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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
।। प्रस्ता . बना ॥
बीजा 'अष्टवर्ग'नो श्लोक लइ लीधो छ जे अप्रासंगिक छे.
(४) आ कल्पमा नवमो अभिषेक 'पंचगव्य'नो अने दशमो 'सुगंधौषधि' नो राख्यो छे, पण बीजा सर्वमा नवमो अने दशमो | अभिषेक अनुक्रमे 'द्वितीयाष्टकवर्ग' अने 'सौषधि' नो छे. बीजा कल्पो करतां आमां सौषधिनां द्रव्यो पण घणां अने केटलाये जुदी जातनां लीधा छे.
बीजा प्रतिष्ठाकल्पोना 'सर्वोषधि स्नात्रनो पाठ आमां 'सुगंधौषधि' नामनो एक नवो अभिषेक कल्पीने तेमा आप्यो छे अने एक श्लोक नवो लख्यो छे.
दश पछीना आना अभिषेको वीजा कल्पोना अभिषेकोनी साथे मलता थइ जाय छे, छतां एक बे स्थले थोडोक फरक तो छे
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(५) बीजा घणा खरा प्रतिष्ठाकल्पोमा अढार अभिषेकने अन्ते शुद्ध जलना त०८ कलशोथी अभिषेक करवानुं विधान छे, नं०५ ना प्रतिष्ठाकल्पोमा दूध, दहि, घी, सेलडीरस (खांड) अने सर्वोषधि- स्नात्र अभिषेकने अन्ते करीने पछी १०८ जलकलशो वडे अभिषेक करवानो आदेश छे, पण आ कल्पमा तो अभिषेक प्रकरणमा १०८ अभिषेकनो उल्लेख ज नथी अने निर्वाणकल्याणकना अन्ते ए १०८ जलकलशो वडे अभिषेक करवानुं विधान कयु छे के ज्यां एनो कोइ प्रसंग ज नथी!
(६) बीजा धणाक प्रतिष्ठाकल्पोमां 'कंकणमोचनविधि'ना प्रसंगे पण 'अष्टोत्तर शत अभिषेक' करवानुं विधान छे, निर्वाण कल्याणक पछी आ कंकणमोचन जेवो प्रसंग उपस्थित करीने ए १०८ अभिषेक त्यां बताव्या होत त्यारे ते सार्थक पण गणी शकात, पण एवो कोइ पण प्रसंग नथी अने अभिषेक लख्या छे !
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