________________
॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
न्यास ॥
२९ ॥
शिलान्यासविधि प्रतिष्ठाकल्पोक्तः जे वास्तुभूमिमां शिलान्यास करवो होय तेमां प्रथम खात मुहूर्त पूर्वक भूमिर्नु संशोधन करी पत्थर, ईंट, वालुका, आदिथी खाडो | भरवो, अने ज्यांथी चणवानुं काम चालू करवू होय त्यां सुधी आवी अग्निकोण आदि ४ विदिशाओ अने १ मध्यभाग; आ पांच स्थलोमां शिलान्यास माटे १-१ हाथ समचोरस अने १-१ हाथ उंडा खाडा राखी तेमां न्यास विधि करवी. मध्यभागना खाडामां सर्व प्रथम काचबाना
आलेखवालु रूपानुं पतरु थाप, उपर रूपानाणुं मूकवू, ते उपर माटी- शरावलु थापी अन्दर माटी न्हानुं कूल्हडु मूक. कुल्हडामा पंचरत्ननी पोटली, धृत अने सात धान्य मूकवां. अ पछी कुल्हडा उपर बीजुं शरावलुं ऊर्ध्वमुख मूक. एज प्रमाणे चार कोणना खाडाओमां शरावलां, कुल्हडां अने उपर बीजां शरावलां मूकवां अने बधा खाडाओ उपरनां शरावलांना मथारा सुधी पत्थरो, ईंटोना ककडा अने चूना बडे भरी देवा, ते पछी शिला संपुट तैयार करवा, मकान ईंटोनुं बनाव, होय तो वे बे ईंटोना संपुट करवा अने पत्थरन कराव_ होय तो शिला संपुटो पण पत्थरना बनाववा, ईंट या शिलाना, जेना संपुट बनाववा होय तेने प्रथम शुद्ध जलथी पखाली तेओ उपर कुंकुमना हाथा 'थापा' देइ बेबे ईंटोना अथवा शिलओना संपुट करी गेवासूत्र वींटवू. ज्यारे मुहूर्तनो शुभ समय आवे त्यारे प्रत्येक संपुट ओक अक खाडामां स्थापवो, प्रथम मध्यमां "ॐ कूर्म निज पृष्टे प्रासादं धारय धारय स्वाहा" आ मंत्र बोलतां कूर्मशिला स्थापीने मुहूर्त साचवबुं, मुहूर्त करतां गीत बादित्रो वगाडवां, प्रथम शिला मध्यमां, बीजी अग्नि कोणमा, त्रीजी नैर्ऋत्य कोणमा, चोथी वायव्य कोणमां अने पांचमी शिला ईशान कोणमा स्थापन करवी, ४ सधवा स्त्रियो कुंकुंम अने अक्षतो वडे स्थापित शिलाओने वधावे, विधिकार तेओनी उपर वासनिक्षेप करे, ओ पछी दशदिक्पालोने बलि क्षेप करवो, देवगृह बनावनार सूत्रधार शिल्पीनो सत्कार अने संघनी यथाशक्ति भक्ति करवी. प्रतिष्ठागुरु जिनप्रासाद निर्माण विषयक फलना कथन पूर्वक उपदेश करवो. ॥ इति प्रतिष्ठाकल्पोक्तः शिलान्यास विधिः ।।
CS
काल
का
IA
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org