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। कल्याण
॥ भूमि
कलिका. |
ग्रहण
खं० २॥
अने संक्रान्त्यनुसारे जे कोणमा खातस्थान आवतुं होय त्यां लग्न समय आवतां विधिपूर्वक खात मुहूर्त करवू.
खातविधि - वास्तु भूमिना मध्यभाग उपर कुंभ स्थापन करी तेनी सामे पाटलो ढालीने ते उपर प्रथम वास्तु पुरुष- आह्वान पूर्वक स्थापन करवू. ते आ प्रमाणे -
ॐ वास्तोष्पतये ब्रह्मणे नमः । ॐ वास्तोष्पते इहागच्छ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पते इह तिष्ठ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पते पूजां प्रतीच्छ २ स्वाहा । ॐ वास्तोष्पतये नमः । मुद्रापूर्वक आह्वान-स्थापना करी नीचेना मंत्रोच्चारण पूर्वक द्रव्यो चढावबां, ते आ प्रमाणे १ॐ वास्तोष्पतये धूपं समर्पयामि स्वाहा । २ ॐ वास्तोष्पतये चन्दनादिकं समर्पयामि स्वाहा । ३ ॐ वास्तोष्पतये पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा । ४ ॐ वास्तोष्पतये वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । ५ ॐ वास्तोष्पतये फलं समर्पयामि स्वाहा । ६ ॐ वास्तोष्पतये दीपं समर्पयामि स्वाहा । ७ ॐ वास्तोष्पतये नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । ८ ॐ वास्तोष्पतये अक्षतादिकं समर्पयामि स्वाहा । प्रत्येक मंत्रमा जणावेल द्रव्यो चढाव्या बाद हाथ-जोडीने नीचेनो श्लोक बोलबो - वास्तुपुरुष ! नमस्तेऽस्तु, भूमिशय्यारत प्रभो ! । मद्गृहं धनधान्यादि-समृद्धं कुरु सर्वदा ॥४॥ आम प्रार्थना करी शुद्ध जल अंजलिमा लईने - "ॐ वास्तोष्पतये ब्रह्मणे विसर विसर पुनरागमनाय स्वाहा" आ मंत्र Jawal
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