइभूओ जिणबिंबं, ठबिज्ज इमिणा बहाणे ||६९ || संसारविरागमणो, गरहानिन्दाजुगुच्छियप्पाणो । काऊण भावमंगल, पंचनमुक्काररूवं तु ॥७०॥ कासस्स य कुसुमेहिं, पुएइ उ सुरहिकुसुमवरहंम्मि । कारिज्ज पइट्टं परम-भत्तिबहुमाणसं ॥ ७१ ॥ कलसाईणमभावे, विरहे तह सेसमंगलाणं च । पञ्चनमुकारो चिय, भावोत्तममंगलं नियमा || ७२ || पज्जत्तमिणं णियमा, मायालोहेहिं विप्पमुक्कस्स । पञ्चनमुक्कारेणं, जं कीरइ मंगलाईयं ॥७३॥ सव्वत्थ भावमंगल-पंच नमोक्कारपुब्विया किरिया । कायव्वा जिणबिंबाण, सब्वभावेण सुपट्ठा ॥ ७४ ॥ मणिकयसुवन्नरीरी-पडिमं पाहाणणिम्मिए भुवणे । जो ठवइ भत्तिजुत्तो, तस्स दुहं नेव कइयावि || ७५ || इय सामन्नपइट्ठा, विहाणमेयं समासओ भणियं । इद्धिं भणिमो लिप्पाइयाण अचलाण परिमाणं ॥ ७६ ॥ अवियाणिऊण य विहिं जिणबिम्बं जो ठवेइ मूढमणो । अहिमाणलोहजुत्तो, निवडइ संसारजलहिम्मि ॥७७॥ ॥ श्री पाद लिप्तसूरि प्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥ ।। ३३७ ।। w.jainelibrary.org Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. ख० २ ।। ।। ३३८ ।। मध्यकालीन अंजनशलाका विधि जो के पादलिप्तसूरिप्रणीत प्रतिष्ठा विधि विस्तृत नथी छतां कंइक कठीन तो छे ज, सकलचन्द्रोपाध्याय संकलित विध्यनुसारिणी दशाह्निक विधि अतिविस्तृत होई समय अने शक्तिनो व्यय मागे छे, आ बने प्रतिष्ठाविधियोथी पण संक्षिप्त, सरल अने सुख साध्य एवी मध्यकालीन अंजनशलाकाविधि अमो आपीये छीए. परिस्थिति वश ओछा खर्चे अने ओछा परिश्रमे साधी शकाय एवी आ प्रतिष्ठाविधि छे. आ संक्षिप्त प्रतिष्ठाविधिनो मूल आधार तपा० श्रीगुणरत्नसूरिप्रणीत प्रतिष्ठाकल्प छे, आ प्रतिष्ठाविधिने अमोए अमारी नव्यप्रतिष्ठापद्धतिनुं एक विशिष्ट अंग गणीने एमां शामेल करी छे, श्रीमान् गुणरत्नसूरिजी ग्रन्थारंभमां नीचे प्रमाणे मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करे छे. श्रीमद् वीरजिनं नत्वा, प्रतिष्ठाविधिमुत्तमम् । यति श्रावक - कर्तव्यं, व्यक्त्या वक्ष्ये समासतः ।। - सामग्रीमेलन - त्यां प्रथम लागणीवाला प्रतिष्ठा करावनारे लग्नना दिवस पहेलां ज प्रतिष्ठोपयोगी आ वस्तुओ मेलवीने एकत्र करवी; जेम के-४ नवांगवेदी । ४ बांशे गहुब्रीहि जवना जवारा । शरावले जवारा ८ । सोना रूपा त्रांबाना अथवा माटीना स्नपन योग्य कलश ८ । पाणी भरवाने घडा कोरा । 'घडी योग्य कुंडी २। नंदावर्तयोग्य वरगडुआ ८ । शरावलां ६४ । कुंडा ८ । आचार्ययोग्य सदश वस्त्रो । सूत्रधार योग्य वस्त्र । अक्षत पात्र १ | सेवननो नंदावर्त योग्य पाटलो १ । सदश कोरां आच्छादन वस्त्र २ । नन्दावर्तयोग्य १ । प्रतिमायोग्य १ । सोनानां कांकण ४ । सुवर्णमुद्रिका ४ (ए चार स्नात्रकार योग्य जाणवां) । रूपानी वाटकी। सोनानी शली । कालो सुरमो । मध साकर मेलवीने अंजन। प्रियंगु कपूर गोरोचननो - हस्तलेप । १ पूर्वकालमा जलधडी द्वारा मुहूर्तसमय निश्चित करातो हतो तेथी जल भरवाने वे कुंडिओनी आवश्यकता पडती हती. आजे जलधडी उठी जवा छतां प्राचीन लिस्टनो उतारो होइ अमोए लखी छे. ॥ मध्य कालीन अंजन शलाका विधि ॥ ।। ३३८ ।। Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि । प्रवाल, सोनु, रू', त्रांबु, मोती, ए पंचरत्ननी पोटली बिंबनी आंगुलीए बांधवी । आरीसो। मातृशाडी-कसुंबी (वस्त्र) । मीढल-ऋद्धिवृद्धि सहित कांकण (ऋद्धिवृद्धि शब्दथी मरोडा सींग जाणवी)। आरेठानी माला। जवमाला । लोहाच्छेदित श्वेत सरसवनी रक्षा पोटली। सरसव, दहि, अक्षत, घी, डाभ, सहित अर्घपात्र । गेवासूत्र वीटेल पूर्णत्राक । चूंसर-मुसल-रवाइयो, पुंखणोपकरण । पुंखनारी ४ स्त्रीओ सकांकणी । भामणां शराब । गंगोदक । समूलदर्भ । गंगावेलू । कुवा नदीनां १०८ पाणी । ३६० क्रियाणानो पडो । घसेल सुखडवास । धवलवास । केसर-कपूर-कस्तुरी-भोगपुडी । धूपपुडी । घणां फूल । अखंड तंदुल (चावल) सेई २ । घंट । धूपधाणां । छत्र-चामर पंचशब्दादि वाजिंत्र । घारी । सुहाली । लाडू । मांडा । नांदह (सर्व प्रकारनां फल नैवेद्य) काकरिआ २५, (केवी रीते ? मगना ५, तिलना ५, चणाना ५, गहुंधाणीना ५, फूलीना ५ ए प्रकारे २५) बाट, खीर, करंबो, सात धाननी खिचडी, कूर (भात), सीधवडी (पिंडलीमुंठियां), पुडला, एम बलिशरावलां ७ । सात धान-शणबीज १, कुलत्थ २, मसूर ३, जब ४, कांग ५, उडद ६, सरसव ७, अथवा शाल १, जब २, गेहूं ३, मुंग ४, बाल ५, चणा ६, चोला ७ । नालेर । सोपारी। खजूर । द्राख । वरसोला । फलावली । साकर । दाडिम । जंबेरी । नारंगी । बीजोरां । सेलडी । आंबा । घृतवाटको । दधिवाटको । बाकुला बांनी ३ । इति । स्नात्रोपकरण – अथ स्नायोग्योपकरण मेलववा-सुवर्णचूर्ण, अथवा सोनाना कलश ४, अथवा सुवर्ण सहित जलस्नात्र । प्रवाल १, मौक्तिक २, सुवर्ण ३, रजत ४, ताम्र ५, ए पंचरत्नजलस्नात्र २ । पीपली, पीपल, शिरीष, उंबरो, वड, चंपो, अशोक, आंबो, जांबू, बकुल (मोलसिरी), अर्जुन (आंजणुं), पाडल, किंशुकनी अंतरछालनु चूर्ण, कषायस्नात्र ३ । गजदंत-वृषभशृंग उखेडी, पर्वतशिखर उदेहीघर, महाराजद्वार, नदीसंगमे उभयतट, पद्मसरोवरनी माटी मेलवी मृत्तिकास्नात्र ४ । छाण-गोमुत्र-घी-दहि-दूध, ए पंचांगमां डाभ अने पाणी मेलबी पंचगव्यस्नात्र ५ । सहदेवी, बला, शतावरी, कुंआरी, पीठवन्ति, सालवन्ति, बडी(उभी) रींगणी, लहुडा (भूइ) रींगणी, Jain Education international Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ATTA ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका ॥ ३४० ॥ विधि ॥ ए सदोषधिस्नात्र ६ । मयूरशिखा, विरहक, अंकोल, लक्ष्मणा, शंखपुष्पी, खुरसाणिओ (शरपुंखा), गंधनोली, महानोली, एर्नु मूलिकाचूर्ण, स्नात्र ७ । उपलोट १, वज २, लोध्र ३, वीरणीमूल (वालो) ४, देवदारु ५, ध्रो ६, जेठीमध ७, ऋद्धिवृद्धि ८, ए प्रथम अष्टवर्ग चूर्णस्नात्र ८) मेदा १, महामेदा २, काकोली ३, खीरकाकोली ४, जीवक ५, ऋषभक ६, नखी ७, महानखी ८, ए द्वितीयाष्टवर्गस्नात्र ९ । हलदर, वज, सोआ, वालो, मोथ, गांठिवनो, प्रियंगु, मुरमांसी, कचूरो, उपलोट, तल, तमालपत्र, एलची, नागकेसर, लवंग, कक्कोल, जायफल, जाविंतरी, नखी, चंदन, छडछडीलो, शिलारस, प्रमुख सर्वोषधी चूर्ण स्नात्र १० । सेवंत्रादि कुसुमस्नात्र ११ । शिलारस, उपलोट, मुरमांसी, वास, सूखड, अगर, कपूर, मयजंघ, स्नात्र १२ । वासस्नात्र १३ । चंदनस्नात्र १४ । केशर-कुंकुमस्नात्र १५ । गंगाप्रभृति तीर्थजलस्नात्र १६ । कर्पूरस्नात्र १७ । पुष्पांजलिस्नात्र १८ । इति उपकरण मेलबबां । नंदावर्त आलेखन विधि – हवे नंदावर्त आ प्रकारे लखवू-कर्पूर संमिश्र श्रीखंडना सात लेप करेल सेवनना पाटला उपर अथवा कोई पण शुभ पाटला उपर तेना मध्यभागधी सूत्र भमाडीने ८ वृत्तो करवां, मध्येना प्रथम वलयमा कर्पूर-कस्तूरी-गोरोचनयुक्त केसरकुंकुमरसवडे सुवर्णनी लेखणीथी अथवा तो सोनानी कुंचीथी मध्यभागे ९ (नव) कोणयुक्त नंदावर्तनो आलेख करवो अने ते उपर प्रतिष्ठाप्य जिनप्रतिमा स्थापवी वा चिंतववी. ते पछी जिनना जमणा भागमां शक्रेन्द्र अने श्रुतदेवतानो तथा डाबा भागे ईशानेन्द्र अने शांतिदेवतानो आलेख करवो अने 'ॐ नमोऽर्हद्भ्यः ' लखवू. बीजा वृत्तमा पूर्वादि ४ दिशाओमां 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः । ॐ नम आचार्येभ्यः। ॐ नम उपाध्यायेभ्यः । ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः' अने ईशानादि ४ विदिशाओमां अनुक्रमे- 'ॐ नमो ज्ञानेभ्यः । ॐ नमो दर्शनेभ्यः । ॐ नमश्चारित्रेभ्यः । ॐ नमः शुचिविद्यायै' आम लखg. ॥ ३४०॥ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका ॥ ३४१ ॥ विधि । त्रीजा वलयमा पूर्वादि ८ दिशाओमां प्रतिदिशा विदिशामा ३-३ कोष्ठक करी प्रतिकोष्ठ के जिनमातानु एक एक प्राकृतनाम 'प्रणवादि | स्वाहान्त' लखवू, यथा 'ॐ मरुदेवीए स्वाहा १, ॐ विजयाए स्वाहा २' एज प्रकारे सेणा ३, सिद्धत्था ४, मंगला ५, सुसीमा ६, पुहवी ७, लक्खमणा ८, रामा ९, नंदा १०, विण्हु ११, जया १२, सामा १३, सुजसा १४, सुब्बया १५, अचिरा १६, सिरी १७, | देवी १८, पभाबई १९, पउमावई २०, वप्पा २१, सिवा २२, वामा २३, तिसला २४ । माताओना उपरना चोथा वृत्तमा पूर्वादि ८ दिशाओमां प्रत्येकमा २-२ घरो करी सोल विद्यादेवीओ लखवी. जेमके-'ॐ रोहिणीए | नां त्मां स्वाहा । ॐ पन्नत्तीए ही क्षीं स्वाहा । ॐ वज्जसिंखलाए ली स्वाहा ३। ॐ वजंकुसीए ल्मां वां स्वाहा ४॥ ॐ अप्रतिचक्राए | झाँ स्वाहा ५ । ॐ पुरिसदत्ताए त्मां स्वाहा ६॥ ॐ कालीए सां हैं स्वाहा ७ । ॐ महाकालीए ॐ मां स्वाहा ८॥ ॐ गोरीए यूँ ग्रयूँ स्वाहा ९ । ॐ गंधारीए र क्षाँ स्वाहा १०। ॐ सव्वत्थ महाजालाए लूँ हाँ स्वाहा ११॥ ॐ माणवीए यूँ क्ष्मा स्वाहा १२॥ ॐ वहरुट्टाए तूं माँ स्वाहा १३ । ॐ अच्छुत्ताए यूँ माँ स्वाहा १४॥ ॐ माणसीए ग्लँ माँ स्वाहा १५ । ॐ महामाणसीए हं हूँ स्वाहा १६ ॥ विद्यादेवीओनी उपरना पांचमा वृत्तमा आठे य दिशाओमा ३-३ कोष्टको बनावी लोकांतिक देवीनो विन्यास करवो. ते आ प्रमाणे - ॐ सारस्वतेभ्यः स्वाहा, ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा, ॐ वह्निभ्यः स्वाहा, एज रीते नामनी आदिमां 'ॐ' अने अन्तमा चतुर्थीनुं बहुवचन लगाडवू अने छेल्ले 'स्वाहा' शब्द मूकीने बधां नामो लखवां, आगेनां नामो वरुण ४, गर्दताय ५, तुषित ६, अव्याबाध ७, रिष्ट ८, अग्न्याभ ९, सूर्याभ १०, चंद्राभ ११, सत्याभ १२, श्रेयस्कर १३, क्षेमंकर १४, वृषभ १५, कामचार १६, निर्माण १७, दिशांतरक्षित १८, आत्मरक्षित १९, सर्वरक्षित २०, मरुत २१, वसु २२, अश्व २३ अने विश्व २४ । छट्ठा वृत्तनी पूर्वादि आठे य दिशाओमां अनुक्रमे ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यः ॥ ३४१ ॥ Jain Education Internation For Private & Personal use only sow.iainelibrary.org Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वाहा । ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॐ चन्द्रादीन्द्राभिभ्यः स्वाहा । ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॐ किंनरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा । ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा । ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। सातमा वृत्तमा आठ दिशाओमां अनुक्रमे ॐ इन्द्राय स्वाहा १, ॐ अग्नये स्वाहा २, ॐ यमाय स्वाहा ३, ॐ निरीतये स्वाहा ४, ॐ वरुणाय स्वाहा ५, ॐ वायवे स्वाहा ६, ॐ कुबेराय स्वाहा ७, ॐ ईशानाय स्वाहा ८ । ___ आठमा वृत्तमा ८ कोठाओमां अनुक्रमे-ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा १, ॐ सोमेभ्यः स्वाहा २, ॐ मंगलेभ्यः स्वाहा ३, ॐ बुधेभ्यः | स्वाहा ४, ॐ बृहस्पतिभ्यः स्वाहा ५, ॐ शुक्रेभ्यः स्वाहा ६, ॐ शनैश्चरेभ्यः स्वाहा ७, ॐ राहु-केतुभ्यः स्वाहा ८ ।। आठ वलयोनी बहार ४-४ द्वारोयुक्त ३ प्राकारो बनाववा, पूर्वादि द्वारो अनुक्रमे श्री १, शांति २, बल ३, आरोग्य ४, नामक चार तोरणो वडे शोभायमान करवां, तथा धर्म १, मान २, गज ३, सिंह ४, नामक ध्वजो द्वारो उपर आलेखवा, प्रथम प्राकारना पूर्वादि द्वारो पर अनुक्रमे सोम १, यम २, वरुण ३, कुबेर ४, आ चार लोकपालोने द्वारपाल रूपे आलेखवा, एमना हाथमां अनुक्रमे धनुष्य १, दण्ड २, पाश ३, गदा ४, नामक आयुधो बतावबां. बीजा प्राकारना द्वारोए अनुक्रमे जया १, विजया २, अजिता ३, अपराजिता ४, नामनी द्वारपालीओ आलेखवी. त्रीजा बहारना प्राकारना ४ द्वारो उपर यष्ठिधर तुंबरुने द्वारपाल आलेखवो. ते पछी प्रथम गढमां आग्नेयादि विदिशाओमा १२ सभाओ आलेखवी. साधु १ वैमानिकदेवी २, साध्वी ३, ए आग्नेयकोणमां, भवनपति १, व्यन्तर २, ज्योतिष्क ३, नी देवीओ नैर्ऋत कोणमा, भवनपति १, व्यंतर २, ज्योतिष्क ३, देवो वायव्य कोणमां अने वैमानिक देव १, मनुष्य २, मानुषी ३, ए इशान कोणमा आलेखबी. बीजा प्राकारमा तियचो आलेखवा अने त्रीजा प्राकारमा यानवाहनो आलेखवां. प्राकारनी बहारनी भूमीमां देवो-मनुष्यो बतावबा, चारेय द्वारोनी बंने बाजुए कमलवनयुक्त वावडिओ आलेखवा, पछी बजलांछित श || ३४२ ।। Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। - इंद्रपुर देइ दिशाओमा "परविद्याः क्षः फुट" कोणोमां “परमंत्राः क्षः फुट्" तथा चार कोणोमां चार पूर्ण कलशो लखवा, तेनी | ।। कल्याण- बहार वायुमंडल आप, इति नन्द्यावर्त्त आलेखन विधि । कलिका. अथ नन्द्यावर्त पूजन विधि – नन्द्यावर्तनी पूजा पोतपोताना नामोच्चारण पूर्वक आ प्रमाणे करवी-प्रथम वृत्तना मध्यभागे नंन्दावर्त खं०२ ॥ उपर प्रतिष्ठाप्य जिननुं आह्वान करी 'ॐ नमोऽर्हद्भ्यः' आ नाममंत्र बोली कर्पूरादि वडे पूजन करवू. देवना जमणा भागमां शकेंद्र तथा श्रुतदेवतानी पूजा करवी अने डावा भागे ईशानेंद्र तथा शांतिदेवताने पूजवी. ॥ ३४३ ॥ बीजा वलयमा पूर्वादि दिशाओमां “ॐ नमः सिद्धेभ्यः, ॐ नम आचार्येभ्यः, ॐ नम उपाध्यायेभ्यः, ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः" RT अने इशानादि विदिशाओमां “ॐ नमो ज्ञानेभ्यः, ॐ नमो दर्शनेभ्यः, ॐ नमश्चारित्रेभ्यः, ॐ नमः शुचिविद्यायै" आ प्रमाणे नाम मंत्रो बोलीने पूजन करवू. म त्रीजा वृत्तमां-ॐ मरुदेवीए नमः । ॐ विजयाए नमः । ॐ सेणाए नमः । ॐ सिद्धत्थाए नमः । ॐ मंगलाए नमः । ॐ सुसीमाए नमः । ॐ पुहवीए नमः । ॐ लक्खमणाए नमः । ॐ रामाए नमः । ॐ नंदाए नमः । ॐ विण्हुए नमः । ॐ जयाए नमः । ॐ सामाए नमः । ॐ सुजसाए नमः । ॐ सुन्वयाए नमः । ॐ अचिराए नमः । ॐ सिरीए नमः । ॐ देवीए नमः। ॐ पभावईए नमः। ॐ पउमावईए नमः । ॐ वप्पाए नमः । ॐ सिवाए नमः । ॐ वामाए नमः । ॐ तिसलाए नमः ।' चतुर्थ वृत्तमा 'ॐ रोहिणीए नमः । ॐ पन्नत्तीए नमः । ॐ वज्जसिंखलाए नमः । ॐ वजंकुसीए नमः । ॐ अप्पडिचक्काए नमः। ॐ पुरिसदत्ताए नमः । ॐ कालीए नमः । ॐ महाकालीए नमः । ॐ गोरीए नमः । ॐ गंधारीए नमः । ॐ सव्वत्थमहाजालाए नमः । ॐ माणवीए नमः । ॐ वहरुट्टाए नमः । ॐ अच्छुत्ताए नमः । ॐ माणसीए नमः । ॐ महामाणसीए नमः ।' बा For Private & Personal use only doww.jainelibrary.org Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं. २॥ पांचमा वृत्तमां-ॐ सारस्वतेभ्यो नमः । ॐ आदित्येभ्यो नमः । ॐ वह्निभ्यो नमः । ॐ वरुणेभ्यो नमः । ॐ गर्दतोयेभ्यो नमः। ॐ तुपितेभ्यो नमः । अव्याबाधेभ्यो नमः । ॐ रिष्टेभ्यो नमः । ॐ अग्न्याभेभ्यो नमः । ॐ सूर्याभेभ्यो नमः । ॐ चन्द्राभेभ्यो नमः। । मध्यॐ सत्त्याभेभ्यो नमः । ॐ श्रेयस्करेभ्यो नमः । ॐ क्षेमंकरेभ्यो नमः । ॐ वृषभेभ्यो नमः । ॐ कामचारेभ्यो नमः । ॐ निर्माणेभ्यो कालीन नमः । ॐ दिशान्तरक्षितेभ्यो नमः । ॐ आत्मरक्षितेभ्यो नमः । ॐ सर्वरक्षितेभ्यो नमः । ॐ मरुतेभ्यो नमः । ॐ वसुभ्यो नमः । अंजनॐ अश्वेभ्यो नमः । ॐ विश्वेभ्यो नमः ।। शलाका षष्ठ बलयमा पूर्वादि कोष्ठकोमा ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यो नमः । ॐ तद्देवीभ्यो नमः । ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यो नमः । ॐ तद्देवीभ्यो विधि ॥ नमः । ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यो नमः । ॐ तद्देवीभ्यो नमः । ॐ किन्नरादीन्द्रदिभ्यो नमः । ॐ तद्देवीभ्यो नमः । सातमा बलयमां-ॐ इद्राय नमः । ॐ अग्नये नमः । ॐ यमाय नमः । ॐ निर्ऋतये नमः । ॐ वरुणाय नमः । ॐ वायवे नमः। ॐ कुबेराय नमः । ॐ ईशानाय नमः ।। आठमा वलयना आठ कोठाओमां अनुक्रमे ॐ आदित्येभ्यो नमः । ॐ सोमेभ्यो नमः । ॐ मंगलेभ्यो नमः । ॐ बुधेभ्यो नमः। ॐ बृहस्पतिभ्यो नमः । ॐ शुक्रेभ्यो नमः । ॐ शनैश्वरेभ्यो नमः । ॐ राहुकेतुभ्यो नमः । आठवलयोने फरता आलेखेला त्रण प्राकारो पैकीना अंदरना प्रथम प्राकारना आग्नेयादि ४ कोणोमां आ प्रमाणे बार पर्पदाओपूजन करवू, अग्निकोणे-ॐ साधुभ्यो नमः । ॐ वैमानिकदेवीभ्यो नमः । ॐ साध्वीभ्यो नमः।। नैऋत्यकोणे-ॐ भवनपतिदेवीभ्यो नमः । ॐ व्यन्तरदेवीभ्यो नमः २। ॐ ज्योतिप्कदेवीभ्यो नमः ३॥ वायव्यकोणे ॐ भवनपतिदेवेभ्यो नमः । ॐ व्यन्तरदेवेभ्यो नमः २॥ ॐ ज्योतिष्कदेवेभ्यो नमः ३॥ ईशानकोणे-ॐ वैमानिकदेवेभ्यो नमः १ || FREE Sath * For Private Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण- कलिका. / खं० २ ॥ || मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। av | ॐ मनुष्येभ्यो नमः । ॐ मानुषीभ्यो नमः।। आम प्रथम प्राकारमा १२ पर्पदाओने पूजीने बीजा प्राकारगत तिर्यंची अने तृतीय प्राकारगत यानवाहनादि उपर वासक्षेप करीने पूजन करवू. ते पछी प्रथम प्राकारना द्वारपालोने आ प्रमाणे नाममंत्रो बोलीने पूजवा-ॐ सोमाय नमः । ॐ यमाय नमः । ॐ वरुणाय नमः। ॐ कुवेराय नमः । बीजा प्राकारनी द्वारपालिकाओने-ॐ जयायै नमः । ॐ विजयायै नमः । ॐ अजितायै नमः । ॐ अपराजितायै नमः ॥ तृतीय प्राकारना द्वारपाल तरीके- ॐ तुंबरवे नमः । ॐ तुंबरवे नमः । ॐ तुंबरवे नमः । ॐ तुंबरवे नमः । आम ४ द्वारोपर तुंबरु द्वारपालनी पूजा करवी ॥ ए ज प्रकारे ४ तोरणो, ४ ध्वजो, दिशाओमा ‘परविद्याः क्षः फुट् स्वाहा, विदिशाओमां 'परमन्त्राः क्षः फुट् स्वाहा' इन्दपुरादि जे जे आलेखो नंद्यावर्तने फरता करेला होय ते सर्वनी पूजा करवी, वासक्षेप करवो. इति नन्दावर्तपूजाविधि ।। प्रतिष्ठास्थानमा प्रतिमा प्रवेश – रंग-बेरंगी चन्द्रवाओ वडे सुशोभित अने पीठसहित एवा प्रतिष्ठानमां (जे स्थाने नवीन प्रतिमाओ विधि माटे स्थापवी होय ते-प्रतिष्ठामंडपमा) शुभ समये महोत्सवपूर्वक नवीन तैयार थयेल जिनबिंब पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख बेसाडवू. जो बिंब स्थिर होय तो तेनी नीचे वामभागे पंचरत्न तथा कुंभकारना चक्रनी माटी मूकीने प्रतिमा स्थापवी अने जो बिंब चल होय तो तेनी नीचे समूलो डाभ तथा नदीनी शुद्ध वालुका मूकवा, जघन्य पदे पण १०० हाथ सुधीमां बधे भूमि शुद्धि करवी, सुगंधी जल छांटी तथा पुष्पो वेरीने भूमिनो सत्कार करयो, धूप उखेववो, अमारि पडहो बगाडाववो, राजाने पूछबुं, मंदिर-मूर्ति बनावनार शिल्पीनो सत्कार करवो, संघने बोलाववां, अने धामधूमथी पवित्र जलाशयथी जल आ प्रमाणे विधिथी लावू. जलयात्राविधि - पूर्वे मंगावेल सुंदर मजबूत धडाओने प्रतिष्ठामंडपमां मंगाविने प्रतिष्ठाचार्ये चंदन-वास-अक्षतो बडे अभिमंत्रित ।।। ३४५ ।। श For Private & Personal use only Www.jainelibrary.org Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। करवा. श्रावकोए (स्नात्रकारोए) ते पवित्र तथा विविध प्रकारना पुप्पो-पत्रो अने सोपारी आदिधी पूजवा, ते पछी ते घडाओ प्रतिष्ठाचार्यद्वारा रक्षा प्राप्त अविधवा एवी चार स्त्रीओने उपडावबा, पछी ते स्त्रीओनी साथे संघ समुदाय महोत्सव पूर्वक नदी-सरोवरादिके जवू, त्यां जलने कांठे उभा रही प्रतिष्ठागुरु क्षेत्रदेवता-जलदेवता अने शान्तिदेवताने अनुकूल करवा निमित्ते "क्षेत्रदेवता अनुकूला भवतु, जलदेवता अनुकूला भवतु, शान्तिदेवता अनुकूला भवतु,' आम बोलता चन्दन-वास-अक्षत-क्षेप करे अने त्रणेना कायोत्सर्ग करे, श्री क्षेत्रदेवतायै करेमि काउस्सग्ग अन्नत्थ उससिएण०, १ नव०, पारी, नमोऽर्हतं०, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ॥॥ श्री शान्तिदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० पारी, नमोऽर्हत् स्तुतिः - श्री चतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ॥२॥ श्रीजलदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० का०, पारी नमोऽर्हत् स्तुतिः - यदधिष्ठितजलविमलाः, सकलाः सफला जिनेश्वरप्रतिमाः । सा जलदेवी पुर-संघ-भूभुजा मंगलं देयात् ॥३॥ आ वखते श्रावको नालियेर आदि वडे अने अगर आदिना अंगभोग बडे पूजा करे, ते पछी नमस्कार मंत्र गणवापूर्वक जले करी घडाओ भरी धवमंगल गवातां वादिननादपूर्वक आवी जिनप्रसादने प्रदक्षिणा देइ निरुपद्रव स्थानके मूके. इति जलयात्रा विधि । वेदीस्थापना - चार मंडपना ४ खूणाओमा अविधवा श्राविकाए मंगलगीतपूर्वक आणेली ४ विषमांगवेदिओ (नवांगवेहि-वेह) स्थापबी, दरेक वेदीने उपर १-१ जवारानुं शराबलं मूकवू, वेदिओने गेवासूत्र अथवा राता रंगे रंगेल सूत्र वींटवू, उपर लाल रंगे रंगेल १२.१२ हाथनां बे अडधियां ओढाडवां, फरतो वांसडाओनो टेको देइ वेदिओने मजबूत करवी. (प्रतिमानी) चारे दिशाओमां (कंइक) || ३४६ ।। Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ ॥ ३४७॥ जमणी तरफ) श्वेत सुंदर ४ नाना गाडुआ (बेडिआ) स्थापवा, तेमना उपर १-१ जवारा- सरावलं मूकबुं. दिक्पालस्थापना - एक पवित्र पाटला उपर दश दिक्पालोनी स्थापना करवी. इन्द्र, अग्नि, यम, निति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग अने ब्रह्मा, ए क्रमथी पूर्वादि पोत-पोतानी दिशामां चंदनना आलेखरूपे तिलको करवां, अने ते पछी ते स्थानोमां दिक्पालोनी पूजा करवी. ___स्नात्रकारो अने औषधि वाटनारीओ – रत्नजडित सुवर्णमुद्रिका-कंकणधारी अखंडित शरीरवाला अक्षतेन्द्रिय एवा निपुण | अखंडित-उद्भट वेषधारी धर्मवान् उपवासी ते दिवसे ब्रह्मचारी अने कुलवान् एवा चार अथवा अधिक स्नात्रकारो करवा. एज रीते सासू- | ससरो, माता-पिता जीवित होय एवी सुकुलीन श्रेष्ठ वस्त्राभरणोधी सुशोभित सुशील अने पवित्र शरीरवाली चार स्त्रीओ द्वारा स्नात्रनी | सर्व औषधिओ कूटावीने तैयार करावबी, ते प्रत्येकने कापड, नालियेर, सुखडी, आदि आपीने तेमनो सत्कार करवो, एमान कंइ न बने तो कुंकुमतिलक, पुष्प अने तांबूल बड़े पण यथाशक्ति उपचार करचो. ते औषधी वाटनारीओए पण यथाशक्ति देवने वस्त्रयुगलादि Mal अर्पण करी भक्ति करवी. अष्टादश अभिपेकोनां औषधिचूर्णोनां जुदां जुदां पडिकां बांधी तेओ उपर दोरो वींटीने पडिकां करी राखवां, वाटेला प्रियंगु, कपूर, गोरोचनरूप हस्तलेपन- पण पडिकुं बांधीने तैयार राखg. ___पछी शान्तिककर्ममा प्रवीण धार्मिक स्नात्रकारोए दिक्पालोनी पूजा करी जिनप्रासादनी जगतीमां शांतिबलि क्षेपबो, ते पछी पूर्वप्रतिष्ठित प्रतिमानुं विधिपूर्वक स्नात्र करी पूजा करवी. आ बधी पूर्व क्रिया जाणवी. आ पछीनां जे जे कर्तव्यो छे ते बधां सुखे शीखी शकाय Me एटला माटे पूर्वाचार्योए गाथाओथी वर्णवेल छे. ते गाथाओ विस्तारना भयथी अत्रे लखी नथी. १. आ गाथाओ अमे ८ मा परिच्छेदने अंते आपी छे. other मा य ATb. || ३४७ ।। For Private Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं. २ ॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका ॥ ३४८ ॥ विधि ॥ प्रतिष्ठाप्रारंभ मंगल - पूर्वप्रतिष्ठित प्रतिमाना स्नात्र पछी तरत ज तेनी आगल नवीन वस्त्र पहेरेल पवित्र उपवासी आचार्य पूर्वोक्त | स्नात्रकारों सहित चतुर्विध संघसमेत आ प्रकारे चैत्यवन्दना करे - नमस्कार (कोइ पण चैत्यवंदन-स्तोत्रं), नमुत्थुणं०, अरिहंत चेझ्याणं०, १ नव० का० करी प्रतिष्ठाप्य देवनी स्तुति कहेवी । लोगस्स०, सव्वलोए०, द्वितीय स्तुति । पुक्खखरदीवडे, सुअस्स०, तृतीय स्तुति । सिद्धाणं बुद्धाणं०, श्रीशांतिनाथ आराधनार्थ०, कायोत्सर्गमा चतुर्विशतिस्तव चिन्तववो, स्तुतिः - श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥१॥ ते पछी श्रुतदेवतानो कायोत्सर्ग अने स्तुति - वद बदति न वाग्वादिनि ! भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरंगमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥२॥ शासनदेवतानो कायोत्सर्ग करीने स्तुतिः - उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥३॥ भवनदेवतानो कायोत्सर्ग करवो, स्तुतिः - ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । ॥ ३४८ ॥ For Private Personal use only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शी ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ GS ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ aate. थील न विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥४।। क्षेत्रदेवतानो कायोत्सर्ग करवो, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥५॥ अम्बादेवीनो काउस्सग्ग करवो, स्तुतिः - अम्बा बालाङ्किताऽङ्कासौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥६॥ अच्छुप्तानो काउस्सग्ग करवो, स्तुतिः - चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या-ऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥७॥ छेल्लो वैयावच्चगरोनो कायोत्सर्ग करवो, स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ नवकार गणी, बेसी, नमुत्थुणं०, जावंति चेइआई० स्तवन - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणव नमो तह, भगवई सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाए, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरईय-वरुणवाउकुबेरईसाणा । बंभो नागु त्ति दसण्ह-मवि अ सुदिसाण पालाणं ॥३॥ ta|| ३४९ ।। For Private & Personal use only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। ३५० ॥ d . GM थान सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्डं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणि ॥५॥ ॥ मध्य'जयवीयराय' इत्यादि कही चैत्यवंदना समाप्त करवी. कालीन अंजनबद्धपरिकरता – ते पछी आचार्ये पोतानामां सकलीकरण करवू, सकलीकरणनो मंत्र आ प्रमाणे छे - ॐ नमो अरिहंताणं-हृदयं रक्ष रक्ष । ॐ नमो सिद्धाणं-ललाटं रक्ष रक्ष । ॐ नमो आयरियाणं शिखां रक्ष रक्ष । । कश शलाका विधि ।। ॐ नमो उवज्झायाणं-कवचम् । ॐ नमो लोए सब्बसाहणं-अस्त्रम् । उक्त प्रकारे ७ वार आत्मरक्षा करवी, पछी - ___“ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहणं। ॐ नमो आगासगामीणं । ॐ नमो चारणलद्धीणं । ॐ हः क्षः नमः । ॐ अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा ।" आ मंत्र बडे पांच वा सात बार आत्मानुं शुचीकरण करवू, पोतानुं सकलीकरण तथा शुचीकरण कर्या बाद आचार्य पूर्वोक्त सकलीकरण | मंत्रथी स्नात्रकारो, पण सकलीकरण करवू, ते पछी "ॐ झीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं बिंबस्य रक्ष रक्ष स्वाहा" आ मंत्रद्वारा ७ वार अभिमंत्रित करीने धूप तथा जल साथे दिशाओमां बलिक्षेप करवो. अधिवासनानो उपक्रम - ए पछी श्रावकोए धूप जल सहित प्रतिष्ठाप्य प्रतिमा उपर नीचे- पद्य भणीने कुसुमांजलि क्षेप करवो. "अभिनवसुगंधवासित-पुष्पौधभृता सुगन्धधूपाढ्या । बिम्बोपरि निपतन्ती, सुखानि कुसुमाञ्जलिः कुरुताम् ॥१॥ For Private Personal use only dha GO CA Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण ॥ मध्यकालीन कलिका. अंजन ॥ ३५१ ॥ शलाका विधि ॥ ते पछी आचार्य प्रतिष्ठाप्य बिंब सामे क्रूर दृष्टि करी बे मध्यमा आंगलीओ उंची करी तर्जनी मुद्रा देवी, श्रावके डाबा हाथमा | जल लेइ "स्नौँ साँ" आम बोलतां प्रतिमा उपर आछोटवू, अने पछी प्रतिमाने तिलक करवो, पुष्पादि चढावां, मुद्गरमुद्रा देखाडवी ] अने अक्षतस्थाल भेट करवो. ते बाद आचार्ये "ॐ ह्रीँ क्ष्वी" इत्यादि बलिमंत्र वडे वज्र १, गरुड २, मुद्गर ३, मुद्राओनी साथे सातबार प्रतिमाने कवच करवो, जेथी प्रतिमानी दृष्टिदोषथी रक्षा थाय, एज मंत्र बडे सातवार दिग्बन्ध पण करवो. ए पछी श्रावकोए उभा थइ जिनमुद्राए उभा रही - "ॐ नमो य सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ आगच्छ जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा' आ मंत्रे जलकलशादिकनुं अभिमंत्रण कर. "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु विपृथु विपृथु गन्धान् गृह गृण्ह स्वाहा" आ मंत्रथी वास, चंदन, सौषधिर्नु अभिमंत्रण कर. ॐ नमो यः सर्वतो मे मदिनी पुष्पवती पुष्पं गृह्ण गृह्ण स्वाहा । आ मंत्रे पुष्पो अभिमंत्रित करवा. "ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह दह महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण गृह्ण स्वाहा ।" आ मंत्र वडे धूपने अभिमन्त्रित करवो, अने श्रावकोए उखेबवो, ते पछी ते वास-चंदन-पुष्पो थोडां थोडां जलमां नांखवां, श्रावकोए पंचरत्ननी पोटली प्रतिमाना जमणा हाथनी आंगलीए बांधवी.. अढार अभिषेको – तदनन्तर पंचपरमेष्ठिमंगलपूर्वक तैयार करी राखेल स्नात्रपुडिओमाथी अनुक्रमे एक एक औषध पुडी जलमां नाखवी. मंत्र-मुद्रापूर्वक अधिवासित ते तीर्थजले ४-४ कलशो भरी गीत-वाजिंत्रनाद पूर्वक स्नात्रकारोए १८ स्नात्रो करवा, सर्व स्नात्रोमां || ३५१ ।। Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ आंतरे आंतरे मस्तके पुष्पारोपण करवू, ललाटमां तिलक कर, वासक्षेप चढाववो अने धूप उखेववो, (१) प्रथम ४ सुवर्ण कलशोमां जल भरीने अथवा जलमां सुवर्ण चूर्ण नाखीने ते बड़े स्नात्र ते सुवर्ण स्नात्र - सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपूतम् ॥१॥ (२) बीजु पंचरत्नजलस्नात्र - नानारत्नौघयुतं, सुगन्धपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रवर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥२॥ (३) तृतीयकषायस्नात्र - प्लक्षाश्वत्थोदम्बर-सिरीषछल्ल्यादिकल्कसंमिश्रम् । बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ (४) चोधुं मृत्तिकास्नात्र - पर्वतसरोनदीसंग-मादिमृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः । उद्वर्त्य जैनबिम्ब, स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥ (५) पांच, गव्य (पंचगव्य) दर्भजलस्नान - जिनबिम्बोपरि निपतद्, घृतदधिदग्धादिछगणप्रसवणैः । दर्भोदकसंमिश्रः, स्नपयामि जिनेश्वरप्रतिमाः ॥५॥ (६) छटुं सहदेव्यादिसदौषधिस्नात्र - सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य । संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दरितानि ॥६॥ (७) सातमु मूलिकास्नात्र - सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दितेतदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥७॥ ।।। ३५२ ।। www.iainelibrary.org Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३५३ ।। (८) आठमुं प्रथमाष्टवर्गस्नात्र नानाकुष्ठाद्यौषधि-संभृष्टे तद्युत पनीरम् । बिम्बे कृतसन्मन्त्रं, कर्णौघं (९) नवमुं द्वितीयाष्टवर्गस्नात्र - - हरतु भव्यानाम् ||८|| मेदाद्यौषधिमेदो-ऽपरोऽष्टवर्गः स्वमन्त्रपरिपूतः । जिनबिम्बोपरि निपतन्, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ||९|| आ प्रमाणे नव स्नात्रो थया पछी आचार्य उठीने ' गरुड - मुक्ताशुक्ति परमेष्ठि.' आ ३ मुद्राओमांथी कोइ पण एक मुद्रा वडे प्रतिष्ठाप्य देवतानुं आह्वान करे, प्रतिमानी सामे उभा रही उक्त त्रण मुद्राओ पैकीनी कोइ एक मुद्रा दर्शन पूर्वक - “ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " आम जिनाह्नान करवु, पछी श्रावके १० दिक्पालोनुं आह्वान आ प्रमाणे कर. ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥ | १ || ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||२|| ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा || ३ || ॐ निरृतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||४|| ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||५|| ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||६|| ॥ मध्य कालीन अंजन शलाका विधि ॥ ।। ३५३ ।। Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ अंजन ॥ ३५४ ॥ ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥७॥ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥८॥ ॥ मध्यॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥९॥ कालीन ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१०॥ शलाका उपर प्रमाणे प्रत्येक दिक्पाल- आह्वान करी श्रावकोए ते ते दिशामा पुष्पांजलि चढावबी. विधि ॥ (१०) दशमुं सर्वौषधिस्नात्र - सकलौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया चर्चितं सुगतिहेतोः, स्नपयामि जैनबिम्ब, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥१०॥ अहियां आचार्ये दृष्टिदोषनिवारणार्थ पोताना जमणा हाथे प्रतिष्ठाप्य बिंबनो स्पर्श करी नीचेना बे मंत्रोमाथी कोई पण एक मंत्रनो प्रतिष्ठाप्य बिंबमां न्यास करवो. ते वे मंत्रो- “ॐ इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा" ए एक अने "ॐ क्षा क्ष्वी ही क्षीं भः स्वाहा ।"ए बीजो. आ वखते श्रावकोए दृष्टिदोषविघातार्थ “ॐक्षा क्षींझी स्वाहा ।" आ मंत्रे ७ वार मंत्रीने लोहअस्पृष्ट श्वेत सरसबोनी रक्षा पोटली प्रतिमाना हाथे बांधवी अने ललाटे चंदननो तिलक करवो. पछी आचार्ये जिन सामे हाथ जोडीने आ प्रमाणे विज्ञप्ति करवी "स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु प्रसादं धिया कुर्वन्तु अनुग्रहपरा भवन्तु भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ।" | ते पछी श्रावके सुवर्णपात्रमा राखेला सरसव १, दहि २, अक्षत ३, घृत ४, दर्भ ५, ए रूप अर्घ "ॐ भः अघु प्रतीच्छन्तु || ॥ ३५४॥ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिका. खं०२॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ पूजां गृह्णन्तु गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा ।" आ मंत्रे अभिमंत्रित करीने निवेदन करवो.. ते पछी आचार्य उभा थइ इन्द्र १, अग्नि २, यम ३, निक्रति ४, वरुण ५, वायु ६, कुबेर ७, ईशान ८, नाग ९, ब्रह्मा १०, ए नामक दश दिक्पालोनुं आह्वान करता ते ते दिशामां आ प्रमाणे वासक्षेप करे. "ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह जिनेन्द्रस्थाने आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" ____एज रीते अग्नि आदि प्रत्येक दिपालनी दिशासंमुख आह्वान करीने आचार्ये वासक्षेप करवो अने स्नात्रकारोए चंदन अक्षत पुष्पादि | नाखवा, धूप करवा, दीवो करवो, वळी श्रावको पूर्वोक्त प्रकारनो अर्थ एक पात्रमा लेइ “दिक्पाला अर्घ प्रतीच्छन्तु" एम उच्चारण पूर्वक अर्घनिवेदन करे. (११) अग्यारमुं पुष्पजलस्नात्र - अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनःकिंजल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादिसुपुक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥११॥ (१२) बारमुं गन्धस्नात्र - गन्धाङ्गस्नानिकया संमृष्टं तदकस्य धाराभिः । स्नपयामि जैनबिम्ब, कौघोच्छित्तये शिवदम् ॥१२॥ (१३) तेरमुं वासस्नात्र-(धवल वर्ण गंध ते वास) - हृद्यैराल्हादकरैः, स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैज॑नम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-बिम्ब ह्यधिवासतं वासैः ॥१३॥ (१४) चौदमुं चंदनस्नात्र - शीतलसरससुगन्धि-मनोमतश्चनदनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे ॥१४॥ For Private Personal Use Only Jain Education international Lovw.jainelibrary.org Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D चाल ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ ।। ३५६ ॥ (१५) पंदरमु कुंकुमस्नात्र - कश्मीरजसुविलिप्तं, बिम्बं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मन्त्रयुक्त्या शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१५॥ आ पछी प्रतिमाओने आरीसो देखाडवो. (१६) सोलमुं तीर्थजल स्नात्र - जलधिनदीहृदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्ब स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१६॥ (१७) सत्तरमुं कर्पूरस्नात्र - शशिकरतुषारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ॥१७॥ (१८) अढारमुं बिम्बोपरि पुष्पांजलिक्षेपस्नात्र - नाना सुगन्धिपुष्पौध-रञ्जिता चश्चरीककृतनादा । धूपामोदविमिश्रा, पततात् पुष्पाञ्जलिर्बिम्बे ॥१८॥ आ प्रमाणे अढार स्नात्रो करीने घृत १, दहि २, दूध ३, खांड ४, सर्वौषधि ५, रुप पंचामृत- १ स्नात्र करवू, नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय. कहीने - ___घृतमायुर्वृद्धिकरं, परमं श्रीजैनगात्रसंपर्कात् । तद् भगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृतसमुद्रस्य ॥१॥ दुग्धं दुग्धाम्भोधे-रुपाहृतं यत्पुरा सुरवरेन्द्रैः । तद् बलपुष्टिनिमित्तं, भवतु सतां भगवदभिषेकात् ॥२॥ दधिमङ्गलाय सततं, जिनाभिषेकोपयोगतोऽप्यधिकम् । भवतु भवतां शिवाध्वनि, दधिजलधेराहृतं त्रिदशैः ॥३॥ इक्षुरसादादुपहृत, इक्षुरसः सुरवरैस्त्वदभिषेके भवदवसदवथुभविनां, जनयतु नित्यं सदानन्दम् ॥४॥ For Private & Personal use only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥.मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ ॥ ३५७ सर्वोषधीषु निवसत्यमृतमिदं सत्यमर्हदभिषेकात् । तत्सवौषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्धयै ॥५॥ ए पछी कर्पूर आदि सुगंधि चूर्ण करी प्रतिमाने घसी चिकाश दूर करी गर्भजले पखालवी, अने १०८ वार शुद्धजले कलश भरी स्नात्र करवू, ते बाद अंग लुंछी सुगंधी विलेपन करवू, पूजा करवी, मेवो फलादि ढोबां, १०८ स्नात्र पर्यन्त - "चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-नत्यन्तीभिः सुरीभिर्ललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भै-बिम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरःस्नापयाम्यत्र काले ॥१॥ पंच शब्द वादित्रपूर्वक ए काव्य उच्च स्वरे भण. पछी सूरिमंत्रे अथवा अधिवासना मंत्रे अभिमंत्रित चन्दनबडे डाबा हाथे पकडेला जमणा हाथथी बिम्बना सर्वांगे विलेपन करवू, पुष्पपूजा करवी, धूप उखेववो, अने वासक्षेप करवो. अने आचार्ये सुरभि १, पद्म २, अंजलि ३, आ त्रण मुद्राओ देखाडवी. ए पछी श्रावके सर्व प्रतिमाओने प्रियंगुकर्पूर गोरोचनादि द्रव्यात्मक हस्तलेप करवो अने “ॐ नमो खीरासवलद्धीणं । ॐ नमो महआसवलद्धीणं । ॐ नमो संभिन्नसोआणं । ॐ नमो पयाणुसारीणं । ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं । जमिमं वजं पउंजामि सामे विज्जा पसिज्झउ, ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमिणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा" अथवा "ॐ नमः शान्तये हूँ यूँ हूँ सः" आ वे अधिवासना मंत्रो पैकिना कोई पण एक मंत्रे अभिमंत्रित करीने प्रतिमाओने ऋद्धि वृद्धि सहित मीढलनां कंकण बांधवा अने बीजा अधिवासना मंत्रे करीने मुक्तासुक्तिमुद्रा अथवा चक्रमुद्राए प्रतिमाओना मस्तक १, खांधा २, टींचण २, ए ५ अंगोनो ७ वार स्पर्श करवो, निरंतर धूप उखेववो. ॥ ३५७ ॥ Jan Education International For Private Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३५८ ।। आ वखते परमेष्ठिमुद्रा करी आचार्य जिननुं आह्वान करे, मंत्र नीचे प्रमाणे छे "ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारी परिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ܕ ते पछी आसन उपर बेसी आचार्य पोते आसनमुद्राए वास आदि द्रव्यो बडे नन्दावर्तनुं पूजन करे, स्नात्रकारो पुष्पादि चढावे, प्रचुर अंगभोग सामग्री चढावे, नन्दावर्तनुं पूजन मध्य भागथी चालु करवुं एना लेखन-पूजननो क्रम अने विधि पूर्वे लख्या प्रमाणे जाणवो, नन्दावर्त पूजीने दशीओ सहित अने अव्यंगित एवा वस्त्रे तेने ढांकबुं, तेना उपर १ नालिएर स्थापन करवुं, फरतुं सप्तधान्य क्षेप, प्रतिष्ठा चल होय तो ते जणाववा माटे नंदावर्त उपर संकल्प करी प्रतिष्ठाप्य बिंबने स्थापन करवुं उपर रक्तसूत्र वींटवुं, बीजोरादिक विचित्र फलो अने नैवेद्य ढोबुं. आगे बाट १, क्षीर २, करंबो ३, केसरि ( खीचडी) ४, सिद्धपिंडी ५, कूर ६, पूअडा ७ ए सात बलि शरावो ढोवां. रक्तसूत्र अथवा गेवासूत्र बांधेल ४ नाना सुवर्णना कलशिया अथवा चंदननुं विलेपन करी सुवर्णना वर्क चोडेला ४ कलशिया (नन्दावर्त स्थित) प्रतिमानी चारे बाजु स्थापना, घी-गोलना ४ मंगलदीवा स्थापवा, नन्दावर्तना पाटलानी चारे दिशाओमां कोडी १, सुवर्ण २, जल ३, धान्य ४, युक्त चार श्वेततारको ( नाना घडुला) स्थापवा, तेमना गलामां सुकुमालिओ (सुंहाली) नां कांकण पहेराववां ते चारे उपर ४ जवारानां शरावला मुकवां, अने ते श्वेत बारकोने गेवासूत्र वींटवुं ते पछी शक्रस्तवे करीने चैत्यवन्दना करवी. हवे अधिवासना लग्ननो समय नजीक आवतां श्रावके (नन्दावर्तपूजन पूर्वे प्रतिमाओने ऋद्धिवृद्धि सहित मींडल न बांध्यां होय तो ) बांधीने पुष्प धूप चंदन वासे वासित एवा दशियावड अखंड वस्त्रे करीने सर्व बिंबोनुं मुखाच्छादन करवुं एटले भाइसाडी (कुंसुंभी लालवख) ओढाडी प्रतिमाओनां मुख ढांकवां, ते वस्त्र उपर चंदनना छांटा नांखवा, पुष्पो वेरवां, वासक्षेप करवो. ॥ मध्य कालीन अंजन शलाका विधि ॥ ।। ३५८ ।। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ AAT ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। (लग्न अने नवमांशनो समय आवतां) आचार्ये ३ वार सूरमंत्रधी अने बीजा साधुए “ॐ नमो खीरासवलद्धीणं । ॐ नमो Jads महुआसवलद्धीणं' इत्यादि पूर्वोक्त मंत्रथी अथवा तो "ॐ नमः सान्तये हूँ यूँ हूँ सः" आ अधिवासना मंत्रथी बिम्बोनी अधिवासना करवी, बादमां श्रावके अंजलिओ वडे शाल १, जब २, गेहुँ ३, मग ४, वाल ५, चणा ६, चोला ७, ए सात धान्याने पुष्पवासे मिश्रित करी ते वडे प्रतिमाओने स्नान करावg, पुष्पारोप करवो अने धूप उखेबबो, ए बाद अविधवा चार अथवा अधिक स्वीओए पोखणां करवां, | ते स्त्रियोए यथाशक्ति सुवर्णादिकनु दान करवू, आ वखते फरीने प्रचुर मोदकादि नैवेद्य ढोर्बु, ३६० क्रयाणकोनी पुडीओ ढोबी अने | ते पछी श्रावके घृतनी आरती मंगलदीवो उतारवां अने पछी चैत्यवन्दना करवी, चैत्यवन्दनानी विधि नीचे प्रमाणे छे (मूलनायकनु चैत्यवन्दन बोली नमुत्थुणं. कही मूलनायकनी स्तुति अने पछीनी बे स्तुतिओ एकंदर ३ स्तुतिओ कह्या पछी) सिद्धाणं बुद्धाणं, कही अधिवासना देवीनो कायोत्सर्ग करवो, कायोत्सर्गमा १ लोगस्स गणवो, उपर अधिवासना देवीनी आ स्तुति कहेवी पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्राऽवतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासनादेवी ॥१॥ ए पछी श्रुतदेवता २, शान्तिदेवता ३, अंबा ४, क्षेत्रदेवता ५, शासनदेवता ६, सर्ववैयावृत्त्यकरो ७, अनुक्रमे एओना कायोत्सर्ग करवा अने स्तुतिओ कहेवी, शान्तिदेवतानी स्तुति आ प्रमाणे छे - श्रीचतुर्विधसंस्य, शासनोन्नतिकारिणः । शिवशान्तिकरी भूयाच्छीमती शान्तिदेवता ॥१॥ पछी आचार्ये बेसीने फरी नीचे प्रमाणे धारणा करवी - "स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसादे धिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम्" इति अधिवासनाविधि । यान G Aathe. Ghep था arww.jainelibrary.org Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ifal याला । कल्याण कलिका. खं० २॥ स । मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। अथ प्रतिष्ठा - ___ अधिवासना रात्रिए अने प्रतिष्ठा प्रायः दिवसे थाय. जो लग्न श्रेष्ठ आवतुं होय ते अधिवासना पछीना कोइ लग्नमां अने तेना अभावे अधिवासना लग्नना ज अन्य नवमांशमां प्रतिष्ठा थइ शके छे. प्रतिष्ठानो समय निकट आवतां प्रथम शांतिबलिक्षेप कर्या पछी चैत्यवंदन करवू, सिद्धाणं बुद्धाणं. कही प्रतिष्ठादेवीनो कायोत्सर्ग करवो, कायोत्सर्गमां लोगस्स, चिन्तववो अने पारीने नीचेनी स्तुति कहेवी. “यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनबिम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥ ए पछी शासनदेवता २, क्षेत्रदेवता ३, समस्तवैयावृत्यकरोनो ४, ए कायोत्सर्ग करवा अने एमनी स्तुतिओ कहेवी, श्रावकोए धूप उखेबीने प्रतिमाओ उपर ढांकेल वस्त्र दूर करवू, लग्न समय नजीक आवतां कुंभक करी बिंबे वर्णन्यास करवो, ते आ प्रमाणे 'हाँ' | ललाटे. 'श्री' बे नेत्रो पर, 'ही' हृदय उपर, 'रैं' सर्व संधिस्थानोमां, 'श्लौं' आसन उपर. लग्नसमय आवतां प्रथम घृतपात्र प्रतिमानी आगल मूकी कालो सुरमो १, घृत २, मधु ३, साकर ४, आ चार पदार्थोथी तैयार करेल अंजन रूपानी बाटकीमां भरी राखेल होय तेमांथी सोनानी सली भरी ते वडे जिनबिम्बोर्नु नेत्रोन्मीलन कर, अने मस्तके अभिमंत्रित | वासक्षेप करवो. प्रतिमाना जमणा काने चंदन चर्च, आचार्य पोतानो जमणो हाथ प्रतिमाना जमणा काने अडकाडी सूरिमंत्र अने अन्य साधु प्रतिष्ठा मंत्रनो त्रण, पांच वा सात वार न्यास करे, आ वे मंत्रो पैकीना एक मंत्रे आचार्य चक्रमुद्रा करीने प्रतिमानो सर्वांग स्पर्श करे, प्रतिष्ठामंत्र आ छे - "ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिए ॐ हीं स्वाहा ।" Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।। सामान्य साधुओने प्रतिष्ठानो एज मंत्र छे. पछी प्रतिमानी आगल दहिपात्र मूक, आरिसो देखाडवो अने आचार्ये दृष्टिरक्षार्थ सौभाग्यार्थ अने स्थैर्यार्थ सौभाग्य १, सुरभि २, प्रवचन ३, अंजलि ४, गरुड ५, ए पांच मुद्राओ देखाडवी अने साथे "ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमिणे सोमणसे महु महुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा" इत्यादि मंत्रोनो न्यास करवो, अने फरीथी स्त्रीओ पासे पोखणां कराववां. स्थिर प्रतिमाने प्रथमथी ज डाबी तरफ नीचे चंदन तांदुल (अक्षत) नो स्वस्तिक तथा कुंभकारना चक्रनी माटी सहित पंचरत्नादि स्थापन करेल होइ अंजनप्रतिष्ठा पछी "ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा" आ मंत्रे तेनुं स्थिरीकरण करवू, ए ज प्रमाणे चल प्रतिमाना वामांगे नीचे पहेलेथीज समूलो डाम अने वालुका स्थापेल होइ आ वखते "ॐ जये श्री ही सुभद्रे नमः।" आ मंत्रनो न्यास करवो. पछी सर्व प्रतिमाओनी आगे 'पद्ममुद्रा' वडे आ प्रमाणे विज्ञप्ति करवी "इदं रत्नमयमासनमलंकुर्वन्तु, इहोपविष्टा भव्यानवलोकयन्तु, हृष्टदृष्टया जिनाः स्वाहा ।" पछी नीचे लखेला मंत्रोच्चारपूर्वक श्रावकोए नवेसरथी पूजा करवी- 'ॐ हम्ये गन्धान प्रतीच्छन्तु स्वाहा ।" आ मंत्र वाली गन्धपूजा करवी. "ॐ हम्ये पुष्पाणि गृह्णन्तु स्वाहा" आ मंत्रे पुष्प पूजा करवी, "ॐ ह्म्ये धूपं भजन्तु स्वाहा" आ मंत्रे धूप-पूजा करवी. “ॐ हम्ये सकलसत्त्वलोकमवलोकय भगवन्नवलोकय स्वाहा" आ मंत्र बोलीने प्रतिमाजी उपर पुष्पाञ्जलिक्षेप करवो, पछी वस्त्र अलंकार आदिथी अने पुष्पोथी संपूर्ण पूजा करवी. काकरिआ, सुहाली, प्रमुख नवो बलि ढोबो अने लूण-पाणिनी विधि करवा पूर्वक आरती तथा मंगलदीवो उतारवां अने अन्ते “ॐ ह्म्ये भूतबलिं गृह्णन्तु स्वाहा" आ मंत्रथी भूतबलि नाखवो. पछी संघनी साथे आचार्ये चैत्यवन्दना करवी, सिद्धाणं बुद्धाणं० सुधी कहीने पछी प्रतिष्ठादेवीनो कायोत्सर्ग करवो, कायोत्सर्गमां Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ மே || मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ d थाना are GES थान ल || लोगस्स चिन्तबबो अने पारी नीचेनी स्तुति कहेवी - ॥ कल्याण | यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनबिम्बं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥ कलिका. । ए पछी अनुक्रमे श्रुतदेवता २, शान्तिदेवता २, क्षेत्रदेवता ४, शासनदेवता ५, समस्तवैयावृत्यकरोना कायोत्सर्गो करवा, अने एमनी खं० २॥ स्तुतिओ कहेवी, छेल्ली स्तुति कह्या पछी नवकारपूर्वक नमुत्थुणं. कही शान्तिस्तव (अजितशान्तिस्तब) भणवो अने उपर जयवीराय इत्यादि बोलवू. ते बाद अभिमंत्रित अक्षतोनी अंजलिओ भरीने मंगलगाथापाठपूर्वक चतुर्विध संघे अने आचार्ये अखंड अक्षतांजलिक्षेप ।। ३६२ ।। करवो, नमोऽर्हत्सिद्धाचार्यो• इत्यादि बोलीने नीचेनी मंगलगाथाओ भणवी - जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोअचूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥॥ जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोयस्स मज्झयारंभि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।।२।। जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारंमि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥३॥ जह जंबुस्स पइट्ठा, समग्गदीवाण मज्झयारंभि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइठत्ति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारंभि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥५॥ धम्माधम्मागासत्थि-कायमइयस्स सब्बलोगस्स । जह सासया पइट्ठा, एसावि अ होउ सुपइट्ठा ॥६॥ पंचण्ह वि सुपइट्ठा, परमिट्ठिणं जहा सुए भणिआ-नियया अणाइनिहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥७॥ अक्षतांजलि अने श्रावकोए पुष्पांजलि नाख्या पछी, चैत्यवंदना करवी अने ते पछी आचार्ये प्रवचन मुद्राए धर्मदेशना करवी. इति | | प्रतिष्ठाविधि ॥ Gउक छोटा बार G SHशत || ३६२ ।। CH Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधि । पूर्वोक्त प्रकारे अखंण्डित अंगोपांगवालो सदाचारी श्रावक सुगन्धि पंचामृतबडे प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाने स्नान करावी, लग्न समयमा रूपानी बाटकीमा राखेल घृतमधुमां कालवेल काला सुरमामां सोनानी शली भरीने त्रण नवकार गणी प्रतिमाने अंजन करी नेत्रोन्मीलन करे. बादमां चन्दन केसर, फल नैवेद्यादि बडे संपूर्ण पूजा करे. अंग अग्रपूजा कर्या पछी भावपूजारूप चैत्यवंदन करे. पछी संघने पहेरामणी, प्रभावनादि दान करे, प्रतिष्ठा पछी ३१८।१० दिवस पर्यन्त विशेष उत्तम पूजा करवी. ॥ इति संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधि ॥ ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ ॥ ३६३ ॥ लवण-जलाऽऽरात्रिकविधि आरति अने मंगलदीवो अरिहन्त भगवन्तने आगे चेताववो, पासे अग्निपात्र राखवू के जेमा लवण अने जल नाखवार्नु छ, लवणना न्हाना गांगडा पुष्प अने नालबानो जलनो कलशियो पण पासे तैयार राखबो. आरति तथा मंगलदीवाने उतारतां पहेला पुष्प चंदनादिके पूजवां, पछी - उवणेउ मंगलं वो, जिणाण मुहलालिजालसंवलिआ । तित्थपवत्तणसमए, तिअसमुक्का कुसुमबुट्ठी ॥१॥ आ गाथा भणीने प्रथम जिनने आगे त्रण वार सृष्टि क्रमे फेरवीने पुष्प वृष्टि करवी, पछी लवणनी काकरीओ रकेबीमा लेइने - उयह! पडिभग्गपसरं, पयाहिणं मुणिवई करेऊणं । पडइ सलोणत्तण-लजिअं व लोणं हुअवहंमि ॥२॥ आ गाथा बोलतां भगवंत उपर लवणने त्रण वार प्रदक्षिणावर्ते फेरवीने अग्निमां नाखवू, अने नालवाला कलशवडे प्रदक्षिणा मार्गे |al ॥ ३६३ ।। Tww.iainelibrary.org Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SSI ॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ॥ 18 त्रण बार जलधारा देइने जलनो छांटो अग्निपात्रमा नाखवो. ए पछी सलगावेली आरती रकेबी के थालीमां मूकी ते वर्तन हाथमा लेइने - Ja ॥ कल्याण मरगयमणिघडियविसाल-थालमाणिक्कमंडिअपईवं । ण्हवणयरकरुक्खित्तं, भमउ जिणारत्तिअं तुम्ह ॥३॥ कलिका. | ए गाथा बोलतां आरति उतारवी. शिखर उपर कलश, तथा ध्वजादण्ड पण एज वखते चढाववो. प्रतिमा स्थापन कर्या पछी चैत्यवेदन खं० २॥ कर, स्तवनने बदले अजितशान्तिस्तबनो पाठ कहेवो अने दिशाओमां बलिक्षेप करवो. प्रतिमान पक्कान-नैवेद्य-उत्तम फलादि बडे विशेष पूजा करचु, प्रतिमा स्थिर कर्या पछी त्यां लघुशांति १, बृहच्छांति २, अजितशान्ति ३, भयहरस्तव ४, उपसर्गहरस्तव ५, थुणिमो केवलिवत्थं | ६ अने तिजयपहुत्त ७; आ स्तोत्रो गणवां. न पछी बिंब आगे पडदो करी मुखोद्घाटन करवू अर्थात् संघने तंबोल-प्रभावना-पहेरामणी आदि आप, अने ए रीति साचव्या पछी पडदो दूर करीने संघ पण प्रतिमानी आगळ फलादिनी भेट धरी नमस्कार करवो. प्रतिष्ठा करावनारे मोटो मोदक ढोवो. स्थापना-प्रतिष्ठा पछी १० दिन सुधी विशेष पूजा करवी. प्रति मास प्रतिष्ठानी तिथि स्नात्र पूजा भणाववी अने प्रथम वर्षगांठना प्रसंगे अट्ठाहि उत्सव करवो. एज प्रकारे मंगलदीवो पण - कोसंबिसंठियस्स व, पयाहिणं कुणइ मउलिअपयावो । जिण ! सोमदंसणे दिण-यरु व्व तुह मंगलपईवो ॥४॥ भामिज्जंतो सुरसुंदरीहिं तुह नाह मंगलपईवो । कणयायलस्स नजइ, भाणुच फ्याहिणं दिन्तो ॥५॥ आ गाथाओ बोलतां प्रदक्षिणावर्ते त्रणवार फेरववो, मंगलदीवो उतारीने बलतो ज मूकवो बुझाववो नहि, आरतीने बुझावी देवामां दोष नथी. मंगलदीवो अने आरती मुख्यवृत्तिए घी, गोल, कपूरथी करवी विशेष विशेष फलदायक होय छे, लवण आरति आदि सर्व गच्छो अने परदर्शिनिओना संप्रदाय प्रमाणे सृष्टिक्रम (दक्षिणावर्त भ्रमण)थी ज उताराय छे. ॥ इति लवणजलरात्रिकविधि ॥ १ थान cla ज ॥ ३६४।। www.iainelibrary.org Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ विधिबीज कानि ।। क ॥ प्रतिष्ठाविधिबीजकानि ॥ । श्रीचन्द्रप्रतिष्ठापद्धतिबीजककाव्यानि । भूतानां बलिदानमग्रिमजिनस्नानं तदने स्वयं, चैत्यानामथ वंदनं स्तुतिगणः स्तोत्रं करे मुद्रिका । स्वस्य स्नात्रकृतां च शुद्धसकलीसम्यक् शुचिप्रक्रिया, धूपाम्भःसहितोऽभिमंत्रितबलिः पश्चाच्च पुष्पांजलिः ॥१॥ मुद्रा मध्यांगुलीभ्यामतिकुपितदृशा वामहस्ताम्भसोच्चै-बिम्बस्याच्छोटनं सत्सतिलककुसुमं मुद्गरञ्चाक्षपात्रं । मुद्राभिर्वज्रताादिभिरथकवचं जैनबिंबस्य सम्यग्-दिग्बन्धः सप्तधान्यं जिनवपुरुपरि क्षिप्यते तत्क्षणं च ॥२॥ कुम्भानामभिमंत्रणं जिनपतेः सन्मुद्रया मंत्र्यते, नीरं गन्धमहौषधी मलयजं पुष्पाणि धूपस्ततः । अंगुल्यामथ पंचरत्नरचना स्नानं ततः कांचनं, पुष्पारोपणधूपदानमसकृत् स्नानेषु तेष्वंतरा ॥३॥ रत्नस्नानकषायमञ्जनविधिम॑त्पंचगव्ये ततः, सिद्धौषध्यथ मूलिका तदनु च स्पष्टाष्टवर्गद्वयम् । मुक्ताशुक्तिसुमुद्रया गुरुरथोत्थाय प्रतिष्ठोचितं, मंत्रैर्दैवतमाह्वयेद् दशदिशामीशाँश्च पुष्पांजलिः ॥४॥ सर्वोषध्यथ सूरिहस्तकलनाद् दृग्दोषरक्षोन्मृजा, रक्षापुट्टलिका ततश्च तिलकं विज्ञाप्तिकाऽथांजलिः । अर्घोऽर्हत्यथ दिग्धवेषु कुसुमस्नानं ततः स्नानिका, वासश्चन्दनकुंकुमे मुकुरदृक् तीर्थाम्बु कर्पूरवत् ॥५॥ निक्षेप्यः कुसुमांजलिर्जलघटस्नानं शतं साष्टकं, मंत्रावासितचन्दनेन वपुषो जैनस्य चालेपनम् । बामस्पृष्टकरेण वाससुमनो धूपाः सुरभ्यम्बुजा-अल्पः स्यात् करलेपकंकणमधो पंचाङ्गसंस्पर्शनम् ॥६॥ धूपश्च परमेष्ठी च, जिनाह्वानं पुनस्ततः, उपविश्य निपद्यायां, नन्यावर्त्तस्य पूजनम् ॥७॥ Gal ' Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रतिष्ठा| विधिबीज कानि ॥ ॥ ३६६ ॥ इति श्री चन्द्रसूरीयप्रतिष्ठापद्धतिवीजकं नन्द्यावर्तपूजान्तम् ॥ परंपरागताः प्रतिष्ठाबीजकगाथाः - घोषाविज्ज अमारि, रन्न संघस्स तह य वाहरणं । विण्णावियसंमाणं, कुज्जा खेत्तस्स सुद्धिं च ॥१।। तह य दिसिपालठवणं, तकिरियंगाण संनिहाणं च । दुविहसुई पोसहिओ, बेईए ठविञ्ज जिणबिंब ॥२॥ नवरं सुमुहत्तंमि, पुबुत्तरदिसिमुहं सउणपुव्वं । वञ्जतेसु चउचिह-मंगलतूरेसु पउरेसु ॥३॥ तो सवसंघसहिओ, ठवणायरियं ठवित्तु पडिमपुरो । देवे बंदइ सूरी, परिहियनिरुवमसुइवत्थो ॥४॥ संतिसुयदेवयाणं, करेइ उस्सग्ग थुइपयाणं च । सहिरण्णयाणकरो, सयलीकरणं ततो कुञ्जा ॥५॥ तो सुद्धोभयपक्खा, दक्खा खेयन्नुया विहियरक्खा । ण्हवणगरा उ खिबन्ति, दिसासु सवासु सिद्धबलिं ॥६॥ तयणंतरं न मुद्दिय-कलसचउक्केण ते ण्हवंति जिणो(णं) । पंचरयणोदगेणं, कसायसलिलेण तत्तो य ॥७॥ मट्टियजलेणं ता अट्ठबग्गसब्बोसहिजलेहिं च । गंधजलेणं तह पवरवाससलिलेण य ण्हवन्ति ॥८॥ चंदणजलेण कुंकुमजलकुंभेहिं च तित्थसलिलेणं । सुद्धकलसेहिं पच्छा, गुरुणा अभिमंतिएहिं तन ॥९॥ पहाणाणं सव्वाणवि, जलधारापुप्फगंधधूवाई । दायब्वमंतराले, जावंतिमकलसपत्थावो ॥१०॥ एवं ण्हविए बिंबे, नाणकलानासमायरिञ्ज गुरु । तो सरससुयंधेणं लिंपिञ्जा चन्दणदवेण ॥११।। कुसुमाई सुगंधाई, आरोवित्ता ठविञ्ज बिंबपुरो । नन्दावत्तयवटुं, पूञ्जइ चारुदब्वेहिं ॥१२।। चन्दणच्छडुब्भडेणं, वत्थेणं छायए तओ पढें । अह पडिसरमारोवे, जिणबिंबे रिद्धिविद्धिजुयं ॥१३॥ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । प्रतिष्ठाविधिबीजकानि ॥ JEE || ३६७।। SJASNA तो सरससुगंधाई, फलाई पुरओ ठविञ्ज बिंबस्स । जंबीरबीजपूराइयाई तो दिज गंधाई ॥१४॥ मुद्दामतन्नासं, बिम्बे हत्थंमि कंकणनिवेसं । मंतेण धारणविहि, करिञ्ज बिम्बस्स तो पुरओ ॥१५॥ बहुविह पक्कन्नाणं, ठवणा वरवत्थ' गंधपुडियाणं । वरवंजणाण य तहा, जाइफलाणं च सविसेसं ॥१६॥ सागिक्खू वरसोलयखंडाईणं बरोसहीणं च । संपुन्नबलीइ तहा, ठवणं पुरओ जिणिंदस्स ॥१७।। घयगुडदीवो सुकुमारियाजुओ चउ जवारया दिसिसु । बिंबपुरओ ठवेआ, भूयाण बलिं तओ दिज्जा ॥१८॥ आरत्तियमंगलदीवयं च उत्तारिऊण जिणनाहं । वंदिज्जऽहिवासणदेवयाए उस्सग्ग थुइदाणं ॥१९॥ अह जिणपंचंगेसु, ठावेइ गुरु थिरीकरणमंतं । वाराउ तिनि पंच व, सत्त व अच्चतमपमत्तो ॥२०॥ मयणहलं आरोवइ, अहिवासणमंतनासमवि कुणइ । झायइ य तयं बिंब, सजियं व जहा फुडं होइ ।।२।। एवमभिवासियं तं, बिम्बं छाइज्ज सदसवत्येण । चंदणच्छडुब्भडेणं, तदुपरि पुष्फाई लिखिविज्जा ॥२२॥ ण्हावेज सत्तधन्नेण, तयणु जीवंत उभयपक्खाहिं । नारीहिं चाहिं समलंकियाहिं विजंतनाहाहिं ॥२३॥ पडिपुण्णचत्तुसुत्तेण, वेढणं चउगुण च काऊण । ओमिणणं कारेजा, तुठ्ठाहिं हिरण्णदाणजुयं ॥२४॥ ता बन्देज्जा देवे, पइट्टदेवीए काउं उस्सग्गं । देज्ज थुई तीए च्चिय, उवेज पुरओ य धयपत्तं ॥२।। सोवनवट्टियाए, कुज्जा महु-सकराहिं भरियाए । कणगसलागाए बिंबनयण- उम्मीलणं लग्गे ॥२६॥ सम्मं पइट्ठमंतेण, अंगसंधीसु अक्खरनासं । कुणमाणो एगमणो, सूरी वासे खिबेज तहा ॥२७॥ १. “वरवेही" इति पाठान्तरम् । AHA For Private & Personal use only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं०२॥ ॥ प्रतिष्ठाविधिबीजकानि ॥ ॥ ३६८ ॥ पुष्फक्खयंजलीहिं, तो गुरुणा घोसणं ससंघेणः थेजत्थं कायवं, मंगलसद्देहिं बिम्बस्स ॥२८॥ जह सिद्धि मेरु कुलपव्वयाण पंचत्थिकाय-कालाणं । इह सासया पइट्ठा, सुण्इट्ठा होउ तह एसा ॥२९॥ जह दीव-सिन्धु-ससहर-विणयर-सुरवास-वासखेत्ताणं । इह सासया पइट्ठा, सुपइट्ठा होउ तह एसा ॥३०॥ एत्थं सुहभावकए, अक्खयखेवे कयंमि बिम्बस्स । सविसेसं पुण पूया, किच्चा चिइबंदणा य तहा ॥३॥ मुहउग्घाडण समणंतरं च पूया य समणसंघस्स । फासुयघयगुडगोरस- णंतगमाईहिं कायव्वा ॥३२॥ सोहणदिणे य सोहग्ग-मंतविन्नासपुब्वयमवस्सं । मयणहलकंकणं-करयलाओ बिम्बस्स अवणिज्जा ॥३३॥ जिणबिम्बस्स य विसए, नियनिय ठाणेसु सब्बमुद्दाओ । गुरुणा उवउत्तेणं, पउंजियब्बाउ ताउ इमा ॥३॥ जिणमुद्द कलसपरमेट्ठि-अंग-अंजलि-तहासणे चक्का । सुरभी पवयण गरुडा, सोहग्ग कयंजलि चेव ॥३५॥ जिणमुद्दाए चउकलसठावणं तह करेह थिरकरणं । अहिवासमंतनसणं, आसणमुद्दाए अन्ने उ ॥३६॥ कलसाए कलसन्हवणं, परमेट्ठीओ उ आहवणमंतं । अंगाए समालभणं, अंजलिणा पुष्फरुहणाई ॥३७॥ आसणयाए पट्टस्स पूयणं अंगफुसण चक्काए । सुरभीए अमयमुत्ती, पवयणमुद्दाए पडिबोहो ॥३८॥ गरुडाए दुट्ठरक्खा, सोहग्गाए य मंतसोहग्गं । तह अंजलिए देसण मुद्दाहिं कुणइ कज्जाई ॥३९॥ इति प्रतिष्ठाविधि बीजकगाथाः । अथ ध्वजदण्डारोपविधिबीजकम् । घोसिज्जए अमारी, दीणाणाहाण दिज्जए दाणं । पउणीकिज्जइ वंसो, धयजोगो सरल सुसिणिद्धो ॥४०॥ CRE ॥ ३६८ ॥ www.iainelibrary.org Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रतिष्ठाविधिबीजकानि ॥ वड्ढंतचारुपयो, अपोच्चडो कीडएहिं अक्खद्धो । अदड्डो वण्णड्डो, अणुड्ढसुको पमाणजुओ ॥४१॥ काऊण मूलपडिमा-हाणं चाउदिसं च भूसुद्धिं । दिसिदेवयआहवणं, बंसस्स बिलेवणं तह य ॥४२॥ अहिवासियकुसुमारोवणं च अहिवासणं च वंसस्स । मयणफलरिद्धिविद्धि - सिद्धत्थारोवणं चेव ॥४३॥ धूवुक्खेवं मुद्दानासं, चउसुन्दरीहिं ओमिणणं । अहिवासणं च सम्मं, महद्धयस्सिंधवलस्स ॥४४॥ चाउद्दिसिं जयारय, फलोहलीढोयणं च बंसपूरो । आरत्तियावयारणमह विहिणा देवबंदणयं ॥४५॥ बलिसत्तधन्नफलवास-कुसुमसकसायवत्थुनिवहेणं । अहिवासणं च तत्तो, सिहरे तिपयाहिणीकरणं ॥४६॥ कुसुमंजलिपाडणपुरस्सरं च ण्हवणं च मूलकलसस्स । खित्तदसद्धामलरयण धयहरे इट्ठसमयंमि ॥४७।। सुपइट्ठपइठामंतखित्तवासस्स तयणु वंसस्स । ठवणं खिवणं च तओ, फलोहलीभूरिभक्खाणं ॥४८॥ तत्तो उज्जुगईए, धयस्स परिमोयणं सजयसई । पडिमाए दाहिणकरे, महद्धयस्सावि बंधणयं ॥४९॥ विसमदिणे ओमुयणं, जहसत्तीए य संघदाणं च । इय सत्युत्तविहीए कुणह धयारोवणं धन्ना ॥५०॥ इति ध्वजारोपणविधिगाथाः कथारत्नकोषात् । अथ जिनप्रभसूरि प्रतिष्ठाविधि बीजकम् - पुवं पडिमण्हवणं, चिइ उस्सग्ग थुइ अप्पण्हवणयारेसु । रक्खा कुसुमाणंजलि तज्जणि पूर्य च तिलयं वा ॥५१॥ मोग्गरमवखयथालं, वजं गरुडो बलि ॐ ह्रीं क्ष्वी समंतेणं । कवयं दिसिबंधो च्चिय, पक्खिवणं सत्तधन्नस्स ॥५२॥ कलसहिमंतण सब्बोसहि चंदण चच्चि बिंब मंतेणं । पंचरयणस्स गंठी, परमेट्ठीपंचगं ण्हवणं ॥५३॥ ॥ ३६९ ॥ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ |॥ प्रतिष्ठाविधिबीजकानि ॥ ॥ ३७० ॥ पढमं हिरण्णसह १ पंच-रयण २ सकसाय ३ कट्टिया ४ ण्हवणं । दब्भोदयमीसं पंचगब्ब ५ ण्हवणं च पंचमयं ॥५४॥ सहदेवाईसब्वो-सहीण ६ बग्गो य मूलिया ७ वग्गो । पढमट्ठ वग्ग ८ वीयट्ठ-नग्ग ९ ण्हवणं तहा नवमं ॥५५॥ जिणदिसपालाहवणं, कुसुमंजलि सब्बओसहीण्हवणं १० । दाहिणकरमरिसेणं, जिणमंतो सरिसबोट्टलिया ॥५६॥ तिलयंजलिमुद्दाए, विन्नत्ती हेमभायणत्थग्यो । पुण दिसिपालाहवणं, परमेट्ठीगरुडमुद्दाए ॥५७॥ कुसुमजल ११ गंध १२ ण्हाणिय-वासेहि १३ चंदणेण १४ घुसिणेण १५ । पनरसण्हाणेसु कएसु, दप्पणदंसणं पुरओ ॥८॥ तित्थोदएण ण्हाणं १६ कपूरेण १७ च पुप्फअंजलिया । अट्ठारसमं पहाणं, सुद्धघडठ्ठत्तर १८ सएणं ॥५९॥ सञ्चविलेयण सूरी, पुष्फाइधूववासमयणफलं । सुरहीपउमा अंजलि-मुद्दाओ हत्थलेबो य ॥६॥ अहिवासणमंतेणं, कंकण तेणेव चक्कमुद्दाए । पंचंगफास पुण जिण-आहवणं नंदपूया य ॥६१।। सत्तसरावा चंदणचच्चियकलसा सतंतुणो चउरो घयगुलदीवा चउरो, चउकलसा नन्दवत्तस्स ॥६२।। सक्कत्थय अहिवासण-समय छाएहि माइसाडीए । सूरिमंताहिवासण-ण्हवणंजलिसत्तधन्नस्स ॥६३॥ पुंखणय कणयदाणं, बलि लड्डुयमाइ पुडिय आरतियं । चिड़-अहिवासणदेवय-थुइ धारण सागयाईहि ॥६॥ अधिवासनाधिकारः समाप्तः । अथ प्रतिष्ठाधिकारः - संतिबलि-चिइ-पइट्ठा-उस्सग्गो घीयभायणं नित्ते । बन्न सिरि वास कन्ने, मंतो सज्वंगफास चक्केणं ॥६५॥ दहिमंड-मंत-मुद्दा, पुंखणं पुष्फंजलीउ मंतेणं । भूयबलि-लवण-रत्तिय, चिइ अक्खय धम्मकहमहिमा ॥६६।। || ३७० ॥ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ चैत्यप्रतिष्ठाविधि ॥ तइय-पण-सत्तमदिणे, जिणबलि भूयबलि वंदिउं देवे । कंकणमोयणहेलं, पइट्ठउस्सग्ग मंत नसे ॥६७।। काउं पूयविसग्गं, नंदावत्तस्स कंकणं छोडे । पंचपरमेट्ठिपुव्वं, मंगलगाहाउ पढमाणो ॥६॥ इति जिनप्रभसूरिकृतप्रतिष्ठाविधिबीजकम् ॥ अथ स्थापनाचार्यप्रतिष्ठाविधिः - चुक्खंसुयकरचरणो, आरोवियसयलिकरणसुइविज्जो । गरुडाइ दलियविग्यो, मलयजघुसिणेण लिंपित्ता ॥ अक्खं फलिहमणिं वा, सुहकट्ठमयं व ठावणायरियं । काऊण पंचपरमिट्ठि - टिक्कए चंदणरसेणं ॥ मंतेण गणहराणं, अहवा वि हु बद्धमाणविजाए । कुउण सत्तखुत्तो, वासक्खेवं पइठिज्जा ॥ ॥ इति स्थापनाचार्यप्रतिष्ठाविधि ॥ १६ चैत्यप्रतिष्ठाविधि - चैत्यं जिनगृहं तच्च, विधिना सुप्रतिष्ठितम् । प्रतिमास्थापनार्ह स्यात् तस्माच्चैत्यं प्रतिष्ठयेत् ॥१६९।। चैत्यनो अर्थ अहिंया 'जिनगृह' समजवानो छे, ते चैत्य विधिपूर्वक प्रतिष्ठित थयेल होय तो ज प्रतिमा स्थापनने योग्य थाय छे, माटे चेत्यनी प्रतिष्ठा करवी जोइये. चैत्य प्रतिष्ठा बिम्बप्रतिष्ठा योग्य लग्नमां करवी. ते बिम्बप्रतिष्ठा पछी तरत, अथवा थोडा दिवस, पक्ष, मास, वर्ष पछी पण करी | शकाय, छतां करवी श्रेष्ठ लग्नमां अने ते प्रसंगो संघामंत्रण, वेदीरचना, नंद्यावर्त पूजन आदि बधी रीतिओ यथाशक्ति करवी. आज काल बिंबप्रतिष्ठाप्रसंगे अथवा बिंबस्थापनाना समयमा ज प्रायः चैत्यप्रतिष्ठा करवामां आवे छे, एम करवाथी वेदीरचना आदि For Private & Parsonal Use Only |॥ ३७१ ।। widhw.ininelibrary.org Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ चैत्यप्रतिष्ठाविधि ॥ ।। ३७२ चैत्यप्रतिष्ठानां घणां खरां विधिकार्यो बिम्ब प्रतिष्ठा निमित्ते अथवा ध्वजदंड प्रतिष्ठा निमित्ते मंडपमा थइ जाय छे. तेथी आजकाल चैत्य प्रतिष्ठा निमित्ते नीचे प्रमाणे विशेष विधि ज वधारे करवी पडे छे. सर्व प्रथम शान्तिमंत्रथी मंत्रीने चैत्यने फरतां २४ सूत्रनां तांतणां वींटीने चैत्यनी रक्षा करवी. ते पछी हाथमां पुष्पांजलि लेई - अभिनवसुगंधिविकसित-पुष्पौधभृता सुगंधधूपाढया । चैत्योपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ॥१॥ आ काव्य बोली चैत्य उपर पुष्पाञ्जलि नाखवी, प्रतिष्ठाचार्ये वे मध्यमां आंगलीओ उंची करी क्रूरदृष्टिए तर्जनी मुद्रा देखाडवी. श्रावके डाबा हाथमां जल लेइ चैत्य उपर आछोटवू, चैत्यने तिलक करयो, पुष्प चढाववा. धूप उखेवबो. प्रतिष्ठागुरुए चेत्यने मुद्गरमुद्रा देखाडवी, अने - “ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा" आ मंत्रनो न्यास करी चैत्यनी रक्षा करवी, ए पछी श्रावके प्रथम सात धान्यनी पसली बड़े चैत्यनो अभिषेक करवो. पछी जिनाभिषेकनी जल बडे अथवा स्नात्र जल बडे चैत्यनो अभिषेक करवो, उपर शुद्ध जले चैत्यनु शिखरान पखाली लुंछी चन्दननो तिलक करवो. ते ज समये पंचरतननी पोटली अने मीढलनु कांकण बांधवू, उपर वस्त्राच्छादन करवू. ते उपर केसर चन्दनादि सुगन्ध पदार्थ छांटवा, फल पुष्प चढाववां, ज्यारे प्रतिष्ठान लग्न आवे त्यारे - “ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिते ॐ ह्रीं स्वाहा ।" आ प्रतिष्ठा मंत्र ७ वार भणीने चैत्यनां मस्तके वासक्षेप करवो. ॥ ३७२ ॥ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३७३ ।। ते पछी वास्तुदेवतानो मंत्र भणी उंबरा उपर अने शिखर उपर ७ । ७। बार वासक्षेप करवो, वास्तुदेवता मंत्र नीचे प्रमाणे छे. “ॐ ह्रीं श्रीं क्षीँ क्षू हाँ ह्रीँ भगवति वास्तुदेवते ललललल क्षिक्षिक्षिक्षिक्षि इह चैत्ये अवतर २ तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । " उपरना मंत्रे ७ वार वासक्षेप प्रथम मंत्रीने पछी मंत्रोच्चारणपूर्वक प्रत्येक स्थळे ७-७ वार वासक्षेप करवो. चैत्यने प्रतिष्ठित कर्या पछी ते उपर विधान करेल कलश तथा ध्वजदंड तात्कालिक विधि करीने चढाववां. जो कलशारोपण, ध्वज दंडारोपण अने चैत्यप्रतिष्ठा ए बधुं ते प्रसंगे ज थयुं होय तो 'ध्वज दंड प्रतिष्ठाविधि' ना अन्तमां जणावेल स्नात्र चैत्यवंदनादि विधि करीने ए बधांना कंकणो सर्षप पोटली अने चैत्याच्छादनवस्त्र ए बधां साधे ज ते दिवसे अथवा त्रीजे पांचमे सातमे दिवसे चन्द्रबल देखीने छोड़वां, कदापि एकली चैत्यप्रतिष्ठा ज करी होय तो उक्त विधिथी ज तेनुं आच्छादन कंकण आदि दूर करवां. एकला चैत्यनी प्रतिष्ठा करवानो ज प्रसंग होय तो चैत्यने फरती वेदी रचना करवी तथा नन्द्यावर्त स्थापना, कुंभ स्थापना आदि कार्यो चैत्यमां ज करवां. १७ कलशप्रतिष्ठा कलशोजिनगेहानां शिरोभूषा निगद्यते । तमाश्मं स्वर्णजं वापि विधिना प्रतिरोपयेत् ॥ १७० ॥ कलश जिनचैत्यना मस्तकनुं भूषण कहेवाय छे, ते पाषाणनो होय अथवा सुवर्णनो पण विधिपूर्वक ज तेने शिखर उपर चढावबो जोइये. प्रथम भूमिशुद्धि करी सुगन्ध जल पुष्पादि छांटी तेनो सत्कार करवो, कलश राखवाने वेदिका बनाववी तेमां प्रथमथी सुवर्ण - ॥ कलश प्रतिष्ठा ॥ ।। ३७३ ।। Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ KANRA ॥ कलशप्रतिष्ठा ।। काि ।। ३७४ ।। न रूप्य ताम्र मौक्तिक प्रवाल रूप पंचरत्न अने कुंभकार चक्रनी माटीनो न्यास करवो. उपर कलश स्थापन करवो. सधवा स्त्रीओ पासे | अभिषेकनी औषधिओ वंटावची. पछी पवित्र जलाशयथी लावेल जल वडे वेदीआगे स्थापित पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमानुं स्नात्र करवू अने बलि बाकुलना भाजनमा पुष्प, वास, मेवो, वगेरे नाखीने - “ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा" आ मंत्र ७ वार भणीने बलिमंत्री पूर्वादि दिषासंमुख उभा रही - ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१॥ ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥२॥ ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥३॥ ॐ निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥४॥ ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥५॥ ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥६॥ ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥७॥ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥८॥ THE 43 AD For Private & Personal use only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ AA ॥ कलशप्रतिष्ठा ॥ ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥९॥ ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठाविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१०॥ आ मंत्रो पैकीनो १-१ मंत्र बोली एक एक दिशामा १ जल चुलुक चुलुक चन्दन केसरनो छांटो, ३ पुष्पक्षेप ४ सप्तधान्य बलि निक्षेप करवो. ए पछी प्रतिष्ठागुरुए प्रथम नीचेना मंत्रे पोतानुं सकलीकरण करुq. ॐ नमो अरिहंताणं-हृदयमां ॐ नमो सिद्धाणं-माथामां ॐ नमो आयरिआणं-शिखाउपर ॐ नमो उवज्झायाणं-कवच-सर्वाङ्ग संवरण ॐ नमो लोए सव्वसाहणं-अस्त्र-सकली करण करीने नीचेनी "ॐ नमो अरिहंताणं. ॐ नमो सिद्धाणं. ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं. ॐ नमो लोएसब्बसाहणं. ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताणं, ॐ नमो विज्जाहराणं. ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ कः क्षः नमः अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।" आ शुचिविद्या ५ अथवा ६ वार सुरभिमुद्राए जपी आत्मामां आरोपवी. उक्त सकलीकरण मंत्रथी स्नात्रकारोनी पण अंगरक्षा करवी, अने निम्नोक्त विधिथी देववंदन करवू-इर्यावही पडिकमी मूल नायकनुं चैत्यवंदन कर. तेना अभावमा "ॐ नमः पार्श्वनाथाय " ए चैत्यवंदन करी 'नमुत्थुणं. अरिहंत चेइआ० वंदणव० अन्नत्थ. १ The Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ । ॥ कलशप्रतिष्ठा । नो० नमोऽर्हत् स्तुति - अहस्तनोतु स श्रेयः- श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ लोगस्स० सब्बलोए. अरिहंत० बंदण० अन्नत्थ० १ नव० स्तृति - ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंहिश्च । आश्रीयते श्रिया ते भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवरदी० सुअस्स०-वंदण व० अन्नत्थ० १ नव० स्तुति - नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्यानन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं० श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउसग्गं वंदणवत्ति० अन्नत्थ. १ लोगस्स, सागरवर गंभीरा पर्यंन्त० नमोऽर्हत्. स्तुति - श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥४॥ श्रुतदेवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० १ नव, नमो० स्तुति - वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति कः श्रुतसरस्वति गमेच्छुः । रंगत्तरंगमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥६॥ शासनदेवतायै करेमि का. अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥७॥ ॥ ३७६ ॥ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कलश ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा ॥ समस्तवेयावच्च० संतिगराणं० करेमि का० १ नब० नमो० स्तुति - संघेऽत्र ये गुरुगुरुणौघनिघे सुवैयाकृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्रविघातदक्षाः ॥८॥ १ नवकार प्रकट गणी 'नमुत्थणं! स्तवन० लघुशान्ति० जयवीराय । ए पछी श्रावके बंने हाथमां पुष्पांजलि लेइ "अभिनवसुगंधिविकसित-पुष्पौषभृता सुगंधधूपाढ्या । कलशोपरि निपतंती, सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ॥१॥" आ काव्य बोलीने पुष्पांजलि कलश उपर नांखवी. आ वखते प्रतिष्ठाचार्ये बे मध्यमा आंगलिओ उंची करी क्रूर दृष्टि करी तर्जनी मुद्रा देखाडवी, अने श्रावके ते पछी डाबा हाथमां जल लेइ कलश उपर आछोटवू. अने कलशने तिलक करवो. पुष्प चढावा. धूप | उखेववो, प्रतिष्ठा गुरुए कलशने मुद्रगरमुद्रा देखाडवी. अने 'ॐ ही क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा ।' आ मंत्रनो न्यास करी कलशनी दृष्टि रक्षा करवी. श्रावके कलश उपर सप्त धान्यनो प्रक्षेप करी प्रथम धान्य स्नान करावयु, अने पछी कलशना-सुवर्ण १ जल २ सर्वौषधि | ३ मूलिका ४ गन्ध ५ वास ६ चन्दन ७ कुंकुम (केशरः८ कर्पूर ९ पुष्पजल, आ नव द्रव्योना जल वडे नव अभिषेक करवा. १- सुवर्ण स्नात्र - सुवर्णना ४ कलशो जले भरीने अथवा चनमा सुवर्णचूर्ण नाखीने "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्व साधुभ्यः " कही - सुपवित्रतीर्थनीरेण संयुतं गन्ध-पुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं कलशोपरि सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ॥११॥ आ काव्य बोली कलश उपर अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढाववां. ॥ ३७७ ॥ Jan Education Internet For Private Personal use only w.jainelibrary.org Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३७८ ।। २- सर्वौषधिस्नात्र सर्वौषधि चूर्णजलमां मेलवी ते चार कलशोमां भरी नमोऽर्हत्० कही सर्वौषधिसंयुतया, सुगंधया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि चैत्यकलशं, मंत्रिततन्नीरनिवहेन ||२|| आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवुं, पुष्प चढावी धूप उखेलवो. ३ - मूलिकास्नात्र - मूलिका चूर्ण जलमां नाखी ४ कलश भरी नमोऽर्हत्० कही सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । कलशेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ||३|| आ पद्य भणी कलशो ढालवा, तिलक करर्खु, पुष्पारोहण, धूप करवो. ४ - गंधस्नात्र - जलमां गन्धचूर्ण नाखी ४ कलश भरी नमोऽर्हत० कही गन्धांगस्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः । स्नपयामि चैत्यकलशं कर्मोंघौच्छित्तये शिवदम् ||४|| आ काव्य भणी अभिषेक करवो. ५-वासस्नात्र- जलमां वासचूर्ण नांखी ते वडे कलशा भरी नमो० भणी - हृद्यैराह्लादकरैः, स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैः कलशम् । स्नपयामि सुगति - हेतो- र्वासैरधिवासितं सार्वम् ||५|| आ पद्य भणी कलशनो अभिषेक करवो तिलक करवुं, पुष्प चढाववां, धूप उखेववो. ६- चन्दनस्नात्र - जलमां चन्दननो घोल नाखी तेना कलशा भरी नमो० कही शीतलसरससुगंधि-र्मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मंत्रयुतः पततु वरकलशे ||६|| आ पद्य कहने कलशनो अभिषेक करवो. तिलक धूप करवो पुष्प चढाववां.. — - - ॥ कलश प्रतिष्ठा ॥ ।। ३७८ ।। Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ कलशप्रतिष्ठा ॥ चाल ७ - केसरस्नात्र - घसेल केसरनो घोल जलमां नाखी कलशा भरी नमो. कही - "काश्मीरजसुविलिप्तं, कलशं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मनत्रयुक्तया शुचिं, जैनं स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ॥७॥ आ पद्य भणी अभिषेक करवो. तिलक धूप करवो, पुष्प चढावबां. ८ - कर्पूरस्नात्र - कपूरनुं चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्. कही - शशिकरतुषारधवला, उज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु कलशे ॥८॥ आ पद्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावबां, धूप उखेबवो. ९ - कुसुमजलस्नात्र - जलकुंडीमां पुष्पो नांखी ते जलना कलशा भरी नमो० कही - अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनः किञ्जल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु कलशे ॥९॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, फूल चढाबवां, अने धूप उखेबवो. ए पछी पंचरत्ननी पोटली तथा श्वेत अथवा पीला सरसवोनी पोटली कलशने बांधवी, पोताना डावा हाथ बडे जमणा हाथने कांडामाथी पकडी ते बड़े चन्दननुं कलशना सर्व भागोमां विलेपन करीने पुष्पो चढाववां, ऋद्धि वृद्धि युक्त मीढलफल बांधवू अने चक्रमुद्राए कलशनो सर्वाङ्ग स्पर्श करवो, पछी धूप उखेवीने ४ स्त्रियो द्वारा पुखणां कराबवां. प्रतिष्ठागुरुए सुरभि १ परमेष्ठी २ गरुड ३ अंजलि ४ प्रवचन ५ आ पांच मुद्राओ देखाडवी, अने सूरि मंत्रथी अथवा तो ."ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।" आ मंत्र वडे ३ वार अधिवासना करवी, मंत्र भणीने ३ वार वासक्षेप करी कलश उपर रक्तवस्त्र आच्छादन करवू, ते उपर जम्बीरादि | ॥ ३७९ ॥ For Private Personal Use Only T Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३८० ।। फलावली नांखवी. सात धान्य नाखबुं, अने आरति उतारवी. आरति उतारतां नीचेनुं पद्य बोलवु . दुष्टसुरासुररचितं, नरैः कृतं दृष्टिदाषजं विघ्नम् । तद् गच्छत्वतिदूरं, भविककृतारात्रिकविधानैः ||१|| आरति उतार्या बाद प्रतिष्ठागुरुए स्नात्रकारोनी साथे ईर्यावही पडिक्कमी मूलनायकनुं अथवा “ॐ नमः पार्श्वनाथाय " आ चैत्यवंदन करवुं. नमुत्थुणं० कही, अरिहंतचे आणं करेमि का०, वंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः अर्हस्तनोतु स श्रेयः श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥ १ ॥ लोगस्स०, सब्बलोए० अरि०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नव०, स्तुतिः ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदङ्घ्रिश्व | आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु || २ || पुक्खरखर०, सुअस्स०, वंदण०, अन्नत्थ०, १ नवकार, स्तुतिः नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रितारुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दाssस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं०, श्रीअधिवासनादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, लोगस्स०, सागरवरगंभीरा०, नमोर्हत्०, स्तुतिः पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्राऽवतरतु जैने, कलशे ह्यधिवासनादेवी || ४ || श्रुतदैवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो०, स्तुतिः वद वदति न वाग्वादिनि, भगवति ! कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरागमतिवर - तरणिस्तुभ्यं नम इतीह || ५ | शान्तिदेवतायै करेमि का० अनत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - - - - - ॥ कलशप्रतिष्ठा ॥ ।। ३८० ।। Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ कलशप्रतिष्ठा । ३८१ श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छीमती शान्तिदेवता ॥६॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०,स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रियाः । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥७॥ शासनदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनेकेरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥८॥ अम्बिकादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - अम्बा बालाकङ्किताऽङ्काऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥९॥ अच्छुप्तायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव, नमो०, स्तुतिः - चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या-ऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥१०॥ समस्तवेआवच्च०, संति०, सम्मदिवि०, करेमि का०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥११॥ १ नवकार प्रकट कही नमुत्युणं. जावंति चेइआइ० नमो०, स्तवन - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ || ३८१ ।। For Private & Personal use only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GS ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥ ॥ कलश| प्रतिष्ठा ॥ सप्पणव नमो तह, भगवईइ सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाउकुबेरईसाणा । बंभो नागुत्ति दसहमवि अ सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोम-यम-वरुण-वेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्डं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्टाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणिअं ॥५॥ जयवीयराय कहेवा । इति अधिवासना विधिः शा ॥ ३८२ ॥ अथ कलशप्रतिष्ठा - लग्ननो समय निकट आवतां पहेला सात धानना बाकलानु भाडजन तैयार करी- “ॐ ही क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा।" आ मंत्र ७ वार भणी बलिने मन्त्री पूर्वादि दिशा संमुख उभा रही । “ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" १ "ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " २ “ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ३ ॐ निर्वतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" ४ “ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" ५ ॥ ३८२ ॥ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ del ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । कलशप्रतिष्ठा ॥ ॥ ३८३ ।। ल “ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ६ “ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ७ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।"८ “ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" ९ " ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह कलशप्रतिष्ठायाम् आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।"१० उपरनो एक एक मंत्र बोली पूर्वादि एक एक दिशामां जलचुलुक सुगन्धनो छांटो पुष्प अने बलि निक्षेप करवो. ते पछी कलश उपरनुं वस्त्राच्छादन दूर करीने सूरि मंत्र वडे मंत्रीने कलश उपर वासक्षेप करवो, अथवा “ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जय विजये जयन्ते अपराजिते ॐ ह्रीं स्वाहा " आ प्रतिष्ठा मंत्र ७ वार गणीने वासक्षेप करी कलशनी प्रतिष्ठा करवी. जो बिम्ब प्रतिष्ठानी साथे कलश प्रतिष्ठा होय तो बिंबनी अधिवासना साथे कलशनी अधिवासना अने बिम्बना अंजन विधानना समयमां ज कलशप्रतिष्ठा विधि पण करी लेवी. कलश प्रतिष्ठा करीने नीचे प्रमाणे चैत्यवंदना करवी, इर्यावही पडिक्कमीने मूलनायकनु चैत्यवंदन अथवा "ॐ नमः पार्श्वनाथाय" ए चैत्यवन्दन कही नमुत्थुणं, अरिहंतचेइआणं०, करेमि का०, बंदणवत्तिआए०, अन्नत्थ. १ नो०, नमो०, स्तुति - अर्हस्तनोतु स श्रेयः, श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ लोगस्स०, सन्चलोए०, अरिहंत चेइआणं०, वंदण०, अन्नत्थ०, १ नो० स्ततिः - धान GS | || ३८३ For Private & Personal use only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कलश ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ का प्रतिष्ठा ॥ ३८४ ।। ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंप्रिंश्च । आश्रीयते श्रिया ते भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खर०, सुअस्स भ०, वंदणवत्तिः, अन्नत्थ०, १ नव० स्तुतिः - नवतत्त्वयुतात्रिपदी-श्रितारुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । बरधर्मकीर्तिविद्यानन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं०, प्रतिष्ठादेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ लो० सागरवरगं० नमोऽर्हत्०,, स्तुतिः - यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्री जिनकलशं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥४॥ श्रुतदेवतायै करमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - बद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरंगमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शान्तिदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ॥६॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान नः सुखदायिनी ॥७॥ शासनदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो० स्तुतिः - उपसर्ग बलय विलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहित कृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥८॥ अबादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो० स्तुतिः - अम्बा बालांकितांकाऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालंकार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥९॥ अच्छुप्तायै करेमि का०, अन्नत्य०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - ॥ ३८४ ॥ or Private Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बैंक ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । कलशप्रतिष्ठा ॥ ॥ ३८५ ॥ चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या-ऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥१०॥ समस्तवेआवच्चग संति० सम्मदि० करेमि० का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमोऽर्हत् स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः ।। ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥११॥ १ नवकार गणी बेसी नमुत्थुणं०, जावंति चेइ०, नमो०, स्तवनः - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणव नमो तह, भगवईइ सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाउकुबेरईसाणा । बंभो नागुत्ति दसण्ह-मवि अ सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणिअं॥५॥ अंते जयवीराय कहेवा. पछी सकल संघ सहित प्रतिष्ठाचार्य अक्षतोथी अञ्जलि भरी कलश सामे उभा रही निम्नोक्त मंगल गाथाओनो पाठ करे- नमोऽर्हत् सिद्धाचार्यो. जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोकचूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥१॥ जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोयस्स मज्झयारंमि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥२॥ जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारंमि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्टत्ति ॥३॥ For Private & Personal use only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || ध्वज ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ के प्रतिष्ठा ॥ जह जम्बुस्स पइट्ठा, जम्बुद्दीवस्स मज्झयारंमि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारंमि । आचंदसूरिअं तह, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥५॥ गाथाओ भणीने प्रतिष्ठाचार्य तथा सकल संघ अक्षताञ्जलि कलश उपर नाखी कलशने वधावे, श्रावक पण पुष्पांजलि कलश उपर चढावीने बधावे, पछी प्रतिष्ठागुरुए कलश प्रतिष्ठा विषयक धर्मदेषना करवी. सूचना-कलश प्रतिष्ठा जो बिम्ब प्रतिष्ठानी साथे ज होय तो बिम्बना अंजन विधानना समयमां कलश प्रतिष्ठा पण करवी, अने बिम्ब स्थापनाना समयमां कलश पण शिखर उपर पंचरत्न न्यासपूर्वक स्थापन करवो. अने केवल कलशनी ज प्रतिष्ठा होय तो अधिवासना अने प्रतिष्ठानां प्रारंभिक कार्यो थया पछी शुभ लग्नमां शिखर उपर पंचरत्न स्थापन पूर्वक कलश स्थापीने प्रतिष्ठा मंत्र भणी वासक्षेप करी प्रतिष्ठित करवो. अथवा नीचे प्रतिष्ठा कर्या पछी बीजा शुभ समये शिखर उपर स्थापन करवामां आवे तो पण विहित छे. ॥ ३८६ ॥ १८ ध्वजदण्डप्रतिष्ठा - वंशादिकाष्ठजं ध्वज-दण्डं पूर्वं पवित्रयेत् । स्नानाविधिना पश्चात्, सुलग्ने संप्ररोपयेत् ।।१७।। वंशमय होय अथवा अन्य काष्ठमय ध्वजदंड होय, तेने पहेला विधिपूर्वक अभिषेक करावी शुद्ध करवो अने पछी शुभ लग्नमां शिखर उपर आरोपवो जोइये. ___ध्वज दण्डनी प्रतिष्ठाने माटे पण भूमिशुद्धि करी तेनो सुगन्ध जल पुष्पादि वडे सत्कार करवो. मंडपनी रचना करवी, दण्ड स्थापना | | योग्य पंचरत्न गर्भित वेदी बनावबी, नवांग वेदी बांधवी. जवारा बाबवा, पवित्र जलाशयथी जल लावबुं, अमारी घोषणा कराववी, संघने ॥ ३८६ ।। For Private & Personal use only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३८७ ।। आमंत्रण कर, १० दिग्पालोनी स्थापना करवी अने नन्द्यावर्तनुं आलेखन-पूजन करवुं. प्रथम पवित्र जलाशयथी मंगावेल जलथी वेदी आगे स्थापित प्रतिमाने स्नात्र करवुं, पछी बलिबाकुलाना भाजनमा पुष्प वास मेवो आदि नाखीने “ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा । " आ मंत्र बडे ७ वार बलि मंत्री पूर्वादि दिशा संमुख उभा रही "ॐ इद्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।” १ “ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " २ “ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ३ “ॐ निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वाजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ४ "ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वाजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ५ “ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ६ "ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ७ "ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ८ “ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा । " ९ 1 ॥ ध्वजदण्ड प्रतिष्ठा ॥ ।। ३८७ ।। Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ दण्डप्रतिष्ठा ॥ ।। ३८८ ॥ “ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।" १० आ मंत्रो पैकिनो १-१ मंत्र बोली पूर्वादि एक एक दिशामां जलचुलुक १, केसर चंदननो छांटो २, पुष्पक्षेप ३, अने सप्तधान बलि ४, निक्षेप करवो. ए पछी अखंड वस्त्रधारी प्रतिष्ठागुरुए नीचेना मंत्रे पोताना आत्मानुं सकलीकरण करवू ॐ नमो अरिहंताणं-हृदय उपर, ॐ नमो सिद्धाणं-मस्तक उपर, ॐ नमो आयरियाणं-शिखा उपर, ॐ नमो | | उवज्झायाणं-सर्वाङ्गावरण, ॐ नमो लोए सब्बसाहुणं-हस्ते आयुध. सकलीकरण करी नीचे लखेल - “ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्वसाहणं, ॐ नमो सब्बोसहिपत्ताणं, ॐ नमो विज्जाहराणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ कः क्षः नमः अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा"। आ शुचिविद्या ५ अथवा ७ वार जपी आत्मामां आरोपवी. पछी प्रतिष्ठाचार्ये उपर्युक्त सकलीकरण विद्या वडे स्नात्रकारोने पण अभिमंत्रित करी तेमनी अंग-रक्षा करवी. ए पछी प्रतिष्ठाचार्ये मंगलार्थे संघ सहित नीचेनी विधिथी देववंदन करवू. इर्यावही प्रतिक्रमण पूर्वक मूलनायकनुं चैत्यवंदन बोलवू, तेना अभावमां "ॐ नमः पार्श्वनाथाय " ए चैत्यवंदन कही नमुत्थुणं०, अरिहंत चेइआणं०, बंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नवकार०, नमोऽर्हत्, स्तुतिः - अहंस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१।। || ३८८ ॥ Jain Education Intemational For Private & Personal use only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. ॥ ध्वजदण्डप्रतिष्ठा ॥ खं० २ ॥ ॥ ३८९ ॥ लोगस्स०, सब्बलोए अरिहंत०, बंदणं०, अन्नत्थ०, १ नो०, स्तुतिः - ओमिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंघ्रिश्च । आश्रियते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवर०, सुअस्स०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नो०, स्तुतिः - नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यक्तिमता । वपधर्मकीर्ति विद्या-नंदाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं०, श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि का०, वंदण०, अन्नत्थ०, लोगस्स सागरवरगं०, नमो०, स्तुतिःश्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् ।। नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः संतुषन्ति जने ॥४॥ श्रुतदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - वद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इताह ॥५॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदावता नित्यं, भूयान् नःसुखदायिनी ॥६॥ शासनदेवतायै करेमि का०, अन्नत्य०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥७॥ समस्तवोआवच्छगराणं संति० सम्मद्दिवि० करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्ततिः - ॥ ३८९ ॥ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ध्वजदण्ड | प्रतिष्ठा ॥ ॥ ३९० ॥ पुसित-पुष्पावलिः कुरुतान्ने प्रतिष्ठाचायक करवू, पु संघेऽत्र ये गुरुगुणौधनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभि, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ १ नवकार प्रकट कही नमुत्थुणं०, स्तवनने बदले लघुशान्ति कही, जयवीराय कहेवा. अधिवासना - पछी श्रावके बन्ने हाथमां पुष्पांजलि लेइ - अभिनवसुगन्धिविकसित-पुष्पौघभृता सुगन्धधूपाढ्या । दण्डोपरि निपतन्ती, सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ॥११॥ आ काव्य बोली ध्वजदण्ड उपर नाखवी अने चन्दन छांटवू, आ वखते प्रतिष्ठाचार्ये बे मध्यमा आंगलिओ उंची करी क्रूर दृष्टि करी तर्जनी मुद्रा देखाडवी, श्रावके डाबा हाथमां जल लेई दंड उपर आछोटq अने दण्डने तिलक करवू, पुप्पो चढावां, धूप उखेववो. प्रतिष्ठागुरुए दण्डने मुद्गर मुद्रा देखाडवी अने - "ॐ ह्रीँ श्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा ।" आ मंत्रनो न्यास करी दण्डनी दृष्टिरक्षा करवी. श्रावके दण्ड उपर सप्त धान्यनो प्रक्षेप करी धान्य स्नान कराव. ए पछी दणडना१ सुवर्णजल, २ रत्नजल, ३ कषायजल, ४ मृत्तिका ५ मूलिका ६ अष्टवर्ग ७ सर्वोपधि ८ गन्ध ९ वास १० चन्दन ११ कुंकुम (केसर) १२ तीर्थजल १३ कर्पूरजल, आ १३ अभिषेक करवा. तेमां १-सुवर्णस्नात्र -सोनाना ४ कलशो जले भरीने अथला जलमां सुवर्ण चूर्ण नाखीने- “नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः E ।। ३९० ।। HAN Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ध्वज ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा ॥ ॥ ३९१ । कही सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गंधपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं दण्डोपरि, सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ॥१॥ आ काव्य बोली दण्ड उपर अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावां, धूप उखेववो. २-पंचरत्नस्नात्र – पंचरत्ननु चूर्ण अथवा पंचरत्ननी पोटली जलमध्ये नाखी, तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत० कही - नानारत्नौघयुतं, सुगंधिपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्धिचित्रवर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनादण्डे ॥२॥ ३-कषाय छाल जलस्नात्र - कपाय छालनु चूर्ण जलमां नांखी, तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्. कहीप्लक्षाऽश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिकल्कसंमिश्रम् । दण्डे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्पो चढावां, धूप उखेववो. ४-मृत्तिकास्नात्र - मंगलमाटी- चूर्ण जलमां नाखी तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत् कही - पर्वतसरोनदीसंगमादिभिश्च मंत्रपूताभिः। उद्वर्त्य ध्वजदण्डं, स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक कर, पुष्प चढावी धूप उखेबवो. ५-मूलिकास्नात्र – मूलिका चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्० कही - सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तददकस्य शुभधारा । दण्डेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥५॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावबां, धूप उखेववो. ६- अष्टवर्गस्नात्र - अष्टवर्गर्नु चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हतं. कही - यश SH || ३९१ ।। சம் Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ध्वज कल्याणकलिका. खं० २॥ दण्डप्रतिष्ठा ॥ ३९२ ॥ नानाकुष्ठाद्यौषधि-सन्मृष्टे तद्युतं पतन्तीरम् । दण्डे कृतसन्मंत्रं, कौघं हन्तु भव्यानाम् ॥६॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्पो चढावबां, धूप उखेवबो. ७ . सर्वौषधिस्नात्र – सर्वोषधिचूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत् कही - सकलौषधिसंयुतया, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि ध्वजदण्डं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥७॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक कर, पुष्पो चढावबां, धूप उखेवबो. ८ - गन्धस्नात्र - गन्धचूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्० कही - गन्धाङ्गस्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः । स्नपयामि ध्वजदण्डं, कमौघोच्छित्तये शिवदम् ॥८॥ आ कान्य भणी अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्पो चढाववां, धूप उखेववो. ९ - वासस्नात्र - वासचूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोर्हत् कही - हृद्यैराह्लादकरैः, स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैर्दण्डम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-र्वासैरधिवासितं सार्वम् ॥९॥ आ काव्य बोली अभिषेक करचो, तिलक करवू, पुष्पो चढाववां, धूप उखेवबो. १० - चन्दनस्नात्र - घसेल चन्दननो घोल जलमां नाखी, ४ कलशा भरी नमोऽहत्० कही - शीतलसरससुगन्धि-मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मंत्रयुतः पततु वरदण्डे ॥१०॥ आ काव्य बोली अभिषेक करे, तिलक करे, पुष्पो चढावे, धूप उखेवे. ११ - केसरस्नात्र - घसेल केसरनो घोल जलमां नाखी, ४ कलशा भरी नमो. कही - www.iainelibrary.org Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३९३ ।। काश्मीरजसुविलिप्तं दण्डं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मंत्रयुक्तया शुचिं जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥११॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवुं, पुष्पो चढावबां. धूप उखेववो. १२ - तीर्थजलस्नात्र - अभिषेक योग्य जलमां तीर्थजल मेलवी, ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्० कही जलधि-नदी- हृद-कुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह दण्डं स्नपयामि शुद्धयर्थम् ॥ १२ ॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवुं, पुष्पो चढावां, धूप करवो. - १३ - कर्पूरस्नात्र – कपूरनं चूर्ण अभिषेक योग्य जलमां नाखी, ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्० कही - शशिकरतुषारधवला, उज्ज्वलगंधा सुतीर्थजलमिश्रा । कर्पूरोदकधारा सुमन्त्रपूता पततु दण्डे ||१३|| आ काव्य भणी दण्डनो अभिषेक करवो, तिलक कर्खु, पुष्पो चढाववां, धूप उखेववो. ए पछी श्वेत अथवा पीला २७ सर्षवानी पोटली दंडने बांधवी, डाबा हाथे जमणो हाथ पकडी ते वडे दण्डना सर्वाङ्गे चन्दन- केसरनुं विलेपन कखुं. फूलो चढावबां, ऋद्धिवृद्धि सहित मींडल फलनुं कंकण बांधवं. अने चक्रमुद्राए दण्डनो सर्वाङ्ग स्पर्श करवो. पछी धूप उखेवी ४ स्त्रीओ द्वारा दंडने पुंखाववो. प्रतिष्ठागुरुए १ सुरभि २ परमेष्ठी ३ गरुड ४ अंजलि ५ प्रवचन, ए पांच मुद्राओ देखाडवी अने लग्न समय आवतां सूरिमंत्र बडे अथवा “ॐ श्रीँठः " आ मंत्रथी ७ वार ध्वजदण्डने अभिमंत्रित करी वासक्षेप करवो, अने लाल वस्त्रे आच्छादित करवो, ध्वजा उपर पण पूर्वोक्त मंत्रे वासक्षेप करी धूप उखेवी तेने अधिवासित करवी, उपस ह्रीँ लखबुं. आगल फलावलि ढौंकवी अने जवारानां पात्रो चारे तरफ मूकवां, उपर सात धान्य नाखवां अने आरति उतारवी. आरति उतारतां नीचेनुं पद्य बोलं - ॥ ध्वजदण्ड प्रतिष्ठा ॥ ।। ३९३ ।। Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ d शाला ॥ कल्याणकलिका. प्रतिष्ठा ॥ ।। ३९४ ॥ Gov दुष्टसुरासुररचितं, नरैः कृतं दृष्टिदोषजं विघ्नम् । तद् गच्छत्वतिदुरं, भविककृतारात्रिकविधानैः ॥शा आरति उतार्या बाद प्रतिष्ठागुरुए स्नात्रकारोनी साथे इर्यावही करी मूलनायकनु अथवा "ॐ नमः पाश्वनाथाय" इत्यादि चैत्यवंदन कही नमुत्थणं. अरिहंत चेइआ० करेमि० वंदण• अन्नत्थ०, १ नव०, स्तुतिः - अर्हस्तनोतु स श्रेयः श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्राहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१॥ लोगस्स०,सब्बलाए० अरिहंत०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नब०, स्तुतिः - ओमिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंश्चि । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवरदी०, सुअस्स०, वंदण०, अन्नत्थ०, १ नव०, स्तुतिः - नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दाऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं, अधिवासना देव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नो०, नमोऽर्हत् स्तुतिः - पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्राऽवतरतु जैने, दण्डे ह्यधिवासनादेवी ॥४॥ श्रुतदेवतायै करमि का०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - बद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । तङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शान्तिदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - श्रीचर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकीरिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ॥६।। क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - शाल KATO For Private & Personal use only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३९५ ।। यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान नः सुखदायिनी ||७|| शासनदेवतायै करेमि, १ नव०, नमो० स्तुतिः उपसर्गवलयविलसयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ||८|| अम्बादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः अम्बा बालाङ्किताङ्काऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार - चित्रसिंहासन स्थिता ||९|| अच्छुप्ताचै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः - - चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या छुप्ता तुरगवाहना ॥ ११ ॥ समस्तवेआवच्च ० संति० सम्म० करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः संघेsa ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया - वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ।।१२।। १ नवकार प्रकट कही बेसी नमुत्थुणं० जावंति चेड़आई० नमोऽर्हत्० स्तवन - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय । वरसव्वसाहुमुणिसंघ धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणव नमो तह, भगवईइ सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ||२|| इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाङकुबेरईसाणा । बंभो नागुत्ति दसह - मवि अ सुदिसाण पालाणं ॥ ३॥ - ॥ ध्वजदण्डप्रतिष्ठा ॥ ।। ३९५ ।। Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ ध्वज दण्डप्रतिष्ठा ॥ सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्डं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ घणिअं ॥५॥ जयवीयराय कहेवा. । इति अधिवासना । प्रतिष्ठा – लग्ननो समय निकट आवतां प्रथम सात धानना बाकुलानुं भाजन तैयार करी - "ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा" आ मंत्र ७ वार भणी बलिने मंत्री पूर्वादि दिशासंमुख उभा रही - ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥१॥ ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥२॥ ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाही ॥३॥ ॐ निर्ऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥४॥ ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥५॥ ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥६॥ ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाही ॥७॥ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥८॥ ला चा बोला || ३९६ ॥ www.iainelibrary.org Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ॥ ।। ३९७ ।। ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||९|| ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय इह ध्वजारोपणविधौ आगच्छ आगच्छ स्वाहा ||१०|| उपर प्रमाणे एक एक ग्रहनुं आह्वान करी पूर्व आदि एक एक दिशामां जलनो चुलुक, सुगन्धनो छांटो, पुष्प अने बलि निक्षेप करवो. पछी लग्न समय आवतां दण्ड उपरनुं वस्त्र दूर करी सूरिमंत्र वडे मंत्रीने अथवा “ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिते ॐ ह्रीँ स्वाहा । 11 आ प्रतिष्ठा मंत्र ७ वार भणीने वासक्षेप करी दण्ड अने ध्वजानी प्रतिष्ठा करवी. जो बिंबप्रतिष्ठानी साथै ज ध्वजदण्डनी प्रतिष्ठा होय तो बिम्ब अधिवासना साथे दण्डीनी अधिवासना तथा बिंबना अंजन विधाननी साथे दंड प्रतिष्ठाविधान करी लेबुं ध्वजदण्ड उपर प्रतिष्ठानो वासक्षेप कर्यापछी नीचे प्रमाणे चैत्यवंदना करवी इर्यावही पडिक्कमीने मूलनाकनुं चैत्यवंदन अथवा “ॐ नमः पार्श्वनाथाय " आ चैत्यवंदन कही नमुत्थुणं० अरिहंत० करेमि का० वंदण० अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः अर्हस्तनोतु स श्रेयः श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥ १ ॥ लोगस्स०, सव्वलोए० अरिहंत चेइआनं०, वंदण०, अन्नत्थ०, १ नव० स्तुतिः ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदङ्घ्रिश्च । आश्रियते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु || २ || पुक्खर०, सुअस्स भ०, वंदणवत्ति०, अन्नत्थ०, १ नव०, स्तुतिः - - - - ॥ ध्वजदण्ड प्रतिष्ठा ॥ ।। ३९७ ।। Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ३९८ ।। नवतत्त्वयुतात्रिपदी - श्रितारुचिज्ञानपुण्यषक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्यानन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं०, प्रतिष्ठादेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ लो०, सागरवरगं० नमोर्हत० स्तुतिः यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्री ध्वजदण्टडं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥४॥ श्रुतदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः वद वदति नवाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगतरंगमतिवर - तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ शान्तिदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमो०, स्तुतिः श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ॥ ६ ॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान् नः सुखदायिनी ||७|| शासनदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो० स्तुतिः उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ||८|| अंबादेव्यै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो स्तुतिः अम्बा बालाङ्किताङ्काऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालंकार - अच्छुप्तायै करेमिका०, अन्नत्य०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः • चित्रसिंहासनस्थिता ॥ ९॥ - - - - - ॥ ध्वजदण्ड प्रतिष्ठा ॥ ।। ३९८ ।। Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण कलिका. । ।। ध्वज दण्डप्रतिष्ठा ॥ खं० २॥ ३९९ ॥ चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्या-ऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥१०॥ समस्तवेआवच्चग० संति० सम्मद्दि० करेमि- का०, अन्नत्थ०, १ नव० नमोऽर्हत् स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥११॥ १ नवकार गणी बेसी नमुत्थुणं० जावंति० नमोऽर्हत् स्तवनने ठेकाणे लघुशान्ति कही, जयवीराय कहेवा, ए पछी सकलसंधनी साथे प्रतिष्ठाचार्य अक्षतांजलि भरी ध्वजदण्ड सामे उभी रही, मंगलगाथाओनो पाठ करी अक्षताञ्जलि दंड उपर नाखे; हवे ध्वजने दण्ड उपर चढावबी, देशाचारे जो दण्ड अने ध्वजना चढावा जुदा बोलाया होय तो ध्वजा थालीमा जुदी राखवी, चढाववानो समय निकट आवतां ध्वजादण्ड उठावीने चैत्यने ३ प्रदक्षिणा करी शिखर उपर चढाववो. शिखर उपर चढी प्रथम शिखरना कलश उपर - कुलधर्मजातिलक्ष्मी-जिनगुरुभक्तिप्रमोदितोन्नतिदे । प्रासादे पुष्पाञ्जलि-रयमस्मत्करकृतो भूयात् ॥१॥ आ काव्य बोली पुष्पांजलि नाखवी, अने - चैत्याग्रतां प्रपन्नस्य, कलशस्य विशेषतः । ध्वजारोपविधौ स्नानं, भूयाद् भक्तजनैः कृतम् ॥१॥ आ श्लोक बोली शिखरना कलशने न्हवण कराववं, पछी ध्वजदंड जेमा स्थापवानो छे ते ध्वजाधारमां पंचरत्ननो न्यास करवो, अने शुभग्रहदृष्ट शुभलग्नना शुभनवमांशमां ध्वजदंड स्थापित करवो, सूरिमंत्र वडे ते उपर वासक्षेप करवो, आगल फलो ढौंकवां, गोहुं तल आदिना ५-५ लाडवा 'कांकरिआ' आदि बलि ढोवो. For Private & Personal use only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ध्वज ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा ।। ध्वजदण्ड मूलनायकना जमणा हाथ तरफना पाछलना पडरा उपर सीधो उभो करखो. ध्वजदण्ड रोप्या पछी प्रतिष्ठाचार्ये प्रवचनमुद्राए नीचे प्रमाणे देशना करवी. - देवस्याऽयतने भक्त्या, ध्वजमारोपयन्ति ये । त्रैलोक्यश्रीस्तनोत्संगे, स्वं समारोपयन्ति ते ॥१॥ धत्ते ध्वजोऽत्र धन्यानां, सुरसद्मशिरःस्थितः । तरङ्गिततनुः साक्षात्, स्वर्गनिःश्रेणिरूपताम् ।।२।। यावन्तः प्राणिनस्तत्र, लग्नाः कुर्युः प्रदक्षिणाः । तावन्तः प्राप्नुवन्त्यत्र, शिवस्थानमनुत्तमम् ॥३॥ - जे मनुष्यो देवमंदिर उपर भक्तिपूर्वक ध्वजा चढावे छे, तेओ पोताने त्रण लोकनी लक्ष्मीना उरःस्थल उपर आरूढ करे छे. देवमंदिरना मस्तक उपर रहीने फरकती आ ध्वजा भाग्यशाली मनुष्योने माटे साक्षात् स्वर्गनी नीसरणी रूप छे. जेटला जीवो भावपूर्वक आ ध्वजादण्डनी प्रदक्षिणा करे छे, ते सर्व उत्तमोत्तम एवा मोक्षस्थानने पामे छे, इत्यादि ध्वजारोपण- फल सांभलीने चढावनार पोताना अत्माने कृतकृत्य मानतो देव, गुरु, संघनी पूजा करी यथाशक्ति दीन दुखीने अन्नदानादिकथी संतुष्ट करे. ध्वजागतिनुं शुभाशुभफल - ध्वजदंड आरोपी ध्वजा छोडीने तेनी गति उपरथी निमित्त जोवां. ध्वजा पवनना प्रयोगधी कलशथी १ हाथ उंची चढे, तो चढावनार रोगादिकना भयथी मुक्त रहे, ध्वजा जो २ हाथ उंची जाय तो चढावनारने सन्तानवृद्धि थाय छे, ध्वजा जो ३ हाथ उंची चढे तो चढावनारना घेर धनधान्यनी वृद्धि थाय छे, ध्वजा जो ४ हाथ उंची जाय तो राजाने घरे वृद्धि थाय, ध्वजा जो ५ हाथ उंची चढे तो सुभिक्ष थाय अने राष्ट्रनी वृद्धि थाय छे. ध्वजा प्रथम उडीने पूर्व दिशा तरफ जाय तो चढावनारनी सर्व इच्छाओ पूर्ण थाय छे, ध्वजा प्रथम आग्नेय कोणमा जाय तो ताप || ४०० ॥ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ ॥ ४०१ ॥ संताप करावे, ध्वजा जो दक्षिणमा जाय तो रोगभय उत्पन्न करे, ध्वजा जो नैर्ऋत कोणमा जाय ते आकरा रोगने उपजावे, ध्वजा जो IN पश्चिम तरफ जाय तो कर्ताने विषे मैत्रीभाव वधारे, ध्वजा वायव्यकोणमा जाय तो धान्यनी संपत्ति वधारे, ध्वजा उत्तर तरफ उडे तो ।। ध्वज धननो लाभ करावे, ध्वजा ईशानमा जाय तो आयुष्यनी वृद्धि करे, ध्वजा जो अशुभ दिशामां गई होय तो १०००, एक हजार नमस्कार | दण्ड| मंत्रनो जाप करी विशेष पूजा करीने शान्ति करवी. प्रतिष्ठा ॥ ध्वजादण्डने बांधेली सर्षव पोटली अने मीढलनु कंकण आवश्यक कारणे ते ज दिवसे अन्यथा ३-५-७ दिवसो पैकी जे शुभ होय | ते दिवसे जिनप्रतिमाने स्नात्र करी, जिनने नैवेद्य चढावी, भूतबलि क्षेप करीने नीचेप्रमाणे विधि करवी. ___ इर्यावही पडिक्कमवा पूर्वक मूलनायकनुं चेत्यवंदन करवू. अथवा "ॐ नमः पार्श्वनाथाय " आ चैत्यवंदन कही, नमुत्थुणं०, अरिहंत चाइआणं करेमि का०, वंदण०, अन्नत्थ०, १ नव०, नमो०, स्तुतिः - अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्धयानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥२॥ लोगस्स०, सब्बलोए. अरि० बंदण०, अन्नत्थ०, १ नव० स्तुतिः - ओमिति मन्ता यच्छासनस्य नन्ता सदा यदंघ्रिश्च । आश्रियते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुक्खरवर०, सुअस्स०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नव० स्तुतिः - नवतत्त्वयुता त्रिपदि-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. कंकण छोटना) प्रतिष्ठा स्थिरीकरणाथ करेमि का. अन्नत्थ०, १ लोगस्स०, नमो. स्तुतिः - यदधिष्ठिताः प्रतीष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीध्वजदण्डं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥४॥ othe GODI ab. ||४०१ ।। TV Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ale ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ || ध्वज दण्डप्रतिष्ठा ॥ || ४०२ ।। श्रुतदेवतायै करेमि का०, अन्नत्थ०, १ नो०, नमो०, स्तुतिः - वद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः । रंगत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शान्तिदेवतायै करेमि का. अन्नत्थ०, १ नो०, नमो०, स्तुतिः - श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ।।६।। क्षेत्रदेवतायै करेमि का. अन्नत्थ०, १ नो०, नमो. स्तुतिः - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान् नः सुखदायिनी ॥७॥ समस्त वेआबच्चगराणं संति० सम्मदि० करे० का०, अन्न०, १ नो० नमो०, स्तुतिः - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः ! ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ १ नो० प्रकट कही, बेसी नमुत्थुण०, जावंति चेइआई. स्तवन लघुशांति कही, जयवीराय, पछी सौभाग्य मुद्राए - ॐ अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा । ____ आ मंत्रनो न्यास करी दण्ड उपरथी सरसवोनी पोटली, मीढल, कंकण वगेरे उतारवां. जो ध्वजादंडने बांधेली होय तो ते पण छोडवी, ए पछी नंद्यावर्तना पाटलानी पूजा करी "ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा ।" ___ आ मंत्रथी नंद्यावर्तनुं विसर्जन कर, संघभक्ति करवी, ८ दिवस सुधी विशेष पूजा करवी, ॥ इति ध्वजदंड प्रतिष्ठा ॥ ॥४०२॥ For Private & Personal use only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ।। ।। ४०३ ॥ थान १९ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः - अभिषेकविधिः पूर्वं, कथितः शान्तिसूरिभिः । तमाश्रित्याऽभिषेकाणां, विधयो जज्ञिरेऽखिलाः ॥१७३।। पूर्वमष्टोत्तरशत-घटस्नानमजायत । 'चक्रे देवेन्द्रराजेति' काव्य घोषेण निर्मितम् ॥१७४।। तस्यानुकरणाज्जज्ञेऽष्टोत्तरस्नात्रमप्यदः । षोडशे विक्रमाब्दानां-शते केनापि निर्मितम् ॥१७५।। शान्तिस्नात्रमिदं जज्ञे, सकलचन्द्रदर्भितम् । विक्रमाब्दसप्तदश-शते लोके प्रसिद्धिभाग ।।२७६।। अर्हदभिषेक सर्व प्रथम बादिवेताल शान्तिसूरीजीए कहेल तेना आधारे ते पछीना आचार्योए भिन्न भिन्न नामथी घणी अभिषेक विधिओ बनावेली जेमा 'चक्रे देवेन्दराजैः" आ काव्य बोलीने १०८ अभिषेक करवानी विधि प्राचिन छे. आ अष्टोत्तर शत अभिषेकना अनुकरण रूपे लगभग सोलमा सैकामा कोइए अष्टोत्तरी स्नात्रनी योजना करी, अने ते पछी विक्रमना सत्तरमा सैकामां श्रीसकलचन्द्रगणिए "शान्तिस्नात्र" नामथी प्रसिद्ध एक अभिषेक विधिनुं निर्माण कर्यु के जे विशेप प्रसिद्धिमा आन्यु छे. उपकरण भद्रासन(प्रणाल युक्त बाजोट) चामयुगल परिकरयुत जिनबिंब १ चंद्रवो भद्रासनोपरि त्रांबा कुंडी २ वस्त्रमंडप वेदीसहित छत्र त्रय बिंबोपरि घंट १ शंख १ चंदन मूठो १ कांसानी थाली १ झालर १ अगर तोला ५ थाली ७ कपूर तोला ५ बाजिंत्र समूह ai CH वेलण १ Gagan Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ वाटकी ५ रक्तचंदन मूठो १ आभूषण जिनबिंबयोग्य माटली मण १। नी कस्तुरी वाल ३ श्वेत वस्त्रधर स्नात्रकारो (जघन्य ४ उत्कृष्ट २०) कुंभ कोरा २ गोरोचन वाल १ वस्त्र श्वेत १नैवद्यपट्टाकलशिया ८ श्वेत सरसव तोलो १ वस्त्र श्वेत १ नैवेद्य पट्टाच्छादन योग्य आरति १ सर्वोपधि पुडी १ धौतवस्त्र अंगलूछणां ४ मंगलदीवो १ दशांग धूप तोला २० गेवासूत्र छटांक १ धूपधाणां २ अष्ट गंध तोला २ धोती जोटा ४ धौत दीबी २ वासक्षेप तोला १० दिक्पालयोग्य तद्वर्णवस्त्र १० दिक्पालयोग्यपाटलो १ तृण कांकरी तोलो १ (पीलुं १,रातुं १,कालुं १ नैवेद्य ढोबा पाट १ गंगाजल शीशी १ उदारंगी १, श्याम १, केसर तोला २ २५ निवाणोना जल आस्मानि १, नीलु १, अक्षत शेर अक्षत शेर २ २ श्वेत ४, प्रत्येकवस्त्र खंड हाथ १-१) जिननैवेद्यलाडु नं.५ , साकर खंड ५, शेर १, खाजा खंड ५, घेवर खंड ५, दहिथरां खंड ५, मोहनथाल खंड ५, बदाम २५, सोपारी श्रीशान्तिबादिवेतालीय अहंदभिषेकविधिः ॥ GH GS गोल ॥४०४॥ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अहंद भिषेकविधिः ।। २५, पान २५, द्राक्षा शेर १, खारेक शेर १, दिक्पाल योग्य नैवेद्य सामान - मोतिया लाडु २, चुरमाना लाडु २, अडदना लाडु २, तिलना लाडु ४, मगना लाडु २, घिसा दलना (मगदलना) लाडु २, दूधना | पेडा २, घेवर ३ फलजात नालियेर ५, बीजोरां अथवा जंबीरी ३, दाडिम ७, नारंगी ६, सेलडी कटका ६ अथवा मोसंबी ६, सफरजन ५, मोसंबी ५, राती सोपारी २, काली सोपारी २, श्वेत बदाम ७, पान बीडा सोपारी १५, पान नागरवेलना १५, पुष्प जात - सोवन चंपो वा पीतपुष्प, जासूद पुष्प, चमेली-मालती, जाइ-जूही, मोगरो, गुलाब, दमणो-मरुओ दूध सेर ४, दहिं सेर ३, घृत सेर २, ग्रहोपशांत्यर्थ अभिषेक होय तो ग्रह योग्य नीचेनो सामान वधु करवो . यक्षकर्दम तोलो १, कंकु तोला २, लाल कणेर पुष्पमाला २, चूरमानो लाडु १, सादल (मगदल) ना लाडु २, गोलधाणीनो लाडु १, फोतरांवाला मगनो लाडु १, मातियो लाडु १, अडदिया लाडु २, तलनो लाडु १ साधुओने आहार दान - (१) गोलमा रांधेल भातनुं दान, (२) घृतयुत दूधपाकनुं दान, (३) घेवर भोजनुं दान (४) क्षीरनुं दान, (५) दहिना करंबार्नु । Jain Education Internationa For Private Personal use only rarw.iainelibrary.org Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४०६ ।। दान (६) घृत दान, (७) तिलवट (कुटेल वा पीलेल तलनुं) (८) खीचडी (अडदनी दालनी) (९) अनेक वर्णना धान्यनुं भोजन, ग्रहोपासकोने दान दक्षिणा - (१) रक्त वर्णनो चन्द्रवो १, (२) शंख १, (३) रक्त चंदननो मूठो १ (४) सुवर्ण दान यथाशक्ति, (५) पीतांबर १, (६) पगरखानी जोडी १, (७) ध्वज १, (८) लोह भाजन १, (९) काली कांबल १ अभिषेकनी तात्कालिक तैयारी - तात्कालिक तैयारीने अंगे विधिकारे नीचेनी बाबतो खास ध्यानमा राखवानी छे. अर्हदभिषेक सामान्यपणे ४ स्नात्रकारो अने ४ स्त्रीयोनी हाजरीथी पण सारी रीते करी शकाय छे. मात्र ४ स्नात्रकारोमा १ पुरुष विधिज्ञाता होवो जोइये. पण अभिषेकने जो विशेष आकर्षक बनाववो होय ते पुरुषो २० अने स्त्रीयो अथवा कुमारिकाओ २० तैयार करवी. २० पुरुषोमां १ पुरुष जे विधिज्ञाता होय तेने देव पुरोहित रूप कल्पवो के जे इन्द्रोने, देव-देवीओने, तेमना कर्तव्योनुं सूचन करतो कहे, ४ पुरुषोने इन्द्रो तरीके कल्पवा, शेष १५ पुरुषोनां नामो अनुक्रमे नीचे प्रमाणे कल्पवां घृतसमुद्राधिपति १, क्षीरसमुद्राधिपति २, दधिसमुद्राधिपति ३, क्षीरोदसमुद्राधिपती ४, मागधतीर्थाधिपति ५, वरदामतीर्थाधिपति ६, प्रभासतीर्थाधिपति ७, सर्वौषधिसमाहारक ८, सौगन्धिकसमाहारक ९, स्वच्छजलसमाहारक १०, कुंकुमरससमाहारक ११, कुंकुम चन्दनरससमाहारक १२, चन्दनद्रवसमाहारक १३, कस्तूरीद्रवसमाहारक १४, अने गोरोचन - सपर्पसमाहारक १५. २० स्त्रीओ पैकिनी १४ जणीओने अनुक्रमे गंगा १, सिंधु २, रोहिता ३, रोहितांशा ४, हरिता ५, हरिकान्ता ६, शीता ७, शीतोदा ८, नरकान्ता ९, नारीकान्ता १० रूप्यकूला ११, सुवर्णकूला १२, रक्ता १३, सक्तोदा १४, ए नदीओना नामनी आगल 11 श्रीशान्ति वादिवे तालीय अर्हद भिषेकविधिः ॥ ।। ४०६ || Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ४०७ ।। 'देवी' शब्द जोडीने उक्त १४ नदीओनी अधिष्टायिकाओ कल्पवी, शेष ६ स्त्रीओने पद्म १, माहापद्म २, तिगिच्छि ३, केसर ४, पुण्डरीक ५, अने महापुण्डरीक ६, आ छ ह्रदोनी निवासिनी अने अधिष्टायिका तरीके अनुक्रमे श्रीदेवी १, ह्रीदेवी २, घृतिदेवा ३, कीर्तिदेवी ४, बुद्धिदेवी ५, अने लक्ष्मीदेवी ६ तरीके कल्पवी. देव दैवीओए पोतपोताना अधिकार नीचेना जलादि द्रव्योना अभिषेक के उपयोग प्रसंगे इद्रनो आदेश थतां ते ते पदार्थ लेइ उपस्थित थवानुं छे. पहेलानां ६ अभिषेकोमा एक एक स्थानीय धृतादि द्रव्य लइ एक एक देवे अथवा देवीए उपस्थित थवानुं छे ७ थी १२ अभिषेकोमा वे नदीना जल लई वे वे नदी देवीओ उपस्थित थशे, ए पछीना बधा अभिषेकोमा अने अन्य कार्योंमां एक एक देवी अने देवनी उपस्थिति छे, मात्र १९ मा अभिषेक प्रसंगे मागध, वरदाम, प्रभास आ त्रणेना अधिपति देवोने साथे उपस्थित थवानुं छे. २४ निवाणोना जलने छाणी एक महोटी माटलीमां एकत्र करवुं, तेमा बरास, कर्पूर, कस्तुरी घोलीने नांखी तेने सुगंधी बनव २४ न्हाना न्हाना धातु अथवा माटीना घडाओमां आ भरी, ४ देवो अने २० देवीओने हवाले करनुं, क्षीर समुद्रना जलमा दूध नाख जलने सफेद बनाव, शेष २३ घडाओनुं जल जलरूपे ज राखवुं, घृत, क्षीर, दधि, समुद्रोना अधिष्ठायकोने घृत, दहिंना कलशो भरीने आपवा, सर्वौषधि समाहारक देवोए पोतपोताना अधिकार नीचेनां द्रव्यो अभिषेकने योग्य बनावीने तैयार राखवां अने इन्द्रनो आदेश मलतां ज हाजर करवां. जो अभिषेक भक्तिरूपे ज करवानो होय तो ग्रह निमित्ते जणावेल बलि, पुष्प, भोजन, अने दक्षिणा विषयक पदार्थोनी तैयारीनी जरूरत नथी, मात्र दिक्पालो योग्य पदार्थों ज तैयार कराववा. पण कोइ संघ के व्यक्ति जिनभक्ति उपरान्त ग्रह पीडोपशान्तिनो पण इच्छुक होय ते उपकरणोमां ग्रहाधिकारोक्त उपकरणो पण मेलवी राखवां, तात्कालिक तैयारीमां आवश्यक पदार्थोनी तैयारी कराववी अने जिनाभिषेक, ग्रहाभिषेक अने ग्रहपूजनादि शान्ति इच्छुकना हाथे करावj. || श्रीशान्ति बादिवे तालीय अर्हद भिषेक विधिः || ।। ४०७ ।। Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ श्रीशान्ति बादिवेतालीय ॥ ४०८ ॥ अर्हद भिषेक विधिः ॥ AT GOD स्नात्र पूर्वे दिक्पालोने एक एक काव्यद्वारा आह्वान करी पाटला उपर पोतपोताना आलेखित स्थाने पुष्पाञ्जलि वडे वधावीने बेसाडवानु | कार्य करवानुं छे, पूजन, बलि, वस्त्रादि द्वारा तेमनो सत्कार अभिषेक पूर्ण थया पछी तेमना विसर्जन पूर्वे ज करवानो छे, अने ते पण बाकुला नाखीने नहि पण तत्प्रिय पुष्प,फल, वस्त्र, नैवेद्य, अर्पण करीने. अर्हदभिषेक - वस्त्र मंडपमा अथवा चैत्यमा ज्या अभिषेक करवा होय त्यां सभास्थान छोडी सामना मध्यभागे स्नात्र-पीठ बनावबुं, पीठ उंचुं २७ इंचनु, समचौरस २५ इंचनु कर, पीठ- विधिपूर्वक पूजन करी ते उपर भद्रासन (प्रणालिओ बाजोठ, २५ चौरस अने ९ इंच उंचं होय ते स्थापq, भद्रासन उपर चंदननो स्वस्तिक करी तेनी पुष्पादिबडे पूजा करवी. ए पछी भद्रासन उपर विराजमान करवा लावेल जिनप्रतिमा सामे उभा रही पुष्पांजलि लेइ - श्रीमत् पुण्यं पवित्रं कृतविपुलफलं मङ्गलं लक्ष्मलक्ष्म्याः , क्षुण्णारिष्टोपसर्गग्रहगतिविकृतस्वप्नमुत्पापघाति । सङ्केतः कौतुकानां सकलसुखमुखं पर्व सर्वोत्सवानां, स्नात्रं पात्रं गुणानां गुरुगरिमगुरोर्वश्चिता यैर्न दृष्टम् ॥१॥ रूपं वयः परिकरः प्रभुता पटुत्वं, पाण्डित्यमत्यतिशयश्च कलाकलापे । तज्जन्म ते च विभवा भवमर्दनस्य, स्नात्रे ब्रजन्ति विनियोगमिहार्हतो ये ॥२॥ छत्रं चामरमुज्वलाः सुमनसो गन्धाः सतीर्थोदका, नानालङ्कृतयो बलिर्दधिपयः सौषि भद्रासनम् । नान्दी मङ्गलगीतनृत्तविधयः सत्स्तोत्रमन्त्रध्वनिः, पक्वान्नानि फलानि पूर्णकलशाः स्नात्राङ्गमित्यादि सत् ॥३॥ सुरासुरनरोरगत्रिदशवर्त्मचारिप्रभु-प्रभूतसुखसम्पदः समनुभूय भूयो जनाः । For Private Personal use only चोलिन C CHS ॥ ४०८ ।। Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४०९ ।। जितस्मरपराक्रमाः क्रमकृताभिषेका विभो र्विलङ्घय यमशासनं शिवमनन्तमध्यासते ||४|| अशेषभुवनान्तराश्रितसमाजखेदक्षमो, न चापि रमणीयतामतिशयीत तस्याऽपरः । प्रदेश इह मानतोनिखिललोकसाधारणः, सुमेरुरिति तायिनः स्नपनपीठभावं गतः ||५|| आ काव्यो बोली कुसुमांजलि भद्रपीठ उपर नांखी, ते उपर प्रतिमा स्थापवी, वली पुष्पांजलि हाथमां लेइप्रोद्भूतभक्तिभरनिर्भरमानसत्वं, प्राज्यप्रवृद्धपरितोषरसातिरेकम् । कुर्युः कुतूहलचलोत्कलिकाकुलत्वं, देवा मुहूर्तमपि सोढुमपारयन्तः।।६।। रक्षार्थमाहितविरोधनिरोधहेतो-र्लोकत्रपाधिकविभुत्वविभावनाय । कल्याणपञ्चकनिबद्धसुरावतार, -संवित्तये च जिनजन्मदिनाभिषेकम् ॥७॥ यो जन्मकाले कनकाद्रिशृङ्गे, यश्वादिदेवस्य नृपाधिराज्ये । भूमण्डले भक्तिभरावनमैः, सुरासुरेन्द्रैर्विहितोऽभिषेकः ॥८॥ ततः प्रभृत्येव कृतानुकारं, प्रत्याहृतैः पुण्यफलप्रयुक्तैः । श्रितो मनुष्यैरपि बुद्धिमद्भिर्महाजनो येन गतः स पन्थाः || ९ || अद्यापि जनसमाजो; जनयति बुद्धिं विशुद्धबुद्धीनाम् । जन्माभिषेकसम्भ्रम- पिशुनसुनासीरनासीरे ॥१०॥ आ काव्यो बोली पुष्पांजलि प्रतिमा तरफ क्षेपवी, पछी प्रतिमा उपरथी पुष्पादि निर्माल्य उतारी पखाल करी पूजा करवी. जो 11 श्रीशान्ति वादिवे तालीय अर्हद भिषेकविधिः ॥ ।। ४०९ ।। Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४१० ।। पूर्व स्थापित प्रतिमा उपर ज अभिषेक करवा होय तो ते ज्यां बेठेल होय त्यांज ते उपर आ बधी विधि करवी. इतिप्रथमं पर्व । प्रतिमानी पूजा कर्या पछी पुष्पांजलि लेने सद्वेद्यां भद्रपीठे कृतसकलमहाकौतुकाक्षिप्तलोकं दत्त्वोल्लोचं समन्ताद्वरवसनगृहालम्बिपुष्पावचूलम् । वादित्र-स्तोत्र-मन्त्रध्वनिमुखरखरक्ष्वेडितोत्कृष्टिनादैः, सालङ्कारं स्वरूपं जननयनसुखं न्यस्य बिम्बं जिनस्य ॥ | १ || श्राद्धः स्नातानुलिप्तः सितवसनघरो नीरुजोऽव्यङ्गदेहो, दत्त्वा कर्पूरपूरव्यतिकरसुरभिं, धूपमभ्यस्तकर्मा । पूर्वं स्नात्रेषु नित्यं भृतगगनघनप्रोल्लसद्घोषघण्टा, टङ्काराकीरितारात्स्थितजननिवहं घोषयेत् पूर्णधोषः || २ || आ काव्यो बोली पुष्पक्षेष प्रतिमा सामे करवो, अने दश दिक्पालोनो पाटलो जे प्रथमथी शुद्ध करी तैयार राखेल होय ते प्रति संमुख स्थापी हाथमां पुष्पांजलि लेड़ - - भो भोः सुरासुरनरोरगसिद्धसङ्घाः, सङ्घातमेत्य जगदेकविभूषणस्य । निःश्रेयसाभ्युदयसत्फलपूर्णपात्रे, स्नात्रे समं भवत सन्निहिता जिनस्य || ३ || एवमाघोषणां कृत्वा, पुष्पपाणि: पवित्रवाक् । सर्वानावाहयेत् सम्य-ग्दिक्पालाँस्तत् तमुखो भवन् ||४|| आ वे पद्यो बोलीने पुष्पांजलि दिशापालोना पाटला उपर नाखवी, अने - इन्द्रमग्निं यमं चैव, निरृतिं वरुणं तथा । वायुं कुबेरमीशानं, नागान् ब्रह्माणमेव च ॥ ५ ॥ आ श्लोक बोली श्लोकोक्त क्रमथी पाटला उपर यथास्थान दिशापालोना मंडलो आलेखी दिक्पालो योग्य पुष्पोवडे वधावीने स्थापनीय मुद्राए नीचेना क्रमथी स्थापन करवा, इन्द्रादि प्रत्येकनुं काव्य बोलीने प्रत्येकनी स्थापनी करवी. ॥ श्रीशान्ति वादिवे तालीय अर्हद भिषेक विधिः ॥ ॥। ४१० ।। Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ को श्रीशान्तिवादिवेतालीय अहंद ।। ४११ ।। भिषकविधिः ॥ इन्द्र-प्राग्दिग्वधूवर ! शचीहृदयाधिवास !, भास्वकिरीट ! विबुधाधिप ! बज्रपाणे ! । एकावतारसमनन्तरसिद्धिशर्मन ! शक्र ! स्मरन् स्थितिमुपैहि जिनाभिषेके ॥६॥ आ काव्य बोली पूर्वभागमा इन्द्रना पद उपर पुप्पो चढावबां. अग्नि-त्रयीकान्ताऽत्यन्तक्षततततमोराशिविशदं, जगज्जातालोकं जनयसि जगन्नेत्रहुतभुक् । प्रसीदत्येतेन त्वयि मम मनो वाक् च सकला, लवत्येवाभ्यीभवति भवति स्नात्र समये ॥७॥ आ काव्य भणीने अग्निकोणमा अग्निपदे पुष्पो चढावबां. यम-प्रत्यूहसमूहापोहशक्तिरर्हत्प्रभावसिद्धैव । समवर्तिनिह रक्षा-कर्मणि विनियोग एव तव ॥८॥ आ काव्य बोली दक्षिण भागमा यमपदे पुष्पो चढावबां. निर्ऋति-मा मंस्थाः संस्थातो, युप्मदधिष्ठित दिगेव बीतापा । निर्ऋते निवृतिकारी, जगतोऽपि जिनाभिषेकोऽयम् ॥९॥ आ काव्य बोली नैर्ऋत कोणे निति पदे पुष्पो चढावा. वरुण - उदाररसनागुणकणितकिङ्किणीजालक - प्रबुद्धजघनस्थलस्थिरनिविष्टचेतोभुवः । ससम्भ्रमसमागता धनदराजहंसैः समा-नयन्तु मणिनूपुरान् वरुण ! वारनार्यस्तव ॥१०॥ आ कान्य बोलीने पश्चिम विभागे वरुणपदे पुप्पो चढावयां. For Private & Personal use only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ - श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हद भिषेक वायु-जाते जिनाभिषेके, विसृजन्तो विविधविटपि कुसुमानि । विकिरन्तु वायवो वो, मिथ्यात्वरजो वितानानि ॥११॥ आ काव्य बोली वायु कोणमां वायुपदे पुष्पो क्षेपवां, कुबेर-अहो विविधविस्मयाभ्युदयभूतिसद्भाजनं, भवन्ति भवभेदिनो भगवताऽभिषेकोत्सवाः । यतस्त्वमपि गुह्यकेश्वर ! समेत्य तत्कारिणः, करोषि परमेश्वरा प्रकटकीकटत्वानपि ॥१२॥ आ काव्य पढीने उत्तरदिशापाल कुबेरना स्थाने पुष्पो चढाववां. ईशान-पतत्पदपरिक्रमविधूर्णितक्ष्माधरं, कटाक्षकपिलिभवद्भुवन- भागमीशान ! ते । समस्तु करवर्तनाविवलित-ग्रहर्त-क्षमा, निधेरिह महोत्सवे सकलभावभाक् ताण्डवम् ॥१३॥ आ काव्य बोली ऐशानी विदिशामां ईशान पदे पुष्पक्षेप करवो. नाग- नागाः फणामणिमयूखशिखावबद्धशक्रा-युधप्रकरविच्छुरितान्तरिक्षम् । सद्यः कुरुध्वमभिषेकदिनं समन्ताद्, भूत्वा भवोद्भवभिदो भवने प्रदीपाः ॥१४॥ आ काव्य भणीने नागपदे (के जे वरुण पदना उपरि भागे होय छे), पुष्प क्षेप करवो. ब्रह्मेन्द्र-अद्याभिषेकसमये स्मरसूदनस्य, भक्त्यानता विकटपञ्चमकल्पतुल्याः । शोभा वहन्तु वरतूर्यपयोदनादै-रुत्कम्पिता नलिनयोनिविमानहंसाः ॥१५॥ विधिः ॥ । For Private & Personal use only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ आ काव्य बोली नागपदनी उपर अने इन्द्रनी नीचे आवेल ब्रह्मपदे ब्रह्मेन्द्र उपर पुष्प क्षेप करवो. ए पछी हाथमां पुष्पांजलि लेइ - इति दिगधिपकीर्तनाभिरक्षा-क्षपितसमस्तविपक्षवीतविघ्नः । कुरु सकलसमृद्धिसन्निधानात्, विजितजगत्यभिषेकमङ्गलानि ॥१६॥ आ काव्य बोली दिशापालोना पाटला उपर पुष्पांजलि नाखवी पछी चैत्यवंदन अने साधुवंदन करवू. इति द्वितीयं पर्व. चेत्यवंदनादि करीने - मुक्तालङ्कारविकार-सारसौम्यत्वकान्तिकमनीयम् । सहजनिजरूपनिर्जित - जगत्त्रयं पातु जिनबिंबम् ॥१॥ आ काव्य बोली प्रतिमा उपरथी पुष्प अलंकारादि उतारवा अने - भव्यानां भवसागरप्रतरणद्रोणीप्रसूतिः श्रियां, शश्वत्सत्कलकल्पपादपलतानिर्वाणरथ्या परा । सौरभ्यातिशयादवाप्तमहिमास्वामिन्प्रभावेन ते, प्राप्ताशेषसुखा सुखास्तकलिलाध्यामापि धूमावली ॥२॥ आ काव्य बोलतां धूप उखेववो, पछी पुष्पो लइने - किं लोकनाथ! भवतोऽतिमहातैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चिदुष्णीष देशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥३॥ आ काव्य भणीने जिनप्रतिमाना मस्तके पुष्प चढावबां. अने For Private & Personal use only ' Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-14 | बं. २ ॥ कलिका. श्रीशान्तिवादिवे तालीय ।। ४१४ ॥ अर्हद AAMA भिषेक विधिः ॥ आस्नात्रपरिसमाप्ते-रशून्यमुष्णीपदेशमीशस्य । सान्तर्धानाब्धारा-पातं पुष्पोत्तमैः कुर्यात् ॥४॥ आ श्लोकोक्त विधान प्रमाणे प्रत्येक अभिषेकना अन्तमां'किं लोकनाथ!' आ पद्य बोलीने प्रतिमानां मस्तक उपर पुष्पो चढाववां, पछी - पुण्यं पवित्रमपविद्धरजोविकार-मारम्भसम्भ्रमवतामुपकारिहारि । आद्यं भवाधिदवथूनभिषेकवारि, वाक्यं च वाक्यपरमार्थविदो विहन्यात् ॥५॥ शिवाय शिवविस्तरज्जयजयस्वनप्रोल्लसत्, पयोजकलकाहला कलितकाकलीकोमलैः । रटत्पटहपाटवप्रकटझल्लरीझात्कृतैः, पतत्प्रथममस्तु वो भगवतोऽभिपेकोदकम् ॥६॥ आ भावना काव्यो बोलवां, अने एक स्नात्रकारे हाथमां धूपधाणुं लेइने दशांग धूप मूकी - मीनकुरङ्गमदागुरुसारं, सारसुगन्धिनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम ॥७॥ आ काव्य बोलतां प्रतिमाने धूप उखेवबो, पछीना पण प्रत्येक अभिषेकने अन्ते एज काय बोल, अने धूप उखेववो, वादित्र नाद करावबो, पछी - सर्वोषध्यः सर्वतीर्थोदकानि, प्रायो गन्यं हव्य-दुग्धं दधीति । सर्वे गन्धाः सर्व सौगन्धिकानि, स्नात्राण्येषामन्तरालेषु धूपः ॥८॥ आ काव्यमां बतावेल सर्व औषधिओ, सर्व तीर्थजलो, परिगल गाय- घी, दूध, अने दहि, सर्व प्रकारना गन्धो, सर्व प्रकारना | ॥ ४१४ ।। Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ वादिवे ॥ ४१५ ॥ * सुगंधि द्रव्यो जे तैयार करेल होय तेओवडे स्नात्रो करवां, अने आंतरे आंतरे धूप उखेववो, प्रत्येक अभिषेकना प्रारंभमां “नमोऽहंत्" IN कहीने काव्य बोलवू, १ घृताभिषेक - श्रीशान्तिपायात् स्निग्धमपीक्षित-भवदवमूलाग्निशमनसामर्थ्यम् । उपहृतमिवामरेन्द्रैरभिषेकघृतं घृताम्भोघेः ॥९॥ आ काव्य बोली धृतनो अभिषेक करवो. तालीय २ दुग्धाभिषेक - अहंदउचितमभिषेककाले, मुनिगात्रपवित्रचित्रचारुफलम् । क्षीरं क्षीरोदोदक-लक्ष्मीं दधद् दद्यात् ॥१०॥ भिषेक विधिः ॥ आ काव्य बोली दूधनो अभिषेक करवो. ३ दध्याभिषेक - मङ्गल्यमिन्दुकुन्दा-वदातममरेश्वरोपनीतानाम् । दधिदधिजलधिजलानां स्मरणाय विविक्तचित्तानाम् ॥११॥ आ काव्य बोली दहिनो अभिषेक करवो. घृतादिना अभिषेको करतां प्रतिमा उपर दबतो हाथ फेरववो, प्रत्येक अभिषेकनुं काव्य बोलाई गया पछीअभिषेकपयोधारा, धीरेव ध्यानमण्डलाग्रस्य । भवभवनभित्तिभागान्, भूयोऽपि भिनत्तु भागवती ॥१२॥ आ काव्य बोलवू, ए पछी पण प्रत्येक अभिषेकना अंते ए काव्य बोलवू. अने त्रणे स्नानो थया पछी प्रतिमा उपरथी स्निग्धता दूर Jain Education Interation For Private & Personal use only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ थान ॥ ४१६ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अहंदभिषेकविधिः ॥ करवा माटे चंदन-केसर आदि कपूरनो चूरो घसी लुछणाथी लुछीने प्रतिमाने चिकास रहित करवी, प्रतिमा- अंगलुंछण थइ गया पछी - नानावणैर्वर्णकैर्गन्धलुब्ध-भ्राम्यद्भुङ्गीसार्थसङ्गीतरम्यै ।। घृष्टोन्मृष्टं चारुचीनांशुकान्तैः, कान्तं पातुः पातु बिम्बं जिनस्य।।१३॥ ___ आ काव्य बोलवू, घृतादिना अभिषेक पछी क्षीरोद समुद्र १, गंगा २, सिन्धु ३, रोहिता-रोहितांशा ४, हरिता-हरिकान्ता ५, शीता-शीतोदा ६, नरकान्ता-नारीकान्ता ७, रूप्यकूला-सुवर्णकूला ८, रक्ता-रक्तोदा नदीओ ९, पद्म १०, महापद्म ११, तेगिच्छि १२,, केसरी १३, पुंडरिक १४, महापुंडरिक ह्रदो १५ अने मागध-वरदाम-प्रभास तीर्थो १६ ना जलोबडे अनुक्रमे १६ अभिषेको करवा, आ तीर्थजलो पैकी एक गंगाजल सिवाय बीजा जलो प्रायः लभ्य नथी, तेथी यथा संनिहित २४ पवित्र मीठा पाणीना कुवाओथी जलो मंगावी तेमने कपूर कस्तूरी आदिथी सुवासित करी एक मोटा माटीना घडामां अथवा धातुना मांजेला बर्तनमां भरवां, भरेल बर्तन उपर स्वच्छ सफेद वस्त्र ढांक, अने विधिकारे तेना उपर जमणो हाथ राखी नीचेना श्लोको बोलीने तेमां सर्व जलोनु संनिधान करवू, श्लोको आ प्रमाणे छ: - क्षीरोद ! जाह्रवि ! सिन्धो ! रोहिते ! रोहितांशिके ! । जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥ हरिते ! हरिकान्ते ! त्वं, शीते ! शीतोदके ! तथा। जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥२॥ नरकान्ते ! तथा नारीकान्ते ! रूप्ये ! सुवर्णके !। जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥३॥ रक्ते ! रक्तोदके ! पद्म ! महापद्माह्वयह्रद ! । जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥१॥ तेगिच्छे ! केसरिन् ! पुण्ड-रीक ! त्वं हि महायुत !। जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥५॥ ॥ ४१६ ।। www.iainelibrary.org Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. मागधादिप्रभासान्त-लोकतीर्थाधिपाः सुराः । जिनचन्द्राभिषेकार्थे, जलेऽस्मिन् कुरुत श्रियः ॥६॥ तीर्थजल तैयार करी अनुक्रमे एक पछी एक काव्य बोलीने अभिषेको करवा, प्रत्येक अभिषेकनी आदिमां "नमोऽर्हत्०" अने | अन्तमा “अभिषेकतोयधारा" ए बोलवं. अने “मीनकुरंगमदागुरु,” आ काव्यधी धूप उखेवबो. "किं लोकनाथ ! भवतो" ए काव्य बोली मस्तक उपर पुष्प चढाववां. ५ क्षीरोदसमुद्रजलाभिषेक - मन्दारपुष्पमकरन्दहृतालिवृन्द-वृन्दारकप्रचयमेयकितानि लक्ष्म्याः । लीलाकटाक्षधवलानि जलानि दुग्ध-सिन्धोः पतन्तु मुनिगात्रपवित्रितानि ॥४॥ आ कान्य बोली क्षीरोदजलनो अभिषेक करवो. ६ गंगा जलनो अभिषेक - हेमाद्रिशृङ्गान्तरसद्मपद्म-महाहृदोद्भूतजलप्रवाहा । समुद्भवत्तुङ्गतरङ्गभङ्गा, करोतु गंगा भवतोऽभिषेकम् ॥१५॥ आ काव्य भणी गंगाजलनो अभिषेक करवो. ७ सिन्धु जलनो अभिषेक - गगनगामि गणेशविलासिनी, जनकटाक्षवलक्षमहाप्लवा । जितजत्रय ! सिन्धु धुनी ध्रुवा-ण्युपनयंत्वभिषेकजलानि ते ॥१६।। श्रीशान्तिबादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ || ४१७ ॥ ॥४१७ ॥ Jain Education Interional For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय ॥४१८ ॥ अर्हदभिषेक विधिः ॥ आ काव्य बोलीने सिन्धुजलनो अभिषेक करवो. ८ रोहिता-रोहितांशानां जलोनो अभिषेक - प्राकपाश्चात्याम्भोधि वेलातमाला-नासिञ्चन्त्यौ लोलकल्लोलपातैः । युक्तं कर्तुं लोकनाथाभिषेकं, प्राप्ते पातां रोहिता-रोहितांशे ॥१७।। आ काव्य बोली रोहिता रोहितांशा नदीओनां जलोनो अभिषेक करवो. ९. हरिता-हरिकान्ताना जलोनो अभिषेक - कल्पलताकलिकासुरभीणि, क्षान्तिनिधेस्तरसोपनयेताम् । सिक्तहरिद्धरिवर्षवनान्ते, स्नात्रजलानि हरिद्धरिकान्ते ॥१८।। आ काव्य भणीने हरिता-हरिकान्ताना जलोनो अभिषेक करवो. १० शीता-शीतोदाना जलोनो अभिषेक - मन्दरकन्दोत्तरकुरुदेव-कुरुविदेहविजयविक्रान्तम् । शीताशीतोदोदक-मर्हत्स्नात्रोद्यतं पायात् ॥१९॥ __ आ काव्य बोलीने शीता शीतोदाना जलोनो अभिषेक करवो. ११ नरकान्ता-नारिकान्ताना जलोनो अभिषेक - ॥४१८ ॥ For Private & Personal use only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हद भिषेक कुरुतां कल्पमहीरुहकुसुमरजःपटलपाटलैः सलिलैः । नरनारीकान्ते तव मज्जनकमहोत्सवारम्भम् ॥२०॥ आ काव्य भणी नर-नारीकान्ता नदीओना जलोनो अभिषेक करवो, १२ रूप्यकूला-सुवर्णकूलाना जलोनो अभिषेक - प्राप्ते पुनीतां प्रविहाटयन्त्यौ, ललामहैरण्यवतावकाशम् । लोकैकभर्तुर्भवतोऽभिषेकं, प्रत्याहृते रूप्यसुवर्ण कूले ॥२१।। आ काव्यवडे रूप्यकूला-सुवर्णकूलाना जलोथी अभिषेक करवो. १३ रक्ता-रक्तदाना जलोनो अभिषेक - अर्हदभिषेकपूर्त, दूरीकृतदुःखसम्भवाऽऽकूतम् । हरतु कलिकालकलिलं, रक्तारक्तोदयोः सलिलम् ॥२२॥ आ काव्य भणी रक्ता रक्तोदाना जलोए करी अभिषेक करवो. १४ पद्महदना जलनो अभिषेक - अभिषेकवारिहारिप्रभूतकिझल्ककल्कपटवासैः । उपनयतु हेमपद्मः, पद्मा पद्मालया देवी ॥२३॥ आ कान्य बोली पद्महदना जलबडे अभिषेक करवो. १५ महापद्महदना जलनो अभिषेक - स्नपयन्ती जिनं जात-सम्भ्रमासस्भ्रमच्छिदम् । करोतु पूतमात्मानं, महापद्मनिवासिनी ॥२४॥ विधिः ॥ AM ल Sh भाल S For Private & Personal use only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ce SSC GH ।। कल्याणकलिका. खं. २॥ मावि श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेक शा ॥ ४२० ॥ विधिः ॥ SHABANA आ श्लोक बोली महापद्महदना जले करी अभिषेक करवो १६ देवी तवोपनयता-मभिषेक-जलं दलं विभूतीनाम् पद्मपरागपिशंगं, तेगिच्छि निवासदकललिता ॥२५॥ आ काव्य बोली तेगिच्छि ह्रदना जलनो अभिषेक करवो. १७ केसरी ह्रदनो जलनो अभिषेक - देवी तवोपनयता-मभिषेक-जलं दलं विभूतिनाम् । पद्मपरागपिशंगं, तेगिच्छ निवासदललिता ॥२६।। आ काव्य बोली केसरी ह्रदना जलनो अभिषेक करवो. १८ पुण्डरीकह्रदना जलनो अभिषेक - भाति भवतोऽभिषेके, कणदलिकुलकिङ्किणीकलापेन । रुचिरोज्ज्वलेन जिन पौण्डरीकिणी पुण्डरीकेण ॥२७।। आ काव्य बोली पुण्डरीकहदना जलनो अभिषेक करवो. १९ महापुण्डरीक हृदना जलनो अभिषेक - रिपुसेनाक्लेशकुरङ्ग-संहतिं स्वापतेयशस्यानाम् । स्नपयन्ती जगदीशं, जयति महापौण्डरीकस्था ॥२८॥ आ कान्य बोली महापुण्डरीकहूदना जलनो अभिषेक करवो. २० मागध-वरदाम-प्रभास नामक तीर्थोना जलनो अभिषेक - कुर्वन्तु तेऽभिषेकं, प्रभासवरदाममागधादीनाम् । तीर्थानामधिपतयः, तत्सलिलैः सारसन्मतयः ॥२९॥ आ काव्य बोली मागध, वरदाम, प्रभास तीर्थोना जलनो अभिषेक करवो. पछी स्नात्रकारे हाथमां पुष्पांजलि लेइ || ४२० ।। For Private & Personal use only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ ४२१ ॥ श्रीशान्तिबादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ इति शस्तसमस्तसरित्-समुद्रतीर्थोदकादिघोषणया । स्मरयन्प्रागभिषेकं, छेकश्छेकं विधिं कुर्यात् ॥३०॥ आ काव्य बोली पुष्पांजलि नाखवी. इति तृतीयं पर्व ॥ सर्वोषधि-अभिषेक - सर्वजिनः सर्वविदः सर्वगुरोः सर्वपूजनीयस्य । सर्वसुखसिद्धिहेतोाय्यं सर्वोषधिस्नानम् ॥शा आ काब्य बोलीने सर्वोषधि मिश्रित जलनो अभिषेक करवो. सौगन्धिक-अभिषेक - स्वामिन्नित्यं निळलीकस्य तस्यन्, श्रद्धाभाजा पूतिदेहानुषङ्गम् । जन्मारम्भोच्छेदकृत्सोपयोगे, योगः स्नात्रे गन्धसौगन्धिकैस्ते ॥२॥ आ काव्य बोली सौगंधिक (अष्टगंध) जलनो अभिषेक करवो. स्वच्छजलाभिषेक - स्वच्छतया मुनिगात्रपवित्री-भावमुपेत्य जनस्य शिरस्सु । प्राप्तपदानि जलान्यपि भूयो, भूरिफलानि जयन्ति जगन्ति ॥३॥ आ काव्य भणी स्वच्छ जलना कलशोबडे अभिषेक करवो. कुंकुमजल अभिषेक - कथय कथं प्रशमनिघे-रन्तरलब्धावकाशविवशोऽपि । बहिराविरस्ति रागः, कुङ्कुमपङ्कच्छलाद्भवतः ॥४॥ ॥ ४२१ ।। Lio Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ ॥ ४२२ ।। GH आ काव्य भणी कुंकुम (केसर) नो अभिषेक करवो. कुंकुम-चन्दनद्रव-अभिषेक - भवति लघोरपि महिमा, महति यतः कुङ्कुमद्रवः सहसा । हरिचन्दनानुकार, विभर्ति भवतोऽङ्गसङ्गत्या ॥५॥ आ काव्य बोली कुंकुम-चन्दन जलनो अभिषेक करवो. उपरोक्त पांच अभिषेको कर्या पछी घसेल चंदनद्रवनी बाटकी लेइ - कुकुमहृयां यामिव, सन्ध्याशरदभ्रविभ्रमभ्राजम् । चन्दनचर्चाभ्यर्चाऽम मर्चन्ति ते कृतिनः ॥६॥ आ काव्य बोली प्रतिमाना सर्वांगे चंदन- विलेपन करवू.. उपनयतु भवान्तं शान्तमत्यन्तकान्तं, सरससुरभिगन्धालीढलीनद्विरेफम् । सकलभुवनबन्धोर्बन्धविध्वंसहेतो-भृगमदमयपट्टोद्भासिवक्त्रारविन्दम् ॥७॥ आ काब्य बोली प्रतिमाने कस्तूरीना जाडा रस वडे पत्र रचना करवी. भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धविभ्रमे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोद्भ- वसिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥८॥ आ काव्य बोली प्रतिमाने चन्दन गोरोचनना द्रवथी तिलक करवू, अने उपर सरसव चोटाडवा अने - तवेश निर्गन्थगणाग्रगामिनो, न युज्यतेऽपास्तरतेरलङ्कृतिः । तथापि तस्यां कृतिनः कृतादराः, तरन्ति भव्या भवदुःखसागरम् ।।९।। अन्यदपाकृतपढ़-प्रस्वेदामयपवित्रगात्रस्य । स्नात्रकथापि विरुद्धा, विशेषतो वीतरागस्य ॥१०॥ ॥ ४२२ ॥ Jan Education Intematon For Private Personal use only www.jainentbrary.org Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. ॥ ४२३ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ तिष्ठतु तावदलङ्कृति-रभिषेको गन्धधूपमाल्यादि । भवनमपि नाथ माभून्ननु भवतस्त्यक्तसङ्गस्य ॥११॥ तयदि कृतानुकारं, श्रद्धातिशयविशिष्टवसुविनियोगम् । आगममविसंवादं निरपायमहाफलोपलं भाभ्युदयम् ॥१२।। भवतः पूर्वावस्था-मास्थाय गुरोर्गुरूपदेशं च । कुर्वन्त्यभिषेकादीन्, प्रद्वेषः को विभूषायाम् ॥१३॥ युग्मम् ।। जिनभवनबिम्बपूजा-यात्रास्नात्रादिविभ्रमे भङ्गम् । मिथ्याप्ररूपणाकृत् - कुर्यादपवर्गमार्गस्य ॥१४॥ अभिषेकादिमहोत्सव-मुपलभ्य परेऽपि परमदेवस्य । परिपृच्छय कुतूहलिनो, जायन्ते गुणविशेषविदः ॥१५॥ चैत्यालयेन केचित्, केचिद्धिम्बादपास्तरागादेः । केचित्पूजातिशयाद् - बुध्यन्ते केचिदुपदेशात् ॥१६॥ भवतो भवने बिम्बे, पूजातिशये यथार्थमुपदेशे । यतमानस्तीर्थकरत्वनामगोत्रं समारभते ॥१७॥ इति धनरत्नसुवर्ण-सग्वस्त्रविलेपनाद्यलङ्कारैः । जनितादरो विजयते, जगद्गुरोर्जन्मसन्तानम् ॥१८॥ आ काव्यो बोलीने प्रतिमाने यथोपलब्ध आभूषणो पहेरावां. ॥ इति चतुर्थ पर्व ॥ बलिढौकन - एवं स्नातविलिप्ताऽलङ्कृतजिनबिम्बजातपरितोषः । कुर्वीत बलिविधानं, निधानमत्यन्तसौख्यानाम् ॥१।। सर्वैर्धान्यैः सर्वपुष्पैः समस्तैः, पाकैः शाकैः कन्दमूलैः फलैश्च । Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४२४ ।। शुभ्रैर्दध्नः पिण्डखण्डैः समृद्धं कुर्याद्बह्वारम्भमारम्भवृत्तः ||२|| शक्तित्रितयाध्यासित-रूपत्रयवत्त्रिविष्टपाग्रस्य । क्षतकलिवलिपुञ्जत्रय-मुचितं भुवनत्रयाधिपतेः ||३|| आ काव्यों बोलीने प्रतिमाने आगे सर्व धान्यो, पकान्नो, फल फुलो, शाको, दधिखंडो विगेरे यथाप्राप्त बलि ढोवी, बलिना त्रण पुंज करवा. धान्यो पक्कान्नो एक पुंजमा, शाको दधिखंडो एक पुंजमां, अने फलो पुष्पो एक पुंजमा ढोवां. ए पछी मंगलदीवो तैयार करी भुवनत्रयैकदीपस्य, चारु कुर्वीत वीतविक्षेपः । मङ्गलगीतसनाथं, निर्वर्धनकं प्रदीपेन || ४ || आ काव्य बोली वाजिंत्रो अने मंगलगीतो पूर्वक मंगलदीवो उतारवो. मल्लास्फोटनवल्ग-न्नन्दीजयघोषधूर्णितदिगन्तम् । आरात्रिकावतरण - कमस्तु वः श्रेयसे जैनम् ||५|| आ काव्य बोली पूर्ववत् वाजिंत्रोना घोप साधे आरती उतारवी. भृङ्गारनालनिर्झर-झात्कारैराती हृतात्तापम् । आरात्रिकानुमार्ग प्रवर्तिनी वारिधारा वः ||६|| आ काव्य बोली नालवाला कलशवडे आरतीनी जेम दक्षिणावर्त फरती त्रणवार जलधारा देवी, अने तैयार राखेल अग्निपात्रमां जराक जल रेडवुं. इदं जिनजगत्त्रयातिशयरूपसंपद्भवत् प्रभूततरविस्मयाकुलितमानसैर्दर्शितम् । पुरन्दरपुरस्सरैः सुरपुराधिराजैः पुरा, जिनेन्द्रलवणाकुवतारणकमस्तु वः श्रेयसे ||७|| आ काव्य बोलीने प्रतिमाने लवण उतारर्खु, अने लवण अग्निमां नाखबुं दिक्पालोने बलिप्रक्षेप 11 श्रीशान्ति वादिवे तालीय अर्हद भिषेक विधिः ॥ ।। ४२४ ।। Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. का श्रीशान्तिवादिवे खं० २॥ तालीय ॥ ४२५ ।। अर्हद भिषेक विधिः ॥ बहुवर्णपिष्टजातक-परस्परक्षेपपूरिताकाशम् । शृङ्गच्छटाभिरामं, दिक्पालेभ्यो बलिं दद्यात्।।८॥ पुनराघोषयेच्छान्तिं, सर्वदिक्षु क्षिपन् बलिम् । समाहितात्मा कुर्वाण-श्चैत्यसद्मप्रदक्षिणाम् ॥९॥ आ कान्यो बोली दिक्पालोना वर्णानुसारी पिष्ट (लोट) ना बनावेल अनेकविध नैवेद्यनो दिक्पालोने पोतपोतानी दिशा तरफ बलिक्षेप करवो, प्रथम दिक्पालने नाम निर्देश करीने बलि क्षेपबो, अनन्तर - श्रीसंघजगज्जनपद-राज्याधिपराज्यसन्निवेशानाम् । गोष्ठीकपुरमुख्याणां, व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् ॥१०॥ आ काव्य बोली प्रत्येक दिशामां निचे प्रमाणे शांतिघोपणापूर्वक बलि-क्षेप करवो. श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवत् । श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु । श्रीराज्याधिपानां शान्तिर्भवतु । श्री राज्य संनिवेशानां शान्तिंभवत् । श्री गोष्ठीकानां शान्तिर्भवतु । श्री पुरमुख्याणां शान्तिर्भवतु । श्रीपौरजनस्य शान्तिर्भवतु। ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा ॥ प्रत्येक शान्तिपदने अन्ते नैवेद्य प्रक्षेप करवो, जो जिनचैत्य महोटुं होय तो तेनी भमतीमां प्रदक्षिणा करता पूर्वादि १० दिशाओमां बलिदान करवू, पुप्पोत्क्षेप करबो, धूप उखेववो, जलाचमन आपQ. पछी चैत्यवंदन माटे सर्वने सावधान करवा.. घण्टाशंखनिनादा-द्यनुगतमुद्घोपयेच गम्भीरम् । चैत्याभिवन्दनऽति · प्रस्फूर्जत्स्पष्टरोमाञ्चः ॥११।। आ काब्य बोली सूचना रूपे घंट तथा शंख वगडाववां, अने ते बंध करावी - आयातकिन्नरनरामरसिद्धसाध्य-गन्धर्वपन्नग निशाटनभश्चराद्याः । Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय ॥ ४२६ ॥ अर्हद भिषेक विधिः ।। भूत्वा प्रसन्नमनसो मुनिपादपद्मं, वन्दध्वमायतभवार्णवयानपात्रम् ।।१२।। आ काव्य भणी सर्वने चैत्यवन्दनार्थे बोलावी अभिषिक्त प्रतिमा आगळ विधिपूर्वक चैत्यवंदन करवू वर्धमान स्तुतिओ कहेवी अने | स्तवन कही जयवीराय कहेवा पछी - विहिताभिषेकमभिषे-कवृत्तवृत्तप्रवृद्धसंस्तुतिभिः । सुरवृन्दवन्दितांघे-र्वन्दित्वा भगवतो बिंबम् ॥१३॥ पुनराघोषणापूर्वं,सममेव समाहितः । चितीर्वन्देत पन्द्यानां, देवकाप्टप्रतिष्ठताः ॥१४॥ आ काव्य बोली प्रासादनां प्रतिष्ठित मूलनायक आदि प्रतिमाओने सर्व जणे साथे वन्दन करवू, अने दिक्पालादि आमंत्रित देवोर्नु विसर्जन करवू. विसर्जन-विधि- विसर्जन विधिमां अधिक तैयारीनी आवश्यकता नथी. चेलेत्क्षेपैः पुष्पधूपादिदानैः, सन्मानादीन् दिक्पतीनां विसर्गम् । कृत्वाऽशेषान् शेषदिव्यावतारा-नारात्प्राप्तान् प्रेषयेत्स्वाधिवासान् ॥१५।। आ काव्य भणी दिक्पालोनुं नैवेद्य तेमना वर्णानुसार वस्त्रो (वस्त्रखंडो), पुष्पो (शक्य होय तो पुष्पमालाओ) अने धुप तैयार करीअर्हदभिषेकदर्शित-सांनिध्यनिरस्तकल्मषोल्लाघाः । गच्छन्तु यथास्थानं, ये केचिदुपागता दिव्याः ॥१६॥ आ काव्य भणी प्रत्येक दिक्पालनी दिशामां तेनो प्रिय बलि, प्रिय वर्णनो वस्त्र खंड, पुष्प अथवा पुष्पमाला फेंकवी, तथा धूप उखेववो अने नमस्कार करवो, प्रत्येक दिशामां एज काव्य बोली ते ते दिशापालनो प्रिय बलि, तेना वर्णनुं वस्त्र अने पुष्पमाला फेंकी, धूप उखेवी, नमस्कार मुद्रा देखाडी, विसर्जन करवू. ॥ ४२६ ।। Jan Education International For Private Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण था कलिका. खं०२॥ ॥ ४२७ ॥ ए बधुं कर्या पछी तरत ज "नमोऽर्हतः"कही "भो भो भव्याः " इत्यादि बृहच्छांति कहेवी. ग्रहपीडोपशान्तिमा विशेष - श्रीशान्तिग्रहपीडोपशान्तौ तु, प्रतिमा स्नपयेद् बुधः । नवग्रहपरिवारां, प्रभामण्डलमण्डिताम् ॥१७॥ वादिवेकृतपूजाबलीयांसः, सातिरेकबलाग्रहाः । भवन्ति दुर्बलाः सौम्या, मध्यस्था बलशालिनः ॥१८॥ तालीय ततो यथा स्ववारेषु, यथाशक्ति समाहितः । ग्रहाभिषेकं कुर्वीत, वीतव्यामोहविप्लवः ॥१९॥ अर्हदग्रहपीडानी शांति निमित्ते अभिषेक करवो होय ते विद्वाने नवग्रहना परिवारवाली अने भामण्डल भूषित एवी प्रतिमा अभिषेक माटे | भिषेकलेवी, केमके जिनाभिषेकमां पूजावाथी बलवान ग्रहो अधिक बलिष्ठ बने छे, हीनबली सौम्य बने छ, अने मध्यवली बलवान बने छ, || विधिः ।। तेथी जे ग्रहने बसवान बनावी शांति करवी होय तेना वारना दिवसे (राहु केतुनी पूजा शनिवारे करवी.) शक्ति अनुसार सामग्री मेलवीने मानसिक स्थिरतापूर्वक अविपर्यासपणे ग्रहोनो अभिषेक करवो. कृत्वार्हतः स्नात्रविधि विधाना-दनन्तकल्याणजुषो यथोक्तम् । ततः- प्रभामण्डलमण्डितानां, कुर्याद् ग्रहाणां क्रमशोऽभिषेकम् ॥२०॥ अनन्त कल्याणना भागी आईदनुं प्रथम पूर्वोक्त विधिपूर्वक स्नात्र विधान करीने ते पछी तेज-युतिवडे दीप्त ग्रहोना अनुक्रमे अभिषेक करवा. यथावर्णबलिसग्भि-यथावर्णविलेपनैः । यथोक्तदक्षिणादानैः,कृत्वा सानुग्रहान् ग्रहान् ॥२१॥ ततश्च संघं गच्छं वा, यथासंभवमेव वा । वस्त्रपात्रानपानाद्यैः, पूजयेत् प्रयतो यतीन् ॥२२॥ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ।। ।। ४२८ ।। ग्रहना वर्ण प्रमाणे नैवेद्यो, तथा मालाओ, वर्णप्रमाणे विलेपनो, अने शास्त्रोक्त दक्षिणादानो बडे ग्रहोने अनुकूल कर्या पछी यथाशक्ति संघ, गच्छ अथवा तो यथासंभव साधुओनी वस्त्र, पात्र, खाद्य, पेयादि पदार्थो वडे प्रयत्न पूर्वक पूजा भक्ति करवी. सूर्यनो वर्ण हिंगलोक समान छे. तेनो बली रक्तशालिनो करवो, गोल घीमां रांधेल भातनुं साधुओने भोजन आप, चंद्रवो दक्षिणादानमां आपको. १ सोम श्वेत वर्णनो छे, बलि पण उज्जवल षष्ठि धान्यनो करवो, पुष्पो कुंद मोगरादिनां चढाववां, घृत दूधपाकनुं साधुओने भोजन वहोराव अने शंखनुं दान आपबुं. २ मंगल जासूदना फूल जेबो रक्त होइ ते वर्णना धान्योनो बलि करवो, लाल कणेर आदिनां पुष्पो चढाववां, साधुओने घृतप्रधान घेवर आदिनुं भोजन बहोरावयुं अने रक्त चंदननु दान आप. ३ बुध पीतवर्ण (हरितवर्ण) होइ बलि अने पुष्पमाला पण तेवा ज वर्णनी चढाववी, साधुओने क्षीरनुं भोजन बहोराव अने सुवर्णनी दक्षिणा आपवी. ४ बृहस्पति पण पीतवर्णनो छे. बलि अने पुष्पमाला पीतवर्णनी बनाववी, भोजन दहिं भातनु आप अने दक्षिणामां पीतवस्त्रो आपवां. शुक्र श्वेतवर्णनो छे, बलि अने पुष्पमाला सोमना जेवी करवी, भोजन साधुओने घृतनुं आप, दक्षिणामां पगरखांनी जोडी आपवी. ६ शनी कइंक कृष्णवर्णनो होइ बलि अने पुष्पमाला पण एवा ज वर्णनी बनाववी, भोजन तिल पिष्टनुं ( पीलेल तिलोनुं ) आपवुं, दक्षिणामां ध्वज आपवो. ७ राहु अतिशय कालो छे, बलि पण काला वर्णनो करवो, अने पुष्पमाला पण तेवा ज कृष्णवर्णनी बनाववी, भोजन खीचडी (काला तल नाखेल खीचडी) नुं आपनुं, दक्षिणामां लोहनुं पात्र आपवु. ८ 11 श्रीशान्ति बादिवे तालीय अर्हद भिषेक विधिः ॥ ।। ४२८ ।। Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. | खं०२॥ श्रीशान्ति बादिवे ॥ ४२९ ॥ तालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ __ केतु धुमाडाना जेवा रंगनो छे, बलि अने पुष्पमाला पण एवाज वर्णनी चढावबी, भोजन अनेक जातना अन्ननु आपवू, अने दक्षिणामां | कालो कांबलो आपवो. ९ ग्रहोनी शान्ति इच्छनार माणसे उपरोक्त प्रकारे नवग्रहमंडित जिन प्रतिमा उपर अभिषेक विधि करी ग्रहोना अभिषेक पूर्वक बलि विधान, पुष्पारोपण, भोजन, दान दक्षिणा करी ग्रहोनी शांति करवी, अने पछी संधने जमाडवो, तेवी शक्ति अथवा सगवडना अभावे अपवादे पोतानो गच्छ जमाडवो, ए पण न बने तो त्यां जे कोइ साधुओ हाजर होय तेमनी ज वस्त्र, पात्र, अन्न, पानादिवडे आदरपूर्वक पूजा भक्ति करवी. ___ अभिषेक गुणगर्भित धर्मकथा - प्रशस्यमायुष्यमथो यशस्यं, जयास्पदं संपदमावहन्तम् । हेतुं सदा सौख्यपरम्पराणां, करोत्यपुण्यो न जिनाभिषेकम् ॥२३॥ प्रशंसनीय, आयुष्यदायक, यशोवर्धक, जयप्रद, संपत्तिदाता अने निरन्तर सुख परंपरानो हेतु आ जिनाभिषेक पुण्यहीनथी करी शकातो नथी. इति विहतविपत्पराक्रम, स्नपनविधि विधिमहतोऽर्हतः ।। प्रतिसमयमनुस्मरन्ति ये, सकलसुखास्पदतां ब्रजन्ति ते ॥२४॥ आ प्रमाणे विधि योग्य श्रीअर्हन्तनी स्नात्रविधि के जे विपत्तिना बलने हटावनारी छे, अने जेओ तेने हर समय याद करे छे, | तेओ सर्व सुखोनु प्रस्थान बने छे. MPA AS PAR For Private & Personal use only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति पंचमं पर्व. इति श्री शान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेक विधिः संपूर्ण । । अष्टोत्तरी ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४३० ॥ २० अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः - (ओगणीसमा सैकाना पूर्वार्धमां चालती) उपकरण (१) प्रतिमा ४ पंचतीर्थी-आदिनाथ-अजितनाथ-शान्तिनाथ-पार्श्वनाथनी (२) १०८ निवाणनां जल, (३) सेवंतरा पुष्प ४३२, (४) पंचवर्णा फूल सेर ५, (५) सेवनना पाटला २, (६) रूपादिकना कलश ४, (७) बीजा पाटला १२ (८) माटली मण १। नी चोखी, (९) धोयेल अंगलूहणां ४, (१०) कुंभ कोरा २, (११) त्रांबाकुंडी १, (१२) अगरबती सेर १, (१३) श्रीफल पाणींचा. ९, | (१४) कमल वरणुं गज ११, (१५)केसर टांक २ तथा ४, (१६) बरास टांक ४, (१७) दीवनां नालियेर १०८, (१८) साकरना गांगडा १०८, (१९) सोपारी १०८, (२०) लविंग १०८, (२१) सींघोडा १०८, (२२) श्रीफल १०८, (२३) बदाम १०८, (२४) एलची डोडा १०८, (२५) द्राक्ष १०८, (२६) खारेक १०८, (२७) पान १०८, (२८) बीजां फल यथाशक्ति आणवां, (२९) दोकडा (अधेला) २७, (३०) खाजां १०८, (३१) सूखड 'चंदन' (३२) चौखा शेर २०, (३३) अखंड पैसा ४, (३४) डाभ समूलो. (३५) बलिबाकुल-जवार चणा-गेहुं सेर ५, (३६)लापसी पुडला नैवेद्य, (३७) पक्वान्न-धान-शाक रांधेल, (३८) वास टांक २, (३९) पंचामृत - दुध, दहि, घृत, साकर, गोल, (४०) आरती १, (४१) मंगल दीवो १, (४२) धूपधाणां २, (४३) पीतलनी वाढी २, (४४) ल ab | || ४३० ।। Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीवा २, (४५) सरावला २, (४६) रूनी दीवेट १०८, (४७) घृत सेर २, (४८) रूपा नाणां २, (४९) लाडवा १०८, (५०) | - गेवासूत्र ०॥ सेर, (५१) धोतिया जोडा १२ अथवा २०, (५२) पडधोतियां २ अथवा ४, (५३) चीणीयुं कपूर टांक १, (५४) कंकावटी चा सतानाच १, (५५) कंकु, (५६) मीठं, (५७) माटी, (५८) चमर २, (५९) घंट १, (६०) यथाशक्ति थाली ७, (६१) वाटकी ५, (६२) शतस्नात्र विधिः ॥ मुहपत्ती १२ अथवा २०, (६३) पछेडी धोयेली २, (६४) गोलपापडी सेर ५। घंटाकर्णना मंत्रे १०८ वार गाळी बालकोने वहेंची देवी.' ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ gaअष्टोत्तरी पूर्वकृत्य-मंत्रसंग्रह मण्डप प्रतिष्ठामंत्र-ॐ भूरसि भूतधात्रि विश्वाधारे नमः ॥ पीठ स्थापनमंत्र-ॐ अर्हत्पीठाय नमः । पीठे प्रतिमा स्थापन मंत्र - "ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलाक्यमहिताय अत्र पीठे तिष्छ तिष्ठ स्वाहा ।" घृतप्रदीप प्रतिष्ठा मंत्र-ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनदृष्टिसंपर्कात्, तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः स्वाहा ॥ पंचामृत भरणयोग्य माटलीलेखन मंत्रः- "ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवांस्तानाशय नाशय स्वाहा ।" माटली स्थापन मंत्रः - ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । माटलीमध्ये पंचामृत क्षेपमंत्रः - ॐ ह्रीँ भः भः भः । १. आ सामाननी सूची सं. १८८७ मां लखावेल प्रति उपरथी उतारी छे. Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । अष्टोत्तरी ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शतस्नात्र विधिः ।। पंचरत्न प्रतिष्ठामंत्र - ॐ नाना रत्नौधयुतं, सुगंधिपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद् विचित्रवर्णं, मंत्राढ्यं स्थापनाबिम्बे स्वाहा ।। पंचामृत प्रतिष्ठामंत्रः . जिनबिम्बोपरि निपतद् घृतदधिदुग्धादिभिः सुपरिपूताः गंधोदकसंमिश्रा, पंचसुधा हरतु दुरितानि । सर्वोषधि प्रतिष्ठामंत्रः . ॐ ही सर्वोषधि संयुतया, सुगंधया चर्चितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिबं, मंत्रिततन्नीरनिवहेन स्वाहा ।। तीर्थजल प्रतिष्ठामंत्रः . ॐ ह्रीँ भः जलधिनदीहूदकुंडेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मत्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि शुद्धव्यर्थम् स्वाहा।। चंदनमंत्रः - ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय शशांकहारगोक्षीरधवलाय अनन्तगुणाय भव्यजनप्रबोधाय अमृतम्रावणं कुरु कुरु स्वाहा। जलमंत्रः . ॐ आपोऽप्काया एकेन्द्रियजीवा निरवद्याऽर्हत्पूजायां निर्व्यथा निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु न मेऽस्तु संघट्टनहिंसापापमहदर्चने स्वाहा । वासमंत्रः - 'ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु गन्धात् गृहाण गृहाण स्वाहा ।' पुष्पमंत्रः- 'ॐ नमो यः सर्वतो मेदिनी पुष्पवती पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥' || ४३२ ॥ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥४३३ ।। तात्कालिक पूर्व क्रिया - शुभदिनमुहुर्ते स्नात्र करावनारने चन्द्रबल होय ते दिवसे स्नात्र करवाने स्थाने भूमिशुद्धि करीने सधवा स्त्री पासे गुंहली कराववी, ने उपर श्रीफल १ मुकवू. ते उपर परनालियो बाजोट धोड़ धूपाबीने पूर्व अथवा उत्तर दिशा संमुख मांडवो, पछी स्नात्रकारो शुद्ध वस्त्रो पहेरी, हाथे कंकण बांधीने ४ प्रतिमाओ आदिनाथ, अजितनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथनी पूजीने परनालिआ बाजोट उपर अनुक्रमे जोडे स्थापन करे, आगल चोखा सेर २५, श्रीफल १ नी भेट धरवी, चारे जणे एक जण केसर-चंदन घसावीने वाटकी २ मां भरावे, १ देवपूजा माटे अने २ जी ग्रह आलेखवा सारूं. पछी अग्रेसर श्रावक हाथे कंकण बांधी, तिलक करीने ४ प्रतिमाओनी पूजा करे, पछी पाटले पंचामृतनी माटली धोइ धूपीने तैयार करे, तेमां केसर-चंदननो साथियो करी ते उपर “ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा " आ मंत्र लखीने तेमां रूपानाणुं मूके, तेने कांठे मिंडल मरोडाफली ने जड सहित डाभ बांधे, पछी माटली इंढाणी उपर मुके, १ जण सामे माटलीने झाली ने उभो रहे, "ॐ ह्रीं भः" आ मंत्र माटलीने कांठे हाथ देइने ३ वार बोली १०८ निवाणर्नु पाणी माटलीमा भरे, गोली (माटली) थापीने तेमां चन्दन केसर कपूर पुष्प नाखवां, पंचामृत पण तेमां नाखीने ते उपर तासतो (रंगीन वस्त्र) ढांकवो, अने ते उपर १ जण हाथ राखीने सात स्मरण गणे, १ जण धूप करे. नवग्रह पूजा विधि - सूर्यने रतांजणी (रक्त चन्दन) नो आलेख, अने एकला केशरनी पूजा, परवालानी मालाये मंत्र गणबो, गोल धाणीनो लाडवो मूकबो. सूर्यनो मंत्र - ॐ ह्रीं सांशकसूर्याय सहस्रकिरणाय नमो नमः । ॥४३३ ॥ Jan Education Interneta For Private & Personal use only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४३४ ॥ प्रार्थनापद्मप्रभजिनेन्द्रस्य, नामोच्चारेण भास्कर ! । शांतिं तुष्टिं च पुष्टिं च, रक्षां कुरु जयिश्रियम् ॥१॥ इति सूर्यपूजा। चन्द्रमाने एकला चन्दननो आलेख तथा पूजा, स्फटिकनी मालाये मंत्र गणवो, मरमरानो लाडवो ढोवो. चन्द्रनो मंत्र - ॐ रोहिणी पतये चन्द्राय ॐ ह्रीँ हाँ ही चन्द्राय नमः । प्रार्थना - चन्द्रप्रभजिनेन्द्रस्य, नाम्ना तारागणाधिप !। प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥२॥ इति चन्द्रपूजा । मंगलने केसरनो आलेख, केसरनी पूजा, प्रवालानी मालाये मंत्र गणबो, गोल धाणीनो लाडवो मूकवो, लाडवो तलना पण मुकाय. मंगलनो मंत्रः - ॐ नमो भूमिपुत्राय भुर्भुकुटिलनेत्राय चक्रवदनाय हः सः मंगलाय स्वाहा । प्रार्थना सर्वदा वासुपूज्यस्य, नाम्ना शान्तिं जयश्रियम् । रक्षां कुरु धरासूनो !,अशुभोऽपि शुभो भव ॥३॥ इति मंगलपूजा - बुधने चन्दन केसरनो आलेख, अने तेनीज पूजा, केरवानी मालाए मंत्र गणबो, चणानी दालनो लाडवो मूकबो. ॥ ४३४ ॥ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ बुधनो मंत्र - ॐ नमो बुधाय ऑ श्री ओं नः दः स्वाहा ॥४॥ प्रार्थना - विमलानन्तधर्माराः, शान्तिः कुंथुर्नमिस्तथा । महावीरश्च तन्नाम्ना, शुभो भव सदा बुधः ! ॥४॥ इति बुध पूजा। बृहस्पतिने गोरोचननो आलेख, गोरोचननी ज पूजा, चणानी दालनो लाडवो मूकवो, केरवानी मालाए मंत्र गणवो । बृहस्पतिनो मंत्र- ॐ ग्राँ ग्रौँ ! ही बृहस्पतये सुरपूज्याय नमः ॥५॥ प्रार्थनाऋषभाजितसुपार्था-श्वाभिनन्दनशीतलौ । सुमतिः संभवः स्वामी श्रेयांश्च जिनोत्तमः ॥५॥ एतत्तीर्थकृतां नाम्ना, पूज्योऽशुभः शुभोभव । शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिं च, कुरु देवगणार्चित ! ॥६॥ इति गुरुपूजा। शुक्रने एकला चन्दननो आलेख अने पूजा, स्फटिकनी मालाए मंत्र गणवो, मरमरनो लाडवो मूकवो. शुक्रनो मंत्र- ॐ यः अमृताय अमृतवर्षणाय दैत्यगुरवे नमः स्वाहा ॥ प्रार्थना - पुष्पदन्तजिनेन्द्रस्य, नाम्ना दैत्यगणार्चित ! । प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥७॥ For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ | अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४३६ ।। नवग्रह मंडलालेख इति शुक्रपूजा ॥६॥ ॐ बुधाय नमः ॐ शुक्राय नमः ॐ चंद्राय नमः शनैश्चरने चुआकस्तूरीनो आलेख, तथा पूजा, अकलबेरनी मालाए मंत्र गणवो, अडदनी दालनो | शुक्र-६ सोम-२ लाडवो मूकवो. शनिनो मंत्र- ॐ शनैश्चराय आँ क्राँ ही क्रोडाय नमः ॥७॥ प्रार्थना - श्री सुव्रतजिनेन्द्रस्य, नाम्ना सूर्यागसंभव ! । प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु *गुरवे नमः ॐ सूर्याय नमः ॐ भौमाय नमः जयश्रियम् ॥८॥ सूर्य-१ मंगल-३ इति शनि पूजा । राहुने चूआ कस्तूरीनो आलेख, अने पूजन, अकलबेरनी मालाए मंत्र गणवो, अडदनो लाडवो मूकवो. * केतवे नमः शनैश्चराय नमः राहवे नमः राहुनो मंत्र- ॐ वाँ श्री ब्रःवः वः पिंगलनेत्राय कृष्णरूपाय राहवे नमः स्वाहा ॥८॥ शनैश्वर- राहु-८ प्रार्थना - श्रीनेमिनाथतीर्थेश-नाम्ना त्वं सिंहिकासुत ! । प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥९॥ इति राहुपूजा ॥ ४३६ ॥ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ || अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४३७ ।। केतुने यक्षकर्दमनो आलेख अने तेनीज पूजा, सिंदुरिया स्फटिकनी मालाए मंत्र गणबो, मगनी दालनो लाडवो मूकबो. केतुनो मंत्र - ॐ काँ की मैं टः टः टः छत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमः स्वाहा ॥९॥ प्रार्थना . ___ राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे । श्रीमल्लिपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो शान्ति श्रियं कुरु ॥१०॥ इति केतुपूजा। जे ग्रह पीडाकारक होय तेनी पूजा तेमज तत्प्रतिबद्ध जिननी पूजा करवी, अने प्रार्थनानो श्लोक बोलीने तेमना वर्णानुसारी वर्णनी पुष्पांजलि चढाववी, एक साथे घणा ग्रहो पीडाकारक होय अथवा सर्व ग्रहो एक काले पीडाकारक होय तो आ लखेल विधिथी ग्रहपूजन कर. मुख्य श्रावके शेवननो १ पाटलो धूपवास पुष्पे वासित करी, ते उपर अघाडानी अथवा शरीडानी लेखणे चन्दन केसरे ९ ग्रह आलेखवा, ग्रह उपर त्रांबानाणुं प्रत्येके मूकबुं, उपर राते वस्त्रे ढांकिये. ते उपर अणियाला पान, चोखा ढगली, राती सोपारी, नाणुं प्रत्येके एक एक मूकीये, पछी पंचवर्णा फूल नालियेर पसलीमा लेइने - जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, जुषन्तु पूजाबलिपुष्पधूपान् । ग्रहा गता ये प्रतिकूलभावं, ते सानुकूला वरदा भवन्तु । आ पद्य भणी उपर मूकीये, इति नवग्रह पूजा विधि । ॥ ४३७ ॥ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरी ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ या शतस्नात्र विधिः ॥ दिक्पाल पूजाविधिः - त्यार पछी बीजो शेवननो पाटलो धूपवास पुष्पोथी वासित करीने, चन्दन केसरथी ते उपर दश दिक्पालो आलेखवा, अने पूजवा, उपर पीत वस्त्र ढांकी प्रतिमा आगल पाटलो मूकबो, उपर पान १० फूल, सोपारी, चोखा, नाणुं मूकवां, ते उपर श्रीफल १ मुकवू. अष्टमंगल पाटली स्थापन विधि वली पाटली १ अष्टमंगलनी आलेखवी. नाणुं, पान, सोपारी मूकवी, अने ते पछी - नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणिंदपडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥१॥ ए गाथा बोली पाटली प्रतिमानी सामे मूकवी. ते पछी अग्रेसर श्रावक शुद्ध वस्त्र पहेरी, हाथे कंकण बांधी, तिलक करी ४ प्रतिमाओने पूजे, अने ते पछी दश दिक्पालोनुं आह्वान करे, त्यां प्रथम बलिबाकुल सर्व एक थालीमा राखीने वास बडे भूतबलि मंत्रथी मंत्रे. भूतबलिमंत्रः - ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्बसाहणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किंनरकिंपुरिसमहोरगगरुलसिद्धगंधब्बजक्खरक्खसपिसायभूयपेयसाइणीडाइणी पभिईओ | जिणघरनिवासिणो नियनिय निलयहिआ पविआरिणो संनिहिया असंनिहिया ते सव्वे इमं विलेवण धूवपुष्फफलपईवसणाहं बलिं पडिच्छन्ता तुठ्ठिकरा भवन्तु, पुट्ठिकरा भवन्तु संतिकरा भवंतु, सिवंकरा भवंतु, सुत्थं जणं कुणंतु सब्बजिणाणं | SAHA ।।। ४३८ ।। " For Private & Personal use only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ नम ईशानाय ॐ नम इन्द्राय ॐ नमोऽग्नये ॥ कल्याण-| कलिका. खं० २॥ संनिहाणप्पभावओ पसन्नभावत्तणेणं सब्वत्थ रक्खं कुणंतु सव्वत्थ दुरियाणि नासें तु सव्वाऽसिवमुवसमें तु संतितुट्टिपुट्ठि सिवसुत्थयण कारिणो भवंतु स्वाहा । || अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॐ नमो ब्रह्मणे ॐ नमो नागाय ॐ नमः कुबेराय ॐ नमो यमाय ॐ नमो वायवे __ ॐ नमो वरुणाय | ॐ नमो निर्ऋतये आ मंत्रे करीने भूतबलिं मंत्रीने तेमांथी अर्ध बलि जुदी राखीने दिक्पालोनुं आह्वान करवू, ते आ प्रमाणे - दिकृपाल स्थापना - ॐ इंद्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ | स्वाहा ॥१॥ ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ।।२।। GH Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ m.|| अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ।। GAR ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥३॥ ॐ निरीतये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥४॥ ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥५॥ ___ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥६॥ ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥७॥ ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥८॥ ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् गृहे अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा ॥९॥ Aalha C थी ।। ४४० ॥ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४४१ ।। अष्टोत्तरीपूजासमये आगच्छ २ बलिं गृहाण २ ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्नगरे अस्मिन् स्वाहा ॥१०॥ ए मंत्रोमानो एक एक मंत्र पूर्वादि एक एक दिशा संमुख उभा रही बोलवो, अने ते ते दिशामां बलिक्षेप करवो, पूर्वा आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, ऊर्ध्व अने अधोदिशामां अनुक्रमे आह्वान करीने बलि नाखवी, १ जण पाणी छांटे, १ जण धूप उखेवे, १ जण चंदन छांटा नाखे, १ जण फल ढोवे, आ प्रमाणे बलिक्षेप प्रसंगे आह्वान करनार, बलि फेंकनार अने बीजा ४ उपर जणावेल मलीने ६ माणसो जघन्यपणे जोइये. त्यार पछी मुहपत्ति लेई इरियावही पडिक्कमी ४ थुइए देववंदन करवुं स्तवनने स्थाने लघु शान्तिस्तव कहीये, १०८ तारनी दीवेटना दीवा २ करवा, १ दीवो प्रतिमाने जमणे पासे मूकवो, अने बीजो डावे पासे, पछी बे जणा घी सिंचता रहे, २ जणा चामर बींजे, १ जणे बाजोट उपर रक्त वस्त्र पाथरी प्रति पूजाए १ १ पान मूकी ते उपर चोखानी ढगली करी उपर सोपारी मूकवी फल पक्कान्न ढोवा, १ जण माटली मांहिथी भरी भरीने पाणीनां कलशा आपे, ४ जणा गाथा भणनारना हाथमां कंकण सहितकलशा ४ आपे, परनालिया बाजोट आगे त्रांबाकुंडी मांडवी, तेमां श्रीफल १ मूकवुं, स्नात्र करनारने आभूषण पहेराववां, न होय तो चंदनना आभरण करवां, फूलनो हार पहेराववो, अने तेने जघन्यथी पण ८ दिवसनुं ब्रह्मचर्य उच्चरावनुं, पछी ते ४ गाथा भणावे, तेनो अनुक्रम - ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ वरकणय संखविदुम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइअं वन्दे स्वाहा || १|| ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्व भया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा || २ || - ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४४१ ।। Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHI अष्टोत्तरी ।। कल्याण कलिका, खं०२॥ शतस्नात्र विधिः ॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सब्वाइं स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणवासी अ। जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ ए गाथा ४ भणीने ४ कलशा ४ प्रतिमाओ उपर साथे ढालवा, १ जण प्रतिमानां अंग लूंछे, चन्दन पुष्पे पूजे, एज प्रमाणे १०८ वार करी स्नात्रपूजा पूरी करवी, जो पाणी वध्यु होय तो बीजा पासे पखाल करावी ते कामे लगाडवू, पछी खांड अने उन्हा पाणीथी प्रतिमाओ उपरथी चीकाश उतारी प्रतिमाओ साफ करीने पूजे. पछी कलश ४ ऊगटी धोई धूपीने चोखा पाणीए भरे, मांहि फूल, चन्दन, नाखी उपर अंगर्छणां ढांकी, स्नात्र करी, चैत्यवंदन करे, स्तवनने बदले अजितशान्ति कहे. जयवीयराय पर्यन्त कहीने कुसुमांजलि भणाववी. स्नात्र विधिए ४ कलश ढालवा, पछी पूजा करीने नैवेद्य ढोर्बु, आरती मंगलदीवो करबो. पछी धूप उखेवीने चैत्यवंदन करवू, अने स्तवनने ठेकाणे तिजयपहुत्त कहेg. पछी अष्टोत्तरी स्नात्र करावनारने उभो राखी तेना बे हाथोमां कुंभ मूकबो, तेमा रूपानाणुं मूकबु, कुंभने कांठे गेवासूत्र बांधी, फूलमाला पहेराववी, पछी १ जण मोटी शान्ति कहे, अने २ जण न्हवणना पाणीथी अखंड धाराए ते कुंभ भरे, घरमां सर्वत्र ते जलने छांटे, जे मांगे तेने पण ते जल आपे.. बलिबाकुल जे राख्या छे ते वडे दिक्पालोने विसर्जन करे, संघ भक्ति करवी, स्नात्रकारोने यथाशक्ति श्रीफलादिक आपे. शान्तिकरूप स्नात्रमा ४ गाथाओ भणीने अभिषेक करवो पण जो स्नात्र पौष्टिक होय तो ४ गाथा पछी - “ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिग्विभागकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय अस्मिन् गृहे पूजाप्रस्ताव शान्तिकविधौ पूजकस्य शान्तिं ऋद्धिं कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा ।" For Private & Personal use only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ आ मंत्र बोलीने अभिषेक करवो अने अन्तमा - सर्वमंगलमांगल्यं, सर्व कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१॥ आ मंगल श्लोक बोलीने समाप्ति करवी. इति अष्टोत्तरी स्नात्रविधिः संपूर्णः || अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ अथ अष्टोत्तरशतस्नात्रविधिः ॥ (सत्तरमा सैकाना पूर्वार्धमां चालती') उपकरणो (१) प्रतिमा ४ "आदिनाथ १ अजितनाथ २ शान्तिनाथ ३ अने पार्श्वनाथ ४ नी पंचतीर्थी अथवा चोवीशी" (२) 'प्रणालियो' | बाजोट १ (३) कलश ८ (४) कुंडी १ 'पखालना पाणी माटे' (५) कोरो कुंभ १ (६) कुंडी १ “कलश भरवाने" (७) धूपधाणुं १ (८) दियावडयुक्त वस्त्र २ "एक फलादि ढोवा, बीजुं कुंभ हेठे मूकवांने" (९) श्रीफल ४ प्रतिमा आगल ढोवा, श्रीफल ३ बीजा कुंभ उपर ग्रह उपर अने दिक्पालो उपर मूकवा, कुल ७. (१०) कुंभ उपर ढांकवा 'रातुं वस्त्र' गज १ (११) नव ग्रहोने माटे वस्त्र गज ९ धोलुं गज २ रातुं गज २ पीलुं गज १ छींट गज १ कालु गज ३ (पाठान्तरे नीलुं गज ३ कालु गज १) (१२) दोकडा ९ (त्रांबाना पैसाना अडधियां) (१३) सोपारी ९ (१४) पान ९ (१५) चोरवानी ढगली नव ९ (१६) दिक्पालोना पाटला उपर १॥ सवा | १. संवत् १८४८ फाल्गुन बदि ५ भौमवारे । शुभ भवतु । आदर्श पुस्तक अंतिम लेख पुष्पिका ।। २. संवत् १६३९ ना वर्षमां लखेली प्रति उपरथी लीधी छे For Private Personal use only ॥ ४४३ ।। Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४४४ ॥ गज रातुं वस्त्र, सोपारी १० पान १० दोकडा १० (१७) १०८ कूपनुं पाणी (१८) गंधोदक (१९) सेवतीनां फूल ४३२ (२०) पान १०८ (२१) परदेशी नालियेर १०८ (२२) कमल काकडी १०८ (२३) सोपारी १०८ (२४) सींघोडा १०८ (२५) खारेक १०८ (२६) | द्राक्ष १०८ (२७) टोपराना ककडा १०८ (२८) साकरना कटका १०८ (२९) निसाणी (रायण) १०८ (३०) लविंग १०८ (३१) | एलची डोडा १०८ (३२) लाडूडी (न्हाना लाडवा) १०८ (३३) खाजली (न्हानी पुडी जेवडां खाजा १०८) (३४) चोखा शेर ८ तथा १० (चावल पक्का ३ तथा ३॥ शेर) ना ढगला १०८ करवाने (३५) 'कोरोबलि गोहूं जवचणा, सरसव, मलीने आसरे एक सेर, ए आह्वाननी बलि,' (३६) 'विसर्जननी बलि भात, लापसी मालपुडा, (पुडला) चोलाना बाकला, जवारना बाकला, खीचडो, अने चणाना बाकला, घी, चंदन, केसर सहित.' (३७) अगर टांक ७ तथा ९ (३८) बरास कपूर गांगडा ४ (३९) चीणीयुं कपूर मंगलदावामां मूकवाने वाल ४ नो ककडो १ (४०) केसर टांक ३ (४१) सुखड वाटकी २ एक पूजाने माटे, बीजी तिलकने माटे. (४२) रूपामहोर 'चोखंडा रुपैया' २ स्नात्रजल (पंचामृत) कलशमां नाखवाने माटे एक अने बीजो पखाल जलनी कुंडीमां मूकवा माटे' (४३) नैवेद्य सेर ४ तथा ५ ने आसरे, (४४) सरावला २ मोटा, (४५) १०८ तांतणनी दीवेट २ (४६) गेवासूत्र टांक ९ ने आसरे, (४७) घी दीवा सारु सेर ३ आसरे (लगभग ८६ तोला) (४८) श्रावक ८ ब्रह्मचारी मले तो तेवा न मले तो ८ अने जघन्यथी ३ दिवसनो गुरु मुखे नियम करावी कांकण बांधीने तैयार करवा.' (४९) फलावली जे मले ते ढोवा माटे लेवी. (५०) सर्वोषधि 'स्नात्रजलमां नाखवाने सर्वोषधि – डाभ, हलदर, वरिहाली, वालो, नागरमोथ, पीपरामूल, लविंग, कंकोल, जायफल, जावंतरी, नखला, सूखड (चंदन) अने शिलारस, आ १३ चीजोनुं चूर्ण ते सर्वौषधि. ॥ ४४४ ॥ arww.jainelibrary.org Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४४५ ।। अष्टोत्तरी स्नात्रनां पूर्वकृत्यो प्रथम अबोट पाणी छंटावी, भूमि शुद्ध करावी, शुद्ध सधवा स्त्री पासे कुंकुमनी गोहली देवरावबी, उपर चोखानो साथियो पूरावी, सोपारी मूकीये, परनालियो बाजोट मांडी ते उपर चंद्रुओ बांधवो, ध्वजा २ आरोपीने ते पछी पूर्व सन्मुख अथवा उत्तराभिमुख प्रतिमा ४ स्थापन करवी. अने पछी ग्रह, दिक्पालोनी स्थापना करवी. ग्रह स्थापन विधि पछी एक पाटले सूखड केसरथी नवग्रह आलेखीये, यंत्रने अनुसार ग्रहोनो आलेख करवो. ॐ आदित्याय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ।। ॐ चन्द्राय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ भौमाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ बुधाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४४५ ।। Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॐ बृहस्पतये सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण | २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ शुक्राय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २॥ ॐ शनैश्चराय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २ ॥ ॐ राहवे सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २॥ ॐ केतवे सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय आगच्छ २ बलिं गृहाण २ अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रोत्सवे पूजां गृहाण २ शान्तिं कुरु २॥ आ प्रमाणे नव ग्रहनां मंत्र बोली सूखडनी पूजा तथा चोखानी ९ ढगली करवी, रविने द्राक्ष, चन्द्रने सेलडी, मंगलने सोपारी, बुधने नारंगी, गुरुने जम्बेरी, शुक्रने बीजोरु, शनिने खारेक, राहुने नालियेर, केतुने दाडिम, ए फल ग्रहोने मूकवां, नहीतर आठ सोपारी एक नालियेर मूकीये. ___ शुक्र अने चन्द्रने श्रीखण्ड (चन्दन), मंगल अने सूर्यने रक्तचन्दन, बुध अने गुरुने वाव 'पीतद्रव्य-गोरोचन' अने शनि-राहु-केतुने a || ४४६ ।। For Private & Personal use only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलिका. कुंकुम (आ द्रव्योथी अनुक्रमे ९ ग्रहोने पूजवा) ॥ कल्याणरविने कणेर, चन्द्रने मुचकुन्द, मंगलने जासूल, बुधने चंपक, बृहस्पतिने शतपत्र (कमल अने ए न मले तो चंपकादि पीत पुष्पो) Ima॥ अष्टोत्तरी शुक्रने जाइ, शनिने मालती, राहुने कुन्द अने केतुने विविध वर्णना पूष्पो चढावां, पक्वान्न लाडू प्रमुख ढोवां. शतस्नात्र खं० २॥ रविने रातुं कापड गज १ चन्द्रने श्वेत कापड गज १ मंगलने रातुं कापड गज १ बुधने छींटर्नु कापड गज १ (नीली छींटर्नु) | विधिः ॥ बृहस्पतिने पीलु कापड गज १ शुक्रने श्वेत कापड गज १ शनिने कालं कापड गज १ राहुने कालुं गज १ केतुने कालु गज १, एम ॥ ४४७ ।। गज गज कापड प्रत्येक उपर मूकवू, अने श्रीफल १ उपर मूकबुं. पछी अक्षत वास पुष्प अने जल लेइने - “ॐ आदित्य-सोम-मंगल, बुध-गुरु-शुक्राः-शनैश्चरो-राहुः । केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ॥१॥ आ श्लोक बोलीने पुष्पवास जलवडे अर्घ आपदो, ॥ इति ग्रह स्थापन विधिः ॥ दिक्पाल स्थापना विधि - बीजे सेवनने पाटले अथवा थालमां सूखडे करी आ रीते दश दिक्पालो आलेखवा, - ॐ इन्द्राय वज्रायुधाय एरावणवाहनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत् तिष्ठ २। ॐ अग्निमूर्तये शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ || २ पूजां गृहाण पूजां यावत्तिष्ठ २॥ ॥ ४४७॥ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४४८ ।। ॐ यमाय दक्षिणदिगधिष्ठायकाय मषिवाहनाय दण्डायुधाय कृष्णमूर्तये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २। ॐ नैर्ऋतये खङ्गहस्ताय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण | २ पूजां यावत्तिष्ठ २॥ ॐ वरुणाय पश्चिमदिगधिष्ठायकाय मकरवाहनाय परशुहस्ताय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे | अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २।। | ॐ वायवे वायव्याधिपतये ध्वजहस्ताय हरिणवाहनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २।। ॐ धनदाय उत्तरदिगधिष्ठायकाय गदाहस्ताय धननिधानाऽऽरूढाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २। ॐ ईशानाय ऐशान्यधिपतये शूलहस्ताय वृषाधिरूढाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २॥ ____ॐ नमो ब्रह्मणे राजहंसवाहनाय ऊर्ध्व लोकाधिष्ठायकाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ पूजां गृहाण २ पूजां यावत्तिष्ठ २। ला || ४४८ ॥ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G SHA |॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॐ पातालनिवासेभ्यो नागेभ्यः पद्मवाहनेभ्यः सायुधसवाहनसपरिजनेभ्यः इह अमुकगृहे अष्टोत्तरी स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ ॥ कल्याण-14 आगच्छत पूजां गृह्णीत २ पूजां यावत्तिष्ठत २ । कलिका. ए मंत्रो बोली प्रत्येक दिक्पाल आगे चोखानी ढगली करवी, पान १०, सोपारी १०, श्रीफल १, दोकडा १० अने रातुं कापड खं०२॥ || सवा गज मूकबुं, सूखड केसर फूले पूजी अर्घ आपवो, अने - "ॐ इन्द्राग्नियमा नैर्ऋतवरुणौ समीरणकुबेरौ । ईशानब्रह्मनागा जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ॥१॥ ॥ ४४९ ।। ए गाथा बोली हाथमां जल लेइ फूल सहित धारा देवी अने - “भो भो इन्द्रादयो दिक्पालाः स्वस्वदिशि विघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञायां सावधानास्तिष्ठन्तु ।" ए बोलतां हाथ जोडीने दिक्पालोनुं संनिधापन करवू, दिक्पाल स्थापना कर्या पछी बहार जइने दिक्पालोने बलिक्षेप करवो. इति दिक्पालस्थापनाविधिः । __बलिक्षेप विधि - प्रथम कोरी बलि – गेहुँ, जव, सरसव अने चणा ए चार धान अणरांध्यां, धूप, फूल, घसेल सूखडनी वाटकी आ सर्व पदार्थो लइने बहार जवू, अने दश दिशाना दिक्पालो- आह्वान करवा पूर्वक ते ते दिशामां नाखवू, पूर्व सामे रहीने - ॐ इन्द्राय पूर्व दिगधिष्ठाय काय ऐरावणवाहनाय सहस्रनेत्राय वज्रायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । । ॥ ४४९ ॥ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- ॥ अष्टोत्तरी कलिका. शतस्नात्र विधिः ॥ खं० २॥ ॥ ४५० ॥ ॐ अग्निमूर्तये शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ यमाय दक्षिणदिगधिष्ठायकाय महिषवाहनाय दण्डायुधाय कृष्णमूर्तये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ नैर्ऋतये खङ्गहस्ताय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ वरुणाय पश्चिमदिगधिष्ठायकाय मकरवाहनाय परशुहस्ताय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ वायवे वायव्याधिपतये, ध्वजहस्ताय हरिणवाहनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे | आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ___ ॐ धनदाय उत्तरदिगधिष्ठायकाय गदाहस्ताय धननिधानाऽऽरूढाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ ईशानाय ऐशान्यधिपतये शूलहस्ताय वृषाधिरूढाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । J॥ ४५० ॥ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरी ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ___ॐ ब्रह्मणे राजहंसवाहनाय ऊर्ध्वलोकाधिष्ठायकाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे | आगच्छ २ बलिं गृहाण २ स्वाहा । ॐ पातालनिवासेभ्यो नागेभ्यः पद्म वाहनेजयः सायुध-सवाहन-सपरिजनेभ्यः इह अमुकगृहे अष्टोत्तरीस्नात्रमहोत्सवे | आगच्छत आगच्छत बलिं गृह्णीत २ स्वाहा । इति दिशिविदिशिदिक्पालाह्वान विधि । शतस्नात्र विधिः ।। ४५१ ॥ २१ प्रकीर्णक प्रतिष्ठा - गृह-तडाग-देवादि-प्रतिष्ठानां समुच्चयः । आचारार्कात् समुद्धृत्य, संग्रहेऽत्र निवेशितः ॥१८२।। घर, तलाव, चतुर्निकायना देवो आदिनी प्रतिष्ठाविधिओनो संग्रह आचारदिनकरना आधारे आ परिच्छेदमा दाखल कर्यो छे. (१) गृहप्रतिष्ठा विधिः - सूत्रधारे शास्त्रानुसारे बनावेल घर, राजमहेल, सामान्य घर आ बधानी प्रतिष्ठा विधि सरखीज होय छे. प्रथम ते प्रतिष्ठाप्य घरमां जिनबिम्ब लावी बृहत्स्नात्रविधिथी स्नात्र भणावी, ते जल घरमां बधे छांटवू, ते पछी बहारना मुख्य दरवाजाना उंबराने अने उत्तरंगने निर्मल जले धोइ उम्बरा उपर ॐ कार अने उत्तरंग उपर "ही" कार लखवां, ते पछी "ॐ ह्रीं देहल्यै नमः। ॐ हींद्वारश्रियै नमः । आ मंत्रोबडे त्रण त्रण बार बासक्षेप करीने बनेनी प्रतिष्ठा करवी. ॥ ४५१ ॥ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण-I कलिका. खं. २॥ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४५२ ॥ बहारनी डावा हाथ तरफनी शाखा उपर 'ॐ गंगायै नमः' जमणा हाथनी शाखा उपर “ॐ यमुनायै नमः" आ मंत्रो बोलीने जल, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य चढावबा पूर्वक ३ ३ वार बासक्षेप करीने प्रत्येक द्वारांगनी प्रतिष्ठा करवी. ते पछी द्वारमा प्रवेश करी बधी भींतोनी "ॐ अं अपवारिण्यै नमः" आ मंत्रबडे ३ ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी. ते पछी शालाओना द्वारोनी उपर्युक्त द्वार प्रतिष्ठा विधिथी प्रतिष्ठा करवी. प्रत्येक थांभलाने पंचामृत छांटी "ॐ श्रीं शेषाय नमः ।" आ मंत्रे वासक्षेप करी प्रतिष्ठा करवी. पछी मध्यनी शालाओनां द्वारो, बहारना स्तंभो अने भींतोनी पूर्वोक्त विधिथी प्रतिष्ठा करीने तेमना मध्यमां नीचेनी भूमिनी 'ॐ | खें' मध्यदेवतायै नमः ।' आ मंत्र बडे ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी. ते पछी ओरडाओमा “ॐ आँ श्रीँ गर्भश्रियै नमः ।" आ मंत्रद्वारा ३ ३ वार वासक्षेप करी ते प्रतिष्ठित करवा. ओरडाओना द्वारो, भींतो, स्तंभोनी प्रतिष्ठा पूर्वे कह्या प्रमाणे करवी. ते पछी रसोडानी "ॐ श्रीं अन्नपूर्णायै नमः । भण्डारघरमा - "ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः ।" शयन घरमां - "ॐ शों संवेशिन्यै नमः ।" उपरनी सर्व भूमिओमां - "ॐ आँ क्रो किरीटिन्यै नमः ।" अश्वशालामां - "ॐ रे रेवंताय नमः ।" कोठारमा - "ॐ श्री अन्नपूर्णायै नमः ।" जलघरमां - "ॐ वं वरुणाय नमः ।" देव पूजा घरमां – “ॐ ह्रीं नमः ।" हस्तिशालामां – “ॐ श्रीं श्रियै नमः ।" । गाय भैस बकरी वृषभ बांधवाना स्थानमा - "ॐ ही अडनडि किलिकिलि स्वाहा ।" ॥ ४५२ ॥ Jan Education International For Private & Personal use only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यो || अष्टोत्तरी ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शतस्नात्र विधिः ॥ सभास्थानमां - "ॐ मुखमण्डन्यै नमः ।" आ बधा स्थानोमा जणावेल मंत्रोबडे पच्चीस वस्तुओनो बनेलो वासक्षेप नाखीने बधानी प्रतिष्ठा करवी. आ बधाना द्वारोनी द्वारविधिथी, | स्तंभोनी स्तंभविधिधी अने भींतोनी भित्तिविधिधी प्रतिष्ठा करवी. अने पछी आंगणामां आवी कलश प्रतिष्ठा प्रसंगे जणावेल विधिधी दिक्पालोनुं आह्वान करी शान्ति बलि देवी, अने त्यां शान्तिक पौष्टिक करवू. पोताना गुरुनो अन्न वस्त्र वडे अने पोतानी ज्ञातिनो भोजन ताम्बूल बड़े सत्कार करवो. हाटनी प्रतिष्ठामां . ॐ श्री वाञ्छितिदायिन्यै नमः । तापसोना खूपडाओनी प्रतिष्ठामा - ॐ ह्रीं क्लू सर्वायै नमः । घासचाराना मकानमां - ॐ शों शान्तायै नमः। जलप्रपाना मकानमा- ॐ वं वरुणाय नमः । मठनी प्रतिष्ठामा - ॐ ऐं वाग्वादिन्यै नमः । धातु घडवानी शालामां - ॐ भूतधात्र्यै नमः । भोजनशालाना मकानमां - ॐ श्री अन्नपूर्णायै नमः । होम शालामां . ॐ रं अग्नये नमः । आ सामे लखेल मंत्र वडे ३ ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी अने आ बधा स्थानोना द्वारो, छातो, स्तंभो, भींतोनी प्रतिष्ठा | द्वार आदिनी उक्त प्रतिष्ठा विधि प्रमाणे करवी. नीच जातिना घरोनी प्रतिष्ठा विधि अहीं जणावी नथी, केम के तेओनुं प्रतिष्ठा विधान ब्राह्मणादि विधिकारो कराबता नथी. (२) जिनबिम्ब-परिकर प्रतिष्ठाविधिः परिकर जो जिनबिम्बनी साथे होय तो बिम्बप्रतिष्ठामां तेनी वासक्षेप मात्रथीज प्रतिष्ठा थइ जाय छे, पण परिकर जो जुद् होय तो तेनी प्रतिष्ठा पण जुदी कराय छे. परिकरनो आकार नीचे लखेल प्रकारनो होय छे. Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४५४ ।। बिम्बने नीचे हाथी सिंह अने कीचना रुपकोथी युक्त सिंहासन होय छे, बीजा मत प्रमाणे सिंहासनना मध्यभागे वे हरिणोना तोरणाकारने नीचे धर्मचक्र होय छे. अने तेनी बने बाजुना भागोमां ग्रहोनी मूर्तियो होय छे. जिन बिंबना बन्ने पडखे चमरधरो, तेमनी बहार वे अंजलि हस्त मनुष्यो, बिम्बना मस्तक उपर त्रण छत्रो, तेनी बने बाजुना भागोमां जेमणे शुंडोमां सुवर्णना कलशो पकडेला छे एवा वे श्वेत हाथी, हाथीओ उपर झांझ बगाडतां पुरुषो, तेमनी उपर मालाधरो तेमनी उपर शंख बगाडनारा अने तेनी उपर कलश. उपर लख्या प्रमाणे परिकर तैयार थाय त्यारे विम्बप्रतिष्ठोचित मुहूर्त जोवरावी, भूमिशोधन, अमारी घोषणा, संघ आमंत्रण पूर्वक प्रतिष्ठा विधि प्रमाणे परिकरनी प्रतिष्ठा विधि करवी. परिकर प्रतिष्ठा लगभग कलश प्रतिष्ठाने मलती छे. परिकरना अभिषेको जिनबिंबना स्नात्रजल वडे करवा. अभिषेक करी परिकरने कलशनी जेम सुगन्धी पदार्थों बडे पूजवो, सात धान्यो बडे बधाववो, वे आंगलियो उंची करी तर्जनी मुद्राए अने क्रूर दृष्टिए डावा हाथमां जल चुलुक भरी परिकर उपर जल आछोटवुं, अने अक्षतभृत पात्र भेट करवुं, ते पछी "ॐ ह्रीँ श्रीँ जयन्तु जिनोपासकाः सकला भवन्तु स्वाहा । " आ मंत्र त्रण बार भणी गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य बडे परिकरने अधिवासित करी दशियावड वस्त्र ओढाडं. ए पछी जे जिननुं परिकर होय ते जिननुं चैत्यवंदन करी ४ स्तुतिथी देववंदन करवुं त्रीजी स्तुति कह्या पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कही श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउस० बंदण० अन्नत्थ० १ लो० नमो० स्तुति श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश - मुकुटाभ्यर्चितां श्रुत देवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति ||४|| - - - ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४५४ ।। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥ J॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति ! कः श्रुतसरस्वतिं गमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥५॥ शान्तिदेवतायै करेमि का. अन्नत्थ० १ नव० नमो. स्तुति - उन्मृष्टरिष्टदुष्ट-ग्रहगतिदुःस्वप्नदुनिमित्तादि । संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥६॥ क्षेत्रदेवतायै करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० नमो. स्तुति - यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥७॥ भवनदेवतायै करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥८॥ शासनदेवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति - या पाति शासनं जैन, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयाच्छासनदेवता ॥९॥ श्रीअम्बादेव्यै करेमि काउ० अन्नत्य० १ नव० नमो० स्तुति - अम्बा बालांकितांकासौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालङ्कार- चित्रसिंहासनस्थिता ॥१०॥ समस्तवेआवञ्चगराणं संति० सम्मदिट्ठि० अन्नत्थ० १ नव० नमोऽर्हत् स्तुति - सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्यकराः सुराः । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥११॥ प्रतिष्ठादेवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ लो० नमो० स्तुति - For Private Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरी N ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ शतस्नात्र विधिः ॥ यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जिनपरिवारं सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१२॥ १ नोकार गणी बेसी नमुत्थुणं० जावंति चेइआई० नमो० स्तवन - ओमिति नमो भगवओ, अरिहंतसिद्धायरिय उवज्झाय । वरसब्बसाहुमुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणव नमो तह, भगवईइ सुअदेवयाए सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरइअ-वरुणवाउकुबेर ईसाणा । बंभो नागुत्ति दसण्ह-मविअ सुदिसाण पालाणम् ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्डं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाणय णवण्हं ॥४॥ साहतस्ससमक्खं मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइ नवकारओ धणिअं ॥५॥ ए पछी परिकरने आडो पडदो बांधी अंदरथी सर्वजणने दूर करी लग्ननो शुभ समय आवतां नीचेना मंत्रो बोली परिकरना ते ते अंगो उपर त्रण त्रण वार सूरिमंत्राभिमंत्रित वासक्षेप करवो - ॐ ह्रीँ श्री अप्रतिचक्रे धर्मचक्राय नमः । आ मंत्रथी धर्मचक्र उपर. ॐ घृणि चन्द्रां ऐं क्षौँ ठः ठः क्षाँ क्षी सर्वग्रहेभ्यो नमः । आ मंत्रथी ग्रहो उपर. ॐ ह्रीं श्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः । आ मंत्रथी सिंहासन उपर. ॐ ह्रीं श्रीं अर्हद्भक्तेभ्यो नमः । आ मंत्रथी हाथ जोडेल उभेल मनुष्य उपर. ॐहीं चं चामरकरेभ्यो नमः । आ मंत्र द्वारा चमरधरो उपर. ॐ ह्रीँ विमलवाहनाय नमः । आ मंत्र बडे बे हाथीओ उपर. ॥ ४५६ ॥ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. | खं०२॥ || अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४५७॥ ॐ ह्री पुष्पकरेभ्यो नमः । आ मंत्रथी बे मालाधरो उपर. ॐ श्रीं शंखधराय नमः । आ मंत्रथी शंखधरो उपर. अने - ॐ पूर्ण कलशाय नमः । आ मंत्रथी कलश उपर. प्रत्येकने ३-३ वार वासक्षेप करवो, परिकरनी प्रतिष्ठा करी आगे अनेक फल नैवेद्य ढोवां धूप करवो. ते पछी शुभ समयमा परिकर यथास्थान जोडी ते दिवसे अथवा त्रीजे पांचमे अथवा सातमे दिवसे पंचामृत स्नात्र भणावी चैत्यवंदना | करि कंकण छोटनार्थ प्रतिष्ठादेवता स्थिरीकरणार्थं १ लोगस्सनो का० करवो, उपर प्रगट लोगस्स कहेवो, पछी सौभाग्य मुद्राए सौभाग्य मंत्रनो न्यास करी सर्षपग्रंथी अने कांकण छोडवां. (३) चतुर्निकाय देवमूर्ति प्रतिष्ठा विधि ॥ दश प्रकारना भवनपति देवो, वीस भवनपतिओना इन्द्रो, सोल प्रकारना व्यन्तर देवो, बत्रीस व्यन्तरोना इन्द्रो, बार देवलोक, नव | ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमानना देवो अने बार देवलोकना दश इन्द्रो आ बधानी ते ते वर्णनी काष्ठमयी, धातुमयी अने रत्नघटित मूर्तिओनी प्रतिष्ठानो विधि आ प्रमाणे छे. देहरामां अथवा घरमां प्रथम बृहत्स्नात्र विधिथी जिनस्नात्र भणावी, एकत्र थयेल पंचामृतवडे प्रतिष्ठाप्य देव प्रतिमाने स्नान करावबुं, शुद्ध जल पखाली, लुंछीने यक्षकर्दमनुं विलेपन करवू, धूप उखेववो, अने प्रतिष्ठामंत्र भणी पच्चीस वस्तुनो बनावेल वासक्षेप करी, तेनी प्रतिष्ठा करची. प्रतिष्ठा मंत्र नीचे प्रमाणे छे. “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्यूँ कुरु कुरु तुरु तुरु कुलु कुलु चुरु चुरु चिरि चिरि चिलि चिलि किरि किरि किलि किलि NIN For Private & Personal use only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ॥ कल्याण- कलिका. ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४५८ हर हर सर सर हूँ सर्वदेवेभ्यो नमः, ११ अमुकनिकायमध्यगत, २ अमुकजातीय, ३ अमुकपद, ४ अमुक व्यापार, ५ अमुक | देव, इह मूर्तिस्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ तिष्ठ चिरं पूजकदत्तां पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा !" | आ मंत्रबडे ३ वार वासक्षेप करी कोइपण देवमूर्तिनी प्रतिष्ठा करवी. एज प्रमाणे चारे निकायनी देवीओनो पण प्रतिष्ठा करवी. गणिपिटक, शासनयक्ष, ब्रह्मशान्ति निक्रति आदि व्यन्तरमां, सोम यम आदि लोकपालो भवनपति निकायमा इन्द्र आदि वैमानिक निकायमां गणवां. (४) ग्रहप्रतिष्ठाविधि - प्रथम प्रतिष्ठित प्रासादमा अथवा घरमा बृहत्स्नात्रविधिथी जिन मूर्तिन स्नपन करवू. पछी एक बे त्रण चार पांच के जेटली मूर्तिओनी आवश्यकता होय तेटली मूर्तिओ अथवा नवग्रह खोदेल के चित्रेल पाटलो जे होय ते सर्व जिन मूर्तिने आगे स्थापन करवा अने जिन स्नात्रजलथी मिश्रित पंचामृतथी ते पखालवा, शुद्धजले पखाली, लूछीने कोरा करवा, पछी धूप उखेबी नीचेना मंत्रो बडे एक एक ग्रहनो मंत्र त्रण त्रण वार भणीने उपर त्रण त्रण वार वासक्षेप करी ते ते ग्रहनी प्रतिष्ठा करवी. जे जे ग्रहनी मूर्तिनी प्रतिष्ठा करवी होय ते ते ग्रहनो प्रतिष्ठा मंत्र भणीने तेनी मूर्ति उपर वासक्षेप करवो. १.१ प्रतिष्ठाप्य देव भवनपति व्यन्तर वैमानिक के ज्योतिषी जे निकायनो होय तेनुं नाम अमुक स्ताने लखवू २ भवनपतिओमां असुर कुमारादि, व्यन्तरोमां भूतपिशाच आदि, वैमानिकोमा सौधर्मभव आदि शब्द लखबो. ३ पदनी पूर्वमा इन्द्रसामानिक बाह्याभ्यन्तरादि पार्षय त्रायखिंश, अंगरक्षक लोकपालादि शब्द लखवो. ४ तत्तद् कर्तव्य-गुणकीर्तनादि यथासंभव विशेषण लखवू. ५ देवनुं नाम लखवू । For Private & Personal use only ॥ ४५८ ॥ Jan Education International Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ १ सूर्य प्रतिष्ठा मंत्र - ___ "ॐ ह्रीं श्रीं घृणि २ नमः सूयार्य भुवनप्रदीपाय जगच्चक्षुषे जगत्साक्षिणे भगवन् श्रीसूर्य इह मूर्ती स्थापनायां अवतर ॥ अष्टोत्तरी अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा ।" १ शतस्नात्र २ चन्द्र प्रतिष्ठा मंत्र - विधिः ॥ "ॐ चं चं चुरु २ नमश्चन्द्राय औषधीशाय सुधाकराय जगज्जीवनाय सर्वजीवितविश्वभराय भगवन् श्रीचन्द्र इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा ।" २ ३ मंगल प्रतिष्ठा मंत्र - “ॐ ह्रीं श्रीं नमो मंगलाय भूमिपुत्राय वक्राय लोहितवर्णाय भगवन् मंगल इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा ।" ३ ४ बुध प्रतिष्ठामंत्र - “ॐ क्रौं प्रौं नमः श्रीसौम्याय सोमपुत्राय प्रहर्षलाय हरितवर्णाय भगवन् बुध इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा ।" ४ ५ बृहस्पति प्रतिष्ठा मंत्र - “ॐ जीव जीव नमः गुरवे सुरेन्द्रमंत्रिणे सोमाकाराय सर्ववस्तुदाय सर्वशिवंकराय भगवन् श्रीबृहस्पते इह मूर्ती स्थापनायां ||॥ ४५९ ॥ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ४६० ।। अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा । " ५ ६ शुक्र प्रतिष्ठा मंत्र - "ॐ श्रीं श्रीं नमः श्रीशुक्राय काव्याय दैत्यगुरवे संजीवनीविद्यागर्भाय भगवन् श्रीशुक्र इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा । " ६ ७ शनि प्रतिष्ठा मंत्र - "ॐ शम शम नमः शनैश्वराय पङ्गवे महाग्रहाय श्यामवर्णाय नीलवासाय भगवन् श्रीशनैश्वराय इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा । " ७ ८ राहु प्रतिष्ठा मंत्र - “ॐ रं रं नमः श्री राहवे सिंहिकापुत्राय अतुलबलपराक्रमाय कृष्णवर्णाय भगवन् श्रीराहो इह मूर्ती स्थापनायां अवतर २ तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाण २ स्वाहा ।" ८ ९ केतु प्रतिष्ठा मंत्र - "ॐ धूम धूम नमः श्रीकेतवे शिखाधराय उत्पातदाय राहुप्रतिच्छन्दाय भगवन् श्रीकेतो इह मूर्ती स्थापनायां अवतर अवतर तिष्ठ २ प्रत्यहं पूजकदत्तां पूजां गृहाणं २ स्वाहा । " ९ जो नव ग्रहना पाटलानी प्रतिष्ठा करवी होय तो पण एज विधिथी प्रक्षालन करी एक एक ग्रहनो प्रतिष्ठा मंत्र बोली एक एक ग्रहमंडलमां तेनी मूर्ति उपर वासक्षेप करीने पाटलो प्रतिष्ठित करवो. ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ।। ४६० ।। Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. कान | अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ खं० २॥ एकली ग्रहमूर्तिनी ज प्रतिष्ठा होय तो "इह मूर्ती" आटलुं ज बोलवू. मूर्ति अने स्थापनीय ग्रह नंग बंन्नेनी प्रतिष्ठा होय तो मंत्रमा | "इह मूर्ती स्थापनायां" आम बोलवू, अने एकला स्थापनीय ग्रह नंगनीज प्रतिष्ठा होय तो - "इह स्थापनायां" एटला शब्दो बोलवा. | ग्रह प्रतिष्ठा करीने जिन प्रतिमा आगल वर्द्धमान स्तुतिओथी चैत्यवंदन करवू, स्तवनने बदले शान्तिपाठ कहेवो. (५) सिद्धमूर्ति प्रतिष्ठा विधि जिनशासनमां पंदर भेदे सिद्ध मानेला छे, त्यां जे लिंग वेषमा जे सिद्ध थया होय ते वेषमा तेमनी मूर्ति भराववी, ते सिद्धमूर्ति कहेवाय छे, बधा प्रकारनी सिद्धमूर्तिओनी प्रतिष्ठाविधि समान छे. प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थ होय तो प्रथम तेना घरे शान्तिक तथा पौष्टिक करवू. ते पछी बृहत्स्नात्र विधिथी स्नात्र करीने प्रतिष्ठा करवी, मूलमंत्र द्वारा सिद्धमूर्तिन पंचामृत स्नात्र करी मूल मंत्र द्वारा ज मूर्तिना सर्व अंगोमा ३-३ बार बासक्षेप करीने तेनी प्रतिष्ठा AD करवी. याल सिद्धमूर्तिनी प्रतिष्ठानो मूल मंत्र नीचे प्रमाणे छ - ॐ अं आं ह्रीं नमो सिद्धाणं बुद्धाणं सब्वसिद्धाणं श्रीआदिनाथाय नमः । जे जे लिंगमां सिद्ध थयेल सिद्धनी मूर्तिनी प्रतिष्ठा होय ते ते लिंगधारीओनी भक्ति करची, उपयुक्त वस्तु, पात्र, भोजनादिनुं दान ला प्रतिष्ठा करावनार साधु होय तो मूलमंत्रे मंत्रित करीने सिद्धमूर्ति उपर त्रण वार वासक्षेप नांखे. आथी सिद्धमूर्तिनी प्रतिष्ठा थइ जाय छे. बहु विधि करवानी जरूरत नथी. ॐ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ।। (६) मंत्र-पट्टप्रतिष्ठा विधि ॥ ॥ कल्याण मंत्रपट्टो सुवर्णमय, रूप्यमय, ताम्रमय, स्फटिकमय, काष्ठमय, वस्त्रमय, आदि अनेक प्रकारना होय छे. वस्त्रमय पट्ट सिवायना बधां कलिका, पट्टोनो प्रथम जिनस्नात्र संमिलित-जल पंचामृत बडे पखाल करवो, पछी सुगंध जल वडे तेनो पखाल करवो, छेवटे शुद्ध जले पखाली खं० २ ॥ तेना उपर यक्षकर्दमर्नु विलेपन कर, पछी २५ वस्तुना बनेला वासक्षेपथी तेनी प्रतिष्ठा करवी. मंत्रपट्टनो प्रतिमा मंत्रपट्टमा खोदेल के लखेल मंत्र ज जाणवो, ते मंत्र ७ वार वांचवो अने ७ वार वासक्षेप नाखवो, एटले प्रतिष्ठा थइ. पट्ट वस्त्रमय होय अर्थात् वस्त्र उपर मंत्र यंत्र के मूर्ति लखेल होय तो तेनुं आदर्शमां प्रतिबिम्ब पाडी ते उपर पूर्वोक्त रीते प्रथम अभिषेक-प्रक्षालन करवू, पछी तेमां लखेल मंत्र बडे वासक्षेप करी प्रतिष्ठा करवी. मखमल आदि उपर जरी आदिथी भरेल मूर्तिओनी प्रतिष्ठा पण एज विधिथी करवी. पट्टमा कोइ देवनी मूर्ति खोदेली होय अथवा चित्रित होय तो पूर्वोक्त प्रकारे प्रथम तेनो अभिषेक करी- ॐ ह्रीं अमुकदेवाय नमः। ॐ ह्रीँ अमुकदेव्यै नमः । आ प्रकारे जे देव या देवीनी मूर्ति होय तेना नाममंत्रवडे वासक्षेप करी तेनी प्रतिष्ठा करवी. Latel सूरिमंत्र, वर्द्धमान विद्या, चिन्तामणि पार्श्वनाथ आदिना पट्टोनी पण उपरनी विधिथी ज प्रतिष्ठा कराय छे. (७) साधुमूर्ति-स्तूप प्रतिष्ठा विधि - आचार्य, उपाध्याय के साधुनी मूर्ति चैत्यमां के पौषध शालामा स्थापवी होय अथवा तेमना पादुकास्तूपनी प्रतिष्ठा करवी होय तो तेनी विधि नीचे प्रमाणे छे. - ___ मूर्ति अने चरण पादुकाने प्रथम पंचामृत वडे पखाली शुद्ध जले धोई, लुछीने तेने धूप उखेववो अने लग्ननो समय आवतां आचार्यनी ॥ ४६२ ।। For Private & Personal use only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || अष्टोत्तरी ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४६३ ।। मूर्ति अथवा स्तूप उपर - “ॐ नमो आयरियाणं भगवंताणं णाणीणं पंचविहायारसुट्ठि आणं इह आयरिया भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणीसावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्वसिद्धिं दिसन्तु स्वाहा ।" आ मंत्रवडे ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी. उपाध्यायनी मूर्ति अथवा स्तूप उपर - ___ "ॐ नमो उवज्झायाणं भगवंताणं बारसंगपढगपाढगाणं सुअहराणं सज्झायज्झाणसत्ताणं इह उवज्झाया भगवंतो अवयरंतु भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणीसावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सब्वसिद्धिं दिसन्तु स्वाहा ।" आ मंत्र बडे ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी. साधुनी मूर्ति अथवा स्थूप उपर - "ॐ नमो सवसाहणं भगवंताणं पंचमहन्वयधराणं, पंचसभियाणं तिगुत्ताणं तवनियमनाणदंसणजुत्ताणं मुक्खसाहगाणं इह साहुणो भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणीसावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सब्वसिद्धिं दिसन्तु स्वाहा ।" आ मंत्र वडे ३ वार वासक्षेप करी प्रतिष्ठा करवी. (८) पितृमूर्ति प्रतिष्ठा विधिः गृहस्थोना पूर्वजोनी पाषाणमयी मूर्तिओ घणे भागे प्रासादोमां स्थापित कराय छे, ज्यारे धातुमय मूर्ति-पाटलिओ उपर खोदेली | Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं० २॥ । ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४६४ ॥ के लखेली पूर्वजोनी मूर्तिओ घरोमा पूजाय छे. गलामा पहेरवानी फूल आदिना रूपमा नामांकित पितृमूर्तिओ पण होय छे. आ बधी | पितृमूर्तिओनी प्रतिष्ठाविधि एक सरखीज होय छे. प्रथम बृहत्स्नातनी विधिथी पूर्व प्रतिष्ठित जिनबिम्ब- स्नात्र करी ते स्नात्रजल मिश्रित पंचामृत वडे त्रणे प्रकारनी पितृ मूर्तिओनो पखाल करबो, छेवटे शुद्ध जले पखाली लूंछीने पछी ते नीचे लखेल प्रतिष्ठा मंत्रबडे वासक्षेप करीने प्रतिष्ठित करवी. "ॐ नमो भगवओ अरहओ जिणस्स महाबलस्स महाणुभावस्स सिवगइगयस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खलिअपभावस्स | तद्भक्तोऽमुकवर्णः, अमुकजातीयः, अमुकगोत्रः, अमुकपौत्रः, अमुकपुत्रः, अमुकजनकः इह मूर्ती अवतरतु अवतरतु संनिहितः तिष्ठतु तिष्ठतु निजकुल्यानां पुत्र भातृव्यपौत्रादीनां जिनभक्ति पूर्वकं दत्तमाहारं वस्त्रं पुण्यकर्म प्रतीच्छतु शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं करोतु स्वाहा ।" ___आ मंत्र भणीने पितृमूर्तिओने ३-३ बार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठित करवी आम पितृमूर्ति प्रतिष्ठित करीने गृहस्थे यथाशक्ति साधर्मिक वात्सल्य करवू अने संघपूजा पण करवी. (९) तोरण प्रतिष्ठाविधिः तोरण प्रतिष्ठामा बृहत्स्नात्रविधिथी जिनस्नात्र करी मुकुटमंत्रे करी तोरण उपर वासक्षेप करवो, मुकुटमंत्र नीचे प्रमाणे छे-- "ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ अं अः कखगघङ चछजझञ टठडढण तथदधन पफबभम यरलव | शषसह नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघहितपदाय इति तोरणे समालोकय समालोकय स्वाहा । ॥ ४६४ ।। www.iainelibrary.org Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A ॥ कल्याण ॥ अष्टोत्तरी कलिका. | खं० २ ॥ dh. शतस्नात्र विधिः ।। (१०) जलाशय प्रतिष्ठाविधिः - जलाशयो अनेक प्रकारनां होय छे. तलाव, सरोवर, टांकां, वाव, आदि. आ पैकीना कोइ पण जातना जलाशयनी प्रतिष्ठा करवी होय त्यारे जलाशय बनावनारने चन्द्रबल पहोचतुं होय अने दिवस पण शुभ होय ते, मुहूर्त ले. जलाशय प्रतिष्ठामा पूर्वाषाढा, शतभिषा, रोहिणी, धनिष्ठा आ पैकीनु कोइ नक्षत्र आवतुं होय तो वधारे सारूं. प्रतिष्ठाना दिवसे जलाशय करावनारना घरे प्रथम शान्तिक अने पौष्टिक करवू, ते पछी सर्व उपकरणो लेइ जलाशय उपर ज. जलाशयने फरतां २४ सूत्रतंतुओ वींटीने प्रथम तेनी रक्षा करवी, ते पछी त्यां जिन प्रतिमा स्थापन करी बृहत् स्नात्रविधिथी स्नात्र करवू. तदनन्तर जलाशयमां पंचगव्य नांखी जिनस्नात्र जल नाखवू, ते पछी जलाशयना आगला भागमां लघु नंद्यावर्तनी स्थापना करवी. नन्द्यावर्तना स्थाने मध्यभागमा वरुणनी स्थापना करीने ते सर्वनी पूर्वनी जेम पूजा करवी, वरुणनी विशेष प्रकारे त्रण वार पूजा करवी. ते पछी त्रिकोणाकार अग्निकुंडमां अमृत मधु पायस अने विविध फलोवडे नन्द्यावर्तमां स्थापित देवताओना नाम मंत्रो 'प्रणवादि स्वाहान्त' नामो बड़े होम करवो, वरुणना नाम मंत्र वडे ए सिवाय १०८ आहुतिओ वधारे देवी. आहुति आपतां वघेल सर्व जलाशयमां नांखवू. ते पछी प्रतिष्ठाचार्य पंचामृतनो कलश हाथमा लेइ जलाशयमां तेनी धारा देतां - “ॐ वं वं वं वं वं वलप वलिप् नमो वरुणाय समुद्रनिलयाय मत्स्यवाहनाय नीलाम्बरधराय अत्र जले जलाशये वा अवतर २ सर्व दोषान् हर हर स्थिरी भव स्थिरी भव ॐ अमृतनाथाय नमः ।" आ मंत्र ७ वार भणे, एज मंत्र भणीने तेमां पंचरत्न स्थापन करे. अने ए मंत्रपाठ पूर्वक वासक्षेप करी, जलाशयनी प्रतिष्ठा करे. Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ते पछी जलाशयना द्वारना उंबरा, स्तंभ, भित्ति, द्वारनी छत, आंगणादिकनी प्रतिष्टा ग्रह प्रतिष्ठामां कहेल ते ते मंत्रो वडे करवी. | प्रतिष्ठा करतां पहेलां जलाशयनी पासे प्रतिष्ठा सूचक यूप 'यज्ञस्तंभ' ना “ॐ स्थिरायै नमः" आ मंत्र बडे स्थापना करवी. बापना करवा. बावडी, कुवा, तलाव, बहेळा-नहेर-झरणा-तलावडी, स्त्रोत धर्मादा जलाशय-कारणिक जलाशय, आदि कोइ पण जलाशयनी प्रतिष्ठा | उक्तविधिथी करावी. ॥ इति जलाशय प्रतिष्ठा विधि । ॥ अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ इतिकल्याणकलिका-प्रतिष्ठा पद्धतावयम् । विधानाख्योऽगमत् खण्डो, द्वितीयः परिपूर्णताम् ॥ आ प्रमाणे कल्याणकलिका प्रतिष्टा पद्धतिमां आ विधि खंड नामक बीजो खंड समाप्त थयो. इति तपागच्छाचार्य-श्रीविजयसिद्धिसूरिनिगदानुसारि-संविग्नश्रमणावतंसश्रीकेसरविजयशिष्यपं० कल्याणविजयगणि-विरचितायां कल्याणकलिकाप्रतिष्ठापद्धतौ विधिनामा द्वितीयखण्डः समाप्तः । Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. ख० २ ।। ।। ४६७ ।। ॥ कल्याण- कलिकायां, साधनखण्डः ३ || परिच्छेद सूची चैत्यवन्दनसंदोहः १, स्तुतयो निखिलेशिनाम् २, पाठयोग्यस्तवा ३, स्तद्वत् स्मरण - मंत्रसंचयः ४ ॥ १॥ प्रतिष्ठोपस्करा नानाविधाः ५ खण्डे तृतीयके || चैत्यवन्दन समुदाय १, चोवीश तीर्थंकरोनी स्तुतिओ २, पाठ करवा लायक स्तोत्रो ३, सात स्मरणो तथा उपयोगी मंत्र संग्रह ४, अने अनेक प्रकारनी प्रतिष्ठानी सामग्रीनी सूचिओ ५ एम आ त्रीजा खंडमां ५ परिच्छेदोनो समावेश कर्यो छे. 1 परिच्छेद १ चैत्यवन्दन संदोह प्रतिष्ठाप्य जिनस्याग्रे, देववन्दनहेतवे । चैत्यवन्दनसंदोहो, न्यस्तोऽयं निजनिर्मितः ||२|| जे जिननी प्रतिष्ठा थइ होय तेमनी आगे देववन्दन करतां ते जिननुं चैत्यवंदन करवानी विधि होइ प्रत्येक जिन प्रतिष्ठा प्रसंगे देववन्दनमां काम लागे एटला माटे आ परिच्छेदमां अमोए स्वरचित चैत्यवन्दन चोवीसी लखी दीधी छे. चैत्य वन्दन संदोह :- अपर नाम चैत्यवन्दन चतुर्विंशतिका । । १ श्रीऋषभ जिन चैत्यवन्दनम् (वसन्ततिलकापरनामकम् उद्धर्षिणी वृत्तम्) । श्रीनाभिराजकुलनन्दनकल्पवृक्षः, संप्राप्तसर्वसुरपूज्यतमत्वपक्षः । उल्लासयन् रविरिवाङ्गिसरोजखण्डं दिश्यात्स शर्म वृषभो भवतामखंडम् ||१|| - ॥ चैत्यबन्दन संदोह ॥ ।। ४६७ ।। Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ । चैत्य वन्दन संदोह ॥ ॥ ४६८ ॥ त्रैलोक्यलोकचलनेत्रचकोर चन्द्र, वैराग्यरङ्गरसभङ्गभयास्ततन्द्रम् । संसारसिन्धुतरणायसुयानपात्रं, देवं नमामि ऋषभं प्रपवित्रगात्रम् ।।२।। येन प्रदर्शितमशेषकलाकलापं, दुर्बोधजातदुरितीघकृतापलापम् । स्मृत्वाऽधुनापि जनता निजकार्यजन्मा-दुद्धर्षणीतिहरणोऽस्तु स नाभिजन्मा ॥३॥ २ श्रीअजितनाथ चैत्यवंदनम् ॥ (त्रोटक वृत्तम्) । अजितं विदिताखिलवस्तुगणं, सगुणं वरमुक्तिवधूरमणम् । रमणीरजनीचरिकावियुतं, प्रणुत प्रणताखिलसिद्धिकृतम् ॥१॥ प्रपतन्तमवित्तिभरे मनुज-मनुजन्मकरन्तमदृष्टरुजम् । जनमानसमानसहंससम, समदृष्टितमं प्रणमाम्यसमम् ॥२॥ विहितामरदानक्सेवनक, कनकोज्वलनिर्मलविग्रहकम् । भवतोटक ! तोट्य मे दुरितं, समयोदितकर्मरजो मिलितम् ॥३॥ ३ श्रीसंभवजिन चैत्यवन्दनम् । (उपजाति वृत्तम्) श्रीसंभवो निर्दलितारिसंभवो, विसंभवः प्रास्तविकारसंभवः ॥ संशभवश्रीद्धजितारि संभवः, क्षिणोतु तं योऽस्ति गदोऽरिसंभवः ॥११॥ वृथैव मन्ये विदुषां नु भारती, यया न ते प्रक्रियते बुधैः स्तुतिः । किं कल्पवृक्षोऽपि फलादिवर्जितः, फलैषिभिर्नो विबुधैर्वितर्जितः ॥२॥ न स्रग्धरा वृत्तमुखैरपि स्वयं, सदैव सावधविवर्णकः कविः । लभेत सत्कीर्तिभरं यथा स्तुवन्, भवन्तमल्पैरुपजातिवृत्तकैः ।।३।। || ४६८ ॥ Jan Education international Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥का ॥ चैत्य वन्दन संदोह ॥ ash ॥ ४६९ ॥ GRES d S थील ४ श्रीअभिनन्दनजिन चैत्यवन्दनम् । (रथोद्धतावृत्तम्) संवराख्य नरराजनंदनं, देवराजविहिताभिनन्दनम् । धर्मदानजनताभिनन्दनं, भक्तितोऽस्मि विनतोऽभिनन्दनम् ॥१॥ भो जना ! विषयलुप्तचेतनै-र्भोजनादिसुखमिष्यते जनैः । तद्वदेव भवतापपीडितै-र्ज्ञानसाधनमसौ निषेव्यते ॥२॥ सेवनेन सततं जिनेशितु-र्मोहराजमदनौ प्रणेशतुः । सन्नृणां भवतु वोऽपि तद्गता, तद्भटालिरनुगैरथोद्धता ॥३॥ ५ श्रीसुमतिजिन चैत्यवन्दनम् । (दुतविलम्बितवृत्तम् ।) सुकृतवल्लरिवर्धनवारिद-प्रभमनल्पगुणस्य तवारिद !। वचनमर्तिहरं भवितारकं, भवतु मेऽयहरं विगतारकम् ॥१॥ सुमतिमेघनरेन्द्रसमुद्भव ! विहितसर्वसुरासुरमुद्भव !। अथ भवेद्धि भवान् मम तारणः, सजति चेद्भगवन् मम तारणः ॥२॥ द्रुतविलंबितसंसरणक्रम-मविरतं विदधे सगुणक्रम !। यदि रतिर्हि भवेद्भवदाश्रये, ध्रुवगतिं भगवन् ! नु तदाश्रये ॥३॥ ६ श्रीपद्मप्रभजिन-चैत्यवन्दनम् (इन्द्रवज्रा वृत्तम् ।) पद्मप्रभेऽम्भोजविशालनेत्रे, पद्मप्रभे भो दधतां सुभक्तिम् । ये न प्रकृष्टत्वमुचः कदापि, येन प्रणष्टा ननु तेऽपि दोषाः ॥१॥ नाथ ! त्वया चेक्रियते जनोऽन्यो, धर्मोपदेशैर्ननु मुक्तरागः । त्वं रागयुक्तोऽसि कथं नु यद्वा, माहात्म्यमेतत्खलु सर्ववित्त्वे ॥२॥ एकाकिनापि प्रहतास्त्वयोद्धा, मोहादयः कर्मबलिष्टयोद्धाः । स्यादिन्द्रवज्रा हतिरेकिकापि, नाशाय मौलेः कुलपर्वतादेः ॥३॥ ७ श्रीसुपार्श्वजिन-चैत्यवन्दनम् । (प्रहर्षिणी वृत्तम्) पृथ्वीजं शिवपुरसार्थवाहनाथं, चक्राणं प्रबलमनोभवप्रमाथम् । कुर्वाणः स्तुतिलवगोचरे सुनाथं, कुर्वे स्वं निजगुणलालसासनाथम् ॥१॥ ENA ॥ ४६९ ॥ Jan Education Internationa Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ॥। ४७० ।। देवेन्द्रैः प्रकटितभक्तिरागसारैः, संसारे पुरुषवरं हि मन्यमानैः । यो ने विरतगणैश्च बद्धरागै र्योनेर्मेऽविरतगतं स संरुणद्ध ||२|| संप्राप्ते पुरमपुनर्भवाख्यमीशे, निर्नाथा विरह विषार्दिता प्रकामम् । नो चेत्तेऽमृतसमदर्शनं प्रविम्बं नो नूनं भुवि जनता प्रहर्षिणीयम् ॥ ३॥ १८ श्रीचन्द्रप्रभजिन चैत्यवन्दनम् । (ललिता वृत्तम् ।) चन्द्रप्रभं जनिविपूतसञ्जनं, चन्द्रप्रभं जनितहृष्टिमज्जनम् । देवाधिदेवविनतं स्वशक्तितो देवाधिदेवमभिनौमि भक्तितः ॥ | १ || तेजःप्रपन्नरविरूपरोचन-श्वेतः सरोजदलने विरोचनः । देयान्मति जिनपतिः सतामरं यस्या जनुर्विभवनिर्जितामरम् ||२|| लोको जहर्ष तव दर्शनागमाज्ज्ञानप्रकर्षललिताज्जिनागमात् । किं वा युजातमहसेननन्दन- मीश ! क्षमेशमहसेननन्दन ! ||३| १९ श्री सुविधिजिनचैत्यवन्दनम् । (सुमुखीवृत्तम्) कुतुकमिदं ननु पश्यत भो ! भुवि जनचित्तसरोजमिदम् । सुविधिजिनस्य मुखेन्दुरयं कुवलयवद् विशदीकुरुते ||१|| भवति न यस्य मनो रमते, भवति नरस्य न तस्य रतिः । किमु सुरपादपपादभिदि, शमुदयमेति कदाऽप्यविदि ||२|| तव चरणांबुजबद्धरति-र्गणधरवन्मनुजः सुमतिः । भुवि जनतासु- मुखीभवति, भवभयतश्च जनानवति ॥३॥ ।१० श्रीशीतलजिन चैत्यवन्दनम् । (चन्द्रवर्त्मवृत्तम्) शीतलं जिनपतिं नम जनते ! संगृहाण वरपुण्यमजनतेः । एतदर्थममरा अपि सततं पूजनं विदधते दिवि सततम् ॥१॥ पूजयन्ति जिनदैवतचरणा-नार्यलोकपथनिर्मितचरणाः । प्राणिना विधिवदादरसहितं मन्वते च भुवि तत्खलु सहितम् ||२|| ॥ चैत्यवन्दन संदोह ॥ ।। ४७० ।। Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ चैत्य वन्दन संदोह ॥ ॥ ४७१ ॥ चन्द्रकान्तसमशीततनुजिन-चन्द्र ! वर्त्म सुगतेर्दददमलम् । मामनल्पमतिरहितमशरणं, नाथ ! रक्ष दुरितादनिशरणम् ॥३॥ ११ श्रीश्रेयांसजिन चैत्यवंदनम् । (शालिनी वृत्तम्) स्फूर्जत्कान्तिध्वस्तसंसारतान्ति-श्वञ्चच्छीलः प्रोज्झिताऽशस्तलीलः ।। श्रीश्रेयांसः संचितान्तश्शमायः, कुर्यात्सौख्यं देववन्योऽस्तमायः ॥२॥ विद्यावल्लीवर्धने वारिवाहः, कैवल्याध्वप्रापणे शस्तवाहः । स श्रेयांसः श्रेयसां यः सुखानिः, सश्रेयान्वः संविधत्तां सुखानि ॥२॥ प्रत्यादर्श श्रेयसो दैवतस्य, बद्धं चित्तं येन पापं न तस्य । प्रत्याघातं संविधत्ते नरस्य, यस्मात् श्रेयः शालिनी भक्तिरस्य ॥३॥ १२ श्रीवासुपूज्यजिन चैत्यवन्दनम् । (स्वागता वृत्तम् ।) वासुपूज्य कृतपुण्यकृतान्त !, हेलया विजितरागकृतान्त !। योगिनोऽपि विनमन्ति भवन्तं, के त्यजेयुरथवाशुभवन्तम् ॥शा या चचाल निजनिश्चलभावात्, योगिनाथततिरप्यविभावात् । यद्वशाविजयिनं हरिसुनु, तं जघान वसुपूज्यसुसुनुः ॥२॥ स्वागताप्रभृतिबद्धनिबन्ध-स्त्वां स्तुवन्ति कवयः शुचिबन्धैः । नो तथापि गुणवर्णनकृत्ये, पारयन्ति तव वर्णनकृत्ये ॥शा १३ श्रीविभलजिन चैत्यवन्दनम् । (मन्दाक्रान्ता वृत्तम् ।) श्यामासूनो ! तववरवचः श्रेणिपीयूषधारा, तृप्तात्मानः प्रकृतिसुभगा मानवा मानधाराः । उत्पद्यन्ते विबुधभवनेषूत्तमेघूत्तमास्ते, यत्रानन्दप्रबललहरीप्रोल्लसत्सौख्यमास्ते ॥१॥ हेयाहेयप्रकटनविधौ बद्धलक्ष्यो नितान्तं, ज्ञानोद्योतैर्भुवि भविजनं बोधयन् यो नितान्तम् । निर्मुक्तात्मा शिवसुखरतिः कर्मयोगैरपीड्यः, सर्वज्ञोऽसौ जयतु विमलः सर्वदेवैरपीड्यः ॥२॥ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याणकलिका. | ॥ चैत्यवन्दन संदोह ॥ dh GE थान ।। ४७२ ।। Gar योनि संसाराम्भोनिधिनवतरी दुष्टमीनरभक्ष्या, मन्दाक्रान्ता शमरसभरैर्दुमतागैरलक्ष्या । दत्तानन्दा भुवि जययशो विस्फुरद्वैजयन्ती, सौख्यं मूर्तिः सुभग ! भवतो यच्छताद्वै जयन्ती ॥३॥ ।१४ श्रीअनन्तजिन चैत्यवन्दनम् । (भुजङ्गप्रयात छन्दः ।) अनन्तं जिनं पुण्यवन्तं ससन्तं, क्षिपन्तं कुकर्मोघमर्ति हरन्तम् । जनान् रञ्जयन्तं रिपून संजयन्तं, नमामीश्वरं तं वरं मुक्तिकन्तम् ॥१॥ सदा सिद्धिसौख्यप्रियध्येयरूप, जितानङ्गरूपं श्रिया जातरूपम् । मुनिब्रातभूपं शमापारकूपं, नमस्याम्यनन्तं जिनं योगिरूपम् ॥२॥ भुजङ्गप्रयाताऽध्वमुक्तं सुसूक्तं, जराजन्महीनं महानन्दलीनम् । हतप्रीतिनाथं कृताघप्रमाथं, श्रयेऽनन्तदेवं सुपुण्याप्यसेवम् ॥३॥ १५ श्रीधर्मनाथजिन चैत्यवंदनम् । (म्रग्विणी वृत्तम् ।) धर्मनाथं स्तुतप्रौढबुद्धयान्वित-देवराजार्चितं यस्य पादद्वयम् । भव्यहंसैः श्रितं पुण्यगन्धाश्रितं, राजते पद्मशोभा परिहासयत् ॥शा धर्मनाथ ! त्वयोद्दिष्टधर्मे कृत-वर्तनाः कर्तनायोक्तटद्वेषिणाम् । स्युर्जनाः सेव्यसे त्वं ततः स्वार्थिभि-र्देवराजासुरैःकेवलस्वार्थिभिः ॥२॥ स्त्रग्विणी भक्तचेतस्तमशूबूरिका, पूरिका स्वर्गनिः श्रेयसां संपदाम् । मूर्तिरेवंविधा ते यशःसाधिका, दीयतां भद्रमानन्द वासाधिका ॥३॥ १६ श्रीशान्तिजिन चैत्यवंदनम् । (मालिनी वृत्तम्) शिवपदसुखकारी कर्मविद्वेषिवारी, मदनमदविभेदी विश्ववस्त्वेकवेदी । AR || ४७२ ॥ For Private & Personal use only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ | ॥ चैत्य वन्दन संदोह ॥ ।। ४७३ ।। भवजलधिविशोषी पापवारप्रमोषी, दिशतु कुशलमीशः शान्तिनाथो मुनीशः ॥१॥ स्वह्वदि धृतभवन्तः प्रास्तरागा भवन्तः । तव नतिशुभवन्तस्ते नराः पुण्यवन्तः । अतिशयसुखसारं केवलालोकसारं, परमपदमुदारं यान्ति भव्या मुदाऽरम् ॥२॥ प्रशमरसविपुष्टा नाशिताशेषदुष्टाः, जगति जनितचित्रा पुण्यपोपैः पवित्रा । महिमजितसमुद्रा मालिनी यस्य मुद्रा, सजयति जिनशान्तिर्निर्जिंत स्वर्णकान्तिः ॥३॥ ।१७ श्रीकुन्थुनाथजिन चैत्यवन्दनम् । (कामक्रीडा वृत्तम्) संसृत्तारं विध्वस्तारं श्रीदातारं धातारं, चंचच्छोभारम्यं गम्यं योगीशानामीशानाम् । संसाराम्भोराशिं तीर्णं सौख्याकीर्णं विस्तीर्णं, वन्दे देवं कृत्यासेवं कुन्थु सार्वं सर्वज्ञम् ॥१॥ त्यक्तासारं ज्ञानोदारं विश्वोद्धारं विद्यारं, स्फूर्जयोगं मुक्तोद्योगं भासा चन्द्रं निस्तन्द्रम् । संख्यावन्तं पुण्योदन्तं की, कान्तं संशान्तं, वन्दे देवं कृत्यासेवं सौधर्मेशं धर्मेशम् ॥२॥ आयुर्विद्युयोताभं स्व-र्लीलांकीलाभामन्ते, विज्ञा विज्ञायाशु ब्रीडां कामक्रीडां संप्रोज्झय । दुःखोद्रेकच्छेदच्छेकं भक्त्युद्रेकं बिभ्राणा, देवाः सेवां यस्याऽकुर्वन् कुन्थुः कुर्यात्कल्याणं ॥३॥ ।१८ श्रीअरनाथजिन चैत्यवन्दनम् (हरिणी वृत्तम्) जनितजनतानन्दं कन्दं महोदयवीरुधा-मविरतिरतिप्रीतिप्रौढिप्रमुक्तमगुर्बुधाः । यममशरणा लब्धोत्कर्णाः शरण्यमनिन्दितं, स दिशतु शिवं देवीसूनुर्भवान्तमनिन्दितम् ॥१॥ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ | ॥ चैत्य वन्दन संदोह ॥ ॥ ४७४ ।। यान अतुलजवना बद्धस्पर्धाः सुरासुरनायका, यदभिगमने लब्ध्वोत्कपण्ठा भवन्त्यविनायकाः । अरजिनपतेः पादद्वन्द्वं सरोजविकस्वरं, दलयतुतरां पापद्वन्द्वं प्रभाजितभास्वरम् ॥२॥ शुभमतिजनस्वान्तध्वान्तप्रणाशनभास्वरं, विदलितदरद्वेषाऽज्ञानं विरागसमादरम् । हृदयहरणैर्हावैः क्षुब्धेतरं हरिणीदृशां, हृदयममलं देवीसूनोस्तनोतु सुखं विशाम् ॥३॥ । १९ श्रीमल्लिनाथजिन चैत्यवन्दनम् । (वरतनु वृत्तम् ।) अयि हितकारक ! मल्लिनाथ ! ते, चरणयुगं सुरपोऽपि नाथते । भवजलतारणशक्तिमत्पर, द्रुतमभितारय मामतः परम् ॥११॥ अयि नतवत्सल ! नापदां पदं, भवतिजनो भवतां श्रितः पदम् । किमु कृतकल्पमहीरुहार्चनः, समजनि दुर्गतकः कदाचन ॥२॥ भवदभिधाजपबद्धमानसे, ननु भुवि भव्यजने समानसे । वर ! तनुतादरमर्तिनाशनं, पदमितवन्न विर्वतनाशनम् ॥३॥ ।२० श्रीमुनिसुव्रतजिन चैत्यवन्दनम् । (कनकप्रभा वृत्तम् ।) मुनिसुव्रतस्य भववारिधेः परं, तटमागतस्य तरसा विधेः परम् । स्तवनां करोतु जनता शुभाशया, शिवसाधनाप्तिरसिका शुभाशया ॥१॥ प्रवरप्रतापपरभावभावितं, भविनं करोति परभावभावितम् । विमलं यदीयचरणद्वयं सतां विमलां ददातु परमां रमां सताम् ॥२॥ कनकप्रभाव ! भवदागमागम, सुकृतोदयेन भवदागमागमः । समपद्यतात्महितकारणं मम भवनाशनं भवतु तेन निर्मम ! ॥३॥ । २१ श्रीनमिजिन चैत्यवन्दनम् । (प्रमाणिका वृत्तम्) सकर्णकर्णतोषिणी, हिताऽऽहिताऽधिसंस्कृतिः । सदा सदानवैः सुरै-*ता नु तायिनी नृणाम् ॥१॥ ॥ ४७४ ।। Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चैत्य ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ | वन्दन संदोह ॥ नयानयादिराजिता-ऽगमैर्गमैगरीयसी । प्रमाप्रमाणपूरिता, महर्षिहर्षिणी सदा ॥२॥ दयोदयोज्ज्वला सदाऽक्षयाऽक्षयामिनी विशाम् । धियोऽधियोगकारिणी, भियोऽभियोगनाशिनी ॥३॥ यदीदृशीसरस्वती न रोचते सरस्वती । जनाय ते सुवर्णिका, जगद्दशा सुवर्णिका ॥४॥ नमे न मे प्रमाणिका, नरस्य धीस्तदीदृशः । मतं मतं विपर्यय-प्रसाधनं तु धीदृशः ॥५॥ पंचभिः कुलकम् । ।२२ श्रीनेमिजिन चैत्यवन्दनम् । (पंचचामर वृत्तम्) क्षणं निरीक्ष्य वीक्षणैः प्रतिक्षणं क्षयान्वितं, क्षण यदप्रतीक्षितं क्षमेशमण्डलैः क्षितौ । असारसंसूदुद्भवातिभीतिभागजनो यमा-श्रयेद्धिताय भक्तितस्तमानतोऽस्मि नेमिनम् ॥१॥ कुरङ्गरङ्गभङ्गभीरुताभरावभारित ! निदर्शनी भवन् दयालुताजुषां विशां धुरि । विवाहवाहवाहनावरुद्धराज्यहायक !। भवन्तमीदृशं दयालुमाश्रितोऽस्मि रक्ष माम् ॥२॥ जयाभिलाषि वाजिराजिराजिराजराजिता, ऽप्रपंच ! चामरालिशोभिपार्श्व ! पार्श्वगावन । यदूज्वलान्वयाम्बुराशिभासनाऽब्जभासुर !, विधेहि मां भवाम्बुधेस्तटानुयायिनं विभो !|॥३॥ ।२३ श्रीपार्श्वजिन चैत्यवन्दनम् । (शिखरिणी वृत्तम्) सदा शुद्धामूर्तिर्मदनमदमोहादिविकला, कलाऽपूर्वा वाक्ये सतनुमदवियान्तकरणे । रणे रंगो नित्यं विततभवभावारिनिधने, धने मूर्खात्यागो वरतरसुवर्णादिनिकरे ॥१॥ करे शखाभावो जनितजनसंतापशमनो, मनोऽपूर्वध्यानस्थगितनिखिलाऽवद्यविवरम् । |॥ ४७५ ॥ For Private & Personal use only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. सं० २ ।। ।। ४७६ ।। वरं धर्मस्थैर्यं भुवनविदिता काऽपि समता, मता मह्यां मैत्री तनुमदधिवात्सल्यसहिता || २ || हिताधाना एतेऽतुलसुकृतसंभारजनिता, नितान्तं राजन्ते भवति सुगुणा पार्श्व ! सुतपः । तपस्त्रस्यच्छेत्यं किरणविसराऽस्ताऽन्धतमसं, मसं मोघीकुर्वन् नवरविरिव प्राक्शिखरिणि ॥३॥ । २४ श्रीवीरजिन चैत्यवन्दनम् । ( शार्दूलविक्रीडित वृत्तम् ।) वीरः सर्वहितः सदोदितसुखं वीरं जनालिः श्रिता, वीरेण प्रविताडितारिपुततिर्वीराय धत्ते नतिम् । वीराद्विश्वमहोदयो धृतजयो वीरस्य वीर्यं महत्, बीरे विस्तृततां गता गुणलता वीर ! प्रदेयाः शिवम् ॥ १॥ योमुक्ति श्रियमातनोति सुदृशां यं स्वर्गनाथा नताः, येनाभेद्यविभेद्यकर्मनिकरो यस्मै जनः श्लाघते । यस्मादुदुर्गुणसंततिर्गतवती यस्य प्रपूतं वचो, यस्मिन्पङ्कजकोमलेजनमनो भृङ्गोपमं लीयते ॥२॥ स श्रीवीरविभुर्भवत्वसुखहृत्तं दैवतं संश्रये, तेनास्मि प्रभुणा सनाथगणनस्तस्मै नति संदधे । तस्मान्नास्ति परः प्रभादिनकरस्तस्यांघ्रियुग्मं स्तुवे, तस्मिन्नेव च कर्मदन्तिदलने शार्दूलविक्रीडितम् ||३|| युग्मम् ॥ अङ्गर्षिनवभूवर्षे, पादलिप्तपुरे बरे । कल्याणविजयेनेयं चतुर्विंशतिका कृता ॥ ॥। २ परिच्छेदः - चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः ॥ वेदयुग्मजिनस्तुति-चतुर्विंशतिकाद्वयम् । पूर्वाचार्यप्रणीतं यद्, वन्दनार्थं निवेशितम् ||३|| चोवीस जिननी स्तुतिओनी पूर्वाचार्यप्रणीत वे स्तुतिचोवीशीओ देववन्दनमां उपयोगी थाय ए अभिप्रायथी आ परिच्छेदमां लीधी छे. - ॥ चतुर्वि शतिजिन स्तुतयः ॥ ।। ४७६ ।। Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ चतुर्विशतिजिनस्तुतयः ।। ॥ ४७७ ॥ ॥ अज्ञातकर्तृक-प्राकृतचतुर्विंशतिजिनस्तुतयः ।। (१) जो चामीयरकंतिकायकलिओ जो सोमसोमाणणो, जो नीलुप्पलपन्नवन्ननयणो जो लोयणाणंदणो । जो संसारसमुद्दतारणतरी जो तारहारुज्जलो, सो नाभेयजिणो जगुत्तमजसो दिज्जा सुहं सासयं ॥१॥ उक्खित्तामलकुंभभासुरकरा दिपंतदेहप्पहा, सेले हेममयंमि भत्तिभरिया बत्तीसदेवेसरा । नामातूरबोहपूरियनहा न्हाविंसु जं सो जिणो, अम्हाणं जियसत्तुरायतणओ दिज्जाऽजिओ मंगलं ॥२॥ जे चकंकुसपंकयंकियतला जे सोणपीणंगुली, जे आयंबनहप्पहापरिगया जे कुम्मजम्भुन्नया । जे भावेण य पाणिकप्पतरुणो जे पूयपाबोदया, ते पाया जिणसंभवस्स सरणं मे हुन्तऽसंताभया ॥३॥ जो संकंदणविंदवंदियपओ सव्वंगचंगप्पहो, सिद्धत्थामणमोयणो मुणिजणासेबिजमाणकमो । लोयालोयविलोयणोवममहानाणो चउत्थो जिणो, हुज्जा मे अभिनंदणो पइदिणं कल्लाणमालाकरो ॥४॥ गब्भे जम्मि गयंमि निम्मलगुणे नाणं धरते तहा, लोयालोयपहाकरे दसदिसोज्जोयं कुणंते खणा । जाया पुबदिसब्व झत्ति जणणी अंतोबहिं चुज्जला, सो देवो सुमई विहेउ सुमई भब्वाण भब्वाणणो ॥५॥ जो त्थंबेरमहत्थसुत्थियभुओ भासंतभामंडलो, रत्तासोयपवालकोमलकरो विच्छिन्नवच्छत्थलो । लच्छीकित्तिकरो नरोरगथुओ देवीसुसीमासुओ, हुज्जा मे परिपकविदुमवणच्छाओ सु छट्ठो जिणो ॥६।। उम्मीलंतमहंतकंतिकविसा सिझंतवोमंगणा, सीसे जस्स सहति फारमणिणो पंचप्पमाणा फणा । सोऽभिक्कंदियभीसणाऽसमसरो रोसग्गिनिग्गाहगो, अम्हाणं सुमणोरहो फलकरो होज्जा सुपासो जिणो ॥७॥ For Private Personal Use Only (५ ॥ ४७७ ।। Jnww.jainelibrary.org Jain Education international Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४७८ ।। (८) निचं चंदपहापहासुरतणू, कप्पूरपूरोवमं, पत्तो कित्तिमपारभीसणभवाकूपारपारं गओ । चंदंको नवचंदनिम्मलगुणो चंदप्पहो सो जिणो, भदं देउ भवारिसाण भयवं निठ्ठततोदओ ||८|| (९) जो पुप्फज्जलदंतपंतिकलिओ जो चंदकुंदुज्जलो, जो लोहन्नववाडवग्गिसरिसो जो वारिवाहारवो । जो सोवंनियपंकयंकियकमो जो मोहमेहानिलो, अम्हाणं सुविही विहेउ नवमो तित्थंकरो सो सुहं || ९ || (१०) नीहारोदगचंदचंदणसुहा सीयंति गब्भट्ठिए, दाहो देहगओ खणेण पिउणो जत्थोवसंति गओ । नंदाणंदकरो जिणो स दसमो संसुद्धसीलालओ, दालिदुमकंदकीलणकरो हुज्जा स मे सीयलो ||१०|| (११) भव्वंभोरुहबोहणे दिणमणी तेलुक्कचूडामणी, जो जाओ नियवंसमत्थयमणी सोहग्गसोयामणी । कंदप्पुब्भडसप्पनागदमणी थोयारचिंतामणी, सिज्जंसो स जिणो महोदयगुणो सेयं समप्पे मे || ११|| (१२) पामुक्कामरलोयसंभवमुहा संभूय भदो (दो) जिणो, मंदारामलमालियाहि तइया पूएइ जं वासवो । जो निब्बाणनिवासवासवसमो मोहंधयारे रवी, भदं देउ दुवालसो गयमलो सो वासुपूज्जो जिणो || १२ || (१३) जो संसारमरुत्थलंमि विसमे कप्पदुमो पाणिणं, जो दुक्खोदहिमज्झमज्जिरजणुत्तारंमि पोओ दिढो । जो मोहंधजणंजणोवममहासिद्धंतसंसाहगो, मालिनं विमलोडवणेउ स जिणो मे तेरमो निम्मलो ||१३|| (१४) जोडणंताण दुहद्दुमाण दहणो दिप्पंतदावानलो, गाढाणंगपयंगभंगकरणे जो तीव्वदीवोवमो । जो ऽणतेण सुहेणणंतयजिणो जुत्तो जगुज्जोयणो णाणेणं च जणेउ तुम्ह विउलं सुक्खाण सो संचयं ॥ १४ ॥ (१५) सम्म कम्ममहामहीहरसिहासंहारदंभोलिणा, धम्मो जेण महीयले पयडिओ निव्वाणसुक्खक्खणी । ॥ चतुवि शतिजिन स्तुतयः ॥ ।। ४७८ ।। Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण-I कलिका. खं० २॥ ॥ चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः ।। और कार ॥ ४७९ ।। Alb मजंताण भवजकूपकुहरे जंतूण रज्जूवमो, सो धम्मो जिणपुंगवो भयहरो मे होउ पन्हारसो ॥१५॥ (१६) देवीए अइराइ कुच्छिकमले संमि जंमि ट्ठिए, सब्वट्ठाउ चुए गयासिवभयं सव्वंपि जायं जयं । चत्तालीसधणूसिओ सियजसो तित्थंकरो सोलसो, सो मे मोहबलं दलेउ सयलं संती पसंतासुहो ॥१६॥ (१७) कुंथू हत्थिपसत्थमंथरगई कुंथू पसत्थोवमो, कुंथू दुत्थियसत्थसुत्थियकरो कुंथू थिरत्थागमो । कुंथू यथ (पत्थ) समत्थमोहपडलो कुंथू महत्थत्थुई, कुंथू घोरभडो जए य विजए सत्तारसो सो जिणो ॥१७॥ (१८) मोहच्छेयकरो जरामरहरो संसुत्थकित्तीभरो, भग्गाणंगसरो विमुक्कसमरो विनाणनाणागरो । तेलुक्तिकदिवाकरो गुणकरो जो पक्कबिंबाहरो, नाणाबुज्झ (चुज्ज)करो अरी जिणवरो मे होउ अट्ठारसो ॥१८॥ (१९) जो उडसिहंडमंडलगणच्छायाणुरूवच्छवी, निनुल्ला धवलेइ जस्स सयलं कित्तीधरित्तीतलं । हेलं मूलिय (वज) वल्लिवलओ निम्मुल्लसोहाभरो, निन्नासेउ सकम्मजल्लससमं मल्ली महल्लोदओ ॥१९॥ (२०) जो मोहंजणपुंजरेहिरतणू लावन्ननीलागरो, कुम्मंको नवपंकओवममहासोहग्गसीमामही ।। अम्हाणं मुणिसुव्वओ थिरवओ निस्सीमहेमच्चओ, सी सामी हरिवंसमत्थयमणी हुज्जा पसन्नो सया ॥२०॥ (२१) दिट्टे जंमि सिसुत्तणमि पिउणो सामंतमंताइणो, पच्चंता पणमंतसीसकमला पत्ता विणीयत्तणं । सा अच्चम्भुअभावरंजिअजओ नीलुप्पलको नमी, निग्धाएट घणं मणे समलिणं मे इक्कवीसो जिणो ॥२॥ (२२) जेणेरावणकुंभविब्भमथणी संसारसुक्खक्खणी, नीलिंदीवरलोयणी पइदिणं वदंति संयोइणी । मुका राइमई मणोभवमई सा उग्गसेणंगया, सो नेमी मम माणसामलसरे होज्जा मरालोबमो ॥२२॥ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका खं०२॥ शतिजिनस्तुतयः ॥ पाल C ST या (२३) देहो बत्तविवन्नपन्नगफणाछत्तेण छन्नंबरो, सामासामसरीरओ रयतमोमुक्को समुक्कोसओ। वम्माए विसुओ सुयामरनईनीहारसेलोवमो, सो पासो भवपा(वा)सपासयसमं सज्जो पसाहिज्ज मे ॥२३॥ (२४) वामंगुट्ठतलेण जेण चलिए मेरुमि जाया मही, हल्लंताचलसंचया ससिहरा झल्लंज्झलंतोदहि । तेलुकिकपरिकम महिहरासीरं गहीरं जणा ! तं वीरं पणमेह मोहपसमं दुक्खग्गिउल्हावणे ॥२४॥ ॥ सत्तरीसय जिनस्तुतिः ।।। जे रिटुंजणसंनिगासतणुणो जे कीरकायप्पहा, जे बालारुणसोणचारुरुइणो जे कंचणुकेरभा । जे कंबुज्जलकंतिणो समहिआ ते सत्तरीए सयं, सव्वक्खित्तविवत्तिणो जिणवरा मे हुतु खेमंकरा ॥२५।। ॥सर्वजिनस्तुतिः ॥ किंकिल्लीसुमहल्लपल्लवचओ पुप्फाण बुट्ठीकरा, सद्दो भद्दकरो निसाकरकराकारप्पहा चामरा । सीहालंकियमासणं तणुपहापूरो तहा दुंदुही, रम्मं छत्ततियं च जेसि सुहया ते संतु तित्थेसरा ॥२६॥ ॥ तीर्थस्तुतिः ॥ नीसेसुत्तमपुन्नपुंजकलिया पावंति जं जंतुणो, वत्तो जंमसमुभवे य कमसो सब्बा सुहासंपया । कल्लाणावलिवल्लिकंदसरिसं संमोहसेलासणी, तित्थं तित्थकराण दुत्थदलणं सिग्धं भवेज्जा मम ॥२७॥ ॥ वैयावृत्यकरस्तुतिः ॥ जे तित्थंकरमंदिरेसु महया तोसेण किच्चे रया, संघे सब्वगुणायरंमि सहियं दावंति भत्तं च जे । यल A ग CH ॥ ४८० ॥ चा For Private & Personal use only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः ॥ ।। ४८१ ।। जक्खंबासुयखित्तदेविपमुहा सब्वे हि सब्वायरा, वेयावच्चकरा सुरा भयहरा ते इंतु मे निच्छयं ॥२८॥ ॥ श्रीधर्मघोषसूरिविरचिताः श्रीचतुर्विंशतिजिन स्तुतयः ।। (१) जय वृषभ जिनाभिष्ट्रयसे निम्ननाभि-र्जडिमरविसनाभिर्यः सुपर्वाङ्गनाभिः ।। तम इह किल नाभिक्षोणिभृत्सूनुनाऽभिद्रुतभुवनमनाभि क्षान्तिसंपत्कुनाभिः ॥१॥ (२) प्रकटितवृषरूप ! त्यक्तनिःशेषरूप-प्रभृतिविषयरुप ! ज्ञात विश्वस्वरुप !। जय चिरमसरूप ! पापपङ्काम्बुरूप ! त्वमजित ! निजरूपप्रास्तसज्जातरुप ! ॥२॥ (३) जय मदगजवारिः संभवान्तर्भवारि, व्रजभिदिह तवारिश्रीन केनाप्यवारि । यदधिकृतभवारिसंसनः श्रीभवारिः, प्रशमशिखरिवारि प्राणमद्दानवारिः ॥३॥ (४) अकृतशुभनिवारं योऽत्र रागादिवारं, सुविनतमघवारं संवरोद्भुः सुवारम् । मदनदहनवारं दोलितान्तर्भवारं, नमत सपरिवारं तं जिनं सर्ववारम् ॥४॥ (५) तब जिन सुमते न प्रत्यहं तन्यते न, स्तुतिरिति सुमतेन कृत्तमोनिष्कृतेन । यदिह जगति तेन द्राग् मया संमतेन, ध्रुवमितदुरितेन श्रीश भाब्यं हितेन ॥५॥ (६) परिहतनृपपद्म ! श्रीजिनाधीश ! पद्मप्रभ ! सदरुणपद्म युत्तपोहंसपद्म !। त्वदखिलभविपद्मवातसंबोधपद्म ! स्वजन ! गतविपद्मय्येतु शर्माङ्कपद्म ! ॥६॥ ॥ ४८१ ।। For Private & Personal use only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चतुर्वि || कल्याण कलिका. खं० २ ॥ शतिजिनस्तुतयः ।। ॥ ४८२ ।। (७) दुरितमिभगमोऽहं-पूर्विकार्यक्रमोऽहंत्यसमतभशमोऽहंकारजिद्यः समोहम् । कृतकरणदमो हन्तास्तलोभं नुमोऽहं-मतिहृतमसमोहं तं सुपार्श्व तमोहम् ॥७॥ (८) समतृणमणिभाव ! ज्ञातनिःशेषभाव ! प्रहतसकलभावप्रत्यनीकप्रभाव !। कृतमदपरिभाव ! श्रीश ! चन्द्रप्रभाव ! द्विजपतितनुभाव ! त्यक्तकामस्वभाव ! ॥८॥ (९) जिनपति सुविधे ! यः स्यात्त्वदाज्ञाविधेय-प्रवण इह विधेयः प्रस्फुरद्भागधेय !। त्रिजगदनपिधेय श्लाघ ! सन्नामधेयः, श्रयति शुभविधेयस्तं लसद्रूपधेय !|९|| (१०) य इह निहतकामं मुक्तराज्यादिकामं, प्रणतसुर ! निकामं त्यक्तसद्भोग ! कामम् । नमति स निजकामं शीतल ! त्वां प्रकामं, श्रयतकि तमकामं सर्विका श्रीः स्वकामम् ॥१०॥ (११) विषमविशिखदोषा चारि चारप्रदोषा, प्रतिविधति सदोषाप्यस्य किं कालदोषा । य इह वदनदोषापार्चिषाऽक्षालिदोषा-ऽतनुकमलमदोषा श्रेयसा शस्तदोषा ॥११॥ (१२) कृतकूमतपिधानं सत्वरक्षावधानं, विहितदमविधानं सर्वलोकप्रधानम् । असमशमनिधानं शं जिनं संदधानं, नमत सदुपधानं वासुपूज्याभिधानम् ॥१२।। (१३) भवदवजलवाहः कर्मकुम्भाद्यवाहः, शिवपुरपथवाहस्त्यक्तलोक प्रवाहः । विमल ! जय सुवाहः सिद्धिकान्ताविवाहः, शमितकरणबाहः शान्ततृड्हव्यवाहः ॥१३॥ (१४) जिनवर ! विनयेन श्रीश ! शुद्धाशयेन ! प्रवरतरनयेन त्वं नतोऽनन्त ! येन । ॥ ४८२ ।। Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चतुर्वि ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ शतिजिनस्तुतयः ॥ ॥ ४८३ ।। भविकमलचयेन स्फूर्जदुर्जस्व्ययेन, द्विरदगतिनयेन त्येन भाव्यं सयेन ॥१४॥ (१५) जडिमरविसधर्मन्नुक्तदानादिधर्म !, त्रुटितमदनधर्म । न्यत्कृताप्राज्ञधर्म !। जय जिनवर धर्म ! त्यक्तसंसारिधर्म ! प्रतिनिगदितधर्मद्रव्य मुख्यार्थधर्म ! ॥१५।। (१६) यदि नियतमशान्तिं नेतुमिच्छोपशान्ति, समभिलपत शान्तिं तद्विधाप्याप्तशान्तिम् । प्रहतजगदशान्तिं जन्मतोऽप्यात्नशान्तिं, नमत बिनतशान्तिं हे जना ! देवशान्तिम् ॥१६॥ (१७) ननु सुखरनाथत्वं न नाथे नृनाथ-त्वमपि विगतनाथः किं त्वहं कुन्थुनाथ !। प्रकुरु जिनसनाथः स्यां यथाऽघोषनाथ, प्रणतविबुधनाथ ! प्राज्यसच्छ्रीसनाथ !।।१७।। (१८) अवगमसवितारं विश्वविश्वेशितारं, तनुरुचि जिततारं सद्दयासान्द्र तारम् । जिनमभिनमतारं भव्यलोका ! अतारं, यदि पुनरवतारं संसृतौ नेच्छताऽरम् ॥१८॥ (१९) अनिशमिह निशान्तं प्राप्य यः सन्निशान्तं, नमति शिवनिशान्तं मल्लिनाथं प्रशान्तम् । अधिपमिह विशां तं श्रीर्गता चावशाऽन्तं, श्रयति दुरितशान्तं प्रोज्झ्य नित्यं वशान्तम् ॥१९॥ (२०) न्यदधत मघवा सत्प्रोल्लसच्छुद्धवासः, परिहतगृहवासस्यांसके यस्य वासः । विहितशिवनिवासः प्रत्तमोप्रवासः, स मन इह भवासः सुव्रतो मेऽभ्युबास ॥२०॥ (२१) समनमयत बालः शात्रवान् योऽप्यबाल-प्रकृतिरसितबालः म्रस्तरुक्चक्रवालः । जयतु नमिरवालः सोऽधरास्तप्रवालः, श्वसितविजितवालः पुण्यवल्ल्यालवालः ॥२१।। ॥ ४८३ ।। ' Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं. २ ॥ PAN ॥ चतुर्वि| शतिजिनस्तुतयः ॥ ab ॥ ४८४ ॥ de AM (२२) जितमदन सुनेमे नाऽनिशं नाथ नेमे, निरुपमशमिनेमे येन तुभ्यं विनेमे । निकृतिजलधि नेमेः सीरमोहदु नेमे, प्रणिदधति न नेमे तं परा अप्यनेमे ॥२२।। (२३) अहिपतिवृतपार्श्व छिन्नसंमोहपार्श्व, दुरितहरणपार्श्व संनमद्यक्षपार्श्वम् । अशुभतम उपार्श्व न्यत्कृताभं सुपार्श्व, वृजिनविपिनपार्श्व श्रीजिनं नौमि पाश्वम् ॥२३॥ (२४) त्रिदशविहितमानं सप्तहस्ताङ्गमानं, दलितमदनमानं सद्गुणैर्वर्धमानम् । अनवरतममानं क्रोधमत्यस्य मानं, जिनवरसमानं संस्तुवे वर्धमानम् ॥२४॥ जिन ! तव गुणकीर्ते विश्वविघ्नस्तकीर्ते, विगलदपरकीर्तेर्यगिरा धर्मकीर्तेः । सितकरसितकीर्तेः शुद्धधर्मेककीर्तेः, स्तुतिमहमचिकीर्ते तां कृतानङ्गकीर्तेः ॥२५॥ ॥ सर्वजिनस्तुतिः ।। विगलितवृजिनानां नौमि राजी जिनानां, सरसिजनयनानां पूर्णचन्द्राननानाम् । गजवरगमनानां बारिवाहस्वनानां, हतमदमदनानां मुक्तजीवासनानाम् ।।२६।। ॥ श्रुतस्तुतिः ।। अविकलकलतारा प्राणनाथांशुतारा, भवजलनिधितारा सर्वदाऽविप्रतारा । सुरनरविनता रात्वाईती गीर्वतारा-दनवरतमितारा ज्ञानलक्ष्मी सुतारा ॥२७॥ ।। ४८४ ।। SEAN Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ देवीस्तुतिः ॥ नयनजितकुरङ्गी सुधारोचिरङ्गी, मिह किल मुहुरंगीङ्गी कृत्य चित्तान्तरङ्गी । स्मरति हि सुचिरं गीर्देवतां यस्तरङ्गी, कुरुत इममरं गीत्यादिकृद्वन्धुरंगीः ॥२८।। ।। कल्याण कलिका. खं०२॥ ।। स्तुति मंत्राः ॥ ॥ ४८५ ॥ ३-परिच्छेदः (स्तुति-स्तव-मंत्राः) प्रतिष्ठाविधिसंबन्धाः, स्तुति-स्तवाः समन्त्रकाः । अभ्यासार्थं विधिकृतां, परिच्छेदऽत्रवर्णिताः ॥४॥ जे प्रतिष्ठा विधिमा उपयोगी छे अथवा तो जेमनो प्रतिष्ठा विधि साथे संबंध छे, एवी स्तुतिओ स्तवो अने मंत्रो विधिकारोना | अभ्यासार्थे आ परिच्छेदमा दाखल करेल छे. (१) विधिमां कराता देववन्दननी स्तुतिओ - १-श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदायस्य पदाः सुशान्तिदाः सन्तुषन्ति जने ॥ २-सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गा सदास्फुरदुपाङ्गा । भवतादनुपहतमहा-तमोपहा द्वादशाङ्गी वः ॥ ३-श्रीचतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयाच्छ्रीमती शान्तिदेवता ।। ४-या पातिशासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साभिप्रेतसमृद्धयर्थं, भूयाच्छासनदेवता ॥ ५-यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ।। की। शकि ॥ ४८५ ।। G | Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. S | था स्तव A खं०२॥बा मंत्राः ॥ करोत. ॥ ४८६ थ CHA न ६-चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना । भद्रं करोतु संघस्याऽच्छुप्ता तुरगवाहना ॥ ७-संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ।। ८-मकरासनमासीनः, कुलिशांकुशपाणि-चक्रपाशशयः । आशामाशापालो, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः ॥ ९-करोतु शान्तिं जलदेवताऽसौ, मम प्रतिष्ठाविधिमाचरिष्यतः । आदास्यतो वा मम वारि तत्कृते, प्रसन्नचित्ता प्रदिशन्त्वनुज्ञाम् ॥ १०-यदधिष्ठितजलविमलाः, सकलाः सकला जिनेश्वरप्रतिमाः । सा जलदेवी पुरसंघ-भूभुजां मंगलं देयात् ॥ ११-उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः । द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ।। १२-ज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानां । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥ १३-अम्बा बालाङ्किताकाऽसौ, सौख्यख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालंकार-चित्रसिंहासनस्थिता ।। १४- उन्मृष्टरिष्टदुष्ट-ग्रहगतिदःस्वप्नदुर्निमित्तादि । संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ।। १५ -अर्हस्तनोतु सश्रेयः, श्रियं, यद्धयानतो नरैः । अप्यन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सहसौच्यत ॥ १६-ओमिति मन्ता यच्छासनस्यनन्ता सदा यदंघ्रिश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥ १७-नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ।। कान G थान कन S था । For Private & Personal use only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ All दा थान 10 G स । कल्याणकलिका. खं० २॥ स्तवमंत्राः ॥ ॥ ४८७॥ च AHA ran १८-पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्रावतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासना देवी ॥ १९-विश्वाशेषसुवस्तुषु, मन्त्रैर्याजसमधिवसति वसतौ । सेमामवतरतु श्री-जिंनतनुमधिवासना देवी ॥ २०-प्रोत्फुल्लकमलहस्ता, जिनेन्द्रवरभवनसंस्थिता देवी । कुन्देन्दुशुक्लवर्णा, देवी अधिवासना जयति ॥ २१-यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनबिम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥ २२-जइ सग्गे पायाले, अहवा खीरोदहिम्मि कमलवणे । भयवइ करेहि सत्तिं, सन्निझं सयलसंघस्स ॥ २३-अट्ठविहकम्मरहियं, जा बंदइ जिणवरं पयत्तेण । संघरुप हरउ दुरियं, सिद्धा सिद्धाइया देवी ॥ २४-सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्त्यकराः सुराः । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥ सूचना :- प्रत्येक विधान प्रसंगे कराता देववन्दनमा प्रतिष्ठाप्य जिनस्तुति अने ते पछीनी बे एम ३ स्तुतिओ कहेवाइ गया पछी सिद्धाणं बुद्धाणं पछीना कायोत्सर्गान्ते शान्तिनाथ आदिनी स्तुतिओ कहेवाय छे. कदापि अधिकृतजिनस्तुति याद न होय तो "अहस्तनोतु स." इत्यादि स्तुतिओ कहेवी. (२) स्तवोः - १-पंचपरमेष्ठि-महास्तवः । (वज्रपंजरस्तोत्रम्) परमेष्ठिनमस्कार, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥११॥ | १. "जैनं विम्बं" इत्यपि पाठान्तरम् । Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ स्तुति स्तवमंत्राः ।। ॥ ४८८ ॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्व सिद्धाणं, मुखे मुखपुटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोदृढम् ।।३।। ॐ नमो लोए सब्वसाहणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सब्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोभूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं ब्याधि-राधिश्चापि कदाचन ।।८।। २-श्रीपार्श्वनाथस्तवःॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्वचिन्तामणीयते । ह्रीं धरणेन्द्रवैरोट्या-पद्मादेवीयुताय ते ॥१॥ शान्ति-तुष्टि-महापुष्टि-धृतिकीर्तिविधायने । ॐ ह्रीं द्विड्ब्यालवेताल,-सर्वाधिव्याधिनाशिने ॥२॥ जयाऽजिताख्या विजया-ख्यापरीजितयान्वितः । दिशांपालैहैर्य: -विद्यादेवीभिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिआउसाय नम-स्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् । चतुःषष्ठिसुरेन्द्रास्ते, भाषन्ते छत्रचामरैः ॥४॥ श्रीशंखेश्वरमण्डन-पार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प ! । चूरय दुष्टवातं, पूर मे ञ्छितं नाथ ! ॥५॥ ॥ ४८८ ॥ Tw.jainelibrary.org Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण लिका. ॥ स्तुतिस्तब मंत्राः ॥ ॥ ४८९ ॥ ३-श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम्तं नमह पासनाहं, धरणिंदनमंसिअं दुहविणासं । जस्स पभावेण सया, नासंति उबद्दवा बहवे ॥१॥ पई समरंताण मणे, न होइ वाही न तं महादुक्खं । नामं चिअ संतसमं, पयर्ड नत्थित्थ संदेहो ॥२॥ जलजलणवाहिसप्प-सीहचोरारिसंभवे खिप्पं । जो सरइ पासनाहं, पहवइ न कया भयं तस्स ॥३॥ इहलोगट्ठी परलोगट्ठी जो सरइ पासनाहं तु । तं तह सिज्झइ खिप्पं, इय नाहं सरह भगवंतं ॥४॥ ४ परमेष्ठिस्तवः ओमिति नमो भगवओ, अरिहंत-सिद्धायरिय-उवज्झाय । वरसब्वसाहु मुणिसंघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स ॥१॥ सप्पणवनमो तह भगवइ-सुयदेवयाइ सुहयाए । सिवसतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरइय-वरुणवाउकुबेरईसाणा । वंभो नागुत्ति दसण्ह-मवि य सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोम-यम-वरुण-वेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणियं ॥५॥ ५-श्रीननसूरिरचितः-सप्ततिशतयंत्रस्तवः "पणमिय सिरिसंतिजिणं, थुणामि अंकेहिं अरिहसत्तरिसयं । परमिट्ठीकुट्टेसुं आगमविहिसब्वओभदं ॥१॥ ॥ ४८९ ।। For Private & Personal use only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ - ॥ स्तुतिस्तवमंत्राः ॥ ॥ ४९० ॥ तेयाला चवीसा, तीसच्छत्तीस सत्ततीसा य । कम्मवणदहणनिउणा, जिणवसहा दिंतु मह सिद्धिं ॥२॥ पणतीसा इगुयाला, बायाल तिवीस इगुणतीसा य । कल्लाणपंचकलिया, संघस्स कुणंतु कल्लाणं ॥३॥ बावीसा अडवीसा, चउतीसा दुगुणवीस छायाला । सिहिअहियाहियहिअ वाहिय, दुद्रुट्ठियमोहजोहहरा ॥४॥ इगुणयाला पणयाला, छब्बीसा सत्तवीस तित्तीसा । जरमरणरोगरहिया रणरहिया मंगलं दिंतु ॥५॥ इगतीसा बत्तीसा-द्रुतीस चउचत्त पन्नवीसा य । वंतरभूयपिसाया, रक्खसगहरक्खग्गा हुंतु ॥६॥ इय विहिणा सत्तरिसयं, पडलिहियं जो थुणेइ अच्चेइ । तस्स न पहबइ विग्धं, सिग्धं सिद्धिं समज्जिणइ ॥७॥ सिरिनन्नसूरिपणयं, सत्तरिसयं जिणवराण भत्ताण । भवियाण कुणउ संति, पुलुि तुहिँ थिई कित्तिं ॥८॥ ६-शाश्वताऽशाश्वतजिनस्तवः पश्चानुत्तरशरणा, ग्रैवेयककल्पतल्पगतसदना । ज्योतिष्कव्यन्तरभवन- वासिनी जयति जिनराजी ॥१॥ वैताढ्यकुलाचलनाग-दन्तवक्षारकूटशिखरेषु । ह्रदवर्षकुण्डसागर-नदीषु जयताञ्जिनवराली।॥२॥ इषुकारमानुषोत्तर-नन्दीश्वररुचककुण्डलनगेषु । सिद्धालयेषु जीयाज्जिनपद्धतिरिद्धतत्त्वासि ॥३॥ यत्र बहुकोटिसंख्याः, सिद्धिमगुः पुण्डरीकमुख्यजिनाः । तीर्थानामादिपदं, स जयति शत्रुजयगिरीशः ॥४॥ अष्टापदाद्रिशिखरे निजनिजसंस्थानमानवर्णधराः । भरतेश्वरनृपरचिताः, सद्रत्नमया जयन्तु जिनाः ॥५॥ ऋषभजिनपदस्थाने, बाहुबलिविनिर्मितं सहस्रारम् । रत्नमयधर्मचक्रं, तक्षशिलापुरवरे जयति ॥६॥ ॥४९०॥ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ४९१ ।। Jain Education Internation विंशत्या तीर्थंकरै - रजिताद्यैर्यत्र शिवपदं प्राप्तम् । देवकृतस्तूपगण: स, जयति समेतगिरिराजः ||७|| मथुरापुरीप्रतिष्ठः, सुपार्श्वजिनकालसंभवो जयति । अद्यापि सुराभ्यर्च्यः, श्रीदेवविनिर्मितः स्तूपः ||८|| ब्रह्मेन्द्रदशानन रामचन्द्रमुख्यैः प्रपूजिते जयतः । अंगदिगानगरस्थे, जिनबिम्बे दिव्यरत्नमये ||९|| यस्तिष्ठति वरवेश्मनि सार्द्धाभिर्द्रविणकोटिभिस्तिसृभिः । निर्मापितोभ्मराज्ञा, गोपगिरौ जयति जिनवीरः ||१०|| नेमेः कल्याणत्रिक-मभवन् मिष्कमणमुख्यममरकृतम् । यस्मिन्नसौ महात्मा, रैवतकमहागिरिर्जयति ॥ ११ ॥ मोढेरपुरनिवासी, ब्रह्मोपपदेन शान्तिना रचितः । स्वयमेव सप्तहस्तः, श्रीवीरजिनेश्वरो जयति ||१२|| जयति सदतिशययुक्तः, स्तंभनकनिकेतनो जिनः पार्श्वः । पायात् प्रतिकृतिपूज्यो, मुण्डस्थलसंस्थितो वीरः ॥ १३॥ नमिविनमिकुलान्वयिभिर्विद्याधरनाथकालकाचार्यैः । कासहूदाख्ये नगरे, प्रतिष्ठितो जयति जिनवृषभः ||१४|| नागेन्द्रचन्द्रनिर्वृति-विद्याधरमुख्यसकलसंघेन अर्बुदकृतप्रतिष्ठो, युगादिजिनपुंगवो जयति ॥ १५ ॥ विमलनरेन्द्रकृतस्तुति-र्वृषभोऽर्बुदनगविशेषको जयति । जयतीह जगति शान्तिः, श्रीगोकुलवासकृतपूजः || १६ || पांडवमात्रा कुन्त्या, संजाते श्रीयुधिष्ठिरे पुत्रे । श्रीचन्द्रप्रभनाथः, प्रतिष्ठितो जयति नाशिये ||१७|| कलिकुण्डकुर्कुटेश्वर-चम्पाश्रावस्तिगजपुरायोध्याः । वैभारगिरिरपापा, जयन्ति पुण्यानि तीर्थानि ॥१८॥ ॐकारनगरवायडजालंधरचित्रकूटसत्यपुरे । ब्रह्माणपल्लिकादिषु, ऋषभादिजिना जयन्त्वनाः ||१९|| ॥ स्तुति स्तव मंत्राः ॥१ ॥ ४९१ ।। Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्तुति ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ स्तवमंत्राः ॥ ७-श्रीचन्द्रप्रभविद्यास्तवनम् । ॐ चन्द्रप्रभ ! प्रभाधीश !, चन्द्रशेखरचन्द्रभूः । चन्द्रलक्ष्माङ्क! चन्द्राङ्ग! चन्द्रबीज! नमोऽस्तु ते ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीं हूँ चन्द्रप्रभ, ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभो सिद्धिमहासिद्धि-तुष्टिपुष्टिकरो भव ॥२॥ द्वादशसहस्रजप्तो, वाञ्छितार्थफलप्रदः । महितस्त्रिसंध्यं जप्तः, सर्वाधिव्याधिनाशकः ॥३॥ सुरासुरेन्द्रमहितः, श्रीपाण्डवनृपार्चितः । श्रीचन्द्रप्रभतीर्थेश ! श्रियं चन्द्रोज्ज्वलां कुरु ॥४॥ श्रीचन्द्रप्रभाविद्येयं, स्मृता सद्यः फला मता । भयाधिव्याधिविध्वंस-दायिनी मे वरप्रदा ॥५॥ ८-श्रीअम्बिकास्तवः देवि गन्धर्वविद्याधरैर्वन्दिते ! जय जयाऽमित्रवित्रासनि विश्रुते ! । नूपुरारावसंरुद्धभुवनोदरे !, मुखररवकिंकिणीतारतारस्वरे ॥१॥ ॐ ह्रीं मन्त्ररूपे शिवशंकरे !, अम्बिके देवि जय जन्तुरक्षाकरे ! तारहारावलीराजितोरः स्थले !, कर्णताडङ्कविभ्राजिगल्लस्थले ! ॥२॥ ॐ ह्रीं स्तंभिनी मोहिनीदुष्टउच्चाटनी, क्षुद्रविद्रावणी दोषनिर्नाशिनी । जंभिनी भ्रांतिभूतग्रहस्फेटिनी, शान्तिधृतिकीर्तिमतिसिद्धिसंसाधिनी ॥३।। || ४९२ ॥ For Private & Personal use only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्तुति । कल्याणकलिका. खं० २॥ स्तव मंत्राः ॥ ॥ ४९३ ॥ ॐ ही मन्त्रविद्येन विद्ये स्वयं, ही आगच्छ २ त्वं कुरु २ दुरितक्षयम् । ॐ प्रचण्डे २ प्रसीद प्रसन्नेक्षणे, ही सदानन्दरूपे सुरूपे विशालेक्षणे ॥४॥ ह्रीं नमो देवि सत्पुत्रिशुभं भैरवे! (वि!), जये अपराजिते तप्तहेमच्छवे (वि!) । ॐ ह्रीँ जगज्जन्मसंहारसंसर्जने!, ह्रीँ कूष्माण्डि भयव्याधिविध्वंसने ! ॥५॥ सिंहयानस्थिते भीमरूपस्तुवे!, नाममन्त्रेण विद्राणितोपद्रवे । अवतीपावतररैवतगिरिवासिनी, अम्बिके देवि जय जगत्स्वामिनी ॥६॥ ह्रीं महाविघ्नसंघातनिर्नाशिनी, दुष्टपरमन्त्रविद्याबलच्छेदिनी । हस्तविन्यस्तसहकारफललुम्बिका, हरतु दुरितानि देवी जगत्यम्बिका ॥७॥ इति जिनेश्वरसूरिभिरम्बिका, भगवती शुभमन्त्रपदैः स्तुता । प्रवरपत्रगता शुभसंपदं, वितरतु प्रणिहन्त्वशुभं मम ॥८॥ ९ -कुरुकुल्लादेवीस्तुतिःप्रणवहृदि यदीयं नाम मायासमिद्धं, वहसि षडरलीनामातृकोषान्तरौद्रे । भगवति! कुरुकुल्ले! तं गलद्रोगराजं, (भुवि) निरुदयभूता नैव लुम्पन्ति लूताः ॥१॥ कमलति कपिकच्छूर्माल्यति व्यालपाली, तुहिनतिदववह्मिाघति ग्रीष्मकालः। शिशिरकरति सूरः क्षीरति क्षारनीरं, विषममृतति मातस्त्वत्प्रभावेण भृतति पुंसाम् ॥२॥ ||४९३ ॥ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यान ॥ स्तुति ।। कल्याण कलिका. खं० २ ॥ मंत्राः ।। ज्वरभरपरितापोद्रक्तपित्तातिवात-क्षतधुततनुनिर्यदबुबुदच्छिरौद्राः । अपि घनरसपूतिक्लिन्नभिन्नास्थिमांसा-स्त्वदभिमुखमुपेता नावसीदन्ति सन्तः ।।३।। श्रुतिपथगतमुच्चै म यस्याः पवित्रं, विषमतमविषति नाशयत्येव सद्यः । त्रिभुवनविनता सा संमुखीभूय देवी, वितरतु कुकुल्ला संपदं मे विशालाम् ॥४॥ ज्वलनजलमृगेन्द्रोद्वाससंग्रामशत्रु-प्रभृतिकमपयाति त्वद्गतध्यानमात्रात् । घृततनयशरीरारोग्यसौभाग्यभाग्या-दिकमुपचयमेत्यभ्यर्थनात्तावकीनात् ॥५॥ कियति महति दूरे त्वन्नतानां श्रुतश्रीः, कथमिव दुरवापा तैर्जगज्जैत्रलक्ष्मीः। असुलभमिह किं वा वस्तु तेषां समस्तं, त्रिभुवनजननि! त्वं वीक्षसे यान् प्रसन्ना ॥६॥ सुभटकरतले त्वं शस्त्ररूपासि शक्ति-स्त्वमवनिपतिपूच्चैर्देविमन्त्रादिशक्तिः। किमपरमनिलादौ त्वं महाप्राणशक्तिः, सकलभुवनपूज्या त्वं च जैनेन्द्रशक्तिः ॥७॥ प्रतिविषयमजस्त्रं स्वेच्छयागच्छदेतत्, पवनविजययोगात् संनिरुध्य स्वचित्तम्। यदिह किमपि सन्तः संततं ध्याम पश्य-न्त्यवितथमयमुच्चैर्देवि युष्मत्प्रसादः ॥८॥ सकलकरणरोधाद् ध्यानलीनस्य पुंसः, स्फुरसि मनसि यस्य त्वं महोद्योतरूपा । सपदि विदलयन्ती तस्य जाड्यान्धकारं, समुदयति समन्तात् केवलज्ञानलक्ष्मीः ॥९॥ For Private & Personal use only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ स्तुति स्तवमंत्राः ॥ ॥४९५ । ॥ इति श्रीवादिचक्रवर्ति श्रीदेवाचार्यविरचिता कुरुकुल्लादेवीस्तुतिः ॥ ॐ ह्रीं कुरुकुल्ले २ सर्पघोणसमूषकान् वृश्चिकान् उच्चाटय २ ह्रीं कुरुकुल्ले स्वाहा। सप्तवारान् शयनकाले स्मर्यते । १० सप्ततिशत-यन्त्रलिखनविधिःकंसयसुभायणम्मि, तिमुट्ठिपरिमाणसंकुसदब्भेण,। कप्पूरागुरुचंदण-विमीसियं लिहइ सतरसयं ॥१॥ अठुत्तरं सहस्सं, जावो एयस्स जाइकुसुमेहिं । कायब्वो सत्त य सत्तवासरा(४९) मुग्गलगहम्मि ॥२॥ सामन्नमुग्गला जे, उवसमं जंति सत्तयदियहेहिं । दुट्ठाविमुग्गला जे खलु नासंति य पुनजोएणं ॥३॥ एगुणवासदिणावि हु, मोग्गपगहियं जंतमोहलिउं । पाइज्जइ अइदुटुंमि, मुग्गले कुणह होममिणं ॥४॥ राईसरिसवगुगुल-कसिणुनावेडिसस्स समिहीओ,। काउं तिकोणकुंडं, चच्चरे नयरमज्ञ व ॥५॥ होमेह मूलमंतेणं, गुग्गुल मूलजावकुसमेहिं । काउं दसंसगुलियं, अद्रुत्तरसयपमाणं च ॥६॥ दिसिबंध अप्परक्खा, दसदिसिबलिखेवपुव्वयं विहिणा । सत्तरिसयप्पभावा, जह करिणो सिंहपोयस्स ॥८॥ एवं मुग्गल आगास-चारिणी खित्तवालगिहदेवी । सत्तरिसयप्पसाया, दोसा नासंति पाणिणं ॥९॥ जो कुणइ लक्खजावं, सत्तरिसयमंतकोडिजावं वा । सो कीलइ वंतरदेवयाहिं समयं सुसामिब्व ॥१०॥ एयं च रुप्पथाले, लिहियं वंझाण धारए गम्भं । दिणसत्तसत्तजाई-कुसुमसहस्सेहिं परिजवियं ॥११॥ ॥ ४९५ ॥ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्तुति ।। कल्याणकलिका. खं०२॥ बन स्तव मंत्राः ॥ ॥ ४९६ रक्खाकयकडिबद्धा, हणियवाहाइदोससयजालं । दुद्धेण मज्झ पीयं, धारइ गभं न संदेहो ॥१२॥ जासिं गभविणासो, जायइ जुबईण बालमरणाइ । दोसकयं निन्नासई, रक्खा दससहसपरिजवियं ॥१३॥ कुंकुंमगोरीयणरत्त-चंदणं काउं एगओ लिहियं । नीलंबरेसुं जंतं, सत्तरिसयं सिद्धपणयपयं ॥१४॥ कणवीरसेयआरत्त-कुसुमदससहस्सपरिजवियं, नारीणं कुणइ वसे, भत्तारं दीवए तवियं ॥१५।। दाओ च्चिय आणइ, जुवईए ही कारगम्भिय जंतं । झाणेणारत्तेणं रत्तुप्पलसहसजावेणं ॥१६॥ कसिणचउद्दसिमंगल, रविवारे मडयकप्परे पवरे । विहकोइलराईविस, कणयरसअनाडिरत्तेणं ॥१७।। उववासिएण लिहियं, अइकसिणसुपुप्फसहसपरिजवियं । ईसरधयानिबद्धं, सत्तुं देसाउनासेई ॥१८॥ सारेइ महीमंडल-पक्खित्तं कसिणचत्तकुसुमेहिं । परिजवियं सत्तरिसयं, पीयं थंभेउ रिउवयणं ॥१९॥ विहिओ कम्मणदोसो, नासइ दिद्रुण परमजंतेण । सुहकज्जे सियज्झाणं, सियकुसुमसहस्सदसजावो ॥२०॥ ॥ इति सत्तरिसयविधिः संपूर्णः।। ॥ क्षिप ॐ स्वाहा ॥ हास्वा ॐ पक्षि ॥ रक्षा वार ३ स्मरणीया आसन्नदूरतिमिरं, मालमलविंदं च कंठसरभंगं । सिंववनासो नासइ, मंदग्गीरायमंदं वा ॥१॥ ॐ पद्मावति देवि मम सर्वोपद्रवान् रक्ष रक्ष स्वाहाः इति श्री संपूर्णः।। श्री शुभं भवतु ॥ ॥ ४९६ ।। Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ४९७ ।। ११ - सप्ततिशत- यंत्रस्तुतिः । आनंदोल्लासनमात्रिदशपतिशिरः प्रसूनपूज्यपदम् । जिनसप्ततिशतमानम्य वच्मि तस्यैव संस्तवनम् ॥१॥ जंबूद्वीपे भरतैरावतयोरेकमेकमभिनौमि तद्वात्रिंशद्विजयेयैकैकं जिनवरं वंदे ॥ २ ॥ घातकखंडद्वीपे द्विगुणे भरतद्विके जिनद्वितयम् । एरावते च जिनयुगलममलमभिनौमि सद्भक्त्या ||३|| वंदे महाविदेहे, जिनांश्चतुःषष्टिविजयसंभविनः । केवलकिरणोद्योतितजगत्त्रयानस्तसंतमसः ||४|| श्रीपुष्करार्द्धनाम्नि च तावत एव प्रमाणतः प्रयतः । परमेष्टिनः समभिष्टौमि, नष्टकर्माष्टविद्विष्टान् ||५| वरकनकशंखविद्रुम-मरकतघनसन्निभं विगतमोहम् । सप्ततिशतं जिनानां सर्वाऽमरपूजितं वन्दे || ६ || दवदहनभूभृदंभस्तस्करविद्युत्फणीभविस्फोटम् । हरि मारि-बंधनभयं, तत्कालं संस्मृतं हरति ॥७॥ यो यंत्रस्थं ध्यायति, सप्ततिशतमर्हतां पुलकितांगः । न भवंति रुजो नश्यंति, चारयस्तस्य सर्वेऽपि ||८|| द्वौ सप्तसप्ततिरशीति-रथ संयुता चतुर्भिश्च । एकाशीतिरशीतिः षट् चक्रत्रयोऽष्टौ तथैकः स्यात् ॥९॥ त्र्यधिकाशीतिः सप्तति-रष्टयुताशीतिरेककोना च । द्वाशीतिश्वत्वारः, पंच च यंत्रे विधिर्ज्ञेयः ॥१०॥ क्षितिपतिमतिसंक्रुद्धं, जपितं बीजाक्षरैः प्रसादयति । हरहुंहः सरसुंसः ॐ क्लीं ह्रीँ हूँ फुट् स्वाहा ||११|| घनसारचंदनद्रव-लिखितममत्रे पयः प्रपीतं च । विस्फोटनाशनं खलु कुर्याद्वारे तथा न्यस्तम् ||१२|| पापमलं दहति भृशं, हृत्पंकजकोटरे तथा ध्यातम् । त्रिभुवनवशमानयतियो यन्त्रमेतत्प्रयुंजयति ||१३|| ॥ स्तुति स्तवमंत्राः ॥ ।। ४९७ ।। Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ स्तुतिस्तवमंत्राः ॥ | न षोडशकोष्टगतं यः, सबीजमेतत्करे दधात्यनिशम् । तस्य करस्थाः पुंसः कल्याणपरंपराः सकलाः ॥१४॥ ॥ इति श्रीसप्ततिशतजिन यंत्रस्तुतिः ।। "सत्तरिसय जिण षोडश देव्या बीजाक्षरसमन्विता मूलमंत्रेण सत्तरिसय जाप (१७०) सुगंधिपुष्पैः षोडशदेव्याः पुष्प १६ हरहुंहः पुष्प १६ क्षिप ॐ स्वाहा पुष्प ५, मध्ये, पुष्प ६ बीजाक्षर हम्ल्यू २ क्षौँ १ पुष्प ३ चतुःकोणे यक्ष पुष्प ६ अंबिकाशासनदेव्याः पुष्प २ ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ हूः पुष्प ६ एवं पुष्प २२८, भूर्जपत्रे वा लिख्य पूजनीयं गृहे सर्वसंपदं करोति, कुंकुमकर्पूरकस्तूरिकागोरोचनाभिर्विलिख्य करे कटयां वा बद्धे सर्वज्वरपिशाचशाकिन्याद्या दोषा नश्यंति, स्थाले लिखित्वा शीतलिका नाशयति ॥ इति श्रीसंपूर्णः ।। ध्वजदण्डमर्कटयामुत्कीर्यं । तिजयपहुत्तेति सत्तरिसयजिन यंत्रकम् । १ । ३४ यन्त्रकम् - २५ ह ॐ ८० र ८० र ॐ १५ हुँ ॐ वज्रशृंख- ५० हः ॐ रोहिण्यैः नमः | प्रज्ञप्त्यै नमः | लायै नमः । वज्रांकुशायै नमः २० स ॐ अप्रति-४५ र ॐ पुरुषद ३० सुं ॐ काल्यै ७५ सः ॐ चक्रायै नमः | तायै नमः । नमः महाकाल्यै नमः स्वा ७० ह ॐ गौर्य ३६ र ६० १ ॐ सर्वाखा ५ हः ॐ गन्धाय नमः महाज्वालायै नमः मानव्यै नमः ५५ स ॐ १० र ॐ ६५ सुं ॐ मानस्यै ४० सः ॐ वैरुट्यायै नमः | अच्छप्तायै नमः नमः महामानस्यै नमः नमः ॥ ४९८ ॥ १४ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सप्ततिशतयन्त्रं २ श्रीनन्नसूरिस्तवानुसारि ॥ सप्ततिशतजिनयन्त्रकम् ३ संस्कृतस्तोत्रानुसारि ॥ ॐ वरकनकशंखविद्रुम - ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ स्तुति स्तवमंत्राः ॥ ८४ हः ८० र ६ सुं ३सः सर्वामरपूजितं वन्दे स्वाहा । रोहिण्यै नमः । प्रज्ञप्त्यै नमः | वज्रशृंखलायै नमः | वज्रांकुश्यै नमः | अप्रतिचक्रायै नमः ४२ पॐ २९ सः ॐ महामानस्यै नमः | मोहिन्यै नमः | जयायै नमः । जंभायै नमः | पुरुषदत्तायै नमः | २२ क्षि ॐ | २८ पॐ ४. स्वा ॐ ४६ हा ॐ मानस्यै नमः | अपराजितायै नमः विजयायै नमः काल्यै नमः २६ स्वा ॐ अछुप्तायै नमः | मोहायै नमः | अजितायै नमः | जंभिन्यै नमः महाकाल्यै नमः मरकत धनसंनिभं विगतमोहम् । | ७८ हः | ८२ र ४ सुं| ५ सः सप्ततिशतं जिनानां - - सूचनाः . स्तवो पैकिना नं.१ ना स्तबनो उपयोग सकलिकरण (आत्मरक्षा) माटे कराय छे. नं.२-३ ना स्तवो विधिना देववंदनमा चैत्यवंदनमा स्तवनने ठेकाणे ३१ स ॐ । ३२ र ॐ ३८क्ष ॐ सर्वाखा- ४४ सुं ॐ वैरुट्यायै नमः | मानव्यै नमः । | महाज्वालायै नमः। गन्धायै नमः २५ सः ॐ गौर्यै नमः Jan Education International For Private Personal use only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ स्तुतिस्तव-. मंत्राः ॥ * बोलाय छे. ज्यारे ७ थी ११ नं. सुधीना स्तवो तथा सप्ततिशत यंत्रकल्प तेमज तेनां ३ यंत्रो विशेष कार्यमा उपयोगी थवा माटे आपेल छे. I प्रतिष्ठोपयोगी-अभ्यसनीय-मंत्राः१-सकलीकरणमन्त्र, ॐ नमो अरिहंताणं हृदयं रक्ष २ । ॐ नमो सिद्धाणं ललाटं रक्ष २ । ॐ नमो आयरियाणं शिखां रक्ष २ । ॐ नमो उवज्झायाणं कवचम् । ॐ नमो लोए सब्ब साहूणं अस्त्रम् (७ वारान्) २-शुचिविद्या-ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरिआणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहणं । ॐ नमो आगासगामीणं । ॐ नमो चारणलद्वीणं । ॐ हः क्षः नमः । अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा। (५-७ वारान्) पादलिप्तीया शुचिविद्या-ॐ नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरिआणं नमोउवज्झायाणं नमो लोए संवसाहणं ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताणं ॐ नमो विज्झाहराणं ॐ नमो आगासगामीणं ॐ कं क्षं नमः अशुचिः शुचिर्भवाभि स्वाहा। (सुरभिमुद्रया ५-७ वारान्न्यसेत्) ३-बलिमंत्र-ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा । ( ७ वारान् बलिमंत्रणं कवचो दिग्बन्धश्च ) पादलिप्तीय बलिमन्त्रःॐ नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरिआणं नमो आगासगामिणं नमोचारणाइलद्धीणं जे इमे Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ स्तुति ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ स्तवमंत्राः ॥ किंनरकिंपुरिसमहोरगगरुलसिद्धगंधब्बजक्खरक्ख- सभूयपिसायडाइविपभिई जिणघरणिवासिणो नियनियनिलयठिया पवियारिणो | संनिहिया य असंनिहिया य ते सव्वे विलेवणपुप्फधूवपईवसणाहं बलिं पडिच्छन्तु तुट्ठिकरा भवन्तु सिवंकरा भवन्तु संतिकरा भवन्तु सत्थयणं कुणंतु सव्वजिणाणं संनिहाणभावओ पसन्नभावेण सवत्थ रक्खं कुणंतु सब्बदुरियाणि नासेंतु सब्वासिवं उवसमेंतु संतिपुट्ठितुट्ठिसिवसत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा । पादलिप्तीयदिग्बन्धमंत्रः . ॐ हूँ V फुट किरिटि किरिटि घातय घातय परविघ्नानास्फोट्याऽऽस्फोटय सहस्त्रखण्डान् | कुरु कुरु परमुद्रां छिन्द छिन्द परमन्त्रान् भिन्द भिन्द क्षः फट् स्वाहा । (अनेन श्वेतसर्षपानभिमन्त्र्य दिग्बन्धाय पूर्वादिदिक्षु क्षेप्याः ) ४-जलादिमंत्र. १ ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ २ जलं गृह्ण २ स्वाहा, जलकलशाभिमंत्रणम् ॥ | २ ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु २ विपृथु २ गन्धान गृह्ण २ स्वाहा । गन्धाधिवासनम् ॥ ३ ॐ नमो यः सर्वतो मे मेदिनी पुष्पवती पुष्पं गृह्ण २ स्वाहा । पुष्पाभिमन्त्रणं ॥ ४ ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह २ महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण २ स्वाहा । धूपाभिमंत्रणं ।। पादलिप्तीयजलादिमंत्रो - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आपो जलं गृह्ण २ स्वाहा, (प्रथमस्नानषट्कमंत्रः)॥ ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु विपृथु पृथु विपृथु गन्धं गृह्ण २ स्वाहा, (अष्टवर्गादि स्नान समूहमंत्रः) ॥ ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते मेदिनी पुरु पुरु पुष्पवति पुष्पं गृह्ण २ स्वाहा (सर्वस्नान पुष्प मंत्रः) ॥ ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते ॥ ५०१ ॥ For Private & Personal use only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ ॥ स्तुतिस्तवमंत्राः ॥ ॥५०२ दह दह महाभूते तेजोधिपते धू धू धूपं गृह्ण २ स्वाहा । (समस्तस्नान धूप मंत्रः) । ५ जिनाहानमंत्र- ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ६ जिनविज्ञप्तिमंत्र- ॐ इह आगच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा । ॐ क्षाँ क्ष्वी ह्रीं क्षीं भः स्वाहा (इत्ययं वा)। ७ जिनस्वागतमंत्र - स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु प्रसादं धिया कुर्वन्तु अनुग्रहपरा भवन्तु भव्यानां | स्वागतमनुस्वागतम् । ८ अर्धनिवेदनमंत्र - ॐ मः अघु प्रतीच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा । ९ शुद्धजलस्नात्रकाव्य - चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-नृत्यन्तीभिः सुरीभिर्ललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भ-बिंबं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरः स्नापयाम्यत्र काले ॥शा १०- अधिवासनामंत्रद्वय - ॐ नमो खीरासवलद्धीणं ॐ नमो महुआसवलद्धीणं । ॐ नमो संभिन्नसोयाणं ॐ नमो पयाणुसारीणं ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं जमिअं विजं पउंजामि विज्जा पसिज्झउ, ॐ अवतर २ सोमे २ कुरु २ वग्गु २ निवग्गु | २ सुमिणे सोमणसे महुमहुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा (अथवा) ॐ नमः शान्तये हूँ यूँ हूँ सः । ॥ ५०२।। For Private Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं. २ ॥ ॥ स्तुतिस्तब मंत्राः ॥ पादलिप्तीये अधिवासना विद्ये - ॐ नमो भगवओ उसभसामिस्स पढमतित्थयरस्स सिज्झउ मे भगवई महाविज्जा जेण सब्वेण इंदेण सन्वदेवसमुदयेण मेरुम्मि सव्वोसहीहिं सब्वे जिणा अभिसित्ता तेण सव्वेण अहिवासयामि सुब्वयं दढव्वयं सिद्धं बुद्धं सम्मदसणमणुपत्ते हिरि हिरि सिरि सिरि मिरि मिरि गुरु गुरु अमले अमले विमले विमले सुविमले सुविमले मोक्खमग्गमणुपत्ते स्वाहा (अथवा) ॐ नमो खीरासवलद्धीणं ॐ नमो महआसवलधीणं ॐ नमो संभिन्न सोईणं ॐ नमो पयाणुसारीणं ॐ नमो कुट्टबुद्धीणं जमियं विजं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ ॐ कं क्षः स्वाहा । ११ - जिने सहजगुणस्थापनमंत्र - ॐ नमो विश्वरूपाय अर्हते केवलज्ञानदर्शनधराय हूँ ह्रौं सः सहजगुणान् जिनेशे स्थापयामि स्वाहा । १२- प्रतिष्ठामंत्र - ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिए ॐ ह्रीं स्वाहा । १३- घातिकर्मक्षयोत्पन्नगुणस्थापनमंत्रः - ॐ नमो भगवते अर्हते घातिक्षयकारिणे घातिक्षयोत्पन्नगुणान् जिने स्थापयामि स्वाहा। १४ - पादलिप्तीयप्रतिष्ठामंत्रः - ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो उवज्झायाणं ॐ नमो लोएसव्वसाहूणं ॐ नमो ओहिजिणाणं ॐ नमो परमोहिजिणाणं ॐ नमो सव्वोहिजिणाणं ॐ नमो अणंतोहिजिणाणं ॐ नमो केवलिजिणाणं | ॐ नमो भवत्थकेवलिजिणाणं ॐ नमो भगवओ अरहओ महई महावीरवद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरे २ महीवीर जयवीरे सेणवीरे बद्धमाणवीरे जये विजये जयंते अपराजिए अणिहए मा चल २ वृद्धिदे २ हूँ २ ही २ For Private & Personal use only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्तुति ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ स्तब मंत्राः ॥ ॥ ५०४॥ सः २ ओहिणि मोहिणी स्वाहा । १५ - सौभाग्य मंत्र - ॐ अवतर अवतर सोमे २ कुरु २ निवग्गु २ सुमिणे सोमणसे महुमहुरे ॐ कविल ॐ कः क्षः स्वाहा। पादलिप्तीयसौभाग्यमंत्रः - ॐ नमो वग्गु २ निवग्गु २ सुमिणे सोमणसे महमहुरे जयंते अपराजिए स्वाहा । १६ - जिनमूत्तिप्रतिबोधमंत्रः - ॐ ह्रीँ अर्हन्मूर्तये नमः (प्रवचनमुद्रा पूर्वक प्रतिबोधः) ॥ १७ - अचलमूर्तिस्थिरीकरणमंत्रः - ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । १८ - सिंहासनस्थापनमंत्रः - इदं रत्नमयमासनमलंकुर्वन्तु इहोपविष्टा भव्यानवलोकयन्तु हृष्टदृष्ट्या जिनाः स्वाहा । १९ - चलप्रतिमायां न्यसनीयमंत्रः . ॐ जये श्रीं ह्रीं सुभद्रे नमः । २० - सुरकृतातिशयस्थापनमंत्र - ॐ नमो भगवते अर्हते सुरकृतातिशयान् जिनस्य शरीरे स्थापयामि स्वाहा । २१ - जिने प्रातिहार्यस्थापनमंत्रः - ॐ नमो भगवते अर्हते असिआउसा जिनस्य प्रातिहार्याष्टकं स्थापयामि स्वाहा।। ॐ यक्षेश्वराय स्वाहा । ॐ ही हूँ ही शासनदेव्यै स्वाहा । ॐ धर्मचक्राय स्वाहा । ॐ मृगद्वन्द्वाय स्वाहा । ॐ रत्नध्वजाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते अर्हते जिने प्राकारादित्रयं स्थापयामि स्वाहा । २२ - प्रतिष्ठादेवताविसर्जनमंत्रः -ॐ विसर विसर प्रतिष्ठादेवते स्वाहा । ___२३ - नन्द्यावर्तविसर्जनमंत्रः- ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ नन्द्यावर्त ! पुनरागमनाय स्वाहा ।(मंत्रभणनपूर्वक | वासक्षेपेण विसर्जनम्।) श ॥ ५०४ ॥ For Private & Personal use only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५०५ ।। २४ - सामान्यदेवविसर्जनमंत्र यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम् । सिद्धिं दत्त्वा च महतीं पुनरागमनाय च ॥१॥ ४ परिच्छेदः - स्मरण - स्तोत्राणि । विधिकार्यसमारम्भ-दिनादारभ्य सर्वदा । त्रिकालपाठयोग्यानि, स्तोत्राणीह निबोधत ॥ ५ ॥ विधिकार्यना आरंभथी समाप्ति पर्यंन्त नित्य त्रिकाल पाठ करवा योग्य स्मरण स्तोत्रोनो संग्रह आ चोथा परिच्छेदमां जाणवो. नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥ १ - उपसर्गहरस्तोत्रम् उवस्सग्गहरं पासं, पासं बंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहरविसनिन्नासं, मंगलकल्लाणआवासं ||१|| विसहरफुलिंगमंत, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्सगहरोगमारी, - दुट्ठजरा जंति उवसामं ||२|| चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥ ३॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि - कप्पपायवब्भहिए । पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं || ४ || इअ संधुओ महायस! भत्तिभरनिब्भरेण हिअणए । ता देव! दिज्ज बोहिं भवे भवे पास ! जिणचंद ||५|| २ श्रीशान्तिनाथ स्तवनम् (संतिकरं ) ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ।। ५०५ ।। Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ ५०६ ।। संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जयसिरीइ दायारं । समरामि भत्तपालग - निव्वाणीगरुडकयसेवं ||१|| ॐ सनमो विप्पोसहि पत्ताणं संतिसामिपायाणं । झीँ स्वाहा मंतेणं, सव्वासिवदुरिअहरणाणं ||२|| ॐ संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं । सो ह्रीँ नमो सव्वोसहि पत्ताणं च देइ सिरिं ||३|| वाणि तिहुअणसामिणी सिरिदेवी जक्खराय गणिपिडगा । गहदिसिपालसुरिंदा, सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४॥ रक्खंतु मम रोहिणि-पन्नत्ती वज्जसिंखला य सया । वज्जंकुसि चक्केसरि नरदत्ता कालि महकाली ||५|| गोरी तह गंधारी, महजाला माणवीय वइरुट्टा | अच्छुत्ता माणसिआ, महामाणसिआउ देवीओ || ६ || जक्खा गोमुहमहजक्खा, तिमुह जक्खेस तुंबरू कुसुमो । मायंगविजयअजिआ, बंभो मणुओसुरकुमारो ||७|| छम्मुह पयाल किन्नर,-गरुडो गंधव्व तहय जक्खिंदो । कूबर वरुणो भिउडी, गोमेहो पासमायंगा ||८|| देवीओ चकेसरि, अजिआ दुरिआरि कालिमहाकाली । अच्छुअ संता जाला, सुतारय असोयसिरिवच्छा || ९ || चंडा विजयंकुसि, - पन्नइत्ति निव्वाणि अच्चुआ धरणी । वइरुट्ट दत्त गंधारि, अंब पउमावई सिद्धा ||१०|| इय तित्थरक्खणरया, अन्ने वि सुरा सुरीउ चउहावि । वंतर जोइणिपमुहा, कुणंतु रक्खं सया अम्हं ॥११॥ एवं सुदिट्ठिसुरगण-सहिओ संघस्स संतिजिणचंदो । मज्झ वि करेउ रक्खं, मुणिसुंदरसूरिथुअमहिमा ||१२|| इय संतिनाह सम्म - द्दिठिअरक्खं सरइ तिकालं जो । सव्वोवद्दवरहिओ, स लहइ सुहसंपयं परमं ॥ १३॥ ।। इति श्रीशातिनाथस्तवनं महामंत्रमयं भट्टारकप्रभु श्री मुनिसुंदरसूरिकृतं मरकोपशमकरम् ॥ ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ।। ५०६ ।। Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ |॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ॥ ५०७ ANANAS सत्तरिसयजिनस्तवनम् । (तिजयपहुत्त) तिजयपहुत्तपयासिअ-अट्ठमहापाडिहेरजुत्ताणं । समयखित्तठियाणं, सरेमि चकं जिणिंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीआ, पनरस पन्नास जिणवरसमूहो । नासेउ सयलदुरिअं, भविआणं भत्तिजुत्ताणं ॥२॥ वीसा पणयाला विअ, तीसा पन्नतरी जिणवरिंदा । गहभूअरक्खसाइणि - घोरुवसग्गं पणासंतु ॥३॥ सत्तरि पणतीसा विअ, सठ्ठी पंचेव जिणगणो एसो । वाहि-जल-जलण-हरि करि चोरारि-महाभयं हरउ ॥४॥ पणनन्ना य दसेवय पन्नही तहय चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥५॥ हरहुंहः सरसुं सः, हरहुंहः तहय चेव सरसुं सः । आ लिहिअन्नामगभं, चकं किर सबओभई ॥६॥ रोहिणिपन्नत्ती वज-सिंखला तहय वज्जअंकुसिआ। चकेसरिनरदत्ता, कालिमाहाकालि तह गोरी ७ गंधारिमहाजाला, माणवि वइरुट्ट तहय अच्छुत्ता। माणसि महामाणसिआ, विज्जादेवीउ रक्खंतु ॥८॥ पंचदस कम्मभूमीसु, उप्पन्नं सत्तरिंजिणाण सयं विविहरयणाइवन्नो वसोहिअं हरउ दरिआई ॥९॥ चउतीसअइसयजुआ । अट्टमहापाडिहेरकयसोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाएयब्वा पयत्तेणं ॥१०॥ ॐ वरकरणयसंखविदुम- मरगयघणसंनिभं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सञ्वामरपूइअं वंदे स्वाहा ॥११॥ ॐ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणवासी अ । जे केइ दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥१२॥ चंदणकप्पूरेणं, फलहे लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगहभूअ - साइणीमुग्गलपणासं ॥१३॥ For Private & Personal use only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ स्तोत्राणि ॥ ॥ ५०८ इय सत्तरिसयं जंतं, सम्मं मंतं दुवारिपडिलिहिअं । दुरिआरिविजयवंतं, निमंतं निच्चमच्चेह ॥१४॥ ४-भयहरस्तवः (नमिऊण) नमिऊण पणयसुरगण-चूडामणिकिरणरंजिअं मुणिणो । चलणजुअलं महाभय - पणासणं संथवं वुच्छं ॥१॥ सडियकरचरणनहमुह-निबुड्डनासा विवन्नलायन्ना । कुट्टमहारोगानल-फुलिंगनिदड्ढसव्वंगा ॥२॥ ते तुह चलणाराहण-सलिलंजलिसेयबुढियच्छाया । वणदवदड्ढागिरिपायव ब्व पत्ता पुणो लच्छिं ॥३॥ दुब्वायखुभियजलनिहि-उब्भडकल्लोलभीसणारावे संभंतभयविसंतुल-निज्जामयमुक वावारे ॥४॥ अविदलिअजाणवत्ता, खणेण पावंति इच्छिअं कूलं पासजिणचलणजुअलं, निच्चं चिअ जे नमंति नरा ॥५॥ खरपवणुद्धअ वणदव जालावलिमिलियसयल दुमगहणे । डझंत मुद्धमयवहु - भीसणरवभीसणम्मि वणे ॥६॥ जगगुरुणो कमजुअलं, निन्वाविअसयलतिहुअणाभो । जे संभरंति मणुआ, न कुणइ जलणो भयं तेसिं ॥७॥ विलसंतभोगभीसण-फुरिआरुणनयणतरलजीहालं । उग्गभुअंगं नवजलय-सत्थहं भीसणायारं ॥८॥ मन्नति कीडसरिसं दूरपरिच्छूढविसमविसवेगा । तुह नामक्खरफुडसिद्ध-मंतगुरुआ नरा लोए ॥९॥ । अडवीसु भिल्लतकर-पुलिंदसदूलसद्दभीमासु । भयविहुरखुन्नकायर- उल्लुरिअपहिअसत्थासु ॥१०॥ अविलुत्तविहवसारा, तुह नाह! पणाममत्तवावारा । ववगयविग्घा सिग्धं, पत्ताहियइच्छिअं ठाणं ॥१२॥ पज्जलिआनलनयणं, दूरवियारियमुहं महाकायं । नहकुलिसघायविअलिअ - गइंदकुंभत्थलाभो ॥१२॥ || ५०८ ॥ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || स्मरणस्तोत्राणि ।। ॥ ५०९ ॥ पणयससंभमपत्थिवनहमणिमाणिकपडिअ पडिमस्स । तुह वयण पहरणधरा, सीहं कुद्धपि न गणंति ॥१३॥ ससिधवलदंतमुसलं, दीहकरुल्लालवुड्ढउच्छाहं । महुपिंगनयणजुअलं, ससलिलनवजलहराऽऽरावं ॥१॥ भीमं महागइंदं अच्चासन्नपि ते न वि गणंति । जे तुम्हचलणजुअलं मुणिवइ तुंगंसमलीणा ॥१५॥ समरम्मि तिखखग्गा भिघाय पविद्ध उद्ध्यकबंधे । कुंत विणिभिन्न करिकलहमुक्कसिकारपउरंमि ॥१६॥ निज्जियदप्पुद्धररिउनरिंदनिवहा भडा जसं धवलं । पावंति पावपसमिण पासजिण तुहप्पभावेण ॥१७॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंति सव्वाई ॥१८॥ एवं महाभयहरं पासजिणिंदस्स संथवमुआरं । भवियजणाणंदयरं कल्लाणपरंपरनिहाणं ॥१९॥ रायभयजक्खरक्खसकुसुमिणदुस्सउणरिक्खपीडासु । संझासु दोसु पंथे उवसग्गे तह य रयणीसु ॥२०॥ जो पढइ जो अनिसुणइ ताणं कइणो य माणतुंगस्स । पासो पावं पसमेउ सयलभुवणच्चिअचलणो ॥२॥ उवसग्गंते कमठासुरम्मि झाणा उ जो न संचलिओ। सुरनरकिन्नर जुवईहिं संथुओ जयउ पासजिणो ॥२२॥ एअस्स मज्झयारे अट्ठारसअक्खरेहिं जो मंतो। जो जाणइ सो झायइ परमपयत्थं फुडं पासं ॥२३॥ ५-अजितशान्तिस्तवः अजिअं जिअसव्वभयं, संतिं च पसंतसव्वगयपावं । जयगुरु संतिगुणकरे, दो वि जिणवरे पणिवयामि ॥११॥ गाहा For Private & Personal use only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ चोस्तोत्राणि ॥ ।। ५१० ॥ ववगयमंगुलभावे, तेऽहं विउलतवनिम्मलसहावे निरुवममहप्पभावे, थोसामि सुदिट्ठसम्भावे ॥२॥ गाहा सव्वदुक्खप्पसंतीणं, सब्वपावप्पसंतिणं । सया अजियसंतीणं, नमो अजिअसंतिणं ॥३॥ सिलोगो । अजियजिण ! सुहप्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम ! नामकित्तणं । तह य धिइमइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम संति ! कित्तणं ॥४॥ मागहिआ । किरिआविहिसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचिअं च गुणेहिं महामुणिसिद्धिगयं । अजिअस्स य संतिमहामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निब्बुइकारणयं च नमंसणयं ॥५॥ आलिंगणयं । पुरिसा ! जइ दुक्खवारणं, जइ अ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा ॥६॥ मागहिआ । अरइरइतिमिरविरहिअमुवरयजरमरणं, सुरअसुरगरुलभुयगवइपययपणिवइ । अजिअमहमवि अ सुनयनयनिउणमभयकरं, सरणमुवसरिअ भुवि दिविजमहिअं सययमुवणमे ॥७॥ संगययं । तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तमसत्तधरं, अज्जवमद्दवखंतिविमुत्तिसमाहिनिहिं । संतिकरं पणमामि दमुत्तमतित्थयरं, संतिमुणी मम संति-समाहिवरं दिसउ ॥८॥ सोवाणयं । सावत्थिपुवपत्थिवं च वरहत्थिमत्थयपसत्थवित्थिन्नसंथि थिरसरिच्छवच्छं, मयगललीलायमाणवरगंधहत्थिपत्थाणपत्थियं संथवारिहं । 2 ॥ ५१० ॥ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || स्मरण । कल्याणकलिका. खं० २ ॥ स्तोत्राणि ।। हत्थिहत्थबाहुं धंतकणगरुअगनिरुवहयपिजरं पवरलक्खणोवचिअं सोमचारुरुवं, सुइसुहमणाभिरामपरमरमणिज्जवर- 1 देवदंदुहिनिनायमहुरयरसुहगिरं ॥९॥ वेड्ढओ। अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरि । पणमामि अहं पयओ,पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ रासालुद्धओ। कुरुजणवयहत्थिणाउरनरीसरो पढमं तओ महाचक्कवट्टिभोए महप्पभावो, जो बावत्तरि पुरवरसहस्सवरनगरनिगमजणवयवई, बत्तीसारायवरसहस्साणुणायमग्गो। चउदसवररयणनवमहानिहिचउसट्ठिसहस्सपवरजुबईण सुंदरवई, चुलसीहयगयरहसहसहस्ससामी छन्नवइगामकोडिसामी आसि | जो भारहम्मि भयवं ॥११॥ वेट्टओ । तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे ॥१२॥ रासानंदिअयं । इक्खागविदेहनरीसर ! नर-वसहा ! मुणिवसहा ! नवसारयससिसकलाणण ! विगयतमा ! विहुअरया !! अजिउत्तमते अगुणेहिं महामुणि अमिअबला ! विउलकुला । पणमामि ते भवभयमूरण जगसरणा मम सरणं ॥१३॥ चित्तलेहा ॥ देवदाणविंदचंद सूरवंद ! हट्ठ तुट्ठ जिट्ठ परम, लट्ठरुव! धंतरुप्पपट्टसेअसुद्धनिद्धधवल, । दंतपंति! संति! सत्तिकित्तिमुत्तिजुत्तिगुत्तिपवर!, दित्ततेअ वंद! धेअ! सव्वलोअभाविअप्पभावणे अ पइस मे समाहिं ॥१४॥ नारायओ ॥ HEMA चा || ५११ ॥ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ || स्मरणस्तोत्राणि ॥ ॥ ५१२ ॥ विमलससिकलाइरेअसोमं, वितिमिरसूरकराइरेअतेअं । तिअसवइगणाइरेअरूवं, धरणिधरप्पवराइरेअसारं ॥१५।। कुसुमलया। सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजियं। तव संजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं ॥१६॥ भुअगपरिरिंगि। सोमगुणेहिं पावइ न तं नवसरयससी, तेअगुणेहिं पावइ न तं नवसरयरवी । रूवगुणेहिं पावइ न तं तिअसगणवई, सारगुणेहिं पावइ न तं धरणिधरवई ॥१७॥ खिज्जिअयं । तित्थवरपवत्तयं तमरयहिअं, धीरजणथुअच्चिअं चुअकलिकलुसं । संतिसुहप्पवत्तयं तिगरणपयओ, संतिमहं महामुणिं सरणमुवणमे ॥१८॥ ललिअयं । विणओणयसिररइअंजलिरिसिगणसंथ्रंथिमिश्र, विबुहाहिवधणवइनरवइथुअमहिअच्चिअं बहुसो। अइरुग्गयसरयदिवायरसमहिअसप्पभं तवसा । गयणंगणवियरणसमुइअचारणबंदिशं सिरसा ॥१९॥ किसलयमाला । असुरगरुलपरिवंदिअं, किन्नरोरग-नमंसिअं । देवकोडिसयसंथुअं, समणसंघपरिवंदिरं ॥२०॥ सुमुहं । अभयं अणहं अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं पयओ पणमे ॥२१॥ विज्जुविलसि । आगया वरविमाण दिव्व कणगरहतुरयपहकरसएहिं हुलिअं। ससंभमोअरणखुभिअलुलिअचलकुंडलंगयतिरीडसोहंतमउलिमाला ॥२२॥ वेड्ढओ । ॥ ५१२ ॥ For Private & Personal use only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ जं सुरसंघा सासुरसंघा वेरविउत्ता भत्तिसुजुत्ता, आयरभूसिअ संभमपिंडिअ सुटु सुविह्मिअसव्वबलोघा । उत्तमकंच- णरयणपरूविअभासुरभूसणभासुरिअंगा । गायसमोणयभत्तिवसागय पंजलि पेसिय सीसपणामा ॥२३॥ रयणमाला । बंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइआ सभवणाई तो गया ॥२४॥ खित्तयं । तं महामुणिमहंपि पंजली, रागदोसभयमोहवजिअं । देवदाणवनरिंदवंदिअं, संतिमुत्तमं महातवं नमे ॥२५॥ खित्तयं । अंबरंतरविआरणिआहिं, ललिअहंसबहुगामिणिआहिं । पीणसोणिथणसालिणिआहिं, सकलकमलदललोअणिआहिं ॥२६॥ दीवयं । पीणनिरंतरथणभरविणमियगायलयाहिं, मणिकंचणपसिढिलमेहलसोहिअसोणितडाहिं । वरखिंखिणिनेउरसतिलयवलयविभूसणिआहिं, रइकरचउरमणोहरसुंदरदंसणि-आहिं ॥२७॥ चित्तक्खरा । देवसुंदरीहिं पायवंदिआहिं-वंदिआ य जस्स ते सुविक्कमा कमा, अप्पणो निडालएहिं मंडणोडण प्पगारएहि केहि केहिं वि । अवंगतिलयपत्तलेहनामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं, भत्तिसन्निविट्ठवंदणागयाहिं हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो ॥२८॥ नारायओ । For Private & Personal use only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ कास्तोत्राणि ॥ ॥ ५१४ा तमहं जिणचंद, अजिअं जिअमोहं । धुयसव्वकिलेस, पयओ पणमामि ॥२९।। नंदिअयं । अवंदिअयस्सा रिसिगणदेवगणेहि, ते देवबहुहिं पयओ पणमिअस्सा, जस्स जगुत्तमसासणअस्सा । भत्तिवसागयपिंडिअयाहिं, देववरच्छरसा बहुआहिं, सुरवररइगुणपंडिअयाहिं ॥३०॥ भासुरयं । वंस-सद्द-तंति-ताल-मेलिए-तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे अ सुद्धसज्जगीयपायजालघंटिआहिं, वलयमेहलाकलावनेउराभिरामसद्दमीसए कए अ । देवनट्टिआहिं हावभावविन्भमप्पगारएहिं नच्चिऊण अंगहारएहिं, वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा तयं तिलोयसञ्चसत्तसंतिकारयं, पसंतसवपावदोसमेसऽहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३१॥ नारायओ। छत्तचामरपडागजूअजवमंडिआ, झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा । दीवसमुद्दमंदरदिसागयसोहिआ,सत्थिअवसहसीहरहचक्कवरंकिआ।।३२॥ ललिअयं । सहावलट्ठा समप्पइट्ठा, अदोसदुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसायसिट्ठा तवेणपुट्टा, सिरिहिंइट्ठा रिसीहिं जुट्ठा ॥३३॥ वाणवासिआ। ते तवेण धुअसव्वपावया, सबलोअहिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंतिपायया, इंतु मे सिवसुहाण दायया ॥३४॥ अपरांतिका। एवं तवबलविउलं, थुअंमए अजिअसंतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विउलं ॥३५।। गाहा । 10 alth ॥ ५१४ ।। Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५१५ ।। तं बहुगुणप्पसायं, मुक्खसुहेण परमेण अविसायं । नासे मे विसायं, कुणउ अ परिसाविअप्पसायं || ३६ || गाहा | तं मोएउ अ नंदिं, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदिं । परिसाविअ सुहनंदि, मम य दिसउ संजमे नंदिं ||३७|| गाहा । पक्खिअ - चाउम्मासिअ, संवच्छरिए अवस्स भणिअव्वो । सोअव्वो सव्वेहिं, उवसग्गनिवारणो एसो ||३८|| जो पढड़ जो अ निसुणइ, उभओ कालंपि अजिअसंतिथयं । न हु हुंति तस्स रोगा, पुब्वुप्पन्ना विणासंति ॥३९॥ जह इच्छह परमपयं, अहवा कित्तिं सुवित्थड भुवणे । ता तेलुक्कुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुह ||४०|| ६-बृहच्छान्तिः भो भो भव्याः ! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये यात्रायां त्रिभुवनगुरोरार्हता भक्तिभाजः । तेषां शान्तिर्भवतु भवता मर्हदादिप्रभावादारोग्यश्रीधृति मति-करी क्लेशविध्वंसहेतुः || १ || भो भो भव्यलोका इह हि भरतैरावतविदेह - संभवानां समस्ततीर्थकृतां जन्मन्यासन प्रकम्पानन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोषाधण्टाचालनानन्तरं सकलसुराऽसुरेन्द्रैः सह समागत्य सविनयमर्हद्भट्टारकं गृहीत्वा गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे विहितजन्माभिषेकः शान्तिमुद्घोषयति यथा ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा "महाजनो येन गतः, स पन्थाः " इति भव्य - जनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय, शान्तिमुद्घोषयामि तत्पूजायात्रास्नात्रादिमहोत्सवानन्तरमिति कृत्वा कर्णं दत्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा । ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ।। ५१५ ।। Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क ॥ कल्याण | ॥ स्मरण कलिका. स्तोत्राणि ॥ खं० २ ॥ ।। ५१६ ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयन्तां प्रीयन्तां भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्यात्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः । ॐ ऋषभ-अजित-संभव-अभिनन्दन-सुमति-पद्मप्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि-शीतल-श्रेयांस वासुपूज्य-विमल-अनन्त-धर्म- शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लि-मुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्श्व-वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा । ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजयदुर्भिक्षकान्तारेषु दुर्गमार्गेषु वो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ___ ॐ ही-श्री धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधा - विद्यासाधनप्रवेशनिवेशनेषु सुगृहीतनामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः। ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृंखला-वज्राङ्कुशी अप्रतिचक्रा पुरुषदत्ता काली महाकाली गौरी गान्धारी सर्वास्त्रा महाज्वाला मानवी वैरोट्या अच्छुप्ता मानसी महामानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृतिचातुर्वर्ण्यस्य श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु । ___ॐ ग्रहाश्चन्द्रसूर्याङ्गकारकबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहुकेतुसहिताः सलोकपालाः सोम-यम-वरुण-कुबेर-वासवादित्यस्कन्द-विनायकोपेताः, ये चान्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्रदेवताऽऽदयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्तां अक्षीणकोशकोष्टागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा। ॐ पुत्रमित्रभ्रातृकलत्रसुहृत्स्वजनसंबन्धिबन्धुवर्गसहिता नित्यं चामोदप्रमोदकारिणः । अस्मि श्च भूमण्डलायतने निवासि || ५१६ ॥ For Private & Personal use only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५१७ ।। साधुसाध्वीश्रावकश्राविकाणां रोगोपसर्गव्याधिदुखदुर्भिक्षदौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु । ॐ तुष्टिपुष्टिऋद्धिवृद्धिमाङ्गल्योत्सवाः सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यन्तु दुरितानि, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा । श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश मुकुटाभ्यर्चिताये ||१|| शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्तिं दिशतु मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां येषां शान्तिर्गृहे गृहे ||२|| उन्मृष्टरिष्टदुष्ट, ग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि । संपादित - हितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥३॥ श्रीसङ्घ-जगज्जनपद-राज्याधिपराज्यसन्निवेशानाम् । गोष्ठिकपुरमुख्याणां व्याहरणैर्व्याहरेच्छान्तिम् ||४|| श्री श्रमणसङ्घस्य शान्तिर्भवतु, श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु, श्रीराज्याधिपानां शान्तिर्भवतु, श्रीराज्यसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु, श्रीगोष्ठिकानां शान्तिर्भवतु, श्रीपुरमुख्याणां शान्तिर्भवतु, श्रीपौरजनस्य शान्तिर्भवतु, श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्रीपार्श्वनाथाय स्वाहा । - एषा शान्तिः प्रतिष्ठायात्रास्नात्राद्यवसानेषु, शान्तिकलशं गृहीत्वा कुङ्कुमचन्दनकर्पूरागुरुधूपवासकुसुमाञ्जलिसमेतः स्नात्रचतुष्किकायां श्रीसंघसमेतः शुचि शुचि वपुः पुष्पवस्त्रचन्दनाभरणालङ्कृतः पुष्पमालां कण्ठे कृत्वा, शान्तिमुद्घोषयित्वा शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति । नृत्यन्ति नित्यं मणिपुष्पवर्षं, सृजन्ति गायन्ति च मङ्गलानि । स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके ॥ १ ॥ ॥ स्मरण स्तोत्राणि ॥ ॥ ५१७ ॥ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || कल्याण कलिका. खं०२ ॥ ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ।। ५१८ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ॥२॥ अहं गोवालयमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनिवासिनी । अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा ॥३॥ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥४॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्य, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥५॥ ७-लघुशान्ति स्तवः शान्तिं शान्तिनिशान्तं, शान्तं शान्ताऽशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि ॥१॥ ओमिति निश्चितवचसे, नमो नमो भगवतेऽर्हते पूजाम् । शान्तिजिनाय जयवते, यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥२॥ सकलातिशेषकमहा-संपत्ति समन्विताय शस्याय । त्रैलोक्यपूजिताय च नमो नमः शान्तिदेवाय ॥३॥ सर्वामरसुसमूह-स्वामिकसंपूजिताय न जिताय । भुवनजन पालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ सर्वरितौघनाशन-कराय सर्वाशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥५॥ यस्येति नाममन्त्र-प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुते जनहित - मिति च नुता नमत तं शान्तिम् ॥६।। भवतु नमस्ते भगवति ! विजये ! सुजये ! परापरैरजिते!। अपराजिते! जगत्यां जयतीति जयावहे भवति ॥७॥ सर्वस्यापि च सङ्घस्य, भद्रकल्याणमङ्गलप्रददे! । साधूनां च सदा शिव-सुतुष्टिपुष्टिप्रदे ! जीयाः ॥८॥ For Private & Personal use only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ SMA || स्मरणबास्तोत्राणि ॥ भव्यानां कृतसिद्धे! निवृतिनिर्वाणजननि ! सत्त्वानाम् । अभयप्रदाननिरते ! नमोऽस्तु स्वस्तिप्रदे तुभ्यम् ।।९।। भक्तानां जन्तूनां, शुभावहे ! नित्यमुद्यते देवि ! । सम्यग्दृष्टीनां धृति-रति-मति-बुद्धि-प्रदानाय ॥१०॥ जिनशासननिरतानां, शान्तिनतानां च जगति जनतानाम् । श्री-संपत्कीर्ति-यशो-बर्द्धनि! जयदेवि ! विजयस्व ॥११॥ सलिलानल-विष-विषधर-दुष्टग्रह-राज-रोग-रणभयतः । राक्षस-रिपुगण -मारि-चौरेति-श्वापदादिभ्यः ॥१२॥ अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शान्तिं च कुरु कुरु सदेति । तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं, कुरु कुरु स्वस्तिं च कुरु कुरु त्वम् ॥१३॥ भगवति ! गुणति! शिवशान्ति-तुष्टि-पुष्टि-स्वस्तीह कुरु कुरु जनानाम् । ओमिति नमो नमो हाँ ह्रीं हूँ हूः यः क्षः ह्रीं फट् फट् स्वाहा ॥१४॥ एवं यन्नामाक्षर-पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी । कुरुते शान्तिं नमतां, नमो नमः शान्तये तस्मै ॥१५॥ इति पूर्वसूरिदर्शित-मन्त्रपदविदर्भितः स्तवः शान्तेः । सलिलादिभयविनाशी, शान्त्यादिकरश्च भक्तिमताम् ॥१६॥ यश्चैनं पठति सदा, शृणोति भावयति वा यथायोगं । स हि शान्तिपदं यायात्, सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥१८॥ ॥ ५१९ ।। ' Jain Education Internationa Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ कस्तोत्राणि ॥ ॥ ५२० ॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१९॥ श्री समवसरणस्तवः ।। थुणिमो केवलिवत्थं, वरविज्जाणंदधम्मकित्तिऽत्थं । देविन्दनयपयत्थं, तित्थयरं समवसरणत्थं ॥१॥ पयडिअसमत्थभावो, केवलिभावो जिणाण जत्थ भवे । सोहंति सव्वओ तहिं, महिमाजोयणमनिलकुमरा ॥२॥ वरिसंतिमेहकुमारा, सुरहिजलं उउसुरा कुसुमपसरं । विरयंति वणा मणिकणग-रयणचित्तं महिअलं तो ॥३॥ अभिन्तर मज्झबहि, तिवप्पमणिरयणकणयकविसीसा । रयणज्जुणरुप्पमया, वेमाणिअजोइभवणकया ॥४॥ वट्टम्मि दुतीसंगुल-तित्तीस धणुपिहुल पणसय धणुच्चा । छधणुसय इगकोसं-तरा य रयणमयचउदारा ॥५॥ चउरंसे इगधणुसय-पिहुवप्पा सट्ठकोसअंतरिआ । पढमबिआ विअ तइआ, कोसंतर पुन्वमिव सेसं ॥६॥ सोवाणसहसदसकर-पिहुच्च गंतुं भोवो पढमवष्पो । तो पन्ना धणुपयरो, तओ अ सोवाण पण सहसा ॥७॥ तो वियवप्पोपन्ना-धणुपयर सोवाण सहसपण तत्तो । तइओ वप्पा छस्सय-धणु इगकोसेहितो पीढं ॥८॥ चउदारं तिसोवाणं, मज्झेमाणिपीढयं जिणतणुच्चं । दो धणुसय पिहुदिहं,सड्ढदुकोसेहिं धरणिअला ॥९॥ जिणतणुवारगुणुच्चो, समहिअजोअणपिहू असोगतरू । तयहो य देवच्छन्दो, चउसीहासण सपयपीढा ॥१०॥ तदुवरि चउ छत्ततिआ, पडिरूवतिगं तहट्ठ चमरधरा । पुरओ कणयकुसेसय- ट्ठिअफालिअधम्मचकचउ ॥११॥ झयछत्तमयरमंगल-पंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरण-तिय धूवघडी कुणंति वणा ॥१२॥ For Private Personal Use Only ॥ ५२० ॥ चा Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं. २ ॥ कास्तोत्राणि ॥ जोयणसहस्सदंडा, चउज्झया धम्ममाणगयसीहा । ककुभाइजुया सव्वं, माणमिणं निअनिअकरेण ॥१३॥ पविसिअ पुवाइ पहू, पयाहिणं पुवआसणनिविट्ठो । पयपीढठवियपाओ पणमिअतित्थो कहइ धम्मं ॥१४॥ मुणिवेमाणिणिसमणी, सभवणजोइवणदेवीदेवतियं । कप्पसुरनरिस्थितिअं, ठंतिऽग्गेयाइविदिसासु ॥१५॥ चउदेवीसमणी उद्धट्ठिआ निविट्ठा नरनरित्थिरसुरसमणा । इय पणसगपरिस सुणंति, देसणं पढमवप्पंता ॥१६।। इय आवस्सयवित्ति-वुत्तं चुन्नीइ पुण मुणि निविट्ठा । वेमाणिणि समणी दो, उदा सेसा ट्ठिआ उ नव ॥१७॥ बीअन्तो तिरि ईसाणि देवच्छन्दो अ जाण तइअन्तो। तह चउरंसे दुद् वावी,कोणओ बट्टि इक्किका ॥१८॥ पीअसिअरत्तसामा, सुरवणजोइभवणा रयणवप्पे । घणुदंडपासगयहत्य, सोमयमवरुणधणयक्खा ॥१९॥ जयविजयाजिअ अपराजिअत्ति सिअअरुणपीअनीलाभा । बीए देवीजुअला, अभयंकुसपासमगरकरा ॥२०॥ तइअ बहि सुरा तुंबरु-खटुंगिकवालजडभउडधारी । पुब्बाइदारवाला, तुंबरुदेवो अ पडिहारो ॥२१॥ सामन्नसमोसरणे, एस विहीएइ जिइमहिद्विसुरो । सबमिणं एगोऽवि हु, स कुणइ भयणेयरसुरेसु ॥२२॥ पुबमजायं जत्थ उ, जत्थेइ सुरोमहिड्ढिमघवाई । तत्थोसरणं नियमा, सययं पुण पाडिहेराइं ॥२३॥ दुत्थिअसमत्थअत्थिअ-जणपत्थिअअत्थसत्थसुसमत्थो । इत्थं थुओ लहु जणं, तित्थयरो कुणउ सुपयत्थं ॥२४॥ ॥ शान्तिनाथजीनो कलश ॥ श्रीशान्तिजिनवर सयल सुखकर, कलश भणीई तास, जिम भविक जीवने सयल संपत्ति,बहोत्त लील विलास । ।। ५२१ ।। Garls था For Private & Personal use only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ Me || स्मरणबास्तोत्राणि ॥ थाना द चन SMA थान कुरुनामि जनपद तिलकसमवड हत्थिणाउर सार, जिणनयरीकंचण रयण धन धण सुगुण जन आधार ॥॥ तिहां राय राजे बहुदिवाजे विश्वसेन नरिन्द, निज प्रकृति सोमह तेज तपनह भानु चन्द दिणंद । तस पणय खांणि पट्टराणी नामे अचिरा नारी, सुह सेज सूती चउद पेखे सुपन सार दु-बार ॥२॥ सबट्ठसिद्ध विमाणथी तब चविओ उर उपन्न, बहु भद्द भद्दव कसिण सत्तमि दिवस गुण संपुन्न । तव रोग सोग वियोग विड्वर मारि ईति समंत, वर सयल मंगल केलि कमला घर घर विलसंत ॥३॥ वरचंद योगे जेष्ठ तेरसी वदि दिने थयो जन्म, तव मज्झ रयणीइं दिसा कुमारी करे सुईकम्म । तव चलिअ आसण मुणिअ सवि हरि घंटानादे मेलि, सुरवृंद साथई मेरुमथई रचे मंगलकेलि ॥४॥ ढाल भाषानी । नाभिराया घर नन्दन जनमीयाए-ए देशी । विश्वसेन नृप घरे नंदन जनमीयाए तिहुंअण-भवियण प्रेमस्युं प्रणमीयाए, त्रुटक-हारे प्रणमीया चउसट्ठि इंद लेइ ठवे मेरुगिरीद, सुरनदि नीर समीर तिहां खीर जलनिधि नीर ॥५॥ सिंहासणे सुरराज जिहां मिल्या देवसमाज, ओषधिनी जाति सर्वे सरस कमल विख्यात ॥६॥ ढाल-विख्यात विविध परे कर्मनाए तिहां हर्ष भरि सुरभि वरदामनाए, त्रुटक-हारे वरदामने मागधनामे जेह तीरथ उत्तम ठाम, तेहतणी माटि सर्व करे ग्रहण सर्व सुपर्व ॥७॥ बावना चंदन सार अभिओगिक सुर अधिकार, मनी धरी अधिक आणंद अवलोकंता जिनचंद ॥८॥ SHA ड ab कर ब ॥ ५२२ ।। For Private & Personal use only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याण कलिका. ॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ खं० २॥ ॥ ५२३ ॥ ढाल-श्रीजिनचंदने सुरपति नवरावताए निज निज जन्म सुकृतारथ भावताए त्रुटक-हारे भावता जनम प्रमाण । अभिषेक कलश मंडाण । साठि लाख ने एक कोडि, सय दोय पंचास जोडि । आठ वाना जेह होई,चोसट्ठ सहसा जोइ । इणि परे भक्ति उदार, करे पूजा विविध प्रकार ॥१०॥ ढाल-विविध प्रकारना करिय सिणगार श्युंए भरीय जल विमलना विपुल शृंगार रूड्डाए । त्रुटक-हारे भंगार थाल चंगेरी, सुप्रतिष्ठ प्रमुखसुं भेरी । सवीकलश परिमंडाण, ते विविधवस्तु परीमाण ॥११॥ आरति मंगलदीप, जिनराजने समीप । भगवती चूरणिमांहे, अधिकार एह उछाहे ॥१२॥ ढाल-अधिकार उछाहसुं हरष भरजल भीजताए, नवनव भांतिसुं भक्तिभर कीजताए । त्रुटक-कीजता नाटिक रंग गाजतां गुहिर मृदंग, किट किटति तिहां कडताल चउताल ताल कंसाल ॥१३।। संख पणव भुंगल भेरी झलरी वीणा नफेरी एक करे हयपार, एक करे गजगुलकार ॥१४॥ ढाल-गुलकार गरज नीरव करेए पाय दुर २ धूर सुर धरेए । त्रुटक-सुर धरे अतिबहुमान । तिहां करे नव नव तान, वर विविध जाते छंद जन भक्त सुरतरुकंद ॥१५॥ बलि करे मंगल आठ, ए जम्बूपन्नति पाठ । थय थूइय मंगल एइ, मन धरी अति बहु प्रेम ॥१६।। ढाल-प्रेमसुं घोषणा पुन्यनी नीसुणे सुर सहूए समकित पोषणा सिष्ट संताषणा इंम बहुए । त्रूटक-बहू प्रेमस्युं सुख खेम धरि आणिया निधी जिम, बत्रीस कोडि सुवन करे वृष्टि रयणनिधान ॥१७॥ ॥ ५२३ ॥ For Private & Personal use only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ॥ ॥ ५२४ ॥ जिन जननी पासे मेहेला, करे अट्ठाइनी केलि । नंदिसरें जिनगेहे, करे महोच्छव ससनेहे ॥१८॥ ढाल-हवे राय महोच्छव करे रंग भरि थयो जब परभाति, सुर पूजीओ सुतनयननिरखी हरषियो तब तात । वर धवल मंगल गीत गाता गंधर्व गावइ रास, बहु मान दान सुखिया कीधा, सकल पूगी आस ॥१९॥ तिहां पंचवरणी कुसुमवासित भूमिका सलित्त, तव अगर कुंदर धूप धूपणां ढाल्यां कुंकुंमलित्त । सिर मुकट मंडण कांने कुंडल हिइ नवसर हारि, इम सयल भूषण भूषितांबर जगत परिवार ॥२०॥ जिन जन्म कल्याण महोच्छवे चउद भुवन उद्योत, नारकि थावर प्रमुख सुखिया सकल मंगल होत । दुख दुरित ईति शमित सघलां जिनराजने परताप,तिणहेत्ते शांतिकुमार ठवीउं नाम अति आल्हाद ॥२१॥ कलश-श्रीशान्तिजिननो कलश भणतां हुइ मंगलमाल, कल्याणकमला केलि करता लहे लील विलास । जिन स्नात्र करीइ सहेज तरीइ भवसमुद्द अपार, श्रीज्ञानविमलसूरिंद जंपे श्रीशांतिजिन जयकार । ॥ श्रीशान्तिनाथजीनो कलश संपूर्ण ॥ ५ परिच्छेदः - प्रतिष्ठोपस्करः । प्रतिष्ठा विविधाङ्गेधू-पयोगी यो नियोगत । उपस्करगणः सोऽत्र, समासेनोपवर्णितः ॥६॥ प्रतिष्ठाना अंगभूत एवा भिन्न भिन्न अनुष्ठान कार्योमा जे जे सामाननी अनिवार्य उपयोगिता होय छे तेवा सामाननी आ परिच्छेदमां सूचिओ आपेली छे. ।। ५२४ ॥ | Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रतिष्ठो ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ पस्करः ॥ ॥ ५२५ ॥ श्रीफल (नालियेर) नं. ३०१ नालियेर गोला ३१ सोपारी राती २१ सोपारी काली ५१ सोपारी धोली से.२ बदाम गोटा से.२ बदाम कागदी से.१ बदाम गोला से. १ पिस्ता से. ॥ कमलकाकडी से.॥ सिंघोडा सूकां से.२ खारेक से. २ काजू से.२ किसमिस द्राख से.२ १ - अंजनशलाकाना सामाननी सूचीएलची तोला १० तगर तो.५,कंकोल तो.५ लविंग तो. १० वालाकुंची ४ जावंत्री तो.५ अगरबत्ती से.२ जायफल तो.१० दशांगधूप से.२ कंकु तो.१० वासक्षेप से. २ केसर तो.१० किंद्रूप धूप से.१० कस्तूरी वाल ५ प्रियंगु तो.१० गोरोचन वाल ८ गहुंला तो.१० कपूर तो.१० मंगलमाटी ८ जातनी हिंगलोक डलीबद्ध तो.५ अष्टवर्ग १ लो बरास तो.१० अष्टवर्ग २ जो चंदन मूठा ४ सर्वोषधी पडिकुं १ लालचंदन मूठो १ सदौषधी पडिकुं १ अगर तो.१० सुगंधौषधी पडिकुं १ मूलिकाचूर्ण पडिकुं १ कषाय छाल पडिकुं १ ३६० क्रियाणोने पुडो १ कालो सुरमो काचोडली तो.२ पाका मोती.तो. प्रवालनी शाखा तो.३ गुलाल तो.१० अबीर तो.५ पंचरत्ननी पोटली १२५ आरेग से.११ गेवा(गोली) सूत्र से.१ भात (डांगर) से.५ चोखानी फूली से.१ शणबीज से.१ ॥ ५२५ ॥ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५२६ ।। वाल से. १ कुलत्थ से. १ तिल से. २ सरसव से. १ गहुं से. ५ जब से ७ चणा से. ६ चोला से. ५ मग से. ६ जुवार से . १ अडद से. ६ सोनाना वर्क थोकडी ५ रूपाना वर्क थोकडी १० सोनानां पुष्प १०८ रूपाना पुष्प १०८ चांदीनी रकाबी १ चांदीनो कञ्चोलो १ चांदीना कलशिया ८ सोनानी वा चांदीनी थाली १ सोनानी शलाई १ सोनानी कलम १ जर्मनशिल्वरनी वाटकी १५ आरीसो १ ( इंच ७-८ लंबो ) आरसा ८ (४-५ इंच लंबा ) अंबाडीनी पूंजणी ८ चामर ८ पंखा (बींजणां) ८ मींडल १५० मराडाफली १५० काचनां न्हानां फाणस २ समाई २ छोटी समाई मोटी २ फूट २ || अत्तर गुलाब तो. १ अत्तर केवडा तो. १ अत्तर मोगरा तो. १ अत्तर खश तो. १ अत्तर चमेली तो. १ तेल चमेली तो. १० तेल चंदननु तो. १० गुलाबजब शीशा २ आंबलां तो. १० कंकोडी तो. ५ बस्त्रो - रेशमी रातुं हा. ७ रेशमी पीलुं हा. ५ रेशमी नीलुं हा. ११ रेशमी घालुं हा. ११ रेशमी कालुं बख हा. २ || पंचपटो (मशरु ) हा. १ रेशमी आशमानि हा १ रेशमी जांबूई हा.१। कटासनां ऊनी ८ चरवलां ४ धावली ६ अबोटियां जोटा ८ उत्तरासणियां जोटा ८ मोटा पनानी मलमल ताको १ छोटा पनानी मलमल ताको १ जगनाती वारनो पनो ताको १ लांगक्लोथ ताको ० ॥ चोल ताको १ पनो हाथ २ नो ॥ प्रतिष्ठो पस्करः || ।। ५२६ ।। Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोल ताको १ पनो वारनो नीलुं सूत्राउ ताको १ पनो १ ॥ कल्याण ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ।। हाथ कलिका. खं० २॥ पीलुं सूत्राउ ताको १ पनो १ हाथनो घंट १ घंटडी १ धूपधाणुं १ लाकडीना हाथार्नु धूपधाणुं १ सरवारों आरती १ मंगलदीवो १ छत्र १ कमलकांग २ त्रांबा-पीतलनी कुंडी २ मोटी गंगाजलनी शीशी १ रंगीन पेचो-पाघडी दंड माटे गोल सेर ५ खडी साकर सेर ५ आखा चावल सेर ३० गायनुं घी सेर ८ भेंसनुं घी सेर १० जवारिया वांस ४ ७-७ छाबडी वांशनी छाव वांश नवा उजला १६ लांबा हाथ ५-५ बाजोठ १ गज समचोरस वास्तुनो पाटलो १ नंद्यावर्तनो पाटलो १ दिक्पालोनो पाटलो १ नवग्रहनो पाटलो १ अष्टमंगलनो प्रणालिओ बाजोठ १ कटासणां जेवी चटाइयो १२ नवा पाटला ४ अखंड दीपक योग्य मोटां फाणस २ मोटा कोडियां फणावाला २ कांसानी थाली ४ कांसाना वाटका २ कन्याकांत्या सूत्रनी कोकडी ५ त्रांबानो लोटो १ त्रांबानो कलशियो १ हलदरना गांठीया ८ समूलो डाभ मूलियां ४ अधेडानी कलम २ कोरा डाभनी पूली २ १०८ नालनो कलश १ चोकडता रुपैया ४ || ५२७ ॥ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रतिष्ठो. ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ पस्करः ॥ ॥ ५२८ ॥ त्रांबाना पैसा ३०० बे आनी पावली आठ आनी रु.५० नी रोकडा रुपैया माणक दीवो १ माला १ स्फटिकनी माला १ गोमेद वा सिंदूरिया स्फटिकनी माला १ नीलमणिनी. माला १ केरवानी माला १ अकलबेरनी माला १ प्रवालनी चोरस चंद्रवो न्हानो १ । जवनी माला प्रतिमा दीठ आरेठानी माला प्रतिमा दीठ माणेकस्तंभ (मोमण) १ तोरण १ सागनी लकडीनु तोरण १ चांदीनु चांदीनां पुखणां च्हॉरी माटे वेहिनां वर्तन ३६ (जुसरो १ मूसल २ रवइओ ३ त्राक ४) प्रासाद पुरुष सोनानो १ चांदीनो मूलनायक नीचे राखबानो कूर्म १ प्रतिमाओने आभरण माटे सोनानो तार ध्वजा १ दंड मापनी चांदीनो तार ध्वजा २ न्हानी सोना चांदीना वास्तुपत्रा माटीना म्होटा कलश २ शिल्पिसन्मानार्थं चांदीनो गज घडा (मटकी)८ हथोडो,टांकणो मोटा गाडवा (मोरिया) १२ भरणको न्हाना गाडवा (पुंखणिया) १२ चुनालोडो वगेरे. तोरण बांधवा माटीना कलशिया (कुलका) १०८ सोनानी छडी १ कोडीयां ८ न्हाना मंडपनो सामान कुंडा ४ म्होटां बेदीनो सामान कुंडा ८ कंइक न्हानां आंगीनो सामान. कुंडिओ न्हानी १२ सरावला ६१ ॥ ५२८ ॥ For Private & Personal use only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५२९ ।। सूचनाउपरनी सूचीमां जणावेल सामान अंजनप्रतिष्ठास्थापना अने शांतिस्नात्र अथवा अष्टोत्तरी स्नात्रनो संयुक्त छे, लखेल प्रमाणमां स्थितिवशात् साधारण बधारो घटाडो पण थड़ शके छे. मारवाडमां अंजनशलाकामां ज नहिं स्थापनाप्रतिष्ठामां पण तोरण बांधवानो रिवाज छे अने एना चढावाना हजारो रुपैया थाय छे, बळी त्यां देरासर बनावनार शिल्पीना सन्मानार्थे गज आदि उपकरणो चांदीना करावीने अपाय छे, वास्तुपूजा प्रसंगे सोनानुं अथवा चांदीनुं वास्तु (चोरस पत्रुं) करावीने तेने अपाय छे, तेथी आ बाबतनो सूचीमां निर्देश कर्यो छे, तोल लख्युं नथी, परिस्थितिने अनुसारे प्रतिष्ठाप्रसंगे तोलो बे तोला सोनु तथा ४०-५० तोला चांदी तो सूत्रधार शिल्पीना हाथमां जाय एवी उदारता प्रतिष्ठा करावनारे अवश्य करवी जोइये. पूर्वे अंजनशलाका महापूजादिमां नाणांनो व्यवहार न हतो, पण वर्तमान समयमां विधिकारो पगले पगले नाणां मूकावे छे, अमुक विधिकारो तो उत्सव दर्मियान ४००-५०० रु. नी पोताना हाथे गति करे छे, ए विधिकारोनी प्रतिष्ठानी क्षति करनारुं छे, प्रतिष्ठा करावनारे यथोचित याचकादिदान पोताने हाथे आपकुं जोइये. अधिवासना मंडप करण स्नान मंडप करण २- पादलिप्त-प्रतिष्ठापद्धति प्रतिष्ठा कारक जात सूची सुवर्णादिकलश ८ आद्य कलश ४ वारक ( माटीना कलशिया) १०८ चतुरंग वेदी १ ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ॥ ।। ५२९ ।। Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रतिष्ठो ॥ कल्याणकलिका. . . .. ॥ ५३० ॥ शरावलां ५० जबारिया वांस ४ शराबलामां जवारा स्थपति (शिल्पीः) कलश १, धान्यवर्ग (जव-शालि-गहुं-तल-अडदमग - बाल - चणा - मसूर - तू वर - (वा)शणबीज-कांग-शामकादि), रत्नवर्ग-(हीरक-सूर्यकान्त-चन्द्रकान्तनील-महानील-मोती-पुखराज-पद्मराग(माणेक, बैडूर्य (अकीक) आदि) लोहवर्ग-(सोनु-रूपुं-त्रांबु-कांतलोहजसद-पीतल-कांसु-सीसु आदि) कषायवर्ग - (वड - उंबर-पीपल-चंपकअशोक -कदंप-आम्र -जांबु -बकुलअर्जुन- पाडल-वेतस-पलाशादि) मृत्तिकावर्ग-(राफडानी पर्वतशिखरनी, नदिना बंने तटनी महानदीसंगमनी, डाभमूलनी, बिल्ववृक्षमूलनी, चैत्यनी, हाथीदांतनी, वृषभ शृंगनी, राजद्वारनी, पद्मसरोवरनी, एक वृक्ष-आदिनी ) पानीयवर्ग-(गंगा-यमुना-मही-नर्मदासरस्वती-तापी-गोदावरी-समुद्रपद्मसर-ताम्रवर्णी नदीसंगम आदिनां पाणी)। औषधीवर्ग-(सहदेवी-जया-विजयाजयन्ती-अपराजिता-विष्णुक्राता-शंखपुष्पीबला-अतिबला-हेमपुष्पी-विशाला-नाकुलीगंधनाकुली-सहा-बाराही-शतावरी-मेदामहामेदा -काकोली-क्षीरकाकोली-कुमारीरीगणी न्हाना-रीगणी म्होटी-चक्रांकामयुरशिखा-लक्ष्मणा-दूर्वा-दर्भ-पतंजारी गोरंभा-रुद्रजटा -लज्जालु-मे पशृंगीऋद्धि-वृद्धि आदि ) अष्टकवर्ग -(प्रियंगु-वीलक-आमलकजातिपत्रिका-हरिद्रा-ग्रंथिपर्णक-मुस्ताकुष्टादि) गन्धवर्ग-(सिल्हक -कुष्ठ क -मांसीमुरमांसी-श्रीखण्ड - अगुरु-कर्पुर-नखपूतिकेशादि) वास-(श्रीखंड-कुंकुम-कर्पूरमय), मुद्रिका कंकण-मदनफल रक्तसूत्र ऊर्णासूत्र लोहमुद्रिका ऋद्धि-वृद्धियुत कंकण १ ॥ ५३० ॥ EP Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नालिएरो बीजोरां ॥ कल्याण ॥ प्रतिष्ठो कलिका. केला पस्करः ॥ खं०२॥ यवमालिका तर्कुका (त्राको) शिला (मेनशिल) गोरोचन श्वेत सरसवा श्वेत बखद्वय पट्टाच्छादन प्रतिमाच्छादन पटलको ॥ ५३१ ॥ नारंगीओ आंबा जांबू कोला वृन्ताक आमलां बोर आदि शुभ मूललगे । सोपारी नागरवेलना पान मातृपुटिका १०८ अखंड चोखा से.१ सेलडीओ विविध पुष्पो. ३-गुणरत्नसूखितिष्ठाकल्पोक्त सामग्री सूचीनवांगवेहि (वेदी) ४ वांसे जवारा ४ (गोहू ब्रीही जब) शरावले जवारा ८ न्हवणयोग्य कलश ४ (सोना रूपा त्रांबा वा माटीना) पाणी घालवा कोरा घडा घडी योग्य कुडी २ नंदावर्तयोग्य वरगडुआ ८ शराव ६४ कुंडां माटीनां ८ आचार्ययोग्य वस्त्रो सूत्रधारयोग्य वस्त्र अक्षतपात्र १ नंदावर्तयोग्य सेवननो पाटलो १ सदश कोरां वस्त्र २ (नंदावर्तयोग्य प्रतिमायोग्य १) सोनाना कांकण ४ सुवर्णमुद्रिका ४ (कंकण- | मुद्रिकाओ ४ स्नात्रकारोने माटे ) रूपानी बाटकी १ सोनानी शलाई १ अंजन (कालो सुरमो, घृत, मधु, साकर मेली तैयार करेल ) हस्तलेप (प्रियंगु-कर्पूर-गोरोचन) पंचरत्न (मवाल-सुवर्ण- रूप्य ताम्र-मोतीनी पोटली) आरीसो १ घंटो घृपधाणाओ रूपानी वाटकी सोनानी शलाई कांसानी बाटकिओ आरिसो १ ॥ ५३१ ॥ Jan Education Intematon For Private Personal use only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ।। ॥ ५३२ ।। माई साडी (कुसुंभी वस्त्र) मीढल (ऋद्धि वृद्धि सहित) आरीठा मालाओ, जवमालाओ श्वेतसर्षप (लोहाऽच्छेदितनीरक्षापोटली) अर्धभाजन (सरसव-दहि-अक्षतघृत - डाभ-मय) गेवासूत्र वेष्टित पूर्ण त्राक), पुंखणोपकरण (धूंसर-मुसल- रवाइओ), पुंखणारी स्त्री ४ (स कांकणी) भांमणां शराव, गंगाजल समूल दर्भ, गंगावेलु कूवा नदीनां १०८ पाणी, ३६० क्रियाणानो पडो घसी सूखडनो वास धवलो, वास (केसर-कपूर-कस्तूरी) भोगपुडी धूपपुडी घणां फूल अखंड तंदुल सेर २ घंट धूपधाणां छत्र चामर पंचशब्द वाजिंत्र नैवेद्य-(घारी, सुंहाली लाडू मांडी ) काकरिआ २५ (मगना ५, तिलना ५, चणाना ५, गहूंना ५, धाणीना ५, फूलीना ५, एवं २५,) बलिशराव ७ (बाट, खीर, करंबो, सातधाननी खीचडी, कूर, सिद्धवडी, पुरडा एवं ७), सातधान (शणबीज १, मसूर २, जव ३, | कांग ४, अडद ५, सरसव ६, वाल ७.) सातधान (प्रकारन्तरे-शालि १, जव २, गहुं ३,मग ४, वाल ५, चणा ६, चोला ७.) नालिएर, सोपारी (पूगफल), खजूर, द्राख, वरसोलां, साकर, फलहुलि (दाडिम, जंबीर, नारंगी, बीजोरां, सेलडी, आंबा), घृत वाटको, दहि वाटको, बाकुला वानी ३, ४-गुणरस्नीयाभिषेकोपकरण सूची १-सुवर्णचूर्ण वा ४ सुवर्ण कलश अथवा सुवर्णयुक्त जलस्नात्र. २-पंचरत्नस्नात्र (प्रवाल १, मौक्तिक २, स्वर्ण ३, रूप्य ४, ताम्र ५.) ३-कषायछालस्नात्र (पीपली, पीपल, शिरीष, उंबर, वड,चंपो, अशोक,आंबो, For Private & Personal use only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५३३ ।। जांबू, बकुल, अर्जुन, पाडल, पलाश आ बधांनी अंतरछालनुं) (गजदंत ४- मृत्तिका सानात्र वृषभशृंग उखेडी, पर्वतशिखर, उदेहीघर, महाराजद्वार, नदीसंगम, नदीउभयतट-पद्म-सरोवरनी) ५- पंचगव्यस्नात्र ( छाण १, गोमुत्र २, घी ३, दही ४, दूध ५ पंचांगडाभ अने पाणी ) ६- सदौषधिस्नात्र (सहदेवी, बला, शतावर, कुंआरि, पीठवन, मालवण, उभी, रींगणी, भूईरींगणी. ) ७- मूलिकास्नात्र ( मयूरशिखा, विरहक, अंकोल्ल, लक्ष्मणा, शंखपुष्पी, शरपुंखा, गधतोली, महातोली) मूलिकास्नात्रमां उक्त ८ मूलिकाना चूर्णधी स्नात्र थइ शके छे, पण जो १०० औषधिओ ज मेलवीने तेना मूलना चूर्णवडे स्नात्र कर होय तो नीचे जणावेल १०० वृक्षोनां मूल मंगावीने तेना चूर्ण वडे आ सातमो अभिषेक करवो, वर्तमानमा अमुकपेढी अथवा सामाननी दुकानमांथी अभिषेकनी औषधियोनी न्हानी पडिकीओ लेइने काम चलावाय छे, पण खरी ते औषधिओ ताजी मंगावीने, सारा प्रमाणमां ते वापरवी जोइये, स्नाप्य पदार्थनुं ते स्नात्रनी औषधिओना चूर्णना कल्क बडे प्रथम उद्वर्तन करीने पछी तेना जलनो अभिषेक करवो जोइये. शतमूलनी नामावली नंदिवृक्ष १, सहदेवी २, बला ३, अतिबला ४, विष्णुक्रान्ता ५, चक्रांका ६, अशोक ७, पुंनाग ८, बकुल ९, राजचंपक १०, विचकिल ११, राजशमी १२, शमी १३, जाति १४, दुर्वा १५, दर्भ १६, काश १७, बीजोरी १८, बदरी १९, इंगुदी २०, कंथेरी २१, थोर २२, कुंआरि २३, शतावरी २४, गिरणी २५, अघाडो २६, कालो अघाडो २७, अर्क २८, अलाण २९, शंखपुष्पी ३०, अंधाहुली (अधःपुष्पी) ३१, वट ३२, पीपल ३३, उंबर ३४, तगर ३५, मयूरशिखा ३६, लांगली ३७, पाठ (कालीपहाड ) ३८, पतंजारी ३९, वं ( धन्वं ) तरी ४०, मुसलि ४१, गलो ४२, रुदंती ४३, पुनर्नवा ४४, तुलसी ४५, बावची ४६, आद्रो ४७, काइणी ४८, गणि ४९, वालो ५०, ताड ५१, तमाल ५२, करंज ५३, आंबली ५४, ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ॥ ॥ ५३३ ।। Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रतिष्ठो श । कल्याणकलिका. खं० २॥ पस्करः ॥ ॥ ५३४ ।। कपित्थी ५५, मुद्गपर्णी ५६, मापपर्णी । ५७, श्रीपर्णी ५८, खदिर ५९, पलाश ६०, छिन्नप्ररोही ६१, लज्जालू ६२, नागवेल ६३, वेऊ ६४, कुडो ६५, दाडिम ६६, क्षीर दाडिम ६७, कर्मदी ६८, करंजी ६९, फंटासेलिआ ७०, वज ७१, आसंघ ७२, निर्गुडी ७३, भांगरो ७४, बोडिथेरी ७५, ह्स्वपत्रा-स्नुही ७६, धमासो ७७, जवासो ७८, अरडूसो ७९, दूधेली ८०, इंद्रवारुणी ८१, कासंदो ८२, गोरंभा ८३, कींच ८४, अगथिओ ८५, केतकी ८६, पारधि ८७, नवमल्लिका (नीमाली) ८८, कणवीर ८९, आंबो ९०, कुंद ९१, मुचकुंद ९२, किरमालो ९३, पिप्पली ९४, करणी ९५, | नारंगी ९६, अतिमुक्तक ९७, पाटला ९८, कांचनार ९९, त्रांबावेल १००, वेतस १०१, सर्वौषधि चूर्ण) शतपत्रिका १०२, (सेवंत्री) आ पण मूलशत ११-सेवंत्रादि कुसुमस्नात्र कहेवाय छे. सातमु मूलिका स्नात्र आ शतमूलनु १२-गंधस्नात्र (सिल्हाखल, उपलोट, पण कराय छे. मुरमांसी, चंदन, अगर, केसर, ८-प्रथमाष्टवर्गस्नात्र-(उपलोट १, वज २, कर्पूरमय, गन्ध) लोध्र ३, बीरणिमूल ४, देवदारु ५, दूर्वा ६, १३-वासस्नात्र (बरास मिश्रित चंदन | घसीने करेल धवलवास) ९-द्वितीयाष्टकवर्ग (मेदा १, महामेदा २, १४-चंदनस्नात्र(जाडा चंदनना घोल बडे)| काकोली ३, क्षीरकाकोली ४, जीवक ५, १५-कुंकुमस्नात्र (चंदनमूठा बडे जाटुं ऋषभक ६, नखी ७, महानखी ८, ए दिल्ली केसर घसीने जलमां नाखीने) बाजुधी आवे छे. १६-तीर्थजलस्नात्र (गंगा आदिनां १०-सौषधिस्नात्र (हलद्र वज सुंआ बालो तीर्थजलो जलमां नाखीने) माथ गोठिवणो प्रियंगु मुरमांसी कचूरो उपलोट १७-कर्पूरस्नात्र (कर्पूर घसीने तज तमालपत्र एलची नामकेसर लवंग कक्कोल अभिषेक जलमां नाखीने) जायफल जावंत्री नखी चंदन सिल्हाखल आदि १८-पुष्पांजलिस्नात्र Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ज ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ ५-बिम्बस्थापना - प्रतिष्ठोपकरणसूची वर्तमानकालीन अञ्जनप्रतिष्ठोत्सब जेम दश अग्यार दिवस लंबाय छे तेम बिम्बस्थापना-प्रतिष्ठोत्सव पण ८-९ दिवस तो लंबाय ज छे, आ समय दर्मियान नित्य भिन्न भिन्न पूजाओ भणावाय छे अने प्रतिष्ठा संबन्धी विधानो तो थाय ज छे, अन्ते अष्टोत्तरी अथवा शांतिस्नात्र भणावाय छे. आ बधां कार्योने पहोंची शके ए हिसाबे नीचेनी सामान सूची छे, अष्टोत्तरीमा मात्र ८० नालीएर अने नैवेद्य तथा पलोमां कंइक वृद्धि थाय छे, बीजो फेर पडतो नथी. आ सूचीमा जणावेल सामानमा परिस्थितिने अनुसारे कमती ज्यादा पण करी शकाय छे, विधिकारोए देश कालने अनुसरीने काम ले. केशर तोला ५ हिंगलोकडली तो०५ अगरबत्ती रतल ४ द्राख किसमिस रतल ४ कस्तूरी वाल ३ कंकोल तो०५ किंदरुप धूप रतल १४ बदामना गोला (मगज) रतल २ कर्पूर तोला ७ सोनानी वर्क थोकडी ४ बालाकुंची नंग ४ सीघोडा सूका रतल ३ वरास तो० ५ चांदीना वर्क थोकडी ८ सोपारी राती रतल १ काजू रतल ३ चंदनना मूठा २ कंकु पैसा १० भर सोपारी काली रतल ॥ कमलकाकडी रतल १ रक्तचंदन तो०५ गुलाल तोला ५ सोपारी धोली रतल ३ नालीएर नंग १५१ गोरोचन तो००। अबीर तोला ५ बदाम गोटा रतल ४ अखरोट रतल २ अगर तो०५ वासक्षेप रतल २ बदाम कागदी रतल १ चारोली-नेभाली रतल १ | तगर तो० ५ दशांगधूप रतल २ खारेक रतल ४ एलची तो०५ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ । बिम्बस्थापना प्रतिष्ठो पकरण ॥ ५३६ ॥ सूचि ॥ S लविंग तोला ५ जावंत्री तोला ५ जायफल तोला ५ तज तोला ५ कंकोडी तोला १० आंबला तोला १० मीढल नंग ३५ मरडासींगी तोला ५ पंचरतननी पोटली २१ मंगलमाटी ८ जातनी प्रथम अष्टवर्ग पडिकुं १ द्वितीय अष्टवर्ग पडिकुं १ सर्वोषधी पडिकुं १ सदौषधी पडिकुं १ मूलिकाचूर्ण पडिकुं १ ISA कषायछाल पडिकुं१ सुवर्ण पुष्प १०८ गेवा (मोली) सूत्र रतल १ रूप्य पुष्प १०८ भात (डांगर) रतल ६ चांदी अथवा चोचानी फूली (करमरा) रतल १ जर्मनसिल्वरना कलशिया ८ तल से.१ जर्मनसिल्वरनी नानी वाटकी १५ सरसव रतल १ काचना नानां फानस २ घहुँ से. २ समाई मोटी २ जब से.४ अत्तर गुलाब तो..॥ चणा से.३ अत्तर केवडा तो.॥ चोला से.२ अत्तर मोगरा तो.॥ मग से.३ अत्तर खश तो.॥ अडद से.३ अत्तर चमेली तो.॥ जुवार से.२ तेल चमेली तो.१० गोल से.५ चंदननु तेल तो.५ साकर से.५ गुलाबजल शीशो १ मोटो. रेशमी वस्त्र रातुं गज ४ । पीलुं गज ४ नीलू गज ५ धोलुं गज ६ कालुं गज २ किरमजी गज १ पंचपटो गज १ आस्मानी गज १ आसन (कटासणां)४ अबोटियां (धोतियां) ८ उत्तरासणियां (खेश) ८ धावली ४ अंगोच्छा ४ मलमल पनो ५६ इंचनो ताको १ GED श्रा || ५३६ ।। | Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ al ॥ कल्याण-| कलिका. | खं० २ ॥ मलमल पनो ३६ इंचनो ताको ०॥ जगन्नाथी पनो ३६ इंचनो ताको ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ।। ॥ ५३७ ॥ जगन्नाथी पनो हाथनो ताको ०॥ चोल पनो ३६ इंचनो हाथ ७ चोल पनो २८ इंचनो हाथ २० सूत्राउ नीलुं हाथ १० सूत्राउ पीलुं हाथ १० घंट १ घंटडी १ धूपधाणां २ आरती १ मंगलदीवो १ छव (मेघाडंबर) १ कलम कांठा २ गंगाजल दंड योग्य रंगीन पेचो १ त्रांबा पीत्तलनी कुंडी २ मोटी आखा चावल सेर २१ गायनु घी से. भेसनुं घी से.८ जवारिया बांस ४ बाजोट १ गज समचोरस नवो पाटलो दश दिक्पालोनो १ पाटलो नवग्रहनो १ पाटलो अष्ट मंगलनो १ प्रणालिओ बाजोठ १ अखंडदीपक योग्य मोटां फानस २ अखंडदीपक योग्य फणवालां कोडियां २ For Private & Personal use only कन्याकांत्या सूत्रनी कोकडी ५ त्रांबानो लोटो १ त्रांबानो कलशियो १ हलदरना गांठिया ५ समूलो डाभ मूलियां २ अधेडानी कलम १ कोरा डाभनी पूली २ १०८ नालनो कलश १ चोखंडा रुपैया ४ त्रांबाना पैसा २०० ५० रु.नी बेआनी पावली आठआनी माणेकदीवो १ स्फटिकनी माला १ गोमेद वा सिंदुरिया स्फटिकनी माला १ केरबानी माला १ || ५३७ ॥ Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याला || कल्याणकलिका. खं० २॥ ला dha || बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ C अकलबेरनी माला १ नीलमणिनी माला १ प्रवालनी माला १ चारस न्हानो चंद्रवो १ माणेकस्तंभ (भोमण) १ तोरण एक लाकडानुं तोरण १ चांदीनुं चांदीनां पुंखणां (झुंसर मुसलस्वइओ-त्राक) चांदीनो कूर्म १ मूलनायक नीचे ध्वजा १ दंडना मापनी ॥ ५३८ ॥ सोनानो प्रासाद पुरुष १ सोनानो तार सुवर्ण कलश योग्य चांदीनो तार प्रासादादि योग्य चांदीनो वास्तु १ शिल्पिसन्मानार्थ चांदीना उपकरणो. ए उपरांत मंडपयोग्य सामान वेदीयोग्य सामान भगवाननी आंगी विगेरेनो सामान पण साथे मंगाववो योग्य गणाय छे अने ए सामान उक्त प्रतिष्ठाना सामानथी जुदो लेखवो जोइये. ध्वजाओ २ न्हानी माटीना मोटा माटलां २ माटीना घडा ८ माटीना मोरिया (बेडिया) १२ माटीना गाडुआ १२ माटीनां कोडीयां बहु न्हानां ८ माटीना कोडीयां मोटां ८ माटीना मोटा कुंडां २ माटीनां कुंडा ८ मध्यम माटीनी न्हानी माटलीओ १२ माटीनां शरावलां ६१ ६-शान्तिस्नात्रना सामाननी सूची परनालिओ बाजोठ नं.१ सिंहासन २ छत्र ३ ADI कता प्रतिमा ४ पंचतीर्थी, श्रीआदिनाथ १, अजितनाथ २, शान्तिनाथ ३, पाश्वनाथ ४ अथवा चोवीस वटो १. मोटी माटली २ कुंभ कोरा राता निर्दाग ४ त्रांबाकुंडी नं.२ ॥ ५३८ ॥ Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं०२॥ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ रातां कुंडा नं.२ रूपाना कलश नं.८ न्हाना लोटा नं.४ १०८ नालुवानो कलश १ त्रांबानी गोली १ हलदरना गांठीया २ पंचवल्लव १ (आम्र १, बट २, पीपल ३,जांबू ४, अशोक ५.) त्रांबार्नु दीपक पात्र १, मोटुं फानस १, सेवनना पाटला नं.३, (दिक्पाल-ग्रहअष्टमंगलना), न्हाना पाटला १२ स्नात्रिया १३ गेवासूत्र से.॥ दीवट नं.२ दीवा माटे मोटा सरावलां २ आरती १ मंगलदीवो १ सीगडी १ चीपिओ १ धूपधाणां २ कोयला खेरना, बावलना वा रायणना. वाढी पीतलनी २ दीवी नं.२ (समाई मोटी) जवारिया वांश नं.४ शराबलां नं.११ डाभ समूलो मूलियां २ मीढल मरडासींगी नं.२५ रूपानाणां नं.५१ त्रांबानाणां नं.१०१ नागरवेलनां पान १०० चोखंडा रूपिया ४ भात (डांगर) से.४ पंचरतननी पोटली १५ अंघाडा तथा शरीयानी । लेखण १ वाटका नं.८ छाबडी १ कंकावटी १ वाटका मोटा २ न्हानी बाटकी पूजानी १६ थाल नं.४ गायर्नु घी से. भेसनुं घी से.८ चंद्रवा नं.२ ध्वजा न्हानी नं.२ अंगलूछणां १२ धोतियां नं.५ उत्तरासणियां नं.५ धाबली नं.४ सुगंधी तेल तो.१० उबटणुं कंकोडी आंबलां आदिनुं पछेडी दसियावड २ दरियाइ तास्तो गज २ कमलवणु कापड गज २॥ पीलु कापड गज २॥ नीलू कापड गज २॥ For Private &Personal use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जिन ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ बिम्ब प्रवेश विधिः ।। रातुं कापड २॥ पंचपटो गज श १०८ निवाणनां पाणी गंगाजल श्रीफल नं.१२५ कस्तुरी वाल २ केशर तो.५ गोरोचन तो. बरास तो.५ कपूर तो.५ हिंगलोक तो.२ सोनाना वर्क थोकडी १ चांदीना वर्क थोकडी ५ रक्तचंदन (रतांजणी) तो.२ कंकु तो.१० वासक्षेप रतल १ अगर तो.१ अगरबत्ती रतल १ दशांगधूप से.१ वालाकुंची ४ वीजणा २ चोखा से.११ चंदनना मूठा २ सर्वौषधि चूर्ण तो.१ मंगलमाटी तो.१ सोपारी राती से.॥ सोपारी धोली से.१ सोपारी काली से.॥ बदाम से.२॥ खारेक से.२ द्राख से.१ सीघोडा से.१ पीस्ता से.॥ कमलकाकडी से.॥ साकर से.३ गोल से.२ टोपलं से.श दाडिम ३० सेलडी ३० केला ३० नारंगी ३० जंबीरां ६ बीजोरां ३ मोसंबी ३० कमरख ३० सेवीया लाडू ३० खाजां नं.३० सुंहाली ३० मोतीया लाडू ३०. घेवर नं.३० दोठा नं.३० पतासा नं.३० सर्व जातनां पुष्प तिल से.१॥ गहुं से.२ जब से.३ चणा सं.३ चोला से.२ अडद से.२ ॥ ५४० ॥ For Private Personal use only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं०२॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ जुवार से.१॥ मलमलनु थान ॥ रातुं चोल थान ०॥ सुतरनी दोरी लोटो १ घंटडी १ मग स.३ मग से.३ जगन्नाथी धोएल थान ०॥ काची इंट नं.२०० थाली वेलण १-१ बाजोठ ३ ७-पूर्वतन प्रतिष्ठाकल्पोक्त-सामग्री कोश. अमोए जे ग्रंथर्नु अवगाहन करीने 'नव्यप्रतिष्ठापद्धति'नुं निर्माण कर्यु छे ते आधार ग्रन्थोमां कालक्रमे सामग्रीनो केवी रीते वधारो थयो छे ए वस्तु आ कोश उपरथी स्पष्ट समजी शकाशे. अमारा अनुशीलनमा आवेल १ श्रीपादलिप्तप्रतिष्ठापद्धति, २, श्रीचन्द्रप्रतिष्ठापद्धति, ३ जिनप्रभप्रतिष्ठापद्धति, ४ वर्धमानपतिष्ठापद्धति, ५ गुणरत्नप्रतिष्ठाकल्प, ६ विशालराजशिष्यप्रतिष्ठाकल्प, ७ जिनप्रभानुयायीप्रतिष्ठाविधि अने ८ सकलचन्द्रपतिष्ठापद्धति, ए आठ प्रतिष्ठाकल्पो छे. आ वधानो रचना समय क्रमिक होवाथी अमोए बधाने १ थी ८ सुधीना नंबरो लगाडेल छे. प्रत्येक पदार्थना नामना अंतमा (१) (३।५।७) उत्यादि आंकडा मुकेला छे तेनो अर्थ ए छे के अक्षततन्दुल सेर १ (१) आ विधान पादलिप्तप्रतिष्ठा पद्धतिनुं छे. एज रीते (३।५।७) नो अर्थ समजबो. 'अक्षतपात्र' ए शब्द जिनप्रभ, गुणरत्न तथा भाषाना प्रतिष्ठाकल्पोमां छे, एज प्रमाणे सर्वत्र कोष्ठकमां जेटलामो आंकडो होय तेटलामा ते नंबरना प्रतिष्ठाकल्पोमां ते पदार्थ लख्यो छे एम समजी लेबुं. अक्षत तंदुल से.१ (१) अक्षत मृतस्थाल (२।३) अखंड तन्दुल सेइ.२(५) अखोड (८) अक्षत पात्र (३।५७) अक्षतांजलि (५) अखंड तन्दुल सेती १(१) अगरु (४) अक्षतपात्र कृताऽभग्नतंदुल प्रस्थ (४) अखंड चोखा थाल २ (३८) अखंडाक्षतांजलि (२।३) अगरबत्ती (८) अक्षोटक (३४) अखंड चोखा सेइ (६) अखोड १०० (७) अगर सेर २ (७) ॥ ५४१ ॥ For Private & Personal use only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ ।। ५४२ ॥ अगुरु (कृष्ण) (२४) अभ्रक (१) अमृतफल (४) अंगलूछणां (६८) अंजन (मधु) (१) अंजन (कालो) सुरमो घी मधु साकर (२।३।४।५।६) अंजन (गोघृत टां.१८, साकर टां.९, कालो सुरमो टांक १२.(७) अंजन | (रातो सुरमो, साकर, वरास, कस्तुरी, मोती, मुंगीओ, चुनी, सोनो, रूपो, गावो घी, प्रत्यन्तरे मधु, प्रत्यन्तरे कालो सुरमो) (८) अर्घ (सिद्धार्थ, दधि, अक्षत, घृत, दर्भ)(२।३।५।६।७८ः अर्घ (सिद्धार्थ,-दधि, घृत, अक्षत, तंदुल, दूर्वा, चंदन, जव) (४), अलंकार पूजा (२।३।५) अवमिणनोपकरण (३) अवमिनन(३) अष्टमंगल (यववारक वेदिकादि)(१) अष्टगंध (८) अष्टक वर्ग १ (कुष्टप्रियंगु वचा लोद्र उशीर देवदारु दूर्वा मधुवष्ठि ऋद्धि वृद्धि) (२३) कुष्ठादिप्रथमाष्टबर्ग (४) अष्टवर्ग १ (उपलोट वज्र लोध्र वीरणिमल देवदारू ध्रो जेठीमधु ऋद्धि वृद्धि) (५६) अष्टवर्ग १ (उपलोट वज्र लोध हीरवणी मूल देवदारु जेठीमध दुर्वा ऋद्धि वृद्धि) (८) अष्टवर्ग १ (कुष्ट प्रियंगु वचा लोद्र उशीर सतावरी घोडावज देवदारु द्रोई जेठीमधु ऋद्धि बृद्धि प्रमुखा) (७) अष्टवर्ग २ (मेदा महामेदा कंकोल खीरकंकोल जीवक ऋषभक नखी महानखी)(२॥३) अष्टवर्ग २ (मेदादि) (४) अष्टवर्ग २ (मेदा महामेदा काकोली खीर, काकोली, जीवक ऋषभक नखी महानखी) (५।६७) अष्टवर्ग २ (पतंजारी वा कुष्ट विदारी कंदकचुरो काचरी नखला कंकोडी खीरकंद मुसली बेई) (८) आचार्य (१) आचार्य योग्य वस्त्र मडि २ (७) आचार्य योग्य सदश वस्त्र (५) आच्छादन पदस्व (१) ॥ ५४२ ॥ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ ।। बिम्बस्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ।। आच्छादन वस्त्र ६ (वेदि योग्य ४ प्रतिमा योग्य १, नंदावर्त योग्य १) (२३) आच्छादन पट ६ (द्वादशहस्तमित) (४) आच्छादन वस्त्र २ (नंदावर्त योग्य १, प्रतिमा योग्य १) (५६) आच्छादन वस्त्र १ (नंदावर्त योग्य सदश हाथ) २ (७) आच्छादन वस्त्र १ (हाथ २४ कुसंभरींगित प्रतिमायोग्य)(७) आच्छादन लत्र ४ (अर्ध फालां वेदि योग्य)(७) आच्छादन वस्त्र ४ (नंदावर्त योग्य, प्रतिमा योग्य, गुरुयोग्य, नंदावर्त लेखक योग्य) (८) आदर्श (१) आदर्शक दर्शन (६।२।३।४।५) आदर्श १(६) आरीसो १ (बिम्बयोग्य) (८) आरिसा ८ (८) आरीसो देवयोग्य (७) आद्य कुंभ ४ (१) आम कर्पूर (३) आमलक (१) आम्र (१।२।३।४) आंबा (५।६।७८) आरती (श२।३।६।८) आरिठा माल (५८) आरीठानी माला (प्रत्येक बिम्बे)(६) आरीठा सहन ७ (७) इक्षु (२४) इन्द्र (२८) उत्तर वेदिका (१) उत्पलसारिक (१) उदक (२३) उदार (४) उत्तती (२) ऊतती (२) ऊर्णासूत्र (१) ऋद्धि वृद्धि समेत कंकण १ (१) ऋद्धि वृद्धि (१।२।३।४) ऋद्धि वृद्धि समेत मदन फल (३) ऋद्धि वृद्धि समेत मदन फल कंकण ८ (४) ऋद्धि वृद्धि समेत मदन फलारोपण कंठे (३) ऋद्धि वृद्धि सहस्र २ (७) औषधीवर्ग (सहदेवी जया विजया जयंती अपराजिता विष्णुकान्ता शंखपुष्पी बला | ॥ ५४३॥ Jan Education international For Private Personal use only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ५४४ ।। अतिबला हेमपुष्पी विशाला नाकुली कर्पूर (१२२|३|४|५।६।७१८) गंधनाकुली सहा वाराही शतावरी मेदा महामेदा काकोली क्षीरकाकोली कुमारीबृहती द्वय चक्रांका मयुर शिखा लक्ष्मणा दूर्वा दर्भ पतंजारी गोरंभा रुद्रजटा लज्जालिका मेषशृंगी ऋद्धि वृद्धि आदि (१) कणयर प्रमुख पुष्प (७) कदलक (१) कदली फल (४७१८) कदली फल शुष्क (७) कपर्दक (१/२) करणी (७) करंब (४) करुणा (४) कषायवर्गस्नात्र ( १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ) कस्तुरी (१२|३|४|५|६/७ ८) कंकण (२१५) कंकण हस्तसूरि (२) कंकण ३ (३) कंकण कौसुंभ २० ( ३३४ ) कंकण ( मदनफलाख्य) (२) कंकण मोचन (२३) कंकण (मीढल ऋद्धि वृद्धि सहित ) ( ५/६ ) कंकण (सुवर्ण) (५) (८६) कंकण ४ (सुवर्ण) (५) कंकण १(सुवर्ण) (७) कंकण ऋद्धि वृद्धि समेत मिंढल सर्व बिम्वेषु (६) कंकण गेवासूत्रमय वृद्ध प्रतिमा योग्य १ ( ७ ) कंकण मींडल मरोडाफली स०८ (८) कंकण कौसुंभमय ८ (उभय योग्य) (७) कंकणिका ५ ( रक्तसूत्र वेष्ठित ) (२२४) कंकणिकारोप (३) कंकणिका ५ (३) कांकणी (६) कांस्य १ कांस्य वर्तिका (१) कंचुलि ४ (२|३|४|६/७७८) कांकणी सेर. १ (७), कंचुलिका १ ( कौशेयमयी) (४), कंदमूल (२) कंदमूल नाना ( १ ) काकडी (६) कुमारी १ (नेत्राअववर्तिनी) (३) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५४४ ।। Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ कूप-नदी जल १०८ (५।६) कष्ट (४) कुप-नदी-सरोवरादिनां १०८ जल (८) कूप १०८ जल (७) कुष्मान्ड (१) ।। बिम्बस्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ कुंडी २ (घटीयोग्य) (५।६।७८) कुंडी २ (स्नातयोग्य) (७) कुंडा ८ (धान वलियोग्य (८५) कुंडां ८ (सातधान बलियोग्य) (६) कुंकुम (१२।३।४।५।६।१८) कूर (४) कृष्ण लोह (१) कृसरा (४) केसर (३३५१८) केसर सेर १ (७) कौसुंभ वस्त्र रंजन (४) कौसुंभ सूत्र रंजन (४) कौसुंभ रक्त वस्त्र सूत्र (३) क्षैरेयी (४) कलश ८ (सुवर्णादि) (१) कलश ४ (प्रतिमा निकट) (३) कलश ४ (सुवर्ण) (प्रतिमा पार्थे)(२६) कलश ४ (श्वेत) प्रतिमा ४ दिशायां यवारा सहित (१) कलश ४ (कुंभ) प्रतिमाना कोणोमां(१) कलश ४ (स्वस्तिक पट्टनी ४ दिशाओमां) (३) कलश ४ (जलयात्रानीत- गर्भगृहादिमां) (६) कलश ४ (स्नातयोग्य) (६८) कलशला ४ (रूप्यमय स्नपनयोग्य)(७) कलश ४ (सुवर्ण)(प्रतिमा निकटे) (८) | कलश १ (सुवर्ण) (८) कलश ४ (वास मंडप ४ खुणे) (७) कलश ५ (रुप्य) (४) कलश ८ (सु.रू.ता.मृ.) (५।६।८) कलश ८(जल कार्ये)(७) कलशुला १२०(२) कलश १३२ (मृन्मय)(३) कलशला १३६(मृ.)(४) कलशला १०८(न्हवणयो०)(७) कलश (रूप्य) (८) कुंभ स्थपति १ (१) ३६० क्रयाणक पुटिका दान (२) ३६० क्रयाणक पुटिका १ शरावमों राखीने (३) , ३६० क्रयाणक पुटिका पृथक पृथक (४) | ॥ ५४५ ॥ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५४६ ।। ३६० क्रयांणा संपुट १ ( ५ ६ ७ ८ ) क्रमुक (४) खजूर (२|३|४|५|६) खाजा ( ३६ ) खारेक (६४७१८) खीर (८) गहुआ ४ श्वेतवर ( ५ ) गहुओ ४ वा ८ (७) गहुआ ४ (६) गहुआ ८ ( नं. ब) (५) गंगाजल (८) गंगानी बेलू (३|५|८) गंगोदक (४|५|६|७१८) गन्ध (११२३) गंध (४) गंधक (१) गंधवर्ग (१) गंधोदक (२३८) गंधवर्ग (१) (विशेष स्नात्रमां ) गाडुआ ४ श्वेत (कपर्द सुवर्ण-जलधान्य सहित नंदावर्त पार्श्वे ) (६) गाडुआ ४ श्वेत १२ (४ दिशामें) गाडुआ ४ नंद्यावर्ते (८) गाडुआ ४ वा ८ (पुंखणा योग्य ) ( ८ ) गाडुआ ८ ( पुंखणा योग्य) (६) गुड (१) गुडपिंड ( १ ) गेवासूत्र सेर ५ गेवासूत्र ( ६ ) गोरोचन ( १७ ) ग्रहपूजन ( ६ ) ग्रहस्थापना (सिवनी पट्टे) (६) घडा कोरा जलार्थ (५२६८) घंट (१/५/६) घंट २ (८) घाटडी (६) घारडी (५) घी (८) घीनो वाटको (६८) घृत वाटलं (५) घृत वाटली १ (सुरभि ) (७) घृतवर्तिका (२३) घृत (१) घृतभाजन (२|३|४|५/६ ७१८) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठोपकरण सूचि ॥ ।। ५४६ ॥ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । कल्याण कलिका. खं०२॥ । बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ धेवा सूत्र (८) चतुरिका (१) चवरीना वासण ३६(८) चणा (१) चंदन (श।३।४।५।६।७८) चंदन रक्त (१) चंपक पुष्प (७) चामर (५।६) चामर ८(८) चारु कलिका (४) चिभडा (७) छत्र (५।६) छत्र ३(८) जमलि (५) जलयात्रा (कोरा बहेडा २४) (७) जलयात्रा (प्रतिष्ठापूर्वदिवसे) (७) जलसमापे (मोदक सुहाली मोचन) (६) जलानयन (२।३।४।५।६।७८) जवाली (५८) जवाली जूजूई(६) जव (१) जवारक (वांशे) (१) जवारक ४ वंशेषु (२।५।७८०६) जववारक (२) (गोधूम, ब्रीहिय) जववारक (शरावे)(१) जवारक शराब १०(४।२।३) जवारक शराव १२ (७) जववारक ८ शराव (४।५।८) जवारकस्थापन (३) जवारक सहित बेडा (६८) जवारक ४ (५) जवमालिका १ (१) जम (यम) लिअव्यंग २ (२) जंबीर (२।३।४।५।६।७८) जंबू (१) जाति (७) जाति लेखिनी (३) जिनवलि (२३) जिनमातृ (प्राकृते बलि.)(५) टोपरां (७८) ठोठडी (६) तर्कुकादि (१) तन्तुवेष्टन (चतुः)(२) तन्दुल (३) तन्दुल चूर्ण-मंडन (४) ॥ ५४७।। Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठो ।। ५४८ ॥ पकरणसूचि ॥ तांबूल (६) तंबोल (७) ताम्र (१) तिल (१) १०८ तीर्थजल (८) तीर्थजल (समुद्र नदी द्रह कुंड जल)(२) तीर्थोदक (१) तीर्थोदक (सन द्र०कुंड जल)(३) तीर्थोदक (गंगा प्रभृति)(५) तीर्थोदक (गंगा सिन्धु प्रमुख १०८ तीर्थजल)(६) तुवरी(१) तूलिका (कांचन) (१) तौरिका (१) त्रपु (१) त्राक (गैवासूत्र वेष्ठित पूर्ण)(५) थाल सुवर्ण (८) दधि (१) दधि वाटलं (५।६) दधि योग्य वाटली ४(७) दधि-भाजन-दर्शन (६) दहि भरा माटली १ (७) दहिनो वाटको १ (८) दधि भांड दर्शन (२) दर्पण (२४) दर्भ (१) दर्भ सशिरस्क (२।३) दर्भ समूल(५।६।७८) दाडिम (२।३।४।५।६।१८) द्राक्ष(२।३।४।५।६।७८) द्वात्रिंशदंग (धूप) (४) द्वादशांग (धूप)(४) दीप मंगल (घ.गु.समेत.) (३।४।२।६।५) दीप (८)(१) दीपमंगल (११३८) दीवी ४(८) दीपमंगल ४ (गो.चू.कौ.रुत.व.) (४) दुधनो वाटको १(८) दूर्वा (१) दिकपाल स्थापन (३।४।६) दिक्पालार्ध (अर्धवत) (६) दिशाबलि (३७) ध्वज (इन्द्रध्वज)(८) ध्वज(महाध्वज) २(८) ध्वज २४ (लघुध्वज)(८) ॥ ५४८ ॥ For Private Personal use only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ धान्य वर्ग (यव ब्रीहि गोधूम तिल धान्य ७ (अभिषेक रक्तफल मिश्रित)(१) माषमुद्ग बल्ल चणक मसूर तुवरि धान्य ७ (शालि यव गोधूम मुद्ग बल्ल चणक व (श)णबीज नीवार श्यामाकादि) चवला (३) (१), धान्य ७ (सण कुलत्थ मसूर बल्ल चणक धान्य ७ प्रक्षेप (सात)(श२), चवलक)(४) धान्य (शण लाजा कुलत्थ यव कंगु उडद धान्य ७ (क्षेप) शण लाजा कुलत्थ यव कांग सर्षप ७(क्षेपः) (२३) उडद सर्षप (६) धान्य (शणबीज कुलत्थ मसूर वल्ल चणक धान्य ७ (शालि जव गोहुं मुंग वाल चिणा ब्रीहि चवलादि(२।३) चवला)(६५) धान्य बलि (शणबीज कुलत्थ मसूर जव धान्य ७ (सणबीज कुलत्थ मसूर जब कांग उडद कांग उडद सरसव)(८) सरसिब)(६) धान्य ७ स्नपन शालि यव गोधूम मुद्ग धान्य ७ (शणबीज कुलत्थ मसूर वल्ल जव ब्रीहि वल्ल चनक चपलक (२१८) चउला) (७) धान्य स्नपन ७(गंध पुष्पयुक्त) (३) धान्य ७ (शणबीज लाज कुलत्थ यव कंगु माष सर्षप) (४) धान्य ७ (धान्य मुद्ग माष चणक यब गोधूम तिल) (४) धान्य ७ (परितः क्षेपः नंदावर्ते) (५) धूप (१२।३।४।५।६।७८) धूप कुंदुरक प्रभृति (४) धूप दशांग (४) धूप दशांग सेर ॥ (८) धूप पंचांग (४) धूप द्वादशांग (४) धूपधाणां (श५।६।८ धूप पुडी (५।६: धोतियां जोडा ४ (६) धोती जोडा ४ स्थाप नंदावर्त मंडल (श्रीपर्ण पट्टे) (१) नंदावर्त पाटलो १ (२।३।४।५।६।७१८) ॥ ५४९ ॥ For Private Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५५० ।। नंदावर्त पाटलो १ चतुरस्र हा, १ (८) नंदावर्त स्थापन ( ६ ) नंदावर्त उपर (नालियेर २७ अथवा ८) (६) नंदावर्त लेखन (लग्नथी १४/७/५/३ दिनपूर्वे) (७) नागबल्लिदल (१) नारंग ( १२३ ) नारिंग ( ७ ) नारंगी (८) नारी ४ (२४) सकंकणा नारी ४ (जीवत्, पितृ मातृ श्वश्रुश्वशुरा) (३) नारी ४ ( कांकणी पुंखणावे) (५) नारी ४ ( जीवत् मा०पि०श्व०श्व० पतिका) (५१६) नारी मूल शतवर्तिनी ४ (३) नालिकेर ( ११२३४५६।७१८) नालिकेर २५ (७) नालिकेर ४ वा ८ ( जलेक्षेपः) (६) नांदहफल ( ५/६ ) नालिकेर ९ ( जलया . ) (८) नालिअर ( १ ) निमञ्जक ( ४ ) निमजां १०० (७) नीवार ( १ ) नील (१) नैजा (८) नैवेद्य २५ कांकरिया (मुंग यव गोधूम चिणा तिल प्रत्येक ५-५ ) (३/५/६ ) नैवेय कांकरिया (मुंग चिणा जब गोहुं तिल जुआर तुअर चपल शालि प्रत्येक ना. ५-५ कांकरिआ) (७) नैवेद्य (दशाहि) (कूर खांड घृत घेवर दधि करंब लापसी-गुल गोहुआ-गुल बाट - पकान्न सीधवडिनो दह फलानि ) (६) नैवेद्य लाडू २५ ( मु०५ तिल. ५ चि०५. फूली ५ गोधूमधाणी ५) (८) नैवेद्य - नवग्रह योग्य (गुलबाट खीर कंसार घेवर दधि करंब, कूर घृत कीसरि उडदरी ए ९ वानां ९ सरावे ग्रह आगे ढौकवां) (७) नैवेद्य ९, (चवलानो खीच, चणाना बाकुला, गोधूमपुडली, खीर, कंसार, गुलबाट, करंबो, कीसरि, कूर, ९ नैवेद्ये ७ शराब भरी दैव आगे ढाइये) (७) नैवेद्य ९ (लापरी क्रूर दही करंब पुरी पुडला ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५५० ।। Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥ ।। ५५१ ।। खीर वडां लाडु) (८) नैवेद्य ( पक्कान्न ) ९ खाजा, सुहाली, मांडी, मुरकी, साटे, साकुची, सेविआलाडु मोतिआलाडु मीठालाडू (७) नैवेद्य २५ कांकरिआ (मुंग ५ तिल ५ चिणा ५ फुला ५ गोहूंधाणी ५ ) (४) पद्मराग ( १ ) पनस ( २ ) पटलको (१) पट्टाच्छादन (१) पस्तां १०० (७) पंचगव्य (च्छगण मूत्र घृत दुग्ध दधिदर्भोदक) (२|३|५|६) पंचगव्य (दुध दहि माखण घृत तक्र मिश्री चंदन) (८) पाटलो पवित्र (५२६८) पाटलो १ नंदावर्त योग्य शिवंतनो ( ८ ) पान १०० (७) पत्र २४ (३) पंचधातुक (२३) पंचवर्ण पुष्प ( ४ ) पान (८) पंचरत्न (प्रवाल, मौक्तिक सुवर्ण रजत ताम्र ) (२२३।५।६।७१८) पारद (१) पंचरत्न कषायग्रंथी (प्र० मौ०सु०र०ता०) (३) पंचरत्नाष्टक ८ (सु. रू. ता. मौ. राजावर्त) (४) पंचरत्न गांठडी (ग्रेवासूत्रे पीत वस्त्रे बांधी बिम्बनी आंगलिये बांधवी) (६८) पानीय वर्ग (गंगा यमुना मही नर्मदा सरस्वती तापी गोदावरी समुद्र पद्मसर नदी संगमादि) (१) प्रतिनिधि (जे देशमां औषधी न मले ते पंचरत्न ग्रंथी (प्रत्येक बिंब दक्षिण करांगुलीए देशमां तेना स्थाने उत्तम चीज लेवी) (७) बांधवी) (६) प्रतिमा (पा. शां. जलयात्रायां) (६) प्रतिष्ठाप्या जिनप्रतिमा चिन्त्या स्थाप्यावा नंदावर्ते ( ५ ) पंचरत्न पोटली १००० (श्वेत वस्त्रेगेवासूत्रे बांधीये) (६७) पंचशब्द वाजिंत्र (५/६८) पंचामृत ( १ ) प्रतिमा (चला) वामांगे समूलदर्भ वालुका स्था० (५/६ ) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५५१ ।। Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिमा (स्थिरा) लेपादि (प्रथमथी अधो वामभागे घी वाटकी श्रीखंड तंदुल कुंभकार चक्र माटी सह सोनु रु' मुक्ताफल लोह ए पंचधातुक स्थापवां ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ थोक । बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ ॥ ५५२ ।। प्रतिष्ठान्ते मंगलगाथा (५६) प्रतिष्ठा गुरु (४) प्रतिष्ठा मंडप (८) प्रशस्तफल (२) पिशंग (४) पीठीका (१) पूग २४ (३) पूगीफल (१) पुष्प (२।३।१।४।५।६।७८) पुष्पचय (१) पुष्प सेवंत्रां चंपेली मोगरो गुलाब जुई (८) पुष्प प्रकर (२१७) पुष्प निक्षेप (८) पुष्पराग (१) पुष्पमाला (८) पुष्पांजलिक्षेम (१८ अभिषेकान्तर्गत) (८) पुखणहारी ४ (२।६।८) पुंखण (६८) प्रोक्षण (३) पुंखणोपकरण (धूसर मुसल वाइओ) (५) पुंखणोपकरण (त्राक धूसर मूसल रवाइओ) (६) । पुंखणोपकरण (त्राक धूसर मुसल रखाइओतीर) (८) पुंजणी ८ (८) पूपिका (४) पोलिका (घृत खांड मिश्र) (४) पूजा ३ वा ८ दिन (३) फल (८६) फलहलि (६।५।८) फलोहलि (२।३) फालां ४ (७) फूल (५।६।८ः फूल रूपानां (८) फूल सोनानां (८) फोफल (२।३।५।७ बदर (१४) बकुल (७) बलबाकुल (८६) बलि (लड्डुकादि) (३२) बलि विचित्र (जंबीर बीजपूरक पनस आम्र दाडिम इक्षु) (३२) Ge For Private & Personal use only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ IN बील (मोदक बाट खीरि करंबो कीसर ॥ कल्याण- कूर सिद्धवडि पूपली.७) (२) कलिका. | बलि नव्य (काकरिआ सुकुमारिका खं० २॥ प्रभृति) (५) बलि (भूत) (२।३।४।१) ॥ ५५३ ।। बहेडां ४ सयवारक (८) बाकुलावानी ३ (५) बाकुलावानी ३ (गोहुँ चणा जारी) (६८) बाट (४) बाजवट १ (६) बेउल (७) ब्राह्मणयोग्य (७) बीजपूरक (१।२।३।४।५।६।८) भक्त (४) भद्रपीठ (१) भामंडा सराव (६) भूतबलि (२।३।४।१) भतबलिदीन (बिंबाग्रे) (४) भोग पुडी (५।६) मदनफल कंकण (पार्श्वतः ऋद्धि वृद्धि समेत विद्ध मदनफलाख्य कंकण) (३) मदनफल (२२) मदनफलोतारण (३) मधु (१) मनःशिला (१) मरुओ (७) मसूर (१) महानील (१) मंडपद्वय (१) मंडपनिर्माण (७) मंगलगाथा ७ पाठ (५।६) मंगलगाथा (३) माई साडी १ (प्रतिष्ठानंतर योग्य) (२) माई साडी २ (अधिवासना प्रतिष्ठायोग्य) (३) माई साडी (कुसुभी) (५।६।८) माई साडी (३) माई साडी (बिंब माथे देवी) (६) मातृशाटिका १ (पार्श्ववेष्टने) (४) मातृशाटिका १ (दशहस्तमित) (४) मातृपुटी १०८ (१) माटी (६) माटी गंगानी (८) माष (१) मांडी (२।३।५।८) C थील का ॥ ५५३ ॥ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५५४ ।। मांसी (४) मिश्री (८) मीलसह १ (७) मुद्रिका (१) मुद्रिका ४ ( सुपर्ण) (५/६/७) सरलमुद्रिका ( ५ ) मुद्रिका ५ (सुवर्ण) (८) मुद्रिकाहस्तसूरि (२) मुर्भ (१) मुखाच्छादन (कंकण बंधनान्तरसदश वस्त्रेण सर्व मुखाच्छादन) (६) मुखोद्घाटन (बिंबना) (१३२|३|४|६) मुरकी (३) मूलवेदिका (१) मूलिका ( मयूरशिखा बिरहक कंकोललक्ष्मणा शंखपुष्पी शरपुंखा विष्णुकांता चक्रांका सर्पाक्षी महानीली) (२|३|४|७) मूलिका स्नात्र ( मयुरशिखा विरहक अंकोल्ल लक्ष्मणा शंखाहूलि खुरसाणिओ (शरपुंखा ) गंधनोती महानोली) (५) मृत्तिका (१) मृत्तिका वर्ग (वल्मीक १ पर्वताग्र २ नद्युभयतट ३ महानदी संगम ४ कुश मूल ५ बिल्वमूल ६ चतुष्पथ ७ दंतिदंत ८ गोशृंग ९ राजद्वार १० पद्मसर ११ एक वृक्षादि ) (१) मृत्तिका ( गजदंत वृषभविषाण पर्वतवल्मीक महाराजद्वार नद्युभयतट नदी संगम पद्मतडागोद्भव ) (२|३|४|५|६|७१८) मृत्तिका - कुंभकार चक्र (११२।३३८) मृत्तिका मांगल्य ( २ ) मृगमद (१) मोदक (२२४) मोदक सनालिकेर ५ सेरो (६८) मोरेंडा (५ मुंग ५ जब ५ गोहूं ५ चिणा ५ तिलनालाडु) (२) मौक्तिक (१) यक्षकर्दम (८) युगाद्वय (सित ) ( १ ) रकेबी १(सुवर्ण) (८) रक्तसूत्र ( १ ) तर्कुक (१) रत्न - वर्ग (१) (वज्र सूर्यकान्त नील महानील मौक्तिक पुष्पराग पद्मराग - वेडूर्यादि ) (१) राइण (६८) राजादन ( ४ ) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५५४ ।। Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५५५ ।। रीति (१) रूप्यकचोलिका (११४ ) रूप्य मुद्रा ४ ( कलशला योग्य ) (७) रूप्य मुद्रा १ ( घडी योग्य) (७) रूप्य मुद्रा १ सूत्रधार योग्य ( ७ ) लवण (१) लवणपानीय विधि ( ५१४) लवणारात्रिकावतारण ( ४ ) लवणावतारण (६) लूण उता (६) लूण पाणी विधिपूर्वक आरती मंगलेवो कपूर घी साकरे करी करवो (६) लोकपाल पूजन (कंकण मोचने) (१) लोह-मुद्रिका १ (१) लोहवर्ग (हेमरजत ताम्र कृष्ण लोह रीति कांस्य सीसकादि ) ( १ ) लाडू (३|५|६|८) लापसी (८) वदना छादन ( २३ ) बरसोलां (२|३|५|६) वरसोलां १०० (७) वषेपिलक (२४) वसु (१) वज्र (१) वस्त्रपरिधान (२) वस्त्र (सदश ) (२३) वस्त्र पाट १ हाथ २४ (७) ar (सदश श्वेत बिंबाच्छादन हाथ) २४ (४) वस्त्र सूत्र धार योग्य (५) वस्त्र १ सूत्र धार योग्य ( ७ ) वस्त्र कोसुंभ खंड सह (७) वस्त्र श्वेत ( प्रतिमाच्छादन) (१) वस्त्र २ अखंड सदश कोरा (नंदावर्तयोग्य १ प्रतिमायोग्य १) (६) वस्त्र २ सदशकोरक (१ गुरु १ नंद्यावर्त योग्य) (६५) वस्त्र पूजा (२|३|५) वस्त्र कोरां सदश ४ (नंदावर्त प्रतिमागुरू नंदावर्त लेखक योग्य ) (८) वाटकी १ ( रुथ) (३२५/६:७) वाटकी १ (रुथ) (२) वाटकी २ (रुथ) (८) बाढी १ (२) वादित्रानयन ( ४ ) वादित्रवादन (६) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५५५ ।। w.jainelibrary.org Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MHA ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ स्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ वाताम्र (४) वायम्ब (३) वाइम १० (७) १०८ वारक स्नान (२) वारक १०८ (१) वारा १० (२) वारा (माटी) १० (३) वारक श्वेत ४ (२१५) वारक ४ स्थापन (स्वस्तिक पट्ट पार्श्वे ४ दिशि सकपर्द १ सहिरण्य २ सजल ३ सधान्य ४) (२) वालिका (३) वालुका (२) वाल (१) वेलु (७) पवित्र स्थानीय वांस धोला पीला (८) वास (१२।३।६।८) वास-धवल (५।६) वास-पीला झाझा केसर (६) वास (गंध ही अति धवल वास) (६) वास (कर्पूर कस्तुरिका पुष्प वासित) (४) वास (चंदन केसर कपूर) (८) वास सेर १० (सुकडिया) (७) वास सेर १ (केसर कपूर सहित) (७) विद्रुम शय्या (१) विलेपन (१) विझणा ८ (८) बिरंटक (४) ब्रीहि (१) वृंताक (१) वैज्ञानिक (२।३) वेदिका (श२८) वेदिका रचना (२१३) वेदिका रचना (मंडप मध्ये) (४) वेदिका रचना (कलशे) (४) वेदिका ४ (५।७४) वेदि ४ मंडप कोण चतुष्टये (३) वेहि ४ (२) वेहि ४ नवांग (५।६७) वैज्ञानिक (२।३) वैडूर्य (१) शण बीज (१) शतमूलिका (१०० वनस्पति नामानिः (६) शर्करा (४) शंख दर्शन (३) Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARN GS ॥ कल्याणकलिका. | खं० २ ॥ ॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥ ।। ५५७ शाखाशत (७) सराव (वाट खीर कूर कीसरि करंबो लापसी शांतिक (७) पुडा पुडी) (६) शांतिक (स्नात्र पूर्वक) (७) सराव ७ (वाट खीर करंबो सात धाननी शांतिबलि (शरा४।५।६) खीचडी) (८) श्यामक (१) सराव ७ (नंदावर्त आगल ढो०) (६) श्रीखंड (१२।३।४) सराव ७ दहिभरियां (नंदावर्त पट्ट पाश्व द्वये श्रीपर्णी फलक (१) मूकवां) (६) समुद्र फीण (६८) सराव ७ (मातृ सराव वडां) (७) सराव ५० (११६) सराव १ (मंडा) (३) सराव (२) सराव १ (चूरिमा पूपडीः (३) सराव ६४ (५७) सराव (भामंडां) (६) सराव (३२, ५० वा ६४) (८) सराव (भांमणां) (५) सराव १० दीप गर्भ (४) सराव (भामडा) (८) सराव ७ बलि (वाट खीर करंबो कीसर । सराव ५ (वल्लमय पूपक) (४) कूर सिद्धवडि पूपली) (२।३) सर्जरस (४) सहकार (७) संघदान (२) संघतंबोल (अंतर पडदेइ) (६) संघ मडिदान (वेषदान) स्तवन (प्रतिष्ठान्ते अजित शांति वृद्ध शांति | वा) (८) सर्षप (श्वेत) (१४) सर्षप (लोहाऽस्पृष्ट श्वेतसिद्धार्थ-पोट्टलिका) (२) सर्षप (श्वेत रक्षापोटली) ८ (३) सर्षप (लोहाऽस्पृष्ट श्वेतसिद्धार्थ-पोट्टलिका) (३) सर्षप (श्वेत पोट्टली ८) (४) सर्षप (लोहाच्छेदित श्वेत) रक्षा पोटली) (५) सर्षप (तंदुल निर्माल्यादि द्रव्य सहित कृष्णपट्टकूले गेवासूत्र बद्ध) रक्षा पोटली सहस्र १ (७) Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ सर्षप (लोहाच्छेदित श्वेत) २७ तणी रक्षापोटली (६) सर्षप (श्वेत लोहाच्छेदित पोटली) (८) साकर (५६) स्नात्रभेदाः ।। ॥ ५५८॥ १ स्नात्र सुवर्णजल (२।३।४।५।६।७८) २ स्नात्र पंचरत्नजल (२।३।४।५।६।७८) ३ स्नात्र कषाय छाल (न्यग्रोध उदुम्बर अश्वत्थ चम्पक अशोक कदंब आम्र जंबू बकुल अर्जुन पाटला वेतस किंशुकादि) (१) (प्लक्ष अश्वत्थ शिरीष उदुंबर वट) (२।३) (पीपली पीपल सिरीप उंबर बड चंपो अशोक आंबो जांबु बउल अर्जुन पाडल बील किंसुक) (५) साकरिआं १०० (७) स्नात्रकार उपवासी (७) साकरलिंगां (७) स्नान-(घृतदधिदुग्धादिना) (३) स्नात्रकार ४ (२।३।४।५।६।७: स्नात्र (सूत्रधार कृत) (१) स्नात्र (४ स्नात्रकार कृत) (३) स्नात्र-भेदाः(पीपरि पीपल सरीस उंबर बड चंपक अशोक सालवणी वडा रीगणी लहुडी रींगणी (५।६) आम्र जांबू बउल अर्जुन बील किंसुक दाडिम (सहदेवी सतावरी कुआरी वालो नारिंग) (६८) म्होटीरींगणी न्हानीरींगणी मयूरशिखा अंकोल (लक्ष अश्वत्थ सिरीष उदुंबर वट) (७४) शंखाहोली लक्ष्मणा आजो काजो थोहर ४.मृत्तिका स्नात्र (मृत्तिका शब्दमां भेदवर्णन) तुलसी मरुओ कुंभा गुली सर पंखो राजहंसी | ५.स्नात्र पंचगव्य दर्भोदक (छगण-मूत्र-दूध-दहि- मीठवणी शालवणी गंधनोली महानीली) (८) घृत) (२।३।४।५।६।७) ७.स्नात्र मूलिका-(मूलिका शब्द देखयो) ६.सदौषधि स्नात्र (सहदेवी बला शत मूली ८.स्नात्र प्रथमाष्टवर्ग (कुष्ट प्रियंगु बज लोद्र शतावरी कुमारी गुहा सिंही व्याघ्री (२।३।४७) उशीर देवदारु दुर्वा मधुयष्ठिका ऋद्धि वृद्धि) | (सहदेवी बला कुंआरी शतावरी पीठवनी (२।३।४।७) ॥ ५५८ ॥ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥स्नात्रभेदाः ।। 0000 000000000000000 (उपलोट बज लोध्र वीरणिमूल देवदारु क—र कुष्ट एलातज तमालपत्र नाग केसर लवंग ध्रो जेठिमधु ऋद्धि वृद्धि) (५।६।८) कक्काल जाईफल जातिपत्रिका नख चंदन सिल्हक (वीरणी मूलस्थाने हीरवणी मूल । प्रभृति) (२।३।४।५।६।७) प्रामादिका) (प्रियंगु हलद्र बज सुआ बालो मोथ अतिवि. ९.स्नात्र द्वितीयाष्टवर्ग (मेदा महामेदा सकली पुरमांसी जटामांसी उपलोट एलची लविंग कंकोल खीर कंकोल जीवक ऋषभक तज तमालपत्र नागकेसर जायफल जावंत्री कंकोल नखी महानखी) (२॥३॥४॥७) सिलास(रस) चंदन अगर पत्रज छड नखला (मेदा महामेदा काकोली खीरकाकोली गंडुला कचूरो विरिहाली छडीलो कंकोल मिरची जीवक ऋषभक नखी महानखी) कंद वरधारो आसंधि बडीऔषधि सहस्रमुली)(८) ११.स्नात्र कुसुमजल (२।३।४।५।६।७८) (पतंजारिकाकुष्ट विदारीकंद कचूरो (सेवंत्रा दिपु० जलेक्षि.) कपूर काचरी नखला कंकोडी खीरकंद । १२.स्नात्र गंध स्नानिका (सिल्हक कुष्ट मांसी मुसली बेई) (८) चंदनाऽगुरु कर्पूरादियुक्त गंधस्नानिका) १०.स्नात्र सवौषधि (हरिद्रा वचा शोफ (२।३।४।५।६।७) बालक मोथ ग्रन्थिपर्णक प्रियंगु मुखास (केसर कर्पूर कस्तुरी अगर चंदन) (८) For Private & Personal use only १३.स्नात्रवास (गंधा एव | शुक्लवर्णावासाः)(२।३।४।५।६) (घनसार मिश्र श्रीखंड वास) (७) (चंदन केसर कपूर एतहव्यवास) (८) १४.स्नात्र चंदन (सजल चंदन कल्क) (२।३।४।५।६।७) (चंदन दुग्ध स्नात्र) (८) १५.स्नात्र कुंकुम (केसरापरनामक कुंकुम) (२।३।४।५।६।७) (केसर साकर स्नात्र) (4) १६.स्नात्र तीर्थो दक (जलधि-नदी-द्रह कुण्डतीर्थजल (२।३।४७) (गंगा प्रभृति तीर्थोदक) (५) (गंगा सिन्धु प्रमुख १०८ तीर्थोदक) (६) (गंगादिक १०८ तीर्थ) (८) ॥ ५५९ ॥ Jan Education inte Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥स्नात्रभेदाः ॥ १७.स्नात्र-कर्पूर (कर्पूरजल) (२।३।४।५।६।१८) १८.स्नात्र-पुष्पांजलि (३।५।६) (कस्तुरी जल) (२) (शुद्ध जल १०८ स्ना.) (७) (के सर चंदन पुष्प स्नात्र ततः पुष्पांजलि) (८) सिद्ध विडि पुडी (५) सिल्हक (४) सिंहासन (८) सीसकादि (१) सुवर्ण वर्तिका (५) सुखडी सर्व जातनी (८) सुकडी घसी (६) सुकडी वास (५) सुकडी घसिवा सेर १० (७) सुकडी जाडी घसी वाडलुं १ (६) सुकडी घसिवालोडा २ (६) सुकडी घसी जाडी लोडा २(८) सूत्र (कुमारी कर्तित) (४) सूत्र (कुसुंभ) (३) सूत्रधार (१) सूर्यकान्त (१) सेलडी (५६) सेलडी खंड (७) सोनानो कच्चोलो (८) सोपारी (६८) सुकुमालिका कंकण (३) सुवर्ण शलाका (१।२।३।४।५।६।१८) सुवर्ण चूर्ण (५) सुवर्णमाक्षिक (१) सुवर्णभाजन (२।३१५) सुहाली-सोहाली (२।३) सुहाली दर्भ (३) सुहाली गुडयुत ४ दान (३) सुहाली (५) सुंहाली (८) हरिताली (१) हरिद्रोदक (४) हस्तलेप (प्रियंगु कर्पूर गोरोचन (२।३।४।५।६।८) हिरण्य (१२) हिरण्य दान (२३) हेम (१) हेम गैरिक (१) Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८-क्रयाणकरूची मूर्वा = मोरवेल ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥क्रयाणका करूची ॥ मदनफल = मीढल, मधुयष्टि= जेठीमधनी लाकडी तुम्बी= तुंबडीनो वेलो निम्ब= लींबडानु झाड बिम्बी= गिलोडानो वेलो इन्द्रवारुणी= इंदरवरणांनो वेलो तरसुडानी वेल. उत्तरवारुणी= दुधेलीनो वेलो-वाड देवदाली= कुकडवेल विडंगफल= वावडिंग वेतस= नेतरतुं झाड दन्ती= अजेपालानुं झाड-नेपालानुं झाड चित्रक= चित्रकनुं झाड-कालो चितरो.' चित्रकरक्त= राती छालनो चित्रक उन्दरकर्णी= उंदरकनी-गरणी। कोषातकी= तोरी-तोरीना शाकनो वोलो. राजकोषातकी= गलकानो वेलो करंज= करंजनुं वृक्ष पूतिकरंज= लताकरंज, करकचियानो वेलो। पिप्पली= पीपर लींडी पीपर पिप्पलीमूल= पीपलामूल, गंठोडां सैंधव= पंजाबधी आवतुं सींधालूण सौवर्च= संचल लूण, लाल मीढुं कृष्णसौवर्चल= कालुं संचर लूण बिडलवण= स्वनाम ख्यात पाक्यलवण= पंच लवणमांनो एक क्षार समुद्रलवण= समुद्रखार रोमकलवण= विलायती मीटुं यवक्षार= जवखार सर्जिका= साजीखारो वचा= वज-घोडा वज उग्रगंधा वचा खुरासानी= खुरासानी वज. क्षुद्रला= नानी एलची. एला= एलची-मध्यम एलची बृहदेला= मोटी एलची. दुधेली लघूत्तरवारुणी= भोयदुधेली कर्कटी= काकडीनो वेलो कुटज= कडायानुं झाड इंद्रजब= कुटज वृक्षनां बीज, कडवा इंद्रजव, VAS GS For Private & Personal use only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ || क्रयाणकरूची॥ ॥ ५६२ ।। सर्षप= सरसव पीला कृष्ण सर्षप= काला सरसव-रायलो आसुरी = राई त्रिबीज= तरखणनां बीज. मालविनी= नसोतर- झाड हरीतकी= हरडे-मोटी हरडे विभीतक= बहेडां-बिभीतक वृक्षनु फल आमलक= आमलानुं फल त्रिफला= हरडे बहेडा आमलां संयुक्त स्नुही= थोर-हाथाली थोर. शंखपुष्पी= शंखावली लता नीलिनी= नील गलीनुं झाड रोध्र= लोधर बृहद्लोध्र पठानी लोघर कृतमाल= गरमालो-गरमालानी फली. कम्पिल्लक= कंपिलो-कपीलो कुलत्थ= कलथिया-ए नामनुं धान्य स्वर्णक्षीरी= सत्यानाशी. माक्षिक= मक्षिकाकृत मधु-मध कुष्ट= सुगंधीद्रव्य कूठ पौक्षिक= पूतिका-लघु मक्षिका कृत मधुबिल्व= बिल्लीनुं झाड वा बिल्वफल श्वेत मधु अपामार्ग = अघाडो-आगी झाडो. सित्थुक= मीण अरणी= मोटा अरणानुं झाड शर्करा= साकर अरणिका= न्हानी अरणी विश्वभैषज= सुंठ पाटला= पाडलनुं झाड कृष्णमरिच= कालां मरी कंटकारिका= उभी रींगणी, मोटी रींगणी त्रिकटु- सुंठ-कृष्ण मरिच-पीपर संमिलित क्षुद्रकंटकारिका= न्हानी रोंगणी-भोंय रींगणी नागकेशर= स्वनामख्यात गोक्षुरु= गोखरु कांटी. हरिद्रा- हलदर देवदारु= देवदारुनु वृक्ष दारुहरिद्रा= दारुहलदर रास्ना= स्वनाम ख्यात वात व्याधिनाशक औषधि । अंबष्ठा= आंबा हलदर. यव जव राल= स्वनामख्यात शतपुष्पा वरिहाली श्रीखण्ड=सूखड-पाकुं चंदन W ॥५६२ ॥ For Private Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण शोभाञ्जन= सरगवानुं झाड रक्तशोभाञ्जन= लाल सरगवो मधुशोभाञ्जन= मीठो सरगवो. मधूक= महुडा, महुडानुं झाड अथवा कलिका. ॥क्रयाणकरूची॥ खं० २॥ रसाञ्जन= रसौंत तगर= स्वनामख्यात बला= बलबीजनो क्षुप अतिबला= नानी कांकसी (नानी पीठाडी) नागबला= गंगोरुकी-गांगडीनुं झाड दुर्वा = ध्रो दूब श्वेतदूर्वा = धोली थ्रो, श्वेत दूब गण्डदूर्वा = गांठाली ध्रो-तांतिया दूब जवासक= जवासो दुरालभा= धमासो वासा= अरडुसी-माली अरडुसो कपिकच्छू= कौंचनी फली वा बीज. शतावरी= सतावरी नाम ख्यात गुञ्जा= चणोठी-लाल चणोठी चरमी श्वेतगुञ्जा= धोली चणोठी-धोली चरमी प्रियंगु= रायण, झाड बीजप्रियंगु= गहुंला-घहुंला पद्म= लाल कमल, पोयणां पुष्कर श्वेतकमल नीलोत्पल = नीलकमल-नीलोफर कुमुद= रात्रिविकासी कमल शालूक= कमलनी जड-कमलतन्तु वितुन्नक= नागरमोथ जीवन्ती= हरडेनुं झाड-हरीतकीवृक्ष काकोली= स्वनाम ख्यात कंद मुद्गपर्णी रानीमग-कोटडिओ माषपर्णी = रानी अडद ऋषभक स्वनाम ख्यात कंद जीवक= स्वनाम ख्यात कंद विदारी= स्वनाम ख्यात कंद क्षीरविदारी= दूधियाविदारी कंद एरण्ड= एरण्डो रक्तैरण्ड= रातो एरंडो वृश्चिकाली= विच्छुडो घास पुनर्नवा= राती साटोडी श्वेतपुनर्नवा= श्वेत साटोडी सहदेवी= स्वनाम प्रसिद्ध औषधी कृष्णसारिवा= स्वनाम प्रसिद्ध रक्तशोधक औषधी For Private & Personal use only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ क्रयाणकरूची ॥ ॥ ५६४ उशीर= सुगंधी वालो चंदन= मलयागिरि चन्दन रक्तचंदन- रतवायूँ लाकडं-लाल चंदन कालेयक अगरनो निर्यास-अगरमाथी निकलतो रस परुषक= फालसा नामनी औषधी पद्मक = पद्माख-कमलबीज-कमल काकडी पुण्डरीक= श्वेत कमल तुकाक्षीरी= वंश लोचन कर्कटशृंगी= काकडा शींगी. गुडूची= गलो द्राक्षा= दाख-किसमिस दाख कटफल= कायफल कतक= कतक वृक्षनुं फल-निर्मली राजादन= रायणर्नु फल-रायण शाक= सागनुं झाड दाडिम= दाडिमी- फल-अनार. अंजन ए नामनुं वृक्ष-काला लाकडानुं झाड. सौवीर= कालो सुरमो मांसी= जटामांसी गंधमांसी= मुरमांसी कडका= लवण-कांकरीवालुं मीठं पाण= पाड-काली पहाड. धान्यक= धाणा-कोथमीर काकमची= साजी कांणीनो क्षुप किराततिक्त= करियातुं-चिरायतो. शैलेय= शिलापुष्प-छडीलोड छडछडीलो. चक्रांका= कांकसी-मोटो पीठाडी. कंधेरी= कांथेरनुं झाड अलाण झाउडीनं झाड मयूर शिखा= मोरशिखा नामनी बूटी काली मुसली= स्वनाम ख्यात श्वेतमुसली= स्वनामख्यात ताम्रवल्ली= त्रांबावेल हस्वपत्रा स्नुही= न्हाना पत्रो वाली दूधाली थोर कारवेल्ली= कारेली-कारेलाना बेला बदरी= बोरडीनुं झाड-बोरडी. बीयक= बीओ-बीयानुं झाड. तिनस= तिनसनुं झाड-धामण भूर्ज= भोजपत्र- झाड अथवा भोजपत्र. अर्जुन= अर्जुन वृक्ष-सादडो खदिर= खेरनुं झाड. कदर= कगहनुं झाड ॥ ५६४ ॥ ENA Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ ||॥ क्रयाणकरूची। मेषशृंगी= मीढीआवल-सोनामुखी. ब्रह्मदण्ड= उंटकंटालो धव= धवनुं झाड कर्पास= वणी-हीरकणी-कपासनुं झाड शिंशपा= शिशमनुं झाड-सीसम. कल्हार= कलालिओ. ताल= ताडनुं वृक्ष रुद्रजटा= स्वनाम ख्यात अगुरु= अगरनुं झाड वज्रदन्ती= एक पहाडी औषधी-दन्तौषधी. पलाश= खाखरानुं झाड-केशुडानुं रुदन्ती= रुद्रवंती नामे ओलखाती औषधी वृक्ष. श्रीपर्णी= सेवन, वृक्ष. क्रमुक सोपारी, वृक्ष तुत्थ= थूथु-मोरचूंथु अजशृंगी= मरडासींगी-मरोडफली हरिताल= हरताल अरुष्कर= भिलामुं-भीलामानुं फल हिंगु= हींग रूषक= अरडूसो-जंगली अरडूसो कासीस= हीराकसी कदंब= कदंब- वृक्ष शिलाजतु= शिलाजीत-शिलानिर्यास. कशैलक= कंटाशेलीओ पुष्पकासीस= हीराकसीनां फूल. नागदमनी= नागदोन-नागदमनी ____ पाषाणभेद= स्वनामख्या औषधी, औषधी काश= दर्भजातीय तृण-कासडा-काह इक्षु= सेलडी नल= काशजातीय तृण दर्भ- डाभ-कुश अर्क= आकडो पिप्पली= पीपली सुवर्चला= ब्राह्मी-विद्याब्राह्मी सरला= घीयुं देवदारु कदली केल-केला- झाड अशोक= आसोपालब एकवालुक= एलिओ अलर्क= धोलो आकड़ो मन्दार= मदार-आकजाने मलतुं झाड भारंगी= भाडंगी नामनी औषधी सल्लकी= सालरनुं झाड ज्योतिष्मती= रतनज्योत ॥ ५६५ ।। Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ क्रयाणकरूची ॥ न ॥ ५६६ ॥ कटभी= मालकांगणी श्वेतकटभी= धोली मालकांगणी इंगुदी= हिंगोटी-हिंगोटा- झाड सुरसा= तुलसी सोमराजी= बनतुलसी-बाकुची श्वेतसुरसा= धोली तुलसी कुबेर= अजमो-बोडी अजमो कृष्ण कुबेर= कालो अजमो फणिञ्जक= बीजोरी-बीजोरानुं झाड निगुंडी= नगोडनुं झाट मुष्कक लताकस्तूरी अतिविषा= अतीस-अतिविषनी कली. जीरक= धोलुं जीरु कृष्णजीरक= कालुं जीरुं-स्याहजीरु अजमोद= एज नामे प्रसिद्ध चव्यक= स्वनाम ख्यात पुष्करपत्री= बिल्ली, झाड मंजिष्ठा= मजीठ शाल्मलि= सेमलनो गुंदर घातकी घातकीवृक्ष नन्दी= ए नामनुं वृक्ष भल्लातक= भीलामानुं झाड वट= वडनुं झाड-वड पिप्पल= पिपलो-पारस पीपलो उदुम्बर= उंबरो-गूलर जंबू= जांबुनुं झाड राजजंबू = मोटा जांबून झाड काकजंबू= न्हानां जांबुफल- झाड-जंगली जांबू करमर्दक= करमदी-करमदानु झाड कपीतन= जासूदीनुं झाड आम्र= आंबो पियाल= चारोली-नेपाली चारोली तिन्दूक= तिंदुआ- झाड तुरुष्क= शिलारस वालक= सुगंधी वालो अधःपुष्पी= उंधा फूलीनो क्षुप त्वचा तज-दालचिनी तमालपत्र% स्वनाम ख्यात नख= नखला श्रीवेष्ट = सर्जवृक्षनो निर्यास-चंदरस कुन्दरुक= कंदरूप धूप कुंकुम= केसर गुग्गुल= गूगलनुं झाड-गूगल धूप पीलुं= पीलुडीनुं फल-पीलुं खटी खडी-धोली माटीनो भेद ॥ ५६६ ॥ For Private Personal Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरमजी= राती माटी-रजमी तुवरी= पीलीमाटी-भेट-मुलतानी ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ क्रयाणकरूची। माटी ॥ ५६७ सुवर्णमाक्षिक = एनामथी प्रसिद्ध खनिज द्रव्य रूप्यमाक्षिक= स्वनाम ख्यात खनिज द्रव्य शमी= खिजडी-न्हानी खिजडी। राजशमी= खीजडो-मोटो खीजडो हयुषा= चोपचीनी- झाड काकनासा कौआठोडी काकजंघा= स्वनाम ख्यात बूटी पर्पटक= पापडो-पित्तपापडो राजहंस= स्वनाम ख्यात पुष्करमूल= पोकरमूल काञ्चनार% कचनार वृक्ष रोहितक= रोहिडानुं झाड वंश= वांस-वांसडानुं झाड अंकोल्ल= अंकोलनुं झाड कौडिन्य = लोबाननुं झाड-कोडिओ लोबान श्लेष्मान्तक= गुंदीनुं झाड-गुंदी तिंतिडीक= आंबली-आंबलीनु फल अम्लवेतस= स्वनाम ख्यात कपिस्थ= कोठ-कोठ- फल नालिकेर= नालिएर खर्जूर= खजूर-छुहारा बीजपूरक= बीजोरं नारिंग= नारंगी जंभीर= जंबेरी निंबूक= लींबु अक्षाट= अखरोट चांगेरी= खाटी लूणी अम्लिका= आंबली, झाड करीर= केरडानुं झाड वास्तुक= वथुओ-एक जातनी भाजी. कुसुंभ= कसुंभो-कुसुंबीनां फूल लाक्षा= लाख जतुका= बोरडीनी लाख-कणवज लांगली= एक जातने झेरी वेलो-हलिनी मिश्रेया= सुवा मूलक= मूलो तन्दुलीयक= तांदलिओ-पंदलेवो द्रोणपुष्पी= सूर्यमुखी-बपोरियानुं झाड आमली= आवल-भूम्यामलकी आवलकी ब्राह्मी= स्वनामख्यात | ।। ५६७ ॥ Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। कल्याणकलिका. || क्रयाणकरूची ॥ खं०२॥ ॥ ५६८ ॥ थील अरिष्ट= आरेठानुं झाड वाराही= वाराहीकंद-खीलोडा पुत्रजीवा धोला फुलनी भोयरींगणी. मांसरोहिणी= कडु-कुटकी कुष्माण्डक= कोलुं वृद्धदारु= वरधारो. महातुंबी= मोटीतुंबीनो वेलो वन्ध्याकर्कोटिका= वांझकंकोडी. चिर्भटी चिभडानो वेलो-चिभडियानी त्रिपत्रिका तरवरण, झाड पिंडीतक= लोबान धूप कटुचिर्भटी= कडवी चीभडीनो वेलो सिंदुवार= संदेसरानुं झाड-सिंदोडा विष्णुक्रान्ता= अपराजिता अश्वगन्धा= आसगन्ध. क्षीरिणी= रायणनुं झाड मदयन्ती= मोगरानो वेलो सर्पाक्षी= खरसणिओ-शरफोका शृंगराज= भांगरो-जलभांगरो. कर्दमपुष्पी= मगनो क्षुप शिरीष= सरसडो-सरडो करवीर= कणेर धोलो अगस्ति= अगथिओ रक्तकरवीर = कणेर रातो- लालकणेर. विटिका= विटी-पीतचंदन धतूर= धतूरो स्वर्णपुष्पी= पीला फुलनी केतकी यवानी= अजवायन-अजमो. लक्ष्मणा= ए नामनो कंद पलंकषा= रक्तपलाश. दधिपुष्पी= श्वेता अपराजिता गोजिह्वा= गांजवा कस्तूरी= स्वनामख्यात. कर्पूर कपूर जातिपत्री= जावंत्री जातिफल= जायफल कक्कोलक= सुगंधी कोकला लवंग= लविंग दमनक= दमरो-मरुओ क—र= कचूरो मालती= चमेलीनो वेलो जाति= जाईनो वेलो यूथिका= जुहीनो वेलो. शतपत्रिका सेवंत्री-गुलाब का ॥ ५६८ ॥ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ क्रयाणकरूची॥ चंपक= चम्पो सोवनचंपो बकुल= बोलसिरि नामनुं झाड तिलक= तिलकवृक्ष-तलकडो अतिमुक्तक= मोतीओ-बटमोगरो. कुन्द= कुंदवृक्ष- झाड कुमारी= कुंआरी-घीग्वार अतसी= अलसी-अलसीनो क्षुप हिंगुल= हिंगलोक-शिंगरक, हरिताल= हरताल मनःशिला= मनशील, गंधक= गंधकनामथी प्रसिद्ध छे. पारद= पारो गैरिक= सोनागेरु सौराष्ट्री= एक जातनी माटी-गोपीचंदन गोरोचना= गोरोचन. अभ्रक अबरख, वाताम% बदाम-बादाम, मुंडी= मुंडापाती बूटी महामुंडी= गोरखमुंडी, बूटी प्रपुनाट= पमाडिओ-चक्रमर्द. बोल= हीराबोल सिंदूर= स्वनामख्यात. शंखप्रस्तरी= संगेजर-शंखजीरं, शृंगाटक= सींघोडां-सूकां सीघोडा, घूनीरा- घूनरो एक जातनुं घास. सूचनाअमोए जे क्रयाणकोनी सूची आपेली छे ते बधां आपणा गुजरात तथा मारवाड देशमां उपलब्ध थई शके एवां छे अने तेम छतां अमुक चीज न मली शके तो आमां त्रणसोएकोतेर उपसंगृहित छे ते पैकी, कोइपण लेबु अने ३६० नी संख्या पूरी करवी. कदापि ११ थी वधु चीजो न मले अगर न ओलखाय तो तेना बदलामां बीजां क्रयाणको पण लेइ शकाय छे, मात्र तेमां क्रयाणकनु लक्षण घटवू जोइये, क्रयाणकर्नु लक्षण आ प्रमाणे छे. Jan Education International For Private Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ क्रयाण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ करूची। "अप्रसिद्धं रोगहरं, भेषजं यन्महीतले । तत्क्रयाणकमुद्दिष्टं, शेषं वस्तु प्रकीर्तितम् ॥" अर्थात्-उक्तातिरिक्त पण जे वस्तु रोगनाशक होइ दवा रुपे वपराती होय तेने क्रयाणकमां परिगणित करवी अने जेमां क्रयाणकनु उक्त लक्षण न होय तेने सामान्य वस्तु रुपे गणवी. सुवर्णादि धातुओ, खाद्य धान्यो अने वस्त्रोने क्रयाणक न गणतां रत्न तरीके गणवां, शेष गांधी-पंसारीनी दूकाने मलती बधी वनस्पतिओ तथा मृद्दारसींग आदि खनिज द्रव्योने क्रयाणको गणी उपयोगमा लेवां. इति कल्याणकलिका-प्रतिष्ठापद्धतावयम् । साधनाख्योऽगमत् खण्ड-स्तृतीयः परिपूर्णताम् ॥ आ प्रमाणे कल्याणकलिका प्रतिष्ठापद्धतिमा आ साधन नामक त्रीजो खंड समाप्त थयो. इति तपगच्छाचार्यश्रीविजयसिद्धिसूरिनिगदानुसारि - संविग्नश्रमणावतंस श्रीकेसरविजयशिष्यपं०कल्याणविजयगणिविरचितायां कल्याणकलिकाप्रतिष्ठापद्धतौ साधननामा तृतीयः खण्डः समाप्तः। एतत्समाप्तौ च समाप्तेयं कल्याणकलिकाप्रतिष्ठापद्धतिः ॥ For Private Personal Use Only Mww.jainelibrary.org Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५७१ ।। नं. १ जिन मुद्दा १. चारि अंगुलाई पुरओ उगाई जत्य पच्छिमओ पायाणं उसग्गो एसा पुग हो जिणमुरा ॥ मुद्रा ॥ ।। ५७१ ।। Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. नं. २ परमेष्ठि मुद्रा नं. ३गरुड मुद्रा नं. ४ मुक्ताशुक्ति मुद्रा ॥ मुद्रा ॥ २. उत्तानहस्तद्वयेन वेणीबन्धं विधायाङ्गुष्ठाभ्यां कनिष्ठे, तर्जनीभ्यां मध्यमे संगृह्य अनामिके समीकुर्यादति परमेष्ठिमुद्रा । ३. आत्मनोऽभिमुख-दक्षिणहस्तकनिष्ठिकया वामकनिष्ठिकां संगृह्याधःपरावर्तितहस्ताभ्यां गरुडमुद्रा । ४. मुत्तासुत्तिमुद्दा जत्थ समा दोवि गम्भिया हत्था । ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति । ॥ ५७२ ॥ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं. ४ धेनु मुद्र नं. ५ पद्म मुद्रा नं. ७ अंजली मुद्रा Sha|| मुद्रा ॥ ॥ कल्याणकलिका. | खं०२॥ सहन MARAT ५. अन्योऽन्यग्रथिताङ्गुलीषु कनिष्ठानामिकयोः मध्यमातर्जन्योश्च संयोजनेन गोस्तनाकारो धेनमुद्रा (सुरमिमुद्रा) ॥ ६. पद्माकारौ करौ मध्येऽङ्गुष्ठौ विन्यसेदिति पद्ममुद्रा । ७. उत्तानौ किश्चिदश्चितकरशाखौ पाणी विधाय धारयेदिति अंजलिमुद्रा ॥ ||॥ ५७३ ॥ Jain Education Interational Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं. ८ चक्र मुद्रा नं. ९ आसन मुद्रा नं. १० सोभाग्य मुद्रा ne|| मुद्रा ॥ ॥ कल्याणकलिका खं० २॥ ॥ ५७४ ।। Rel वY ८. वामहस्तसले दक्षिणहस्तमूलं निवेश्य करशाखां विरलीकृत्य प्रसारयेदिति चक्रमुद्रा । ९. हस्तेलिकोपरि हस्तेलिका कार्या इति आसनमुद्रा । १०. परस्पराभिमुखौ ग्रथिताङ्गुलिकौ करौ कृत्वा तर्जनीभ्यां अनामिके गृहीत्वा मध्यमे प्रसार्य तन्मध्याङ्गुष्ठद्वयं निक्षिपेदिति सौभाग्यमुद्रा। ।। ५७४ ।। Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं. ११ मुद्गर मुद्रा नं. १२ वज्र मुद्रा नं. १३ प्रवनच मुद्रा ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ।। ५७५ ।। ११. तिर्यकृतवामहस्तोपरि उर्वीकृतदक्षिणकरः मुद्रमुद्रा । १२. वामहस्तस्योपरि दक्षिणकरं कृत्वा कनिष्ठिकाङ्गुष्ठाभ्यां मणिबन्धं वेष्टयित्वा शेषाङ्गुलीनां विस्फारितप्रसारणेन वज्रमुद्रा । १३. अङ्गुलीत्रिकं सरलीकृत्य तर्जन्यङ्गुष्ठौ मेलयित्वा हृदयाने धारयेदिति प्रवचनमुद्रा । For Private & Personal use only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नं. १४ गणधर मुद्रा नं. १५ अंकुश मुद्रा नं. १६ मीन मुद्रा || मुद्रा । ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ ५७६ ।। / सिट १४ यत्र दक्षिणहस्तो हृदयसन्निहितो मालान्वितः, वामभुजश्चतिरश्चीनः, सा गणधर मुद्रा ॥ १५ दक्षिणहस्तस्य तर्जनी प्रसार्य मध्यमाया रुषद्वक्रकरणे अङ्कुशमुद्रा । १६ वामहस्तपृष्ठोपरि दक्षिणहस्ततलं निवेश्याङ्गुष्ठद्वयचालनेन मीनमुद्रा । For Private & Personal use only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ५७७ ।। नं. १७ कूर्म मुद्रा नं. १८ तर्जनी मुद्रा नं. १९ अख मुद्रा १७ वामहस्तस्य मध्यमत्र्यङ्गुल्युपरि दक्षिणहस्तस्य मध्यमत्र्यङ्गुलीस्थापनेन द्वयोर्हस्तयोश्चाङ्गुष्ठकनिष्ठिकाश्वालनीया इति कूर्ममुद्रा । १८ वामकरस्संहताङ्गुलिर्हृदयाग्रे निवेश्योपरि दक्षिणकरेण मुष्ठिं बद्ध्वा तर्जनीमुर्श्वीकुर्यादिति तर्जनीमुद्रा । १९ दक्षिणमुष्टिं बद्ध्वा तर्जनीमध्ये प्रसारयेदिति अस्त्रमुद्रा । ॥ मुद्रा ॥ ।। ५७७ ।। Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५७८ ।। देव वंदननी विधि ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिन्तामणीयते; ह्रीं धरणेन्द्र वैराट्या, पद्मादेवीयुताय ते (१) शान्ति तुष्टि महापुष्टि - धृति कीर्ति विधायिने ॐ ह्रीं द्विड ब्याल बैतालसर्वाधि व्याधिनाशिने (२) जयाऽजिताख्या विजयाख्या पराजितयान्वितः; दिशां पाले ग्रह यक्ष-विद्यादेवीभिरन्वितः (३) ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यानाथताम्; चतुष्षष्ठिसुरेन्द्रा स्ते, भासन्ते छत्रचामरैः (४) श्री शंखेश्वरमंडन ! पार्श्वजिनप्रणतकल्पतरुकल्प ! चूरय दुष्टव्रातं पुरय में वांछितं नाथ ! (५) जंकिंचि० नमुत्थुणं अरिहंत अन्नत्थ० एक नवकार काउस्सग्ग० नमोर्हत् O अर्हस्तनोतुस श्रेयः श्रियं यद्ध्यानतो नरैः; अप्यैन्द्री सकलाऽहि, रंहसा सह सौच्यत (१) लोगस्स सव्वलोए अन्नत्थ० एक नवकार० ओमिति मन्ता यच्छासनस्य, नन्ता सदा यदहींश्च, आश्रीयते श्रिया ते भवतो भवतो जिनाः पान्तु (२) पुक्खर= सुअस्स० बंदणवत्तिआए अन्नत्थः एक नवकार ० नवतत्त्वयुता त्रिपदीश्रिता, रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता; वरधर्मकीर्तिविद्यानन्दाssस्या जैनगीर्जीयात् (३) सिद्धाणं० श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउस्सम्गंवंदण अन्नत्थ० एक लोगस्स (सागरबरगंभीरा) नमोर्हत्० श्री शान्तिः श्रुतशान्ति, प्रशान्तिकोसावशान्तिमुपशान्तिम्; नयतु सदा यस्य पदाः सुशान्तिदाः सन्तु सन्ति जने (४) श्री द्वादशाङ्गी आराधनार्थं करेमि काउस्सगं बंदण अन्नत्थ० एक नवकारः नमोर्हत् सकलार्थसिद्धिसाधनबीजो पांगा, सदा स्फुरदुपांगा; भवतादनुपहतमहा तमोऽपहा, द्वादशाङ्गी व (५) श्री श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सगं अन्नत्थ० एक नवकार नमोत् वद वदति न वाग्वादिनि ! भगवति कः ? श्रुतसरस्वति गमेच्छुः ; रंगतरंगमतिवरतरणि स्तुभ्यं नम इतीह (६) श्रीशासनदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ एक नवकार० नमोर्हत० उपसर्ग वलयविलयननिरता, जिनशासनावनैकरताः; द्रुतमिह समीहितकृते स्युः; शासन देवता भवताम् (७) समस्त वैयावबगराणं ० करेमि काउस्सगंअन्नत्थः एक नवकारः नमोहंत्० संघे ये गुरुगुणीथनिये सुवैयावृत्यादिकृत्य करणकनिबद्धकक्षाः; ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सद्दृष्टयो निखिलविप्रविघातदक्षाः (८) प्रगट नवकार० नमुत्थुणं० जावंति० खमा० जावंत नमोहंत्० स्तवन..... ओमिति नमो भगवओ, अरिहंत सिद्धाऽऽयरियउवज्झाय वरसव्वसाहुमुणिसंघ धम्मतित्थपवयणस्स (१) सप्पणव नमो तह भगवई, सुवदेवपाए सुहयाए:सिरिसंतिदेवयाए, सिवपवयणदेवयाणंच (२) इन्दागणिजमनेरइय वरुणबाऊ कुबेर इसाणा; बम्भोनागुत्ति दसहमवि य सुदिसाण पालाणं (३) सोमयमवरुणवेसमण - वासवाणं तहेब पंचण्ह तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण व नवहं (४) साहंतस्स समग्गं, मज्झमिणं चैव धम्मणुद्वाणं; सिद्धिमविग्धं गच्छउ जिणाइ नवकारओ धणियं (५) ।। ५७८ ।। Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (श्रिी कल्याण कलिकासमाप्त श्रीक०वि०शास्त्रसंग्रहसमिति-जालोर-मारवाड (राजस्थान)