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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
॥ जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥
आ मंत्र ७ वार बोलीने आसनना स्थानने अभिमंत्रित करवू, ए पछी समूल डाभ साथे मेळवेली कुंभकार चक्रनी माटी आसन | उपर लिंपवी, ते उपर गुरुदत्त वासक्षेप करवो, अने मुहूर्तनी वेलाए ७ नवकार गणीने ते स्थाने प्रतिमा पधराववी, अने
"ॐ जये श्री ही सुभद्रे नमः" ए मंत्रनो प्रतिमा उपर ७ बार न्यास करवो.
४-जिनालय होय के घर देहरासर होय पण प्रतिष्ठा करावनार कोई एक व्यक्ति होय तो तेणे १० दिवस सुधी शीलवत पालवू, आयंबिल अथवा तो एकाशन करवू, नवकार-उवस्सग्गहरनी फूल गुंथणीए १ नोकारवाली नित्य गुणवी, अने भूमि शयन कर. ।
आसनयंत्र आसनयंत्रनुं विधान पंडित आशाधरना प्रतिष्ठासारोद्धारमा अने आचार्य जिनप्रभसूरिना ‘विधिमार्गप्रपा' ग्रन्थना प्रतिष्ठाऽधिकारमा दृष्टिगोचर थाय छे.
पं० आशाधरनुं अने आचार्यजिनप्रभy आ यंत्र-विधान थोडाक शाब्दिक फेरफार सिवाय एक ज छे, छतां विधिप्रपामा ए विषयना - तिर्यगूर्वाष्टरेखाभिर्वज्राग्राभिः समालिखेत् । मण्डलं व्येकपञ्चाशत्कोष्ठकं श्लक्ष्णरेखकम् ॥३॥ अकारादिहकारान्तं, कोष्टेष्वेकैकमक्षरम् । बाह्यकोणस्थितात्कोष्ठात्, प्रादक्षिण्येन संलिखेत् ।।४।।
मध्यमे कोष्ठके तत्र, हंकारं सोर्ध्वरेफकम् । जयादिदेवताधिष्ठ-पत्रपद्मस्य मध्यगम् ॥५॥ १. आ गृहबिम्बप्रवेदाविधि लगभग १६ मा सैकाना उत्तरार्द्धमा लखेल एक प्राचीन पत्रना आधारे लखी छे.
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