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________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३७ ।। Jain Education International (६) धूप तरीके आमां अगरबत्तीनो उल्लेख मले छे जे आ विधिग्रन्थनी अर्वाचीनता साबित करे छे. (७) मंडप पूजनमा 'घंटाकरण' ना पाठथी सुखडी मंत्रीने बहेंचवानुं विधान पण आ ग्रन्थनी अर्वाचीनता प्रमाणित करे छे. (८) "परमेष्ठिनमस्कारं” इत्यादि स्तोत्रवडे 'सकलीकरण' ना विधानथी पण ए ग्रन्थ नवीन सिद्ध थाय छे, कारण के रत्नशेखरसूरिनो समय पंदरमा सैकानो उत्तरार्ध तथा सोलमा सैकानो प्रथम चरण छे ज्यारे आ स्तोत्रनुं निर्माण सत्तरमा सैकामां थयेलुं छे. (९) आमां थयेलो ‘“श्राद्धविधि" नो नामोल्लेख पण ए ग्रन्थना श्रीरत्नशेखरसूरिकृत नथी ए मान्यतानी ज पुष्टि करे छे, केमके श्राद्धविधि रत्नशेखरसूरिनी ज कृति छे जो प्रकृत पुस्तक पण श्राद्धविधिकारनी ज कृति होय तो तेमां प्रमाण रूपे उल्लेख थाय नहि, आ ग्रन्थमांनु जलयात्राविधि, ग्रह- दिक्पालपूजनविधि, बिंबप्रवेशविधि, आदि विधिओ “बिंबप्रवेशविधि ” संदर्भनो ज उतारो छे एटले बिंबप्रवेशविधिथी पण अर्वाचीन संग्रह छे. (३) ‘“बिंम्बप्रवेशविधि’” आ ग्रन्थ सं० १८१४ नी सालमां पूर्णिमा पक्षना श्रीपूज्य श्रीपुण्यसागरसूरिना आज्ञावर्ति पन्यास यतिश्री सुज्ञानसागरना शिष्य यति श्रीकान्तिसागरे लखेलो छे अने हमणां थोडाक वर्षो उपर अमदावादना एक मास्तरे छपावेल पण छे. नाम प्रमाणे आमां मुख्य वस्तु देहरामां प्रतिमा स्थापन विधि छे, अने जलयात्रा, कुंभ स्थापन आदिनी विधिओ मूलविधि विधिनां ज अंगभूत प्रकरणो छे, आमांनुं अभिषेक प्रकरण, आचार दिनकरमांथी उमेर्यु छे. जे अनावश्यक छे. आ ग्रन्थना संदर्भक यति कांतिसागर सारा विद्वान् के ए विषयना अनुभवी होय एम आ ग्रन्थ उपरथी जणातुं नथी. मंगलाचरण तथा प्रशस्तिना लोकोमा छन्दोभंग अने व्याकरण संबन्धी अशुद्धिओ जोतां एमनामां संस्कृत ज्ञाननी खामी जणाइ आवे छे अने प्रतिष्ठाविधिने विषे पण मनुं जाणपणुं तद्दन काचुं ज हतुं एम एमना आ संदर्भ उपरथी जणाइ आवे छे. For Private & Personal Use Only ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ३७ । www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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