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॥ चैत्यद्वार
॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
प्रतिष्ठा ॥
१ सप्तधान्य, २ पंचरत्न, ३ मंगल माटी, ४ कषायछाल, ५ मूलिक चूर्ण, ६ अष्टवर्ग, ७ पंचगव्य, ८ सुवर्णरज अने ९ तीर्थजल; आ नव द्रव्यो अनुक्रमे जलमां नाखीने ते जल वडे तेमना अभिषेक करवा, अन्तमा अबोट स्वच्छ जले करी द्वारांगोने धोई लूछीने ते रक्त वस्खोथी ढांकवां.
अभिषेक कर्या पछी द्वारांगोने प्रतिष्ठा मंडपमा लाबबां, जो प्रतिष्ठा मंडप बनाव्यो न होय तो द्वारनी बहार उपर चन्द्रवो बांधी त्यां तेमनी अधिवासना करवी, अधिवासनामां .
“ॐ नमो खीरासबलद्धीणं, ॐ नमो महुआसवलद्धीणं, ॐ नमो संभिन्नसोइणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विज्जं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ, ॐ कः क्षः स्वाहा ।"
आ विद्या त्रणवार भणी द्वारांगो उपर बासक्षेप करवो, चन्दनादि सुगन्ध द्रव्यो छांटवां, पुष्पाक्षतो चढाववा, जे पछी उंबरा नीचे वास्तु पूजन करवू, उंबरा नीचे मध्यभागे न्हानो खाडो करीने तेमां पंचरत्ननो न्यास करवो, उपर "ॐ" लखीने "ॐ वास्तुपुरुषाय नमः" आ मंत्र भणी वास्तु पुरुषर्नु पूजन करवू, वासाक्षत नाखवां, चंदनना छांटा नाखवा.
ते पछी लग्ननो समय आवतां प्रतिष्ठाचार्ये सूरिमंत्र बडे अथवा प्रतिष्ठा मंत्र बडे द्वारनी प्रतिष्ठा करवी अने प्रथम उंबरो, पछी जमणा हाथ तरफनी शाखा, डाबा हाथ तरफनी शाखा अने उत्तरंग, आ क्रमथी द्वारांगो उभा कराववां. श्वेतसर्षप, विष्णुक्रान्ता, ऋद्धिबृद्धि, कमल, कुष्ट, तिल, लक्ष्मणा, गोरोचन, सहदेवी अने दूर्वा; अ सर्व औषधिओ अथवा यथोपलब्ध औषधियोनी रंगीन वस्त्रे बांधेली पोटली उत्तरंगे बांधवी, अने ते पछी द्वारांगो उपर नीचे प्रमाणे ६ देवताओनो न्यास करवो .
"ॐ यक्षेशाय नमः" उत्तरंग उपर, "ॐ श्रियै नमः" उम्बरा उपर, (१) ॐ कालाय नमः (२) ॐ गंगायै नमः |
॥ ३१ ॥
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