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________________ ॥ प्रस्ताबना ।। |छे, पण आ आधुनिक विधियो केवा विधिकारोने हाथे केवी रीते विकृत थइ छ ए वस्तु जो समजी लेवाय तो उक्त पुस्तकोक्त सामग्रीविषयक । कल्याण- | पोतानो आग्रह अवश्य छोडे ज एमां शंका नथी. कलिका. | अष्टोत्तरी स्नात्रनी समाप्तिमा श्री कांतिसागर लखे छे 'इति श्री अष्टोत्तरी स्नात्रविधिः । अत्र सामाचारी विशेषे कोइ क्रियान्तर घणा छे ते देखी व्यामोह न करवो इहां श्राद्धविधि, प्रतिष्ठाकल्प, जिरण स्नात्र, कल्पसामाचारी प्रमुख ग्रन्थावलोकन करी युक्ति विधि लख्यो छे, कोइ अरिहंत साध्ये क्रियान्तर होय ते साध्य शुभ माटे सफल छे. गणधर सामाचारीमांहि पणि घणा फेर छे पणि साध्य एक माटे सर्व सफल छे. इम सर्वे धर्मकृत्य मांहि जाणवू इहां वली विशेष बीज पल्लव गुरुपरंपराधी जाणवां । " उपरना उल्लेखथी स्पष्ट थाय छे के तत्कालीन प्रचलित अष्टोत्तरीमा करेल विकृतिने अंगे कांतिसागरे पोतानो बचाव कर्यो छे पण | पूर्वाचार्य कृत चार ग्रन्थोमां के जेनो एमणे आधाररूपे निर्देश कर्यो छे ते कोइमां पण अष्टोत्तरी, बीज नथी एटले आ ग्रन्थोनो नामोल्लेख निरर्थक छे अने गणधरोनी सामाचारीमा घणो फेर बतःवीने तो श्री कान्तिसागरे सिद्धान्त विषयक पोताना अज्ञाननो ज परिचय आप्यो | छे, बली आ स्थले बीज पल्लवोनो निर्देश करीने लेखके पोतानु यतिपणुं साबित कर्यु छे, नहिं तो आ प्रसंगे ए उल्लेखनी कंइ ज आवश्यकता . हती नहि, बिंबप्रवेश अने अष्टोत्तरी स्नात्रनी विधिओ के जेना आधारे विधिकारो आजकाल प्रतिष्ठाओ अने अष्टोत्तरी स्नात्र पूजाओ करावे छे ते केवा समयमां केवा पुरुषद्वारा संकलित थइ छे ए वात आजना प्रतिष्ठाचार्यो तथा विधिकारो समजे एवा आशयथी अमारे ए अंगे थोडंक विवेचन करवू पड्युं छे. ७-पूर्वकालीनप्रतिष्ठाओ अने प्रतिष्ठाना फल विषे लोकमानस पूर्वकालीन प्रतिष्ठाओ घणी सादी अने सुख साध्य हती, जिनभवन- कार्य समाप्त थवा आवतुं एटले शुभ समय जोइ प्रतिमा तैयार For Private & Personal Use Only बा ल ala न का Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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