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॥ कल्याणकलिका.
खं० २ ।।
।। ६३ ।।
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वज्राग्रे प्रणवं दद्यात्, कामबीजं तदन्तरे । त्रिर्मायामात्रयावेष्ट्य, निरुन्ध्यादंकुशेन तु || ६ ||
आ ४ श्लोको या तो रही गया छे अथवा तो जाणीने छोडी देवामां आव्या छे, गमे तमे होय पण एटलुं तो निश्चित छे के विधिप्रपागतविधान खंडित अवश्य छे.
विधिप्रपानी अमारी हस्तलिखित प्रतिमां आपेल २ यंत्रको पैकीनुं १ लुं यंत्र आशाधरनी निर्माण विधिथी बनावेल छे, ज्यारे २ जुं यंत्र स्वतंत्र छे, आनी रचना साथे आशाधरना तेम ज जिनप्रभसूरिना श्लोकोनो कशो मेल मलतो नथी. बीजा यंत्रना संबन्धमा जिनप्रभसूरिए थोडाक शब्दोमां विवेचन कर्तुं छे, जेनो उल्लेख योग्य स्थाने करवामां आवशे.
प्रथम अमो उक्त बने ग्रन्थकारोए आपेल श्लोको उपरथी १ ला यंत्रना निर्माणनुं विवेचन करीशुं.
आसनयंत्र १
निश्चल स्थाने स्थापेल संपूर्ण लाक्षणिक पीठ उपर प्रतिष्ठित करवा माटे प्रतिमाने तेनी पासे लावीने राखी मूको.
पीठे स्थापवा माटे सोनानुं, रूपानुं, त्रांबानुं, अथवा पाषाणनुं एक चोरस पत्रु बनावो, पत्रु सुन्दर जाडुं अने चीकणुं बनावी तेमां आडी उभी ८-८ रेखाओ (लीटीओ) खेंचाववी, रेखाओ अग्रभागे वज्राकारे करवी, आम ८-८ रेखाओना संयोगथी पत्रामा ४९ कोष्टकनुं मंडल बनशे. (४ थी ५ मी रेखाओ बच्चेनुं अंतर अपेक्षाकृत वधारे राखनुं के जेथी मध्यकोष्ठक मोटुं बने अने तेमां अष्टदल कमल बनावी शकाय )
आ मंडलना बाह्यकोण (ईशानकोण) ना कोष्ठकथी आरंभ करी सृष्टिक्रमे ११ कोष्टकमा १-१ अक्षर लखी छेले मध्यकोष्ठकमां अष्टपत्रकमल बनावनुं, अने तेनी कर्णिकामां रेफ सहित 'हं' कार अर्थात् 'हैं' लखवो, आने फरता पूर्वादि दिशागत कमलपत्रोमां जया
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॥ जिन
बिम्ब
प्रवेश विधिः ॥ (४)
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