________________
॥ कल्याण
॥ प्रस्तावना ।।
चा
अट्ठाहि महोत्सव, जलयात्रा, कुंभ स्थापना, स्मरणपाठ, अखंडदीप धूप आदि ए बधी वस्तुओए छेल्लां १०० वर्षोमां अष्टोत्तरीनी
विधिमा प्रवेशीने आ स्नात्रपूजाने के जे पूर्व सुख साध्य हती ते दुःखसाध्य बनावी दीधी, जे स्नात्रपूजा पूर्वे थोडा खर्चे थोडा समयमां कलिका. | बाला
भणावी शकाती हती ते आजे घणा खर्चे घणा श्रमे भणावी शकाय तेवी बनी गइ छे. खं० २॥ ए विषयमा प्रश्न थवो स्वाभाविक छे के लगभग २५० वर्षोमा जे परिवर्तन न थयुं ते छेल्लां १०० वर्षोमां केम थयु ? अने ते
पण सामग्रीने ज अंगे ?, इतिहासना जाणनाराओ माटे आनो उत्तर आपवो मुश्केल नथी. ओगणीशमा सैकानुं अन्तिम चरण अने ॥ ४२ ॥
वीसमी शताब्दीनो पूर्वार्ध ए ७५ वर्षनो गालो परिग्रहधारी अने शिथिलाचारनी अन्तिम हदे पहोंचेला श्रीपूज्यो अने यतियोना प्राबल्यनो हतो, आ समय दर्मियान प्रतिष्ठाओ, पूजाओ, उद्यापनो अने बीजां जे काइ महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्यो थतां तेमां विधिकार तरीकेनी मुख्यता श्रीपूज्योनी अथवा तेमना आज्ञाकारी यतिओनी रहेती, सामग्रीनी सूचिओ तेमना हाथे लखाती अने ते सामग्रीनो उपयोग तेमनी इच्छानुसार थतो, घणो खरो औषधोपयोगी सामान तेमना उपाश्रयोमा पहोंची जतो अने पैसा टकाने अंगे पण घणा गोटाला थता छतां तेमने ए विषयमा कोइ पण कंइ कही शकतुं नहि.
आवा गोलमालना समयमा विधिओमां सामग्रीगत फेरफारो घणा थइ गया, सामाननी यादिओ लखनाराओए वस्त्रो, सुगंधिओ, मेवाओ, फलो, मिठाइयो अने रोकड द्रव्य विषयक संख्यामां यथेच्छ वधारो कर्यो, सामाननी ते यादिओ पाछलथी विधि पुस्तकोमा दाखल थइ अने ते लिखित पुस्तको उपरथी तेमज ते उपरथी पुस्तक प्रकाशको द्वारा छपायेल पुस्तको उपरथी विधान करावतां शिखेल विधिकार गृहस्थोए ते विधिओ तेम ज तेमां लखेल सामग्री प्रमाणे विधिविधान कराववानी प्रवृत्ति पाडी, वीसमी सदीथी आजे एकवीसमा शताब्दीमा चालतां विकृतविधि-पुस्तकोमा जणावेल सामग्री मेलवीने बधा विधिकारो प्रतिष्ठाओ अने महापूजाओनां विधि-विधानो करावे
बाबा Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org