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॥ चैत्यद्वार
॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
प्रतिष्ठा ॥
परिच्छेद ५. चैत्यद्वार प्रतिष्ठा विधिः चैत्यद्वारसमारोपो, विधेयो विधिपूर्वकम् । यस्माद् द्वारमुखं चैत्यं, शस्तद्वारं शुभावहम् ॥११॥ चैत्यनो द्वारारोप विधिपूर्वक करवो जोइये, कारण के द्वार चैत्य, मुख छ; शुभद्वारवाळु चैत्य ज शुभ फलदायक थाय छे.
प्रासाद- द्वार उभं करतां पहेलां तेना अंगोनो अभिषेक करी अधिवासना करवा साथे तेना देवताओनो न्यास करबो, अनुं नाम द्वार प्रतिष्ठा छे. द्वार प्रतिष्ठान मुहूर्त नक्की करी प्रतिष्ठोपयोगी अभिषेकनी औषधिओ विगेरे द्रव्यो प्रथम तैयार करी राखवां, मुहूर्तना दिवसे प्रथम प्रासादना द्वारपालोनुं नाममंत्रोच्चारपूर्वक सुगन्ध द्रव्यो वडे पूजन करवू, प्रत्येक दिशाना प्रासादना द्वारपालो भिन्न भिन्न होय छे, माटे जे दिशानो प्रासाद होय ते दिशाना द्वारपालोनी पूजा करवी. पूर्वादि दिशामुख जैनप्रासादोना द्वारपालो अनुक्रमे १ इन्द्र २ इन्द्रजय, १ माहेन्द्र २ विजय. १ धरणेन्द्र २ पद्म, १ सुनाभ २ सुर दुंदभि, अ नामना बे बे होय छे. माटे जे दिशामुख द्वारनी प्रतिष्ठा होय ते दिशामुख द्वारना द्वारपालयुगलनी नीचे प्रमाणे नाममंत्र वडे वासक्षेपे पूजा करवी.
(१) पूर्वमुखद्वारे - ॐ इन्द्राय नमः ॐ इन्द्रजयाय नमः । (२) दक्षिणमुखद्वारे - ॐ माहेन्द्राय नमः ॐ विजयाय नमः । (३) पश्चिममुखद्वारे - ॐ धरणेन्द्राय नमः ॐ पद्माय नमः । (४) उत्तरमुखद्वारे - ॐ सुनाभाय नमः ॐ सुरदन्दुभये नमः । ___ प्रथम नाममंत्रथी पोताना जमणा हाथ तरफनी बारसाखना स्थाने अने बीजा नाममंत्रथी डावा हाथ तरफनी वारसाखना स्थाने वासक्षेप करी द्वारपालोनुं पूजन करवू, ओ पछी द्वारनां अंगो-बे शाखाओ, उंबरो, अने उत्तरंगने द्वार निकट मंगावी, यथास्थान गोठवी,
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