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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ अष्टोत्तरि शत स्नात्र विधि ॥ २२८ ॥ शुभश्रावक स्नात्र करे. “ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः" ए पाठ प्रत्येक अभिषेक आदिमां बोलीने पछी गाथाओ बोली | स्नात्र (अभिषेक) करे. स्नात्रनो प्रारंभ - ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ शान्तिं शान्तिनिशान्तं, शान्तं शान्ताऽशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मंत्रपदैः शान्तये स्तौमि ह्रीं स्वाहा ॥१॥ ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः असियाउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा ।" ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सब्वभया । संति थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे स्वाहा ॥१॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमिइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकि-तणेण पसमंति सब्वाई स्वाहा ॥२॥ ॐ वरकणयसंखविम-मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वाऽमरपूइयं वंदे स्वाहा ॥३॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासीविमाणवासी य । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सब्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥४॥ शांतिस्नात्र जो शान्तिक रूप होय तो उपरनो पाठ बोलीने अभिषेक करचो पण ते पौष्टिक रूप होय तो उपरनो पाठ बोल्या पछी उपर - || २२८ ।। के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.iainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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