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________________ ॥ ध्वज ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ प्रतिष्ठा ॥ ॥ ३९१ । कही सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गंधपुष्पसंमिश्रम् । पततु जलं दण्डोपरि, सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ॥१॥ आ काव्य बोली दण्ड उपर अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावां, धूप उखेववो. २-पंचरत्नस्नात्र – पंचरत्ननु चूर्ण अथवा पंचरत्ननी पोटली जलमध्ये नाखी, तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत० कही - नानारत्नौघयुतं, सुगंधिपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्धिचित्रवर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनादण्डे ॥२॥ ३-कषाय छाल जलस्नात्र - कपाय छालनु चूर्ण जलमां नांखी, तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्. कहीप्लक्षाऽश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिकल्कसंमिश्रम् । दण्डे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्पो चढावां, धूप उखेववो. ४-मृत्तिकास्नात्र - मंगलमाटी- चूर्ण जलमां नाखी तेना ४ कलशा भरी नमोऽर्हत् कही - पर्वतसरोनदीसंगमादिभिश्च मंत्रपूताभिः। उद्वर्त्य ध्वजदण्डं, स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक कर, पुष्प चढावी धूप उखेबवो. ५-मूलिकास्नात्र – मूलिका चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हत्० कही - सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तददकस्य शुभधारा । दण्डेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥५॥ आ काव्य बोली अभिषेक करवो, तिलक करवू, पुष्प चढावबां, धूप उखेववो. ६- अष्टवर्गस्नात्र - अष्टवर्गर्नु चूर्ण जलमां नाखी ४ कलशा भरी नमोऽर्हतं. कही - यश SH || ३९१ ।। சம் Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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