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॥ कल्याण
कलिका. खं० २॥
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संतितुट्ठिपुट्ठिसुत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा ।" ___आ मंत्र वडे भूत-बलि मंत्रीने दशे दिशाओमां धूप दीप चंदन पुष्प जल वास लापसी पुडला वडां सहित बलिबाकुला जिनगृहनी ||॥ चतुर्थाबहार उछालवा, पछी नीचे प्रमाणे अंगन्यास करवो -
"ॐ नमः सिद्धं" मस्तके, ॐ आँ ह्रीं क्रौं वद वद वाग्वादिनि अर्हन्मुखकमलवासिनि नमः" मुखे, “ॐ ह्रां ह्रीं | सिद्धचक्रहः अर्हन् नमः" हृदये, “ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नमः" नाभौ, “ॐ ह्रीं धर्माय नमः" शरीरे ।
पूजनम् ॥ उपर प्रमाणे अंगन्यास कर्या पछी नीचेना मंत्रोद्वारा करन्यास करवो - ॐ नमो अरिहंताणं-अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ नमो सिद्धाणं-तर्जनीभ्यां नमः । ॐ नमो आयरियाणं-मध्यमाभ्यां नमः । ॐ नमो उवज्झायाणं-अनामिकाभ्यां नमः । ॐ नमो लोए सब्बसाहूणं-कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ नमो आगासगामीणं-करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । उपर प्रमाणे अंगन्यास तथा करन्यास करीने पुष्पाक्षत फल पत्र दीप धूप वडे सिद्धचक्र मंडलनी-निचेना क्रमथी पूजा करवी.
सिद्धचक्र पूजन - "अर्हन्तः सिद्धसूरीन्द्रो-पाध्यायाः सर्वसाधवः । ज्ञानादर्शनचारित्र-तपांसि सिद्धयेऽङ्गिनाम् ॥१॥" आ श्लोक बोलीने सिद्धचक्रना अष्टदलकमलाकारमंडलने प्रथम पुष्पाक्षतोए बधावq. पछी प्रत्येक पद विषे नीचे प्रमाणे श्लोको अने मंत्रो बोलीने अरिहंत आदिनी जल, चन्दन, पुष्प, अक्षत फल पत्र धूप दीप आदिथी | पूजा करवी, प्रत्येकपदनी पूजा शरु करतां पहेला - "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ।" आ नमस्कार वाक्य बोल्या क.
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