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।। प्रस्ताबना ॥
शनि
सूचन कयुं छे, प्रशस्तिमा ए बंने प्रबन्धो सं- १८१४ ना वैशाख शुदि ५ शुक्रवारे डभोइमा रहेल सुज्ञानसागरना शिष्ये (कान्तिसागरे) | ॥ कल्याण- बिम्बप्रवेशविधिनो मार्ग अने अष्टोत्तरी स्नात्रविधिनो मार्ग समुच्चित कर्यो एम जणाव्युं छे पण मार्ग- प्रदर्शन थाय नहिं के 'समुच्चय'. कलिका. छतां श्रीकान्तिसागर मार्गनो समुच्चय करे छे ए पण नवी हकीकत छे.
श्री कांतिसागरे आ अष्टोत्तरीस्नात्रविधिमा समानविषयक केटला बधो निरर्थक वधारो कर्यो छे तेनो खरो ख्याल तो प्राचीन अष्टोत्तरीनुं | स्वरूप अने तेना सामाननु लिस्ट जोवाथी ज आवी शके, एटला वास्ते अमोए कलिकामा प्राचीन अने कान्तिसागरे तैयार करेल अर्वाचीन अष्टोत्तरी दिग्दर्शन करावी जुनी नवी बंने अष्टोत्तरीनी सामान सूचीओ आपी छे के जे उपरथी वाचक गण तुलना करी शके, अष्टोत्तरीनी प्राचीनविधिमा अष्टाह्निकोत्सव, जलयात्रा, कुंभस्थापन, अष्टमंगलस्थापन, स्मरणपाठ आदिनी जरूरत नथी, ग्रहदिक्पालोनुं संक्षिप्त पूजन छे, पण ग्रहोनी मालाओ नथी, १०८ नालनो कलश नथी, चोखंडा २ रूपैया तथा १९ त्रांबाना अधेलाओ सिवाय नाणुं जोइतुं नथी, २ अखंड वस्त्रो अने १०) गज रंगीन वस्त्रना १०) खंडे सूत्राउ सिवाय वखनी आवश्यकता होती नथी.
बीजां उपकरणो पण घणां ज ओछां अने अल्पमूल्य छे.
सत्तरमा सैकाना पूर्वार्धमां लखायेल आ अष्टोत्तरीनी प्रति अमारी पासे छे, पण एथी जुनी प्रति क्याइ अमोए जोइ नथी. आचारदिनकरान्तर्गत प्रतिष्ठाविधिमां महापूजा मले छे. ए ज प्रमाणे पञ्चामृतमहास्नात्रना नामथी ओळखाती पूजाओ अन्यत्र पण जोवाय छे. पण अष्टोत्तरी स्नात्रनामथी ओलखाती आ पूजानी साथे ते महापूजाओनो कशो ज संबन्ध नथी.
उपलब्ध प्रतिष्ठाकल्पोमां आवी अष्टोत्तरी स्नात्रपूजा क्यांइ मलती नथी, आथी जणाय छे के 'अष्टोत्तरी' पूजा बहु प्राचीन नथी, of विक्रमना पंदरमा अथवा सोलमा शतकमा आनुं निर्माण थयु हशे एवं अमारु अनुमान छे, अने एथी ज सोलमा सैका सुधी आमां
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