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________________ ॥ कल्याण- कलिका. खं०२॥ ॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥ जुवार से.१॥ मलमलनु थान ॥ रातुं चोल थान ०॥ सुतरनी दोरी लोटो १ घंटडी १ मग स.३ मग से.३ जगन्नाथी धोएल थान ०॥ काची इंट नं.२०० थाली वेलण १-१ बाजोठ ३ ७-पूर्वतन प्रतिष्ठाकल्पोक्त-सामग्री कोश. अमोए जे ग्रंथर्नु अवगाहन करीने 'नव्यप्रतिष्ठापद्धति'नुं निर्माण कर्यु छे ते आधार ग्रन्थोमां कालक्रमे सामग्रीनो केवी रीते वधारो थयो छे ए वस्तु आ कोश उपरथी स्पष्ट समजी शकाशे. अमारा अनुशीलनमा आवेल १ श्रीपादलिप्तप्रतिष्ठापद्धति, २, श्रीचन्द्रप्रतिष्ठापद्धति, ३ जिनप्रभप्रतिष्ठापद्धति, ४ वर्धमानपतिष्ठापद्धति, ५ गुणरत्नप्रतिष्ठाकल्प, ६ विशालराजशिष्यप्रतिष्ठाकल्प, ७ जिनप्रभानुयायीप्रतिष्ठाविधि अने ८ सकलचन्द्रपतिष्ठापद्धति, ए आठ प्रतिष्ठाकल्पो छे. आ वधानो रचना समय क्रमिक होवाथी अमोए बधाने १ थी ८ सुधीना नंबरो लगाडेल छे. प्रत्येक पदार्थना नामना अंतमा (१) (३।५।७) उत्यादि आंकडा मुकेला छे तेनो अर्थ ए छे के अक्षततन्दुल सेर १ (१) आ विधान पादलिप्तप्रतिष्ठा पद्धतिनुं छे. एज रीते (३।५।७) नो अर्थ समजबो. 'अक्षतपात्र' ए शब्द जिनप्रभ, गुणरत्न तथा भाषाना प्रतिष्ठाकल्पोमां छे, एज प्रमाणे सर्वत्र कोष्ठकमां जेटलामो आंकडो होय तेटलामा ते नंबरना प्रतिष्ठाकल्पोमां ते पदार्थ लख्यो छे एम समजी लेबुं. अक्षत तंदुल से.१ (१) अक्षत मृतस्थाल (२।३) अखंड तन्दुल सेइ.२(५) अखोड (८) अक्षत पात्र (३।५७) अक्षतांजलि (५) अखंड तन्दुल सेती १(१) अगरु (४) अक्षतपात्र कृताऽभग्नतंदुल प्रस्थ (४) अखंड चोखा थाल २ (३८) अखंडाक्षतांजलि (२।३) अगरबत्ती (८) अक्षोटक (३४) अखंड चोखा सेइ (६) अखोड १०० (७) अगर सेर २ (७) ॥ ५४१ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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